Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रश्रव्याकरणसूत्रे विवक्षिताः किन्तु शमदमादेवस्तुत्वाभावान्न तस्यानुष्ठानवतां ऋषित्वसिद्धिः। नेदं सत्यं, शास्त्राध्ययनशिष्यशिक्षापरम्पराऽनादिप्रवाहस्याहदायभावे उच्छेद प्रसङ्गात् । 'धम्माधम्मफलं वि ' धर्माधर्मफलमपि = देवलोकनरकादिप्राप्तिलक्षणं किश्चित् ‘बहुयं' बहुकम्=अधिकं 'थोवं वा' स्तोकमल्पं नास्ति, धर्माधर्मयो. रप्रत्यक्षत्वेन वस्तुत्वाभावात् ' तम्हा' तस्मात् न किमपि सुकृतादिकमिति एवं 'जाणिऊण' ज्ञात्वा 'जहा' यथान्येन केनापि प्रकारेण सुबहु अत्यन्तम् 'इंदियाणुकूलेसु' इन्द्रियानुकूलेषु श्रोत्रादीन्द्रियपियेषु ' सव्वविसएसु' सर्वविषयेषु णभूत व्यक्ति ही ऋषि कहलाते हैं, किन्तु शम, दम आदि ही जब वस्तु भूत-वास्तविक-नहीं हैं तो फिर इनके अनुष्ठान करने वलो में ऋषित्व की सिद्धि कैसे हो सकती है-मृषावादरूप ही है-सत्य नहीं है, कारणशास्त्राध्ययन, शिष्यशिक्षा आदि का जो यह अनादिकाल से परम्परारूप से प्रवाह चला आ रहा है वह यदि तीर्थकर आदि न हुए होते तो उच्छेद को प्राप्त हो जाता। इसी तरह से (धम्माधम्म फलं वि न अस्थि किंचिबहुयं वा थोवं वा ) जो और यह कि-"धर्मका फल स्वर्गादि की प्राप्ति और अधर्म का फल नरक आदि की प्राप्ति होना यह न थोड़े रूप में है और न बहुत रूप में है, क्यों कि धर्म और अधर्म ये अप्रत्यक्षभूत हैं अतः इनमें वस्तुतः-अर्थ क्रिया कारित्व का अभाव है । (तम्हा) इसलिये जब पुण्यपाप आदि कोई वस्तुभूत पदार्थ हैं ही तब ( एवं जाणिऊण ) ऐसा समझकर ( जहा ) जिस किसी भी तरह से (सुबहु इंदियाणुकूलेसु ) इन्द्रियों को अत्यन्त प्रिय लगने वामें (सविसएसु) કહેવાય છે, પણ શમ, દમ આદિ જ જે વાસ્તવિક ન હોય તે તેનું અનુઠાન કરનારમાં ષિત્વની સિદ્ધિ કેવી રીતે સંભવી શકે છે–એ તો મૃષાવાદ રૂપ જ છે–સત્ય નથી, કારણ કે શાસ્ત્રાધ્યયન, શિષ્યશિક્ષા આદિને જે પ્રવાહ અનાદિકાળથી પરંપરા રૂપે ચાલ્યો આવે છે તે જે તીર્થકર આદિ થયાં ન हात त छ-नाश पाभ्य। डात. या प्रमाणे “धम्माधम्मफल' विन अस्थि किचि-बहुय वा थोवं वा” भी मा प्रा२नी मान्यता " धनु ફળ સ્વર્ગાદિની પ્રાપ્તિ અને અધર્મનું ફળ નરકાદિથી પ્રાપ્તિ તે થોડા કે વધારે પ્રમાણમાં અસ્તિત્વ ધરાવતું નથી, કારણ કે ધર્મ અને અધર્મ અપ્રત્યક્ષભૂત छ तेथी तभनाभा स्तुत्व-मर्थ लिया रिस्पनी मनाव छ. “ तम्हा" तथा ने पुन्य५।५ मा १२तुभूत पहा छ २१ नही " एवं जाणिऊण" मे सभने ' जहा " 4] ५४" सुबहु इंदियाणुकूलेसु"न्द्रियाने मत्यन्त प्रिय साणे ते “ सव्वविसएसु" Awell सपा विषयोमा
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર