Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनी टीका अ०३ सू० २० अदत्तादायिनः कीदृशफलं लभन्ते ! ३८१ नीचकर्मकारकाः 'जीवणत्थरहिया' जीवनार्थरहिताः जीवनस्य-मनुष्यजन्मनः अर्थः = प्रयोजनं धर्मध्यानादि समाचरणं तद्रहिताः, जीवनयापनहेतुद्रव्यहीना वा, 'कीविणा ' कृपणाः दीनाः 'परपिंडतकगा' परपिण्डतर्ककाः परदत्तभोजनगवेषकाः ' दुक्खलद्धारा' दुःखलब्धाहाराः दुःखादुदरपूरकाः ' अस्सविरसतुच्छकयकुक्खिपूरा' अरसविरसतुच्छकृतकुक्षिपूराः= तत्र अरसं-नीरसं-हिङ्ग्यादिभिरसंस्कृतं विरसं-पुराणं तत्रापि पुच्छं=कुलत्थाद्यन्नं येन कनापि प्रकारेण प्राप्त तेन कृतः कुक्षिपूर:-उदरपूरणं यैस्तै तथा 'परस्स' परस्य अन्यस्य ' रिद्धिसकारभोयणविसेससमुदयविर्हि' ऋद्विसत्कारभोजनविशेष समुदयविधि-तत्र ऋद्धिःसम्पत्तिः सत्कार सम्मान तथा भोजनं चेत्येतेषां ये विशेषाः प्रकाराः तेषां यः समुदयः उदयवर्तित्वं तस्य यो विधि-विधानं स तथा तं 'पेच्छंता' प्रेक्षमाणा:= रहता है और यह दारिद्रय इनका सदा तिरस्कार करवाया करता है, इसी लिये ये (णिचं ) सर्वदा ( परकम्मकारिणो ) पर कर्मकारी होते हैं-दूसरोंके घरों में नीच कामों को करने वाले होते हैं, (जीवणत्थरहिया) मनुष्य जन्म के प्रयोजनभूत धर्मध्यानादि सदाचारों से रहित होते हैं, (किविणा ) दीन होते हैं, ( परपिंडतकगा) परपिंड के ऊपर आश्रित रहा करते हैं परदत्त भोजन की इच्छा में रहते हैं, (दुक्खलद्धाहारा) बड़ी मुश्किल से अपने उदर की पूर्ति कर पाते हैं, ( अरसविरसतुच्छकयकुक्खिपूरा ) अरस-हिंग्वादि के वधार से रहित, विरस-पुरानाअति पुराना, उसमें भी तुच्छ-कुलत्थादि अन्न जो इन्हे बडी कठिनाईसे प्राप्त होता है उससे ही ये अपने उदर की पूर्ति करते हैं। (परस्सरिद्धिसकारभोयणविसेससमुदयविहिं पेच्छंता) दूसरोंकी ऋद्धितेभनेसहा ति२६४।२ ४रावे छे, तेथी तम। "णिच्च" सहा “ परकम्मकारिणो" પારકાની નેકરી કરનાર હોય છે, બીજાનાં ઘરમાં નીચ કામ કરનારા હોય छ, “ जीवणत्थरहिया " मनुष्य मिना प्रयोन ३५ धमध्यान मालि सहायाशथी २हित डाय छ, “किविणा" न डाय छ, “ परपिंडतकगा" પરપિંડ ઉપર સદા આધાર રાખનાર હોય છે–પરદત્ત ભેજનની ઈચ્છા રાખનાર हाय छ, ,, दुक्खलद्धाहारा " महा भुश्लीथी पोतानुं पेट मरीश . " अरसविरसतुच्छकयकुक्खिपूरा” २५२स-3 माहिना धा२ २हित, विरसપુરાણું-અતિપુરાણું અને વળી તુચ્છ-કળથી આદિ અન્ન, કે જે તેને ઘણી भुवी भणे छ, तेना 43 ४ तेसो पोतार्नु पेट मरे छ. “परस्स रिद्धिसकारभोयणविसेससमुदयविहिं पेच्छंता” भीनी ऋद्धि-संपत्ति, सार
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર