Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनी टीका अ० ३ सू० ८ सङ्ग्रामवर्णनम्
२९५ पूर्वोदितमेव संक्षेपेण प्रतिपादयन्नाह-' वसु' इत्यादि।
मूलम्--वसुवसुहविकंपियव्व-पच्चक्खापउवणं परमरुदवीहणगं दुप्पवेसतरंग-अभिबडिंति-संगामसंकडं, परधणं महंता । अवरे पाइक्कचोरसंघा सेणावइचोरवंद-पागडियाय अडविदेसदुग्गवासी काल-हरिय-रत्त पीय सुकिल्ल-अणेगसयचिंधपट्टबंधा परविसए अभिहणंति लुद्धा धणस्स कजे ॥ सू० ८॥ ___टीका-' वसुवसुहविकंपियव्य ' वसुवसुधाविकम्पिता इव-तत्र वसवः=देवा वसुधा पृथ्वी च विकम्पिता:-त्रासिता यैस्ते तथा तथैवापरे राजानः 'परधणं' परधनं ' महंता' काङ्क्षन्तः परद्रव्यलुब्धा सन्तः 'पच्चक्खपिउवणं' प्रत्यक्षपितृवनं साक्षात् श्मशानमिव 'परमरुद्दवीहणगं' परमरुद्रभयानकं अत्यन्तप्रचण्डभयजनक ' दुप्पवेसतरगं' दुष्प्रवेशतरक-अत्यन्तदुर्गम वीराणामपि, का कथा कातराणामित्येवंविधमपि 'संगामसंकडं' संग्रामसंकट-गहनयुद्ध ' अभिवडंति' अभिपतन्ति प्रविशन्ति । तथा ' अवरे ' अपरे ‘पाइकचोरसंघा' पदातिकचौर
फिर इसी बात को संक्षेप से कहते हैं-' वसुवसुह ' इत्यादि।
टीकार्थ-(वस्तुवसुहविकंपियन्व) जिन्होंने देवोंको एवं पृथ्वीमंडलको भी कंपित जैसा करदिया है ऐसे और भी अनेक राजा (परधणंमहंता)दूसरों के धनमें लुब्ध होकर (पच्चकखपिउवणं) साक्षात् पितृवन जैसे-प्रत्यक्ष में श्मशान सरीखे प्रतीत होने वाले तथा ( परमरुद्दबीहणगं) जो अत्यंत प्रचंड एवं भयजनक हो रहा हो, तथा ( दुप्पवेसतरगं) वीरों के लिये भी जो अत्यंत दुर्गम बना हुआ हो ऐसे ( संगामसकडं ) गहनयुद्ध में ( अभिवडंति ) प्रवेश कर जाते हैं। तथा (अवरे ) दूसरे भी (पाइक्क
इवे से ४ वातने सक्षिप्तमा ४ छ- " वसुवसुह" त्यादि
.-" वसुवसुहविकंपियव्व" भो हेवोने तथा पृथ्वीम ने ५५ लणे पायमान ४२ ही छे अवां भीon ५५ अने रातो “ परधणं महता" भीतना धनमा दु थने “ पचक्खपिउवणं " प्रत्यक्ष पितृवनाप्रत्यक्ष श्मशान 24 साता, तथा “परमरुद्दबीहणग” २ सत्यत प्रय भने सय ४२ लासतुं डाय, तथा “दुप्प वेसतरगं” वाशने भाट पारे अतिशय दुभ डाय मेव “संगामसंकड" उन युद्धमा “ अभिवड ति" प्रवेश ४२ छ. तथा “ अवरे" मीad ५ " पाइक्कचोरसंघा" पहाति३५
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર