Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 883
________________ सुदर्शिनी टीका अ० ४ सू०९ 'पूर्वरतादिविरति'नामकचतुर्थभावनानिरूपणम्८२५ णिकाः तुम्बवीणावादकाः, तालाचरातालं हस्तघातरूपमाचरन्ति ये ते तथोताः, तालवादिन इत्यर्थः, एषां द्वन्द्वः, तेषां यानि प्रकरणानि= प्रक्रियाः तानि, तथा-' वहूनि ' बहूनि=बहुविधानि, ' महूरसरगीयमुस्सराई' मधुरस्वरगीतसुस्वराणि-मधुराः स्वराः येषां तेषां गायकानां यानि सुस्वराणि गीतानि तानि, निष्ठान्तस्य पूर्वनिपातः, किं बहुना ' अण्णाणि य ' अन्यानि च ' एवमाइयाणि' एवमादिकानि एवम्प्रकाराणि यानि तपः संयमब्रह्मचर्यघातोपघातकानि 'ताई' तानि ब्रह्मचर्यमनुचरता श्रमणेन ‘न दटुं' न द्रष्टुं ' कहेउं' न कथयितुं 'नवि य ' नापि च ' सुमरेउं ' स्मर्तु ' लब्भा ' लभ्यानि-उचितानि एवं 'पुब्वरयपुव्वकीलियविरइसमिइजोगेण ' पूर्वरतपूर्वक्रोडितविरतिसमितियोगेन-तत्र, पूर्वरत पूर्वक्रीडिताभ्यां या विरतिस्तद्रूपो यः समितियोगस्तेन भावितोऽन्तरात्मा आरतमनाः ब्रह्मचर्यासक्तमनाः=विरतग्राम्यधर्मों जितेन्द्रियो ब्रह्मचर्यगुप्तश्चभवति ९ तूणिकजनों के, तुंबडी की बींणाको बजानेवाले तुम्बवीणिकों के, ताल बजाकर जनताका चित्तरंजित करनेवाले ताल चरों के जितने भी कार्य हैं उनको, तथा-( बहूणि महुरसरगीयसुस्सराई ) और भी अनेकविध मधुर स्वर वालोंके जितने भो सुस्वर संपन्न गीत हैं उनको तथा (अण्णाणि य एवमाइयाणि ) और अधिक क्या कहे इसी प्रकारके और भी जो (तवसंजमबंभचेर घाओवघाइयाई) तप, संयम और ब्रह्मचर्य के घातक, उपघातक कार्य हैं-उन्हें (बंभचेरं अणुचरमाणेणं समणेणं) ब्रह्मचर्यका पालन करने वाले साधुजन को (न ताइ दडु ) नहीं देखना कल्पता है (न कहे उं) न उनका कहना योग्य है और (न वि य सुमरेउलब्भा) न पूर्व में देखे गये ऐसे कार्यों को याद करना ही उचित है। ( एवं पुव्वरयपुव्वकीलियविरइसमिइजोगेण भाविओ अंतरप्पा आरयमणा બજાવીને જનતાનું મનોરંજન કરનાર તાલચ તે સૌના જેટલાં કાર્યો છે તથા " बहूणिमहुरसरगीयसुस्तराई" on ] भने विध मधु२ २१२वाजाना रेले सुस्१२ युद्ध त छ तेभने तथा “ अण्णाणि य एव माइयाणि" में प्रा२ना जीत ५५५ रे “ तवसंजमबंभचेरघाओवघाइयाइं ” तप, सयम भने अझययन। घात९५धात आर्या छ भने “बभचेरै अणुचरमाणेणं समणेणं " ब्रह्मययनु पासन ४२ना२ साधु नामे “न ताइ दद्छु” ना ते ४८५तुं नथी. “ न कहेउ" तेनु ४थन ४२७ ते ५५५ सायोग्य छ भने “ न वि य सुमरे उं लब्भा' पूर्व हेमेस ते। आयनु भ२१ ४२७ ते ५ अयोग्य छ. “एवं पुब्बरय-पुत्र-कीलिय-विरइ-समिइ-जोगेण भाविओ अंतरप्पा आर શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર

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