Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनीटीका अ० ३ सू० ६ सङ्ग्रामवर्णनम् प्रक्षुभिता:-क्षोभमापन्नाश्च ये कातरा जनास्तेषां विपुल: विशालः घापो ध्वनियस्मिन् स तथा तस्मिन् ' हयगयरहजोहतुरियपसरियरयुद्धयतमंधयारबहुले' हयगजरथयोधत्वरितप्रसृतरजउद्धततमाऽन्धकारबहुले-तत्र हयाः = अश्वाः, गजाःप्रसिद्धाः, रथाः-स्यन्दनाः, योधाः-सुभटास्तेषां पादाभिघातेन त्वरित-शीघ्रं प्रसृतं-विस्तारमुपगतं रजः-धूलो, तद् उद्धततमम्-अतिशयेनोद्धृतमुड्डीयमानं तेनाऽन्धकावबहुले। तथा “कायरनरनयणहिययवाउलकरे" कातरनयनहृदयव्याकुलकरे, तत्र = कातराः-अधीराः युद्धे पलायनस्वभावा ये नरास्तेषां नयनहृदययोः व्याकुलकरे क्षोभजनके तथा 'बिलुलियउक्कडवरमउडकिरिडकुडलोडुदामाडोविए ' विलुलितोत्कटवरमुकुटकिरिटकुण्डलोडुदामाटोपिते-तत्र विलुलितानि=इतस्ततश्चलितानि उत्कटवराणि उत्तमप्रकृष्टानि यानि मुकुटानि= प्रसिद्धानि किरीटानि-त्रिशिखरशिरोभूषणानि कुण्डलानि कर्णाभरणानि उडुदामानि-नक्षत्रमालाकारभूषणानि च तैराटोपितः विस्तारितो यः स तथा तस्मिन् वीरों के एवं ( पक्खुभिय ) क्षुभित हुए कायर जनों के (विउलघोसे) विपुल घोषों से व्याप्त हो रहा है, तथा ( हयगयरहजोहतुरियपसरियरययुद्धयतमंधयारयहुले) (हय) घोड़ों के, (गय ) गजों के, ( रह) रथों के, (जोह) योद्धाओं के, ( उद्धयतम ) पैरों के अत्यन्त आघात से उडकर (तुरियपसरिय ) शीघ्र फैली हुई (रय ) धूली से जहां पर ( अंधयारबहुले) अंधकार ही अंधकार हो रहा है (कायरनरनयणहिययवाउलकरे) कायरजनों के नयन और हृदयको जो व्याकुल बनारहा है । ( विलुलिय ) इधर उधर लटकते हुए ( उक्कडवर ) उत्तमोत्तम ऐसे ( मउड ) मुकुटों से, (किरीड ) किरीटों से-तीनशिखर वाले शिरो भूषणों से ( कुंडल ) कुण्डलों से, ( उडदाम ) नक्षत्र मालाकार भूषणों नाथी, “ गंदीय" मान हित मनेसा शासपाना भने “पक्खुभिय" शाम पामे य२ नाना “ विउलघोसे" विघुस माथी व्यास ४ गयु छ. तथा . हयगयरहजोहतुरियपसरियरयुद्धयतमंधयारबहुले ” “ हय " घाना, “गय" हाथी-साना, “रह" २थाना “ जोह " योद्धासाना “ उद्धयतम" पाना अत्यात माघातथी राने "तुरियपसरिय" ५थी सायसी" रय" धूथी यां "अंधयारबहुले” भतिशय २ २ गयो छ, “ कायरनरनयणः हिययवाउलकरे " य२ सोना नयन अने हयने ? व्या ४२॥ २९स छ, "विलुलिय" मी तही सटता “ उक्कडवर" उत्तमोत्तम “ मउड " भुटाथी, "किरीड" ठिटीथी-त्र शिमराज शिरोभूषणथी, “कुडल' माथी "उडुदाम" नक्षत्र मादा२ सूषणेथी, " आडोविए" ने 215२ युक्त भनेर छ. "पराड"
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર