Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुर्शिनी टीका अ० ३ सू० १ अदत्तादानस्वरूपनिरूपणम् व्यसनं राजादि कृतोपद्रवः, इत्येतेषां मार्गणम् गवेषणम् , तथा उत्सवेषु-विवाहादिलक्षणेषु मत्तानां मद्यपानाद्यासक्तानां अत एव प्रमत्तानाम्-असावधानानां प्रसुप्तानां निद्रितानां च वचन-धनापहरणं, तथा आक्षेपणं-मन्त्रौषध्यादिभिश्चित्तविक्षेपकरणं, घातनं आणवियोजीकरणं वयस्यादिभिस्ताडनं वा तेषु पराः= तथा अनिभृतः अशान्तः परिणामः = अन्तःकरणत्तिविशेषः येषां ते तथा, ते च ते तस्कराजनाः चौरगणास्तैबहुमत सातिशयमादृतं स्वीकृतं यत्तत्तथाभूतमदत्तादानम् ' अकलुणं' अकरुण-दयारहितं निर्दयजनमवर्तितत्वात् 'रायपुरिस. प्राप्ति आदिरूप आपत्ति की, ( वसण ) व्यसन की-राजा आदि द्वारा कृत उपद्रव की-भी ( मग्गण ) गवेषणा-ताक में तत्पर रहते हैं। तथा ( उस्सव ) विवाह आदि उत्सवों में (मत्तप्पमत्त ) मद्यपान आदि के कर लेने से असावधानी में पडे हुए मस्त व्यक्तियों के तथा ( पसुत्त ) निद्रा में पडे हुए व्यक्तियों के (वंचण ) धनापहरण करने में (आखिवण ) आक्षेपणमंत्र औषधि आदिद्वारा चित्त के विक्षेप करने में, तथा (घायणपर ) प्राणों के अपहरण करने में अथवा अपने मित्रादिकों द्वारा ताडन करवाने में तत्पर रहा करते हैं। ( अइणिहुयपरिणाम ) इस अदत्तादानरूप कुकृत्य को करने वाले जीवों के परिणाम-अन्तः करण की वृत्ति-अशान्त रहती हैं। (तकरजणबहुमयं ) यह अदत्तादान चोर व्यक्तियों द्वारा ही सातिशयरूप में आहत हुआ हैं। अतः यह दुष्कर्म (अकलुणं ) निर्दयजनों द्वारा प्रवर्तित होने के कारण स्वयं दया रहितरूप है इसीलिये ( रायपुरिसरक्खियं ) राजपुरुषों द्वारा यह निषिद्ध २९ छ. “ विधुर" विधुरनी- प्राप्ति मा ३५ आपत्तिनी," वसण" व्यसननी हि द्वारा ४२॥ये उपद्रवनी-4 “ मग्गण ” गवेष!-तपासने भाटे तैया२ २ छ. तथा “ उत्सव " विवाह माहि उत्सवमा, “ मत्तप्पमत्त" मधपान माहिरीने असावधानीमा २७ भरत व्यतियाना तथा “पसुत्त" निद्रामा ५ व्यतिमाना “वंचण" बनने उरी देवाने “ आखिवण" माक्षेप-मत्र औषधि माहि २१ सित्तमा विपिन ४२वाने तथा "घायण पर" प्राणे। हरी सेवाने २५थवा पोताना भित्राहि द्वारा भार भरावाने त५२ २४ छ. " अयणिहुयपरिणाम" ते महत्ताहान३५ दुष्कृत्य ४२॥२ वानी मनोवृत्ति २मान्त २९ छ. “ तकरजणबहुभयौं ” २१महत्ताहान या२ हो। द्वा२१ २८ थारे प्रभाशुभ सेवामां आवे छे. तेथी ते दुभ “ अकलुणं" निय ने। २॥ २मायरित पाने ४.२ ४या२डित य छे. तेथी “राय
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર