Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनी टीका अ०५ सू०५ संयताचारपालकस्थितिनिरूपणम्
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पमाननयोः, तथा - ' समियर ' शमितरजाः शमितम् = उपशान्तं रजः = पापं यस्य सः, अथवा - शमितं रतं विषयेष्वनुरागो यस्य सः, यद्वा - शमितो रयः = विषयौत्सुक्यं यस्य सः, तथा समियरागदोसे ' शमितरागद्वेषः = शमितौ रागद्वेषौ यस्य सः, तथा - ' समिए समिईसु' समितः समितिषु = पञ्चसमितिपरायण इत्यर्थः, सम्मी ' सम्यग्दृष्टिः । तथा - ' जे य , यश्व ' सव्वपाणभूएसु ' सर्वप्राण
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भूतेषु = सर्वे च ते प्राणाः = द्वीन्द्रियादित्रसाः, भूताः = स्थावरास्तेषु 'समे ' समः,
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'हु' स खलु समणे ' श्रमण: ' सुयधारए ' श्रुतधारकः ' उज्जुए ऋजुकः=अबक्रः, अथवा-उद्युक्तः = आलस्य वर्जितः, ' संजए ' संयत: ' सुसाहू ' सुसाधुः = सुष्ठु निर्वाणसाधनपरः, तथा सच्चभूयाणं सर्वभूतानां षड्जीवनिकायस्य
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दृष्टि से नहीं निहारता है । (माणाचमाणए समे य ) मान और अपमान में वह हर्ष विषाद से विहीन होता है । ( समियरए ) उसके पाप उपशान्त हो जाते हैं । अथवा-विषयों में अनुराग या उसका ओत्सुक्यभाव उसका सर्वथा शान्त हो जाता है ( समियरागदो से ) रागद्वेष शमित हो झाते हैं । ( समिए समिईसु ) पांच समितियों में वह समित परायण होता हुआ (सम्मद्दिट्ठी ) सम्यक्दृष्टिवाला बन जाता है । और (जे य सव्वपाणभूएस समे ) समस्त द्वीन्द्रियादिक त्रस जीवों पर और स्थावररूप समस्त भूतों पर उसका भाव एकसा हो जाता है । ( से हु समणे ) ऐसा वह श्रमण ( सुयधारए) श्रुतका धारक बन कर (उज्जुए) वक्रता या आलस्य से रहित ( संजए ) सम्यक् यतनावान् ही हो जाता है और (सुसाहू) हरएक प्रकारकी अपनी प्रवृत्तिको यतनाचारपूर्वक करने के कारण वह सच्चे अर्थ में साधु - निर्वाण-मोक्ष के साधन
नथी. " माणा माणए समे य" भान ने अयमानभां ते हर्षविषाह रहित मनी लय छे " समियरए " तेना पाप उपशान्त थ लय छे. अथवाવિષયા પ્રત્યેના અનુરાગ કે તેમના પ્રત્યેની ઉત્સુકતા તદ્દન શાન્ત થઈ જાય છે. “समियरागदो से” तेना रागद्वेषनु शमन घई लय छे. "समिए समिईसु" पांथ સમિતિઓમાં તે મિત-પરાયણ થઈને “ सम्मद्दिट्ठी ” सभ्यड्रदृष्टिवाणी जनी लय छे. मने 'जे य सव्वपाणभूपसु समे " समस्त द्विन्द्रियादि वर भ्मने स्थावर३य समस्त भूतो पर तेनो समलाव थर्ड लय छे. "से हु समणे " भेवे। ते श्रमषु “सुयधारए" श्रुतनो धार४ मनीने “उज्जुए” वडता से आाजसथी रडित " संजए " सभ्यश्यतनावाणी मनी लय छे भने “ सुसाहू " पोतानी દરેક પ્રકારની પ્રવૃત્તિ યતનાચારપૂર્વક કરવાને કારણે તે સાચા અમાં સાધુ
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર