Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनी टीका अ. ३ सू० ११ तस्करकार्यनिरूपणम् तेषु-प्रदीप्तेषु यानि सरसानि-रुधिरमांसादिसहितानि अतएव दग्धानि ईषद्भस्मीभूतानि तानि कृष्टानि-श्वशृगालादिभिश्चितातो निष्काशितानि कलेवराणिक मृतकशरीराणि यत्र तत्तथा तत्र श्मशाते । पुनः कीदृशे-'रुहिरलित्तवयणअक्खयखादियपीयडाइणिभमंतभयंकरे ' रुधिरलिप्तवदनाऽक्षतखादितपीतडाकिनी भ्रमद् भयङ्करे-तत्र रुधिरेण लिप्तानि वदनानि = मुखानि तथा अक्षतानि समग्राणि खादितानि मृतकानां शरीराणि तथा पीतानि रुधिराणि याभिस्तास्तथा भ्रमन्त्यश्च या डाकिन्यस्ताभिर्भयङ्करे, 'जंबुयखिक्खियंते' जम्बुकानां 'खिखि' इति शब्दयुक्ते तथा 'घूयकयघोरसद्दे ' घूककृत घोरशब्दे-धूकैः-उलूकैः कृतः घोरः भयङ्करः शब्दस्तेन युक्ते तथा 'वेयालुट्ठियविसुद्धकहकहेंतपहसियबीहणगनिरभिराभे' वे. तालोत्थितविशुद्धकहकहायमानप्रहसितभीषणकनिरभिरामे = वेतालेभ्यः = विकृत पिशाचेभ्यः उत्थितं समुत्पन्नं विशुद्धम् अन्यशब्दाऽमिश्रितं यत् कहकहायमानं= (सरस) रस-रुधिर आदिसे लिप्त मुर्दे (दरदन) पूरे नहीं जल सकने के कारण (कडियकलेवरे) कुत्ते एवं श्रृगाल आदि द्वारा चिताओंसे बाहिर निकाल लिये जाते हैं (रुहिरलित्तवयण ) जिनके मुख रुधिरसे लिप्त हो रहे हैं, तथा (अक्खयखादियपीय) जिन्होंने समग्ररूपसे मृतक कलेवरोंको खाया है और उनकाखून पी लिया है ऐसी (डाइणीभमंतभयंकरे) घूमती हुई डाकिनियोंसे जो भयंकर बने हुए हैं (जंबुयखिक्खियंते) तथा जो गीदडों के 'खि-खि ' शब्दोंसे युक्त हो रहे हैं (घूयकयघोरसद्दे) उल्लू जहां घोर शब्द कर रहे हैं, तथा जहां (वेयालुट्टिय) वेताल विकृत बनकर जोर२ से कह कहाय मार कर हँसा करते हैं । (विसुद्धकह कहेंत पहसिय) उनका यह हँसना जहाँ अन्य और शब्दों से मिश्रित नहीं हो रहा है-केवल " कह कह " ऐसी ही ध्वनि जहां उनके मुख से निकल रही है, इस२स-रुधिर माहिया १२येला मुहां, “ दरदड्ढ" ५२॥ जी शसा नपाथी "कड्ढियकलेवरे" तस. शियाण माहि द्वारा यितासमांथी मा२ मेयी ४ढाय छ. “ रुहिरलित्तवयणअक्खयखादियपीयडाइणीभमंतभयंकरे " " रुहिरलित्तवयण" જેમનાં મુખ લેહીથી ખરકાયેલાં છે તથા જેમણે સંપૂર્ણ રીતે મૃતશરીરે નું लक्षायु छ भने तेमनुवाडी पीछे सेवी " डाइणीभमंतभयंकरे" त्यां लमती शाथी रे लय ४२ सागते, “ जंबुयखिक्खियं ते " तथा र शियाणाना "4-मि" शहाथी युक्त छ, “घूयकयघोरसद्दे” धुवा या लय'४२ शण्हो ४२ छे, तथा न्यो “ वेयालुद्विय " बेतात मनीन ने२ शाश्थी ५७4312 सी २ छ, “ विसुद्धकहकहेंत पहसिय " तेभनु ते हास्य न्या मीन કોઈ શબ્દ સાથે મિશ્રિત થતું નથી–કેવળ “કહ કહ” એ વનિજ તેમનાં
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર