Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनी टीका अ०२ सू०१५ मृषावादिनां नरकादिप्राप्तिरूपफलनिरूपणम् २४७
'दुब्भगा ' दुर्भगाः = भाग्यहीनाः तथा ' अकंता ' अकान्ता = अमनोज्ञा: ' काकस्सरा' काकस्वराः = काकस्य स्वर इच कठोरः स्वरो येषां ते काकस्वराः= :-नीरसवचना: ' ही भिन्नघोसा' हीनभिन्न घोषाः = हीनः = हस्वः भिन्नः - गर्दभवत् त्रुटितः घोषः स्वरो येषां ते तथा मन्दघुघुरितस्वरा: ' विहिंसा' विहिंस्या : - जनैस्ताङनतर्जनादिभिर्विशेषेण हिंस्यन्ते ये ते विहिंसकाः 'जडवहिरमूया' जडवधिरमूकाः - जडा: - ज्ञानशून्या बधिराश्च श्रवणशक्तिविकलाः ' मम्मणा ' मन्मनाः - अव्यक्तवचनाः ' अकंतबिकयकरणा ' अकान्तविकृतकरणाः = अकान्तानि - अमनोज्ञानि विकृतानि = विरूपाणि च करणानि इन्द्रियाणि चक्षुरादीनि येषां ते तथा विकृतेन्द्रिया इत्यर्थः, ' णीया' नीचा: - नीचजातिकुलगोत्रादिभिरधमाः, 'णीयजण
( अचेयणा ) इनकी चेतना शक्ति विशिष्ट चेतना शक्ति से रहित होती है ( दुब्भगा ) ये भाग्य हीन होते हैं ( अकंता ) मनोज्ञ नहीं होते हैं ( काकस्सरा ) काक के स्वर जैसा कठोर - अरुचिकारक- इनका स्वर होता है और वे ( ही भिन्नघोसा ) हीन ह्रस्व, भिन्न- गधे के स्वर की तरह बीच २ में त्रुटित स्वरवाले होते हैं (विहिंसा ) मनुष्य इनसे पीछे पड़कर इन्हें ताडन-र्जन आदि द्वारा विशेषरूप से दुःखित करते रहते हैं ( जडबहिरमूया ) ये जड-ज्ञानशून्य, बधिर - श्रवण शक्ति विकल और गूँगे होते हैं (मम्मणा) इनके वचन स्पष्टरूप में मुख से नहीं निकलते हैं अर्थात्-बोलते समय तुतलाते अथवा हलकाते हैं । ( अकंत विकयकरणा) इनकी चक्षुरादिक इन्द्रियां अमनोज्ञ एवं विकृत रूप रहा करती हैं ( णीया ) इनकी जाति, कुल एवं गोत्र आदि सब अधम होते हैं,
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पशु वधारे भविन होय छे, " अगंधा " मे आगे तेमनां शरीरमां दुर्गंध भावती होय छे; “ अचेयणा " तेभनी येतना शक्ति विशिष्ट येतना शक्तिथी રહિત હાય છે, दुब्भगा " तेथे उभनसीम होय छे, " अकंता " मनोज्ञ होता नथी, 66 काकस्सरा ” કાગડાના આવાજ જેવા કશ તેમના આવાજ होय छे भने तेथे। " हीणभिन्नघोसा " हीन-हस्व, लिन्न-गधेडाना स्वरनी भेस वरचे वरचे त्रुटित स्वरवाजा होय छे, " विहिंसा" भाणुसो तेमनी પાછળ પડીને તેમને માર, કોધભર્યા શબ્દો આદિ દ્વારા વધારે દુ:ખી કર્યા કરે छे. जडबहिरमूया " तेथे ४३ - ज्ञानशून्य महेश भने मूंगा होय छे, ” તેના શબ્દો સ્પષ્ટ હાતા નથી એટલે તે ખેલતી વખતે તે तोतडाय छेडे खडी खडीने जोते छे. " अकंतविकयकरणा ” तेभनी यक्षु आहि ईन्द्रियो अमनोज्ञ भने विद्रुत होय छे, " णीया " तेभनी लति, डुण
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मम्मणा
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર