Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रश्नव्याकरणसूत्रे
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भवन्ति । कयोर्द्वयोर्लोकयोः इत्याह इहलोए चैव परलोए' इहलोके चैव - इहजन्मनि परलोके च परजन्मनि । के ते ? इत्याह – 'परस्स दाराओ जे अविरया ' परस्य दारेभ्यो येऽविरताः = परस्त्रीपरायणाः । ' तहेव ' तथैव ' केइ ' केचित् 9 परस्स दारं गवेसमाणा परस्य दारान् गवेषमाणाः = परस्त्रियमन्वेषयन्तः, 'गहिया य ' गृहीताथ जनैः ' हयाय ' हताश्च = ताडिता: ' बद्धरुद्धा य ' बद्धरुद्वाश्र = रज्ज्यादिभिर्बद्धाः सन्तः पञ्जरादौ निरुद्धाव एवं ' जाव गच्छन्ति यावत् - अधोगतिं प्राप्नुवन्ति ' अत्र यावत्पदग्रहणेन तृतीयाध्ययनस्थितः गहियाय बद्धरुद्धा य ' इत्यारभ्य ' नरए गच्छंति णिरभिरामे ' इत्येतदन्तः पाठोत्रबोध्य इति सूचितम् । के ते इत्याह-ये 'मोहाभिभूयसण्णा' मोहाभिभूतसंज्ञा:= मोहेन=अज्ञानेन कामान्धतया वा अभिभूता - परीभूता नष्टा संज्ञा सदसद्विवेकपज्ञा दोनों लोकों में- इस लोक और परलोक ( दुराराहगा ) आत्म विरोधक ( भवंति ) बनते हैं । तथा ( तहेव ) इसी प्रकार ( केइ परस्सदारं गवेसमाणा ) जो परस्त्री की गवेषणा करने में रत रहते हैं वे यदि उस कार्य को करते समय ( गहिया य ) पकड़ लिये जाते हैं तो ( हयाय ) बहुत बुरी तरह ताडित किये जाते हैं । और ) ( बद्ध रुद्धा य) रस्सी आदि से बांधे जाकर पंजर आदि में बंध कर दिये जाते हैं । ( एवं ) इस तरह (जाव ) यावत् यहां यावत् शब्द से तृतीय अध्ययन में कथित " गहिया य बद्धरुद्धाय इस पाठ से लगाकर "नरए गच्छंतिणिरभिरामे) यहांतक का पाठ लिया गया है । जिससे यह समझाया गया है कि अन्त में ऐसे जीवोंकी बडी दुर्दशा होती है और वे मर कर नरक में जाते हैं। क्योंकि ( विलमोहाभूय सण्णा) ऐसे मनुष्यों का विपुल अज्ञान से अथवा कांमान्धता से सद् सद्विवेक बिलकूल नष्ट होता
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दुराराहगा आत्मविरोधः “ मवंति " जने छे. " तहेब" मे ४ प्रमाणे hs परस्सादार गवेसमाणा " ने परस्त्रीनी शोधभां सीन रहे छे, तेमा ले ते अर्थ उरती वमते " गहिया य " चडाई लय तो " हयाय "
घणी
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"" वद्धरुद्धाय દારડાં
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જ ખરાબ રીતે તેમને મારવામાં આવે છે, અને આદિથી જકડીને પાંજરાં આદિમાં પૂરી દેવામાં આવે છે. 27 एव આ રીતે 66 जाब " यावत् - अहीं यावत् शब्द वडे त्रीन अध्ययनमा अडेस " गहियाय बद्धरुद्धाय " थी सहने " नर गच्छति णिरभिरामे " सुधीना या सेवामां આવેલ છે. તેમાં એ સમજાવવામાં આવ્યું છે કે છેવટે તે જીવાની દશા ખૂરી थाय छे भने तेथे भरीने नशुभां लय छे, अरण े “विउलमोहा भूयसण्णा" એવા મનુષ્યેાના સદસવિવેક, અજ્ઞાનથી અથવા કામાંધતા ને લીધે બિલકૂલ
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર