Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रश्रव्याकरणसूत्रे वितं सत् 'सुपणिहियं ' सुप्रणिहितं-सुरक्षितं ' होइ ' भवति । ' मणक्यणकायपरिरक्खिएहि मनोवचनकायपरिरक्षितैः-योगत्रयपरिरक्षितैः 'इमेहि पंचहिं वि कारणेहिं' एभिः पञ्चभिरपि कारणैः पूर्वोक्ताभिः पञ्चभिर्भावनाभिः 'णिच्च' नित्यम् 'आमरणंतं ' आमरणान्त-मरणपर्यन्तं च ' एसजोगो' एष योगः अहिंसालक्षणसंवररूपव्यापारः - धिइमया' धृतिमता-स्वस्थचित्तेन ' मइमया' मतिमता= हेयोपादेयमेधायुक्तेन ' नेयवो' नेतव्यः बोढव्यापरिपालनोय इत्यर्थः । कीदृशोऽयं योगः ? इत्याह-अयं योगः-' अणासवो' अनाश्रवः-नृतनकर्मागमनरहितत्वात् ' अकलुसो' अकलुषः अशुभाध्यवसायरहितत्वात् , 'अच्छिद्दो' अच्छिद्रःछिन्नपापस्रोतत्वात् , अपरिस्साई ' अपरिस्रावीविन्दुरूपेणापि कर्मजलप्रवेशरहि'एवमिणं' इत्यादि ___ टीकार्थ | ( एवमिण संवरदारं सम्मं संवरियं सुपणिहियं होइ) उक्त क्रमसे यह अहिंसारूप प्रथम संवरद्वार सेवित किये जाने पर सुरक्षित हो जाता है। (मणवयणकायपरिरक्खिएहिं ) इसलिये मन वचन और काय इन तीनों योगों से अच्छी तरह सुरक्षित किये गये (इमेहिं पंचहिं वि कारणेहिं) इन पूर्वोक्त पांच भावनारूप कारणों से (निच्चं ) नित्य (आमरणंतं ) मरणपर्यंत-जीवन भर तक (एस जोगो) इस अहिंसारूप संवरद्वार का (धिइमया) स्वस्थचित्त से युक्त एवं (मइमया) हेयोपादेय की बुद्धि से संपन्न होकर मुनि को (नेयव्यो) परिपालन करना चाहिये । क्यों कि यह अहिंसारूप संवर योग (अणासवो) नूतन कर्मागमन को रोकने का कारण होने से अनाश्रवरूप है। (अकलुसो) अशुभ अध्यवसाय से रहित होने के कारण अकलुष रूप है। (अच्छिद्दो ) इससे पापका स्रोत नष्ट हो जाता है इस कारण से यह
an-"एवमिणं संवरदार सम्म संवरिय सुपणिहिय होइ” ह्या प्रमाणेना કમથી આ અહિંસારૂપ પ્રથમ સંવરદ્વારનું સેવન કરવાથી તે સુરક્ષિત થઈ જાય छे “मणवयणकायपरिरक्खिएहि" तेथी मन, वचन भने आय से ऋणे योगाथा सारी शेते सुरक्षित रायेस " इमेहिं पंचहि विकारणेहि" से पूरित पांय भावना३५ ४२ थी “निच्चं" उभेशा “आमरणतं " भ७५ त-1941, " एसजोगो” सा भडिंसा३५ सव२६।२र्नु " धिइमया " स्वस्थ यित्तथी मने " मइमया " यायायनी मुद्धिथी युष्त ने मुनि “नेयब्वो” परियासन ४२ न . २ मा अडिंसा३५ सपश्योग " अणासवो नवा ४ागमनने २४वाने ॥२४भूत डापाथी ने मनाश्रय ३५ छे. “ अकलुसो" मशुल मध्यवसायथी २डित याने २णे २५४९ष३५ छ. “अच्छिद्दो' तेनाथी पापने प्रवाह नाश पामे छ ते २0 ते मरिछ३३५ छ. "अपरिस्साई"
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર