Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनी टीका अ०३सू०१७ अदत्तादायिनः यत्फल प्राप्नुवन्ति तन्निरूपणम् ३५१ मित्रैस्त्यक्ताः । निरासा ' निराशाः = जीवनाद्याशारहिताः 'बहुजणधिक्कारसद्दलज्जाइया ' बहुजनधिक्कारशब्दलज्जायिता: बहूनां जनानां धिक्कारवचनैः लज्जायिताः लज्जा प्रापिताः तथापि अलज्जाः = निर्लज्जाः धृष्टत्वात् 'अणुबद्धखुहापरदा ' अनुबद्धक्षुधापराद्धाः अनुबद्धक्षुधया सततबुभुक्षया अपराद्धाः पीडिताः · सीउण्हतण्हवेयणदुघघट्टिया' शीतोष्णतृष्णावेदनादुर्धट्ट घट्टिताः , तत्र शीतेन उष्णेन तथा तृष्णया-पिपासया क्षुधयाच या दुर्घटाः= असद्याः वेदना :=पीडास्ताभिः - दुर्घट्ट अतिविकटम्-अतिशयेन घहिताः = पी. डिताः ' विवण्णमुहविच्छविया ' विवर्णमुखविच्छविकाः = तत्र विवर्ण मुख- विरूपयुक्तं मुखं ये ते तथा विच्छविकाः = कान्तिरहिता निस्तेजसः । 'विहलमलिणदुब्वला' विफलमलिनदुर्वला:-तत्र विफला कारागारे नियन्त्रितत्वादनिष्टफलाः मलिना=मलिनवदना दुर्बलाश्च-शक्तिरहिता ये ते तथा ' किलंता' मित्रजन भी इन्हें छोड़ देते हैं । (निरासा ) ये चोर वहां जीवत पर्यन्त रहने के कारण अपने जीवन की आशा छोड़ देते हैं। (बहुजणधिकार सद्दलज्जाइया ) अनेक जनों द्वारा धिक्कार के शब्दों से ये लजित किये जाते हैं। फिर भी इन्हें जैसी लज्जा आनी चाहिये वैसी नहीं आती है। कारण ये बहुत अधिक घट बन जाते हैं। (अणुबद्धखुहापरद्धा) रातदिन ये क्षुधा से पीडित बने रहते हैं। (सीउण्हतण्हवेयणदुगघट्टिया) शीत, उष्ण, तृष्णा, क्षुधा जन्य असह्यवेदनाओंसे ये सदा (दुघघट्टिया) अत्यन्त दुःखित बने रहते हैं। ( विवण्णमुहविच्छविया ) इनका मुख सदा कुम्हलाया हुआ रहता है और कांति भी इनकी मलिन रहती है । (विहलमलिणदुव्वला) कारागार में बंद रहने के कारण ये ( विहल ) अनिष्ट फलवाले होते हैं-अर्थात् जो ये चाहते हैं वह इन्हें नहीं मिलता तभनी त्यास ४३ छ. "निरासा" ते यो। त्यो वन सुधा २७वाना २२ घोताना वानी मा छ।हेछे. "बहुजणविकारसहलज्जाइया' भने सो ધિક્કારના શબ્દોથી તેમને શરમિંદા કરે છે, છતાંપણ તેમને એવી શરમ થતી નથી,
२५ तेस। धृष्ट / गया हय छ, “अणुबद्धखुहापरद्धा" शत हिवस ते सूमथी पाया ४२ छ “सी उज्हतण्हवेयणदुघट पट्टिया” ४ी, गभी, क्षुधा तृषा माहिनी असह्य वेदनाथी तेसो सह। “दुघदृघट्टिया " सत्यत भी २३ छ. ' विवण्ण मुहविच्छविया " तेभर्नु भुप सह मान-हास २४ छ भने तेभनी ति ५४ भलिन २३ छ. "विहलमालेणदुब्बला” १२डमा । २वाने ४ाणे ते “विहल " अनिष्ट २०१७ य छ, मेटले तेस।
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર