Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनी टीका अ० २ सू० ९-१० अन्येषामपि मृषाभाषणनिरूपणम् २१३ 'निल्लज्ज' निर्लज्ज लज्जावर्जितं 'लोगगरहणिज्ज ' लोकगर्हणीयं = सर्वजन निन्दनीयं 'वहबंधपरिकिलेसबहुलं' वधवन्धपरिक्लेशबहुलं-तत्र वधः-मारणं बन्धः रज्वादिना बन्धनं परिक्लेश-दुःखसन्तापस्ते बहुला अधिकाः यस्मिन्नलीके तत्तथा मृषाभाषणेन हि एते भवन्त्येव मृषा भाषिणां 'जरामरणदुक्खसोगने' जरामरणदुःखशोकानां नेमम् अवधिभूतम् ' अमुद्धपरिणामसंकिलिटुं ' अशुद्ध परिणामसंक्लिष्टं = अशुद्धेन अशुभेन परिणामेन संक्लिष्टं व्याप्तमलीकं भणन्ति चपला इति पूर्वेण सम्बन्धः । सू० ९॥ कीदृशास्ते ? इत्याह-' अलिया हि ' इत्यादि ।
मूलम्-अलियाहि संधिसंनिबिटा असंतगुणुदीरगा य संतगुण नासका य हिंसा भूओवघाइयं अलियं संपउत्ता वयणं इनका सुनना भी कोई भी सत्यवादी पसंद नहीं करता है । (अमुणियं) ये अमनोज्ञ होते हैं। अथवा अज्ञानरूप होते है-इनसे बास्तविक वस्तु का बोध नहीं होता है । (निल्लज्ज) निर्लज्ज-लज्जावर्जित होते हैंअर्थात् ऐसे वचन बोलने वालों को किसी भी प्रकार की लज्जा नहीं आती है । ( लोगगरहणिज्ज ) जिन वचनों की समस्तजन निन्दा किया करते हैं । ( वहबंधपरिकिलेसबहुलं ) जो इन वचनों को बोलते हैं वे व्यक्ति इन वचनों के कारण बहुत अधिक वध, बंधन और परिक्लेश को पाते हैं। (जरामरणदुक्खसागने ) ये वचन जरा, मरण, दुःख एवं शोक के हेतुभूत होते हैं। (असुद्धपरिणामसंकिलिटुं) इनके बोलने वालों के परिणाम अशुभहोते हैं । इस प्रकार के असत्य वचनों को चपल पुरुष बोलते हैं ॥सू-९॥। सत्यवाही ५४ ४२i नीi “अमणुयं " ते ममनोज्ञ य छ-मज्ञान३५ डाय छ-तेमनाथी वास्तवि वस्तुनो मोध थती नथी, “ निल्लज्ज" निelore લજજારહિત હોય છે, એટલે કે એવાં વચનો બોલનારને કોઈ પ્રકારની શરમ भावती नथी, “ लोगगरहणिज्ज" क्यनानी सा सी निंदा ४२ छ, " वहबंधपरिकिलेसबहुलं ” मेव क्यो मोसना२ भाणुस ते वयनाने १२) धणे पधारे १५, मधन भने ५२४सेश. पामे छ. “जरामरणदुक्ख सोगनेम" ते वयन। ०४२१, ४२६, दुः५ मने न तुभूत डाय छे. “ असुद्ध परिणामसंकिलिट्ठ" तेवi क्यने मोबनानां परिणाम-मनामाव-शुम डाय છે. આ પ્રકારનાં અસત્ય વચને ચંચળ વૃત્તિના માણસો બોલે છે. જે સૂ-૯
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર