Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
७३०
प्रश्रव्याकरणसूत्रे
साधर्मिक उच्यते, तस्मिन् तथा - 'तवस्सि कुलगणसंघे य' तपस्विकुलगणसंघे च, तत्र - तपस्वी = विकृति वर्जकः, चतुर्थभक्तादिकारी वा कुलम् = एकगुरुकशिष्यसमूदायरूपम्, गणः = कुलसमुदायः, संघः = गणममुदायरूपः, एतेषां समाहारद्वन्द्वः, तस्मिंस्तथोक्ते च, अत्र सर्वत्र विषयार्थे सप्तमी, तेन तत्तद्विपयक मित्यर्थः, 'चेहयद्वे ' चैन्यार्थः- चैत्यं ज्ञानं ' चितीसंज्ञाने ' इत्यस्मात् संपदादित्वाद् भावे किपि 'चित् ' संज्ञानं सम्यग्ज्ञानं, चिदेव चैत्यं, स्वार्थे व्यञ्, तदेव अर्थः- प्रयोजनं यस्य स तथोक्तः सम्यग ज्ञानाभिलाषीत्यर्थः तथा-' निज्जरट्टी ' निर्जरार्थी(तवस्सिकुलगणसंघे य) तपस्वी हैं - विकृति ( विगय) के त्यागी हैं अथवा चतुर्थ भक्त आदि तपस्याओं के करने वाले हैं, तथा जो एक ही गुरु के शिष्यों का समुदाय है वह कुल है, कुल के समुदाय का नाम गण है, गणसमुदाय को संघ कहते हैं सो इन सबकी (चेइट्ठे ) सम्यक् ज्ञान की प्राप्ति का अभिलाषी तथा ( निज्जरट्ठी ) कर्मों की निर्जरा का इच्छुक मुनि ( अणिस्सियं ) इहलोक और परलोक संबंधी आकांक्षा रहित होकर ( दसविहं ) दश प्रकार की ( बहुविहं ) भक्तपान आदि विविध प्रकार से ( वेयावच्च करेइ) वैयावृत्य करता हैउनकी सहायता करता है वह इस महाव्रतको पाल सकता है ।
यहां जो 'चेइट्ठे ' पद आया है उसकी छाया '"चत्यार्थ' ऐसी है । संज्ञानार्थक चित् धातु से "संपदादित्वात् " इस सूत्र द्वारा भाव में क्विप्' प्रत्यय होने पर चित् ऐसा शब्द बन जाता है, इस का अर्थ संज्ञान- सम्यग्ज्ञान होता हैं । फिर स्वार्थ में 'व्यञ्' प्रत्यय होने पर
,
""
66
हम्मि" साधर्मिङ छे, ने "तवस्सि कुलगणसंघे य" तपस्वी छे, विकृति- “विगय" ના ત્યાગી છે, અથવા ચતુર્થાંભક્ત આદિ તપસ્યા કરનાર છે, તથા જે એક गुरुना शिष्य समुदाय "कुल" छे, हुसना समुहायने गए उहे छे, गाना समुहायने सौंध अहे छे. तो मे सौनी " चेइयट्टे સભ્યજ્ઞાનની પ્રાપ્તિના અભિલાષી તથા निज्जरठ्ठी ” भनी निर्भरा भाटे उत्सु भुनि ' अणि स्सियं " मासेो मने परसोड संधी साशंक्षा रहित थाने " दसविहं " हस प्रभारनी " बहुविय' " आहार पाणी आदि विविध प्रकारे "वेयावच्च करेइ " વૈયાવૃત્ય કરે છે—તેમની જે સાધુ સહાયતા કરે છે તે આ મહાવ્રત પાળી શકે છે. माहीं ? "चेइथट्टे " यह भाव्यु छे तेनी छाया “चैत्यार्थ" छे. संज्ञा • नार्थ 'चित् ' धातुथी “ क्विप् " प्रत्यय लागता चित् ' सेवे। शब्द मनी लय छे, तेनो अर्थ संज्ञान-सभ्यग् ज्ञान-थाय छे. छतां स्वार्थमां ' यञ्' પ્રત્યય લાગતા ચૈત્ય શબ્દ સિદ્ધ થઈ જાય છે. તેા ચિત્ જ ચૈત્ય છે એવે
66
"
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર