Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनी टीका अ० १ सू० ३१ वेदनापीडितनारकाक्रन्दनिर्घोषवर्णनम् ११५ पाल' निरयपाला: परमाधार्मिकाः, तेषां तज्जियं' तर्जितं नारकजीवान् लक्षीकृत्य परस्परं तर्जनाज्ञावाक्यं वक्ष्यमाणप्रकारमस्ति, तथाहि-अम्बाभिधः परमाधामिकोऽम्बरीषं कथयति-हे अम्बरीष ! एन पलायमानं पापिनं नारकं 'गेह' गृहाण । एवं परस्परमेकः परमाधार्मिको द्वितीयं कथयति-एनं नारकं 'कम' क्रमपादपहारैः पीडय 'पहर ' प्रहर-एनं नारकं दण्डादिभिस्ताडय 'छिंद' छिन्धि
खङ्गादिभिः खण्डशः कुरु 'मिंद ' मिन्धि-भल्लकादिभिर्भेदय 'उप्पाडेह' उत्पाटय-शरीरात्वचादिकं पृथक्कुरु ' उक्खणाहि' उत्खन-निष्कासय अक्षिगोलादिकम् 'कत्ताहि ' कृन्त-छेदय-छुरिकादिभिर्नासिकादिकं, तथा-'विकत्ताहि' विकृन्त=कर्णनासिकादिकं मूलतश्छेदय, 'भंज' भञ्ज-हस्तपादादिकं त्रोटय, 'हण' जहि-शतघ्न्यादिभिरिय, 'विहण' विजहि-महाशिलादि पातनादिभिरनेकमकारैः अधिक भय उत्पन्न हो जाता है । इस प्रकार रसित, भणित, कूजित एवं उत्कूजित शब्द करने वाले उन परमाधार्मिकों की तजित-नारकियों को लक्ष्य करके जो परस्पर में कष्टादि पहुँचानेवाली बातचीत होती है वह इस प्रकार है-(गेण्ह ) अम्ब नाम का परमाधार्मिक अम्बरीष से कहता है-हे अम्बरीष! तू इस भागते हुए पापी नारकी को पकड लो
और (कम) इस को लातों से मारों। बाद में (पहर ) इसे दंडों से खूब पीटो। (छिंद् ) ज्यादा और क्या कहूं-तलवार आदि से इसके शरीर के खंड २ कर डालो । (भिंद ) भाला आदि से इसके शरीर को भेद डालों ( उप्पाडेह ) इसकी खाल उतारलो, ( उक्खणाहि) इसकी आंखें निकाल लो, ( कत्ताहिय ) इसका नाक काट डालो (विकत्ताहि ) कर्ण नासिक आदि इन्द्रियों को मूल से बिलकुल साफ कर डालो। ( भंज) हाथ पैर आदि को मरोड डालो। (हण) शतघ्नी आदि से इसको बुरी तरह से मारो। (विहण ) महाशिला आदि के ऊपर इसे पछार डालो। (विच्छुभ ) कुए आदि में इसे पटक दो। ( उच्छुभ ) કારણે નારકીઓને વળી વધારે ભય લાગે છે. એ રીતે રસીત, ભણિત, કૃતિ, અને ઉત્કંજિન શબ્દ કરનારા તે પરમધામિકોથી તજિંત-નારકીઓને ચીંધીને, તેમને કષ્ટ દેનારી પરસ્પરમાં જે વાતચીત થાય છે તે આ પ્રકારની હોય છે"गेण्ह " 240 नाभन ५२भाषाभि अभ्यरीषने ४९ छ-" अमरीष ! તે આ નાસી જતાં પાપી નારકીને પકડી લે અને “હા” તેને લાત માર. पछी "पहर" तेने 1 43 भू५ ५८४१२ “छिंद” पधारे शु ! सवार माहिथी तना शरीरना टूटू४॥ ॐश नास. "भिंद" elen 4: तना शरीरने वींधी नाम. “उप्पाडेह" तेनी यामडी GIn Hin, "विकत्ताहि" न, न! मान्द्रियाने भूमाथी यी नामो, “भंज" य ५१ महिने भ२१ नाम, "हण” शतनी हि ५ तेने म२३मा ३२५ शत भारी, “विहण"
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર