Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रश्रव्याकरणसूत्रे गृहाः स्थानानीत्यर्थः, 'वेसियाण' वेश्यानाम् ' अटुं' अर्थ निमित्तं 'तिद्वंति' तिष्ठन्ति सन्ति, तथा—'जत्थ' यत्र ' इत्थियाओ' स्त्रियो हि — अभिक्खणं' अभीक्ष्ण-मुहुर्मुहुः — मोहदोसरइरागवड्डणाओ ' मोहदोषरतिरागवर्धनाः मोहदोषरइरागान् वर्द्धयन्ति यास्ताः मोहादिद्धिकारिण्य इत्यर्थः, 'बहुविहाओ' बहुविधाः-जातिकुलरूपनेपथ्यविषयाः 'कहाओ' कथाः ‘कर्हिति ' कथयन्ति, 'ते खलु ' इत्थी संसत्तसंकिलिट्ठा' स्त्रीसंसक्तसंक्लिष्टाः = स्त्रीसंसर्गयुक्ताः गृहाः, 'वज्जणिज्जा' वर्जनीया भवन्ति । तथा-'अण्णे विय' अन्येऽपि च ' एवमाई' एवमादयः-एवं प्रकारा येऽअवकाशा भवन्ति, ' ते हु' ते खलु 'वज्जणिज्जा' वर्जनीया भवन्ति । किं बहुना-'जत्थ' यत्र यत्र-उत्तरत्र 'तं तं' इति वीप्साप्रयोगादत्रापि वीप्सा बोद्धव्या, ज्ञायते, 'मणो विन्भमो वा ' मनो विभ्रमो वा =श्रृङ्गाररससमुत्पन्नं चित्तस्याऽस्थिरत्वम् , 'भंगो वा ' ब्रह्मचर्यस्य सर्वभङ्गः, गासा ) जो स्थान (वेसियाणं अटुं-तिहति ) वेश्याओं के निमित्त बने हुए हों तथा (जत्थ ) जिन स्थानों पर बैठ कर (इत्थियाओ) स्त्रियां (अभिक्खणं) बार बार (मोहदोसरइराग वडणाओ) मोह दोषरति और रागको बढानेवाली (बहुविहाओ) विविध प्रकारकी (कहाओ) कथाओंको (कहेंति) कहती हों, (ते हु) वे स्थान ( इत्थी संसक्त संकिलिहा ) स्त्रीयोंसे संसक्त होने के कारण साधुको उनका परित्याग कर देना चाहिये । तथा (अण्णे वि) और भी कोइ ( एवमाई य अवगासा) ऐसे स्थान हों तो (ते हु ) उनका भी साधु को (वज्जणिज्जा) परित्याग कर देना चाहिये । अधिक और क्या कहा जाय (जत्थ जत्थ ) जिस २ स्थान पर साधु का (मणोविन्भमो ) मन विभ्रम युक्त बन जावे (वा) अथवा (भंगो) उसके ब्रह्मचर्य व्रत का भंग होने की संभावना (वा) अथवा " वेसियाणंअटुं-तिद्वंति " वेश्यामान। निमित्त पने उय, तथा “जत्थ"
स्थान। ५२ मेसीन " इत्थियाओ" स्त्रीमा “ अभिक्खणं " पार पार " मोहदोसरइरागवड्ढणाओ " मोड, होष, रति भने रागरे पावनारी " बहुबिहाओ" विविध प्रा२नी “कहाओ" था। “कहेंति " ४डती डाय "ते हु" ते स्थान। " इत्थी संसत्त संकिलिट्रा" स्त्रीमोथी युत वाने २0 साधुमास तेभनी परित्याग ४२वे . तथा “ अण्णे वि" मेवां भी 35" एव माईय अवगासा" स्थान डाय तो “ते हु" तेमनी ५५) साधु "वज्जणिज्जा" परित्याग ४ । नेस. वधु शुं ४९! " जत्थ जत्थ" २२ स्थान ५२ साधुनुं "मणोविन्भमो" भन विभ्रमयुक्त सनीय “वा" मथA "भंगो" तना अहाय प्रतना लगनी शयता
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર