Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 925
________________ सुदर्शिनी टीका अ०५ सू०४ कल्पनीयमशनादिनिरूपणम् 'संणिहिकयं ' संनिधीकृतं ' न कप्पइ' न कल्पते-परिग्रहविरतत्वात्तस्य। अथ यत्कल्पते तदाह-जंपि य' यदपि च किञ्चित् ' समणस्स' श्रमणस्य ‘सुविहियस्स तु ' सुविहितस्य-शोभनाचारवतस्तु, 'पडिग्गहधारिस्स' पतद्ग्रहधारिणः =पात्रधारकस्य ' भायणभंडोवहि उपकरणं पडिग्गहो ' भाजनभाण्डोपध्युपकरणपतद्ग्रहः, तत्र-भाजनम्-उन्दकम् , भाण्डं जलपात्रम् , उपधिःवस्त्रादिः, तद्पं यत् उपकरणम् सामग्री, तथा-'पडिग्गहो' पतद्ग्रहः भोजनपात्रं 'भवइ ' भवति । तथा-' पायबंधणपाय केसरियापायट्ठवणं च' पात्रबन्धनपात्रकेसरिका. पात्रस्थापनं च, तत्र-पात्रबन्धन=' झोली ' इति भाषा प्रसिद्धम् , पात्रकेसरिकापात्रप्रमाणिका, पात्रस्थापनं यत्र वस्त्रखण्डे पात्रं स्थाप्यते तत् , एषां समाहार द्वन्द्वः, 'विष्णि य' त्रीणि च ' पडलाइं' पटलानि-उपर्युपरिपात्ररक्षणसमये पात्रपरिरक्षणार्थ पात्राभ्यन्तररक्षणीयानि वस्त्रखण्डानि, तथा- रत्तयाणं' रजत्राणं परिग्रह विरत साधु को ( संनिहिकयं ) संग्रह के रूप में अपने पास रखना (न कप्पइ ) नहीं कल्पता है । उस परिग्रहविरत साधु के लिये अपने पास क्या २ वस्तुएँ रखना कल्पता है ? सो सूत्रकार उन्हें बताते हैं-(समणस्स सुविहियस्स उ पडिग्गहधारिस्स ) पात्रधारी उस सुविहित शोभनाचारसंपन्नश्रमण-साधुके पास ( जंपि य ) जो भी (भाय णभंडोवहि उवगरणपडिग्गहो भवइ ) भाजन उन्दक, भांड-जलपात्र, उपधि-वस्त्रादिरूप उपकरण, तथा पतद्ग्रह भोजन पात्र हैं ये, तथा( पायबंधणपायकेसरिया पायढवणं च ) पात्रबंधन-झोली, पात्रकेसरिका-पात्रप्रमार्जिका, पात्रस्थापनवस्त्र, तथा ( तिण्णियपडलाइं ) तीनपटल-ऊपर ऊपर पात्रों को रखने के समय उन पात्रों की रक्षा के लिये पात्रों के भीतर रखे हुए तीन वस्त्र खंड, ( रयत्ताणं) जलपात्र ढकने सपना ३५मा पोतानी पासे रामा “न कप्पइ” ४८५ता नथी. ते परियड વિરત સાધુને માટે પિતાની પાસે કયી કયી ચીજે રાખવી કપે છે? તે તે सूत्रा२ ४ छ -“ समणस्स सुविहियस्स उ पडिग्गहधारिस्स" पात्रधारीते सुविहित सहायारयुत साधुनी पासे "जंपिय" 2 | " भायणं भंडोवहि उवगरणपडिगगहो भवइ ” मान-383, मां-पत्र, उपधि-१६३५ 6५४२, तथा पत -मासन पात्र हाय ते तथा "पायबधण पाय केसरिया पायदुवणं च” पात्रम धन-जी, पात्रसरि पत्र प्रमति , स्थापन १ तथा “तिण्णयपडलाइ” ३५४४-पात्रोन से भीनी 6५२ भूवाने मते ते पात्रानी २क्षाने भाटे पात्रानी १२ये २॥ त्राण १७५, “ रयत्ताणं" શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર

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