Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनी टोका अ०४ सू० १ ब्रह्मचर्य स्वरूपनिरूपणम्
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तथवेदं ब्रह्मचर्यमपि शुभ्रमिति भावः, तथा-' निरायासं ' निरायासं= खेदाजन' निरुवलेवं ' निरुपलेपम् - विषयस्नेहवर्जितम्, तथा - ' निव्वुइघरं ' नितिगृहम् = निवृतेः = चित्तसमाधेः गृहं स्थानम्, 'नियम निष्पकंपं नियमनिष्प्रकम्पं = नियमेन = निश्चयेन, निष्प्रकम्पं अविचलम् - निरतिचारत्वात्, तथा - ' तवरूप तुष से विहीन होने के कारण बिलकुल शुभ्र - पवित्र है । (निरायासं) इसके पालन करने से किसी भी प्रकार का पालनकर्त्ता को आयासअर्थात्- कष्ट नहीं उठाना पड़ता है इसलिये खेद का अजनक होने से यह निरायासरूप है | ( निरुचलेवं ) वैषयिक पदार्थों की ओर ब्रह्मचारी के चित्त में थोड़ा सा भी स्नेह - रागभाव नहीं होता है, अतः विषय स्नेहवर्जित होने से यह ब्रह्मचर्य निरुपलेप है । ( निव्बु घरं ) ब्रह्मचारी के हि चित्त की स्वस्थता रहती है, क्यों कि विषयों की ओर उसकी लालसा नहीं जाती हैं, अतः उस संबंध को लेकर उसके चित्त में असमाधिरूप आकुल व्याकुल परिणति नहीं रहती है इसलिये यह ब्रह्मचर्य चित्तसमाधि का एक घर है । (नियमनिप्पकंप) अतिचारों से विहीन होने के कारण यह ब्रह्मचर्य नियम से - निश्चय से निष्प्रकम्पअविचलित होता है। तात्पर्य यह है कि गृहस्थों के ब्रह्मचर्य व्रत में अतिचार लग सकने के कारण उनका वह ब्रह्मचर्य विचलित नहीं होता है परन्तु सकल संयमी जनों का ब्रह्मचर्य अतिचारों से विहीन होता है, इसलिये यह यहां अविचलित कहा गया है। ( तवसंजमहोवाथी तहन शुभ पवित्र छे. "निरायास " तेनु पावन अश्वाथी पासन કર્તાને કાઇ પણ પ્રકારના આયાસ–ખેદ એટલે કે કષ્ટ ઉઠાવવેા પડતું નથી तेथी हनुन न होवाने अरणे ते निरायास३प छे." निरुवलेवं ” वैषयि પદાર્થોની તરફ બ્રહ્મચારીના ચિત્તમાં જરી પણ સ્નેહ-રાગભાવ થતેા નથી, तेथी विषयस्नेह रहित होवाथी श्रायर्थने निरुपलेप छे. “ निव्बुइघर " બ્રહ્મચારીના ચિત્તની સ્વસ્થતા રહે છે, કારણ વિષયાની પ્રત્યે તેને લાલસા થતી નથી. તે સંબધને લીધે તેના ચિત્તમાં અસમાધિરૂપ આકુળ વ્યાકુળતાના રૂપ પરિણિત રહેતી નથી. તેથી આ બ્રહ્મચર્ય ચિત્ત સમાધિનુ એક ઘર છે. " नियम निप्पकंप " अतिया रोधी रहित होवाने अरागे मा प्रह्मथर्य अवश्य નિપ્રકમ્પ-અવિચલિત હાય છે તેનું તાત્પર્ય એ છે કે ગૃહસ્થાના બ્રહ્મય વ્રતમાં અતિચાર લાગી શકે છે તે કારણે તેમનું બ્રહ્મચર્ય અવિચલિત હતું નથી, પણ સકળ સયમીજનાનું બ્રહ્મચય' અતિચારોથી રહિત હોય છે, તે
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શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર