Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनी टीका अ०४ सू० १२ युगलिनीस्वरूपनिरूपणम् ४७५ जलउडबाहा' भुजङ्गानुपूर्वतनुक गोपुच्छवृत्तसमसंहितनमितादेयलडहबाहवः = भुजङ्गवत् = सर्पवत् आनुपूर्वेण तनुको = क्रमशः कृशो तथा गोपुच्छवद् वृत्तौ = वर्तुलौ समसंहितौ-समत्वयुक्तौ सुगुंठितौ च नमितौ-सुदीर्घलम्बमानौ आदेयौ= श्लाघनीयौ ' लडह' इति सुन्दरौ बाहू-भुनौ यासां तास्तथा 'तंबनहा ' ताम्रनखाः-रक्तवर्णनखसम्पन्नाः ‘मंसलग्नहत्था' मांसलाग्रहस्ताः-मांसलौ-पुष्टौ अग्रहस्तौ-हस्ताग्रभागौ ' पोंचा' इति प्रसिद्धौ यासां तास्तथा, तथा ' कोमल पीवरवरंगुलीया ' कोमल पीवरवराङ्गुलिका, तेऽपि मरणधर्ममुपनमन्तीतिवक्ष्यमाणेन सम्बन्धः ॥ सू-१२ ॥
पुनस्ताः कीदृश्यः ? इत्याह–'निद्धपाणि लेहा' इत्यादि__ मूलम् ---निद्धपाणिलेहा ससि-सूरसंखचक्कवर-सोत्थिय विभत्त - सुरइय-पाणिलेहा पीणुपणय कक्खवत्थिप्पएस गोपुच्छवट्टसमसंहियनामिय आदेज्जलउडवाहा ) इनकी दोनों भुजाएँ सर्प की तरह क्रमशः कृशहुई होती है। तथा गाय की पूंछ की तरह वर्तुल होती हैं । सम-एकसी तथा संहित-संगठित होती हैं । नमितघुटनों तक लंबी रहती हैं। आदेय-देखने में प्रशंसनीय एवं बड़ी सुहावनी लगती हैं । (तंबनहा ) इनकी अंगुलियों के नख लाल वर्ण वाले होते हैं । तथा ( मंसलग्गहत्था ) इनका पोंचा मांसल-पुष्ट होता है। तथा ( कोमलपीवरवरंगुलीया ) इनकी हाथों की अंगुलियां कोमल पीवर-पुष्ट एवं वर-उत्तम होती हैं। ऐसी ये स्त्रियां भी कामभोग से अतृप्त ही मरणधर्म को प्राप्त करती हैं । ऐसा संबंध आगे के वाक्य से जोड लेना चाहिये । सू०१२ ॥ " भुयंग-अणुपुत्व-तलुय गोपुच्छ वट्ट-समसंहिय-नामिय-आदेज्जल-उडवाहा " તેમની બને ભુજાઓ સર્ષની જેમ કમકૃશ થતી જાય છે, તે ભુજાઓ गायनी पूछी 24 वतु सभ-मेट सी , तथा सहित-सुगठित, धुणे। सुधी civil, मने माय-प्रशस्त, मने मिती दागे छ “ तंबनहा" तेमनी मागणीमान न सास गन डाय छ, तथा “ मंसलग्गहत्था" तभना पोय॥ भासत-पुष्ट हाय छ, तथा " कोमलपीवरवरंगुलिया” तमना डायनी આંગળિયે પાવર-પુષ્ટ અને ઉત્તમ હોય છે. એવી તે યુગલિક સ્ત્રીઓ પણ કામગથી અતૃપ્ત રહીને જ મૃત્યુ પામે છે એ સંબંધ આગળનાં વા साथे सभ७ से.. ॥ सू० १२ ॥
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર