Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रश्रव्याकरणसूत्रे
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' अणारिओ ' अनार्यः=म्लेच्छजनसमाचारितत्वात् ' निम्घिणो' निर्घृण: = अविद्यमाना घृणा = पापजुगुप्सा यस्मिन् स तथा विधोजनस्तदाचरितत्वात्प्राणवधोऽपि तथा, ' निस्संसो' नृशंसः = क्रूरजनाचरितत्वात् ' महन्भओ ' महाभयः = महाभयोत्पादकत्वात्, पइभओ' प्रतिभयः = सकलमा णिनां भयहेतुत्वात्, 'अइभओ' अतिभयः - मरणान्तभयजनकत्वात् । 'बीहणओ ' भाषनकः - भयोत्पादकत्वात्, तासणओ' त्रासनकः = अकस्मात् - हृदयोद्वेगजनकत्वात्, 'अगज्जओ' अन्याय्यः= न्यायादनपेतः=युक्तः न्याय्यः, न न्याय्यः अन्याय्यः, न्यायवर्जितत्वात्, 'उब्वेयणओ' उद्वेगजनकः मर्मपीडाकारकत्वात् 'णिरवयक्खो' निरपेक्षः = निर्गता अपेक्षा = परप्राणरक्ष विषया यत्र स तथा, 'निद्धम्मो' निर्धर्मः = श्रुतचारित्र धर्मरहितत्वात्, 'निष्पिवासो' असमीक्ष्यकारी जनों द्वारा किया गया होने से साहसिक है, ( अणारिओ) म्लेच्छजनों द्वारा समाचरित होने के कारण अनार्य है । (निग्विणो) इसे करने वाले मनुष्य को पाप के प्रति घृणा नहीं रहती है अतः यह प्राणवध भी निर्घृणरूप है ( निस्संसो) क्रूरजन इसे करते रहते हैं इस लिये यह नृशंसरूप है । (महभओ) इसे करते समय करनेवालेको महान् भयका कारण होता है इसलिये यह महाभयरूप है । (पइभओ) समस्त प्राणियों को भय का हेतु होने से यह प्रतिभयरूप है । ( अइभओ) मरणान्तभय का जनक होने से यह अतिभयरूप है । ( बीहणओ ) भयका उत्पादक होने से यह भयानक है । ( तासगओ ) अकस्मात् हृदय में उद्वेग का जनक होने से त्रासनकरूप है ( अगज्जओ ) न्यायवर्जित होने से यह अन्यायरूप है | ( उब्वेयणओ ) जीवों को उद्वेग जनक होने से यह उद्वेजकरूप है ( णिरवयक्खो ) पर प्राणियों की रक्षा करने की अपेक्षा
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असभीक्ष्यारी सोओ द्वारा रातो होवाथी साहसि छे, “अणोरिओ " २४ सोओ द्वारा भायरित होवाथी अनार्य छे. " निग्घिणो " आशुवध कुरनार मनुष्यने पाप प्रत्ये घृणा थती नथी, तेथी ते आशुवध या निघृणु३५ छे, “निस्संसो" डू२ बोअ तेनुं सेवन रे छे तेथी ते नृशंसय छे, “ महभओ " ते पुरती વખતે કરનારને મહાન્ ભયનું કારણ તે બને છે તેથી તે મહા ભયરૂપ છે. "पइमओ" सधजां आशियाने ते लयना अराश्य होवाथी प्रतिलय३५ छे. "अइमओ" मृत्युना लयनो ४९ होवाथी ते अति लय३५ छे. " "बीहणओ लयनो उत्पाद होवाथी ते लयान छे. “तासणओ” हृध्यमां अस्भात उद्वेगना मन होवाथी ते त्रासन ३५ छे, " अणज्जओ " न्यायरहित होवाथी ते अन्याय ३५ छे, " उब्वेयणओ " જીવેામાં ઉદ્વેગ ઉત્પન્ન કરનાર હોવાથી તે ઉદ્વેગકરૂપ ३५ छे. “ णिरवयक्खो " पर आशीमोनु रक्षषु रवानी अपेक्षाथी रहित
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શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર