Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुदर्शिनी टीका अ० १ सू०३४ परस्परवेदनादीरणायां नारकदशावर्णनम् १२१ टतीक्ष्णाः अग्रतीक्ष्णाः क्षाणोत्तेजितत्वात् , ' निम्मल' निर्मलाश्च जाज्वल्यमानः, इत्येभिः। 'अण्णेहि य ' अन्यैश्च ' एवमाइएहिं ' एवमादिभिः 'असुहेहिं ' असुखैः परमदुःखोत्पादकैः ‘वेउबिएहिं ' वैक्रियकैः वैक्रियशक्तिसम्पादितैः ‘पहरणसएहिं ' प्रहरणशतैः अनेकशस्त्रैः 'परोप्परं ' परस्परम् अन्योन्यम् , 'अभिहणता' अभिघ्नन्तः 'अणुबद्धतिव्ववेरा' अनुबद्धतीववैराः पूर्वभवे हिंसादिभिरनुबद्धं तीव्र वैरं यैस्ते तथा=बद्धवैरानुबन्धिकर्माणः नारकाः, 'वेयणं' वेदनां =पीडाम् ' उईरंति ' उदीरयन्ति समुत्पादयन्ति ॥ सू० ३३ ॥
परस्परं वेदनामुदीरयन्तो नारकाः कीदृशा भवन्ति ? इत्याह-' तत्थय मोग्गर' इत्यादि।
मूलम्-तत्थ य मोग्गर पहार चुण्णिय-मुसंढि संभग्गमहितदेहा जंतोवपीलणफुरंतकप्पिया केइत्थ सचम्मगा विगत्ता णिम्मूलुल्लूणियकण्णोदृ णासिया छिण्णहत्थपाया ॥सू०३४॥
टीका-'तत्थ य' तत्र च नरके 'मोग्गरपहारचुण्णिय मुसंढि-संभग्गमहियदेहा' मुद्गरप्रहारचूर्णित-मुसण्डि संभग्नमथित-देहाः = मुद्राणां महारैः= कुठार-कुल्हाडी ( टंकतिक्ख ) ये सब शाण पर उत्तेजित किये हुए होने से बहुत अधिक अग्रभाग में तीक्ष्ण होते हैं, और (निम्मला) चरचमाते हैं सो इन शस्त्रों से, तथा ( अण्णेहिं एवमाइएहिं ) इनसे भिन्न और भी (असुहेहिं ) पर दुःखोत्पादक तथा ( वेउव्विएहिं) वैक्रिय शक्ति से सम्पादित ( पहरणसएहिं ) सैकडों शस्त्रों से ( परोप्परं) परस्पर में एक दूसरे को ( अभिहणंता ) मारते हुए वे (अणुबद्धतिव्ववेरा) पूर्वभव में हिंसादि पापों द्वारा अणुबद्ध तीव्र वैर वाले नारकी (वेयणं) वेदना-पीडा को (उईरंति ) उत्पन्न करते हैं। सू. ३३ ॥
परस्पर में तीव्र वेदना को उत्पन्न करते हुए वे नारकी कैसे हो जाते "परसु" ।ी, "ट'कतिक्ख' से मां शस्त्री स२।४ ५२ सन्नवेस डावाने ४॥२0 तेभनी धार तथा मणी घणी ती डाय छ, मने ते " निम्मला" यता हाय छे. मे २i शस्त्रोथी तथा “अण्णेहिं एव माइहि " ते Siत भी ५५ " असुहेहिं " अन्यने हुमाय तथा “वेउव्विएहिं " वैठिय तिथी युत “ पहरणसएहिं "से 32 शस्त्रोथी " परोप्पर" मे भीतने "अभिहणंता" भारतi, “ अणुबद्धतिव्ववेरा" पूलमा हिंसाही पापा द्वारा तीन वरथी युत, ना२४ी । “वेयण" ५२२५२मा वहन। " उईति" Gत्पन्न ४२ छ.
પરસ્પર વેદના તીવ્ર વેદના ઉત્પન્ન કરતાં કરતાં તે નારકી જી કેવા થઈ
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર