Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रश्रव्याकरणसूत्रे मालिन्यरहिता, असंक्लिष्टा विशुद्धयमानमनःपरिणामयुक्ता, निव्रणा अक्षता या चारित्रभावना तया हेतुभूतया ' अहिंसए' अहिंसकः - सभावनाया अहिंसायाः परिपालकत्वात् , 'संजए' संयतः = सम्यग्जीवरक्षायतनोद्यतत्वात् , 'सुसाहू' सुसाधुः मोक्षसाधको मुनिर्मवति ॥ सू० ६ ॥ तथा विशुद्धयमान मनःपरिणाम से युक्त ऐसी हेतुभूत अखंड चारित्र भावना के प्रभाव से ( अहिंसए ) अहिंसक होता हैं, अर्थात् भावनासहित अहिंसा का परिपालक होने के कारण वह हिंसावृत्ति से रहित होता है ।तथा ( संजए ) अच्छी तरह से जीव रक्षा की यतना में उद्यत होने के कारण संजत होता है । और (सुसाहू ) ऐसा होने के कारण ही वह साधु-सच्चा साधु-मोक्ष साधक मुनि-होता है।
भावार्थ-इस सूत्र द्वारा सूत्रकार ने अहिंसाव्रत की रक्षा और स्थिरतो के निमित्त पांच भावनाओं में से ईर्या समिति नामकी प्रथम भावना कही है,। इस भावना में उन्हों ने वह प्रकट किया है कि अहिंसावत का आराधक प्राणी यदि भावना का निमित्त नहीं मिलता है तो उस व्रत का गहराई के साथ परिपालन नहीं हो सकता है। अहिंसा आदि व्रतों के रंग में आत्मा को रंग देनेवाली ये भावनाए ही हैं। इसलिये सच्चे अर्थ में अहिंसक बनने के लिये मुनि को सबसे पहिले ईर्या समिति का पालन करना चाहिये । इस समिति के पालन करने से भावणाए " अशवल-मसिनता २डित तथा विशुद्ध मनः परिणामथी .युत सेवा उतुभूत क्षत-यारित्रभावनाना प्रमाथी ' अहिंसए” मसि थाय छ, એટલે કે ભાવનાપૂર્વક અહિંસાના પરિપાલક હોવાથી તે હિંસાવૃત્તિથી રહિત भने छ. तथा “संजए " सारी रीते ०१ २क्षानी यतनामा तत्५२ डावाने १२ सयत थाय छे. अने “सुसाहू" मेवा थवाने अणे ते सुसाधु-साय। साधु-भाक्ष सा4 भुनि-थाय छे.
ભાવાર્થ– આ સૂત્ર દ્વારા સૂત્રકારે અહિંસા વતની રક્ષા અને સ્થિરતાને માટે જે પાંચ ભાવના છે તેમાંની ઈસમિતિ નામની પહેલી: ભાવના બતાવી છે. આ ભાવનામાં તેમણે એ પ્રગટ કર્યું છે કે અહિંસા વ્રતના આરાધક પ્રાણીને જે ભાવનાનું નિમિત્ત ન મળે તો તે વ્રતનુ સૂમ રીતે પાલન થઈ શકતું નથી. અહિંસા આદિ વ્રતના રંગમાં આત્માને રંગી દેનારી આ ભાવનાઓ જ છે. તેથી સાચા અર્થ માં અહિંસક બનવાને માટે મુનિએ સૌથી પહેલાં ઇસમિતિનું પાલન કરવું જોઈએ. આ સમિતિનું પાલન કરવાથી ત્રસ
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર