Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 914
________________ प्रश्रव्याकरणसूत्रे उपाश्रये वसतौ 'परघरे' परगृहे-गृहस्थगृहे 'रण्णे वा' अरण्ये = अटव्यां वा 'सुविहियाणं ' सुविहिताम्-सुसाधूनां संविहिकाउं' संनिधीकर्तुम् = स्थापयितुम् , 'न कप्पइ' न कल्पते । तथा- 'जंपि य' यदपि च ' उद्दिट्टवियरइयगपज्जवजातपकिण्णपाओकरणपामिच्चमीसगकीयगडं' उद्दिष्टस्थापितरचितकपर्यवजातमकीर्ण प्रादुष्करणमामित्यमिश्रकक्रीतकृतं, तत्र-उद्दिष्टम्-दुर्भिक्षादौ पाखण्डिनः श्रमणान् अन्याँच भिक्षुनुद्दिश्य यत् कल्पितं तत् , स्थापितम्=' श्रमणायद्यागच्छे. युस्तदा तेभ्यो दास्यामी ति बुद्धया रक्षितं यदशनादिकं तत् , रचितकम् मोदकचूर्णादिकं वह्नौ प्रताप्य पुनर्मोदकरूपेण निर्मितम् , पर्यवजातं = पर्यवोऽवस्थान्तरं जातो यत्र तत् , कूरादिकमुद्वरितं दध्यादिना विमिश्रितं करम्बादिकं ( उवस्सए परघरे रणे वा सुविहियाणं संनिहीकाउंन कप्पइ ) उपाश्रय में अथवा पर के घर में-गृहस्थ के घर में अथवा जंगल में साधुओं को आहार के निमित्त संग्रह करना नहीं कल्पता है । तथा (जंपि य उद्दिट्ट वि परइयगपजवजायपकिण्णपाओकरणपामिच्चमीसग कीयगडं) जो भी आहार उद्दिष्ट हो-दुर्भिक्ष आदि के समय में पाखंडी साधुओं को एवं अन्य भिक्षुओं को उद्देश्य करके बनाया गया हो, स्थापित हो, 'श्रमण यदि आवेंगे तो उन के लिये इस आहार को मैं दूंगा' इस बुद्धि से जो पहिले से तैयार करके रख लिया गया हो रचित हो-मोदकादिक फूटकर जो चूर्णरूप में हो गये हों उनका वह चूर्ण अग्नि से तपाकर बनाई गई पुनः मोदकरूप में परिवर्तित करदिया गया हो, जो आहार पर्यवजात हो-भात आदि में छाछ मिला कर बनाई गई रावड़ी की तरह साधु के उद्देश से अवस्थान्तर को प्राप्त कराया गया रुपये।॥ ४२. नी. मने मे मिपि मोन्य पदार्थानां " उबस्सए परघरे रण्णे वा सुविहियाण संनिहाकाउ न कप्पइ ” पाश्रयमा अथवा ड. સ્થાનના ઘરમાં અથવા જંગલમાં આહારને નિમિત્તે સંગ્રહ કરવાનું સાધુને ४८५त नथी. तथा “ जंपिय उद्दिद-वियरइयग-पज्जवजाय-पकिण्ण-पाओकरण पामिच्चमीसगकीयगड " 2 सा२ दिष्ट डाय-९०४७ महिना समयमा પાંખડી સાધુઓ અને અન્ય ભિક્ષુઓને નિમિત્તે બનાવ્યો હોય, સાધુ આદિ આવશે તો તેમને આ આહાર હું આપીશ એ વિચારથી જે પહેલેથી તૈયાર રાખ્યો હોય, રચિત હોય, લાડુ આદિને ભૂક થઈ ગયા હોય અને તે ભૂકાને આગ પર તપાવીને ફરીથી તેને લાડુ આદિનાં રૂપે પરિવર્તન કરેલ હોય, જે આહાર પર્યવજાત હેય–ભાત આદિમાં છાશનું મિશ્રણ કરીને બનાવેલ રાબડીની જેમ સાધુને નિમિત્ત અવસ્થાન્તર–ભિન્નરૂપમાં લાવવામાં આવ્યા હોય, શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર

Loading...

Page Navigation
1 ... 912 913 914 915 916 917 918 919 920 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934 935 936 937 938 939 940 941 942 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972 973 974 975 976 977 978 979 980 981 982 983 984 985 986 987 988 989 990 991 992 993 994 995 996 997 998 999 1000 1001 1002 1003 1004 1005 1006 1007 1008 1009 1010