Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनी टीका अ० २ सू० ५ द्वितीयभावनास्वरूपनिरूपणम् ६९१ ।। शास्त्रविरुद्धां कथां-वार्ता कुर्यात् , ' कलहं वेरं विगहं ' कलहं वरं विकथां च कुर्यात् , तथा-' सच्चं ' सत्यं सद्भूतार्थ ' हणेज्ज' हन्यात् नाशयेत् , ' सीलं' शील-सदाचार हन्यात् , ' विणयं ' विनयं-विनीतभावं हन्यात् । तथा-क्रोधयुक्तो मानवः 'वेसो' द्वेष्यः-सर्वेषामप्रियो ' भवेज्ज' भवेत् , तथा- 'वत्थु' वास्तु-गृहं, दोषगृहंदोषपात्रं 'भवेज' भवेत् , तथा-'गम्मो' गम्यः अनादरस्थानं भवेत् , तथा-" वेसो वत्थु गम्मो द्वेष्यो वास्तुगम्य एतत्रितयोऽपि भवेत् । ' एवं ' एतत्=पूर्वोक्तम् , 'अन्नं ' अन्यच्च ' एवमाइयं' एवमादिकम्= भी ठान देता है, (वेर करेजा ) दूसरों से शत्रुता भी कर लेता है, तथा (विगहं करेज्जा ) जो कथा शास्त्र से विरुद्ध होती है उसे भी कह देता है । तथा (कलहं वेरं विगहं करेज्ज) कलह वैर और विकथा, इन तीनों को भी करता है। तथा (सच्च हणेज्ज) सत्य-सदभूत अर्थ का अपलाप कर देता है। तथा (सीलं हणेज्ज) शील-सदाचार को नष्टकर देता है, (विणयं हणेज्ज ) विनीत भाव को धिक्कार देता है। तथा ( सच्चं सीलं विणयं हणेज्ज ) सत्य शील और विनय, इन तीनों को नष्ट कर देता है। तथा (वेसो भवेज्ज ) जो मानव क्रोध से युक्त होता है वह दूसरो को अप्रिय बन जाता है, (वत्थु भणेज्ज ) द्वेष पात्र बन जाता हैं और ( गम्मो भवेज्ज) सब के अनादरणीय होता है। (वेसो वत्थु गम्मो भवेज्ज) वह दूसरों को अप्रिय द्वेषपात्र और अनादर इन तीनों का स्थान बन जाता है । इन पूर्वोक्त वचनो को तथा ( एवं अन्न च एवमाइयं) इसी प्रकार के और भी दूसरी तरह के असत्यकरेज्ज" ५२२५२भां वायुद्ध ५५ पारे छे वेर करेज्जा" भीती साथे शत्रुता ५४] ४२ छ, तथा “ विगह करेज्जा” तथा था शाखनी विरुद्ध डाय छ ते ५५ ४२ छ. तथा “ कलह, वेरं विगहं करेज्ज" , वै२ अने विश्था से ये ४२ छ तथा “सच्चं हणेज्ज" सत्य- यथाथ अर्थ ने। अ५८।५ ४२री ना छे, “ सील हणेज्ज" शास-सहायार! नाश 3री नामे छ, “विणय हणेज्ज" विनीत मापने पिछारे छ, त५॥ " सच्च सीलं विणयं हणेज्ज" सत्य, शीर भने विनय सत्रणेने नष्ट ना छ. तथा “ वेसो भवेज्ज" 2 मानव ओधयुत मने छ ते पीतने मप्रिय थाय छ, “वत्थु भवेज्ज" द्वेषपात्र भने छे भने “गम्मो भवेज्ज" मधाने भाटे मना२पात्र भने छे. “ वेसो वत्थ गम्मो भवेज्ज" ते भी अप्रिय द्वेषपात्र मने मना१२पात्र मे ऋणेतुं स्थान भने छ. स पूर्वेति तयन तथा “ एवं अन्नं च
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર