Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रश्नव्याकरणसूत्रे
सान्तः पुराः =सस्त्रीका: ' सपरिसा सपरिषदः सपरिवारा: 'सपुरोहिया मच्चडायग सेणावतिणीइकुसला ' सपुरोहितामात्य - दण्डनायकसेनापति मन्त्रिनीतिकुशलाः = तत्र पुरोहिताः = शान्तिकर्मकारिणः अमात्याः = मन्त्रिणः दण्डनायकाः = कोट्टपालादयः सेनापतयः मन्त्रिणश्च कीदृशास्ते १ इत्याह- नीतिकुशलाः नीत - सामदामादि रूपायां कुशलाः = निपुणाः तैः सहिताः 'णाणामणिरयण विउलघणघण्णसं चयनिहिसमिद्धकोसा ' नानामणिरत्नविपुलधनधान्यसञ्चय-निधि समृद्धकोशाः = चक्रवर्तिवर्णने कृतव्याख्यानमिदम् । विउलं विपुलां = महतीं ' रज्जसिरिं ' राज्यश्रियं = राज्यलक्ष्मीम् ' अणुभवित्ता' अनुभूय उपभुज्य विको संता ' विक्रोशन्तः = अन्यान् पीडयन्तः ' बलेण मत्ता' बलेन मत्ताः - बलगविताः, ' ते वि' तेऽपि - मांडलिकादयः, 'अवितत्ता कामाणं' कामानामवितृप्ताः = कामोपभोगेषु तृप्तिरहिता एव, 'उवणमंति मरणधम्मं मरणधर्ममुपनमन्ति ॥ ०९ ॥
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होते हैं, वे कैसे होते हैं ? सो कहते हैं - ( सबला ) सेना सहित होते हैं, (सअंतेउरा ) अंतःपुरसे जो युक्त होते हैं, ( सपरिसा ) परिवार सहित होते हैं, ( सपुरोहियामच्चडडणायगसेणावइतिणीइकुसला ) जिनके शांतिकर्म कराने वाले पुरोहित अमात्य, दंडनायक और सेनापति साम दान आदि रूप राजनीति में कुशल हुआ करते हैं। तथा( णाणामणिरयणविउलघणघण्णसंचयनिहि समिद्ध कोसा ) नानामणियों से, रत्नों से, विपुल धन धान्य के संचय से और निधियों से जिन का कोश समृद्ध रहता है, तथा जो ( बिउलं ) विपुल ( रज्जसिरिं ) राज्यश्री को ( अणु भवित्ता) भोग करके (विक्कोसता ) दूसरे व्यक्तियों को रातदिन पीडित किया करनेवाले तथा ( बलेण मत्ता ) अपने बल से गर्वित बने हुए ( ते वि) इस प्रकार के वे भी मांडलिक आदि राजा होय छे, ते उडेछे - " सबला " तेथे। सेनायुक्त होय छे, CC स अंतेउरा " अतःयुरथी युक्त होय छे, " सपरिवारा परिवार युक्त होय छे, “सपुरोहिया मच्चडणाग सेणावइमं तिणीइकुसला " प्रेमना शांति उभ કરાવનારા પુરાહિત અમાત્ય દંડનાયક અને સેનાપતિ સામ, દામ, આદિ રૂપ રાજનીતિ જાણકાર होय छे. तथा " णाणामणिरयणवि उलघणघण्णसंचयनिहिसमिद्धकोसा " विविध મણિયા, રત્ના, વિપુલ ધન-ધાન્ય આદિના 'ચયથી તથા નિષિયાથી भेभनो भन्ननो सहा समृद्ध रहे छे तथा ? " विडलं ” वियुस " रज्जसिरिं " राज्य लक्ष्मीनो " अणुभवित्ता " उपलोग अरे छे, “ विक्कोसंत्ता " जीवन सोओने शतद्विवस पीडनाश तथा “बलेण मत्ता " पोताना मजथी गर्विष्ठ मनेवा मेवा
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર