Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 910
________________ ८५२ प्रश्रव्याकरणसूत्रे मान्यैः, एतादृशैः ' जिणवरिंदेहिं' जिनवरेन्द्रैः = जिना : - अवधिज्ञानमनः पर्ययज्ञानधराश्चद्मस्थजिना:, तेषु वराः - श्रेष्ठाः केवलिनस्तेषामिन्द्रास्तीर्थंकर नाम कमेदिवर्तित्वाद्ये तैः 'एस' एषा = पुष्पफलकन्दमूलादिसर्वधान्यरूवा 'जोणी' योनिरुत्पत्तिस्थानम्, 'जणाणं ' जगताम् = प्राणिनां ' दिट्ठा' दृष्टा केवलज्ञानेन, तस्मात् कारणत्तेषां प्राणिनां ' न कप्पड़' न कल्पते ' जोणीसमुच्छिदोत्ति ' योनिसमुच्छेदः इति = योनिध्वंसं कर्त्तुमिति, 'हि ' यत:-' तेण न हेतुना एतानि पुष्पफलादि सर्वधान्यानि ' समणसीहा ' श्रमणसिंहाः श्रमणेषु सिंहाः मुनिश्रेष्ठाः ' वज्जेति ' वर्जयन्ति न संघट्टयन्ति ॥ ०२ ॥ " लो महिए हिं) तीनों लोकों में मान्य ऐसे ( जिणवरेहिं जिनवरेन्द्रोंनेअवधिज्ञानी और मनः पर्ययज्ञानीरूप छद्मस्थजिनों में श्रेष्ट जो केवली भगवान है, उनके भी तीर्थकर नामकर्म के उदय से युक्त होने के कारण जो इन्द्र बने हुए है ऐसे जिनवरेन्द्रों ने ( एस ) ये पुष्प, फल, कन्द, मुल, आदि सर्वधान्य (जणाणं जोणीदिट्ठा ) जीवों की उत्पत्तिस्थान होने से योनिरूप देखे हैं । इसलिये सकल संयमी जन को (न कप्पइजोणी समुच्छि दोत्ति ) जीवों की योनिरूप पुष्पफलादिको का ध्वंस करना कल्पित नहीं है । (तेण हि ) इसलिये ये पुष्पफलादि समस्त धान्य ( समणसिंहा ) मुनिसिंहों के लिये ( वज्जेति ) वर्जनीय हैं अतः इसी कारण वे इनकी संघटना नहीं करते हैं । भावार्थ - इस परिग्रहविरमणरूप अन्तिम संवरद्वार में सूत्रकार ने सकल संयमी अपरिग्रही श्रमण के लिये यह कहा है कि वह यदि "" एस न कप्पइ देहिं ” निनवरेन्द्रोभे-अवधिज्ञानी भने मनः पर्यवज्ञानी३५ छद्मस्थ निनामां શ્રેષ્ઠ જે કેવલી ભગવાન છે, તેમના પણ તીર્થંકર નામકર્મના ઉદયથી યુક્ત હાવાને કારણે જેએ ઇન્દ્ર બન્યા છે એવાં જિનવરેન્દ્રોએ ईज, मुंह, भूज याहि सर्व धान्यने " जणाणं जोणी दिट्ठां " वो સ્થાન હાવાથી નિરૂપે દેખ્યાં છે. તે કારણે સકલ સંયમી જને “ जोणीसमुच्छिदोत्ति' જીવાની ચાની રૂપ પુષ્પ, ફળ આદિના ધ્વંસ કરવો उदयतो नथी. " तेण हि તે જ કારણે પુષ્પ, ફળ આદિ સમસ્ત ધાન્ય " सिंह समान भुनियोने भाटे " समण सिंहा ' वज्जे ति ચેાગ્ય બતાવ્યા છે, તેા તે જ કારણે તે તેમને ગ્રહણ કરતાં નથી. આ પરિગ્રહ વિરમણુરૂપ અંતિમ સંવતદ્વારમાં સૂત્રકારે સકલ સચમી અપરિગ્રહી સાધુને માટે તે બતાવ્યુ છે. કે જો તે પેાતાના મૂળગુ "" 22 ત્યાગ કરવાને ભાવા શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર << C તે પુષ્પ, उत्पत्ति

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