Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनी टीका अ०५ सू० ५ संयताचारपालकस्य स्थितिनिरूपणम्
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लक्ष्यते, तथैव श्रमणोऽपि मानापमानयोरननुभवात् हर्षग्लान्योरभावात्सर्वदैकरूप एव भवतीति । तथा - उग्धोसियसुनिम्मलं ' मार्जितसुनिर्मलम् = मार्जितं = तलोपरिस्थितमलापनयनेन, अतएव - सुनिर्मलं सुप्रसन्नम्, ' आयंसमंडलतलं व ' आदमण्डलतलमित्र = आदर्श :- दर्पणस्तस्य यन्मण्डलतलं - मण्डलाकारं तलं तदिव 'पागभावेण ' प्रकटभावेन - अमायित्वादनिगूहितभावेन ' सुद्धभावे ' शुद्धभावः शुद्धः भावः स्वरूपो यस्य सः, तथा - ' कुंजरो व ' कुञ्जर इव ' सौंडीरो' शौण्डीरः = परीषद सैन्यनिर्दलनसमर्थः, वसभोव , वृषभ व 'जायथामे ' जातस्थामा = यथा वृषभो भारोद्वहने सामर्थ्ययुक्तो भवति, तथैव स्वीकृतमहाव्रतभारोद्वहने सामर्थ्यसंपन्न इत्यर्थः । तथा-' सीहो व ' सिंह इव श्रमणः, अमुमेवार्थं स्पष्टयतिजहा ' यथा सिंह ' मिगाहिवे, मृगाधिपः - अथ च तैः ' दुप्पधरि से ' दुष्प्रधृदिखता है किन्तु एकसा आकार वाला परिलक्षित होता है उसी प्रकार यह साधु भी मान और अपमान के अनुभव से रहित होने के कारण हर्ष और ग्लानि, इन दोनों प्रकार के भावों से रहित बन जाता है, अतः वह सर्वदा एक रूप में ही रहा करता है । ( उग्घोसिय मंडलं आयंसमंडलतलं व पागडभावेण सुद्धभावे ) मांजने से ऊपर के मैल के हटा देने से - निर्मल बने हुए दर्पणमंडल की तरह इस का स्वरूप अमायी होने के कारण प्रकट रूप से शुद्ध रहता है । ( सोंडीरो कुंजरो व) कुंजर के जैसा यह शौंडीर - परीषहरूपी सैन्य के निर्दलन करने में समर्थ होता है । (वसभोव जायथामे) वृषभ की तरह जातस्थामस्वीकृत महाव्रतरूप भार के वहन करने में शक्तिशाली होता है । ( सीहोव जहा मिगाहिवे होइ दुप्पधरिसे) सिंह जैसे मृगों का अधिपति और उनके द्वारा अपराभवनीय होता है उसी तरह वह साधु भी
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એક સરખી લાગે છે એ જ પ્રમાણે સાધુ પણ માન અને અને અપમાનના અનુભવથી રહિત હાવાને કારણે હર્ષ અને શાક એ અન્ને પ્રકારના ભાવાથી रहित मनी लय छे तेथी ते हमेशा समभावथी ४ २डे छे. “ उग्घोसियमंडल' आय'सम' डलतलव पागडभावेण सुद्धभावे " मांन्वाथी उपरनो भेस दूर उरी નાખવાથી નિમ ળ અનેલ દર્પણની જેમ તેનું સ્વરૂપ અમાયી હવાને કારણે પ્રગટ ३ये शुद्ध रहे छे. “सोंडीरो कुंजरोव” हाथीनी प्रेम ते शौंडीर - परीषड्३यी सैन्यना अभ्यरधालु अढी नावाने समर्थ होय छे. "वसभोव जायथामे " वृषलनी भ તે સ્વીકૃત મહાવ્રતરૂપ ખેાજાનું વહન કરવાને શકિતશાળી હાય છે. “ सीहो जहा मिगाहि होइ दुप्पधरिसे " प्रेम सिंह भृगोनो अधिपति तथा तेमनाथी
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર