Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनी टीका अ० ४ सू० १५ अध्ययनोपसंहार :
४९५ एयं तं अबंभपि चउत्थं सदेव मणुयासुरस्स लोगस्स पत्थणिजं एवं चिरपरिचियमणुगयं दुरंतं तिबमि ॥सू०१५॥
॥ चउत्थं अहम्मदारं समत्तं ॥ टीका-' एसो सो' एष सः पूर्वोक्तः अबंभस्स फलविवागो' अब्रह्मणः फलविपाकः ' इह लोइओ' ऐहलौकिकः-मनुष्यभवापेक्षया, 'परलोइओ य' पारलौकिकश्च नरकाद्यपेक्षया ' अप्पसुहो' अल्पसुखाः - क्षणमात्रसुखजनकत्वात्'बहुदुक्खो' बहुदुक्ख:-प्रचुरदुःख हेतुत्वात् ' महब्भयो' महाभयः-वधवन्धन जन्ममरणादिभयोत्पादकत्वात् 'बहुरयप्गगाढो' बहुरजः प्रगाढः-कर्मदलिकवहुत्वात् 'दारूणो ' दारूण:-चतुर्गतिसंसारभ्रामकत्वात् 'ककसो' कर्कशः दशविध
अब इस पूर्वोक्त अब्रह्म विषय का उपसंहार करते हुए सूत्रकार कहते हैं-' एसो सो' इत्यादि।
टीकार्थ-( एसो सो ) यह पूर्वोक्त (अबभस्स) अब्रह्म-कुशील सेवन का (फलविवागो) फलरूपविपाक (इहलोइयपरलोइओ य) मनुष्य भव की अपेक्षा तथा नरकादि गति की अपेक्षा ( अप्पसुहो) क्षणमात्र सुख का जनक होने से अल्पसुखरूप है तथा ( बहुदुक्खो) प्रचुर दुःख का हेतु होने से महादुःखप्रद है, (महमओ) बध, बंधन, जन्म, मरणादि के भय का उत्पादक होने से महाभय स्वरूप है। ( बहुरयप्पगाढो) ऐसे कर्म करने वालो को कर्मों की स्थिति और अनुभाग बहत अधिक मात्रामें बंधाता है इसलिये वह बहुरजःप्रगाढरूप है। (दारूणो) चतुर्गति रूप संसारमें ऐसे जीवोंका हो भ्रमग होता है-अतः
હવે આ પૂર્વોક્ત અબ્રા વિષયને ઉપસંહાર કરતા સૂત્રકાર કહે છે – " एसो सो" त्याह
थि:-“ एसो सो" । पूरित " अबभस्स" मझ-यारित्र सेवनन। “ फलविवागो” सविता " इहलोइयपरलोइओ य” मनुष्य अपनी अपेक्षा “ अप्पसुहो” क्षणमात्र सुमन न डावाने पारणे अ५सुभ३५ छ, तथा " बहुदुक्खो” सत्यत दुमन हेतु पाथी भाडःम छ, “ महब्भओ " १५, धन, सन्म, भ२५ मा भयन ६४ वाथी महानाय २१३५ छ, “बहुरयप्पगाढो" mi : ४२नारने भनी स्थिति અને અનુભાગ બહુ જ વધારે પ્રમાણમાં બંધાય છે તેથી તે બહુ જ પ્રગાઢ३५ छ. " दारुणो " मेवा च्वाने १ या२ गति ३५ संसारमा प्रभार ४२j
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર