Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सरणं शरणम् ' सव्वजगवच्छले ' सर्वजगद्वत्सलः - सर्वजीवयोनिषु करुणाभावयुक्तः, 'सच्चभासए य' सत्यभाषकश्च सत्यभाषाविवेकतत्परः तथा - ' संसारंते ठिये य ' संसारान्ते स्थिताश्च भाविजन्मरहितत्वात्, इममेवार्थ शब्दायेन्तरेणाह संसारसमुच्छिन्ने' संसारसमुच्छिन्नः = संसारः = चतुर्गतिलक्षणः समुच्छिन्नो येन सः, अतएव ' सययं ' सततम् ' मरणाणं ' मरणानां ' पारए ' पारगः - मुक्तस्यो स्पन्यभावेन मरणाभावान्मरणपारगत्वं बोध्यम् । तथा-' पारगे य' पारगच सव्वेसिं संसयाणं' सर्वेषां संशयानाम् = सर्वसंशयोच्छेदक इत्यर्थः, तथा 'पत्रयणमायाहिं अहिं प्रवचनमातृभिरष्टाभिः = पञ्चसमितित्रिगुप्ति रूपाभिः = साधनभूताभिः
प्रश्रव्याकरणसूत्रे
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करने में तत्पर - बन जाता है । तथा (सरणं सव्वभूयाणं) समस्त भूतों का रक्षक बना हुआ वह साधु (सच्च जगवच्छले) सर्व प्रकारकी जीव योनियों के ऊपर अपार करुणाभाव से सहित हो जाता है । ( सच्च भासए ) उसकी भाषा में सत्यवादिता की छाप लग जाती है और वह ( संसारते ठिए ) आगामी जन्मसे रहित होनेके कारण संसार के अंत में स्थित हो जाता है । इसी बातको सूत्रकार शब्दान्तरसे समझाते हैं( संसारसमुच्छिन्ने) उस साधुका चतुर्गतिरूप संसार समुच्छिन्न हो जाता है । अत एव ( सययं मरणाणपारए) वह सतत् मरण का पारगामी बन जाता है । क्यों क्ति मुक्त जीव की फिर संसार में उत्पत्ति I नहीं होती है, इसलिये उसका मरण भी नहीं होता है, अतः इसी भाव को लेकर ' वह मरण का पारगामी बन जाता है' ऐसा कहा गया है। ( सव्वेसि संसयाणं पारए ) वह समस्त प्रकारके संशयों का उच्छेदक
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નિર્વાણુ સાધવાને તત્પર બની જાય છે. તથા सरणं सव्वभूयाणं " समस्त भवन र मने ते साधु " सव्वजगवच्छले " सर्व अारनी व योनियो पर अचार उरुणाभावथी युक्त मनी लय छे. "सच्च भासए " तेनी वालीमां सत्यवाहितानी छाप बागी लय छे भने ते " संसार ते ठिए " भावता ४न्भथी રહિત હાવાને કારણે સંસારના અન્તમાં સ્થિત થઇ જાય છે. એ જ વાતને સૂત્રકાર मील रीते शम्हादिङ २शरथी सभलवे छे - " संसारसमुच्छिन्ने ” ते साधुना थारगति३य संसार समुच्छिन्न था लय छे. तेथी “ सययं मरणाणपारए તે કાયમને માટે મરણના પારગામી અની જાય છે, કારણ કે મૂત જીવની સ'સારમાં ક્રીથી ઉત્પત્તિ થતી નથી, તેથીતેનું મરણ પણ થતું નથી. તેથી એ लावने अरणे “ते भरणुना पारगाभी मनी लय छे” मेधुं उद्धुं छे. " सव्वेसि संसयाणं पारए" ते समस्त प्रहारना संशयाना उच्छे-निवार था लय छे.
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
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