Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनी टीका अ० ५ सू०५ संयताचारपालकस्य स्थितिनिरूपणम् ८७७ ' अट्टकम्मगंठीविमोयगे ' अष्टकर्मग्रन्धिविमोचकः-अष्टौ अष्टसंख्यका ये कर्मग्रन्थयस्तेषां विमोचकः, तथा-' अट्ठमयमहणे' अष्टमदमथन: अष्टमदस्थाननाशकः ' ससमयकुसलेय' स्वसमयकुशलश्च-स्वसिद्धान्तनिपुणश्च, चकारात् परसमयकुशलः 'भवइ ' भवति । तथा-' सुहदुक्खनिधिसे से' सुखदुःखनिर्विशेषः मुखदुःखयोहर्षशोकादिरहित इत्यर्थः, ' अभितरवाहिरम्मि तवोवहाणम्मि' आभ्यन्तरबार्थी तपउपधाने, तत्र-चित्तनिरोधप्राधान्येन कर्मक्षपणहेतुत्वात्प्रायश्चित्तादिषटकम्-आ. भ्यन्तरम् । बाह्यशरीरस्य परिशोषणेन कर्मक्षपणहेतुत्वादनशनादिषट्कं बाह्यम् , अन. योर्द्वन्द्वः, तस्मिन् , तप उपधाने-तपएच मोक्षमार्गस्योपष्टम्भकत्वादुपधानं तस्मिन् , 'सया' सदा ' सुट् ठुज्जए ' मुष्ठुद्यतः = सम्यक्तया तदाराधने तत्पर हो जाता है । तथा (पावयणमायाहिं अहिं ) पांचसमिति, तीन गुप्ति रूप अष्ट प्रवचन माताओं के बल पर वह (अट्ठकम्मगंठीविमोयणे )आठ प्रकारके कर्मों की ग्रन्थियों को छोड़ानेवाला बन जाता है । (अट्ठमयमहणे) शुद्ध सम्यग्दर्शन का पालनकर्ता होनेके कारण वह आठ मदों का विनाशक होता है । ( ससमयकुसले य ) स्वसमयमें पूर्ण निष्णात बन जाता है तथा चकारसे परसमयका ज्ञाता भी बन जाता है । (सुहदुक्खनिव्विसेसे) सुख और दुःख उसे एकसे प्रतीत होने लगजाते हैं। वह उनमें हर्ष और विषाद नहीं करता है । (अभितरबाहिरम्मि तबोवहाणम्मि) चित्तनिरोधकी प्रधानतासे कर्मक्षपण के हेतुभूत होने के कारण प्रायः श्चित्त आदि छह प्रकार के आभ्यन्तर तप रूप उपधान में तथा बाह्य में शरीर के परिशोषण से कर्मक्षपण के हेतु होने से अनशन आदि बारह प्रकार के बाह्य तपरूप उपधान में सदा (सुटुज्जए ) अच्छी तरह " पवयणमायाहिं अट्टहिं " पांय समिति गुलिथी 43 प्रयन भातासाना माथी ते “ अट्रकम्मगंठीविमोयणे " 18 प्रा२न भीनी शहाने छोडावना२ मनी लय छ “ अट्ठमयमहणे " शुद्ध सभ्यरूशनना पसनता पाने २६ ते मा४ महनविनाश डाय छे " ससमयकुसले य” स्वसमयमा पूरा નિષ્ણાત બની જાય છે તથા વવારથી પર સમયને જાણકાર બની જાય છે. "सुहदुक्खनिव्विसेसे” सुभमने हु: तेने स२i anा भांड . ते तेभा हुर्ष , विशा४ ४२ती नथी. “ अभितरबाहिरम्भि तवोवहाणम्मि" वित्तनिरीધની પ્રધાનતાથી કર્મક્ષયના હેતુભૂત હોવાને કારણે પ્રાયશ્ચિત્ત આદિ છ પ્રકારનાં આભ્યન્તર તપરૂપ હોવાને ઉપધાનમાં તથા બાહ્યમાં શરીરના પરિશેષણથી કર્મક્ષયના હેતુભૂત હોવાને કારણે અનશન આદિ બાર પ્રકારના બાહ્ય તપ ३५ ५धानमा सहा “ सुटूठुज्जए" सा रीते ते तत्५२ य छ, सटवे
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર