Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
सुदर्शिनी टीका अ० १ सू०४७ मनुष्यभवदुःखनिरूपणम् स कीदृशः ? इत्याह-'इहलोइओ' ऐहलौकिका मनुष्यलोकमाश्रित्य, 'पारलोइओ' पारलौकिकः-नरकनिगोदादिकगत्याद्याश्रित्य ‘अप्पमुहो' कुत्सि ते न्द्रियभोगे सुखजनकखाद् अल्पसुखः, वा 'बहुदुक्खो' बहुदुःखः=नरकादिदुःखकारणत्वाद् दुःखबहुलः, 'महब्भयो' महाभयः महाभयस्वरूपः, तथा 'बहुरयप्पगाढो' बहुरजः प्रगाढः अशुभकर्मबहुलः, दारुणो' दारुणः भीषणः नरकादिभयजनकत्वात् 'ककसो' कर्कशः कठोर:=दुर्भेद्यत्वात् ' असाओ ' असातः =असातवेदनीयरूप. त्वात् , इत्येवंविधः फलविपाकः, 'वाससहस्से हिं' वर्षसहस्रैः=अनेक सहस्रवर्षभोगैः-पल्योपमसागरोपमादिलक्षणैः 'मुच्चई ' मुच्यते=क्षीयते । तदेवव्यतिरेक मुखेनाह-' नये' ति-' अवेदइत्ता' अवेदयित्वा-तं फलविपाकमनुपभुज्य 'नय' विपाक-परिणाम ( इहलोइओ) ऐहलौकिक-मनुष्यलोककी अपेक्षा से ( अप्पसुहो) कुत्सित इन्द्रियों के भोग जनित सुख का उत्पादक होने से अल्पसुख वाला, तथा ( पारलोइओ) पारलौकिक-नरकादि गति की अपेक्षासे (बहुदुक्खो ) नरकादि गति कारण होनेसे बहुत दुःख वाला, (महन्भओ) महाभयवाला, तथा ( बहुरयप्पगाढो ) बहुत अशुभकर्मों वाला है । यह (दारुणो) नरकादिगति का भयजनक होने से भयंकर (ककसो ) दुर्भेद्य होने से कर्कश-कठोर है । ( असाओ) अशाता वेदनीय रूप होने से स्वयं अशातारूप है । ऐसा यह प्राणवधपरिणाम (वाससहस्सेहिं मुच्चई ) पल्योपम तथा सागरोपमादिरूप वर्षसहस्रों में भोगते २ यह छूटता है-नष्ट होता है । इसी बात को अब व्यतिरेक से कहते हैं कि-( अवेयइत्ता न य हु मोक्खो अस्थि ) (अवेयइत्ता ) इसका फल
विपा४ परिणाम " इहलोइओ " 2सोनी मनुष्यसोनी अपेक्षामे " अप्पसुहो" हुत्सित छन्द्रियाना मोनित सुमर्नु 64६ डोपाथी १८५ सुभवाणु, तथा ' 'पारलोइओ" ५२सोनी--२४६ आतिनी अपेक्षा " बहदुख्खो" न२४ गतिना ४।२४४३५ डोपाथी म हुमायी, “ महब्भो" भड भयवाणु तथा "बहुरयप्पगाढो" मयत शुभ वाणुछ. ते "दारुणो" न२४ गतिन सय पहा ४२ना२ डोपाथी नय४२ छ. " ककसो" दुध डोवाने २ ४४ हौ२ छ.' असाओ " अशाता-वेहनीय ३५ डोवाथी पोते अशाता३५ छे. स ते प्रावध परिणाम " वाससहस्सेहिं मुच्चई" પલ્યોપમ તથા સાગરોપમ આદિરૂપ હજાર વર્ષ સુધી જોગવતા ભગવતા છૂટે छे-नट थाय छ. मे ८ वातने हवे भी रीते प्रगट ४२ छ-"अवेयइत्ता न य हु मोक्खो अस्थि " " अवेयइत्ता" तेनो वि वासव्या विना ने
શ્રી પ્રશ્ન વ્યાકરણ સૂત્ર