Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
सुदर्शिनी टीका अ० ५सू०५ परिग्रहो यत्फलं ददातितन्निरूपणम् ५४१ महब्भओ बहुरयप्पगाढो दारुणो ककसो, असाओ वाससहस्सेहिं मुच्चइ, न य अवेदइत्ता अस्थि हु मोक्खोत्ति एवमाहंसु नायकुलनंदणो महप्पा जिणो वीरवरनामधेजो कहसि य परिग्गहस्स फलविवाग। एसो सो परिग्गहो पंचमो नियमा नाणामणिकणगरयणमहरिह० जीव इमस्स मोक्खवरमुत्तिमग्गस्स फलिहभूओ ॥ सू० ५॥
॥ चरिमं अहम्मदारं समत्तं ॥ 'टीका-' परलोगम्मि' इत्यादि
जीवाः प्राणिनः लोभवससंनिविट्ठा' लोभवशसंनिविष्टाः लोभवशेन परिग्रहे संनिविष्टाः अभिनिविष्टाः लोभवशपरिग्रहग्रहिलाः 'परलोगम्मि' परलोके-जन्मान्तरविषये चकारात् इहलोके च ' नट्ठा' नष्टाः-विनष्टाः सुगतिनाशात् सत्पथभ्रंशाच्च, तथा ' तमं ' तमः अज्ञानान्धकारं ' पविट्ठा' प्रविष्टा 'महया मोहमोहि
पूर्व में 'ये यथा कुर्वन्ति ' यह हार कहा अब सूत्रकार परिग्रह जिस प्रकार का फल देता है इस विषय को कहते हैं-'परलोगम्मि य' इत्यादि ।
टीकार्थ-(लोभवससंनिविट्ठा जीवा ) लोभ के वश से परिग्रह के वशवतीं बने हुए जीव ( परलोगम्मि य नट्ठा) अपने परभव को भी नष्ट कर डालते हैं । अर्थात् उनका यह लोक तो नष्ट हो ही जाता है, साथ में परभव भी उनका बीगड़ जाता है | क्यों कि ऐसे जीवों को सुगति की प्राप्ति नहीं होती है, तथा इसभव में वे सत्पथ से विहीन बने रहते हैं। तथा (तमपविट्ठा ) अज्ञानरूप अंधकार में प्रविष्ट होकर
मा “ये यथा कुर्वन्ति " ते अन्तरि १५ व्युं वे सूत्रा२ परियड ३१ माघे थे, ते मतावे -" परलोगम्मिय" त्यादि.
टी--" लोभवससंनिविद्वा जावा” सोलने मधान थने परियडने तामे थये । “ परलोगम्मि य नद्रा" पाताना ५२वने ५६१ नष्ट श નાખે છે, એટલે કે તેમને આ લેક બરબાદ થાય છે જ, પણ સાથે સાથે તેમને પરભવ પણ બગડે છે કારણ કે એવા જીને સુગતિ પ્રાપ્ત થતી નથી, भने म सभा तमे सन्माथी ६२ र २९. तथा " तमपविट्ठा" अशान
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર