Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनी टीका अ० ३ सू० ६ सङ्ग्रामवर्णनम्
२८७ 'विघुट्ट' विघुष्ट-विरूपघोपकरणम् ' उकिटुकंठकयसद' उत्कृष्टकण्ठकृतशब्द:= हर्षात् उत्कृष्टः-अतिशयितः कण्ठेन कृतः शब्दः गलगलाटरूपः स एव 'भीमगज्जिय' भीमगर्जितं-मेधध्वनिश्च, इत्येतानि हयहेषितादीनि सन्ति यत्र स तथा तस्मिन् । पुनः कीदृशे ? तदाह-'सयराहहसंतरुसंतकलकलरवे' सयराहहसत् रुष्यत् कलकलरवे-'सयराह ' इति युगपत् हसतां रुष्यतां क्रुध्यतां सैनिकानां कलकलरवः कोलाहलो यत्र स तथा तत्र । तथा-' आसूणियवयणरुद्दभीमदसणाधरोहगाढदट्ठसप्पहारकरणुज्जयकरे' आशूनितवदनरौद्रभीमदशनाधरोष्ठगाढदृष्टसत्यहारकरणोद्यतकरे-तत्र आशूनितेन ईपत्स्थूलीकृतेन वदनेन=मुखेन ये रौद्राः क्रोधचण्डास्ते तथा, तथा-भीम-क्रोधावेशाद् भयङ्करं यथास्यात्तथा दशनैः दन्तैरधरोष्ठं गाढं दृष्टं यैस्ते तथा परसुभास्तेषां सत्पहारकरणे = शोभनतया शस्त्र गर्जना हो रही है ( छिलिय ) · सी सी ' इस प्रकार का जहां सीत्कार शब्द हो रहा है, ( विघुट्ट) योद्धाओं द्वारा विरूपघोष जहां किया जा रहा है, ( उकिट्ठकंठकयसद्द ) हर्ष से फूले हुए जहां अपने २ कंठों से उत्कृष्ट गलगलाट रूप शब्द कर रहे हैं (भीमगज्जिए ) इस कारण ऐसा वहां ज्ञात होता है कि मानों मेघ ही यहां गर्ज रहा है। ( सय. राहहसंतरुसंतकलकलरवे ) ( हसंत ) हँसते तथा ( रुसंत ) क्रोध से रुष्ट हुए सैनिक जनों का (सयराह ) एक साथ जहां पर ( कलकलरवे) कलकल शब्द हो रहा है, तथा जहां सैनिकजन (आसूणियवयण ) अपना२ मुँह थोड़े से रूपमें फुलाकर (रुद्द ) क्रोध से चण्ड बन रहे हैं तथा ( भीम ) क्रोध के आवेश से भयङ्कररूप में जहां वे ( दसणाधरोटुगाढदट्ठ) अपने २ अधरोष्ठों को दृढ़ता पूर्वक डस रहे हैं, तथा (सप्प“छिलिय" 'सीसी' सेवो या सि२ हो २४ २ह्या छ. तथा "विघुटु" योद्धामा द्वारा वि३५ घोष न्यो ४२॥ २ह्यो छ, “ उकिटकंठकयसद" मान थी ફુલાઈ ગયેલા સૈનિકે જ્યાં પિત પિતાના કંઠમાંથી ઉત્કૃષ્ટ ગર્જના જેવા શબ્દ ४ढी २॥ छ, “ भीमगज्जिए" ते ॥२णे त्या भे १ ना ४२॥ रह्यो डाय ते साणे छ. “सयराहहसंतरुसंतकलकलरवे" " हसंत” उसता तथा “ रुसंत" अपायमान थये। सैनिन। — सयराह" मे साथे न्यi " कलकलरवे" ४४ ४ -४पनि थ रह्यो छ, तथा न्यो सनि । “ आसूणि य वयण" पोत पोतनुं भु५ था प्रभामा मुसापान ' रुद्द” अधथी उध सनी २डस छ, तथा " भीम " ओधना मावेशमा भय ४२ रीते ज्यां तमा " दसणाधरोढगाढदट्ट ” पातपातानो अपरे।ठाने ४ढताथी ४२७ २९
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર