Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनीटीका अ० २ सू. ४ प्रथमभावनास्वरूपनिरूपणम्
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' चवलं ' चपलं=हयगमनवच्चपलभावसमन्वितम्, न=नैव 'कडुयं ' निम्बवत् कटुकम् अर्थतः, न= नैव ' फरुसं' परुषं कठोरं - पाषाणवत्कठोर भावयुक्तं, तथा न=नैव ' साहसम् ' - उन्मत्तवत् अविचारितं, तथा - ' न य ' न च ' परस्स परस्य पीडाकरं - दुःखजनकं ' सावज्जं ' सावद्यं = सपापं वचनं वक्तव्यम् । उक्तदोषदुष्टं वचनं वक्तव्यमित्यर्थः । तर्हि कीदृशं वचनं वक्तव्यम् ? इत्याह- 'सच्च च = सद्भूतार्थत्वात् ' हियं च - परिणाम मुखजनकत्वात् 'मियंमित च परिमिताक्षरत्वात्, तथा - ' गाहगं ' ग्राहकं = श्रोतुरर्थप्रतीतिजनकत्वात् प्रीतिजनकवाच, 'सुद्धं ' शुद्धं - वेगितत्वादिदोषरहितत्वात्, तथा - संगयं ' संगतम् = युक्तियुक्तत्वात्, ' अकाहलं ' अकाहलं = मन्मनाक्षररहितत्वातू, च = पुनः ' समिक्खियं समीक्षितं = पूर्व बुद्धया पर्यालोचितत्वात् एतादृशं वचनं संजएण '
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( न चवले) घोड़े के गमन की तरह चपलभाव से युक्त (न कडुयं ) नीम की तरह अर्थतः कटुक, इसी तरह ( फरसं ) पाषाण की तरह कठोर ( न साहसं ) उन्मत्त के वचन की तरह अविचारित, और ( न य परस्स पीलाकरं ) पर को पीडाजनक ( सावज्जा) सावधपापयुक्त ऐसे वचन नहीं बोलना चाहिये । किन्तु जो वचन ( सच्चं च ) सद्भूत अर्थ को विषय करने वाले होने से सत्य हों, (हियं च ) परिणाम में सुखजनक होने से हितकारक हों, (मियं च ) परिमित अक्षरों से युक्त होने से जो मित हों, (गाहगं च ) श्रोता को अर्थ की प्रतीति एवं प्रीति के कराने वाले होने से ग्राहक हों, (सुद्ध) वेगित्वादि दोषों से रहित होने से शुद्ध हों, तथा ( संगयं ) संगतयुक्ति युक्त हों, ( अकाहलं ) अकाहल हो मन्मन अक्षर से रहित हों, (समिक्खियं ) समीक्षित हों-बुद्धि से पहिले जिनका विचार अच्छी तरह कर लिया જેવું ચપળભાવ યુક્ત વચન, न कडु " नीमनां वुमेटले उटुङ, એ જ રીતે " फरुसं " पथ्थर ठेवु ४२ " न साहसं " उन्मत्तनां वयन नेवुं अवियारी, भने “ न य परस्स पीलाकर " जीनने पीडान " सावज्जा" સાવદ્ય-પાપયુક્ત વચન ખોલવાં જોઈએ નહીં. પણ જે વચન " यथार्थ अर्थाने विषय उश्नार होवाथी सत्य होय, " हियं च " परिणामे सुमन होवाथी हितार होय " मियं च " परिमित अक्षशेवाणु होवाथी ने भित होय, “ गाहगं च " श्रोताने अर्थनी अतीति भने प्रीति उशवनार होवाथी ग्राह्य होय, “ सुद्ध " वेगित्व याहि होषरहित होवाथी शुद्ध होय, " संगय " संगत - युक्तियुक्त होय, " अकाहल " माडल होय-भन्भन अक्षरे। विनानुं होय, " समिक्खिय " सभीक्षित होय-युद्धिथी भेना पडेसां
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सच्चं च "
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તથા
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર