Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 922
________________ ८६४ प्रश्रव्याकरणसूत्रे धूम-धूमदोषवर्जितम् , एतादृशम् अशनादिकं ग्रहीतुं कल्पते । साधुभिः-कथं वर्ति तव्यम् ? इत्याह-छहाणनिमित्तं ' षट्रस्थाननिमित्तम्=षस्थानानि-आहारकारणस्य षटकारणानि, तेषां निमित्त-षट्कारणार्थमित्यर्थः। पटुकारणानि-वेदनं =क्षुद्वेदनं वैयाकृत्य-शुश्रूषा, ईर्या=गमनम् , संयमरक्षा, प्राणधारण, धर्मचिन्तनं च उक्तश्च " वेयण वेयावच्चे, इरियट्ठाए य संजमहाए । तह पाणवत्तियाए, छटुं पुण धम्मचिंताए ॥" ॥ इति । तथा-'छक्कायपरिरक्षणटुं षट्कायपरिरक्षणार्थम् , ' हणि हणि ' अहन्यहनि-प्रतिदिनम् ‘फासुएण' प्रासुकेन 'भिवखेण ' भैक्षेण सामुदानिकभिक्षया, 'वट्टियव्वं ' वर्तितव्यम् , प्राणधारणं कर्तव्यमित्यर्थः। तथा- जंपि य' यदपि दोषों से रहित होना चाहिये और (विगयधूम ) धूमदोष से भी रहित होना चाहिये । तभी जाकर वह साधुओं के लिये कल्पित हो सकता है । (छठाणनिमित्तं ) छह कारणों से साधु आहार ग्रहण करते हैं-वे छह स्थानरूप कारण यह हैं-क्षुधावेदना १, वैयावृत्य २, ईर्या-गमन ३, संयमरक्षा ४, प्राणधारणा ५, और धर्मचिन्तन ६ । कहा भी है " वेयण १, वेयावच्चे २, इरियट्ठाए ३ य संजमट्टाए ४। तह पाणंवत्तियाए ५, छटुं पुणधम्मचिताए ६ ॥१॥" तथा (छक्कायपरिरक्खण8 ) आहारग्रहण करने से छकाय जीवों की रक्षा होती है । इसलिये साधु को (हणिहणि ) प्रतिदिन ( फासुएण भिक्खेण ) प्रासुक भिक्षा से (बट्टियव्वं) प्राणधारण करना चाहिये-अर्थात् सावो न मने “ विगयधूमं” धूभ होषथी २डित पो . त्यारे २४ ते साधुयाने ४६ तेवो भने छ. “ छद्राणनिमित्त” ७ ॥णेथी साधु આહાર ગ્રહણ કરે છે-તે છ સ્થાનરૂપ કારણ આ પ્રમાણે છે-(૧) સુધા વેદના (२) वैयावृत्य, (3) ४ा-गमन, (४) सयम २६। (५) प्राधा२६ मने (६) ધર્મ ચિન્તન કહ્યું પણ છે – " वेयण १ वेयावच्चे २ इरियहाए ३ य संजमट्ठार ४ । तह पाणवत्तियाए ५, छटुं पुणधम्मचिंताए ६ ॥१॥" तथा “ छक्कायपरिरक्षणमाए " मा १२ प ४२वाथी ७४ायन वोनी ५५ २क्षा थाय छे. तेथी साधुन “ हणि हणि" प्रतिहिन “फासुएण भिक्खेण " मासु भिक्षाथी " वहियव्यं" प्राणुधार ४२वन मेटले ते पूरित છ સ્થાનરૂપ કારણોને ધ્યાનમાં લઈને છકાયના જીવોની રક્ષા કરતા થકા શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર


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