Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रश्रव्याकरणसूत्रे कोत्कीर्णमूर्धजाः कुसुम्भकेनरागविशेषेण उत्कीर्णाः व्याप्ता मूर्धजाः केशा येषां ते तथा रक्तरागरञ्जितकेशधारिण इत्यर्थः, 'छिण्णजीवियासा' छिन्नजीविताशाः =जीवनाशारहिताः 'घुणता' घूर्णमाना=मरणभयव्याकुलत्वात् — वज्झपाणप्पिया वध्यप्राणप्रियाः वध्याः हन्तव्या एव प्राणाः प्रियाः येषां ते तथा, ' तिलं तिलं चेव छिज्जमाणा' तिलं तिलमिवछिद्यमानाः राजपुरुषैः प्रत्यङ्गोपाङ्गं त्रोटयमाना इत्यर्थः, ' सरीर विकत्तलोहिओलित्तकागणिमंसाणि खावियंता' शरीरविकृत्तलोहितावलिप्तकाकणी मांसानि खाद्यमानाः, तत्र-चौरस्येव शरीराद् विकृत्तानि= खण्डितानि लोहितावलिप्तानि यानि काकणी मांसानि-मांसखण्डानि तानि खाद्यमानाः राजपुरुषैः शस्त्रादिकर्तितस्वमांसखण्डानि खाद्यमाना इत्यर्थः, 'पावा' पपााः केश संस्कारित किये जा सकें (कुसुंभमुक्किण्णमुद्धया ) ( कुसुंभग) कुसुम्भ रंग से ( उकिण्णमुद्धया ) इनके केश रंजित कर दिये जाते हैं। (छिन्नजीवियासा ) ये विचारे अपने आपको मानने लगते हैं कि अब हम थोड़ी देर में ही मरने वाले हैं, अतः इनके जीवन की आशा टूट जाती है । (घुण्णंता ) मरणभय से व्याकुल होने के कारण इनका दिमाग चिक्कर खाने घूमने लग जाता है। ( वज्झपाणप्पिया ) इन्हें वध्य-मारे जाने वाले अपने प्राण ही बड़े प्रिय होते हैं। अर्थात् उस समय इन्हें कोई भी वस्तु प्रिय नहीं होती है, केवल अपने प्राण ही-जो कुछ देर बाद नष्ट हो जानेवाले हैं सबसे अधिक प्रिय लगते हैं । (तिलं तिलं चेव छिज्जमाणा ) राजपुरुष इनके अंगोंपांगों को तिल तिल की तरह काट २ कर अलग २ कर डालते हैं। ( सरीरविकत्तलोहिओलित्तकागणिमंसाणि खावियंता) वे राजपुरुष (सरीराविकत्त) काटे गये इनके शरीर से निकले हुए ( लोहिओवलित्त ) लोही से लिप्त ऐसे ( कागणिमंसाणि) मांस के छोटे छोटे टुकड़ों को (खावियंता) उन्हें खिलाते हैं (पावा )
थी “ उक्किण्णमुद्धया" तेमन! वाण २०ी नावामां आवे छे. “ छिन्नजीवियासा" ते मिया२१ समय छ हुवे था सभयनमहमान छीस, मटसे तेमनी वानी म॥२॥ तूट नय छ घुण्णंता" भातना भयथी व्याण थवाथी तमना भा०४ २७२ २४२ धूमका साणे छ “ वज्झपाणप्पिया" તેને વધ્ય–જેને વધ થવાને છે તેને પિતાના પ્રાણ જ સૌથી વહાલા લાગે છે, એટલે કે તે સમયે તેને બીજી કઈ પણ ચીજ ગમતી નથી, પણ થોડા સમય પછી જેને નાશ થવાને છે તે પ્રાણુ જ સૌથી વધારે પ્રિય લાગે છે. " तिलंतिलं चेव छिज्जमाणा" २००४ पुरुषो तो तेमन An Siगाना त त 41 १४॥ ४२ छ " सरीरविकत्तलोहिओलित्तकागणिमंसाणिखावियंता " તે રાજપુરુષે લેહીથી ખરડાયેલા માંસના નાના ટુકડાઓ તેમને ખવ
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર