Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रश्रव्याकरणसूत्रे भणितम्-उक्तं, 'भयकरं' भयकरं भयजनकम् , 'दुहकरं ' दुःखकरं-दुःखजनकम् , 'अजसकरं' अयशः करं-अयशजनकं, 'वेरकारगं' वैरकारकं बैरोत्पादक, ' रति अरतिरागदोसमण संकिलेसवियरणं' रत्यरतिरागद्वेषमनः संक्लेशवितरणरतिः प्रीतिरसंयममार्गे, अरतिः अपीतिः संयममार्गे, रागः = विषयेष्वनुरञ्जनं 'दोस' द्वेषः द्रोहः, मनः संक्लेश-चित्त सन्तापः, एतान् वितरति = ददाति यत्तत्तथा अलियं ' अलीकं-निष्फलं ' नियडि सातिजोगबहुलं' निकृतिसाति योगबहुलं-निकृतिः कृतदुष्कृतकर्मापलापनार्थवचनं सातिः अविश्वासस्तयोर्योगः
अयोगस्तेन बहुलं यत्तत्तथा-कपटाविश्वाससंभृतमित्यर्थः, ‘नीयजणनिसेवयं' नीचजननिषेवितं नीचैः जातिकुलगुणादिभिरधमैजनैनिषेवितं, 'निस्संसं ' नृशंसं जो चञ्चल शरीर हैं उनके द्वारा कहा गया यह असत्यभाषण (भयकर) भय देनेवाला है। (दुहकरं ) दुःख उत्पन्न करने वाला है, ( अजसकरं) अयश बढ़ाने वाला है, ( वेरकारगं) वैर भाव को उत्पन्न कराने वाला है, (रइ अरइ रागदोसमणसंकिलेसवियरणं ) रति-असंयम मार्ग में प्रीति, अरति-संयममार्ग में अप्रीति, राग-विषयों में अनुराग, दोसपरसे द्रोह एवं मणसंकिलेस-चित्तसंताप, इन सब दुर्गुणों को 'वियरणं' देने वाला है ( अलियं ) निष्फल है ( नियडिसातिजोगबहुलं ) किये हुए दुष्कृतकर्म का अपलाप करने के लिए अनेक जालरचना, तथा कहीं पर भी किसी पर विश्वास नहीं होने देना इन बातों का जिसमें अधिक से अधिक योग रहता है ऐसे स्वभाववाला है अर्थात्-कपट एवं अविश्वास से भरा हुआ है । (णीयजणणिसेवियं) इसका सेवन जो जाति, कुल एवं सद्गुणो से रहित होते हैं वे जन करते हैं । (निस्संसं) यह नृशंस. ते असत्य क्यन " भयंकर" भय ४२ छ, “दुहकर" म त्पन्न ४२नाइ छ, "अजसकर" २५५४ीति वधारना२ छ, “वेरकारगं' वैरभाव पहा ४२नार छ, “रइ अरइ रागदोसमणसंकिलेसवियरण" रइ-मसयममा भी प्रीति अरइ-मति-सयम માર્ગમાં અપ્રીતિ, રાગ-વિષય પ્રત્યે આસક્તિ, દેસ–પારકાને દ્રોહ, અને મનસંકિલેસ भनमा संताप, माहि हु। “वियरणं" हेनार छ, “ अलिय" नि छ, “नियडिसातिजोगबहुलं" ४२i दुष्कृत्याने पापा भाट मने श्यना, તથા ક્યાંય પણ કોઈના ઉપર વિશ્વાસ ઉત્પન્ન થવા ન દેવે, વગેરે બાબતને જેમાં વધારેમાં વધારે ગ રહે છે એવા સ્વભાવવાળું, એટલે કે કપટ અને मविश्वासथी मारे हाय छे. “णीयजणजिसेविय" तेनु सेवन गति, पुण मन सहशुशोथी २हित सोछ। ४२ छ. " निस्संसं "ते नृशस-२ छ, अथवा
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર