Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनीटीका अ०३ सू० २१ अध्ययनोपसंहारः तदनुसारेणैव 'गायकुलनंदणो' ज्ञातकुलनन्दनः सिद्धार्थकुलानन्दकरः ' महप्पा' महात्मा परमात्मरूपः 'जिणो' जिनो-रागद्वेषविजेता 'वीरवरनामधेज्जो' वीरवरनामधेयः प्रख्यातनामा भगवान् महावीरः 'अदिण्णादाणस्स' अदत्तादानस्य फलविवागं ' फलविपाकं ' कहेसी' कथितवान् । एवं 'तं' तत् पूर्वोपदर्शित स्वरूपम् , ' तइयपि अदिण्णादाणं ' तृतीयमप्यदत्तादानं-'हर-दह-मरण-कलुस -तासण-परसंतिगिज्झलोभमूलं' हर-दह-मरण-कलुष-त्रासनपरसत्कग्राह्यलोभ. मूलम् , तत्र 'हर ' इति हरणं-परद्रव्यापहरणं, 'दह' दहनंदाहः-हृदयसन्तापः, 'मरणं ' मृत्युः, 'कलुस' कलुषं-मनोमालिन्यं, 'तासण' त्रासनं त्रासः-अकस्माद्भयम् ‘परसंतियगिज्झलोभ ' परसत्वग्राह्यलोभा-परवस्तुग्राहको लोभः, एतेषां मूलं-मूलकारणमिदमदत्तादानम् । एवं ' जाव' यावत्-यावच्छब्देन द्वितीयालीकतीर्थकरों ने इस अदत्तादान का ऐसा ही फल कहा है तथा उन्हीं तीर्थकरों के अनुसार (णायकुलनंदणो) ज्ञातकुलनंदन-सिद्धार्थ के कुलको आनंद कारक (महप्पा) परमात्मरूप (जिणो) रागद्वेष विजेता ( वीरवरनामधेज्जो) श्री भगवान महावीर ने भी (अदिण्णादाणस्स ) इस अदत्तादान का ( फलविवागं) ऐसा ही फल (कहेसी) कहा है । ( एवं ) इस प्रकार (तं ) पूर्वोपदर्शित स्वरूपवाला यह (तइ. यपि ) तीसरा अदत्तादान भी ( हर-दह-मरण-कलुस-परसंतिगिज्जलोभमूलं ) (हर ) परद्रव्य का हरण करना, (दह ) हृदय में संताप पहुँचाना, (मरण ) मृत्यु ( कलुस ) मनोमालिन्य (तासण) अकस्मात् भय होना, (परसंतिगिज्झ लोभमूलं ) दूसरे की वस्तु का हरण कराने वाला लोभ, इन सबका मूल-कारण यह अदत्तादान है। यहां पर
___ " एवमासु" पल माहितीथ ४२. 24महत्ताहीनन माj or ५१ ४डस छ तथा ते ती रीना प्रमाणे “ णायकुलनंदणो" ज्ञात नहनसिद्धाना सुजने मानहाय " महप्पा" ५२मात्म ३५, “ जिणो" द्वेष वित, “वीरवरनामधेज्जो” श्री भगवान महावीरे ५५ " अदिण्णादाणस्स" २॥ महत्ताहानतुं " फलविवाग” मे १ २१ हे छ. " एवं" या प्रमाणे " तं" पूपिशित २१३५पाणु " तइयंपि" alag महत्तहान ५५ " हर-दह-मरण-कलुस-तासण-परसंति गिज्झ लोभमूलं " " हर" ५२व्यतुं १२६॥ ४२, “दह " यमा सता५ ५ यावे, “मरण " मृत्यु, “ कलुस" भननी भसिनता, "णसण" २५४२भात मय थवे, “परसंतिगिज्झ लोभमूलं "
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર