Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनी टीका अ० ४ सू० ४ १४ चतुर्थमन्तरिनिरूपणम्
४९३ साहारणसरीरपत्तेयसरीरेसु' पर्याप्ताऽपर्याप्तकसाधारणशरीरप्रत्येकशरीरेषु च जन्ममरणं कुर्वन्ति । ततोऽपि निःसृत्य — अंड य पोयय जराउय रस यसंसेइम समुच्छिम उभिज्ज उववाइएसु य ' तत्र अण्डजाः पक्षि मत्स्यादयः 'पोयज' पोतजाः हस्त्यादयः 'जराउय ' जरायुजाः मनुष्यादयः, 'रस य' रसजा विकृतरसेषु समुत्पन्नाः 'संसेइम' संस्वेदिमाः संस्वेदात् जाता युका मत्कुणादयः समुच्छिम' संमूच्छिमाः संमृच्छिन जाताः ददुरादयः 'उब्भिज्ज' उद्भिज्जाः पृथिवीमुद्भिद्य जाताः शलभादयः ‘उववाइय' औपपातिकाः देव नारकादयश्च, इत्येतेषु च 'नरगतिरियदेवमाणुसेसु' नरकतिर्यग्देवमानुशेषु कीदृशेषु ? इत्याह-' जरामरणरोगसोगबहुलेसु ' जरामरणरोगशोकबहुलेषु(तसथावरसुहुमाबायरेसु) त्रस, स्थावर, मूक्ष्म, बादर इन कायों में, तथा (पज्जत्तगपजत्तसाहारणपत्ते य सरीरेसु य) पर्याप्तक अपर्याप्तक, साधारणशरीर, प्रत्येक शरीर इन पर्यायों में जन्म मरण करते हैं। वहां से भी निकल कर वे ( अंड य पोयय जराउय रस य संसेइम समुच्छियउन्भिज्जउववाइएसु थ) अंडज जीवों में-पक्षी मत्स्य आदिकों में, पोतजजीवों में हस्ती आदिकों में, जरायुज में-जरा से पैदा होने वाले मनुष्य आदिकों में, रसज जीवों में-विकृत रसोंमें उत्पन्न होने वाले कृमि आदि जीवों में, संस्वेदिमोंमें पसीनेसे होनेवाले यूका, मत्कुण आदि जीवों में, संमूच्छिम जन्मवाले दर्दुर ( मेढक ) आदि जीवों में, उद्भिज्ज जोवों में-पृथिवि को भेदकर उत्पन्न होने वाले शलभ आदि जीवों में औपपातिक जन्म धारी देव और नारकियों में उत्पन्न होते हैं । तथा वे (जरामरणरोगसोग. बहुलेसु नरगतिरियदेवमाणुसेसु ) जरा, मरण, रोग, शोक बहुल, नरक, " तसथावरसुहुमवायरेसु " साय, स्था१२४१३, सूक्ष्माय मने पायोमा तथा “ पज्जत्तमपज्जत्तसाहारणसरीरपत्तेयसरीरेसु य ” पर्याप्त, २५५र्यात, સાધારણ શરીર, પ્રત્યેક શરીર આદિ પર્યામાં જન્મ મરણ અનુભવે છે. त्यांथी ५५ नीजीने तेस। “ अंडय-पोयय-जराउय-रसय ससे इम-समुच्छियउभिज्ज उववाइएमु य " २५०४ मां-५क्षी मत्स्य हिमा, पोतरा જમાં હાથી આદિમાં જરાયુજમાં મનુષ્ય આદિકમાં રસજ માં विकृत २सोमा उत्पन्न यना२ भि माहि वोमा; संस्वेदिमों भां-५२सेवाथी ઉત્પન્ન થનાર જ, માંકડ આદિ માં, સંમૂછિમ જન્મવાળા દેડકા આદિ જીમાં, ઉદ્ધિજજીમાં-પૃથ્વીને ભેદીને ઉત્પન્ન થનાર તીડ આદિ જીવોમાં, मी५५ति हेव भने ना२श्रीमामा उत्पन्न याय छे. तथा तमे “जरामरणरोगसोगबहुलेसु नरगतिरियदेवमाणुसेसु” १२, भ२, २५ भने विYe
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર