Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनी टीका अ०४ सू० ९ अब्रह्मसेविस्वरूपनिरूपणम्
प्रधानाभिः देश रत्न रूपाभिः = 'लालियंता' लाल्यमानाः = विलास्यमानाः 'अतुलसद्दफरिसरसरूवगंधेयअणुभवित्ता अतुलशब्दरसरूपगन्धाश्च अनुभूय 'ते वि' तेऽपि तादृशा अपि 'अवितित्ता कामाण' अविश्प्ताः कामानां-कामभोगेषु तृप्तिरहिता एव ' उवणमंति मरणधम्म' मरणधर्ममुपनमन्ति ॥ सू० ८ ॥ पुनः केऽब्रह्मसेविनः १ इत्याह 'भुज्जो मंडलिय' इत्यादि
मूलम्-भुजो मंडलियणरवरिंदा सबला सअंतेउरा सपरिसा सपुरोहियाऽमञ्चडंडणायगसेणावइ – मंतिणीइ - कुसला णाणामणि रयण-विउलधणधण्णसंचय-निहिसमिद्धकोसा, रज्जसिरिविउलमणुभवित्ता विकोसंता बलेणमत्ता ते वि उवण. मंति मरणधम्म अवितत्ता कामाणं ॥ सू० ९॥ ____टीका-' भुज्जो' भूयः पुनरपि ' मंडलिय परवरिंदा' माण्डलिकनर वरेन्द्राः मण्डलाधिपतयः (सबला) सबला: सेना सहिताः ' स अंतेउरा' हिं लालियंता ) जो जनपदप्रधानभूत देशों में रत्नरूप से मानी गई अर्थात्-सर्वोत्कृष्ट स्त्रियों के साथ आनंद करते हैं-वैषयिक सुखों को भोगते हैं ( तेवि ) ऐसे वे बलदेव और वासुदेव भी ( अतुलसद्दफरिसरसरूवगंधे य अणुभवित्ता ) अतुल शब्द, स्पर्श, रस रूप, एवं गंध रूप विषयोंका अनुभव करके भी (अवितत्तकामाणं ) कामभोगों की तृप्तिसे विहीन ही (उवणमंतिमरणधम्मं ) मरणधर्मको प्राप्त करते हैं ॥सू०८॥
अब सूत्रकार " और कौन अब्रह्मसेवी होते हैं " इस बात को कहते हैं-'भुज्जो मंडलियणरवरिंदा' इत्यादि। ___टीकार्थः- ( भुज्जो मंडलिय परवरिंदा ) फिर जो मंडलाधिपति लालियंता" रे भुज्य भुभ्य देशमा २त्नसमान nाती मेट , अनुपम सी। साथे मान ४२ छ वैषयि सुमन नागवे छ “ते वि" सात म अने वासुदेव ५ " अतुलसदफरिसरसरूवगंधे य अणुभवित्ता " અનુપમ શબ્દ, સ્પર્શ. રસ, રૂપ અને ગંધ રૂપ વિષયેનો ઉપભેગ કરવા छत ५ " अवितत्तकामाणं" ममागोथी मतृत मेवी डासतमi or "उवणमंति मरणधम्म" मृत्यु पामे छ । सू. ८॥
ये सूत्रा२ मता छ , मीon मनसेवा डाय छ ? “भुज्जो मंडलियणरवरिंदा" त्यादि
Elथ-"भुज्जो मडलियणरवरिंदा" भनेरे भावि य छ, ती i
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર