Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनी टीका अ०३ सू० ९ अदत्तादानविषयसागरनिरूपणम् २९९ पक्खलिय - चलिय-विपुलजलचक्कवाल-महानईवेग-तुरिय आपूरमाण-गभीरविपुल-आवत्त-चंचल-भममाण-गुप्पमाणु-च्छलंत-पच्चोणियंत – पाणिय-पधाविय-खर-फरुस-पयंड-वाउलिय-सलिल-फुटुंत-वीचि-कल्लोल-संकुलं ' समन्ततः क्षुभितलुलितचोक्षुभ्यमाणमस्खलितचलितविपुलजलचक्रवालमहानदीवेगत्वरितापूर्यमाणगभीरविपुलावर्तचञ्चलभ्रमद्गोप्यमानोच्छलत्पत्यवनिवृत्तपानीयप्रधावितखरपरुषप्रचण्डव्याकुलितसलिलस्फुटद्वीचिकल्लोलसङ्कुलम् , तत्र 'समंतओखुभिय' समन्ततः क्षुभितं-पवनाऽऽघातेन सर्वतो व्याकुलितं 'लुलि य' लुलितं च तटप्रदेशमाप्तं तथा 'खोखुब्भमाण' चोक्षुभ्यमाणम् अतिशयेन पुनः पुनर्वा महामत्स्यादिभिर्व्याकुलीक्रियमाणं 'पक्खलिय' प्रस्खलितं = पर्वतादीनां महाशिलादिष्वाघातेन स्खलितं पश्चात् 'चलियं ' चलितं-स्वस्थानाद् गमनं प्रवृत्तं 'विउल ' विपुलं-विस्तीर्ण 'जलचक्कवाल' जलचक्रवालं जलसमूहः यत्र ताः - क्षुभितलुलित चोक्षुभ्यमाणप्रस्खलित चलितविपुलजलचक्रवालास्तथा बिधाश्च या ' महानईवेग ' महानद्याः गङ्गायमुनाद्यास्तासां वेगैः 'तुरिय' त्वरितं =शीघ्रम् ' आपूरमाण' आपूर्यमाणो यः सागरः स तथा। गभीरा:-आगाधाः विपुला:-विशालाः ये ‘आवत्त' आवर्ताः चक्राकारजलभ्रमाः तथा चञ्चलं यथास्यात्तथा 'भममाणा' भ्रमन्ति 'गुप्पमाणा' गोप्यमानानि व्याकुली भवन्ति से चारों तरफ क्षुब्ध हुआ (लुलिय) तट प्रदेश को प्राप्त हुआ-तटतक पहुँचा हुआ ( खोक्खुन्भमाण ) महामत्स्यादि जलचर जन्तुओ से व्याकुल किया गया (पक्खलिय) पर्वतादि की महाशिलाओं आदि के आघात से स्खलित हुआ फिर ( चलिय) चलित-स्वस्थान से चलित हुआ ( विउला ) विस्तीर्ण (जलचकवाल ) जलसमूह जहां है ऐसी (महानईवेगो) गंगा यमुना आदि महानदी के वेगों से ( तुरिय ) त्वरित-शीघ्र (आपूरमाण) जो भरा जा रहा है। तथा जो (गभीर) अगाध (विउल) विशाल (आवत्त) आवत्तों - ( चक्राकार जलभ्रमणों) से तथा ( चंचल ) चपल ( भममाण ) घूमते हुए (गुप्पमाण ) व्याकुल हुए याभे२ क्षु५५ धने “ लुलिय” प्रदेश सुधी पांथाने “खोक्खुब्भमाण" महामत्स्यादि जय२ ७ द्वारा व्याज ४२॥ये “पक्खलिय” पाहिनी भाशिवाय माहिना माघातथी २५सित ने पछी “ चलिय" यसितस्वस्थानथी यसित धने “ विउल " विस्ती “ जलचकवाल" समूह orयां छ मेवी ‘महानईवेगो' ॥ यमुना माहि महानहीसाना वेगथी 'तुरिय'
उपथी 'आपूरमाण' २ मरा २ छ. तथा 'गभीर' मा 'विउल" विश " आवत्त" भोथी तथा " चंचल" या "भममाण" धूमता
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર