Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनी टीका अ० ३ सू० २० अदत्तादायिन कोदशं फलं लभन्ते ! ३८३ चित्रादि विज्ञानं कला-धनुर्वेदादिका समयशास्त्रं-आर्हतादिकं, तैः परिवर्जिताः रहिताः 'जहाजायपसुभूया ' यथाजातपशुभूताः यथा जाता=जन्मकाले यादृश गुणविशिष्टास्तथैव स्थिता नतु शिक्षादिना विशेषतां प्राप्ताः एवंभूता ये पशवः बलोवर्दादयस्तद्वद्भूताः तत्सदृशाः ‘अवियत्ता' अयं देशीशब्दः अप्रीतिकाः अप्रीतिकारकाः। निच्चं नीयकम्मोवजीविणो' नित्यं नीचकोपजीविनः = सदा हिंसादिवृत्त्युपजीविनः . लोयकुच्छणिज्जा । लोककुत्सनीयाः - सर्वजनैनिन्दनीयाः ' मोहमणोरहा ' मोघमनोरथाः = निष्फलमनोरथाः, उत्कीर्ण करने रूप विज्ञान से, (कला) धनुर्वेद आदि रूप कलाओं से एवं (समय सत्थ) अहंत प्रणीत शास्त्रों के अभ्यास से, (परिवज्जिया) रहित होकर (जहा जायपसुभूया) यथाजात पशु जैसे बने हुए ये (अवियत्ता) किसी के भी साथ प्रीति नहीं करते हैं क्यों किये (निच्च नीयकम्मोवजीविणो ) नित्य ही नीच कर्मोपजीवी होते हैं। यथा जात पशुभूतका वाच्यार्थ इस प्रकार है-उत्पन्न होते समय पशु जिन गुणों से युक्त रहता है आगे भी वह बडा होने पर भी शिक्षादिक की प्राप्ति से अपनी तरकी नहीं कर सकने के कारण वैसा ही बना रहता हैं, इसी तरह ये अदत्तग्राही व्यक्ति भी होते है हेय और उपादेय के ज्ञान से विकल जैसे ये जन्मते समय में थे वैसे ही ये बड़े होने पर भी रहते हैं, अतःइन्हे यथा जात पशुभूत कहा गया है । (लोय कुच्छणिज्जा) समस्तजन इनकी निंदा किया करते हैं। ( मोहमणोरहा ) इनके जितने भी मनोरथ होते हैं वे सब मोघ-असफल ही रहते हैं। धन माहि सामाथी, सन" समयसत्थ” मत प्रणीत सोना सभ्यासथी. “ परिवज्जिया” २हित डावाने ४२ “ जहा जाय पसुभूया" यथात पशुनाव साता तसा "अवियत्ता” धनी र साथे प्रीति समता नथी, ४१२९४ तेस" निच्च नीयकम्मोवजीविणो " भे॥ नीय
५वी डाय छे. 'यथा जात पशुभूत' ने पाया । प्रमाणे - ઉત્પન્ન થતી વખતે પશુ જે ગુણોથી યુક્ત હોય છે એ જ ગુણોથી યુક્ત મોટું થતાં પણ રહે છે–તે મેટું થાય તે પણ શિક્ષાદિક ની પ્રાપ્તિ વડે પિતાની ઉન્નતિ કરી શકતું નથી. એ જ રીતે અદત્તાદાન લેનાર વ્યક્તિ પણ જન્મ સમયે હેય અને ઉપાદેયના જ્ઞાનથી જેટલી રહિત હોય છે એટલી જ મોટી ઉમરે પણ તે જ્ઞાનથી રહિત રહે છે. તેથી તેને “યથા જાત પશુભૂત ” કહેલ छ " लोयकुच्छणिज्जा" सघालो तेमनी नि। ४२ छ, “ मोहमणोहरा" तमना सा मनाथ। अपूर्ण २९ छ. “ निरासबहुला" छत पर न
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર