Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
%3
२५६
प्रश्नव्याकरणसूत्रे अप्रत्ययकारकं, 'परमसाहुगरहणिज्जं परमसाधुगर्हणीयं परपीडाकारकं 'परमकिण्हलेससहियं' परमकृष्णलेश्यासहितं ' दुग्गइविणिवायवडणं ' दुर्गतिविनिपातवर्द्धनं 'भवपुणब्भवकरं ' चिरपरिचियं' चिरपरिचितम् , 'अणुगयं' अनुगतम्, 'दुरत' दुरन्तम् । एतानि सर्वाणि पदानि पूर्वमस्यैव द्वारस्य प्रथमसूत्रे व्याख्यातानि ततो विज्ञेयम् । 'तिवेमि' पूर्ववत् ॥सू०१६॥ इतिश्री-जैनाचार्य-जैनधर्मदिवाकर-पूज्य श्री घासीलालव्रतिविरचितायां
प्रश्नव्याकरणसूत्रस्य मुदर्शिन्याख्यायां व्याख्यायां हिंसादि पञ्चास्त्रवद्वारेषु मृषावादाख्यं द्वितीयम्
आस्रव (अधर्म) द्वारं समाप्तम् ॥२॥ निष्फल है. निकृति, साति के प्रयोग से बहुल है अर्थात् कपट बहुल है। ( णीयजणनिसेवियं ) जाति, कुल आदि से अधम बने हुए व्यक्तिओं द्वारा निषेवित है। (निसंसं ) क्रूर-अथवा प्रशंसा से रहित है । अप्रत्यय-अविश्वास का कारक है । ( परमसाहुगरहणिज्जं ) परमसाधु-तीर्थकरों द्वारा गर्हणीय है । ( परपीडाकरणं ) दूसरों को पीड़ा पहुंचाने वाला है । ( परमकिण्हलेससहियं ) अत्यन्तमलिन आत्म परिणति से युक्त है ( दुग्गइविणिवायवडणं ) दुर्गति का वर्धक है। (भवपुणब्भवकरं ) पुनः पुनः जन्म प्रदाता है । (चिरपरिचयं ) चिरपरिचित यह जीवों के साथ अनेक भवों की परम्परा तक रहनेवाला है। (अणुगयं) भव भव में साथ चलने वाला है । ( दुरंतं ) इसका फल दुरन्तकटुफलका देने वाला है"त्ति बेमि" इसकी व्याख्या की जा चुकी है।सू-१६॥
॥ द्वितीय आस्रव-'अधर्म' द्वार समाप्त ॥ छ । ४५८ भय छ “ णीयजणनिसेवियं " नति, गुण माहिथी सयम सवी व्यतिम्मा द्वारा सेवाये। छ. “निसंसं" दूर-मेटले प्रशसाथी रहित छ अप्रत्यय-मविश्वास पनि ४२॥२ छ. “परमसाहुगरहणिज्ज" ५२भसाधुतीथ । द्वारा निध छ. “परपीडाकरण” भीतने पी पांयाउना२ छे. " परमकिण्हलेससहिय '' सत्यात मलिन यात्म परिणतिथी युस्त छ. “ दुग्गइ विणिवायवड्ढणं" दुतर्नु पधारना२ छ. “ भवपुणब्भवकर" ३१ शशन
म. सेवावना२ छ. “ चिरपरिचियं” चिरपरिथित सबु ते वानी साथ भने भवानी ५२ ५२॥ सुधी २नार छ. “ अणुगयं" ४२४ सभा साथे यासनाइ छ “दुरंत" तेनुं ३॥ हुरन्त छ-७४ ५८ हुना२ छ. “त्तिबेमि" આ વાક્યને અર્થ આવી ગયેલ છે ( સૂ-૧૬) આ રીતે હિંસાદિ પંચાસવ દ્વારમાં પ્રાણવધ નામનું
भानु मास (मध)द्वार सभात थयुं.
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર