Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 890
________________ ८३२ प्रश्रव्याकरणसूत्रे जिणमणुण्णाओ' सर्वजिनानुज्ञातः । एवम्-अनेन प्रकारेण ' चउत्थं ' चतुर्थं 'सं वरदारं ' संवरदारं ' संवरद्वारं ' फासियं ' स्पृष्टं 'पालियं ' पालितं 'सोहियं' शोधितं ' तीरियं ' तीरितं 'किट्टियं ' कीर्तितम् , ' सम्मं ' सम्यक 'आराहियं' आराधितम् ' आणाए' आज्ञया ' अनुपालियं' अनुपालितं ' भवइ' भवति । एवम्-अनेन प्रकारेण 'नायमुणिणा' ज्ञातमुनिना-ज्ञातवंशोद्भवेन मुनिना 'भगवया ' भगवता महावीरेण ' पण्णवियं ' प्रज्ञापितं ' एरूवियं प्ररूपितं ' पसिद्धं' इससे छिन्न हो जाने के कारण अच्छिद्र है । ( अपरिस्साई ) बिन्दुरूप से भी कर्मरूप जल इसमें प्रवेश नहीं कर सकता है इसलिये यह अपरिस्रावी है ( असंकिलिठो) असमाधिभाव से वर्जित होने से यह असंक्लिष्ट है, ( सुद्धो) कर्ममल से रहित होने के कारण शुद्ध है, (सव्यजिणमणुण्णाओ ) समस्त प्राणियो का इससे हित होने के कारण समस्त अरहंत भगवंतों का यह मान्य हुआ है, ( एवं ) इस प्रकार से जो इस ( चउत्थं संवरदारं ) चतुर्थ संवर द्वार को ( फासियं ) अपने शरीर से स्पृष्ट करते हैं, (पालिय) निरन्तर उपयोगपूर्वक इस का सेवन करते हैं ( सोहियं ) अतिचारों से इसको रहित करते हैं, (तीरियं ) पूर्णरूप से इसका सेवन करते हैं, (किट्टियं) दमरों को इसके पालन करने का उपदेश देते हैं ( सम्मं ) तीन करण तीन योगों से इसकी भलीप्रकार से ( आराहियं ) अनुपालना करते हैं सो उनके द्वारा यह योग ( आणाए अणुपालियं भवइ ) ) तीर्थकर प्रभुकी आज्ञानुसार ही पालित होता है । ( एवं ) इस प्रकार से ( नायमुणिणा भगवया महा. કર્મરૂપ જળનું બિંદુ પણ તેમાં પ્રવેશ કરી શકતું નથી તેથી તે અપરિસાવી છે. " असंकिलिट्ठो " असमाधि माथी २डित जवाथी ते मस सिष्ट छ, "सुद्धो" भभाथी २डित डावाने ॥२णे शुद्ध छे. “ सव्व जिणमणुण्णाओ” समस्त જીવોનું તેનાથી હિત થવાને કારણે સમસ્ત અહં ત ભગવાન દ્વારા તે માન્ય थये। छ, “ एवं "AL 122 241 " चउत्थं संवरदार" याथा सवारने। " फासियं" पोताना शरीरथी २५ रे छ, “ पालियं” निरत२ उपयोग पूर्व तेनु सेवन ४२ छ, “सोहियं” मतियाथी तेनुं २क्ष ४२ छ, 'तीरियं" पूष्णु शते तेनु सेवन ४२ छ, “किट्रियं" ने तेनु पान ४२वान। उपदेश मापे छ, 'सम्मं " ३ ४२४१ योगी तेनु सारी रीते “ आराहियं " मनुपालन रे छे, तेमनी द्वारा २॥ योगनु “आणाए अणुपालियं भवइ" तीथ ४२ भगवाननी माझानुसा२ पासन थाय छ “ एवं" २॥ ४॥२ " नाय मुणिणा भगवया महावीरेण" ज्ञात वशमा पनि थये। मुनि लगवान भड શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર

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