Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रश्नव्याकरणसूत्रे 'सीहस्सरा , सिहस्वराः-सिंहवत्स्वराः-अव्याहतमवर्धमानत्वात् , न तु खरवद् , हीनस्वराः, 'मेघस्सरा' मेघस्वराः मेघवत्स्वराः-दूरदेशव्यापित्वात् 'ओघस्सरा' ओघस्वरा.-, अत्रुटितस्वराः, ‘सुस्सरा' सुस्वराः-कर्णसुखजनकत्वात् 'सुस्सरनिग्घोसा' सुस्वरनिर्घोषाः-सुस्वरः-प्रियः निर्घोषः-शब्दो येषां ते तथा मधुरभाषिण इत्यर्थः, “वज्जरिसहनारायसंघयणा' वज्र - ऋषभ-नाराचसंहननाः, तत्र नाराचम्-उभयतो मर्कटबन्धः, ऋषभः तदुपरि वेष्टनपट्टः, वजं= कीलिका-उभयस्यापि भेदकमस्थि ॥ उक्तश्च
" रिसहो उ होइ पट्टो, वजं पुण कीलिया वियाणाहि।
उभो मक्कडबंधो नारायं तं वियाणाहि ॥ १॥” इति, स्वर के जैसा होता है। (दुंदुहिस्सरा) गंभिर होने से दुंदुभि के स्वर जैसा होता है, (सीहस्सरा) अव्याहतरूप से प्रवर्धमान होने के कारण सिंह के स्वर जैसा, ( मेहस्सरा ) दूर २ देश तक में भी व्याप्त होने के कारण मेघकी ध्वनि जैसा होता है । (ओघस्सरा) वह स्वर बीच में टूटता नहीं है, ( सुस्सरा) तथा कानों को सुखकारी होता है । तथा(सुम्सरनिग्धोसा ) वे जो भी शब्द बोलते हैं वे भी बड़े प्रिय होते हैं, अर्थात् ये मधुरभाषी होते हैं (वज्जरिसहनारायसंघयणा) इनका वज्र ऋषभ नाराच संहनन होता है और (समचउरंससंठाणसंठिया) समचतुरस्त्र संस्थान होता है। जो संहनन उभयतः सर्कटबंधसे, ऋषभ- उसके उपर वेष्टनपट्ट से एवं वज्र-कोलीका से युक्त होता है उसका नाम वज्रऋषभनाराच संहनन है। यही बात गाथा द्वारा प्रदर्शित की गई है।
हाय छ, “ सीहस्सरा " अविरत प्रवध मान डावाने अणे सिडना स्व२ वो, मने " मेहस्सरा" ६२ ६२ सुधा सात पाथी भेघना पनि २३सागे छे. “ ओघस्सरा " ते २१२ वय्ये deal नयी भने “ सुस्सरा " ४थन सुम: दाणे छ. तथा “ सुस्सरनिग्बोसा" तेयाने शह माले छ ते ५५५ । मधु२ डाय मेले में भी माता सोय छे “वज्जरिसह सारायसंघयणा " तेभर्नु १०० ऋषम नारा सडनन डोय छ भने “ समचउ. रससंठाण संठिया " समन्यारस संस्थान डोय छे. २ सनन भने त२५ મર્કટ બંધથી, ઋષભ-તેના ઉપર લપટાયેલા પટ્ટથી અને વજી કીલિકાથી યુક્ત डाय छ तेनु नाम वज्रऋषभनाराचसंहनन छ. ५ वात गाथा द्वारा દર્શાવવામાં આવી છે
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર