Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनी टीका अ० ४ सू० ५ चक्रवर्तीलक्षणनिरूपणम्
४१७ येषां ते तथा हिमवत्समुद्रपर्यन्तपृथिवीशासकाः 'चाउराहिं सेणाहिं समणुजाइज्जमाणमग्गा' चतसृभिः सेनाभिः समनुयायमानमार्गाः-हस्त्यश्वरथपदात्तिरूपचतुरङ्गसेनाभिः समनुयायमानः अनुगम्यमानो मार्गो येषां ते तथा तदेव दर्शयति 'तुरंगवई-गयवई-रहवई-नरवई तत्र 'तुरंगवई ' तुरङ्गपतयः ‘ गयवई ' गजपतयः ' रहवई ' रथपतयः ‘ नरवई' नरपतयः पदाति सेनापतयः ‘विउलकुला' विपुलकुलाः = उच्चकुलाः, विश्रुतयशसः विख्यातकीर्तय 'सारयससिसकलसोम्मवयणा' शारदशशिसकलसौम्यवदनाः शारदाः शरत्कालिको शशी चन्द्रः कीदृशः सकला सम्पूर्णकलायुक्तः शरत्पूर्णिमाचन्द्र इत्यर्थः, तद्वत् सौम्यं=सुन्दरं, वदनं-मुखं येषां ते तथा । 'मूरा' शूराः शत्रुमर्दकाः ‘तिलोकनिग्गयपभावा' त्रैलोक्यनिर्गतप्रभावाः त्रिलोकव्यापिप्रभावसम्पन्नाः, 'लद्धसद्दा' लब्धशब्दाः
पर्यंत तक की भूमि के शासक होते हैं, ( चाउराहिं सेणाहिं समणुजाइज्जमाणमग्गा ) हस्ती, अश्व, रथ एवं पैदल सैन्य, इन चार अंगों वाली सेना से जो सदा अनुगम्यमान मार्गवाले होते हैं, अर्थात् वे (तुरंगवईगयवई रहवई नरवई) अश्वपति, गजपति, रथपति, और नरपति होते हैं। (विउलकुला ) तथा उनका कूल बहुत ऊँचा होता हैं, (वीसुयजसा) कीति भी उनकी चारों दिशाओं में व्याप्त होती है तथा ( सारयससि. सकल सोम्मवयणा ) उनकी मुख शरत्काल की पूर्णिमा के चन्द्रमा जैसा सौम्य होता है तथा वे (सूरा ) अपने शत्रुओं के मर्दक होने से शुरवीर होते हैं, तथा (तिलोकनिग्गयपभावा ) उनका प्रभाव तीनलोक में व्याप्त रहता है, इसलिये वे (लद्धसद्दा ) उनकी प्रसिद्धि तीनों लोकों
तेसानु हिमालय पर्वत सुधीन। प्रदेश ५२ शासन यावे छे. “चाउराहि-सेणाहिं समणुजाइज्जमाणमग्गा” तथा ते यति रानमा ६७, सह, રથદળ, અને પાયદળ, એ ચતુરંગી સેના સહિત માર્ગ પર કુચ કરનારા હોય छ, मेटले “ तुरंगवई गयवई रहवई नरवई" तसा २५१५५ति, ४५ति, २थपति मने नरपति डाय छे. “विउलकुला" तथा तसा अयां सुना हाय छे. “ विसुयजसा" तेमनी प्रीति थारे हिशामामा सायेसी डाय छे. तथा “ सारयससिसकलसोम्मवयणा” तमना भु५ २२४ तुनी पूर्णिमाना यन्द्र समान सौम्य हाय छ, तथा तेस। “सूरा" पाताना शत्रुमार्नु भन ४२ना२ हवाथी शूरवीर डाय छ, “तिलोक्कनिग्गयपभावा" तेभनी प्रमा५ त्रणे मां व्यापतो डाय छे. तेथी " लद्धसद्धा" तमात्रा
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર