Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रश्रव्याकरणसूत्रे
स्तासां ' वइ ' पतिः, स च महाभीमदर्शनीयः स तथा तं ' दुरणुचर' दुःखेनाऽ नुचर्यते इति दुरनुचरं ' विसमप्पवेस' विषमप्रवेश - विषमः = दुस्साध्यः प्रवेशो यस्मिन् स तथा तं ' दुक्खुत्तारं ' दुःखोत्तारं = दुःखेनोत्तरणं यस्य स तथा तं ' दुरासयं ' दुरासदं = दुष्प्रापं दुराश्रयं = दुःखद स्थानरूपं ' लवणसलिलपुण्णं ' लवणसलिलपूर्ण = क्षारजलभृतम्, ' असियसियसमुच्छियगेहि' असितसित समुच्छ्रितकैः = तत्र असिताः - कृष्णाः सिताः = शुक्लाथ पटाः समुच्छ्रितकाः = उपरि बद्धा येषु प्रवहणेषु तानि तथा तैः 'हत्थंतरगेहिं' दक्षतर कै: - अन्य यानपात्राद्यपेक्षयाऽतिशयवेगशीलैः ' वाहणेहिं' वाहनैः = स्कन्धवाः प्रवहणैः ' अवत्ता ' अतिपत्य = आक्रम्य ' परदव्वहरा' परद्रव्यहराः = परघनापहरणशीलाः ' निरणुकंपा ' निरनुकम्पाः = कृपारहिताः 'णिरवयक्खा' निरपेक्षाः = अपेक्षारहिताः परलोकभयरहिताः नराः = जना ' समुद्दमज्झे ' समुद्रमध्ये 'गंतूण' गत्वा जणस्स ' पोते ' पोतान् = नौकान् ' हणंति ' घ्नन्ति विनाशयन्ति ।। सू - १० ॥
में भयंकर है ( दुरणुचरं ) तथा जिसमें अनुचरण करना-फिरना बहुत ही आयास साध्य - कठिन है । इसीलिये ( विसमप्पवेसं ) जिसमें प्रवेश करना बहुत कठिन होता है । ( दुक्खोत्तारं ) जिसका पार करना बड़ा मुझिकल होता है (दुरासयं ) जो सदा दुःखदस्थानरूप है । ( लवणसलिलपुण्णं) क्षार जल से सदा भरा रहता है ऐसे समुद्र को ( असियसिय समुच्छियगेहिं ) कृष्ण एवं शुभ्रवस्त्र जिनके ऊपर बांधा गया है ऐसी (हत्थंतरगेहिं ) जो अन्य यान पात्रों की अपेक्षा पानी के ऊपर बहुत जल्दी तैरती है ऐसे ( वाहणेहिं ) नौकाओं द्वारा ( अइवइत्ता ) आक्रमित करके (परदव्वहरा ) परद्रव्य को हरण करने वाले ( निरणुकंपा ) निर्दयी ( णिरवयक्खा ) जो अपने परभव को सुधार ने की भावना से रहित होते हैं ऐसे (नरा) चोर मनुष्य ( समुद्दमज्झे गंतूण) छे, " दुरणुचर ” तथा मां અતિશય કઠિન છે, " विसमप्पवेसं " જેમાં પ્રવેશ કરવા ઘણા મુશ્કેલ છે, दुक्खोत्तार" ने योजगवा अतिशय भुडेस छे, " दुरासय" ने सहा हु: अह स्थान ३५ छे, “ लवणसलिलपुष्णं " ने मारां पालीथी सहा भरपूर रहे छे, सेवा समुद्र समुच्चयगेहि " नेमना उपर अजा भने सह वस्त्र मांसां छे सेवी " हत्थंतरगेहिं ” ने अन्य वाहनो उरता पाणी उपर वधारे अडथी तरे छे खेवी ." नौअभी द्वारा 66 वाहणेहिं " આક્રમણ કરીને વ परदव्वहरा પરધનનું હરણ કરનારા, निरणुकंपा " निर्दय मने " णिरवयक्खा " पोताना परलवने सुधारवानी लावनाथी रहित सेवा ' नरा" थोर बोओ। " समुद्दमज्झे
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" असियसिय
66
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अइवइत्ता
66
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર
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