Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनी टीका अ० ५ सू०११ अध्ययनोपसंहारः तत्वात् , ' असंकिलिट्ठो' असंक्लिष्टः-असमाधिभाववर्जितत्वात् ' सुद्धो' शुद्धः= कर्ममलवर्जितत्वात् ' सव्वजिणमणुण्णाओ' सर्वजिनानुज्ञातः-सकलप्राणिहितकारकत्वात् सर्वेषामर्हतामनुमतश्चास्ति । एवम्-उक्तप्रकारेण 'पढमं संवरद्वारं' प्रयम संवरद्वारं, , फासियं' स्पृष्टं कायेन, ‘पालिय' पालितं सततमुपयोगेन सेवितम् , ' सोहियं ' शोधितम्-अतिचारवर्जनेन, 'तीरियं ' तीरितं तीरं प्रापितं पूर्णरूपेण सेवितम् , 'किट्टियं' कीर्तितम् अन्येषामुपदिष्टम् , तथा 'आराहिय' आराधित-त्रिकरणत्रियोगैः सम्यगाचरितम् , ' आणाए' आज्ञया सर्वज्ञवचनेन, 'अणुपालियं ' अनुपालितं च भवति । एवम् उक्तरूपं संवरद्वारं केन कथितम् ?
अच्छिद्ररूप है । (अपरिस्साई ) एक बिन्दु मात्र भी कर्मरूप जल का इस में प्रवेश नहीं हो सकता है अतः उससे रहित होने के कारण यह अपरिस्रावी है । (असंकिलिटो ) असमाधिरूप भाव से यह वर्जित होता है इसलिये असंक्लिष्ट है। तथा (सुद्धो) कर्ममल से सर्वथा विहीन होने के कारण यह शुद्ध है। इसीलिये यह (सव्वजिणमणुण्णोओ) समस्त अहंत भगवंतों को अनुमत-मान्य हुआ है क्यों कि इसीसे सकल प्राणियों का हित हुआ है। ( एवं पढमं संवरदारं ) उक्त प्रकार से प्रथम संवरद्वार को (फासियं) जो अपने काय से स्पर्श करते हैं (पालियं) निरन्तर ध्यान पूर्वक इसका सेवन करते हैं (सोहियं ) अतिचारों से इसे रहित बनाते हैं (तीरियं ) पूर्णरूप से इसे अपने जीवन में उतारते हैं (किहिय ) दूसरों को इसे धारण करने का उपदेश देते हैं तथा ( आराहियं) तीन करण तीन योगों से जो इसे अच्छी तरह आचरित करते हैं (आणाएअणुपालियं भवइ ) सर्वज्ञ के वचन એક બિન્દુ જેટલા પણ કર્ણરૂપી જળનો તેમાં પ્રવેશ થઈ શકતો નથી, તેથી तेनाथी रहित डावाने २ ते ५५रित्रावी छ, “असंकिलिछो" मसमाधि३५ माथी ते २डित हाय छ तेथी ते मस सिष्ट छ. तथा “ सुद्धो” भाभणथी सवथा २हित डावाने ॥२णे ते शुद्ध छे. तेथी ते “ सव्वजणमणुण्णाओ" समस्त २मत मावानाने मान्य थये छ, १२९५ तनाथी सपा प्रशासानु हित थयु छ. “ एवं पढमं संवरदारं " 61 रे प्रथम सव२वारनी “फोसिय" २ पोताना शरीरथी २५२॥ ४२ "पालिय" निरन्त२ ध्यानपूर्व तेनुं पासन ७२ छ "सोहियं” भतियारोथी तेने २हित सनाचे छ “ तीरियं" पूण रीते तेने पोताना वनमा उतारे छ, "किहिय" vीन ते ५जवान पहेश मापे छ, तथा " आराहियं " त्रण २५ त्रा योगाथी २ तेने सारी रीते सायरे छे " आणाए अणुपालिय भवइ "सपना
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર