Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रश्रव्याकरणसूत्रे साऽपि परिघेत्तुं' परिग्रहीतुं न कप्पइ ' न कल्पते इममेवाथै विशदयति, ‘हिरपणसुवर्णखेत्तवत्थु ' हिरण्यसुवर्णक्षेत्रवस्तु मनसाऽपि परिग्रहीतुं न कल्पते, तथा'दासीदासभयकपेसहयगयगवेलगं बा ' दासीदासभृतकप्रैष्यहयगजगवेलकं वा, दासीदास प्रसिद्धम् , भृतकाः वेतनं गृहीत्वा कार्यकराः, प्रेष्या:-कार्ये समुपस्थिते ग्रामान्तरे प्रेषणीय भृत्याः, हया: अश्वःि, गजाः प्रसिद्धाः, गवेलकाः= मेषाः एषां समाहार द्वन्द्वः, मनसाऽपि परिग्रहीतुं न कल्पते, तथा-' जाणजुग्गः सयणासणाई ' यान युग्यशयनासनानि, यानं-स्थादिकम् , युग्यं वाहनमात्रम् , शयन शय्या, आसनं-प्रसिद्धम् , एतानि मनसापि परिग्रहीतुं न कल्पते । तथा'न छत्तकं' न छत्रकम्-न छत्रम् , ' न कोंडिका ' न कुण्डिका-कमण्डलूः मन(मणसा वि परिधेत्तुं न कप्पइ ) साधु को मन से भी ग्रहण करना योग्य नहीं है । अब इसी विषय को सूत्रकार विषदरूप से समझाते हैंजो अपरिग्रही साधु है उसको ( न धनहिरण्णसुवाणखेत्तवत्थु ) हिरण्य, सुवर्ण, क्षेत्र, वास्तु तथा ( न दासीदास भयक-पेस-हय-गय-गवेलगंवा ) दासी, दास, भूतक, प्रेष्य, हय, गज, गवेलक तथा-(न जाण जुग्गसपणासणाई ) यान, युग्य, शयन, आसन, ये सब वस्तुएँ मन से भी चाहने योग्य नहीं होती है | ग्रामादिक शब्दों की व्याख्या पहिले संवर द्वारों में की जा चुकी है ! बेतन लेकर जो काम करते हैं वे भृतक कहलाते हैं। तथा कार्य आने पर जो उसके निमित्त बाहर गाँव भेजे जाते हे वे प्रैष्य कहलाते हैं । गवेलक नाम मेष का है । रथ
आदि यान और वाहनमात्र युग्य हैं । इसी तरह (न छत्तगं) धूपनिवारण करने के लिये छत्र को, ( न कोडिकं ) पानी आदि रखने के लिये छ, तेभने “मणसा वि परिधेत्तुं न कप्पइ” भनथी अड ४२वानुं साधुने माटे
ગ્ય નથી. હવે એ જ વિષયને સૂત્રકાર વિસ્તારથી સમજાવે છે-જે સાધુ અપरिडी छे तेथे “ न धनहिरण्णसुवण्णखेत्तवत्थु” (२९य, सु, क्षेत्र, १स्तु तथा " न दासीदास भयक-पेस-ह्य-गय-गवेलगंवा” हास, हासी, भ्रत, श्रेय ड्य, २४, गवस तथा “ न जाणजुगासयणासणाई" यान, युज्य, शयन, આસન, એ બધી વસ્તુઓ મનથી પણ ચાહવા ગ્ય હેતી નથી. ગ્રામાદિક શબ્દની વ્યાખ્યા આગળના સ વરદ્વારમાં આપવામાં આવી છે. પગાર લઈને
म. ७२नारने "भृतक" नां४२ ४ छ. तथा म. ५त भने यन निमत डा२ ॥म मसाय छ भने प्रेष्य" (त) . घटाने गवेस छ. २० माहि यान अथवा ६२४ वाइनने “युग्य" छ. से ४ अरे “न छत्तगं' थी अथवा माटे छत्रने तथा “न कोडिक"
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર