Book Title: Vallabhvrushti Prakash
Author(s): Gangavishnu Shrikrushnadas
Publisher: Gangavishnu Shrikrushnadas
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THE FREE INDOLOGICAL COLLECTION WWW.SANSKRITDOCUMENTS.ORG/TFIC FAIR USE DECLARATION This book is sourced from another online repository and provided to you at this site under the TFIC collection. It is provided under commonly held Fair Use guidelines for individual educational or research use. We believe that the book is in the public domain and public dissemination was the intent of the original repository. We applaud and support their work wholeheartedly and only provide this version of this book at this site to make it available to even more readers. We believe that cataloging plays a big part in finding valuable books and try to facilitate that, through our TFIC group efforts. In some cases, the original sources are no longer online or are very hard to access, or marked up in or provided in Indian languages, rather than the more widely used English language. 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We shall work with you immediately. -The TFIC Team. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GOGHAR ခခခခခခခခခခ SolcareoccDocercouplocelconcercicolenaTaalorical ESSASSACROBINDASTI ॥ श्रीः ॥ .. श्री वल्लभपुष्टिप्रकाश । BHARTICLodsasdisclocalcalad...... अर्थात् ( श्रीवल्लभसम्प्रदाय पुष्टिमार्गीय सातों घरनकी सेवाविधि।) SOSOCOSSOS cacaocos2 ..... PREREIGN गोस्वामिश्रीमद्गोविन्दात्मजश्रीदेवकीनन्दनाचार्यजी महाराजको आज्ञानुसार मथुरा निवासी मुखियाजी रघुनाथजी शिवजी संगृहीत. D CO'SUCOCOCOCOCOCO CISCO ceta 0 207070030CECE गङ्गाविष्णु-श्रीकृष्णदास, मालिक-" लक्ष्मीवेङ्कटेश्वर” स्टीम्-प्रेस, कल्याण-वंबई. A संवा १९९३, शके १८५८. Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 140614 RRYINमान्मा PAKISTANISATTA HIMIRRI मुद्रक और प्रकाशकगङ्गाविष्णु श्रीकृष्णदास, मालिक-“लक्ष्मीवेङ्कटेश्वर " स्टीम्-प्रेस, कल्याण-बंबई. do सन् १८६७ के आक्ट २५ के मुजब रजिष्टरी सब हक्क प्रकाशकने अपने आधीन रक्खा है. 240-4 8-61 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ WXNCNCNCNCNCNCNCNCNCNCNCNCX*XXXXXXXXXXXXXXXXXXXSCT UVJUUnnurrouseCRUCTUKOOKOOKKKGXXGXGXGXGXGXOKGXXXSXSXSXXGSXGOKKOKKOKOH गोस्वामि श्री १०८ देवकीनन्दनाचार्यजी महाराज । XGXGXGXGXGOKGNGXOXGSXGOKGOXGSXGXGSXGSXGXGXGƏXƏXGSXGXGIES Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्रीः ॥ श्रीनिकुञ्जविहारिणे नमः ॥ श्रीगोपीजनवल्लभाय नमः ॥ भूमिका। शार्दूलविक्रीडितछन्द। श्रीमदल्लभराधिकावजधणी, आनन्ददाता सदा; यो वाणी रघुनाथने भगवती, टाळो सहू आपदा ॥ प्रारंभं शुभकार्य आश धरिने, कोटी प्रयत्नो बड़े इच्छा होय रूपाळु जो तुजतणी, तो कार्य सेजे सरे ॥ १। उद्धारी श्रुतिधारि पीठ धरणी, तारी दधीथी मही; प्रह्लादस्तुति सांभळी बलि छळी, क्षत्रावली संहरी ॥ चोळी रावण चंड रोळि यमुना, व्होळो दया विस्तरी; मारी म्लेच्छ अभंग मंगल करो, लावण्यलीला करी ॥२॥ धार्यो आश्रय एक टेक मनमा, श्रीवल्लभाधीशनो; जे छे दीनदयाळ पाळ जगनो, शान्तिप्रदा सर्वनो॥ साष्टांगे पदपंकजे रतिधरी, हूं ध्यान तेनूं धरूं; पुष्टीमार्गप्रकाशग्रंथरचवा, सामर्थ्य देजो खरूं ॥ ३ ॥ दोहरो। जय जगवंदन जगपति, यादववंश वतंस । दिनमणिमण्डल ज्योतिमय, मुनिजनमानसहंस ॥ १ ॥ अमळ कमळ सम दृग सदा, दनुजदमन घनश्याम । प्रतिपाळक परवर प्रभू, प्रणमूं पूरण काम ॥ २॥ विनविभञ्जन वनमणी, करिये कुशल कपाळ । शिवसुत रघुने यदुपति, दे मनमोद विशाळ ॥ ३ ॥ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ meaning । तथा दोहा । मोर मुकुट शिरपर धरो, कर मुरली गुन गान । शिवजीसुत रघुनाथ नित, धरत तिहारो ध्यान ॥ १ ॥ जैसे ब्रजवासियनकी, प्रतिदिन करी सहाय । तैसे कपाकटाक्ष कर, दीजे मार्ग बताय ॥२॥ “श्री हरिसेवा वल्लभकुल जाने " अर्थात् श्रीहरिकी सेवाको प्रकार श्रीमवल्लभ सम्प्रदायमें जैसो उत्तम और विधिपूर्वक है तैसो इतर सम्प्रदायादिकनमें नहीं है। यह बात सर्व वादी सम्मत है । अत एव अनन्य भक्तिकी सेवा पद्धतिको प्रकार भगवदीयनके उपकारार्थ तथा सर्व साधारण भक्तोंके कल्याणार्थ हमने ग्रन्थरूपमें श्री वल्लभपुष्टिप्रकाश नामसें प्रकाश करवेको पूर्णमनोरथ कियो है । और जा जा प्रकारसों या ग्रन्थमें सेवा सम्बन्धी मुख्य मुख्य विषयनको विस्तारपूर्वक समावेश कियो है, सो सब विगत नीचे लिखें हैं। ___ हमने श्रीवल्लभपुष्टिप्रकाश नामक अति अलस्य ग्रन्थके चार भाग कीने हैं। पुष्टिमार्गीय वैष्णवनके लिये छपवायो है। सो या ग्रन्थमें सातों घरनकी सेवापद्धति इन प्राचीन ग्रन्थनसों संगृहीत है, जैसे सेवाकौमुदी और श्रीहरिरायजीको आह्निक तथा भावना आदि ग्रन्थनके अनुसार क्रम है ता प्रमाण लिख्यो है । जैसे मङ्गलासों प्रारम्भ करके शयनपर्यन्तको क्रम नित्यकी सेवा तथा बरस दिनके सम्पूर्ण उत्सवनको क्रम, सामग्री तथा शृङ्गार तथा वस्त्र आभूषण आदि यह प्रथम | भागमें लिख्यो गयो है । तामें नित्यको शृङ्गार यथारुचि अर्थात् अपने मनमें जो आछो लगे सो करनो और सामग्री जो प्रमाण लिख्यो है तामें जहाँ जितनो नेग होय ता प्रमाण करनो, यहां एक अनुमानसो लिख्यो गयो है। - Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दूसरे भाग में उत्सवको निर्णय लिख्यो गयो है । तीसरे भाग में उत्सवनकी भावना तथा स्वरूपनकी भावना लिखी गई है चौथे भाग में सेवा साहित्य के चित्र तथा शृंगार आभूषण वस्त्रा दिकनके चित्र तथा पाग, कुल्हे, टिपारो, पगा, टोपी, मुकुट आदिवे चित्र तथा उत्सवनकी आरतीनके, एवं नानाप्रकारकी फूलमण्डली बङ्गला, डोल, हिंडोरा आदिके चित्र दिये गये हैं । या प्रकार तन, मन, धन और परिश्रमसों भगवदीय वैष्णवनके उपका रार्थ यह ग्रन्थ तैयार करके छापवेमें आयो है यासों अद्भुत, अपूर्व और अमूल्य है और सेवासम्बन्धी ऐसो ग्रन्थ आजपर्य्यन्त कहूँ नहीं छप्यो तासों प्रत्येक मन्दिर और भगवदीयन के घरघरमें रहने लायक है याते श्रीवल्लभ सम्प्रदाय के पुष्टिलीला के रसिक जननसों मेरी यह प्रार्थना है जो " श्री वल्लभपुष्टिप्रकाश " या ग्रन्थको ऐसो बड़ो नाम धरयो सो श्रीवल्लभ सम्प्रदाय की पुष्टिलीलाको वर्णन करनो तो अति अगाध और अपार है । मैं संसारी जीव मेरी सामर्थ्य और योग्यता - कहाँ जो श्रीवल्लभ सम्प्रदायकी पुष्टिलीलाको प्रकाश कर सकूँ । जैसे पेंटी समुद्रमें तेरनो चाहे और खद्योत सूर्यमण्डलकी समता करयो चाहें, यह सर्वथा असम्भव है । परन्तु श्रीवल्लभप्यारे यही नाममें ऐसो गुण है कि, जैसे बालक अबुद्ध और अज्ञानीभी होय तो ताकी प्यारकी वार्ता बहोत आछी और प्रिय लगे है | चाहे बालककों बात समझवे और बोलवेको ज्ञानभी नहीं है तथापि बड़े लोगन के वचन सुनके वाही रीहिसों बोलवेको उत्साह करे है. तथा ढिठाई और अमर्याद करिके महान पुरुषनकी देखादेखी करने लग जाय है । Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तोऊ बड़े लोग कृपादृष्टिसों बालककी अमर्यादापर क्षमा करके वाकी प्यारी जो तोतली वाणी जामें कछु अर्थ होय वा न होय परन्तु सुनवेकी इच्छा करे है, वाकी अज्ञानता दृष्टि नहीं करें जैसे “ मधुपाः पुष्पमिच्छन्ति व्रणमिच्छन्ति मक्षिकाः ।" तैसे गुणिजन मधुप (भोरा) के समान सुगन्धही लेवेकी दृष्टि राखे हैं। और माँखी घावपर ही जाय बैठे है । तासों मोको आशा है कि पुष्टिमार्गीय सम्प्रदायके सेवक तथा भगवदीय वैष्णव जन मेरी अज्ञानता और भूलचूकको न देखेंगे और क्षमा करेंगे। आपका मुखियाजी रघुनाथजी शिवजी, सरस्वती भण्डार, मथुराजी. - Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीहरिः। श्रीवल्लभपुष्टिप्रकाशकी विषयानुक्रमणिका । - - विपय. पृष्ट. पं० । विषय. पृ. ५० प्रथम भाग १. | अश्विन सुदि १५ शरदसातों घरकी सेवाविधि पुन्योको उत्सव ९७ १६ नित्यसेवाविधि मङ्गलासों कार्तिक वदि १३ धनतेरसको शयनपर्यंत १४ ४ उत्सब १०० १३ राजभोगविधि ३७ ११ कार्तिक बदि १४ रूपचतुर्दउत्थापनविधि ५० १८ शीको उत्सव शयनआरती ५५ १८ कार्तिक वदि ३० दिवारीको श्रीजन्माष्टमी उत्सव ६१ १० उत्सव १०१ ११ भादो सुदि ४ डंडाचौथि ८४ २२ सामग्री अनसखडीकी १०३ २१ भादो सुदि ८ राधाष्टमीको हटडीको प्रकार ताकी उत्सव सामग्री भादो सुदि ११ दानएकादशी ८८ १ । दूधवरको प्रमाण , १० भादो सुदि १२ वामनद्वादशी ८८ १२ खाण्डगरको प्रमाण आश्विनकृष्ण १ साँझी पहली ९१ २ मेवा सूकेको प्रकार सामग्री ९१ २० सखडीको प्रकार आश्विन वदि ८ बड़े गोपीनाथ- पाँचों भातके प्रमाण १०८ १३ जीके लालजी श्रीपुरुषोत्तम- | अन्नकूटके दिनको नेग जीको उत्सव ९२ १ । कार्तिक सुदि १ गोवर्धनपूजा आश्विन वदि १२ श्रीमहाप्रभु- ___ तथा अन्नकूटको उत्सव १०९ जीके बड़े पुत्र श्रीगोपी अन्नकूटको भोग धरवेको नाथजोको उत्सव १२ प्रकार ११२ १ आश्विन वदि १३ श्रीगुसाँ अन्नकूटके और भाई दूजके ईजीके तृतीयपुत्र श्रीबाल __ बीचमें खालीदिन आवे कृष्णजाको उत्सव .. १८ ताको प्रकार आश्विन सुदि १ ते नव | कार्तिक मुदि २ भाई दूजको विलासताई ९३ ८ उत्सव आधिन सुदि १० दश | कार्तिक सुदि ८ गोपाष्टहराको उत्सव ९५ १५ मीको उत्सव ११४ १ " २० Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -HimallalesaHDIHASKA R PERH emamadhaKASHMAHIMACHALLENNIACIFEMISTRIESCLAIESSAUMANCELEBRAHBAI १५४ १० विषय. पृष्ठ. पं० । विषय. ___ पृष्ठ. पं० कार्तिक सुदि ९ अक्षय फाल्गुन सुदि २ गुप्तउत्सनौमीको उत्सव . ११५ १ वको मनोरथ १४४ १० कार्तिक सुदि ११ देवप्रबोध फाल्गुन सुदि ११ कुञ्जएकानीको उत्सव | दशीको उत्सव साँजको प्रकार ११८ १२, फाल्गुन सुदि १५ होरीको सामग्री पहले भोगकी उत्सव १४७ २४ दूसरे भोगकी सामग्री ११९ ७ । | चैत्र वदि १ डोलको उत्सव १४९ ५ तोसरे भोगकी सामग्री , १४ डोलमें भी ठाकुरजी पधरायकार्तिक सुदि १२ श्रीगुसाई वेको प्रकार १५० २३ __ जीके प्रथम पुत्र श्रीगिर डोलकी सामग्री धरजी और पञ्चम पुत्र साँझको प्रकार १५२ श्रीरघुनाथजीको उत्सव ११९ २२ मेषसंक्रान्तिकी विधि राज भोगकी सामग्री १२० ४ । चैत्र सुदि १ संवत्सरको दद्धगरको प्रकार : २१ उत्सव १५५ १३ मार्गशिर वदि ८ श्रीगुसाई चैत्र सुदि २ पहली गणगौरी १५६ ६ । जीके दूसरे पुत्र श्रीगोविंद चैत्र सुदि ३ दूसरी गणगौरी , ८ रायजीको उत्सव १२३ १ | चैत्र सुदि ४ तीसरी गणगौरी , ११ मार्गशिर वदि १३ श्रीगुसाँई चैत्र सुदि ९ रामनामीको जीके सप्तम पुत्र श्रीघन उत्सव १५७ ३ श्यामजीको उत्सव , १९ वैशाख वदि ११ श्रीआचार्यमार्गशिर सुदि ७ श्रीगुसाई ___ जी महाप्रभुजीको उत्सव १६० २० जीके चतुर्थ पुत्र श्रीगो वैशाख सुदि ३ अक्षयतृतीकुलनाथजीको उत्सव १२५ ५ । याको उत्सव १६२ २० मार्गशिर सुदि १५ श्रीबल वैशाख सुदि १४ नृसिंहदेवजीको पाटोत्सव १२६ ११ ___ चतुर्दशीको उत्सव १६६ १४ पौष वदि ९ श्रीगुसाईजीको अनोसरके भोगको प्रकार १७० ५। उत्सव । १२८ ९ । ज्येष्ठ सुदि १० गङ्गादशहराको दूधघरको प्रकार १२९ ११/ उत्सव १७२ ८ अथ संक्रान्तिको प्रकार १३३ ५ | ज्येष्ठ सुदि १३ श्रीगिरिधामाघ सुदि ५ वसन्तपञ्चमीको रीजी महाराजटीकेतको उत्सव । १३७ ११ उत्सव माघ सुदि १५ होरीडांडाको | ज्येष्ठ सुदि १५ स्नानउत्सव ___यात्राको उत्सव १७४ ४ फाल्गुन वदि ७ श्रीनाथजीको गोपीवल्लभमें उत्सव भोगकी पाटोत्सव १४२ ७ । सामग्री १७६ ४ । ARRBOHA R ASADRISHIDARSAPREMI Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमाणका । (११ RAMERIODEOBH ABureau Rememo m enanesa विषय. " Manmomvm varivar ५ पृष्ठ. पं० । विषय. पृष्ठ. पं. रथयात्रा आषाढ सुदि १-२ दूसरा भाग २. जब पुष्य हो १७८ ४ आषाढ सुदि ६ करूंबा अथोत्सवनिर्णय २०१ ४ छठको उत्सव १८१ अथ एकादशीनिर्णय २०१ अथ श्रीजन्माष्टमीनिर्णय २०२ आषाढ सुदि १० श्रीदाऊ__जीको जन्मदिवस अथ राधाष्टमीनिर्णय , ९ श्रावण वदि १ हिंडोलाकी अथ दानएकादशीनिर्णय , १३ विधि ताको उत्सव अथ श्रीवामनद्वादशीनिर्णय , श्रावण वदि ११ मनोरथ अथ नवरात्रप्रारभनिर्णय २०४ __ हिंडोराको अथ विजयादशमीनिर्णय , श्रावण वदि ३० हरियारी अथ शरदपूर्णिमानिर्णय ___ अमावस्याको मनोरथ अथ धनत्रयोदशीनिर्णय श्रावण सुदि ३ ठकुरानी अथ रूपचतुर्दशीनिर्णय तीजको उत्सव अथ दीपोत्सवनिर्णय श्रावण सुदि ५ नागपञ्च अथान्नकूटोत्सवनिर्णय २०६ मीको उत्सव अथ भ्रातृद्वितीयानिर्णय , श्रावण सुदि ११ पवित्रा अथ गोपाष्टमीनिर्णय , १२ __ एकादशीको उत्सव है | अथ प्रबोधनी तथा भद्रानिर्णय,, १५ श्रावण सुदि १२ पवित्रा अथ श्रीगिरधरजीको द्वादशी १९० १९ ___ उत्सवनिर्णय २०७ १ श्रावण सुदि १३ चतुरा अथ श्रीविठ्ठलनाथजन्मोत्सव___ नागाको मनोरथ १९१ निणय .. " श्रावण सुदि १५ राखीको अथ मकरसंक्रान्तिनिर्णय , उत्सव १३ अथ वसन्तपञ्चमीनिर्णय , १८ भादो वदि १ श्रीगोवर्धनलालजी अथ होलिकादंडारोपणनिर्णय ___टीकेतको जन्मदिवस १९२ १४ | अथ श्रीमद्गोवर्धनधरागमनोभादो वदि ३ हिंडोरा त्सवनिर्णय २०८ विजय होय , २१ | अथ श्रीहोलिकादीपननिर्णय , १० भादो वदि ७ छठीको उत्सव १९३ १४ | अथ होलोत्सवनिर्णय । अथ ग्रहणविधि १९४ ६ | अथ संवत्सरारंभनिर्णय , २० अथ कत्थाकी गोलीकी विधि १९९ ६ | अथ रामनवमीनिर्णय २१० ५ . अथ सामग्रीको प्रमाण अथ मेषसंक्रान्तिनिर्णय , ११ तथा विधि अथ श्रीआचार्यजी महा " .१४ प्रथमभाग संपूर्ण । प्रभुजीको उत्सवनि० १८८७ • แs : * * * Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RARIEOSE विषय. पृष्ठ. पं० । विषय. पृष्ट. पं० अथ श्रोसातों बालकनके श्रीद्वारिकानाथजोके स्वरूउत्सव निर्णय २११ ७ पको भाव २२६ २५ | अथ अक्षयतृतीयानिर्णय , २२ श्रोगांवर्द्धनधरणस्वरूपको भाव २२७ २० नृसिंहचतुर्दशीनिर्णय २१२ १ | श्रीगोकुलचन्द्रमाजीके स्वरअथ गङ्गादशहरा निर्णय , ६ । पकी भावना २२८ १७ अथ ज्येष्ठाभिषकोत्सव | श्रीमदनमोहनजोके स्वरू__ निर्णय , ११ । पको भाव २३० अथ रथोत्सवनिर्णय २१३ ९ श्रीगोंदके छः स्वरूपनको भाव २३३ अथ षष्ठीषड्गुनिर्णय अथ लीलाभावनाको भाव , १२ अथाषाढशुद्धपौर्णिमानिर्णय , २० खिलोनाधरवेको भाव २३४ ६ अथ हिंडोलादोलना श्रीयमुनाजोको स्वरूप रम्भनिर्णय २१४ १ इत्यादि भाव अथ श्रावणशुक्लतृतीया ब्रह्मसम्बन्धकी भावना २३८ ५ (श्रीठकुरानीतीज ) निर्णय ,, ६ श्रीगुसांईजीको स्वरूप २४२ १९ अथ नागपञ्चमीनिर्णय , १० अथ पवित्राएकादशीनिर्णय , १४ वेणूको भाव २४३ अथ रक्षाबन्धननिर्णय शृङ्गारको भाव , २० अथ हिंडोलादोलनविजयनि० २१५ १० श्रीगोकुलनाथजीको स्वरूप २५६ १ द्वितीयभाग संपूर्ण । बालकनकी तथा स्वरूपनकी भावना । तीसरा भाग ३. अथ गोवर्धन पर्वतको स्वरूप २४९ १४ अथ भावभावना सेव्य श्रीयमुनाजीकी भावना २५० ११ __ स्वरूप निर्णय २१६ ५ श्रेब्रजको स्वरूप २५१ ३ . अथ वैष्णवको जपको प्रकार २१८ ५ | भावभावना तथा प्रथम श्रोभागवत गीताकी ___ मन्दिरको स्वरूप २५२ २१ ___भावना लीला २२२ २२| अथ प्रागटयकी भावनः २५३ २५ स्वरूपभावना लीलाभावना सेवाकी भावना २५८ ३ ____ भावभावना २२३ १५/ जन्माष्टमीकी भावना २६० ११ श्रीनवनीतप्रियजीकी स्वरूप राधाअष्टमीकी भावना २६१ २० भावना दानएकादशीकी भावना २६२ ९ श्रीमथुरानाथजीके स्वरूप वामनद्वादशीकी भावना , १७ __ भावना २२४ १६ शङ्खचक्रादितिलककी भावना २६५ ८ श्रीविठ्ठलनाथजीके स्वरूपको मालाधारणकरवेकी भावना २६६. १ भाव २२६ ३ । एकादशीको निर्णय तथा भाव ,, २५ wa org vorm २२४ ५ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका। M O DERERANDOODLJINDImaumseDMRIDHAMAREmopmeanmam A m ypornwayamanarTraummen - RDSunica - - विषय. मात्र - - - - -- - - --- पृष्ठ. पं० । विषय, पृष्ठ. ५० चाोंजयन्तिनको भाव २६९ ५ । वैशाख वदि ११ श्रीमहाप्रभुआश्विन शुक्ला १ नवरात्रको जीको उत्सव २८४ १२ भाव २७० १२ वैशाख सुदि ३ अक्षयतृती, १० दशहरको भाव , १६ याको भाव २९० ८ - २५ अरटको भाव २७१ ३ ज्येष्ठ सुदि १५ स्नानयात्राको कार्तिकवादि १३ धनतेरसको ___ भाव २७२ १ आषाढ सुदि २ रथयात्राको० २९१ २० हिंडोराको उत्सवको भाव २९२ १८ , १४ रूपचौदशको श्रावण सुदि ११ पवित्राको भाव , ८ उत्सवको भाव . २९३ ४ , ३० दीवारीको श्रावण १५ रक्षाबन्धन उत्सभाव , २१ वको भाव कार्तिकसुदि १ अन्नकूटकी तीसरा भाग समाप्त । ___ भावना २७६ ९ श्रीगोकुलनाथजीको वचनामृत , २ भाईदूजको मुहूर्त देखवेको २९६ भाव २७६ २२ चौथा भाग ४. __, ८ गोपाष्टमीको मन्दिरको चित्र २९९ भाव २७७ ४ सेवासाहित्यवस्तु ३००-१ , ११ प्रबोधनीको भात्र २७८ १३ आभूषणों के चित्र ३०२ पौष वदि ९ श्रीगुसांईजीको श्रीमस्तकके श्रृंगारको साज ३०३ भाव २८० १३ चन्द्रिका पागादिकको आकार३०४ माघ सुदि ५ वसन्तपञ्चमी २८२ २ । चैत्र सुदि १ संवत्सर, १५ होरीडांडाको । की आरती ३०५ भाव , २५ चैत्र सुदि ६ श्रीयदुनाथजीके फाल्गुन वदि ७ श्रीजीको पाटो उत्सवकी आरती , त्सवको भाव २८३ ९ वैशाख वदि ११ श्रीमहाप्रभु" सुदि ११ खेल । जीके उत्सवकी आ० ३०६ बड़ोनाको भाव , १४ मङ्गलाआरती राजभोगसन्ध्या , १५ होरीके उत्स- आरती शयन , वको भाव , १५ वैशाख वदि ११ तिलककी चैत्र वदि १ डोलको उत्र आरती ३०७ वको भाव , १६ वैशाख सुदि ३ अक्षय तृतीचैत्र सुदिए रामनवमीको भाव २८४ ३ । याकी आरती ३०८ । - Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ABProme n tumornsnarauratSamaANDARI - - Www ३२४ ३२५ ३२६ आरती ३२७ ३२८ ३२९ विषय. वैशाख सुदी १४ श्रीनृसिंह चतुर्दशी ज्येष्ठ सुदि १० गंगादशमी ,, १५ स्नानयात्रा आषाढ सुदि २-३ रथयात्रा H , विना घोड़ा रथ " , ६ कटूंबाछठ "" १५ शयनआरतीआजदिनसों चातुर्मासके नियमनको आरंभ श्रावण वदि १-२ बुध वा गुरुसे प्रथमारंभ हिंडोला श्रावण सुदि ३ ठकुरानी तीज फूल अथवा कांचका हिंडोरा श्रावण सुदि ५ नागपञ्चमी ", ११ पवित्रा एकादशी ", १४ श्रीविठ्ठल रायजीको उत्सव ,, १५ राखी पुन्यो "" १५ श्रीगिरिधरजीका पुत्र श्रीदामोदरजीको उत्सव श्रीनवनीतप्रियजीके घरमें माने है भाद्र वदि ७ में उतरे है जन्माष्टमीके दिन शयनम भाद्रपद वदि ७ के दिन छठीकी आरती भाद्रपद वदि ८ छठी पूजनकी ३०९ तथा विराजनेको पलनाके चित्र ३११ ,,, तिलककी ३१२/ आरती " ""सन्ध्या आ० ३१३ "" , महाभोगकी ३१४ भाद्रपद सुदि ५ द्वितीयस्वरूप श्रीचन्द्रावली जीको उत्सव ___" , ८ श्रीराधाष्टमी३१६ को उत्सवकी आ० "", राजभोगकी आरती ३१७ भाद्रपद सुदि ११ दान एका दशीकी आरती ", १२ श्रीवामन३१९ द्वादशीकी आरती आश्विन वदि ५ श्रीहरिरायजीको उत्सव श्रीविठ्ठलनाथजीके घरमें माने हैं दिवालीके दिन राजभोगमें भी यही आरती होयहै आश्विन वदि ८ बडे गोपीनाथ३२१ जाके लालजी श्रीपुरुषोत्तम जीको उत्सव ३२२ / आश्विन वदि ११ श्रीमहाप्रभु जाके ज्येष्ठ पुत्र श्रीगोपी ३३० ३३१ tu ३३२ ३३३ ३३४ नाथजीको उत्सव " Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रमणिका। MPIEEEEEEEEEPATI पृष्ठ sareememo - विषय. पृष्ठ. । विषय. साँझीनकी आरती ६ ३३४ | कार्तिक सुदि २ भाईदूज राजआश्विन वदि १३ श्रीगुसाई भोगकी आरती ३४८ जीक तीसरे लालजी श्रीबालकृष्णजीको उत्सव गोपाष्टकी आरती और सांझी . मीकी आरती ३४९ नकी ५ ३३५ , ९ अक्षय,, ३० कोटकी आरती ३३६ नवमीकी आरती ३५० आश्विन सुदि १० दशहराकी कार्तिक सुदि ११ प्रबोधनी आरती तथा माणवेको राजभोग तथा मंडपकी ३५१ द० और नवविलासकी "", सन्ध्या विना नामकी छोटी छोटी आरती३३७ | तथा मण्डपकी-चौकी ३५२ आश्विन १५ शारदोत्सवकी आ० ३३८ " " " शयन कार्तिक वदि १३ धनतेरसकी ___तथा मण्डपकी चौकी ३५३ आरती ३३९ ___" ", मण्डप "" धनतेरसको और आयुध ३५४ ,, १२ श्रीगुसाई"" १४ बङ्गला ३४१ जीके बड़े पुत्र श्रीगिर" , रूपचौदशकी धरजी तथा पञ्चम पुत्र आरती श्रीरघुनाथजीके उत्सव ", ३० दिवालीको । नकी आरती २ . ३ बङ्गला ३४३ / मार्गशीर्ष वदि ८ श्रीगुसां:,, दिवालीके दिन जीके द्वितीय लालजी सन्ध्या , शयन तथा श्रीगोविन्दरायजीके उत्सहटड़ीकी आरती और वकी तथा श्रीगुसांईजीके आश्विन वदि ५ की ही उत्सवकी मङ्गला आरती ३५६ आरती दिवालीके दिन मार्गशीर्ष वदि १३ श्रीगुसांई राजभोगमें होय है ३४४ जीके ७ व लालजी "" मङ्गला आरती ३४५ श्रीघनश्यामजीके उत्सकार्तिक सुदि १ गोवर्द्धनपूजा वकी और मण्डपकी चौकी ३५७ . __ तथा अन्नकूटकी आरती ३४६ मार्गशीर्ष सुदि ७ श्रीगुसांई" " २ भाईदूज जीके चतुर्थ लालजीतिलककी आरती ३४७ श्रीगोकुलनाथजीको उत्सव ३५८ % D Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पापOOMARRORDERATINENTREESAREE मारमाMUCEDAAJaraswammar का ३६५ विषय, पृष्ठ. । विषय. पृष्ठ. मार्गशीर्षे सुदि १५ श्रीबल- | फाल्गुन वदि ७ श्रीनाथजीको देवजीको पाटोत्सव तथा पाटोत्सवकी आरती जन्माष्टमीकी मङ्गलाकी आ० ३५९ , सुदि ७ श्रीमथुरेशजीके पौष वदि ९ श्रीगुसांईजीको पाटोत्सवकी आरती उत्सव राजभोग तिल- , सुदि १५ होरीके दिनकी आरती ककी आरती फागखेल फाल्गुनमें बगी|" ," शयन और चामें तथा सुखपालके चित्र Is सन्ध्याकी आरती ३६१ | चैत्र वदि १ डोलको चित्र | माल वदि ६ श्रीदीक्षितजीके |,, २ द्वितीयाउत्सव तथा माघ सुदि पाटको उत्सवकी आ० ३६८ पूनम होरीडांडाकी आरती ३६२ ,,,,, फूलमण्डली दो ३६९ माघ सुदि ५ वसन्त तथा या उपरान्त और विना नामकी फाल्गुन सुदि ११ कुज आरती हैं सो उत्सवनमें यथारुचि लेनी। एकादशीकी आरती ३६३ | इति चौथाभाग समाप्त । इति अनुक्रमणिका। MY MY 9 - -- mar - Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीः । ॥ श्रीवल्लभ पुष्टिप्रकाश ॥ प्रथम भाग । ॥ श्रीकृष्णाय नमः ॥ श्रीगोपीजनवल्लभाय नमः ॥ अथ श्रीसातों घरकी सेवा प्रकाशमें सेवाकी रीतिसों श्रीपुष्टिमार्ग में श्रीठाकुरजीकी सेवाविषे केवल स्नेह वात्सल्य मुख्य है, जैसे माता अपने बालककी वत्सलता विचारत रहै । और पतिव्रता स्त्री अपने पतिकी प्रसन्नता चाहेवो करे । और (यथा देहे तथा देवे ) इत्यादि शास्त्रीय विधि पूर्वक जैसे उष्णकालमें अपनेको गरमी लगे है और शीतकाल में अपनेको सरदी लगे है और समयपर भूख प्यास लगे है । तामें जैसे आपन सर्व प्रकारसों रक्षा करें हैं । तैसे समयानुसार भगवत् स्वरूपमेंहूँ विचारत रहे सो ही सेवा है | और केवल जहाँ माहात्म्यहै सो पूजा क ही जाय । हियाँ माहात्म्यकी विशेषता नहीं है । हीयाँ तो केवल प्रीतकी पहुँचान है । जैसे गोविन्दस्वामीने गायो है कि, " प्रीतम प्रीत होते पैये" जाप्रकार श्रीनजभक्तननें श्रीठाकुरजीको प्रेम विचारके सेवा करी है ताही प्रकार श्रीव्रजभक्तनकी आड़ी यह सेवा है। जैसे या पदमें गायो है के "सेवारीत प्रीत व्रजजनकी जनहित जग प्रगटाई । दास शरण हरिवागairat चरणरेणु निधि पाई" | और सूरदासजीने गायो है । " भज साख भाव भाविक देव । कोटिसाधन करो कोऊ तोऊ न माने सेव ॥ १ ॥ धूम्रकेतु कुमार मांग्यो कौन मारग नीत । पुरुषते स्त्रिय भाव उपज्यो सबै उलटी रीत ॥ २ ॥ वसन भूषण ANCIENT PROS HOM Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NSSHOTTERTIANETHEROINETRAINMEANINकार MINIREDEOURISMANERJEDAAREAMIREOVIDHINCREAMERABATER -- - - - SARASTRAMIRRORMATCHESTERRORMATERIEOSHREERESHEROICINEERIRECOctarematomer - पलटि पहिरे भावसों सोय । उलटी मुद्रा दई अंकन वरन सूधे होय ॥३॥ वेद विधिको नेम नाही भीतकी पहिचान । ब्रजवधू वश किये मोहन सूर चतुर सुजान" ॥४॥ सो जब प्रेमकी पराकाष्ठा दशा आवे तब वत्सलता उत्पन्न होय है। पूर्णदशामें नेम तथा माहात्म्य नहीं रहे । जैसे दोसौ बावन वैष्णवनकी वार्ता में प्रसङ्ग है कि बावाजी रजपूत घोड़ापर सवार राजाके सड़सवारीमें जातहतो सो श्रीठाकुरजीने जतायो कि राजभोगके थालमें धृत थोडो धरयो है । सो श्रीठाकुरजी गलो खुजापत हैं । सो तत्काल राजाकी सवारी छोड़ घोड़ा दौडाय दुकानते घृतलेके घर आय टेरा सरकाय श्रीगकुरजीकू घृत भोग धरयो । सो वत्सलताकी उतावलमें जोड़ीहू उतारबो भूलिगये । सो एक वैष्णव यह अनाचार देखि विनके घर महाप्रसाद न लीनो । तब वा वैष्णवः रात्रिमें श्रीगकुरजीने नममें जतायो कि तैने बाधनीको अनाचार देख्यो परन्तु वाकी प्रेमकी पूर्णावस्थामें देहानुसन्धान नहीं रह्यो सो तैनें नहीं देख्यो ताते विनके घर जायके महाप्रसाद लेय । ऐसेही एक गिरासिआ रजपूतकी वार्ता में है । राजभोगकी चौकी कछु दूर हती श्रीठाकुरजी उझकिके अरोगते सो जानिके गिरासिआ वैष्णव पाँचो कपडा पहिरे झट भीतर जाय के श्रीगकुरजीके नजीक चौकी सरकाई । कपडा उतारत ढील होती इतनो श्रम श्रीठाकुरजीकू होतो सो इनको पूर्ण स्नेह देखि श्रीठाकुरजी बोहोत प्रसन्न भये । सो श्रीगकुरजी तो स्नेह के वसहैं, और छांदोग्य उपनिषदमें भगवतवाक्यहैः-कि “न वेदयज्ञाध्ययनैन दानेन च क्रियाभिन तपोभिरुयैः। प्राप्तिश्च मामेव किं कोटियत्नैः सर्वात्मकं प्रेम सूत्रपि बद्धम् ॥ १॥ । - REDIENER SS Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ N a wararuARISISRONMODEusarmaratmaramanm RBERIOTERORISEARNERRORITAPAISARTION AR Y ANTRAur - LADIGEEMAKRANEINDIAHILA nainamainademinine HINHRESSERRANTHREE m a अर्थ-न वेदपढवेसों न यज्ञकरवेसों न दान करवेसों न | कर्ममार्गसों न उग्र तप करवेसों इत्यादि कोटिन उपायसों मेरी प्राप्ति नहीं केवल प्रेमके कच्चे सूतसों मैं बन्ध्योहूँ। ऐसेही श्रीमद्भागवतके नवमस्कन्धमेंहूँ कह्योहै। “ अहं भक्तपराधीनो स्वतन्त्र इव द्विज" श्रीभगवान कहे हैं कि, हे नारद !अस्वन्तत्रकी नाई मैं अपने भक्तनक पराधीन हूँ। अर्थात् जब उठावें तब उठोंहों जब पौटावे हैं तब सोऊहूँ जब भोग घरेहैं तब भोजन करूँहूं इत्यादि। अपने भक्तनके भावके वश होय रह्योहूँ सोनजभक्तन समान प्रेमलक्षणा भक्ति काहूनें नहीं करी सो यह पुष्टिभक्ति है ताते सूरदासजीने गायो। “गोपी प्रेमकी बजा॥ जिन गोपाल किये वश अपने उरचारि श्यामभुजा".॥ सो फिर पूर्णपुरुषोत्तम साक्षात् आप अपने दैवीजीवन के उद्धारार्थ निजधामते भूतल पर श्रीआचार्यरूपते प्रगट होय पुष्टिमार्ग प्रगटकियो। श्रीगोवर्द्धननाथजीसों मिले। और सब जीवनकों शरणले सन्मुख किये पीछे श्रीगुसांईजी (श्रीविठ्ठलनाथजी) स्वतः श्रीनन्दकुमार आपके प्रकटहोय, कोटिकन्दर्प लावण्यस्वरूप श्रीनाथज्ञी श्रीगोवर्द्धन धारण किये। जो सारइन्वतकल्पमें श्रीब्रजमें प्रगटहोय सात स्वरूपते ग्यारह वर्ष बावन दिन पुष्टिलीला करीहै । षोड़श गोपिकाके मध्ये अष्ट कृष्ण होनेभये । श्रीनाथजी श्रीनवनीतप्रियजी २ श्रीमथुरानाथजी ३ श्रीविठ्ठलनाथजी ४ श्रीद्वारिकानाथजी ६ श्रीगोकुलनाथजी ६.श्रीगोकुलचन्द्रमाजी ७ श्रीमदनमोहनजी८ यह स्वरूपनकी सेवाको प्रकार पुष्टिमार्गरीतके अनुसार चलायो और आप सेवा करके अपने जननकों बताई । सो वल्लभाख्यानमेंहूँ कह्योहै । “जो आप सेवाकार शीखवी श्रीहरिः” फिर - - WONDESIRESENTURDHAROHIREE Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीगुसांईजी सात बालक प्रगटभये । प्रथम श्रीगिरधरजी - १ श्रीगोविन्दरायजी २ श्री बालकृष्णजी ३ श्रीगोकुलनाथजी ४ ( जिनको श्रीबल्लभ नाम है ) श्री रघुनाथजी ५ श्रीयदुनाथजी ६ जिनकों श्रीमहाराजजीहू कहे हैं श्रीघनश्यामजी ७ सो सात बालकके एक एकके बटमें एक एक स्वरूप पधराए । और श्रीनवनीतप्रियजी श्रीनाथजीक गोदके ठाकुरजी सो श्रीनाथजीके पासही विराजे । और श्रीनाथजी की सेवा तो सब बालक मिलके करते । और अपने अपने घर सेव्यस्वरूपकीहू सेवा करते । तासों यासम्प्रदाय में सात घर कड़े जायहैं । और श्रीयदुनाथजी तो श्रीनवनीतप्रियजीकी सेवामें आसक्त रहते । तासों न्यारो स्वरूप नहीं पघरायो । और श्रीबालकृष्णजी, श्रीनटवरलालजी, श्रीमुकुन्दरायजी, श्रीगोदके ठाकुरजी, सो श्रीनाथजी के पासही बिराजते । अब श्रीयदुनाथजीके बंसमें श्रीगिरधरजी महाराजकाशीवारे । श्रीमुकुन्दरायजीको अपने माथे पराये, ताते आठमों घर श्रीयदुनाथजीको श्रीमुकुन्दरायजीको मन्दिर बाजे । सो यहाँ सेवाकी रीति श्रीनवनीत प्रियजीके घरकी रीति अनुसार होयहै । और बोहोत करके सातों घरकी प्रनालिका तो एकड़ी है। जैसे प्रथम घण्टानाद, फिर शङ्खनाद होय है । पाछे श्रीठाकुरजी जागे मंगलभोग आवे, पीछे आरती होय तापाछे स्नान होय शृङ्गार होय । पीछे गोपीबल्लभ भोग आवे ग्वाल होय पीछे राजभोग होयके आरती होय पाछे अनोसर होय पाछे उत्थापन होय भोग सन्ध्या और शयन होय है याप्रमाण नित्यरीति तथा वर्ष दिनके उत्सव तथा तादिकको निर्णय ये सब जगे होय सोही मान्योजाय परन्तु कोई कोई सेवा की रीतिभाँति में अन्तर पड़े ताको कारण Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MALAI RESSIONRNARE - DSCIEHDHIRap - | यह है जहाँ जो स्वरूप बिराजै तिनकी लीलाकी भावनांसों सेवा होय है कहीं नन्दालयकी लीलाहै कहीं निकुञ्जकी लीला है कहूँ प्रमाणप्रकरणकी प्रगट है और गुप्त है और कही प्रमेय प्रकरणकी प्रगट है और सब गुप्त है कहूं साधन, कहूं फलकी प्रगट है और गुप्त है जैसे श्रीनाथजी आदि सातों मन्दिरनमें जहां श्रीठाकुरजी विराजे हैं तहां एकही द्वार निज मन्दिरमें राखबेकी रीति है । और जगमोहनमें तीन दर रहे हैं। और शय्या मन्दिर वामभागमें रहे। और मन्दिर पूर्वमुख अथवा उत्तरमुख । और डोलतिवारी दक्षिण मुख और चौकके बाहर | | हथिआपोरी और सिंहपोरि होय, ताके आगे श्रीगोवद्धन चौक रहे है यह श्रीमन्दिरकी रीति है। अब श्रीनवनीतप्रियजीके सिंहासनकी पीठक चार कलसा लगे हैं औरचरनमें प्रायः तीन कलसा लगावेकी रीति है। और राजभोगके समय श्रीनवनीत प्रियजीके सिंहासनके आगे, खण्ड, ( सिंढी ) ताके आगे पाट बिछे ताके ऊपर चौपड बिछे ताके आगे एक छोटी चौकी बिछके, राजभोग आरती होय है। सो भोगके दर्शन होय चुकवे आवे तब चौकी पाट, खण्ड, सब उठाय लियो जाय फिर टेरा होय सन्ध्याभोग आवे । और श्रीगोकुलनाथजी तथा श्रीविठ्ठलनाथजी तथा श्रीमदनमोहनजीके यहांतो भोग समय तीन चौकी खण्डके आगे रहें । बीचकी चौकीपर चौपड़ माडीरहे । दोनोंबगलकी चौकीपर छोटीसी गादी बिछीरहे। और श्रीचन्द्रमाजीके राजभोगके समय चौपड़की चौकी शय्याके पास रहे।और खण्डके आगे एक छोटी चौकी धरीजाय है। और पाछे भोगके समय तीनों चौकी बिछे हैं। और राजभोगके समय खण्डके आगे एक आसन पाटकेठिकाने । - - - - - Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MANOR - - बिछे हैं। ताके ऊपर एक छोटी चौकी बिछे है। ऐसेही श्रीगोकुलनाथजीके घरमें रीति है सो अक्षयतृतीयासों छिडकाव होय तब। एक चौकी गादी सुद्धा खण्डके आगे आवे है, रथयात्राताई । फिर सुजनी। श्रीगोकुल नाथजीके मन्दिरमेंहूँ राजभोगके समय खण्डके आगे सुजनी अथवा आसन बिछे हैं। ताके ऊपर गाय घोड़ा, हाथी आदि खिलोना धरे जॉय हैं। सो सन्ध्या आरतीसे पहिले उठाये जाँय हैं। और राजभोग समय गेंद चौगान सिडिपें दोऊ आडी धजिाय हैं। | और और मन्दिरनमें सब ठिकाने गेंद चौगान एकही बगल दाहिनी दिशा धरीजाय है । और श्रीगोकुलनाथजीमें गादीके दोऊ आडी तकिया नहीं धरे जाय हैं। ताको भाव यह है जो श्रीगोकुलनाथजीके गादक आस पास एकही सिंहासनऊपर श्रीविठ्ठलनाथजी तथा श्रीमदनमोहनजी बोहोतदिन ताई बिराजे तब बगली तकिया नहीं रहते। सोही भावसों अबहूँ नहीं धरे हैं। और राजभोगमेंहूँ तीन थार आवे हैं। और दोऊ आड़ी दर्पन रहे हैं । औरमन्दिरनमें दर्पन राजभोग आरती पीछे सिडिपर (खण्डपर) धरयोजाय है । और हीयां गोकु. लनाथजीमें शयन आरती समय गादीके पास झारी, बीड़ा सदाँही रहे हैं। और श्रीगोकुलचन्द्रमाजीमें रामनवमीते दशहरा ताई शयनमें झारी बीडा रहे हैं। दशहराते झारी नहीं रहे। और मन्दिरनमें शयन समय बीड़ा, रहे, झारी नहीं रहे। श्रीविठ्ठलनाथजीमें शंखोदक दोय बिरियां होय एक राजभोग आये, और दूसरे राजभोग आरतीपाछे शंखोदक होय पाछे वाई जलसों सबनको मार्जन करे है। और गोकुलचन्द्रमाजीमें श्रृंगार आरती होयवेकी रीति EDIASE Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RECTER - है। और मन्दिरनमें नहीं । और पादुकाजीकी पलङ्गड़ी कोई मन्दिरनमें दक्षिण भागमें बिराजे हैं । और शय्या सबजने बामही भागमें बिछवेकी रीति है। और तुलसीदल जोश्रीठाकुरजति चरणारविन्दमें राज भोग आये धरावे हैं सो श्रीगोकुलनाथकी तथा श्रीगोकुलचन्द्रमाजीके तुरतही बड़े होयजाय है। और ठिकाने राजभोगसरेपीछे बड़े होय । और राजभोग आरती भये पाछे माला सबजगे बड़ी होय है । सो बगली तकियापर अथवा तबकडीमें दाहिनी दिश रहे है। और जादिन तिलक होय तादिन माला बडी नहीं होय है सो| उत्थापन समय बडी होय है। याप्रकार उत्सव मेंहूँ कितनीक रीतिभाँतिमें अन्तर पडे है। अब जन्माष्टमीके दिन प्रातःकाल श्रीठाकुरजीको पञ्चामृतस्नान सब ठिकाने शंखसों होय है। और अमिदनमोहनजीमें कटोरीतूं होय है और जन्म समय श्रीगिरिराजजीतथा शालग्रामजीकों पञ्चामृत शंखसों होय है। और श्रीनवनीत प्रियजी। श्रीमथुरेशजी । श्रीगोकुलचन्द्रमाजी । जन्माष्टमीके दिन वागा केशरी और कुल्हे केशरी धरावे हैं। और श्रीगोकुलनाथजी। श्रीविठ्ठलनाथजी। श्रीमदन मोहनजी ये केशरी बागा और सुपेत कुल्हे धरे हैं । और राधाष्टमीको सब ठिकाने बागा केशरी और कुल्हे केशरी धरावे हैं। श्रीनवनीतप्रियजी सदाही पालने झूले हैं । और श्रीविट्ठलनाथजी जन्माष्टमीते राधाष्टमी ताई पालना झुले हैं। और श्रीगोकुलनाथजी तथा श्रीगोकुलचन्द्रमाजी एकही दिन नवमीको पालना झूले हैं । और श्रीगोकुलचन्द्रमाजी दशमीके दिनाहूं झूले हैं । और श्री मदनमोहनजी छठी ताई पालना - ROHTAS Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पE T URNALISTORY D AM HOMORRESHAMIRSINESHINDERIHIJAD झूले हैं। और दान एकादशी तथा वामनद्वादशीभेलीहोंयतो श्रीगोकुनाथजी तथा श्रीगोकुलचन्द्रमाजी किरीटमुकुट धरे हैं और मन्दिरनमें केशरीबागा तथा केशरी कुल्हेही धरे हैं। और शरद पुन्योकों कोई मन्दिरनमें नित्यकी रीतिसों शयन आरती जलदी होय जाय है । और श्रीचन्द्रमाजी शरदमें नहीं बिराजे हैं। वादिना शयन बेगि होय जाय है। और कोई ठिकाने दिवारीको एक दिन हटरीमें विराजे हैं। और कहूं पाँच दिन शीस महल में शयनके दर्शन होय हैं। और श्रीगोकुलनाथजी ।श्रीगिरिराज पूजनमें स्नान दूधसों और जलसों होय हैं । और मन्दिरनमें दूध तथा दहीसों होय है। और श्रीगोकुलचन्द्रमाजीमें श्रीगिरिराजजीको पञ्चामृत स्नानहोय है। और अन्नकूटको भोग आवे तहाँ कोई मन्दिरनमें सिंहासनके आगे गली रहे हैं । और कोई मन्दिरनमें गली नहीं रहे है । और प्रबोधनीको और मन्दिरनमें देवोत्थापन करके श्रीबाल कृष्णजी अथवा श्रीगिरिराजजीकों पञ्चामृत स्नान करायके पाछे जडावर धरायके पाछे मण्डपको भोग आवे है।और श्रीगोकुलनाथजीमें पहेले पहेले पञ्चामृत स्नान होय पाछे जडावर धराय पाछे देवोत्थापन होय है । और वसन्तपञ्चमीको सब ठिकाने पागको शृङ्गार होय है। और श्रीगोकुलनाथजी तथा श्रीगोकुलचन्द्रमाजीमें और श्रीमथुरेशजीमें तथा श्रीमदनमोहनजीमें कुल्हेको शृङ्गार होय है। सोही डोलको भी होय हैं। सब ठिकाने राज भोग पाछे खेले हैं फिर उत्सवभोग आवे है और श्रीविठ्ठलनाथजीमें वसन्त पीछे छठते शृङ्गारमें वसन्त खेलेहै, सो होरीडाँडांताई । पाछे राजभोग पीछे खेलेहैं । और डोलमें शृङ्गारसमें बिराजें पाछे - । - Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ REPORTED HAR - राजभोग आवे श्रीकुलनाथजीमें वसन्त पीछे उठते शृङ्गारहीमें खेले । सो डोलपर्यन्त । पाछे राजभोग आवे है श्रीमदनमोहनजीमें छठते शृङ्गार पाछे खेल। पाछे राजभोग आवे है। और एक वसन्तपञ्चमीको उत्सवभोग सब जगे आवे है । और नित्यखेलके समय पासही एक पडघा छन्नासों ढाँकके आवे है। और रामनौमीकों श्रीविठ्ठलनाथजी तथा श्रीगोकुलनाथजी तथा श्रीमदनमोहनजी यह तीनो ठिकाने प्रातः सम श्रीठाकुरजीको जन्माष्टमीवत् पञ्चामृतस्नान होय है। और जगे जन्म समय श्रीबालकृष्णजी अथवा श्रीगिरिराजजीकोंही पञ्चामृत स्नान होय है। और केशरी बागा केशरी कुल्हे सब जगह धरावे हैं श्रीमहाप्रभुजीके उत्सबके दिन केशरीसाज केशरीबागा केशरी कुल्हे सब मन्दिरनमें धरे है। और श्रीगोकुलनाथजीमें श्वेतसाज श्वेतही कुल्हे रहे हैं। और तिलक नहीं होय है। सो ताको कारण कि श्रीपादुकाजी श्रीमहाप्रभुजीके चोरीमें गये मन्दिरनमेंते, ताते बिरह माने हैं । और अक्षयतृतीयाते सब मन्दिरनमें उष्ण कालको सब साज सुपेद होयहै । सो पिछवाइ, चन्दुआ, बागा, वस्त्र सब साज सुपेद रहे और नित्य मोतीनके आभूषण धरे है । चन्दनी पंखा, गुलाबदानी, माटीके कुञा आदि सब श्रीठाकुरजीके पास घरेजाय है। उत्थापनमें भिजोई, धोई दार, कच्ची । तरमेवा, पणो आदि शीतल भोग शीतल पदार्थ भोग आवे है । छिड़काव होय है। खसके टेरा ( पड़दा ) लगे हैं। सो सब रथयात्राताई रहैं। पाछे कछु कमती हो जाय हैं श्वेत साज कसुंभाछठ (आषाढ़सुदि ६) ताई रहे है। कहूँ अषाढपुन्यो ताँई रहे है। श्रीगोकुलनाथजीके | पवित्रा एकादशी ताई रहे है। ER -- । BREASTER Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ACMTNERASE PERATORS D ARMORE __ श्रीनृसिंहचतुर्दशीको केशरी कुल्हे, केशरी बागा सबं जगे धरे है और श्रीगोकुलचन्द्रमाजी केशरी छापा तथा चोवाके पाके पिछोरा पागको शृङ्गार होय है । श्रीमदनमोहनी श्वेतकुल्हेधरे वस्त्र छापाके स्नानयात्राके ज्येष्ठाभिषेकमें, जहाँ ठाढे स्वरूप विराजतहोंय । तहाँ सोनेके आभूषण, तिलक, कड़ा, नूपुर, कटिमेखला, श्रीकण्ठी, बेसर, सब धारणकरे। श्रीबालकृष्णजीको छोटो स्वरूप होय तो श्रीकण्ठमें कण्ठी तथा तिलक धरे। ऐसेही जन्माष्टमीके पञ्चामृतस्नान समय आभूषण रहै। रथ यात्रा। रथयात्राको और सब जगे राज भोग पीछे रथमें विराजे है। श्रीगोकुलनाथजी तथा श्रीविठ्ठलनाथजी तथा श्रीगोकुलचन्द्रमाजी श्रीमदनमोहनजी । ये स्वरूप शृङ्गारमें ही रथमें विराजेहैं। और कोई मन्दिरनमें रथमें घोड़ा लगे हैं। और कोई मन्दिरनमें शनय समय घोड़ा लगे हैं और श्रीनवनीतप्रियजीके रथमें घोड़ा नहीं लगे हैं। और सावन में जादिन हिंडोरा बिराजे तादिनते आभूषन जड़ाऊके धरावे हैं । लाल बागो तथा पागक शृङ्गार होय है । श्रीगोकुलनाथजी तथा श्रीगोकुलचन्द्रमाजी श्रीमदनमोहनजीमें कुल्हेको शृङ्गार होय है । सोई शृंगार सब ठिकाने पहले दिनको सोई हिंडोराविजय होय ता दिन होय है। और उत्सवके भोगमें और सब ठिकाने धूप, दीप शंखोदक होय हैं। और श्रीगोकुलनाथजी तथा श्रीगोकुलचन्द्रमाजीमें राजभोगमें होय है । और एक जन्माष्टमीके महाभोगमें होय है और कोई। भोगमें नहीं होय है॥ - - Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MINSAARR I E RRIAKRAMANAKATERRORIHITISARMINIMIMARINEERNATRAPANEERRATRamRMERIKONMIMAMMEANIRMANNERMIREORNORSEENETICISMICROSORDINARY a mmami- - - । - श्रीनवनीतप्रियजीके शयनके दर्शन। श्रीनवनीतप्रियजीके दर्शन और श्रीनवनीतप्रियजीके शयनके दर्शन चालीस दिन बसन्तले डोलताई होय हैं । और बीचमें हिंडोरा, फूलमण्डली आदि मनोरथ होय तब शयनके दर्शन होय हैं सोई रीति श्रीमुकुन्दरायजीके घरमें है। शयनके दर्शन सदा नहीं होय हैं। और मन्दिरमें शयनके दर्शन होय हैं। या प्रकार श्रीगुसांईजीकी सेवाको प्रकार सब घरनमें वर्तमान है। और श्रीगुसांईजीके पीछे श्रीगोकुलनाथजी (श्रीवल्लभ ) नव वर्ष पर्यन्त भूतलपर विराजे सो श्रीजीकी सेवाको प्रकार तथा आभूषण आदि अनेक प्रकारको वैभव बढायो और पुष्टिमार्गके अनेक सिद्धान्त वचनामृतद्वार प्रगट करि प्रकाश किये। और चिद्रूप संन्यासीको जीतकर मालाको धर्म राख्यो और पुष्टिमार्गको विस्तार कियो । और फिर गोस्वामिबालकनने मनोरथकरके सब घरनमें कितनीक रीत अधिक बढाई । और कोई कारन करके कितनी कई प्राचीनरीत गुप्तहू होती गई है जैसे श्रीनाथजीमें अब वर्षोंवर्ष श्री दाऊजीमहारावे समयते मार्गशिर सुदी १५ को छप्पन भोग होय है । और श्रीद्वारिकानाथजी में फाल्गुनसुदि १३ को ८४ खम्भाको कुन बन्धे है और श्रीगोलनाथजी में राजभोगमें एक धूपही होय है दीप नहीं होय है ताको कारन कोई समय अग्निको उपद्रव भयो हतो तासों दीपकी रीत नहीं रहीं। ऐसेही घटती बढती होय जाय है अब एतन्मार्गमें चौबीस एकादशी और चार जयन्तिनको व्रत करनों यह आवश्यक करनो कह्यो है। और दशमीविद्धा एकादशीको व्रत सर्वथा निषिद्ध है । ताको तथा १ बाबा आवे न घण्टा बाजे । - - - MAANINDMONINDIMANARRAIMAGICIAAS A HELLCAINEERIHANIAURAHMANISHAD I ONRNATION Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AIRRORDNEEDINDIAN OTION - - उत्सवको निर्णय आगे दूसरे भागमें विस्तारसों लिख्यो है तामें देखलेनों॥ चारों जयन्ती। अब चारयों जयन्तिनको व्रत श्रीमथुरेशजीके घरमें निराहार रहवेको आग्रह है और मन्दिरनमें फलाहारकयो है । और श्रीगोकुलनाथ में तथा श्रीगोकुलचन्द्रमाजीमें ये चारयों जयन्तिनमें जन्मभये पाछे पारणा, महाप्रसाद लेवेकी रीति है। तहाँ श्रीगोकुलचन्द्रमाजीमें जन्माष्टमीके अर्द्धरात्रीके समय जन्म भये पाछे पञ्जीरी आदि कछुक लेनो आवश्यक कह्यो है। सो या प्रकार जो जाघरके सेवन होंय ताकी रीतप्रमाणे सेवाविधिकी पुस्तक देखि विचारके अपने श्रीठाकुरजीकी सेवा करनी और पुष्टिमार्गीयजननकों भगवत्सेवा तथा भजन स्मरन तनजा, धनजा मनजा सोजितनो बनिओ सो अवश्य करनों कह्यो है कि" सेवायां वा कथायांवा यस्यां भक्तिहढा भवेत्।” यही मुख्य धर्म अरु परम पुरुषार्थहै तामों सेवा और भजन नहीं छोडनों जासों जो कछु श्रद्धापूर्वक शुद्धभावसों और प्रेमतें जो बनि आवे है सो सब श्रीमहाप्रभुजीकी काँनते श्रीठाकुरजी अङ्गीकार करें। और एतन्मार्गीय वैष्णवजनको भगवत्सेवा भजन छोडि अन्य धर्ममें प्रवृत्ति होनो सर्वथा बाधकहै । यह श्रीमहाप्रभुजीके वाक्यहैं.कि श्रीकृष्णसेवा सदा कार्या मानसी सा परामता" । यही सेवाको साधन करते करते मानसी सेवा सिद्ध होयजायहै। और ऐसे करतेकरते सब अनुभव होयवेलग जायहै । जैसे राजा आसकरनजीको साधन करते करते मानसी सिद्धि होगई। और रणमें घोडाऊपर सवार होय मानसी सेवा करते चल्यो जायहै। तहाँराजभोगधरतमें घोडाउछरयो सोही - % D Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - RA कढीको डबरा छलक्यो तातें जामा भीजगयो और शत्रुभी। भाजगयो तातें वैष्णवजनको सत्संग और सेवा भजनमें जो तत्पर रहे तो लौकिक अलौकिक तब प्रभुकी कृपाते सिद्ध । होयजाय ऐसी ऐसी अनेक बातहैं कहाँ ताई लिखिये ग्रन्थको। विस्तार होजाय ॥ अस्तु ॥ . यह सातों घरोंकी रीत लिखीहै आगे जो जो घरके सेवक हाय ता ता घरकी रीत करनी। - अब याके आगे विस्तारपूर्वक श्रीहरिरायजी कृत आह्निक सब प्रतिदिनकी सेवा ताके आगे उत्सवसेवा विधिपूर्वक विस्तारसों दिनदिनकी लिखीहै ताके आगे क्रमसों उत्सव निर्णय ॥ तथा भाव भावना तथा सेवा साहित्यके चित्रादि लिखेगयेहैं। eacherseasesamerneINMEMEDIESIREMAILBHIARRESP R इति श्रीशुभम् । crearra Paamanaसा HAPP १ - बम BPS HिHABINESSPATROPATI - A wi i rbnitualifi e HIROINEMIERSEERVESTIGAM - - - R IKANERATURESTHETHORIRAMIKRANTINENDSEKADEMIEEHARIRIRAMINAamrpREpith Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SAIRATHILLAHaindianRammam - - RRORISODEOMARATHomeVDIEEEEEEENawa ' - श्रीहरिः। कधERA श्रीवल्लभपुष्टिप्रकाशप्रारम्भः । PRARIES anwar श्रीकृष्णाय नमः ॥ श्रीगोपीजनवल्लभाय नमः ॥ अथ नित्यसेवाविधिः। " नत्वा श्रीवल्लभाचार्यान पुष्टिसेवाप्रकाशकान् ॥ तदङ्गीकृतभक्तानामाजिक विनिरूप्यते ॥ १॥ श्रीविठ्ठलेशपादाब्जपरागान भाक्याम्यहम् ॥ पुष्टिमार्गप्रवृत्तानां भक्तानां बोधसिद्धये ॥२॥ अथ सूर्योदयते रात्रि ६ वा घड़ी रहे (अर्थात् ब्राह्ममुहूर्तमें ) सोवतते उठि श्रीभगवन्नाम (शरणमन्त्रादि) लेत रात्रिको वस्त्र बदलि हाथपाँव धोय कुल्ला ३ करिये । पाछे चरणामृत लेनो पाछे पूर्व वा उत्तर मुख बैटके श्रीआचार्यजी महाप्रभुजीको नामलेइ विज्ञप्तिसों दण्डवत करिये । तत्रादौ श्रीमदाचार्यानत्वा विज्ञापयेत् “ वन्दे श्रीवल्लभाचार्यचरणाब्जयुगं लसत् ॥ यतो विन्देजाधीशपदांबुजमघापहम्॥३॥ ततःश्रीमविट्ठलाधीशानत्वा विज्ञापयेत् “ श्रीगोकुलेशपादाजपरागपरिपूर्तये॥कायवाङ्मनसा नित्यं वन्दे वल्लभनन्दनम्. ॥ ४ ॥ ततः श्रीमगिरिधरादिसप्तकुमारान् पृथक् पृथक् स्मृत्वा प्रणमत्, तत्रादौ श्रीगिरिधरं “यदङ्गीकारमात्रेण नवनीतप्रियः प्रियम्। निजंतं मनुते नित्यं तं वन्दे गिरिधारिणम् ॥ ॥५॥ ततः श्रीगोविन्दरायम् “ यत्पदाम्बुरुहद्धयानाद्गोविन्द विन्दते जनः॥ वंदे गोविन्दरायं तंश्रीविट्टलेशमुदावहम् ॥६॥ ततः श्रीबालकृष्णम् “ यदनुयानमात्रेण स्वकीयं कुरुते जनम् ॥ द्वारिकेशो विशालाक्षं बालकृष्णमहंभजे ॥” ७॥ ततः श्रीगोकुलनाथम् “ यस्यस्मरणमात्रेण गोकुलेशपदा. - - - - - marnama LLC - Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NEINDIAHINDRA VoEAR POmantIRINTIM A TE - RANIKAR u ama and - श्रयः॥ जायते सर्वभावेन तं वंदे गोकुलेश्वरम् ॥८॥ ततः। श्रीरघुनाथम् “यस्याश्रयाद्भवेदाशु गोकुलेशपदाश्रयः॥ तं बिट्ठलपदासक्तं रघुनाथमहं भजे ॥९॥ ततः श्रीयदुनाथम् “यदुनाथमहं बन्दे बालकृष्णपदाश्रयम् ॥ रुक्मिणीहृदयानं. ददायकं भक्तवत्सलम् ॥ ॥ १०॥ ततः श्रीधनश्यामम् “यत्कृपालवमाश्रित्य तरंति भवसागरम् ॥ पद्मावतीमनोमोद घनश्याममहं भजे ॥ १३ ॥ ततः स्वगुरूत्रत्वा विज्ञापयेत् “त्राहि शंभो जगन्नाथ गुरो संसारवाहिना ॥ दग्धं मां कालदृष्टं च त्वदीयं शरणं गतम् ॥ १२॥ ततःश्रीगोवईनाधीशम् यथादृष्टं श्रुतं ध्यात्वा प्रणमेव “वामे करे गिरि स्त्रीषु मुदमिन्द्रे च साधसम् ॥धारयन्तमहं वन्दे चित्रं गोपेषु गोप्रियम्॥१३॥ तदनु श्रीनवनीतप्रियप्रभृतिवप्रभून पृथक पृथकू स्मृत्वा प्रणमेत्। तत्रादौ श्रीनवनीतप्रियम् “नवनीतप्रियं नौमि विट्टले. शमुदावहम्।।राजच्छार्दूलनखरंरिंगमाणं वृजांगणे" ॥३॥ततः श्रीमथुरेशम् “मथुरानायकं श्रीमत्कंसचाणूरमर्दनम् ॥ देवकीपरमानंदं त्वामहं शरणं गतः॥१५॥ततः श्रीविट्टलेशम् "सर्वात्मना प्रपन्नानां गोपीनां पोषयन्मनः ॥ तं वंदे विट्ठलाधीशं गौरश्यामप्रियान्वितम् ॥ १६ ॥ ततः श्रीद्वारकाधशिम् “इन्दीवरदलश्यामं द्वारकानिलये स्थितम् ॥ चतुर्भुजमहं वन्दे शङ्खचक्रगदायुधम्॥१७॥ततः श्रीगोकुलेशम् "गोवर्द्धनधरं देवं चतुर्बाहुं भयापहम् ॥ गोकुलेशं नमस्कृत्य शरणं भावयाम्यहम्॥१८॥ ततः श्रीगोकुलेन्दुम् "श्रीगोकुलेन्दोश्च पादारविन्दे स्मरामि सर्वान् विषयान विहाय । अतो न चिन्ता खलु पापराशेः सूर्योदये नश्यति तत्तमिस्रम् ॥ १९ ॥ ततः श्रीबालकृष्णम् नमामि श्रीबालकृष्णं यशोदोत्संगलालितम्॥पूतना SHONNARH HEPATHRILLERNMEND - - Roseuparmomenormona Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोपान वर्द्धना बदलश्यामा महाभारत ॥ शरणा सुपयःपानरक्षिताशेषबालकम् ॥” २०॥ततः श्रीमदनमोहनम् " जगत्रयमनोमोहपरो मन्मथमोहनः ॥ स्वामिनीहृदयानंद त्वामहं शरणं गतः॥२१॥ ततः सेव्यप्रभून्नत्वा विज्ञापयेत्॥ " नमः श्रीकृष्णपादाब्जतलकुंकुमपङ्कयोः ॥ रुचयत्यरुणं शश्वन्मामकं हृदयाम्बुजम् ॥ "२२॥ तदनु श्रीस्वामिनीजी प्रणमेतावृन्दाटवीकुञ्जपुञ्जरसैकपुरनागरि॥नमस्ते चरणाम्भोज मयि दीने कृपां कुरु ॥२३॥ततः श्रीमद्यमुनां पाभोक्तप्रकारेण स्मृत्वा प्रणमेत् । “त्रयी रसमयी शौरी ब्रह्मविद्या सुघावहा॥ नारायणीश्वरी ब्राह्मी धर्ममूर्तिः कृपावती ॥ २४ ॥ पावनी पुण्यतोयाद्या सप्तसागरसङ्गता ॥ तापिनी यमुना यामी स्वर्ग सोपान वर्द्धनी॥२५॥ कालिन्दीकेलिसलिला सर्वतीर्थमयी नदी ॥ नीलोत्पलदलश्यामा महापातकभेषजा ॥२६॥ कुमारी विष्णुदयिता झवारितगतिः सरित् ॥ शरणागतसत्राणे निपुणा सगुणागुणा ॥ २७ ॥ य एभिनामाभिः प्रातयमुनां संस्मरेन्नरः ॥ दूरस्थोऽपि स पापेभ्यो महद्भयोपि विमुच्यते ॥" २८ ॥ ततो भ्रमरगीतोक्तं श्लोकषटूकं पठित्वा ब्रजभक्तान् प्रणमेत् "एताः परं तनुभृतो ननु गोपवध्वो गोविन्द एव निखिलात्मनि गूढभावाः॥ वाञ्छन्ति यं भवभियो मुनयो वयञ्च किं ब्रह्मजन्मभिरनंतकथारसस्य ॥२९॥ केमाः स्त्रियो वनचरीय॑भिचारदुष्टाः कृष्णे व चैषपरमात्मनि गूढभावः ॥ नन्वीश्वरो नु भजतो विदुषोपि साक्षाच्छ्रेयस्तनोत्यगदराज इवोपयुक्तः॥३० ॥ नायं श्रियोङ्ग उ नितांतरतेः प्रसादः स्वोषितां नलिनगन्धरुचां कुतोऽन्यः॥ रासोत्सऽवेस्य भुजदंडगृहीतकण्ठलब्धाशिषां य उदगाद्वजवल्लवीनाम् ॥३१॥ आसामहो चरणरेजुषामहं स्यां वृन्दावने किमपि - - A RRIOR - ARRE Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AAmar - i meramand mro %3 गुल्मलतौषधीनाम् ॥ या दुस्त्यजं स्वजनमार्यपथञ्च हित्वा ॥ भेजुर्मुकुन्दपदवीं श्रुतिभिर्विमृग्याम् ॥ ३२ ॥ या वै श्रियार्चितमजादिभिराप्तकामयोगेश्वरैरपि यदात्मनि रासगोष्ठयाम् । कृष्णस्य तद्भगवतश्चरणारविन्दं न्यस्तंस्तनेषु विजः परिरभ्य तापम् ॥ ३३ ॥ वन्दे नन्दव्रजस्त्रीणां पादरेणुमभीक्ष्णशः। यासां हरिकथोद्गीतं पुनाति भुवनत्रयम् ॥३४॥ इति ॥ याक्रम विज्ञप्तिसों दंडोत करिये कदाचित् अवकाश ना पाइये। तो तादिन नाममात्र लेके दण्डवत कारिये । ___ ततो देहकृत्यं कुर्यात् । शौच समयः। “ उद्धृतासि वराहेण विश्वाधारे वसुन्धरे । त्वं देहमलसम्बन्धादपराध क्षमस्व मे” ॥ ३५॥ याभाँति विज्ञप्तिकार देह कृत्य कारये माटीजलसों शौचक्रिया शुद्धहोय । शौचजलके छीटनसों ज्ञान राखि हाथ पाँव माटीसों घोय कुल्ला कारये ॥ "मूत्रे पुरीषे भुत्त्यन्ते रेतःप्रस्रवणे तथा॥ चतुरष्टद्विषड्यष्टगण्डूषैः शुद्धिमाप्नुयात् ॥३६॥” मूत्रके ४ शौचके८भोजनके १२ और विषयक अन्तमें १६ कुल्लानते शुद्धि होयहै। ततो दन्तधावनं कुर्यात्। अर्थ-ताके पीछे दातन करनो । “वनस्पते मनुष्याणासुद्धृतश्चास्यशुद्धये ॥ कृष्णसेवार्थकस्याशु मुखं मे विमलीकुरु" ॥३७॥ दन्तधावन एक विलांदको लेके पीठापर बैठके करिये । पाछे कुल्लाकार जूठे जलको ज्ञानराखि मुखधोयके पोछिये । ततः प्रभुं विज्ञापयेत् । “कृष्ण गोविन्द बहिष्मन् विट्ठलेशाभयप्रद ॥ गोवर्द्धनधर स्वामिन् पाहि मां शरणागतम्" ॥३८॥ ततःप्रभोश्चरणामृते ग्राह्यम् । “गृह्णामि गोकु. - - मूत्र पुरी पास हाथ पाया शुदहोय। - - NE - । PROPORDance Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MICROPSISAMPRIMARMER - लाधीश चरणामृतमादरात् ॥ अतस्त्वत्सेवनात्सिद्ध्यै मयि दीने कृपां कुरु ॥३९॥ या विज्ञप्तिसों चरणामृत ले हाथ ऑखिनसों लगाइए । ततो मुख शुद्धिं कुर्यात् ॥ “कृष्णचर्षित ताम्बूलं चर्बयेच्चाप्यतंद्रितम् ॥ श्रीगोकुलेश (प्रभु) सेवायां मुखामोदविवृद्धये" ॥४०॥ मुखशुद्धि बीडा वा लौंगसे व्रतादिक दिन बचायके कारये।ततः स्वाक्षे तैलं विलेपयेत् । तामें षष्ठी द्वादशी व्रतादिक संवर्जि तैल लगाइए। ततः स्नानं कुर्यात्। "श्रीकृष्णवल्लभे देवि यमुने तापहारिणि ॥ सेवायै स्नातुमिच्छामि जलेऽस्मिन्सन्निधिं कुरु " ॥४१ ॥ स्नान समय भीजी पर्दनी पहरि शीतल जलसों कुल्लाकरि श्रवण, नासिका स्वच्छकार जलके पात्रनको छोटा बचाय मुख{दि अन्तःकरणमें भगवन्नाम लेत स्नान कारये। पाँयनको शेषजल मस्त कपै नहीं डारिये उपरान्त अङ्गवस्त्र कार पर्दनी बदलि पाँव | जवाताई धोय पोंछ पाछे अपरसकी धोती पहरिए । चारयो पल्ले (छोर ) खोसि पहरिये उपरना ओढि श्रीयमुनाष्टकको पाठ करत जगमोहनमें आय. चरणामृत लेनो तासमय श्लोक-गृह्णामि गोकुलाधीश चरणामृतमादरात् ॥ अतस्त्वत्सेवनात्सिद्धिर्मयि दीने कृपां कुरु॥४२॥ अब आसनपर बैठि पास सन्तोकामें आचमनी आदि सन्ध्याको साज तिलक मुद्राको साज चरणामृत प्रभृति जप, पुस्तक, माला आदि सब राखिये। ततः आचमनं कुर्यात् । आचमन समय नारायणमन्त्र पढिये तीनवेर करने पीछे अंगूठाके मूलते मुख पोंछिए उपरान्त गायत्री अथवा अष्टाक्षर मन्त्रसों शिखाबन्धन करिये। - - Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HETANA Pr SAMRA - ततः तिलकमुद्राधारणं कुर्यात् । "दण्डाकारं ललाटेस्यात्पमाकारं तु वक्षसि ॥ रेणुपत्रनिभं वाह्वोरन्यदीपाकृतिर्भवेत् ” ॥४३॥ अथ द्वादशतिलकं कुर्यात् । “ ललाटे केशवं विद्यानारायणमथोदरे ॥ वक्षस्स्यले माघवञ्च गोविन्दं कण्ठकूर्पके ॥४४॥विष्णुञ्च दक्षिणे कुक्षौ बाह्वोस्तु मधुसूदनम् ॥ त्रिविक्रमं कर्णमूले बामकुक्षौ तु वामनम् ॥१५॥ श्रीधरं वामबाह्वोस्तु पद्मनाभं तु पृष्ठतः ॥ स्कन्धे दामोदरं विद्याद्वासुदेवञ्च मूर्द्धनि" ॥ ४६॥ या प्रकार द्वादश तिलक मन्त्रसों लगावने। अथ षण्मुद्राधारणं कुर्यात्। " उच्चैश्चक्राणि चत्वारि बाहुमूले तु दक्षिणे ॥ नाम मुद्राद्वयं नीचैःशंखमेकं तयोरपि ॥१७॥मध्ये तत्पार्श्वयोश्चैव द्वे दे पद्म च धारयेत् ॥ वामेऽपि च चतुःशंखात्राममुद्रां च पूर्ववत् ॥४८॥ चक्रमेकं गदे द्वे द्वे पार्श्वयोरिति भेदतः॥ ललाटे च गदामेकां नाममुद्रां तथा हदि॥४९॥त्रीणि त्रीणि च चक्राणि मध्ये शङ्खानुभावुभौ ॥ हृत्पार्श्वयोः । स्तनादूई गदापद्मानि पूर्ववत् ॥५०॥त्रीणि त्रीणि च चक्राणि कर्णमूले द्वयोरधः॥ एकमेकं तदन्येषु तिलकेषु च धारयेत् ॥ ५१ ।। सम्प्रदायस्य मुद्रास्तु धारयेच्छिष्टमार्गतः॥ यथारुच्यथवा धार्या न तत्र नियमो भवेत् ॥५२॥ इति श्रीनारदीयपुराणे ॥ याकमसों तिलकमुद्रा धारणकरिये ॥ कदाचित् अवकाश न पाइये तो तादिन नाममुद्रा धारण कारये । पाछे सेवा अवकाशते शंखच1 क्रादि धारिये ॥ अरु तिलक सछिद्र कारिये ॥ तथा च शिव Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । Non - पुराणे ॥ “वामभागे स्थितो ब्रह्मा दक्षिणे च सदाशिवः। मध्ये विष्णुं विजानीयात्तस्मान्मध्ये न लेपयेत्” ॥५३॥ अरु तिलकमुद्रा धरे विना भगवत्सेवा न करिये । उक्तं हि ब्राह्मणमुदिश्य “यः करोति हरेः पूजां कृष्णचिह्नांकितो नरः॥ अपराधसहखाणि नित्यं हरति केशवः ” ॥५४॥ उपरान्त सम्प्रदायनाममुद्रा धोय तामें चरणामृत श्रीयमुनाजीकी रेणु मिलायके लीजिये । तदा विज्ञप्तिः ॥ “स व्रती ब्रह्मचारी च स्वाश्रमी च सदा शुचिः॥ विष्णोः पादोदकं येन मुखे शिरसि धारितम्"। ततः श्रीमदाचार्यानत्वा विज्ञापयेत् । “नमः श्रीवल्लभायैव दैन्यं श्रीवल्लभे सदा ॥ प्रार्थना श्रीवल्लभेऽस्तु तत्पादाधीनता मम" ॥५६॥ ततः सेवानुसन्धान कुर्यात् “ ॥ सदा सर्वात्मना सेव्यो भगवान् गोकुलेश्वरः ॥ स्मर्त्तव्यो गोपिकावृन्दैः क्रीडन्वृन्दावने स्थितः" ॥२७॥ ____अथ श्रीभगवन्मन्दिरप्रार्थना। भगवद्धाम भगवन्नमस्तेऽलंकरोमि तत् ॥ अङ्गीकुरु हरेरथे शांत्वा पादोपमर्दनम्" ॥ ५८ ॥ उपरान्त श्रीवल्लभाः ष्टकको पाठ करत श्रीमन्दिरको ताला खोलिये । भीतर जायके जो रात्री होय तो दीवा करिये । पाछे खासाजलसों माटी वा सरस्योंकी खडीसों हाथ धोय पांव पखारि शय्यामन्दिरमें जाय रात्रिके, झारी, बीडा, बन्टाभोग, माला, तष्टीप्रभृतिक सब उठाय, बाहिर लाय, ठिकाने धरिये । ततो मार्जनं कुर्यात् ॥ तापाछे मार्जनी ( सोहनी ) लेके श्लोक ॥ | "मार्जनात्कृष्णगेहस्य मनोविक्षेपकं रजः । नाशमेति तदर्थन्तु मार्जयामि तथास्तु मे ॥५९ ॥ उपरान्त मार्जनी उठाय।। - Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FES - FRIDORI - अन्तःकरणप्रबोधको पाठ करत मन्दिर तिवारी सर्वत्र बुहारी देइ मार्जनी ठिकाने धरिये ॥ ततः सेकोपलेपौ कुर्यात् ॥ (छिडकामन्दिरवस्त्र) "आत्मनोऽज्ञानरूपस्य दुरितस्य क्षयाय हि ॥ करोमि सेकोपलेपौ त्वद्गृहे गोकुलेश्वर” ॥ ६० ॥ (उपरान्त) ता पाछे मन्दिरवस्त्र उठाय जलसों भिजोय मन्दिर, तिवारीप्रभृतिक गच्छकी भूमीपर फिराइये । या समय अनुसार सिद्धान्तरहस्यको पाठकरिये। ततः सिंहासनास्तरणं कुर्यात् । ___ "सिंहासनं तु हृत्पद्मरूपं सजीकरोम्यहम्॥ श्रीगोपीशोपवेशार्थ तथा तद्योगतांभज" ॥ ६१ ॥ या रीतसों सिंहासनकी विज्ञप्ति करि उपरान्त श्रीगोकुलाष्टकको पाठ करत सिंहासन वस्त्रप्रभृतिक सब उठाय फिरि झटकि बिछाय तापर गादी मुढा विधिसों धार सुपेद मिहि वस्त्र बुधवन्तसों। चारि ओरितें दृढकरि मूढापर मुखवस्त्र मिहीन चुनके धरिये। अरु शीत समय गदर, फरगुल घरे । सो प्रबोधनीतें डोल ताई सिंहासनपर धरिये । अंगीठी सिंहासनके आगे। वसन्तपञ्चमीके पहले दिनतांई धरिये । अरु श्वेत वस्त्र गादी मूढापर प्रबोधनीतें वसन्त पञ्चमीके पहले दिन ताँईन बिछाइये श्रीनवनीतप्रियजीके सुपेती उत्सव सिवाय नित्य बिछे और पंखाडोलते दशहरा ताँई गरमीनमें रहे और सिंहासनके वस्त्र प्रभृतिक शनिवारकूँ बदलिये । उपरान्त भक्तिवर्द्धनीको पाठ करत जलघरामें जाय जलपानकी मथनीको जलछानि ढांकि धरिये उपरान्त सेवाफलको पाठ करत रात्रिके झारी, बीडा, प्रसादी माला. बंटा भोग ठलाय साज धोय ठिकाने धरिये । ततो जलपानपात्रं सज्जीकुर्यात्। झारी भरतीसमय || - R landana - - Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विज्ञापन "प्रियारतिश्रमहरं सुगन्धि परिशीतलम् । यामुनं वारि पात्रेस्मिन भव श्रीकृष्णतापहृत् ॥ ६२ ॥ इदं पानीयपात्रं हि ब्रजनाथाय कल्पितम् ॥ राधाधरात्मकत्वेन भूयात्तपमेव तत्" ॥६॥पाछे झारीभरि नेवरा पहिराय जलपानकी मथनीमें जल भरि, सिंहासनके बॉई दिशि तबकडीमें झारी पधराइये । या समें नवरत्नको पाठ करिये । ततः भोगपात्रं सज्जी कुर्यात् ॥ तापाछे मंगलभोगको थाल साजनो । विज्ञापन श्लोकः॥ "स्वामिनीकररूपाणि भावस्वर्णमयानि वै ॥' श्रीकृष्णभोज्यपात्राणि सन्तु ते मत्कृतानि हि ॥६४॥ थारमें न्यारीन्यारी कटोरिनमें नवनीत (माखन) दही, दूध, बूरा, मिठाई, मलाई, पक्कान, सधानाप्रभृतिक, माखन,बूरा अगाडी राखनो दूधमें कटोरी तेरावनी, और आँबा खरबूजाकी ऋतु होय तब धरने या प्रकार थाल सिद्धकर यथासौकर्य पडघापर मन्दिरमें सिंहासन पास ढांकिके धरिये। या समे मधुराष्टकको पाठ करिये। ता उपरान्त हाथ धोय श्रीपादुकाजीकी सेवा होय तो जगाइये। ततः श्रीपादुकाजी विज्ञाप्योत्थापयेत् । अर्थ-श्रीपादुकाजीकी स्तुतिकरके जगावने । “वन्दे श्रीवल्ल भाधीशविट्ठलेशपदाम्बुजम् ॥ यत्कृपातो रतिर्भूयाच्छ्रीगोपीजनवल्लभे ॥६५॥ उपरान्त सप्तश्लोकीको पाठ करिये। श्रीपादुकाजीकूँ जगाय गोदमें मिही वस्त्रमें पधराय शय्याकी पलॅमड़ी झटकारके फिरसूं बिछावनी । पाछे फुलेल समर्पिके वस्त्रसों पोंछि पलँगड़ीपे पधराइये । वस्त्र ऋतु अनुसार उढाइये। पास झारी, बीडा, दूसरे छोटे पटा रहे । अरु चंदनके | श्रीचरणारविन्द,श्रीहस्ताक्षर होंय तो फुलेल नहीं वहां वसनाँ बदालिये। थैली पहेराइये। Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीपादुकाजीकूँ अभ्यङ्गस्नान। जन्माष्टमी, १ तथा रूपचतुर्दशी, २ श्रीआचार्यजी महाप्रभुजीको उत्सव, ३ श्रीगुसांईजीको उत्सव ४ अरु शंखते । जलसों स्नान यात्राके दिन, ५ और तप्तशुद्धोदकसों स्नान डोलके दूसरे दिन॥६॥ अरु ग्रहणको रग्रहस्नान कराइये। ७ अरु राजभोगके साथ न्यारो थार आवे ॥याक्रमसों श्रीपादुकाजी विराजतहोंय तो कारये। ता उपरान्त घण्टां विज्ञापयेत् । “हरिवल्लभनादासि वं घण्टे भगवत्प्रिये ॥ प्रबोधावसरं ब्रूहि हरिव्रजवधू व्रतम्" ॥ ६६॥ पाछे घण्टाके तीनबेर बजाय हाथ धोय पोछिके शीतसमे ताते करि शय्यामन्दिरमें जाय शय्यानिकट पॉईतके पास हाथजोड ठगडे रहे। विज्ञप्ति कारये । तदा प्रभु प्रबोधयेत् “ जयजय मङ्गलरूप जागिये गोकुलके नायक ॥ भयो भोर खग करत सोर युवतिन सुख दायक ॥ उडुउडुपति अस्त उतिभानु प्राची अरु नावत ॥ मुर्शित कुमुद सरोज मुकुल अलिगन मुकुलावत ॥ दम्पतिदुःख विछुरन प्रेमभर चक्रवाक आनन्दहुआ ॥ निशि नन विरहव्याकुल सखा देख्यो चाहत वदन तुअ॥१॥जयजय मङ्गलरूप जागिये गोवर्द्धनधारी ॥ मन्द दीप दुति बहत पवन शीतल सुखकारी ॥ चन्द अस्तमित जात मूच्छित चकोरचित ॥ वेदध्वनि द्विज करत प्राप्त सन्ध्यावन्दन हित ।। फूले गुलाब वनकुसुम सब धर्मकर्म सब व्रत हुआ ॥ जागिये । ब्रजराज खोलि चक्षु देखन हित मुखकमल तुअ॥२ ॥ जय-| जय मडलरूप जाग ब्रजजीवन मेरे ॥ सुन्दर माखन मथित अबहि लाई हित तेरे ॥ मेवा मिश्री दही दुग्ध पकवान घनेरे ॥ वेग धोय मुख लाल खाय वनजाय सवेरे ॥ सङ्ग छाकके सब - Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | सखासों धेनु चरावन जा गिरि॥क्रीडाकार दाऊसहित घरवेगि संवारे आउ फिरि ॥३॥ जयजय मङ्गलरूप जागिये हो जागि कन्हैया॥भयोप्रभात जलजानन ओरि सजि छैया॥बछवा पावत खीर चरण वन जात है गैया ॥ संग सखा सब लिये देखि ठाढे बलभैया ॥ उठि पहार काछिनी मुकट धरि ओढि पीताम्बर बेनुले ॥ जोई रुचे सो खाइके वृन्दावन को करि बिजे ॥४॥ जयजय मङ्गलरूप जागिये सरसिरहलोचनीमनमेंजानत निशा लग्यो तम प्राचीमोचन ॥ किंकिनि कंकन वलय चलित श्रुति भोर सोर अति ॥ सुनत नाहिं गोपाल ग्वाल गावति लीने यति ॥ शंख शृङ्ग झालार बजि ग्वालबाल दोहन चले ॥ गाय वच्छ रम्भन करे सु अजहू तुम सोवतभले ॥५॥ जयजय मङ्गलरूप जागि ब्रजराज लाडिले ॥ भयो प्रभाति कुमुदनि लजात जलजात चाडिले॥बीन मृदंग साज सहित गन्धर्व गुन गावत ॥ द्वारेदेते अशीस भाट चारण ककहावत ॥ तेरे संगके सखा अबलगे कोउ न सोवहि ॥ आलस तज सरसनन उठिकरि मुखक्यों न धोवहि ॥६॥ जयजय मंगलरूप जागिहो जागि व्रजभूषण ॥ अरुण उदयमो नींद कहत द्विजवर अतिदूषण ॥ उठिकरि माखन खाण्ड और तर दूध दहीकी ॥ मिश्रीके संग धार लाल लेहो महीकी। चिरिया मृदु बोलत भोर भयो धेनु दुहि श्रृंगारकार। कछु भोजन कार लहो मुरली मुकट धरि ॥ ७॥ जयजय मंगल रूप जागिश्रीनाथ गोवर्द्धन ॥ हम पठये तोहि लेन दाऊ चलत वृन्दावन ॥चाँदनी चन्द्र तजत तारा अम्बरगन।तजन प्रगल्भा सुखहित नव वधू दुःख मन ॥ तम्बोल तजत जीभस्वाद रस तजत कमल निसि भवर भज॥ श्रीनन्दरायके लाडिले तू आलस निद्रा क्यों न तज॥८॥ - - - Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । जयजय महाराजा अन्तःकरणभूषण राजीव - ततो विज्ञापनम् । अर्थ विनती। “जयजय महाराजाधिराज महाप्रभोः महामंगलरूप कोटि कन्दर्पलावण्य श्रीमदाचार्यके अन्तःकरणभूषण श्रीगुसाईजीके लाडिले यशोदोत्संगलालित ब्रजजनको सर्वस्वराजीव लोचन अशरण शरण शरणागतवत्सल जयजय जय" ॥ ततः शय्यातो विज्ञाप्योत्थापयेत् । “ उदेति सविता नाथ प्रियया सह जागृहि ॥ अङ्गीकुरुष्व मत्सेवां स्वकीयत्वेन मां वृणु" ॥६॥या क्रमसों विज्ञप्तिकार शय्यापरते चादर सुपेती उठाय श्रीमुख देखि प्रभुकों जगाय शय्यायीपे विराजमान करे । ततः परम् । (पीछे ) वेणु,मुखवस्त्र,हाथमें लेके परिक्रमा कार वेणु, मुखवस्त्र सिंहासनकी गादीपे पधराइये। ततः परम्॥श्रीप्रभुको हाथमें पधराय सिंहासनकी गादीपर पधराये । ततः सिंहासने प्रभुं प्रवेशयेत् ॥ विज्ञप्तिः॥“भावात्मकतया क्लप्तश्चोत्तरीयात्प्रकाशने॥सिंहासने गोकुलेश कृपया प्रविश प्रभो ॥६८॥ पाछे दूसरे स्वरूपकू याही रीतिसों प्रभुकी बाई दिशाश्रीस्वामिनीजीकों पधराइये। शीत समय गद्दल फरगुल एकटे उठाइये! दर्पण दिखाइये। चरण परसि ऑखिनसों हाथ लगाइये। ततः प्रभुं प्रणमेत् । श्लोक-"यादृशोसि हरे कृष्ण तादृशाय नमो नमः ॥याहशोस्मि हरे कृष्ण तादृशं मां हि पालय" ॥६९॥ यह पढि श्री प्रभुको दंडवत करिये । ततःश्रीमत्वरूपं प्रणमेत् “ नमस्तेऽस्तु नमो राधे श्रीकृष्णरमणप्रिये ।। स्वपादपद्मरजसा सनाथं कुरु मच्छिरः” ॥ ७० ॥ यह पढि श्रीस्वामिनीजीकों दण्डवत करनी। .. ततः श्रीमदाचायान् प्रणमेत् ॥ “देवस्य वामभागे तु सेवयेद्गुरुपादुकाम्"॥७३॥ विज्ञापयेत्।। - s BIRTHDAream - amme dong Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SENTER : Aria - - - 3D mammeena - motion चिन्तासन्तानहन्तारो यत्पादाम्बुजरेणवः॥स्वीयानान्तानिजाचार्यान् प्रणमामि मुहुर्मुहुः ॥७२॥ यह पढि श्रीपादुकाजीकों जगायके दण्डवत् करि श्रीठाकुरजीके वामभाग पधराय दण्डवत् करिये। जो श्रीपादुकाजी बिराजित होंय तो प्रथम श्रीपादुकाजीकों जगाय फिर प्रभुको जगावने । पाछे टेराखेंचि हाथ धोय मङ्गलभोग सिद्धकार राख्यो होय सो समर्पिये । ततो मङ्गलाभोग समर्पयेत् विज्ञापन । “भुंव भावकसंशुद्धदधि हुग्धादिमोदकान्॥प्रीतये नवनीतञ्च राधया सहितो हरे।।७३ ॥ यशोदारोहिणीभावारलेन सड़ बालकै भुक्तं यथा बाल्यभावे प्राकट्यादि च मे तथा॥७॥"राधाधरसुधापातुःकिमन्यन्मधु रायितम् ॥ यन्निवेद्यं तदप्येतनामसम्बन्धतो भवेत्” ॥७५ ॥ ता उपरान्त शय्यामन्दिरमें जाइये । ततः शय्यां विज्ञापयेत् । "सजीकरोम्यहं शय्यां रम्या रतिसुखप्रदाम् ॥ राधारमणभोगाथै तथा तद्योगताम्भज" ॥ ७६॥ उपरान्त दशमस्कन्धकी अनुक्रमणिकाको पाठ करत शय्याके कसना खोल शय्यावस्त्र दुलीचा प्रभृतिक सब उठाय बुहारीसों मार्जनकरि मन्दिर वस्त्र फिराय हाथ धोय दुलीचा तहाँ सुजनी समयानुसार विछाय तापर शय्या धरि पवैया लगाय पाछे सुपेती चादर बिछाय कसना खेचिये ॥ और प्रबोधनीते वसन्तपञ्चमी ताई शय्या नहीं खेंचिये ॥ शिराहनेके बालस्त धरिये । इतउत गिडदा धरिए पायतकी ओर ओढवेको वस्त्र घडीकरि धरिये। शीत समय रुईदार, गरमीके समय चादर मलमलकी ऐसे समयानुसार धरने । मुख वस्त्र सिरानेकी ओर दाहिनी दिशि धारये । ओढनी सिराहानेकी ओर बांई दिशि रहे । शिराहने । मृगमद प्रभृतिक सुगंध राखिये, अरु शय्याके वस्त्र सुपेत - - Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AV - - - - थेलीप्रभृतिक शनिवारकूँ बदलिये शय्याके ऊपर चादरा ढाँकिये। शय्याके इतउत चौकी,पडघा,झारी, बीडाके भोगके लिये धरिये । और पंखा शय्याके दोऊ दिशि डोलते दिवारीताई धरिये ॥ ता उपरान्त बाहिर आय श्रीयमुनाष्टकको पाठ करत आचमनके लिये झारी, बीडा, तष्टी सिद्धकरिये ॥शीतकालमें झारीको जल उष्ण हाथसों सुहातो राखिये । पाछे स्नानकी सामग्री सिद्ध करिये । वाटापर परातधरि तामें चौकी १ स्नानके लिये धरि तापर वस्त्र सुपेत मीही मोहोरासों घोट कोमल कार बिछाइये । और अङ्गवस्त्रहू घोटासों घोट कोमल कार राखिये। और उत्सव तथा शनिवारको तेल फुलेल कटो में धर राखिये । उबटना अबीरकों घिसि कटोरीमें राखिये। शीत समय अभ्यङ्गकी सामग्री ताती कार राखिये । ता उपरान्त समयसर मङ्गलभोग सराइये । झारी, बीड़ा, तष्टी लेके मन्दिरमें जाय बीड़ासिंहासन पर दाहिनी दिशि तबकड़ीमें धरिये । पाछे वामहाथसों तष्टीलेके दाहिने हाथसों झारीको जल तनक एक दूरि प्रभूसों रहि नवाइ योआचमनं कारयेत् । श्लोक-"कुरुष्वाचमनं कृष्ण प्रिययामुनवारिणा ॥ स्नेहात्मभावसंसिक्तान्भावय त्वं दयानिधे" ॥७॥ताके पीछे, मुखमाजनं कारयेत् । स्नेहाच्छ्रमजलं प्रोक्ष राधिकायाः कराञ्चलात् । स्मृत्वानन्दभरं नाथ कुरु श्रीमुखमार्जनम् ॥ ७८॥ मुखवस्त्र श्रीगकुरजीके सम्मुख करायके धरिये । ततस्ताम्बूलं समर्पयेत् । “ताम्बूलं च प्रियं कृष्ण सौरभ्यरससंयुतम्।गृहाण गोकुलाधीश त्वत्कपोलाभपांडुरम्" ॥७९॥ बीड़ादाहिनी ओर | धरिये ॥ उपरान्तभोग उठाय ठिकाने धरिये । भोगकी ठौर पड़घापर हाथफिराय मन्दिरवस्त्र फिराय हाथ धोय टेरा खोलि। Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - कीर्तन करत दर्शनकराइये। ततो नीराजनम् (आरती)विधाय विज्ञापयेत् । अमङ्गलनिवृत्त्यर्थ मङ्गलावाप्तये तथा ॥ कृतमारार्तिकं तेन प्रसीद पुरुषोत्तम॥८०॥पाछे आरती उठाय बाती धरि दीथाप्रकटकरि मन्दिरके दाहिनी दिशि ठाटेरहि घण्टा बजाय दोऊ हाथनसों सात फेरी दे मङ्गलाकी आरती कारये तदा मंगलगीतेन नीराजनं कुर्यात् ॥ रामकली रागेण गीयते ॥ पद मंगल आरती समयको रागरामकली-मंगलं मंगलं ब्रजभुवि मंगलं मंगलमिह श्रीनन्दयशोदानामसु कीर्तनमेतद्वचिरोत्संगसुलालितपालितरूपम् ॥ १॥ श्री श्री कृष्ण इति श्रुतिसारं नाम स्वार्तजनाश्रयतापापहमिति मंगल रावम्॥ ब्रजसुन्दरीवयस्य सुरभी वृन्द मृगीगणनिरुपमाभावा मंगलसिन्धुचयाः॥२॥ मंगलमीषस्मितयुतवीक्षणभाषणमुन्नतनासापुटगतिमुक्ताफलचलनम् ॥ कोमलचलदङ्गुलीदलसंयुतवेणुनिनादविमोहितवृन्दावनभुवि जातम् ॥ ३ ॥ मंगलमखिलं गोपीशितुरतिमथंरगतिविभ्रममीहतरासस्थितगानम् ॥ त्वं जय सततं गोवर्द्धनधर पालय निजदासान् ॥ ४ ॥ ततः प्रभुं प्रणमेत् ॥ या प्रकार मंगलाआरती कार प्रभुको दण्डवत करनी विनती करनी । कृष्ण कृष्ण कृपासिन्छो नवनीतप्रियः सदा ॥ राधिकाहृदयानन्दं नमस्ते नन्दनन्दन ॥८१ ॥ ततः श्रीनमः श्रीस्वामिनी जी, प्रणमेत् । “ नवबन्धूकबन्ध्वाभ मधुराधरपल्लवे ॥ राधे त्वचरणांभोजं वन्दे श्रीकृष्णवल्लभे। ॥ ८२॥ ततः नाम ता पाछे श्रीमदाचार्यान प्रणमेत् ॥" वन्दे श्रीवल्लभाचार्यचरणांबुरुहद्वयम् ॥ यत्कृपालवतो जन्तुः श्री: कृष्णशरणं व्रजेत् ॥ ८३॥ ततः प्रभु विज्ञापयेत् ॥ दीनबन्धो जगन्नाथ नाई दृश्यो जगदहिः ॥ कृतापराधो दीनश्च Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - : Saudioi त्वामहं शरणं गतः” ॥ ८४ ॥ ऐसे दण्डवतकरपाछे हाथ धोय पोंछि भीड़ सरकाय टेरा खेंचि उपरान्त श्रृंगारकी चौकी तथा स्नानसामग्री सब लाय धरिये । ततः स्नानार्थ विज्ञापयेत् । प्रियांगसंगसम्बन्धिगन्धसंबन्धतो भवेत् ।। कदाचित्कस्यचिद्भावो ह्यतःस्त्रानं समाचर' ।। ८४॥ पाछे शृंगारकी चौकी पर पधराइये । ताके जेमनीआडी चौकि झारी| बीडा, मंगलाके होय सो धरने ।श्रृंगार भोगमें मेवाकी कटोरी | ढकना ढाँकके पधरायदेनो। शीत समय अंगीठी पास राखिये हाथ ताते कारये जल तातो करि समोइये । रात्रिके आभरन वस्त्र बडे करि अञ्जन पोछीनानके पीठापर पधराइये । उत्सव वा शनिवार होय तो अभ्यंगसामग्री शीत समय ताती करिये। अरु षष्ठी, द्वादशी होय तो शुक्रवारकों अभ्यंगस्नान कराइये॥ ततो तैलाभ्यंगं कुर्यात् "स्नेहात्मगन्धतैलस्य लेपनागोकुलाधिप ॥ वितरात्यंतिकी भक्ति मयि स्नेहात्मिकां विभो॥८६॥ फुलेल चरणारविन्दसों सर्वांगमें कोमल हायसों लगाइये। ततः उद्वर्त्तनं लेपयेत् । “ श्रीसौगन्धेन पूतेन निशाश्रमनिवारिणा ॥ उर्तितेन त्वद्भक्तिदायिना कुरु मे कृपाम्” उबटना याही | रीतिसों सागमें कोमल हाथसों लगाइये। __ ततो मङ्गलस्नानं कारयेत् । स्नेहान्मद्भावगन्धेन प्रियगन्धातिचारुणा॥ अभ्यतो मङ्गलस्नानं कुरु गोकुलनायक" ॥ ८८॥ एक लोटी ताते जलसों न्हवाइये। ततो नाम तापीछे काश्मीरं लेपयेत् (केशर लगाइये) चारुचन्दनसंयुक्तं काश्मीरं सुमनोहरम् ॥ मङ्गलस्नानसिध्यर्थ लेपयामिव्रजाधिप ॥ ८९॥ चन्दनउबटनाकीरीतिसों । सर्वांगमें कोमल हाथसों लगाइये । ततः स्नापयेत् । “दिवा। . IRDERABAR ernam - - - - POINTRODEOIMBALIORamasan Om Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पONENTENT - meroon - - च त्वदनायातस्मरणात्तापभावनः ॥ प्रियास्पर्शोष्णनीरेण स्नातो भव व्रजाधिप” ॥ ९० ॥ ततो जल सुहातो सो छोटी लुटियासों मंदधारसों न्हवाइये । ततो दृष्टिदोष निवारयेत् ॥ "कोटिकन्दपलावण्ययशोदोत्सङ्गलालिने ॥ दृष्टिदोषोपघाताय | तत्तोयं वारयाम्यहम् ॥९१॥ एक लोटी प्रभूपर वारडारिये। तलोंगप्रोक्षणं कुयात्। स्नानार्द्रतानिवृत्त्यर्थे प्रोक्षितांग विभो मम ॥ दूरीकुरुष्व गोपीश कृपया लौकिकाताम्" ॥ ९२ ॥ मिहिं अंग वस्त्रसों कोमल हाथसों अंगप्रोच्छन कारये। उपरान्त शृंगारकी चौकीपर पधराइये । वस्त्र समयानुसार उठाइये। पीछे दूसरे स्वरूपको याही रीतसों नहवाइये । अंगवस्त्र कार प्रभुकीबांई दिशि वस्त्र उठाय पधराइये । पाछे श्रीशालग्राम वा श्रीगोवर्द्धनशिलाहोय तो चन्दन लगाय न्हवाइये । अंगवस्त्र करि पधराइये! अरु उत्सव वा शनिवार होयतो अकेलो उष्ण जल सों नहवाइये । स्नान शृंगार समय मेवा मिठाईकी कटोरी पास रहे। झारी, बीड़ा मंगलाके छोटे पड़घापर पास रहे। पाछे स्नान सामग्री उठाय ठिकाने धरिये । मन्दिर वस्त्र फिराय हाथ धोय पोंछिये । पाछे शंगारकी सामग्री सब आनि धरिये वनकी झांपी पास राखिये । रंग रंगके वागा, पिछोड़ा धोती, उपरना, तनिया सूथन, पटुका, पाग फेंटा, कुल्हे टिपारो, जरकसी चीरा, पुरातन पाग फेंटा, दुमालो प्रभृति और दूसरी ठौरके वस्त्र; चोली, लहँगा साडी, चादर प्रभृतिक । गदर, फरगल, कवाय, चंद्रिका, चौकी, किनारी,श्यामपाट वा वस्त्रके टूक, गुञ्जा, बुधवन्त, मोम, कतरनी, घोटा, टीकी, सिन्दूर कजलकी डिबिया, चोवा अतर,मृगमद, मुकुट काछनी,रंग रंगकी - - - Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुई, दोरा, प्रभृतिक, सब सामग्री, आगेते सिद्धकार राखिये । अरु शृंगारकी पेटीमें रंग रंगके आभरन, जडाऊ लाल रंगके ' पीरे, हरे रंग के, आसमानी, श्वेतरंग के, पिरोजाके, मीनाके, मोतीके, हीराके, कांच प्रभृतिके सब साज सिद्धकारी न्यारी न्यारी बन्टीमें धरिराखिये । सब आभरन दोऊ ठौर के अरु गादीके बडे हार प्रभृतिक, सब साज सिद्धकारिराखिये । पाछे यथा सौकर्य अरु असौकर्य तो याही रीतिसों पोत के युक्तिसों करिये । परन्तु व्यसनसों करिये । इतनी सब तैयारी कारके । ततो वस्त्रं परिधारयेत् । "प्रियांगतुल्यवर्णानि वस्त्राणि वजनायक । समर्पयामि कृपया परिधेहि दयानिधे ॥ ९३ ॥ अब प्रथम प्रभुके श्याम वस्त्र वा श्याम पाट श्रीमस्तकपर उपेटिये । तापर पाग, कुल्हे फेंटा, चीरा, पुरातन पाग, दुमाला, टिपारा, मुकुट ये सब सम - यानुसार घराइये । पाछे ठाडे स्वरूप होंय तो तनिया, सूथन ऊपर वागा धराय पटुका बाँधिये । अरु बालकेलि स्वरूपको होय तो पाग, बागा, उपरना, अरु दूसरे स्वरूपकों, लहँगा घराय चोली, तथा साडी धराय, साडी पर फुफुदी बाँधिये । शृंगार किये पीछे चादर उठाइये । शीत कालमें वस्त्र रुईके वा पाटके रेशमके वा जरकसी, वा छापा प्रभृतिक ये दशहराते श्रीजीके उत्सव ताँई, उपरान्त श्वेत वस्त्र साज डोल ताँई । उपरान्त वस्त्र छोटके अक्षय तृतीया के पहले दिन समयानुसार पहराय उपरान्त उष्ण कालके वस्त्र, साज, श्वेत मिहि रथयात्रा ताँई । उपरान्त मिहि रंगीन खासा प्रभृतिक रंगके दशहरा ताँई या प्रकार समयानुसार घराइये, उपरान्त शृंगारकी पेटीमेंते आभरनकी बन्टी, काढि आगे धरिये, वस्त्रसों खुलते आभरन काढिये नित्य शृंगारवस्त्रनूतन घराइये, यथावकाश नाम जैसो Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ R INon SORDETAMININET । - - - - अवकाश हो । तथा श्रृंगारं विचारयेत् । “ बजे सरस रूपात्मन् शृंगारं रचयाम्यहम् ॥ स्वीकुरुष्व त्वदीयत्वात्स्वप्रियं | धारय प्रभो ॥ ” शृंगार चरणारविन्दते सब धरिये, नूपुजेहरी, गूजरी, पेजनि, प्रभृति श्रीचरणारविन्दमें धरिये, कटिमेखला, क्षुद्रघंटिका, कौधनी प्रभृतिक कटिपर धरिये, बाजूबन्ध, पोहोची, हथसाँकला, लर प्रभृति, श्रीहस्तमें धरिये, बन्दी, त्रिवली,हमेल प्रभृतिक, हृदय कमलपर धरिये । इकलरी दुलरी कण्ठाभरण प्रभृतिक श्रीकण्ठमें धरिये । तिलक अलकावली, श्रीप्रभुकपोलपर धरिये । शिरपेंच, लटकन. कलङ्गी प्रभृतिक पागपर धारये । करनफूल, कुण्डल, मयूराकृत, मकराकृत, मीनाके जडाऊके श्रवणकमल पर दाऊ दिशि धरिये । नकवेसरि,दाहिनि दिशि धरिये । चोटी,चन्द्रिका दाहिनी दिशि धरिये । छोटे हार, श्रीकण्ठमें धरिये । और बडे हार श्रीगादीपर धरिये । यथास्थित श्रृंगार करिये । ततो गुंजाप्पणम् । “प्रियानासाभूषणस्थं बृहन्मुक्ताफलाकृतिम् ॥ समर्पयामि राधेश गुंजाहारमतिप्रियम् ॥ ९५ ॥ गुंजामाला हारके नीचे धराइये। ततश्चन्द्रिकार्पणम् ॥ " मिलितान्योन्यांगकान्तिचाकचक्यसमं विभो। अंगीकुरुष्वोत्तमांगे केकि |पिच्छमतिप्रियम् ॥ ९६॥ चन्द्रिका दाहिनी दिशि धरियें। ततः नाम ताके पीछे अञ्जनं कुर्यात् “श्रीगोपीकूस्मितं श्रीमच्छेगारात्मकमञ्जनम् । शोभार्थमात्मदेहस्य स्वीकुरुष्व व्रजाधिप”॥ ९७॥ श्यामरूप होय तो मीनाके अलंकार धरिये और जो गौर स्वरूप होय काजरको अञ्जन करिये। भ्रुवपर बिन्दुका करिये । उपरान्त दूसरे स्वरूपको याही रीतिसों शृङ्गार करिये। तामें श्रीस्वामिनीजीको विशेष इतनो। । - Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 पोत आसमानीकी लर श्रीहस्तमें तथा श्री ण्ठमें और कर्ण - फूलके साथ बन्दी, टीकी, झूमखा घराइये और नकबेसर बाई दिशि धराइये । श्रीमस्तकपर पाटकी वेणी, गुही फूदना लटकाइये पाछे भावात्मकविज्ञप्तिसों प्रभुको सिंहासन गादीपर पधराइये । दूसरे स्वरूपको श्रीस्वामिनीजीको बाँई दिशि पधराइये । शीतसमें फरगुल इकट्ठे उठाय बैठाइये । अरु श्रीबालकृष्णजी स्वरूप होय तो फरगुल वा उपरना उठाइये । और ऋतुअनुसार शृंगार करके पाछे माला धरावनी । ततः कुसुमापणम् | सब स्वरूपनको माला धरावनी । ताकी विज्ञप्ति - "कुसुमान्यर्पितानीश प्रसीद मयि सन्ततम् ॥ कृपादृष्टदृग्वृष्टया त्वदंगीकृतशोभितम् " ॥ ९८ ॥ पुष्पमाला चोवा अगरसों सुगन्धित करि धराइये, बागा वस्त्र प्रभृतिक सब सुगन्धित करि धराइये | उपरान्त शृंगारकी पेटी, वस्त्रकी झापी प्रभृतिक उठाय ठिकाने धरिये । ततो वेणुधारणम् । विज्ञप्तिः । "" "श्रीप्रियाकार दौत्येकभावेनातिप्रियः सदा ॥ वेणुं धृत्वाऽधरे कृष्ण पूरयस्वामृतस्वरैः ॥ ९९ ॥ वेणु दाहिनी दिशि धरिये । शृंगार दर्शन खुलायके, ततो दर्पणं दर्शयेत् । विज्ञप्तिः “प्रियानखात्मकादशैं विलोक्य वदनांबुजम् ॥ व्रजाधीश प्रमुदित कृपया मां विलोकय " ॥ १०० ॥ आरसी दिखाय ठिकाने धरिये । चरण स्पर्शकारि दण्डवत करिये । फिर चरणामृत लेके हाथ धोके ay ast करनो । फिर झारी ठलायके जलपाaat मथनी में झारी भरके नेवरा पहिरायके सिंहासन के ऊपर श्रीप्रभु दोई आडी झारी धरनी । पूर्वोक्त रीतिसों एक झारी Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ BHAR MAHADRISTimurememomen -- - धरे तो वाई दिशि धरनी। अब सिंहासन वस्त्र मोडके भोग वस्त्र बिछावनों । मन्दिर वस्त्र करि चौकी पडघा माडिके टेरा करिये । गोपीवल्लभ भोग धरनो । ताको प्रकार-अब सखडी भोगमें भातको थाल अगाडी आवे । दारको कटोरा कढीको कटोरा, शाक भुजेनाकी कटोरी, रोटी लीटी, पापड़, पीकी कटोरी धरके थाल साँननों । और चमचा १ घीकी कटोरीमें धरनों । एक एक चमचा कढ़ीमें दारों धरनों और अनसखड़ीको थार बाँई आडी पडवापे धरनो । तामें सादा पूड़ी, खासा पूड़ी, मैदाकी पूड़ी, जीरापूडी और मीठी पूड़ी, लुचई खरखरी, थपड़ी और लोन, मिरच पिसेकी कटोरी और सघांनेकी कटोरी, दही, श्रीखण्ड, शाक, भुजेनां, कचरिआनकी कटोरी। या प्रकार गोपीवल्लभ भोग धरिके अरोगवेकी विनती करनी। तदा गोपीवल्लभभोगं समर्पयेत्।तदा विज्ञप्तिः। "गोपिकाभावतः स्नेहाद्भुक्तं तासां गृहे यथा । मदर्पितं तथा भुंव कृपया गोपिकापते” ॥ १०१॥ ब्रजेश कृतशृंगारानन्तरे तद्गृहे यथा। अभोजि पायसं ताभिः सह भुक्ष्व तथैव मे॥१०२॥ या प्रकार विनती करि टेरा बैंचि बाहिर आइये । उपरान्त गुप्तरस स्वामिनीस्तोत्र, स्वामिन्यष्टकको पाठ करिये । प्रसादी जलकी मथनीमें झारीठलाय सिकोलीमें बीड़ा ठलाय, कसेंडीमें चरणामृत ठलाय, पाछे पात्र सब धोय साजिके ठिकाने धरिये । अंगवस्त्र, पीढ़ाके वस्त्र धोयके सुकायवेकों डारिये । तदा विज्ञप्तिः “वस्त्रप्रक्षालनादुष्टसंसर्गजमनोमलम् । महत्सेवाबाधरूपं मम श्रीकृष्ण नाशय”॥ १०३॥ अरु ततः उपरान्त ग्वालकी, पलनाकी, राजभोग धरवेकी सब त्यारी करके ग्वाल - - - email Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ POS - - - - बुलवावनो। और भोग सरायवेके लिये झारी, तष्टी, बीड़ा लेके पूर्वोक्त रीतिसों आचमन मुखवस्त्र कराय बीडा तवकड़ीमें धरने । भोग सराय ठिकाने धरिये । और झारी जेमनी और पलनाके पास धरनी । भोगकी और धोयके मन्दिरवस्त्र करनो । पड़या धोय धरने । कीर्तन होय । ततः प्रभुं प्रणमेत् ।। " यशोदानन्द गोपीभिर्वीक्ष्यमाणमुखाम्बुजम् । वन्दे स्वलंकृतं कृष्णं बालं रुचिरकुन्तलम्" ॥१०४॥ ततः गोपालभोग क्रिया । ग्वालको वस्त्र गादीपे विछावनो। तबकड़ी धैयाकी आठ अरोगावनी ॥ क्रिया ॥ दूध सेर दो वा तीन, मथनीघाटके डबरामें उष्णकरि बूरा मिलायके रैसों मथनो तब ऊपर फेन आवे सो धैयाकी तबकड़ीमें छोटी चाँदीकी झरझरीसों लेके टेराके भीतर समर्पत जैये । ज्योज्यौं फेन निकसत जाय त्यौं २ तबकड़ीमें समर्पिये आगेकी तबकड़ी उठाय हाथ धोय दूसरी समप्पिये जब फेन न निकसे तब थोरोसो बूरा और मिलाय दूध डबरामें समर्पिपये । तदा पयःफेनसमर्पणे विज्ञापयेत् । “स्वर्णपात्रे पयःफेनपानव्याजेन सर्वतः। अभ्यस्यति प्राणनाथः प्रियाप्रत्यंगचुम्बनम्” ॥१०॥ गोपापितपयःफेनपानं यद्भावतः कृतम् ॥ मदपितं पयःफेनपानं तद्भावतः कुरु" ॥ १०६॥ उपरान्त अल्पजलसों अचवाय मुखवस्त्र करि बीड़ा पूर्वोक्त रीतिसों समापये । पाछे भोग उठाय ठिकाने धरिये । मन्दिरवस्त्र फिराइये । ततः प्रेख (पालना) विज्ञप्तिः “गोपीजनस्य हृद्रूपं नवनीतप्रियः प्रियम् ॥ गोकुलेशोपवेशाय खतयोगतां भज” ॥ १०७॥ पाछे पालनो MARATI म Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - Ramme - - 3D उठाय साज करि तिवारीमें लाय दुलीचा बिछाय तापर पधराइये । पालना भोग प्रथम साज राख्यो होय ताकी सामग्री-माखन, मिश्री, मेवाकी कटोरी और छोट पूरी, बेसनकी। बेसनके खिलोना ये सब पेहेलेसों साज राख्यो होय सो धरनो। और माखन मिश्रीकी कटोरीपे ढकना ढाँकके छन्ना ढाँकके पधराय राखनो । अरु झारी, बीडा, ग्वालभोगके रहे। आगे खिलोनांकी तबकडी धरिये ॥ ततः प्रभुप्रैखारोहणम् । विज्ञापयेत् । "नवनीतप्रिय स्वामिन् यशोदोत्सङ्गलालित ॥ ग्रंखपय्यकमारुह्य मयि दीने कृपां कुरु" ॥ १०८॥ उपरान्त पालनामें पधराइये । खिलोना खेलाइये । झुनझुना, पपैया बजाइये । एतत्समयके पद गाइये । तदा प्रेखस्थितं प्रभुमान्दोलयेत् (झुलावने)॥ रामकलीरागण गीयते। ___प्रेखपर्यंकशयनम्।चिरविरहतापहरमतिरुचिरमीक्षणम् ॥ प्रकटय प्रेमायनम् ॥ तनुतरद्विजपंक्तिमतिललितानि हसितानि तव वक्ष्यि गोपिकीनाम् ॥ यदवधि परम तदाशया सम-- भवञ्जीवितं तावकीनाम् ॥ १ ॥ तोकता वपुपि तव राजते दृशि तु मदमानिनीमानहरणम् ॥ अग्रिम वयसि किमु भाविका मेऽपि निजगोपिकाभावकरणम् ॥ २॥ ब्रजयुवतिय कनकाचलानारोढुमुत्सुकं तव चरणयुगलम् ॥ तनुमुहुरुन्नमनमभ्यासमिव नाथ सपदि कुरुते मृदुलमृदुलम् ॥ ३॥ आधिगोरोचनातिकमलकोद्रथितविविधमणिमुक्ताफलविरचितम् ॥ भूषणं राजते मुग्धतामृतभरस्यदिवदनेन्दुरसितम् ॥ ४॥ तटे mein - - -- - - - - - mpan - Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मातृरचितांजनबिन्दुरतिशयितशोभयादृग्दोषमपनयन् ॥ स्मरधनुषि मधु पिबन्नलिराज इव राजते प्रणयिसुखमुपनयन्॥५॥ वचनरचनोदारहाससहजस्मितामृतचयै रात्रिभरमपनयन्॥पालय सदाऽस्मानस्मदीयश्रीविठ्ठलेश निजदासमुपानयन्” ॥ ६ ॥ या प्रकार पद बोलके ता उपरान्त पालनेते सिंहासनपर पूर्वोक्त रीतिसों पधराइये । पालनो उठाय ठिकाने धरिये, ढाँकि धरिये। खिलोनाकी तबकडी, झारी, बडी कटोरी प्रभृतिक सब उठाय ठलाय धोय ठिकाने धरिये । उपरान्त राजभोगकी सामग्री सिद्ध भई होय सो मन्दिरते रसोईताई पेंडे में मन्दिरवस्त्र फिराइये। राजभोग धरनो। राजभोगके लिये चौकी ३ भोगमन्दिरमें सिंहासनके तीनो ओर धरिये । डिगत होय तो नीचे चेली लगाइये। सखडीकी चौकीपर पातर धरिये । जलपानके मथनीको जल झारीमें भरि सिंहासनके दुहू दिशि धरिये नेवरा पहरायके । उष्णकालमें एक कुना, करवा धरिये । ता दिना झारी एक धरिये । अरु चमचा तीनों ओर धरिये । ततो राजभोगाथै यंत्रेषु पात्राणि स्थापयेत् । “ब्रजस्त्रीकरयुग्मात्मयन्त्रे पात्रं च तन्मयम् ।। स्थापितं ते भोजनार्थ योग्यभोजनसम्भृतम् ॥ १०९॥ पाछे टेरा खेचि दृष्टि बचाय राजभोगकी सामग्री धरिये । पेहेलेही राजभोग साज राखनो पाछे प्रभुको पधरावनो । राजभोग साजवेकी रीत । भातको थार अगाडी धरनों । तामें घीकी कटोरी भातमें जेमनी आडी गाडनी। और जलकी कटोरी बाँई आडी गाडनी । और शीत समय होय तो जल तातो - auram Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हाथ सुहातो राखिये दारको डबरा थारके पास जेमनी ओर धरनो, ताके पास मूङको डबरा धरनो, ताके पीछे कडीको डबरा धरनो, और रोटी लीटी, थारके जेमनी ओर धरनी, और भुजेना, कचरिया ताके पीछे धरिये पतरो शाक धरनो और चमचा सगरे डबरा में धरने ॥ अनसखड़ी साजवेकी रीत । थालमें पलना भोगकी माखन, मिश्र, मेवा घरनी । ताके पास मलाई सिखरन, दही, रायता, शाक, भुजेना, लोन, मिरच, साँनेकी कटोरी, बूराकी कटोरी, आदा पाचरीनींबू छोलाके | दाने वाके दिन होंय तो नहीं तो चनाकी दार धरनी, और खीरको डबरा थारके पास धरनो, ताके पास मठाको डबरा धरनो । ताके पास पूरीको थार, तामें लुचई मैदाकी जीराकी, मोनकी तथा सादा पूड़ी वगैरे धरनी और सामग्री जैसो नेग होय ता प्रमान नेग धरनो । और मेवा, तर मेवा, सब दाहिनी दिशि चौकीपर धरिये । या प्रकार सब सामग्री सिद्ध करि साजके प्रभूकों पथरावने पाछे थारमें आगे थोड़ो सो भात दारि चमचासों मिलाय घृत डारि सानिके यास ५ वा ७ करि धरिये || ता पाछे धूप, दीपआरती करिये ततो घण्टां विज्ञापयेत् । "हरिवल्लभरावे त्वं क्रीडासक्तान् गृहे स्थितान् ॥ समयं राजभोगस्य गोपान् गोपीश्च सूचय " ॥ ११० ॥ ततो अगरुधूपं समयति कुर्य्यात् । " श्रीमद्राधांगसौगंध्यागरुधूपार्पणाद्विभो ॥ भावात्मकृतसामग्री भोगेच्छां प्रकटीकुरु " ॥ १११ ॥ अगरको धूप करि वामहाथसों घण्टा बजाय, दाहिने हाथसों ३ फेरि देके Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धूपाति करिये । ततो दीपातिं कुर्य्यात् । " दीपः समर्पितो । भोग्यरूपार्था लयदीपने ॥ तद्दीपनेन चोद्दीप्तभावो भोजनमाचर ॥” ॥ ११२ ॥थाई रीतिसों दीवड़ामें बाती २ ले धरि दीपार्त्ति करिये । ततः शङ्खोदकेन भोगसामग्री प्रोक्षयेत् । " कम्बूनाम्नातिप्रियं श्रीशङ्खान्तर्गतवारिणा ॥ दृष्ट्यादिदोषाभावाय सामग्री प्रोक्षिताविभो ॥११३॥ शंखके जलसों भोग सामग्री प्रोक्षणा करिये ॥ ततोग्रे तुलसीसमर्पणम् । प्रियाङ्गगन्धसुरभिं तुलसी चरणप्रियाम् ॥ समर्पयामि मे देहि हरे देहमलौकिकम् ॥ " ११४ ॥ तुलसीदल कोमल लेके अष्टाक्षर महामन्त्र पढि चरणारविन्दमें समर्पिये । अरु तुलसीपत्र ले अष्टाक्षर मन्त्रसों सब सामग्री में समप्पिये । और श्रीमथुरेarth घरकी रीत है | और श्रीनवनीतप्रियजीके याँ प्रथम तुलसी पाछे शंखोदक पाछे धूप दीप होय है । उपरान्त बाहिर आय टेरा खेंचि हाथ जोड़ि विज्ञप्ति करिये । तदा राजभोगं समर्प्य विज्ञापयेत् । " सुवर्णपात्रे दुग्धादि दध्याद्यं राजतेषु च ॥ मृत्पात्रेषु रसाढ्यं च भोज्यं सद्रोचकादिकम् ॥ ११५ ॥ राजते नवनीतं च पात्रे हमे सितास्तथा ॥ यथायोग्येषु पात्रेषु पायसं व्यञ्जनादिकम् ॥ ११६ ॥ सूपौदनं पोलिकादि तथान्यच्च चतुविधम् ॥ भुंक्ष्व भावैकसंशुद्धं राधया सहितो हरे ॥ ११७ ॥ राधाधरसुधापातुः किमन्यन्मधुरायितम् ॥ यन्निवेद्यं तदप्येतन्नामसम्बन्धतो भवेत् ॥ ११८ ॥ भाषणं मत्यतिप्राणप्रियेगोपवधूपते । त्वन्मुखामोदसुरभि भोज्यं भुंक्तेऽधिकं प्रियम् ॥ ११९ ॥ प्रियामुखाम्बुजामोद सुरभ्यन्नमतिप्रियम् ॥ अङ्गीकुरुष्व गोपीश त्वदीयत्वान्निवेदितम् ॥ १२० ॥ न जानाम्यबलायाहमस्मिन् 66 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भोज्ये मदर्पितम् ॥ भुंक्ष्व श्रीगोकुलाधीश स्वाधिव्याधीन्निवारय ॥ १२१ ॥ श्रीराधे करुणासिन्धो श्रीकृष्णरसवारिधे ॥ भोजनं कुरु भावेन प्रियेन प्रीतिपूर्वकम् ॥ १२२ ॥ त्वदीय मेव गोविन्द तुभ्यमेव समर्पितम् ॥ गृहाण राधिकायुक्तो मयि नाथ कृपां कुरु ॥ १२३ ॥ प्रियारतिश्रमपरिमिलितं वारि यामुनम् ॥ समर्पयामि तत्पानं कुरु श्रीकृष्णतापहृत् ॥ १२४ ॥ स्वार्थप्रकटसेवाख्यमार्गे श्रीवल्लभ प्रभो ॥ निवेदितस्य मे भोज्यं स्वास्ये कुरु हुताशनम् " ॥ १२५ ॥ इति विज्ञप्तिः ॥ समय घडी दो को करनो ताके बीचमें जगमोहनमें आय आसन बिछाय पूर्व व उत्तर मुख बैठिये । पाछे शंख चक्र न धरे होंय तो धरिये । उपरान्त भगवत्स्वरूपके चित्र होयतो विज्ञप्तिसों दण्डवत करिये । आँखिनसों लगाइए। पाछे नित्यकर्म सन्ध्या आदि जप पाठादिक सब करिये । उष्णकाल होय और गरमी होय तो उपरना आँखिनसों लगाय दहिनी दिशि ठाढे रहि नेत्र मूँदि पुरुषोत्तम सहस्रनाम पढत पंखा करिये । तादिन जप पाठा दिक सेवाके अवकाशते करिये । जप समय काहूसों सम्भाषण न करिये अन्तःकरण भगवलीलाविषे राखि नेत्र मूँदि माला ले जप करिये । ततो जपं कुर्यात् ॥ प्रथमं श्रीमदाचार्य विट्ठलाधीशान स्मृत्वा प्रणमेत् । " प्रमेयबलमात्रेण गृहीतौ यत्करौ दृढम् ॥ याभ्यां तौ वल्लभाधीशविट्ठलेशौ नमाम्यहम् ॥ १२६ ॥ जपं सर्वोत्तमं पूर्वमष्टाक्षरमतः परम् ॥ महामन्त्रस्ततो जाप्यस्ततो नामावली शुभा ” ॥ १२७॥ ततः प्रभुं स्मृत्वा प्रणमेत् । यद्वाललीलाकृतचौर्यजातं सन्तोषभावादत्रजगोपवध्वः ॥ उपालभन्त व्रजराजनन्दनं तदंघ्रिमेवानुदिनं नमामि ॥ १२८ ॥ ८८ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ " 77 ततः श्रीमतः स्मृत्वा प्रणमेत् । "महानन्दैकपाथोधितारवक्रेन्दु मण्डले || नमस्तेङ्घ्रिपदाम्भोजं रक्ष मां शरणागतम् ” ॥१२९ ॥ ततः सर्वोत्तमजपः कार्यः । तत्रादौ श्रीमदाचार्यान् स्मृत्वा प्रणमेत् । " निःसाधनजनोद्वारहेतवे प्रकटीकृतम् ॥ गोकुलेशस्य रूपं श्रीवल्लभं प्रणमाम्यहम् ॥ १३० ॥ ततो | जपान्ते प्रभुं नत्वा विज्ञापयेत् । भजनानंददानार्थं पुष्टि मार्गप्रकाशकम् ॥ करुणावारुणीयं श्रीवल्लभं प्रणमाम्यहम् ॥ १३१ ॥ ततः शरणमन्त्रजपः कार्यः । तत्रादौ प्रभुं स्मृत्वा प्रणमेत् । " गृहाद्यासक्तचित्तस्य धर्मभ्रष्टस्य दुर्मतेः ॥ विषयानन्दमग्रस्य श्रीकृष्णः शरणं मम " ॥ १३२ ॥ ततो जपान्ते नत्वा विज्ञापयेत् । " संसारार्णवमग्नस्य लौकिकासक्तचेतसः ॥ विस्मृत स्वीयधर्मस्य श्रीकृष्णः शरणं मम" ॥१३३॥ ततो महामन्त्रजपः कार्यः । तत्रादौ प्रभुं स्मृत्वा प्रणमेत् । “लौकिकमार्गनिवृत्तिरतोऽपि स्वस्थितमूलविचारचलोऽपि ॥ दुर्मुखवादिव चस्तरलोऽपि च कृष्ण तवास्मि न चास्मि परस्य " ॥ १३४ ॥ ततो जपान्ते प्रभुं नत्वा विज्ञापयेत् । " प्राप्तमहाबलवल्लभजोऽपि दुष्टमहाजन संगरतोऽपि ॥ लौकिकवैदिक धर्मखलोऽपि कृष्ण तवास्मि नचास्मि परस्य " ॥ १३५ ॥ ततो नामावलीजपः कार्यः । तत्रादौ प्रभुं विज्ञापयेत् । " प्रीतो देहि स्वदास्यं मे पुरुषार्थात्मकं स्वतः || त्वद्दास्यसिद्धौ दासानां न किञ्चिदवशिष्यते " ॥ १३६ ॥ ततो जपान्ते प्रभुं नत्वा विज्ञापयेत् । नमो भगवते तस्मै कृष्णायाद्भुतकर्मणे । रूपनामविभेदेन जगत्कीडति यो यतः ॥ १३७ ॥ इति जपः ॥ जप समय लौकिकासक्ति विषय वासना पर चित्त न राखिये । श्रीमदाचार्यजीके चरणारविन्द पर चित्त राखिये । उपरान्त पाठ श्रीपुरुषोत्तम 66 77 Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहस्रनाम प्रभृति ग्रन्थ श्रीमद्भागवत प्रभृति पाठ करिये । उपरान्त समयसिर उठि आचमनके लिये झारी, बीड़ा, तष्टी सिद्धकरिये । शीतकाल में आचमनकी झारीको जल उष्णहाथ सुहातो करि राखिये । पाछे पूर्वोक्त रीतिसों अचवाय मुखवस्त्र कराय बीड़ा समर्पिये । आचमनं कारयेत् विज्ञापनम् । " कुरुष्वाचमनं कृष्ण प्रिययामुनवारिणा ॥ स्नेहात्मभावसिक्ता न्यभावया करुणात्मक " ॥ १३८ ॥ मुखवस्त्रमार्जनं कारयेद्विज्ञापनं ॥ " स्नेहाच्छ्रमजलं प्रोक्ष राधिकायाः कराञ्चलात् ॥ स्मृत्वानन्दभरान्नाथ कुरु श्रीमुखमार्जनम्" ॥ १३९ ॥ मुखवस्त्र करायके बगल के तकिया पर धरिये । ततः ताम्बूलं समर्पयेत् । विज्ञप्तिः “ ताम्बूलं सुप्रियं कृष्ण सौरभ्यरससंयुतम् । गृहाण गोकुलाधीश तत्कपोलाभपांडुरम् " ॥ १४० ॥ बीडा दाहिनी ओर धरि समर्पिये । पाछे भोग सराय सखडी, अनसखडीकी समझ राखिये। ढाँकिके ठिकाने धरिये चौकी उठाय बाहिर लाय धोयवेके ठिकाने धरिये । भोगकी ठौर धोय मन्दिरवस्त्र करिये । उपरान्त सिंहासन के आगे खण्ड धरिये आगे पाट बिछाय चौकी बिछावनी । शीत कालमें रुईदार दुलीचा बिछाइये । उष्णकालमें श्वेत बिछाइये । ता पर चरण गादी ३ पेंडाके उत इत चढ़वे उतरखेको धरिये । अरु चौगाँन गेंद सिंहासन के आगे दाहिनी दिशि धरिये । पाटके ऊपर बीचमें खेलवेकी एक दिन चौपड, एक दिन शतरंज, एक दिन बाघ बकरी आदि फिरती धरनी, ताके दोनों बगल गादी बिछावनी । ततोऽक्षक्रीडार्थ विज्ञापयेत् । " क्रीडारूपात्मकैरक्षैः क्रीडार्थं स्थापितैः प्रभो ॥ क्रीडां कुरु महाराज गोपिकायै स्वराधया " ॥ १४१ ॥ खिलोनाकी तबकडी सिंहासनकी दोही आडी धरिये । तामें Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ U Po जेमनी आडी पोतके खिलोना और बाँई आड़ी काठके खिलोना धरने । और खण्डके उपर पेंडो बिछाय जेमनी तरफ पोतके खिलोना तथा बाम आडी काष्टके खिलोनाकी तबकड़ी धरिये। और खण्डकी नीचेकी शीडीपे चांदीके खिलोनाकी तबकड़ी दोउ दिशि धरनी। और दोउ शीडीपे हंस गाय घोड़ा हाथी धरने और सिंहासनके ऊपर गादीके आगे दोनों आड़ी गाय चांदीकी धरनी। शय्याके पास खेलवेके लिये चौकी ३ तामें चौकी २ इत उत एकपर गादी धरिये । उष्णकालमें सुपेदवस्त्रकी खोली चढ़ाइये । सो वसन्तपञ्चमीते दिवारी ताई पाछे सिंहासन परते राजभोगकी झारी, बीड़ा, माला, चरणारविन्दकी तुलसी प्रभृति उठाय बाहिर लाय ठलाय प्रक्षालन करि फिर पूर्वोक्त रीतिसों भरि नेवरा निचोय पहिराय शय्याके पास धरि सिंहा सनकी वाम आडी तबकड़ीमें धरनी । और उष्णकालमें शय्या तथा सिंहासनपे झारीके आगे दोउ ठौर कुना, करवा, अक्षय तृतीयाते जन्माष्टमीके पहिले दिन ताँई दाहिनी दिशि धरिये । ततः झारी समर्पणम् विज्ञप्तिः। “प्रियारतिश्रमहरं शीतलं वारि यामुनम् । समर्पयामि तत्पानं कुरु श्रीकृष्ण तापहृत्॥१४२॥ | शय्याके पास बन्टाभी धरनो । तामें मठड़ी वा लडुवा तथा साधनेकी कटोरी धरनी । ततश्चन्दनादि समर्प्य विज्ञापयेत् । “कुचकुंकुमगन्धाढ्यमङ्गरागमतिप्रियम् । श्रीकृष्ण तापशांत्यर्थमङ्गीकुरु मर्पितम् ” ॥१४॥ या विज्ञप्तिसों चन्दनअङ्गराग दोऊ ठौर चन्दनयात्राते ( अक्षयतृतीयाते ) रथयात्रा ताँई धरिये । अरु पवा गरमीमें दोउ ठौर धरिये । सो डोलते दिवारी ताई धरिये पाछे बीड़ा दोऊ ठौर पूर्वोक्त रीतिसों दाहिनी दिशि चांदीके बण्टामें धरिये । तष्टी दोऊ ठौर आगे Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A utomatoen ORREN Dommmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm - - - - धरिये । फूल माला फिरि धरिये । पुष्प समयानुसार तबकड़ीमें धरिये । विज्ञापयेत् । "कुसुमान्यर्पितानीश प्रसीद मयि सन्ततम् । कृपासंदृष्टवृष्टया त्वदङ्गीकृतशोभितम् ॥” ॥१४४॥ गरमीमें राजभोग आरती ताँई पङ्खा करिये । चोवा, अतर प्रभृति सुगन्धकी डिबिया धरिये । पाछे टेरा खोलिके समयानुसार कीर्तन होत दर्शन करवाइए। पाछे बेणु बेत्र दहिनी दिशि धराइये । पाछे आरसी दिखाइये । पाछे पूर्वोक्त रीतिसों सज्जन करिये । देवशयनीते प्रबोधनी ताँई चित्रित थारीमें चांदीके दीवलामें चार बातीकी आरती करनी उपरान्त पूर्वोक्त रीतिसों उत्सव बिना नित्यकी आति करिये । तदा विज्ञापयेत् ॥ आर्या-राजभोग आरतीकी । "बजराजविराजत घोषवरे ॥ वरणीयमनोहररूपधरे ॥ धरणीरमणीरमणैकपरे॥ परमार्तिहरस्मितविभ्रमके ॥ १॥ मकराकृति कुण्डलशोभिमुखे॥ मुखरीकृतनूपुरदृयगतौ ॥ गतिसङ्गतभूतल तापहरे ॥ हरशकविमोहनगानपरे ॥२॥ परमप्रियगोपवधूहद ये ॥ दययादिनतापहरे सुहृदाम् ॥ हृदयस्थितगोकुलवासिजने॥ जनहृद्यविहारपरे सततम् ॥३॥ ततवेणुनिनादविनोदपरे ॥ परचित्तहरस्मितमात्रकथे॥ कथनीयगुणालयहस्तयुगे ॥ युगले युगले सुदृशां सुरतौ ॥ १४५॥ रतिरस्तुममत्रजराजसुते " इति श्रीगुसांईजीकृत राजभोगआर्तिकी आ· सम्पूर्ण । या प्रकार आरती करके श्रीमत्प्रभुं स्मरेत् ।। श्रीमत्प्रभुको दंडवत करतसमय विज्ञप्ति। “हे कृष्णराधिकानाथ करुणासागर प्रभो ॥ संसारसागरे घोरे मामुद्धर भयानके" ॥ १४६॥ । animascenamainee smonane ume Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - Sonam sitam meanALTION - श्रीस्वामिनीजीकों विज्ञप्ति । "भङ्गबडिशाकृष्टकृष्णहृन्मीनरोधिनि॥ स्वपादपङ्कजे बद्धं कुरु मां शरणागतम्" ॥ १४७॥ इति श्रीमदाचार्यान् श्रीविठ्ठलाधीशचरणान् प्रणमेत् ॥ श्रीमहाप्रभुजीकों विज्ञप्ति। " नमः श्रीवल्लभाधीश विलटेशपदाम्बुज ॥ यदनुग्रहतः पुष्टिमार्गमालंबते जनः" ॥ १४८॥ ततः प्रभुं विज्ञापयेत् । "एतावदेव विज्ञाप्यं सर्वथा सर्वदैव मे ॥ त्वमीश्वरोऽसि गीतं ते क्षुद्रोऽहं वेभि न प्रभो" ॥१४९॥ पाछे हाथ धोय भीड सरकाय मान्दिरमें दाहिनी दिशि ठाढ़े रहिये । श्रीकृष्णाश्रयको पाठ सान्निध्य रहि करिये । आरसी दिखाय माला बड़ी करि पास तबकड़ीमें धरिये। उपरान्त शय्यामन्दिरमें जाय शय्याको ढाकना उठाय विज्ञप्ति करिये ॥ ____तदा निकुञ्जगमनार्थ विज्ञापयेत् । • “प्रियासङ्केतकुञ्जीयवृक्षालेषु पल्लवैः ॥ कृतेषु भावतल्पेषु क्रीडन् गोचारणं कुरु ॥ १९ ॥ ततो भावात्मकशयनं विज्ञापयेत् । “सेवतोत्र हरे रन्तुं गृहे मदृदयात्मके ॥ निमीलयामि दृग्द्वारं विलसैकान्तसमनि” ॥ ११ ॥ उपरान्त हाथ जोडि मन्दिरकों नमस्कार करि कपाट मंगल करिये। तालादेय बाहिर आइये ॥ - nemamanee - RANE A - - appan Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ APANEERE -- - - ततः प्रभु साष्टांगं नत्वा विज्ञापयेत् । "स्वदोषाञानामि स्वकृतिविहितैः साधनशतैरभेद्यांस्त्यक्तं चापटुतरमना यद्यपि विभो ॥ तथापि श्रीगोपीजनपदपरागांचितशरास्त्वदीयोस्मीति श्रीव्रजनृप न शोचामि मुदितः ॥१५२॥ प्रभो क्षमस्व भगवन्नपराधं मया कृतम् । अङ्गीकुरुष्व मत्सेवां न्यूनामपि कृपानिधे ॥ १५३ ॥ अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मयादासोऽयमिति मां ज्ञात्वा क्षमस्व श्रीवल्लभ प्रभो ॥ १५४॥ स्वल्पेनैवापराधेन महता वा बजेश्वर ॥ अस्मानुपेक्षसे च त्वं स्वकीयान् किं ब्रुवे तदा ॥ १९५॥ त्वदीयत्वं निश्चितं नस्तव भर्तृत्वमप्युत ॥ कालकमस्वभावानामीशतत्त्वं मयि प्रभो ॥ १५६॥ अतः कालादिनं दुःखं भवितुं च न नोऽ हति ॥ अपराधेप्युपेक्षा तु नोचिता सेवकेषु ते ॥ १५७॥ उपेक्षयैव कालादिर्भक्षयत्यन्यथा न हि ॥ बाहिर्मुख्यात्कालजातं दुःखं च जहि तत्प्रभो ॥ १५८ ॥ तद्वैपरीत्यं कृपया भाविन्यैवान्यथा न हि ॥ दोषाश्रयत्वं सहजं ज्ञात्वैव युररीकृतिः॥ १५९ ॥ दंडः स्वकीयतां मत्वेत्येवं चेदिष्टमेव नः॥ अस्मासु स्वीयतां मत्वा यत्र कुत्र यदा तदा ॥ १६० ॥ यद्यत्करिष्यत्यखिलं तदस्तु प्रतिजन्मनः ॥ इदमेव सदा प्रार्थ्यं त्वदीयत्वं ब्रजेश्वर ॥ १६१ ॥ दुःखासहिष्णुस्त्वत्तोऽहं तथापि प्रार्थये प्रभो ॥ तथैव सम्पादय नो नापराधो यथा भवेत् ॥ १६२॥ अपराधेऽपि गणना नैव कार्या ब्रजाधिप ॥ सहजैश्वर्यभावेन स्वस्य क्षुद्रतया च नः” ॥ १६३॥ इति ॥ - पाछे सखडी, अनसखडी प्रसाद न्यारे न्यारे पात्रमें ठलाय पात्र मांजिये । तदा पात्राणि मार्जयेत् “ गोकुलेश तवोच्छिष्ट - RANARSamananew - - - - INTERNETE miracks Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चाPAPur o gamouTRANSympt । । INNOMorename - ROERONEmaase K HONOR लेपात्पात्रप्रमार्जनात् ॥ त्वत्सेवांतरधर्मेषु रतिर्भवतु निश्चला"। ॥१६४॥ सखडी पात्र दोय बेर मांजिये । अनसखडी पात्र एक बेर मांजिये । पाछे स्वच्छ रीतिसों धोय ठिकाने राखिये । अरु खासाके पात्र पेंडाकी भूमीपर न धरिये । सखडी भूमि धोय पोत स्वच्छ करि सर्वत्र तालामङ्गल करि जलपानकी मथनीको जल आछी भांत ढाँकिये । उपरान्त बाहिर आइये । तब प्रसादी तुलसी ले ग्रहण कीजिये।" श्रीमत्तुलसि कल्याणि श्रीमच्चरणवासिनि । अङ्गीकुरुष्व मामेवं निक्षिपामि मुखाम्बुजे"॥ १६९॥ या विज्ञप्तिसों तुलसी दल ग्रहण कीजिये ॥ अथ चरणोदक लेत समय विज्ञप्ति। “छिन्नस्तेन महीस्थेन गर्भवासोतिदारुणः॥ पीतं येन सकयदि श्रीकृष्णचरणोदकम्" ॥१६६॥चरणामृत ले हाथ शिरपर आँखिनसों लगाय फिराइये । पाछे अलौकिक लौकिक वैदिक | यथायोग्य सम्मान करिये । और ब्राह्मण, वैष्णवनको सम्मान करिये । और नित्यकर्मजपपाठादि न्यून होय तो सम्पूर्णकरिये। ततो महाप्रसादं विज्ञापयेत् । “कृष्णभुक्तानशेषत्वं विरिञ्चिभव दुर्लभः॥तद्रसास्वादतो मां हि कृष्ण दास्ये नियोजय"॥१६७॥ या विज्ञप्तिसों महाप्रसादलीजियो बिगडयो सुधरयो स्वाद कहिये जो फिरि आगे सावधान होयके करे । और प्रसाद लेत समय वृथालाप न करिये । महाप्रसाद अलौकिक पदार्थ जानिलीजे । अन्नबुद्धि न राखिये । उक्तञ्च विष्णुपुराणे “पावकान्युपपापानि महापापानि यानि च ॥ तानि सर्वाणि नश्यंति हरिभुक्तानभोजनात् ” ॥ १६८॥ ततो गरुडपुराणे “ पड्मासस्योपवासस्य यत्फलं परिकीर्तितम् ॥ विष्णोनैवेद्यसिक्तेन तत्फल भुञ्जतां deses ed - - RANEMATARAJESH Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CINEIRDPREMIEcome comRATRESS कलौ" ॥१६९॥ ततः पद्मपुराणे उक्तम् । “ मुकुन्दाशनशेषंतु यो हि भुक्ते दिनेदिने ॥ ससिक्थेऽथ भवेत्तस्य फलं चान्द्रायणाधिकम् ” ॥ १७० ॥ महाप्रसाद पदार्थ जानि कृतार्थ मानि लीजिये । जूठी सखड़ीको ज्ञान राखिये ततो अग्रे प्रसादीजलं विज्ञापयेत् ॥ . "श्रीकृष्णपीतशेष त्वं प्राणिनांप्राणवल्लभ ॥ पिबामि यमुनावारि कृपां कुरु ममोपरि” ॥ १७१ ॥ पाछे प्रसाद ले माटीसों हाथ धोय कुल्ला१६करि मुख पोंछि। ततः प्रसादविटंकं (बीड़ी) विज्ञापयेत् । “ कृष्णचर्वितताम्बूलं मुखसौरभ्यसम्प्लुतम् ॥ भुंजेऽहं देहशुद्धयर्थं दास्ये मां विनियोजय"॥ १७२॥ उपरान्त | यथावकाश सोय उठिये । अथवा पुस्तक अवलोकन करिये व्यावृत्ति विषे शरणमन्त्रको ध्यान राखिये “तस्मात्सर्वात्मना नित्यं श्रीकृष्णः शरणं मम ॥ वदद्भिरेव सततं स्थेयमित्येव मे मतिः”॥१७३॥ याते शरणमन्त्रको ध्यान आवश्यक करनों। व्यावृत्ति व्यवहार जानि करिये । आसक्ति प्रभु विषय राखिये। उक्तं हि-" व्यावृत्तोऽपि हरौ चित्तं श्रवणादौ यतेत्सदा ॥ ततः प्रेम तथाऽऽसक्तिर्व्यसनं च यदा भवेत्” ॥१७४॥याते व्यावृत्ति विषय आसाक्त विशेष न राखिये अरु व्यावृत्ति विषे अपनो स्वधर्म न प्रकट करिये । निबन्धे उक्तम् “ वृत्त्यर्थं नैव युंजीत प्राणैः कण्ठगतैरपि ॥ तदभावे यथैव स्यात्तथा निर्वाहमाचरेत्" ॥ १७९ ॥ व्यावृत्ति विषे भगवद्धर्म गोप्य राखिये दास्यभावसों रहिये अन्तःकरण कोमल राखिये कृतार्थ होय किमधिकम् । उपरान्त देहकृत्य पूर्वोक्त रीतिसूं करिये। पाछे उत्थापनके लिये आले मेवा, आँब, जाम्बु, कदली, बेर, फालसा, इक्षु, अनार, दाख प्रभृति जो मिले सो लाय सँवारि सिद्धकरि राखिये ॥ । । Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -- - - - HEHOOMARRIDORRIGARH REngaummonermomeyawa - ततः उत्थापन समयते रीति। ततश्चतुर्थयामे पुनः स्नानं कुर्यात् । पाछलो ७ घडी दिन रहे ता विरियां पूर्वोक्त रीति( स्नान करि अपरसकी धोती पेंहरि आचमन करि शिखा बाँधि तिलक मुद्राधारण करि प्रेमामृतको पाठ करत खासा जलसों हाथ धोय पूर्वोक्त रीतिसों घण्टानाद तीन बेर बजावनों । विज्ञप्तिः " हरिवल्लभनादे त्वं घण्टे हि भगवत्प्रिये ॥ प्रबोधावसरं ब्रूहि हरिव्रजवधूव्रतम् ” ॥ १७६॥ ता पाछे मन्दिरके पास जाय ताला खोलिये। ततश्चतुर्थयामे प्रभुं प्रबोधादुत्थापयेत् । “जय जय श्रीकृष्ण श्रीगोवर्द्धनोद्धरण धीर दयानिधे दीनोद्धरण श्रीविठ्ठलेश महाप्रभो राजाधिराज राजीवलोचन अशरणशरण शरणागतवजपञ्जर आश्रितपारिजात महाप्रभो जय जय जय" । या प्रमाण विज्ञप्ति करि, उपरान्त मंदिर खोलि उत्थापन करिये ॥ ततः प्रभुं प्रणम्य विज्ञापयेत् । “गोवर्द्धनधर स्वामिन ब्रजनाथ जनार्तिहन् ॥ श्रीगोकुलविधुं वन्दे विरहानलकर्शितः” ॥ १७७॥ तंतः श्रीमती स्मृत्वा प्रणमेत् (श्रीस्वामिनीजी) “ परमाह्लादिनी शक्तिं वन्दे श्रीपरमेश्वरीम् ॥ महाभागवती पूर्णविभवां हरिवल्लभाम् ॥ १७८ ॥ ततः श्रीमदाचार्यान स्मृत्वा प्रणमेत् । “वन्दे श्रीवल्लभाधीशं भावात्मानं भयापहम् ॥ साकार तापशमनं पुष्टिमार्गकपोषणम् ” ॥ १७९॥ या प्रकार विज्ञप्ति करि पाछे टेरा खोलि कीर्तन होत दर्शन करवाइए । उपरान्त PRODKINN UNMAMTADIWASIA RDERMATION NORAMDARA O । Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन्दिर में जाय चोगान, गेंद, दुलिचा, पेंड़ो, चरणगादी, पेंड़ा, प्रभृतिक सब उठाय ठिकाने धरिये । पाछे शय्या सिंहासनकी झारी, बीड़ाको बण्टा, माला, तष्टीप्रभृति सब उठाय तथा शय्याको बण्टाभोग, सब उठाय ठलाय साज सब धोय ठिकाने धरिये । पाछे झारी १ भरि नेवरा पहिराय पूर्वोक्त रीतिसों सिंहासनपर पधराइये | पाछे भीड सरकाय टेरा खेंचि उत्थापन समयको भोग सिद्धकरि राख्यो होय तर मेवादिक सो धरिये । उष्णकालमें पणा करि धरिये । अक्षयतृतीयाते जन्माष्टमी ताँई धरिये और गुलाबकी सामग्री भवाप्रभृति यथासौकर्य धरिये । यह सामग्री सब सिंहासनपर भोगवस्त्र बिछाय चौकी बिछाय भोगको थाल सिद्धकरि राख्यो होय सो धरनो । धरवेकी शीत-खोवा अगाडी राखनो, ताके जेमनी ओर मलाई, ताके पास बूरा, ताके पास केला, खरबूजा, ताके पास पणा, रस होय तो धरनो, दूसरी आडी मिठाई, मेवा, ताके पास दार भीजी एक दिन अंकूरी, एक दिन चगाकी दार, एक दिन मूङ्गकी दार, लोन मिर्च कारी पिसीकी कटोरी । haat थपडी बीचमें धरनी । और आस पास फल फलोरी धरनी, धरके बिनती करनी ॥ ततः उत्थापन भोग समर्पण विज्ञप्ति । "E यथा गोवर्द्धने भुक्तं फलमूलादिकं हरे || रामेण सखिभिः सार्द्ध पुलिन्दीभिः समप्पितम् ॥ १८० ॥ तथा फलादिकं सर्व्वे भुंक्ष्व भावापितं मया । पुलिन्दीवद्भावदानात्सार्थकं जन्म मे कुरु " ॥ १८१ ॥ उपरान्त शय्यामन्दिर में जाय शय्याविज्ञति कर पूर्वोक्तरीतिसों सवारिये । पाछे पहिले Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ reOTOHITORIAmarmasumeer -- - PARENTS - - - RE माराम -- - - A NAMICRORISESAMEEREHRINEKISHOREZAARAwaoREERIORRERNITIATICELEAGARIRSRRIORINTERES Banana magnasam दिनके वस्त्र होंय सो ठिकाने धरने, दूसरे दिन धरायवेके होंय सो निकासने । अरु समय भये भोग पूर्वोक्त रीतिसों सराइये। बीडा बण्टामें धरने, आचमन मुखवस्त्र पूर्वोक्त रीति कराय भोग उठाय ठिकाने धरिये । माला धरावनी, वेणू, वेत्र, तकियासुं लगाय ठाडे धरने तष्टी धरनी गेंद चौगान ठीक करके धरनी। फूलकी पाँखडी खण्डपेसूं गादीपें सब झाड लेनी । बीचमें कहूँ हाथ नहीं लगावनों, पहिले सब सम्भारके पाछे टेरा खोलके कीर्तन होत दर्शन करवाइये । गीतगोविन्दके पद गाइये। गरमी होय तो पङ्खा मोरछल करिये और सेवा आभण बस्त्रादिककी करिये ॥ ततो ब्रजं गच्छन्तं विज्ञापयेत् । "बलभद्रादयो गोपा गावश्चाग्रे विवृत्तयः ॥ गोपिकावेधितो मध्ये रणद्वेण जागमः॥ १८२ ॥ दिवाविरहजस्तापो जस्थानां यथा हृतः ॥ तथा मल्लोचने नाथ शिशिरीकुरु सन्ततम् ” ॥ १८३ ॥ और कीर्तन होत होय तामें छाप होय ताको नाम आये तब गोपिकागीत वेणुगीतको पाठ करत खेलकी चौकी ३ और खिलोनाकी तवकड़ी उठाय ठिकाने धरिये । और पाट, चौकी, खण्ड उठाय ठिकाने धरिये। पाछे झारी उठाय ठलाय भरके नेवरा पहिरायके सिंहासन पर पूर्वोक्तरीतिसों धरिये । भीड़ सरकाय टेरा खेंचनो सिंहासनके आगे पडघा धरनो सिंहासनके ऊपर गादीके आगे वस्त्र छिबावनो पाछे सन्ध्या भोगको थाल सिद्ध करयो होय सो धरनो, पड़या पातल धरके धरनोोताको प्रकार-मठडी मोनकी पूड़ी सँधाना प्रभृतिक सब धरिये ॥ R AATERIOSIRAINRITERARRANATEGN E RESI ARENTICEDUCRECRUIS ARENEFIT SAPP Res Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MRITAMIRRORMERA R IES - meena edeemessentetnewsnelemature ommam pawan e o ततः सन्ध्याभोगार्थ विज्ञापयेत् । " श्रीमन्नन्दयशोदादिप्रेम्णा भुक्तं ब्रजे यथा ॥ भोजनं कुरु गोपीश तथा प्रेमापितं हरे” ॥ १८४ ॥ विज्ञापन कर टेरा खेंचनो । फिर और सेवा होय सो करनी। शय्याकी सेवा रहीहोय तो करनी । उपरान्त समय सर भोग सरावनों। पूर्वोक्त रीतिसों झारी, बीड़ा, तष्टी लेके आचमन कराय, मुखवस्त्र कार वीड़ा समप्पिये । पाछे भोग उठाय ठिकाने धरिये । भोगकी ठऔर पोतनाकरि मन्दिरवस्त्र फिराय हाथ धोयटेरा खोलि, दर्शन कराइये । वेणु, वेत्र धराय पूर्वोक्त रीतिसों आति सज्ज करिये। ततः सन्ध्यासमयनीराजनं कुर्यात् । विज्ञापयेत् । ___ "कृष्णः कमलपत्राक्षः पुण्यश्रवणकीर्तनः॥स्तूयमानोऽनुगैगौपैः साग्रजो व्रजमावजत् ।। १८५ ॥ तं गोरजश्छुरितकुं (ड) तलबद्धबहवन्यप्रसूनरुचिरेक्षणचारुहासम् । वेणुंकणंतमनुगैरुपगीतकीर्ति गोप्यो दिदक्षितदृशोऽभ्यगमन्समेताः ॥ १८६ ॥ पीत्वा मुकुन्दमुखसारथमक्षिभृङस्तापं जहर्विरहजं जयोषितोऽङ्गः । तत्सत्कृति समधिगम्य विवेश गोष्टं सबीड़हासविनये यदपाङ्ग मोक्षम् ॥” १८७॥ आर्या सन्ध्याआतीकी। " हरिभक्तिसुधोदधिवृद्धिकरे करवर्णितकृष्णकथायरसे ॥ रसिकागमवागमृतोक्तिपरे परमादरणीयतमाब्जपदे ॥ १ ॥ पदवन्दितपावनपापजने जननीजठरागमतापहरे ।। हरनीतविदारणनामकथे कथनीयगुणाकरदासवरे ॥२॥ वरवारणमानहरागमने रमणीयमहोदधिरासरसे ॥ रसपट्टगञ्चलशोभिमुखे मुखरीकृतवेणुनिनादरते ॥३॥ रतिनाथविमोहनवेषधरे धरणीधरधारण Nav RemementSemi indiantassamas - - - Answami Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भारभरे ॥ भरतागमशिक्षितलास्यकरे करकृष्णगिरीन्द्रपदाब्जरते । रतिरस्तु सदा वल्लभतनये"॥४॥ इति श्रीविठ्ठलेश्वरविरचिता सन्ध्यारार्तिकार्या समाप्ता॥ ___ याप्रकार आरती करनी विज्ञापनसों। ततः प्रभुं प्रणमत् दंडवतकरनी । “धेनुधूलिधूसरालकावृतास्यपङ्कजं वेणुवेत्रकंकणादिकेकिपिच्छशोभितम् ॥ गोपगोपसुन्दरीगणावृतं कृपानिधि नौमि पद्मजाचितं शिवादिदेववन्दितम् ” ॥१८८॥ ततः श्रीमती स्मृत्वा प्रणमेत् । “वृन्दावनेन्द्रमहिषि वृन्दावन्द्यपदच्छवि ॥ वन्देऽहं त्वत्पदाम्भोजं वृन्दारण्यैकगोचरे” ॥ १८९॥ ततः श्रीमहाप्रभुं प्रणमेत् । “ यत्पदाम्बुरुहध्यानं चिन्तामणिरिवाखिलान् ॥ददात्यर्थान्तमेवाहं वन्दे श्रीविठ्ठलेश्वरम्॥१९०॥ दंडवत करि पाछे हाथ धोय वेणु, वेत्र, बडेकरके भीड सरकाय टेराखेंचिये।ततो दीपंकुर्यात्। 'वासदीपवियोगार्थ राधिकास्यावलोकने । दीपार्पणागोपिकेश प्रसीद करुणानिधे" ॥ १९१॥ दीवा मन्दिरमें दाहिनी दिशि धरनो । छायाको यत्न करिये। पाछे हाथ धोय श्रृंगारकी चौकी सिंहासनके पास आनि धरिये। शीतकाल होय तो पास अँगीठी धरिये । हाथ ताते करिये। ततः शृंगारचौकी प्रभुकों पधरायकें शृंगार बडो करनो॥ ततो विज्ञापयेत् । __“राधिकाश्लेषान्तरायो भूषणोत्तारणात्प्रभो ॥ नियुक्तांश्च सुशृङ्गारानङ्गीकुरु प्रसीद मे" ॥ १९२॥ शृङ्गार बड़ो करनो। आभरण सब ठीक ठिकाने सँभारके धरने । बड़ो स्वरूपको कण्ठसरी, दुलरी, छोटे करणफूल, नकवेशर, नूपुर, श्रीहस्तमें लर, तिलक इतनों शृङ्गार राखिये । और छोटे स्वरूपको Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कण्ठाभरण, तिलक नकबेसर नूपुर रहे। बाकी सब बड़ो करिये। और पाग तनिआ रहे। और दूसरे स्वरूपको बड़े आभरन सब बड़े करिए । बाकी सब रहे । और वेणू पास रहे । शीतकालमें फरगुल. उदाइये । उष्णकालमें उपरना उदाइये। पाछे आभरन वस्त्र सब ठिकाने धरिये । पाछे प्रभूकों सिंहासनकी गादी पध| रायके गादीके अगाडी सिंहासन मोड़के ऊपर भोगवस्त्र बिछा| वनो। पाछे पूर्वोक्त रीतिसों ग्वालकी धैयाकी तबकडी अरोगायकें डबरा धरके सबःफेन समर्पिये। विज्ञापन-" ब्रजस्यानन्दगोदोहं बलेन सह गोपकैः ॥ कृत्वा पीत्वा पयःफेनं तथा पिब ब्रजाधिप” ॥ १९३ ॥ पाछे सिंहासनते झारी, बीडा, उठाय ठलायके झारी भरके पूवोक्त रीतिसों पधरावनी। आचमन, मुखवस्त्र पूर्वोक्त रीतिसों करायके चौकी माँड़के शयन भोग धरनों । ताको प्रकार-अथवा भोगमन्दिरमें शयनभोग धरनो। भातको थाल अगाड़ी धरनो तामें घीकी कटोरी तथा जलकी कटोरी गाड़नी और दारको कटोरा धरनो । कड़ीको कटोरा सबेरको परराख्यो होय सो धरनो। पापड़ धरनो। थालमें चमचाते कोर सॉननो भातमें दार तथा पी आरके साननों । तामें चमचा धरनो । दार कड़ीके कटोरामें चमचा धरने । अनसखड़ीको थाल वाम ओर धरनो। तामें सादा पूड़ी, सांटाकी पूड़ी, मोनकी पूड़ी, लोन पिसेकी तथा पिसी कारी मिरचकी कटोरी धरनी, सधानाकी कटोरी, भुजेना शाक छोक्यो, पतरो शाक, दार छोंकी, कचरिआ, कछ फल फल धरके धूप दीप करिये । अरोगवेकी विनती करि टेरा करि बाहिर आवनो। विज्ञापन-" दुग्धान्नादि यथा भुक्तं रोहिण्युपहितं निशि ॥ व्रजनायक भोक्तव्यं तथैव हि मदर्पितम् ” ॥ १९४ ॥ Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ टपकारकाशशराराष्टREET KINNAPAYERA ENCERTISEARCRATICEISHEADHITAURAVEENAEHINमाषAMRENDEYARAN ऐसे विज्ञप्ति करि बाहिर आवनो। फिर और सेवा होय सो| करनी । और आभरन सब ठिकाने धरने । और दूसरे दिनके निकासने सो छाबमें साजके वस्त्र, आभरन, यथारुचि शृंगार प्रमाण तैयार करके धरनें । जो पहिले न निकासे होय तो। ऐसे सेवा सब अवकाशमें करनी। पाछे दूसरे भोगको दूधको डबरा सिद्ध करके लावनो । तामें बूरा, सुगन्धि मिलावनी । डबरा पधरायके श्रीठाकुरजीके पास आयके झारी उठावनी । दूधको डबरा झारीकीतकड़ीमें धरनों और सखड़ीमें भातको कटोरा पतुआन ढक्यो होय ताः उघाड़नो। एक कटोरी बूराकी वामें पधरावनी, बूरा मिलायकें दूध पधराय, मिलायके थालमें कोर सन्यो होय ताके ऊपर पथरावनों। फिर हाथ धोयकें झारी भरनी। झारी सिंहासन ऊपर पधरावनी । शय्याकी शारी शय्याके पास पधरावनी। और पूर्वोक्त रीतिसों आचमनकी झारी ले, बीड़ा, तष्टी लेके आचमन पूर्वोक्त रीतिसों कराय, बीड़ा तबकड़ीमें | धरकें मुखवस्त्र करायके, माला सब स्वरूपनः धरायके मन्दिर धुवचुके तब मन्दिर वस्त्र करिके दर्शन खोलिके बीड़ी अरोगावनी। दूसरे हाथ। पानकी ओट राखनी। पाछे वेणु धरावनी ॥ शयन आरती करनी विज्ञापन । __ आर्या-" शरणागतभीतिनिवृत्तिपरे ॥ परपक्षतमोनिकरांशुनिधौ ॥ हरशक्रविरंचिपिभोगकरे ॥ सुरसेवितपादसरोजयुगे॥ करलालितघोषवधूहृदथे ॥ हृदयस्थितबालकपुष्टिरते ॥ रतरन्तितगोपवधूनिचये ॥ चयसञ्चितपुण्यनिधानफले ॥ फलभक्तपरिप्लुतिपुष्टिनिजे ॥ निजमात्रसमर्पितभोगपरे ॥ परमात्र १ दीनदयैकपरे । AKSHARINGARET A RGERREREPEATER थापालाALIEDIODImanuma n HEDUDURa ma Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HEA m mamme सुवारितदीपभरे ॥ भरभावितभक्तरसैकरते॥ रतलोलविमुद्रितनेत्रवरे ॥ वरवल्लभदर्शितपुष्टिरसे । रसविठ्ठललालितपादयुगे ॥ युगभीतिनिवर्तितधर्मरतौ॥रतिरस्तु मम ब्रजराजसुते॥१९५॥ आरती करके प्रभुको दण्डवत करत विज्ञापन । "नमः कृष्णाय शुद्धाय ब्रह्मणे परमात्मने ॥ योगेश्वराय योगाय त्वामहं शरणं गतः” ॥ १९६॥ श्रीस्वामिनीजीकी विज्ञप्ति । "कोटिविद्युच्छटापूर्णे श्रीवृन्दाविपिनान्तरे ॥ सदापुलकसाङ्गि नमस्ते कृष्णवल्लभे” ॥ १९७॥ श्रीमहाप्रभुजीको नमस्कार । " श्रीभागवतभावार्थविभावार्थावतारितम् ॥ स्वामिसन्तोषहेतुं श्रीवल्लभं प्रणमाम्यहम् ” ॥ १९८॥ श्रीगुसांईजीको नमस्कार। " यत्कृपाबलतो नूनं भगवद्भक्तिरसोत्करः ॥ निजानां हृदयाविष्टस्तं वन्दे विट्ठलेश्वरम् ” ॥ १९९ ॥ या प्रकार विज्ञापन करके फिर हाथ खासा करके वेणु बड़ी करनी । भीड सरकाय टेरा करावनो। फिर माला बडी करके थारीमें धरनी । बागो बडो करनों । पाछे दंडवत करके उपरान्त शय्यापेतें ढक्यो होय चादरा सो उठायके फिर प्रथम वेणुमुख वस्त्र पधराय शय्यापे शिरानेकी ओर पधरावने । जेमनी तरफ अतर लगावनो। फिर दोनों स्वरूपन] शय्यापे पधरावने सो वाँई दिशिते दाहिनी दिशि पधराय पोढ़ावने । और दूसरे स्वरूपकों याही रीतिसों शय्यापर बाँई दिशि दाहिनी आरते प्रभुके सम्मुख करि पौढाइये । शीतकालमें रुईकी रजाईके भीतर सुपेती मिहीं चादरको अन्तरपट देके उढ़ाइये । उष्ण Romen - - Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कालवा - - ARTHIVARAYARI - कालमें मिहीं सुपेद चादर उड़ाइये ऐसे ऋतु अनुसार ओढ़ाइये। और माला तबकड़ीमें धरिये । झारी, बीडा सब पधराय तबकडीमें धरने । बण्टा भोग धरनो तामें मठड़ा, अथवा लडुवा, तथा सघाँनेकी कटोरी साजके पधरावने । पाछे औरस्वरूपनको तथा श्रीपादुकाजी पोदावने । और शालगराम तथा गोवर्द्धन शिलाको बण्टीमें पोदावने । याही रीतिसों पोढावने ॥ पोदावत समय विज्ञापन करनी। "भावात्मकेस्मद्धृदयपर्यङ्के शेषरूपके । रमस्व राधिकया कृष्ण शयने रसभाविते" ॥२००॥प्रभुको शयन कराय नमस्कार करनों। पौढे पाछे दंडवत नहीं करनी। 'नमामि हृदये शेषलीलाक्षीराब्धिशायिनम्॥लक्ष्मीसहस्रलीलाभिः सेव्यमानं कलानिधिम् ' ॥२०१॥ या प्रकार नमस्कार करके शय्याको ढकना (चादरा) सिंहासनपर ढांकनों । फिर मन्दिरको दीया उठाय बाहिर लाइये । और जो गरमी होय तोतिवारीमें शय्या पधराय पौढाय पंखा करिये ता पाछे तालामङ्गलकारये । प्रभुको विज्ञप्ति नमस्कार करनो। * " नमामि हृदये शेषलीलाक्षीराब्धिशायिनम् । लक्ष्मीसहस्रलीलाभिः सेव्यमानं कलानिधिम् ” ॥ श्रीमती स्वामिनीजी। " श्रीकृष्णहृदयाजस्य विकाशिनि महाद्युते ॥ त्वदीयचरणाम्भोजमाश्रयेऽहमहर्निशम्" ॥२०२॥ ततः श्रीमदाचायोन् विज्ञापयेत् ।। "श्रीमदाचार्यपादाब्जं भजे दोषा हृदि स्थितम् । सदा श्रीराधिकाकान्त तत्र तिष्ठ च सुस्थिरम् ” ॥ २०३॥ - emagem amaeemsonacs Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MISARAMM A DCHIROLAMRIRAMANALALARINAKANUAR Memiscurtainmen r e RBSCREDIRatattoonmamerapramanan E TEMPERAPATRATION Retrena ततः प्रभु विज्ञापयेत्। "कियान् पूर्व जीवस्तदुचितकृतिश्चापि कियती भवान् यत्सापेक्षो निजचरणदाने बत भवेत् ॥ अतः स्वात्मानं स्वं निरुपममहत्त्वं ब्रजपते समीक्ष्यास्मन्नेत्र शिशिरय निजास्याम्बुजरसैः” ॥२०४॥ ततः श्रीमदाचार्यान विज्ञापयेत् । " सेवा श्रीबालकृष्णस्य यत्कृता त्वत्पदाश्रयात् ॥ जीवत्वादपराधांश्च क्षमस्व वल्लभप्रभो ॥ २०५ ॥ पाछे हाथ धोय नमस्कार करिये पौढ़े पाछे दंडवत न करिये । उपरान्त पूर्वोक्त रीतिसों सखड़ी अनसखड़ी प्रसाद, बीड़ा प्रभृतिक सब ठलाय साज सब धोय ठिकाने धरिये। जलपानकी मथनी ढांकि सब ठौर धोय स्वच्छ करिये। बाहिर आय यथायोग्य ब्राह्मण वैष्णवनको सन्मान करिये पाछे क्षुधा होय तो पूर्वोक्त रीतिसों रात्रिको बाधक न होय विचारके प्रसाद लीजिये अरु अगले दिनकी सेवा आभरण वस्त्रादिक स्वतः सिद्ध करिये । अरु रसोई, बालभोगके लिये सामग्री, शाकादिक सब सिद्ध करि धरिये। निश्चित ऐसे न रहिये। तदुक्तं निबन्धे-"स्वयं परिचरेद्भत्तया वस्त्रप्रक्षालनादिभिः॥ एककालं द्विकालं वा त्रिकालं वापि पूर्तये 7 ॥२०६॥ जाते तनुजा सेवा करिये। उपरान्त व्यावृति करिये तो पूर्वोक्त रीतिसों करिये पुस्तक देखिये श्रीमद्भागवत, एतन्मार्गीय ग्रन्थपाठ करिये। तदुक्तं निबन्धे-" पठेच्च नियमं कृत्वा श्रीभागवतमादरात् ॥ सर्व सहेत पुरुषः सर्वेषां कृष्णभावनात्'' ॥२०७॥ अरु असमर्पित वस्तु सर्वथा न खाइये । तदुक्तम्" असमर्पितवस्तूनां तस्मादर्जनमाचरेत् ॥ निवेद्यञ्च समप्यैव -- - - - -- Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सर्व कुर्यादिति स्थितिः" ॥२०८॥ और अन्याश्रयको लेशहू न करिये । तदुक्तम्-" अहं कुरङ्गीहकू,गीसंगीनांगिकृतास्मि यत् ॥ अन्यसम्बन्धगन्धोऽपि कन्धरामेव बाधते ” ॥२०९॥ इतिवाक्यात् अरु एतन्मार्गीयके मुखसों श्रीमद्भागवतकथादि भगवद्भक्ति ग्रन्थादिक श्रवण करिये। उपरांत अलौकिक लौकिक कार्य होय सो करिये । पाछे इच्छाहोय तो स्वस्त्रीको समाधान करिये । परन्तु विषयासक्ति विशेष न करिये । उक्तं सन्यासनिर्णये--" विषयाक्रान्तदेहानां नावेशः सर्वदा हरेः” इति । किंच पाछे स्वच्छ होयके चरणामृत लेइ निरोधलक्षणको पाठकरिये । श्रीमदाचार्य महाप्रभूनको तथा श्रीगुसांईजीकों स्मरण करि अन्तःकरणको भगवतलीला विषे राखिये । निद्राभावार्थ न तु सुखार्थ करिये । अरु चतुःषष्ठि अपराधते सावधान रहिये । या भाँति सावधान रहे तो कृतार्थ होय । किमधिकम् ॥" श्रीवल्लभाचार्यमते फलं तत्प्राकटयमात्रं त्वभिचारहेतुः। सेवैव तस्मिनवधोक्तभक्तिस्तत्रोपयोगोऽखिलसाधनानाम् " ॥ २१० ॥ ततो यदिन्दीवरसुन्दराक्षीवृतस्य वृन्दावनवन्दितांग्रेः । सर्वात्मभावेन सदास्यलास्यनस्यानशंसा हि फलानुभूतिः॥२१॥ इति श्रीपुष्टिमार्गीयाह्निकम् ॥ श्रीमद्रजराज श्रीहरिरायजीकृत नित्यसेवा मङ्गलासों लेके शयन पर्यन्त सेवा, भाव विज्ञप्तिके श्लोकसुद्धा लिखी है और सब श्लोक नित्य न बनें तो याको भावही विचार सब सेवा करनी। और समयसमयके कीर्तन गाय भाव विचारनो। और एतन्मार्गीय वैष्णवनकू तो सर्वोत्तमजी और वल्लभाख्यानको पाठ नित्य नेमसों करनों । इति श्रीसातों घरकी नित्यसेवा प्रकार तथा उत्सवको प्रकार विधिपूर्वक संक्षेपसों लिख्यो है ॥ इति ॥ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अब वर्षदिन के उत्सवकी तथा नित्यकी तीन सौ साठ दिनाकीसेवाविधि तथा शृङ्गार, वस्त्र, आभरण तथा सामग्री विस्तारपूर्वक लिखी है । और सामग्री तथा नित्यको शृङ्गार यामें लिख्यो है परन्तु सामग्रीको जहाँ जितनो नेग बन्ध्यो होय ता प्रमाण करनी । तोलको प्रमाण १ सेर रुपीया ८० भरका sill रु. ६० भर 5 || सेर रु. ४० भरका 51 सेर रु. २० भरका आधपाव रु. १० भर छटांक 5 - रु. ५ भर आधीछटांक 5० ॥ रु० २ ॥ पांव छटांक रु० १। और नित्यके शृङ्गारमें यथारुचि करनो अर्थात अपने मनमें आछो लगे सो करनो नित्यकेमें लिखे प्रमाण नेम नहीं इति अलम् ॥ अब वर्षदिनके उत्सव तथा नित्यप्रकार लिख्यते । तहाँ प्रथम जातिथिमें जो उत्सव मान्योजाय ता तिथिको निर्णय करि विचारलेनो चाहिये । जैसे जन्मउत्सव आदिक में उदया तिथि लेनी । अब एकादशीसे लेके सब उत्सव वर्ष - दिनाको निर्णय, निर्णयग्रन्थनमेंसूं प्रमाण लेके लिख्यो है सो निर्णय आगे लिख्यो है तामें देखलेनो । इति ॥ अथ श्रीजन्माष्टमी उत्सव विधि । प्रथम पञ्चमी के दिन चन्दरवा, टेरा, बन्दनवार, कसना, तकिया झब्वा, बालस्त ये सब बदलने । और छठीके दिन सोने, रूपाके, वासन गादी, तकियाको साज, पेंडा, खेंचमां पङ्गाकी खोलि ये सब बदलनें । सप्तमीके, दिन पिछवाई, पलङ्गपोष, सुजनी, खिलोनां, चोपड़, पङ्खा, मूढा, चमर, आरसी और सब उत्सवको साज बदलनो । तथा एक छाबमें Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ O नये वस्त्र, पीताम्बर, बण्टा श्वेतडोरियाको । झारीके झोला । अतरकी सीसी, चादर केशरी डोरियाकी । भोगवस्त्र, गुञ्जा, और हाथपोछिवेको छन्ना । जोड़ । कुल्हे । कस्तूरीकी थैली, श्रीफल, भेट, नोछावर, सब साजके धरने ॥ पञ्चामृतकी तैयारी करनी। तामें कुमकुम, अक्षत, चौकपूरखेकी हरदी, दूध, दही, घी, बूरो, मधु ए सब साज राखनो । जगमोहनके द्वार तथा नगारखानेके, दरवाजे, केलाके स्थम्भ बाँधने ए सब तैय्यारी करि राखनी॥ अथ भाद्रपदकृष्णा जन्माष्टमीके दिन बारह बजे । __ हेला पड़े। सब तैयारी ऊपर लिखे प्रमाणकरके श्रीठाकुरजीकों पूर्वोक्त रीतिसों जगावने । जागतही झाँझ, पखावजसों बधाई होय । उपरना केशरी ओढे । मङ्गलासों लेके शयनपर्यन्त गीजड़ीके मनोहरके लडुवा अरोगे । मङ्गलाभोग धरि समय भये भोग पूर्वोक्त रीतिसों सरावनों । मन्दिरवस्त्र करि सूकी हलदीको अष्टदल सिंहासनके आगे करनो। तापे परात धरनी। तामें पीटा धरनो । ताके ऊपर अष्टदल कुमकुमको करनो । ताक ऊपर लाल दरियाईको पीताम्बर दोहरो करके बिछावनों । और पञ्चामृतको साज सब परातके वाम ओर पट्टा बिछायके ताके ऊपर पातर केलाकी बिछाय ! ताके ऊपर धरनो । या प्रमाण कटोरानमें दूधको, दहीको, । घृतको, बूराको, मधु (सहत ) को पञ्चामृत साजनो। और लोटा १ सुहाते जलको। और १ लोटा ताते जलको । और १ लोटा ठण्डे जलको राखनो । और १ तबकड़ीमें कुम्कुम् | - - - - Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Anames tauranamamyahamermERETrawmIRTAN UCCESDATEURSDARDSeasuRes - - - घोरयो ताको गोला और अक्षत पीरे करिके और तुलसी यह सब तैयार करिके धरनों । शङ्ख एक पड़पीपे धरनों । एक अङ्गवत्र पास राखनो । और केशर तथा आमरे पिशे और फुलेल यह सब पास राखनो या प्रकार सगरी तैयारी करके भूलचूक देखके दर्शन खोलने ॥ मंगलाआरती थारीकी करनी। पाछे भीड़सरकायकें देश खेंचनो । पाछे श्रीप्रभुकों शृङ्गार चौकीपर पधरायकें रात्रीको शृङ्गार बड़ो करनो। और श्रीबालकृष्णजी होय तो प्रभुके आगे पधराइये। श्रीस्वामिनीजी नहीं पधारें। पञ्चामृतस्नान श्रीठाकुरजीकूँही होय । पाछे पीरी दरयाईके धोती उपरना धरावने । अरु श्रीहस्तमें कड़ा सोनेके, नूपूर, कन्दोरा, ए सोनेके रहें। कण्ठाभरण, मोतीकी लर धरावनी। पाछे पीटापें पधरावने । अरु श्रीबालकृष्णजी होय तो तिनको पधारावनें। श्रीबालकृष्णजीको श्रृंगार कछु नहीं रहे । पाछे दर्शन खोलने । अरु झालरि, घण्टा, शंख, झाँझ, पखावज बजे कीर्तनहोय और धोल, गीत, गावें, नगारा बजे॥ संकल्प। शीतल जल लोटीमेंसूं लेके आचमन प्राणायाम करि हाथमें जल और अक्षत लेके सङ्कल्प करे-ॐ हरिः ॐ श्रीविष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्याय श्रीब्रह्मणो द्वितीयप्रहराई श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे जम्बूद्वीपे भूलोंके भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गते ब्रह्मावर्तेकदेशे श्रीवजदेशे मथुरामण्डले श्रीगोवर्द्धनक्षेत्रे अथवा अमुकदेशे अमुकमण्डले cantseemharasthcasnawaicnacatumDEARRIORAIPURARIRAMANARDARNAMA -- - - - - Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ARTHATANTRA अमुकक्षेत्रे अमुकनामसंवत्सरे श्रीसूर्य दक्षिणायनगते वर्षाऋतौ मासानामुत्तमे भाद्रपदमासे शुभे कृष्णपक्षे अमुकवासरे अमुकनक्षत्रे अमुकयोगे अमुककरणे एवंगुणविशिष्टायामष्टम्यां शुभपुण्यतिथौ श्रीभगवतः पुरुषोत्तमस्य कृष्णावतारप्रादुर्भावोत्सवं कर्तुं तदङ्गत्वेन पञ्चामृतस्नानमहं करयिष्ये । जल अक्षत छोड़नों पाछे तबकड़ी हाथमें लेके शलाकासों श्रीठाकुरजीको तिलक दोय बेर करनों । अक्षत दोय बेर लगावनें । हाथ धोय बीड़ा धरनों । फेर महामन्त्रसों तुलसी चरणारविन्दमें समर्पनी। और महामन्त्रसों तुलसी शङ्खमें पधरावनी । तथा पञ्चाभृतके कटोरानमें तुलसी महामन्त्रसों पधरावनी । शंख भूमिपर नहीं धरनों। पडषी छोटीसी शंखकी न्यारी रहे ताके ऊपर धरनों । अरु पञ्चामृत स्नान करावे । शंख हाथमे लेके और एक जनों दूध आदि कटोरीसूं अथवा कटोरानसों शंखमें देतो जाय, तामें प्रथम दूधसों, पाछे दहीसों, पाछे घृतसों, पाछे बूरासों। पाछे मधुसों। (कहीं दूध, दही, मधु, घृत, बूरा, या रीतिसों होय है ) और श्रीगिरधरजी महाराज कृत सेवाविधिमें लिख्यो है कि मधु, सब बनस्पतिनको रस है तासों सबके पाछे मधुसों स्नान करावनों । सो ता पाछे फिर दूधसों या प्रकार पञ्चामृत सान कराय पाछे शीतल श्रीयमुनाजलतों एक शंखसों ता पाछे स्नान करावनों। ता पाछे दंडवत कार टेरा खेंचे। पाछे प्रभुके धोती उपरना बड़े करि परातमें अभ्यङ्ग करावनो । प्रथम फुलेल समर्थनो । पाछे आमरा मसलिये जो पञ्चामृतकी चिकनाई छूटे । पाछे स्नान करायके केशर मिश्रित चन्दन लगायके स्नान करावनो। फिर एक लोटी श्रीयमुनाजल तथा एक लोटी गुलाब जलसों स्नान करायके अंगवस्त्र करि awaaTIOMMEwnce Domamarcanad m monsannound Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ amISE D पाछे श्रीस्वामिनीजीको अभ्यङ्ग करावे । पाछे स्नान करावे पाछे पीरे पाटकी दरियाई जापे स्नान कराये हैं विनके टूक कर सबनको बाँटदेवे सो टूक (पीताम्बर) कण्ठी (माला) में बाँधे । पाछे अतर समर्पिके वस्त्र केशरी नये रुपेरी किनारीके कुल्हे केशरी, बागा केशरी चाकदार, सूथन, पटुका, लहेंगा चोली, गुलेनार, दरियाइकी। साडी केशरी॥ । अब श्रीबालकृष्णजी होंय तो विनके वस्त्र। ____ कुल्हे, केशरी, बागो केशरी, ओढ़नी केशरी, रूपेरी किनारी लगे वस्त्र होंय । और श्रीपादुकाजीकी ओढ़नी केशरी रूपेरै किनारी लगी। पलँगडीपर विराजे। आभरण सब धोयके फेरिके पिरोवे । गठावने । जन्मोत्सव पर । जोड नयो चन्द्रका ५ के गुञ्जा नई । ऐसे सब तैयारी करनी ॥ शृंगार श्रीठाकुरजीको करनो। प्रथम वस्त्र धरावने । पाछे आभरण । अलकावली, नूपुर क्षुद्रघण्टिका। ये सब मानिकके । और कुण्डल, हार, त्रिवर्ल पान, शीशफूल, चरणफूल, हस्तफूल, यह सब हीराके । और बाजू पोहोंची, हीरा, मानिकके तीन तीन धरावने । पन्नाके हार, माला, पदक हमेल, दोय कलिको हार, जुहीको हार चन्द्रहार, कस्तूरीकी माला, दोऊ आडी कलंगी श्रृंगार सब भारी तीन जोरीको करनो । कमलपत्र केशरको करनो । गौर स्वरूपः कस्तूरी कपोलपर धराइये । अञ्जन करने । जोड सादा चन्द्रिका ५ को नयो धरावनो । चोटी धरावनी॥ याही प्रकार श्रीस्वामिनीजीको शृंगार करनो। सिंहासनपर पधरावने । गादीको शृंगार करनों । और || सब स्वरूपनको शृंगार करनो। या प्रकार तिहरो शृंगार भारी - - - - - - - - Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ LEDISSECREHESENABARADARSH A RE करनो। और मुखवस्त्र, अंगवस्त्र, सब नये राखने । गुञ्जा नई धरायके फूल माला धराइये । पाछे प्रभुको गादीसुद्धा पाटियाते सिंहासनपर पधराइये॥ अथ तिलकको प्रकार । सिंहासनके नीचे दोऊ आड़ी भीजी हलदीको चौक माँडिये। निज मन्दिरकी देहरी माँडिये। कुम्कुम्के थापा द्वारन लगाय वन्दनवार पतुआकी सब जगे बाँधनी। आरती चूनकी जोड़िके थारीमें धरनी, मुठिआ ४ चूनके धरने । एक तबकड़ीमें कुम्कुम्को गोला करके धरनो । तामें अतरकी दो चार बूंद डारनी। एक कटोरीमें पीरे अक्षत धरने । श्रीफल दोय, तामें कुम्कुम्की पाँच रेखा करनी। और बीड़ा चार, तिनकी नोक, कुम्कुम्सों रङ्गनी । और तिलककेताँई शलाका चाँदी वा सोनेकी राखनी। चीमटी चाँदीकी अक्षत लगायवेकू राखनी । रुपैया दोय भेटकू, रुपैया एक नोछावरकूँ। रुपैया एक कलशमें डावे।। रुपैया १ जन्मपत्रिकाको । यह सब साजके एक थारीमें धरनो । भोगको थार सिंहासनके पास जेमनी आड़ी एक पड़घापें धार छन्नासों ढाँकके धरनो । तामें महाभोगकी सामग्री सबनमेंसों दोय दोय नग साजने। पाछे सिंहासनके आगे खण्डको साज सब माँडनो। माला धरायके आरती चूनकी जोड़के दर्शनको टेरा खोलनो । पाछे वेणु, वेत्र, धरायके | आरसी दिखावनी । चरण स्पर्शकरि हाथ खासा कार, श्रीमहाप्रभूजीको स्मरण करि दण्डवतकरि कलशवारीकू तिवारीमें ठाड़ी करनी। झालर, घण्टा, शङ्खनाद, झाँझि, पखावज बाजत और धोल, गीत गावत, नगाड़ा बाजत, कीर्तन होत । कीर्तन Page #82 --------------------------------------------------------------------------  Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शिष्टायां श्रीकृष्णजन्माष्टम्यां शुभपुण्यतिथौ ममायुरारोग्यैवर्यादिवृद्ध गोनिष्क्रयभूतदक्षिणां अमुकनाम्म्रे अमुकगोत्राय ब्राह्मणाय दातुमहमुत्सृजे तत्सत् | यह सङ्कल्प करि प्रभुनकी ओरते जल अक्षत छोड़िये । विचारचो होय सो ब्राह्मणकूं दीजिये । पाछे थापा दीजे द्वारेनपें जहाँ न लगाये होंय तहाँ लगावने । पाछे सिंहासनके आगे मन्दिर वस्त्र फिरायके झारी भरिके गोपीवल्लभभोग धरनो । पाटियाको थार आवै, तामें बूरा भुरकाय मिलावनो और बूरासों थाल साननो | चमचा धरनो । पापड़, भुजेना नित्यके धरने । तथा अनसखड़ीके थार में जलेबी आदि सब सामग्री धरनी । और एक कटोरीमें तिल, गुड़, दूध मिलायके धरिये । श्लोक पढ़के धरनो । श्लोक- " सतिलं गुडसम्मिश्रमंजल्यर्द्धमितं पयः । मार्कण्डेयाद्वरं लब्ध्वा पिबाम्यायुःप्रवृद्धये " ॥ २०८ ॥ या श्लोककूं तीन बेर पढिके कटोरी पास धरनी । और तिलक भोगको थाल छन्ना उधार के आगे धरनों। समय भये पूर्वोक्त रीतिसों भोग सरायके डबरा भोग धरनों | तबकड़ी वैयाकी नहीं अरोगे । पाछे पलना जो नित्य झूलत होय तो झुलावनो । झुनझुनादिक खेला। इये | पालनाके कीर्त्तन होंय और झूलें । पाछे राजभोग धरनों । तामें खीर बड़ा, छाछिबडा, दार, मूङ्गकी छड़ियल तीनकूड़ा आदि सब अधिकीमें धरनों । रायता तथा लीटी छोड़ बाकी नित्यको सब आवै । या प्रकार राजभोग धरके नित्यकी रीति तुलसी, शंखोदक, धूपदीप करके पूर्वोक्त रीतिसों विनतीकर टेरा लगावनो पाछे समय भये पूर्वोक्त रीतिसों भोग सरावनों । आचमन, मुखवस्त्र कराय बीडाधरके आरसी दिखाय आरती थारीकी तामें चाँदी के दीवलाकी करनी । आरसी दिखाय पाछें Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मला बड़ी नहीं करनी । माला तिलककी उत्थापन समय बडी करनी । अनोसर करनो । पूर्वोक्त रीतिसों ताला मङ्गल करनों ॥ अथ साँझको प्रकार । अब साँझकों दोय घडी दिन रहे तब पूव्र्वोक्त रीतिसों स्नान करके पूर्वोक्त रीतिसों उत्थापन करनो पाछे उत्थापन भोग तथा सन्ध्याभोग भेलो आवे । पाछे पूर्वोक्त रीतिसों सन्ध्या आरती करके शयनभोग धरनों। समय भये भोग सरायके राजभोगवत सिंहासनको साज, खण्ड, पाट, चौकी आदि सब माण्डनों । वेणुधरि दर्शन खुले आरती थारीकी करनी । पाछे वेणु, वेत्र, पास तकियासूं ठाड़ेकरि राखने । शय्याके पास अनोसरको साज सब धरनों। शय्याको चौरसा उतारनों। पेंडों बिछावनो । पाछे प्रभुको चमर करचा करनों। और महाभोग की तैयारी करनी । ताको प्रकार - सखडी, अनसखडी आदिको जहाँ जितनों नेग बन्व्यो होय ताही प्रमाण करनो । यहाँ हमनें अन्दाजसों लिख्यों है । ताको प्रकार | प्रथम सखड़ीको प्रकार । चोखा सेर ८५ मूङ्गकी छडियल दार सेर 52 || मूँग सेर591 तीन कुड़ा ताको चौरीठा सेर 59 यामें डारवेको चणा सेर 59 तथा बडी सेर 51 भूनके डारनी। उडदकी बड़ी सेर | ताको छोक्यो शाक जलको पतरो । ऐसेही मूँग की मंगोड़ीको पतरो शाक सेर SI को ॥ अथ पांचों भातको प्रकार | मेवा भातके चोखा सेर 5 || तामें बदामके टूक सेर S= पिस्ताके टूक सेर 5= पौन पाव, किस्मिस सेर पाव 5t Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TRIP ATI - Amar - | चिरोंजी सेरऽ।= डेढ पाव, बूरा सेर ऽ४, इलाइची मासा ५, वरास रत्ती २, केशर मासा ६। और सिखरनभातके चोखा सेर ॥, सिखरन सेर ऽ२॥ तामें बूरा सेर 5४, इलायची मासा ५, बरास रत्ती २॥ दही भातके चोखा सेर 5१, दही सेर 53, आदाके टूक सेर 5= आधपाव। बडी भातके चोखा सेर ७१। खट्टे भातके चोखा सेरऽ१ तामें निम्बूको रस सेर ॥ पाटियाकी सेव सेर 51 बूरा सेर 51 इलायची मासा ३ बरास रत्ती १. ___ पापड ३२ तिलमडी ढेवरी सेर 5१ कचरिया बारह तरहकी आध आध पाव लेनी। . भुजेना बारह तरहके लपेटमा । ताको बेसन सेर ७३ तेल सेरऽ५॥ मिरच बडी सेर ॥ रोचक छोटे पापड, सेव, सकर पारे, चकता, फलफूल । लौङ्ग, मेवा बाँटी, गुझिया, कपूरनाड़ी, यह सब आध आध सेरके रोचक करने । यह पापड़के चूनमेंसें करनो याको नाम रोचक ॥ शाक दोय तामें बड़ी मिले मूङ्गकी सेर डेढ़ 5- पाव भूनके || तथा उड़दकी बड़ी सेर 5= ये भूनके राखनी सो जामें चइये । तामें मिलावनी॥ और शाक ४ एक शाक चनाकी दार मिल्यो भाजीमें चोखा सेर 5= मिल्यो शाक । थूली सेर s= मिल्यो | भाजीको शाक मूङ्गकी छड़ी दार सेर । भाजी मिल्यो शाक । र A - - - - म - Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ min और पतरे तीन ताको चौरीठा सेर 5॥ घृत सेर ॥कटोरीको। यह सब सामग्रीमेंसों दूसरे दिनके राजभोगके ताँई साजके राखनी। अब लोन, मिरच, सन्धाँना, पूरा आदिकी कटोरी साजके धरनी ॥ - अथ अनसखड़ीको प्रकार । यहां तोल बढ़ती लिखी है परन्तु जहाँ जितनो नेग होय ता प्रमाण करनो॥ सामग्री। छूटी बूँदीको वेसन सेर १० घृत सेर १० खाँड सेर १० । गुझाको कूरको चून सेर ऽ४ घृत सेर ऽ२। खाण्ड सेर ऽ४ मिरच आध पाव, खोपराके टूक सेर ॥ भरवेको मैदा सेर ऽ५ घृत सेर ऽ५, ॥ मठड़ीको-मैदा सेर ३६ घृत सेर ऽ६ खाण्ड सेरऽ६। - सकरपाराको-मैदा सेर ऽदघृत सेर ७६ खाण्ड सेर ७६ । सेवके लडुआको-मैदा सेर ३६ घृत सेर ७६ खाण्ड सेर । २ बारे॥ फेनी केशरी तथा सुपेतको-मैदा सेर ७२ घृत सेर ऽ२ खाण्ड सेर ऽ२॥ फेनी न बने तो चन्द्रकला करनी ताकी खाण्ड तिगुनी लेनी॥ . बाबर केसरी तथा सुपेत ताको-मैदा सेर ऽ२॥ घृत | सेरऽ२॥ बूरा सेर ऽ२॥ जलेबीको-मैदा सेरऽ१॥ घृत सेर 5॥ खाण्ड सेर ऽ४॥ बूंदीके लडुवाको-बेसन सेर 5। घृत सेर 5। खाण्ड - M - Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेर ३॥ तामें बदाम पिस्ताके टूकऽ= किसमिसऽ= | चिरोंजी 5= इलायची मासे ६ केसर मासा ३॥ मनोहरके लडुवाको-चोरीठा सेर ॥ तामें थोड़ोसो मैदा मिलावनो। बन्ध्यो दही सेर 5॥ घृत सेर 5१ खाण्ड सेर ७४ इलायची मासा ६॥ ... मेवाटीको-मैदा सेर ॥ बदामपिस्ताके टूक सेर 5= चिरोंजी सेर ऽ। किसमिस सेर 5- मिश्रीको खा सेर । घृत सेर ॥ खाण्ड सेर ॥ - इन्द्रसाको-चौरीठा सेर 5 बूरा सेरऽखसखस सेर । घृत सेर ॥ पनीरी। घृत सेर 5१ बूरो सेर 5४ सोंठ सेर ७॥ अजमान 5जीरा 5-धनियो 5-मिरच कारी 5- सोंफ 5 सीराको-चून सेर 5१ घृत सेर 59॥ बूरा सेरऽ३ मेवा 53 शिखरन बड़ी-उडदकी पिट्ठी सेर । घृत सेर ऽ। पाकवेकी खाण्ड सेर ॥ ताको शिखरन सेर ॥ ताको बूरा सेर ऽ२ इलायची मासा ३ बरास रत्ती २ गुलाबजल 5% - खीरको-दूध सेर ७२॥ चोखा सेर 5=॥ बूरा सेर ७१ इलायची मासा ३ खीर पाटियाकी-सेव सेर = भूनके तथा दूध सेर ऽ२॥ बूरा सेर 5। इलायची मासा ३ खीर सञ्जाबकीको- दूध सेर ७२॥ वा सेर 5= भूनके डारे । बूरा सेर 5। जायफल मासा २ खीर मणिकाकीको दूध सेर 5२॥ मणिका सेर s= बूरा सेर । Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mammausamme women i ndian mamm राइता बारह तरहके। राइताको दही सेर ७२ केला, | काकड़ी, बूंदी, तोरई, बथवा, आदिके करने ।। छाछि बड़ाकी-पिप्तीदार सेर ऽ२ घृत सेर 51 आदाके टूक ऽ। सेर छाछिको तोला १ बड़ो, तामें भुन्यो जीरा, तथा नोन पिस्यो, __मैदाकी पूड़ीको-मैदा सेर ३२॥ घृत सेर ॥ मोनकी पूड़ीको चून सेर ७२ घृत सेर ॥ झीने झरझराकी सेवको-बेसन सेर ७॥ सकरपाराको बेसन सेर ॥ तथा फीको बेसन सेर 5१ के खिलोना सब | तरहके करने ताको घृत सेर ॥ कॉजीके बडाकी दार सेर 5१ घृत सेरऽ॥ फड़फड़िआकी चनाकी दार सेर ऽ॥ चनाके फड़फड़िया सेर ॥ घृत सेर si= दोनोनको भुजेना १२ तरहके, घृत |सेर 5१ शाक १२ तरहके। अब ए ऊपर लिखी सामग्री, बड़ीमेंसों दस, दस नग छोटे करने । सो पलनाके थालमें साजने । तथा फीके, खिलोना, फड़फड़िया, लूँण, मिरचकी कटोरी ये सब पलनाके थालमें साजनें । और सामग्रीमेंसों तीन छबड़ा साजनें । तामें एक छबड़ा तिलकके समयको और दूसरो छबडा जन्माष्टमीके राजभोगको। और तीसरो छबडा नौमीके राजभोगमें आवै । और काँजीकी हाँडी छोटी राखनी नौमीके राजभोगके ताँई। __ अब सधाना आठ साकके कच्चे बाफके करने । नींबूको चपन १ सघाँना ४ भण्डारको। दाख, छुआरे, मिरच, पीपर ये सब आप आध पावके करने । । ama Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पायmacmo - अब दूधघरको प्रकार । अधोटा दूध सेरऽ२बूरा सेरऽ।इलायची मासारबरास रत्ती॥ बरफीको-दूध सेरऽ२॥ वूरा सेर 5॥ केशर मासा २॥ इलायची मासा २ बरास रत्ती १ पिस्ता बदामके टूक पैसा ४ भर। पेड़ाको-दूध सेरऽ२॥ बूरा सेर ॥ केशर मासा ॥ इलायची मासा ३ बरास रत्ती १ पिस्ताके टूक पैसा ३ भर।। गुझियाको-दूध सेर 5१॥ पिस्ता मिश्री पैसा ३ भर तामें भरवेको ओलाको खा सेर 5=इलायची मासा १ . मेवाटीको-दूध सेर 5॥ केशर मासा ॥ पिसी मिश्री पैसा ३ भर खसखस पैसा १ भर इलायची मासा ३ भर मिश्री मिलायवेकी पैसा ६ भर । खोवाकी गोलीको-दूध सेरऽ॥बूरा सेर = केशर मासा॥ छूटे खोवाको-दूध सेर ७१॥ बूरा =केशर मासा ॥ इलायची मासा १ मलाई।। दूधपूरीको-दूध सेर ३६ भुरकायवेकी मिश्रीs= । मलाईको बटेरा १ बूरा ॥= दोनोनकी केशर मासा ३ इलायची मासा २ बरास रत्ती । और गुलाबजल जामें चइये तामें सबनमें पधरावनों। और पलना भोगमें ढीली बस्तु नहीं साजनी । और सब साजनी। खाण्डगरको प्रमाण। खिलोना सेरऽके । गजक, रेवड़ी, पतासे, गिंदोड़ा, दमीदा, ॥ गुलाबकतली, इलायचीदाणे, तिनगिनी, पगे पिस्ता, पगी खसखस, पगे तिल,पगी चिरोंजी यह सब सेर एक एकके करने। पिस्ताकी कतलीके पिस्ता सेर 5१ ताकी खाण्ड सेर १ केशर मासा १ इलायची मासा 59 पानासा 57 RRIANDESpesamaye Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 - नेजाकी कतलीके नेजा सेर 51 खाण्ड सेर 53 पेठाकी कतलीके-पेठाके बीज सेर 5॥ खाण्ड सेर ७॥ इलायची मासा १ खरबूजाके बीज सेर ॥ खाण्ड सेर ॥ ताके लडुवा बाँधनें॥ __ चिरोंजीके-लडुवा सेर 5॥ खाण्ड सेर ॥ वरास रत्ती ॥ सखाराक लडुवाको खोपराको खुमण सेर । मिश्री सेर ॥ बरास रत्ती १ पेठापाककी-मिश्री सेर 5१ केसर, बरास, तीन तीन रत्ती॥ · बिलसारु पाँच तरहकें। केला, करोंदा, केरी, किसमिस, गुलाबके फूल बगेरेको करनों । मुरव्वा विलसारु जो बनजाय सो सब पलना भोगमें साजने॥ अथ मूके मेवाको प्रकार । मिश्रीकी कडेली छोटी, बदाम, दाख, छुहारे, पिस्ता, खोपराके टूक, कुंकन केला, खुमानी, मुनका, दाख, सूके अञ्जीर, खिजूर यह सब पाव पाव सेर साजने वटेरानमें । मुझे मेवा, तामें नोन सेंधो तथा मिरच पिसी मिलावनी । बदाम, पिस्ता, चिरोंजी, अखरोट, मखाने, काजूकलिआ, मूङफली, बीज कोलाके, बीज खरबूजाके, बीज पेठाके, यह सब आध आध पाव भूअने। सब बटेरीनमें सजावने और तर मेवा (नीलीमेवा) जितनी तरहकी मिले तितनी सिद्ध करके साजनी ॥ अथ महाभोग धरवेको प्रकार । सखडी भोग धरवेको प्रकार ।। अब डोल तिवारीमें पिछवाई चन्दोवा बाँधने । हरदीको चारयों आड़ी माँड़नी, पाछे चौकी माण्डनी । तापे पातर - - - Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बिछावनी । चौकी बीच में सखड़ीको थाल धरनों । दोय आड़ी सेव, पाँचों भात, दोनों बड़ीके शाक धरनें । ताके पिछाड़ी दार, तीन कूड़ा, ताके बीच में मूङ्ग धरने । मूङ्गके| पीछे पापड़, शाक, भुजेना, कचरिया धरनी। अब सखड़ीके जेमनी तरफकी चौकीपर दूध गरकी, खाण्ड गरकी मेवा, तर मेवा, भुजे मेवा यह सब धरने। अब बाँई ओर चौकी बिछायके तापे पातर बिछायके अनसखडी सबसाजकें धरनी।ताको प्रकार अगाडी पनीरीधरनी तथा जलेबी,ताके पास शिखरन बडी,पास, चारयों तरहकी खीर, ताके पिछाडी और सब सामग्री धरनी। एक मथनी जलकी धरनी। तामें कटोरी तेरती धरनी । तापे छन्ना ढाकनों और झारी धरनी । सब भूल चूक देखलेनी॥ अथ पञ्चामृतको प्रकार। . दूध सेरऽ १ दही सेरऽ १ घृत सेर = बूरो सेर ॥ मधु सेर = पटा केलाको पत्ता बिछावनो।ताके ऊपर सब साज धरनो । जलको लोटा १ यमुनाजलकी १ सङ्कल्पकी लोटी १ और एक तबकडीमें कुम्कुम् अक्षत और अरगजाकी कटोरी। और शङ्ख एक पडपीपे धरनो । तातो जल सुहातो समोयके धरनो । ऐसे सब तैयारी करके सब जागरनको साज उठावनो। सिंहासनके आगे कोरी हरदीको चौक अष्टदल कमल करि ताके ऊपर परात बिछाय, ता परातमें पीढ़ा विछावनो । ताके ऊपर दरियाईको पीताम्बर विछाय। और ए सब तैयारी करिके निज मन्दिरको टेरा खेचिकें सबनकों चुप राखनें । और घण्टा पास धरके सम्मुख बैठनो । ता समय साढ़े आठ श्लोक जन्मप्रकरणके पाठको तीन बेरि करि घण्टा तीन बेर बजावने ॥ मा Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TER - - - - श्लोक-“अथ सर्वगुणोपेतः कालः परमशोभनः॥ ययेवाजनजन्मक्ष शान्तर्वाग्रहतारकम् ॥३॥ दिशः प्रसेदुर्गगनं निर्मलोडुगणोदयम् ॥ मही मङ्गलभूयिष्ठा पुरयामबजाकरा ॥२॥ नद्यः प्रसन्नसलिला हृदा जलरुहश्रियः॥ द्विजालिकुलसन्नादस्तवका वनराजयः ॥३॥ ववौ वायुः सुखस्पर्शः पुण्यगन्धवहः शुचिः॥ अग्नयश्च द्विजातीनां शान्तास्तत्र समिन्धत ॥ ४॥ मनांस्यासन् प्रसन्नानि साधूनामसुरद्रुहाम् ॥ जायमानेऽजने तस्मिन्नेदुदुन्दुभयो दिवि ॥५॥ जगुः किन्नरगन्धर्वास्तुष्टुवुः सिद्धचारणाः॥ विद्याधर्यश्च ननृतुरप्सरोभिः समं तदा ॥६॥ मुमुचुमुनयो देवाः सुमनांसि मुदान्विताः॥ मन्दमन्दं जलधरा जगर्जुरनुसागरम् ॥ ७॥ निशीथे तम उद्भूते जायमाने जनार्दने ॥ देवक्यां देवरूपिण्यां विष्णुः सर्वगुहाशयः॥ ८ ॥ आविरासीद् यथा प्राच्यां दिशीन्दुरिव पुष्कलः” ॥ याको तीन बेर पाठ करके तीन वेर घण्टा बजावनों । और टेरा खोलिके दर्शन करावने । ता समय झालर, घण्टा, शंख, झाँझ, पखावज, नगारा, बाजे, कीर्तन होय । ता पाछे प्रभूनसों आज्ञा मांगके छोटे बालकृष्णजी अथवा श्रीगिरिराजजी,वा श्रीसालगरामजीकों पीढ़ापें पधरावनें । और दर्शन खोलने । अब तुलसी महामन्त्रसों चरणारविन्दमें समर्पिके पास पञ्चामृतको साज तैयार राखनों। श्रौताचमन करनों। प्राणायाम करि हाथमें जल अक्षत लेके सङ्कल्प करनों। संकल्प। ॐहरिः ॐ श्रीविष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयप्रहरार्दै sanna COMMONDARSa nmanee Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ READERATARRESTEISR O श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे जम्बूद्वीपे भूलोंके भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गते ब्रह्मावतैकदेशे श्रीअमुकदेशे अमुकमण्डले अमुकक्षेत्रे अमुकनामसंवत्सरे श्रीसूर्य दक्षिणायनगते वर्षतौँ मासोत्तमे श्रीभाद्रपदमासे शुभे कृष्णपक्षे अष्टम्याममुकवासरे अमुकनक्षत्रे अमुकयोगे अमुककरणे एवंगुणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ श्रीभगवतः पुरुषोत्तमस्य कृष्णावतारप्रादुर्भावोत्सवं कर्तुं तदङ्गत्वेन पञ्चामृतस्नानमहं करिष्ये । जल अक्षत छोडनो। फिर जा स्वरूप। पञ्चामृतस्नान होय ता स्वरूपर्फे चरणारविन्दमें महामन्त्रसों तुलसीदल हाथमें लेके समपनी । पाछे हाथमें तबकडी लेके वा स्वरूप] तिलक शलाकासों दोय बेर करनो। और चाँदीकी छोटी चिमटीसों अक्षत दोय वेर लगावने । पाछे महामन्त्रसों तुलसी पञ्चामृत करायबेको शंखमें तथा पञ्चामृतके कटोरानमें पधरावनी । पाछे पञ्चामृत करावनो । प्रथम दूधसों स्नान कराइये, पाछे दहीसों, घृतसों, बूरासों, पाछे सहतसों। पाछे फिर दूधसों, पाछे शीतलजलसों नहाय पाछे स्वरूपकों हाथमें पधरायकें अरगजासों स्नान कराय पाछे समोये जलसों स्नान करावे । फिर अङ्गवस्त्र करायकें मुख्य स्परूपके आगे गादी दक्षिण ओर पधरावने । पीताम्बर लाल दरियाईको उढावनो । पाछे श्रीमुख्यस्वरूप श्रीठाकुरजीकू पीताम्बर किनारीको तथा सादा ओढावनो। || माला फूलकी दोऊ ठिकाने घरावनी। फिर तिलक दोऊ ठिकाने करनो। तामें प्रथम तिलक पञ्चामृत भये स्वरूपकों दोय दोय बेर करनो पाछे अक्षत दोय दोय बेर चिमटीसोंलगावने तुलसी दोनों स्वरूपनकों समर्पनी। बीड़ा दोऊ आड़ी mamimarware - - ORSEENE - RECTRINAEROBOTA - Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ C i umnamINORITAMINORMALIDANISATIRED REATERem - DD % 3D । धरने फिर अरगजाकी कटोरीमेंसो सब स्वरूपनकों बसन्त खिलावनी । चोवा गुलाल, अबीर सूक्ष्म खिलावनो । पाछे केशरको कमलपत्र करनों । पाछे झालर घण्टा बंध राखने । पाछे शीतल भोग धरनों । तामें ओला सेरऽ। झारी भरके धरनी फिर आचमन मुखवस्त्र कराय वीड़ा धराय शीतल भोग सरावनों । सो महाभोगके पास धरनों । पाछे सब स्वरूपनको जहां महाभोग सिद्ध करिके साजके धरयो है तहां पधरावने । थाल साँननो तुलसी शङ्खोदक धूप दीप करनो। अरोगवेकी बिनती करनी। किमाड़ फेरके बाहर आवनो । पाछे पलनाकी तैयारी करनी । पलनाके ऊपर घोड़िआमें काठके झूमका बाँधिये । फूलके झूमका बाँधिये। फूलनकी बन्दनवार बाँधिये। कलसा लगे। और पलनामें एक सुपेत चादर बिछावनी । पाछे बाहर तिवारीमें बीचमें हलदीको चौक पूरिये । ताके ऊपर पलना पधरावनो। नीचे बिछावनों नहीं। और नये काष्ठके खिलोना तथा चाँदीके खिलोना पोतके खिलोना यह सब खिलोनां दोऊ आड़ी धरने । और पलना भोग पहले साज राख्यो होय सो रङ्गीन वस्त्रसों ढाँकिके पलनाके दक्षिण ओर छोटी चौकीपर पधरावनों। माखन मिश्री धरनी। या प्रकार सगरी तैयारी करके फिर समय भये महाभोग सरावनो । आचमन मुख वस्त्र करायकें बीड़ी अरोगावनी । एक पान रहे तब गिलोरी कर वामें कपूर थोरो सो धरके अरोगावनी । कपूर बीडीमें नित्य अरोगावनो फिर माला धरायके महाभोगकी आरती मोतीकी थारीकी करनी फिर श्रीठाकुरजीकूँ गादी सुद्धां पलनामें पधरावनें । झारी वामभाग पधरावनी । और एक वीडी पलनामें अरोगावनी। . . % E - - Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MODE छठी माण्डवेको प्रकार तथा पूजनविधि । छठी पहेले दिना स्त्रीजनगावत गावत माण्डें । पश्चिम मुख छठी होय । पूजनवारो पूर्वाभिमुख बैठे या प्रकार लिखनी । श्रीनन्दरायजी श्रीयशोदाजी गोपीग्वालको प्रकार। नन्दरायजीको पाग सुपेद धोतीकोरदार उपरना नेनुपल्लेको, सनकी डाढी बाँधनी। कडा बाजूवन्ध आदि जो गहेना होय सों सब पहेरावने । श्रीयशोदाजी. पीरीया हाथ दशको। लेंगा गागरो मिसरूको । चोली गुलेनार दरियाईकी । और सब बहू बेटीनको गहनो पहरावनो । गोपी ४ ग्वाल ४ ताको सबनको शृङ्गार करनो । अनसखड़ी महाप्रसाद जिमावनो । पाछे बीड़ा देने ॥ प्रथम श्रीयशोदाजीकों पधरायवे जानों। झाँझि, पखावज बाजत कीर्तन होत पास जायके दण्डवत करि पधरायकें पलनाके पास कोरी हलदीको चौक पूरयोहोय तापें गादी बिछायके गादी पधरावनें । भेट घरें कछु खिलोनाँ धरि पीताम्बर उढाय पाछे दोरी हाथमें लेके झुलावनें । पाछे वैसेही श्रीनन्दरायजीकों पधरायकें छठीके पास पधराय छठीकों पूजनकरे । वाई रीतिसों गोपी ग्वाल पधरावने ॥ छठीको पूजनविधि । अब छठीके ऊपर लोहेकी कील गाडिये ताके ऊपर वस्त्र १ पीरे रङ्गको धरनो । बाँसकी खपाच तीन मिलाय तिकोनी करिये । फूल लगाइये ऊपर कीलमें खोसिये । छठीके आगे चनाकी दारकी खिचड़ीकी टेरि करि ताके ऊपर चपनघृतको भरि धरिये । दीवा प्रकट करि धरनों। एक कटोरामें घृत तायके meromopmemenDRIODancerDED Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - onmens ruaranaamsaneHOES A NLNamastaminoRIMIMA me O धरनो। छठीके आगे कोरो चून और कोरी पिसी हलदी मिलायके चौक पूरिये ताके ऊपर दो पीढा बिछाय ताके ऊपर पीरी बिछाय, लुटिया १ जलका भरके धरे। फिर छठीके पास खाण्डो उघारके दक्षिणओर धरे । रई दक्षिण ओर धरे । बन्सी तथा लठिया लाल रङ्गकी दक्षिण ओर धरे ॥ षष्ठीका संकल्प । श्रौताचमन करके प्राणायाम करे। ॐ हरिः ॐ श्रीविष्णुविष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयमहराः श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे जम्बूद्वीपे भूल्लौके भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गते ब्रह्मावर्तेकदेशेऽमुकदेशेऽमुकमण्डलेऽमुकक्षेत्रेऽ मुकनामसंवत्सरे दक्षिणायनगते श्रीसूर्ये वर्षौ मासोत्तमे श्रीभाद्रुपदमासे शुभे कृष्णपक्षे नवम्याममुकवासरेऽमुकनक्षत्रेऽमुकयोगेऽमुककरणे, एवं गुणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथी श्रीनन्दरायकुमारस्याभिनवजातस्य कुमारस्याभ्युदयार्थ षष्ठीदेव्यावाहनप्रतिष्ठा पूजनान्यहं करिष्ये ।जल अक्षत छोडनो । ब्राह्मण मन्त्र पढिके षष्ठीकी प्रतिष्ठा करे । आपुन कुम्कुम् अक्षत षष्ठीपर डारने पाछे वसोर्धारा मन्त्र पढिके पीकी कटोरी हाथमें लेके पष्ठीके बीचोंबीच तीन वा पाँच वा सात धारा करनी। पाछे प्रार्थना कीजे। हाथ जोडके । तहाँ यह मन्त्र पढिये-“गौरीपुत्रो यथा स्कन्दः शिशुः संरक्षितस्त्वया ॥ तथा ममाप्ययं बालो रक्ष्यतां षष्ठिके नमः" ॥१॥ षष्ठीभद्रिकायै सांगायै सपरिवारायै नमः । यह पढिके प्रार्थना करनी । पाछे रईकी पूजा करे। Ramanand Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ANGOR RANDOcd HERASH कुमकुम् अक्षत डारिये । तब यह मन्त्र पढे-“मथान त्वं हि। गोलोके देवदेवेन निर्मितः ॥ पूजितस्य विधानेन सूतिरक्षा कुरुष्व मे" ॥ १ ॥ पाछे खगकी पूजा करे । खगपरकुमकुम् अक्षत डारे यह मन्त्र पढके-"असिर्विशसनः खड्गस्तीक्ष्णधारो दुरासदः॥ पुत्रश्च विजयश्चैव धर्मपाल नमोऽस्तुते" ॥२॥ पाछे मुरलीकी पूजा करनी। मुरलीपर कुमकुम् अक्षत डारने। तब यह मन्त्र पढनों-" सर्वमङ्गलमाङ्गल्य गोविन्दस्य करे स्थित ॥ वंशवर्द्धन मे वंशसदानन्द नमोऽस्तुते"॥ पाछे छठीके आगे अनसखडीके दो नग वा चार नग भोग धरने, पाछे बीडा दोय धरने । पाछे गौदानको सङ्कल्प नन्दरायजी करें। संकल्प। ___ॐ हरिः ॐ श्रीविष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयप्रहराई श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे जम्बूद्वीपे भूौके भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गते ब्रह्मावतैकदेशेऽमुकदेशेऽमुकमण्डले मुकक्षेत्रेऽमुकनाम संवत्सरे दक्षिणायनगते श्रीसूर्ये वर्षौ मासोत्तमे श्रीभाद्रपदमासे शुभे कृष्णपक्षे नवम्याममुकवासरेऽमुकनक्षत्रेऽमुकयोगेऽमुककरणे एवंगुणविशेषणविशिष्टायां श्रीशुभपुण्यतिथौ श्रीमन्नन्दरायकुमारस्याभ्युदयार्थं गोनिष्क्रयभूतां दक्षिणां यथानामगोत्राय ब्राह्मणाय दातुमहमुत्सृजे । यह पढ़ि जल अक्षत छोडके गोदानको द्रव्य ब्राह्मणकों दीजे। पाछे बहेन, भानेज होय सो आपनको तिलक करे, आरती करे । आरतीमें कछु रोक मेलिये । पाछे पलनाके पास पटाके ऊपर पधरावने। दण्डवत करि पलना झुलावे । खडाऊँ पास धरे । झुलावे तब जीविष्णोराज्ञया अवस्वतमन्वन्तरेऽष्टा मालीके भरत RE - ATHASHIKARANHARISHADI - Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह पद गावे-" मङ्गलमगलं ब्रजभुवि मङ्गलम् ” । यह गावे और "प्रेखपर्यशयन"। यह दोनोंपद श्रीगुसांईजीके गायके पलना झुलावे फिरि गोपी, ग्वाल वैसे ही पधरावने । सो गोपीनके हाथमें थारी तामें कुम्कुम्, अक्षत, दूब (दूर्वा ) नारियल, पावली, चारयोनकेमें होय । और ग्वालनके कन्धानपें दहीकी कांवर होय। याही रीतिसों पधरावने । प्रथम गोपी नन्दबावाकों तिलक करे। अक्षत लगावे दोयदोय बेर । और दूब माथेपे पागमें खोसे। कुम् कुम्के थापाछातीपे तथा पीठ ऊपर दीजिये। पीछे तिवारीके द्वार थापा लगावें । पाछे थारी पास धरनी। पाछे ग्वाल श्रीनन्दरायजीकों दहीको तिलक करे। पाछे दही नन्दरायजीके ऊपर डारे। पाछे नन्दमहोत्सव होय चौकमें आयके । दहीमें हरदी चूना डारिकें “आज नंदके आनन्द भयो” ॥ इत्यादि बधाई गावे । दश कीर्तन पलनाके होंय तहाँ ताई पलना झूले । पाछे आरतीथारीकी चाँदीके दीवलाकी होय । राई, लोन करके नोंछावर करनी । पाछे ढाढ़ीके कीर्तन होय । पाछे नन्दरायजीकों पटापें पधरायके दंडवत करनों। श्रीप्रभूपें वस्त्र नोंछावर करनी । पाछे आरसी दिखाय आशीश गाइये । सो यह पद-"रानी तिहारो घर सुवस वसो' । यह अशीशगाकें मन्दिरते निकसके दंडवत करिये । फिर तिलक समयके श्रीफल सिंहासनपर धरे होंय सो पलनामें प्रभु विराजें तब उठाइये । और बीड़ा तिलकके गोपीवल्लभ सरें तब काढनें। पाछे पलनामें मङ्गल भोग धरनों और कहूँ मङ्गल भोग सिंहासनपर भी आवे है । अब झारी, फिरकरती भरके धरनी पाछे नन्दमहोत्सवके भीजे होंय सो देहकृत्य करि स्नान करि मन्दिरमें जायके मङ्गलभोग सरावनो । सो आचमन मुखवस्त्र करायके - Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीड़ा धरने । पलनामें आरती थारीकी करनी। पाछे पलनाम प्रभुको गादीसुद्धा सिंहासनपर पधरावनो । पाछे शृङ्गारतो वोही रहे । पाछे माला और वेणु धराय आरसी दिखायके वेणु बड़ी करनी। गोपीवल्लभको डबरा और राजभोग सङ्गही आवे। और पहली सामग्री उत्सवकीमेंसू राखी होय सो वो छबड़ा धरनों। और राजभोगमें सेव, खीर, छाछिबड़ा, शाक चार और सब नित्यकी रीति धरनी । लीटी तथा रोटी नहीं। अनसखड़ीमें लुचईके ठिकाने दोय सामग्री-एक मनोहरके लडुवा तथा सीरा । और सखड़ीमें पाञ्चों भात । मीठो शाक । और मीठी कढ़ी और सादा कड़ीके ठिकाने तीन कुड़ा। इतनो राजभोगमें बड़ती और सब नित्यकी रीतिप्रमाणहो, और अष्टमीकी रात्रिकों और नवमीके दुपेरको शय्या भोग दुहेरो धरनों। समय भये भोग सराय आचमन मुखवस्त्र कराय। बीडा धरकें राजभोग आरती थारीकी चाँदीके दीवलाकी करनी । पाछे पूर्वोक्त रीतिसों अनोसर करनो। पाछे सांझकों उत्थापन भोग सन्ध्याभोग भेलो आवे । शयन आरती समय बघनखा रहे । और सब बडो होय । पोढत समय बघनखा बडो होय । और पलना भादो सुदि ७ मी ताई तिवारीमें झूले दर्शन होय । अष्टमीते भीतर झूले नित्यकी रीतिसों । और वैष्णवनके यहां नंदोत्सव गोपी खाल ऊपर लिखे प्रमाण नहीं बने । और पलना भी एक दिना ही झूले। इति श्रीजन्माष्टमीकी विधि समाप्त ॥ भादो वदि १० शृङ्गार पहले दिनको । सामग्री बूंदीके लड्डवा । विनको बेसन सेर ॥ घृत सेर । बूरो सेर 5॥ इलायची मासा २॥ Bicom maa M END Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ manee PREPARENDIANRAILERTERE MARA भादो वदि ११ वस्त्र केशरी। उत्सवको बाललीलाको शृङ्गार । लोलक बन्दी धरें। आभरण मानिकके । पाग गोल । चन्द्रिका सादा । दार तुअरकी । और नेग सब नित्यको। उत्सवको साज सब बड़ो होय । सुपेदी चढावनी। पलनामें सुपेदी चढावनी॥ भादो वदि १२ वस्त्र क मल, मूंथन पटका पाग छज्जेदार ॥ भादो वदि १३ वस्त्र हरे, पिछोड़ा टोपी। भादो वदि १४ वस्त्र पारे, पिछोड़ा कुल्हे । ठाड़े वस्त्र लाल । अथवा यथारुचि शृंगार करनो ॥ भादो वदि ३० वस्त्र श्याम, पिछोड़ा मुकुटकी टोपी, ठाडे वस्त्र सुपेद । सामग्री पूवाकी । चून सेर ३१ घी सेर ३१ चिरोंजी सेर ऽ-मिरच कारी 5 भादो सुदि १ वस्त्र गुलेनार, सूथन, पटुका, पाग छज्जेदार, चन्द्रका सादा, ठाडे वस्त्र हरे। __ भादो सुदि २ वस्त्र लाल पीरे लहरियाके । पिछौडा, पाग गोल, चरणचौकी वस्त्र हरयो । आभूषण पन्नाके, कलङ्गी, लूँमकी कर्णफूल २, सामग्री बेसनकी मनोहर, बेसन सेर ॥ घी सेरऽ॥ दूध सेरऽ३ खाण्ड सेर 5॥ इलायची मासा ३, . भादो सुदि ३ उत्सवकी बधाई बैठे आजते उत्सव तांई। हरे श्याम वस्त्र नहीं धरे। वस्त्र गुलाबी । धोती उपरना, पाग गोल, ठाडे वस्त्र हरे, आभरन पन्नाके॥ __ भादो सुदि ४ दंडाचोथि, वस्त्र चौफूलीचूंदड़ीके । पिछोड़ा, पाग छज्जेदार, चन्द्रका सादा, आभरण हीराके, ठाड़े वस्त्र श्याम, लोलक बन्दी धरे । राजभोगमें सामग्री मुठियाको चूरमाँ।। चून सेर ॥ घी सेर ॥ बूरा सेर ॥ दण्डाकी दोय जोड़ी राज mom a mon - - RamnermoORName Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । भोग समय खण्डकी सिदीपे धरने । शयनमें गुड़धानी धरनी।। | गेहूँ सेर ऽ२ घी सेरऽ। गुड़ सेर ७२ तामें कछू चार नग भोग धरनें । पाछे शयनके दर्शन खुलें तब रेवड़ी, ऊपर फेंकवेके भावसों धरनों । भादो सुदि ५ श्रीचन्द्रावलीजीको उत्सव । अभ्यङ्ग होय, साज भारी, बन्धनवार बाँधनी । वस्त्र किनारीदार चूनरीके। पिछोड़ा, कुल्हे, जोड़ चमकनों, चरणचौकी || वस्त्र हरयो । आभरण हीराके । राजभोगमें सामग्री दहीको मनोहर ।ताको चोरीठा सेर = मैदाऽ घी सेर 5॥खांड सेरऽ६ दही सेरऽ॥इलायची तोला आरती थारीकी करनी॥ भादो सुदि ६कूँ वस्त्र पञ्चरङ्गी लहेरियाके । पिछोड़ा, । पाग गोल, कलंगी, ठाड़े वस्त्र हरयो॥ भादो सुदि ७ पिछोडा, पाग गोलचन्द्रका सादा, ठाड़े वस्त्र । पीरे। आभरण हीराके । दार तुअरकी। सामग्री छूटी सेवको मैदा सेर ॥ घी सेर ॥ खांड सेर 5१ पागवेकी ॥ भादोसुदि ८ श्रीराधाष्टमीको उत्सव । ___साज सब जन्माष्टमीको । आगले दिन शयन पाछे बाँध राखनो । सब दिनको नेग बूंदीके लडुवाको । अभ्यंग होय । मंगला आरती पाछे, श्रीस्वामिनीजीकों स्नान करायवेकू दूध सेर ऽ२ तामें बूरा सेर । पाछे पीरी दरियाईकी साडी, चोली पहरावनी । और नूपुर, चूडी, तिनमनीयां, नथ इतने आभरण राखने। थालमें, छोटो पटा धरके तापे लाल दरियाई बिछायके पधरावने स्वामिनीजीकों । झालर, घण्टा, शङ्ख बाजे । तिलक करि अक्षत लगाय दोय दोय बेर करने । पाछे शंखसों दूधसों स्नान करावनों । पाछे जलसों स्नान करायके अंगवस्त्र do - । Date । D ESERMODEREDEEOBNCIEND Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । SHREESE करायके पाछे अभ्यंग करावनों । पाछे शृंगार सब जन्माष्टमी प्रमाण करनो। और सब स्वरूपनको शृंगार जन्माष्टमी प्रमाण करनो। और गोपीवल्लभमें सेवको थार आवै । ग्वाल नहीं होय डबरा आवे । ता पाछे कोरी हलदीको चौक पूरिके राजभोगमें सखडी, अनसखडी तथा दूध घरकी सामग्री फलफलाहारी, सब धरनें । अब सामग्री लिखे हैं। अनसखड़ी। जलेबीकी मैदा सेर ॥ घी सेरऽ॥ खाँड सेरऽ१॥, छुटी बूँदीको बेसन सेर ऽ१ घृत सेर 5१ खाँड सेर 5१,सकरपाराको मैदा सेर ७१ घी सेर 5१ खाण्ड सेर 5१, फेनी केशरीको मैदा सेर ७१ घी सेरऽ१ खाण्ड सेर ऽ३ और सीरा, पञ्जीरी, सिखरन, वडी, मेदाकी पूडी, झीने झझराकी सेव, चनाके फडफडिया तथा दारके फडफडिया, बडाकी छाछ ये सब जन्माष्टमीसों आधो । खीर, सेव तथा शंजाबकी रायता, बूंदी कोलाके । शाक ८ भुजेना ८ सधाना आठ, छूआरा, पीपर, वगेरेके । सखडी पाटियाकी सेव। दार छडीअल, चोखा, मूंग, तीन कूढा, बडीके शाक २ पतले । पांचो भात । पापड, तिलडी, ढेवरी, मिरच बडी, भुजेना आठ, कचरिया आठ ॥ दूधघरको प्रकार। बरफी, केशरी, पेडा सुपेत, मेवाटी केशरी, अधोटा खोवाकी गोली, छूटेखोवा, मलाई, दूध, पूरी, दही, खट्टी-मीठो । बन्ध्यों सिखरन, सब तरहकी मिठाई, साबोनी, गजक, तिनगुनी, गुलाब कतली, पतासे, चिरोंजी, पिस्ता, खोपरा, पेठाके बीज, कोलाके बीज, खरबूजाके बीज वगेरे, विलसारू, पेठाको केरीको मुरब्बा वगेरे । तथा फल फलोरी गीला मेवा सब य Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MORE Homen MEDIAS तरहको भण्डारके मेवा सब तरहके । राजभोग सब साजकें बीडा १६ बीडी १ आरती चूनकी। श्रीफल, हरदी, कुमकुम, | भेट, नोछावर ये सब तैयारी करके राजभोग आवत समय भीतर तिलक करनो। शंखनाद, जालर, घण्टा, झाँझ, पखावज, बाजे । माला पहरायकें माला खिलावनी। पाछे तिलक सब स्वरूपनको करनों। सब धरनों। आरती करके राई नोन नोछावर करकै कोर साँननौं । बिनती करनी । तुलसी शंखोदक करनों । समय भये भोग सरायके आचमन, मुखवस्त्र कराय पूर्वोक्तरीतिसों भोग सरायके आरती थारीकी करनी, नित्यका सातप्रमाण । अनोसर करनो, सन्ध्याकूँ उत्थापन भोग सन्ध्या भोग भेलो आवे । संध्यासमें ढाड़ी नाचे । और जा घरमें श्रीस्वामिनीजी न विराजत होंय तो तिलक भीतर श्रीठाकुरजी. होय । और तिलक समयकी माला उत्थापनके समय बड़ी होय तब उत्थापन होय । पीछे उत्थापनके दर्शन खुलें। भादों सदि ९ शुगर पहले दिनको। दार छडीअल, कढी डुबकीकी, सामग्री बूँदीको मोनथार, बेसन सेरऽ॥ घी सेर ॥ खाण्ड सेर 5॥ इलायची मासा ३ ॥ भादों सुदि १०बाललीलाको श्रृंगार । बस्त्र गुलनारी । मूंथन, पटका, पाग गोल, कतरा, आभरण हीराके । पलना काचको । सामग्री मैदा बेसनको मोनथार । ताको मैदा बेसन सेर 5१ वी सेर 5१ खाण्ड सेर ३३ केशर मासा २ मेवा कन्द सुगन्धी । और गुझिया चोलाके तथा फडफडिआ। और प्रकार सब जन्माष्टमीके पलनाको प्रकार लिख्यो है ता प्रमाण ॥ - - - - - - READImmmmm m - mm Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ UPIERRORE WANSINE ENEMIEREST - PUNIORRENOUNTAI - N E भादो सुदि ११ दानएकादशी। साज पिछवाई दानके चित्रकी । वस्त्र कसूंमल केशरी नीचेकी काछनी कोयली, मुकुट जड़ाऊ, आभरण मानिकके। दानकी सामग्री गोपीवल्लभमें आवे । सामग्री दूध अधोटा सेर 5२ बूरा सेर ऽ॥ इलायची मासा ३ पेड़ा सेर ॥ खट्टो दही सेर ७॥ तामें जीरा सुन्यो तथा लूँण मिलावनो। मीठो दही सेरऽ। बूरा ऽ। माखन, मिश्री पिसी॥ राजभोगकी सामग्री । मनोहर खोवाको, ताको खोवा | सेरऽ। मैदा चोरीठा सेर ऽ= घी सेर ऽ। खाँड सेर ऽ३ फरार घरे । चोटी नहीं घरे। पीताम्बर दरियाईको । सन्ध्या आरती समय सोनेको वेत्र श्रीहस्तमें ऊपर ठाडो ऊँचो धरावनों ॥ __ भादो सुदि१२ वामनद्वादशीको उत्सव । अभ्यङ्ग होय । वस्त्र केशरी। धोती, उपरना, कुल्हे जोड़ चन्द्रका ५ को । चरनचौकी वस्त्र सुपेत डोरियाको । आभरण हीराके । राजभोगकी सामग्री मेवाकी गुझियाको मैदा सेर ॥ घी सेर ॥ मेवा सेर 5= भिश्री = इलायची मासा ३ पागवेकी खाण्ड सेर ॥ राजभोग सरे पाछे जन्म होय। पञ्चामृत्रकी तैयारी करनी । दूध सेरऽ॥ दही सेर ऽ! घी सेर 5- बूरा सेरऽ॥ मधु सेर 5= पटापे केलाको पत्ता बिछावनो । ताके ऊपर सब साज धरनो । जलको लोटा १ यमुनाजलकी लोटी १ तथा सङ्कल्पकी लोटी १ और एक तबकड़ीमें कुमकुम् अक्षत और अरगजाकी कटोरी। और एक पड़पी पञ्चामृतकरायबेको शङ्खधरनों। एक लोटा तातो जल सुहातो समोयके धरनो। ऐसे सब तैयारी करके सिंहासनके आगे कोरी हलदीको चौक RSTARIES - m - etamaan --- - Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ on ement अष्टदल कमल करि ताके ऊपर परात धरकें तामें पीढ़ा बिछाय तापे दुहेरा पीताम्बर दरियाई बिछाय । पाछे घण्टा, झालर, ॥ शङ्ख, झाँझ, पखावज बजे कीर्तन होय। दर्शनको टेरा खोलनो। पाछे प्रभुसों आज्ञा माङ्गके छोटे बालकृष्णजी. अथवा शालग्रामजी अथवा श्रीगिरिराजजीकों पीठाऊपर पधरावने । चरणारविन्दमें तुलसी महामन्त्रसों समर्पिके पञ्चामृतको साज सब तैयार राखनो पाछे श्रोताचमन कार प्राणायाम करनो। हाथमें जल अक्षत लेक सङ्कल्प करनों-“ॐहरिः ॐ श्रीविष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्याय श्रीब्रह्मणो द्वितीयप्रहराई श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे जम्बूद्वीपे भूलोंके भरतखण्डे आर्यावर्त्तान्तर्गते ब्रह्मावत्तैकदेशेऽमुकदेशे ऽमुकमण्डलेऽमुकक्षेत्रेऽमुकनामसंवत्सरे दक्षिणायनगते श्रीसूर्ये वर्षौ मासोत्तमे श्रीभाद्रपदमासे शुभे शुक्लपक्षेद्वादश्याममुकवासरेऽमुकनक्षत्रेऽमुकयोगेऽमुककरणे एवंगुणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ श्रीभगवतः पुरुषोत्तमस्य वामनावतारप्रादुर्भावोत्सवं कर्तु तदङ्गत्वेन पञ्चामृतस्नानमहं करिष्ये । जल अक्षत छोड़नों । ता पाछे तिलक कीजे । दोयदोय बेर अक्षत लगाइये । बीड़ा दोय धरनें । तुलसीदल महामन्त्रसों पञ्चामृतके कटोरानमें पधरावनों । पञ्चाक्षरमन्त्र उच्चारण करनों, ता पाछे तुलसीदल शङ्खमें पधरावनो । ता पाछे पञ्चामृतस्नान कराइये। पहले दूधसों, दही, घृत, बूरो, सहतसों । पाछे एक शङ्ख प्रभुके ऊपर फेरिकें दूधसों स्नान करायके पाछे शीतल जलसों। पाछे हाथमे लेके चन्दनसों स्नान कराय फिर जलसों कराय अङ्गवस्त्र करावे । पाछे विन] श्रीठाकुरजीके पास गादी MEDIAS mmar Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दक्षिण आड़ीके कोने पधरायके श्रीवामनजीकों जन्माष्टमीके दिनको पीताम्बर उठाइये । फूलमाला पहराइये। तिलक अक्षत दोयदोय बेर करिये । बीड़ा धारये । तिलक एक श्रीवामनजीकूही होय और सब श्रीठाकुरजी. नहीं होय अब घंटा झालर बन्द राखनें टेरा करावनों । पाछे चरणारविन्दमें तुलसी समर्पनी । पाछे शीतल भोग धरनों ता पाछे धूप, दीप, करनों । भोग धरनों । सामग्री-बूंदी, शकरपारा, अधोटा दूध, जीराको दही, मीठा दही, लूण, मिरचकी कटोरी, फलाहारको फल फलोरी जो होय सो धरनों । सखड़ीमें दही भात, सधानों धरनों । तुलसी शङ्खोदक धूप दीप करनो। समयभये भोग सराय, पूर्वोक्त रीतिसों आचमन मुखवस्त्र कराय बीड़ा धरके पूर्वोक्तरीतिसों राजभोगवत् खण्ड पाटचौकी माण्डके आरती थारीकी करनी।राई नोन उतारनो । नोछावर करनी। पाछे अनोसर करनों । अब जो एकादशी द्वादशीको उत्सव भेलो होय तो वस्त्र केशरी, नीचेकी काछनी कसुंभी, ऊपरको। पीताम्बर केशरी दरियाईको । और सामग्री राजभोगकी राज भोगमें अरोगे । और सब प्रकार दूसरे दिन अरोगे । दूसरे दिन धोती उपरना कुल्हेको शृङ्गार होय । साँझकों मुकुट बड़ो होय |ता पाछे कुल्हे धरें। जो दानको उत्सव जुदो होय तो पाग रहे। भादो सुदिश्वस्त्र लहरियाके। मुकुट काच्छनीको शृङ्गार। भादो सुदि १४ शृङ्गार पिछोरा, टिपारो, वस्त्र, पीरे लहरि-॥ याके ठाडे वस्त्र हरे॥ भादो सुदि १५ वस्त्र केशरी, शृङ्गार मुकुट, काच्छनी, ॥ नीचेकी कांछनी, कसूमल । राजभोगमें सामग्री पयोजमण्डा, ताको मैदा सेर 5१ घी सेर 5१ खोवा सेर 59॥ बूरा सेर 51|| SERIES - - OCOGNANCEDARDIO - - Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ REPAR - NEPार नबन Rece इलायची मासा ४ पाकवेकी खाण्ड सेर ७१ बरासरत्ती ॥ आश्विन कृष्ण १ साँझीको प्रकार । वस्त्र लहरियाके पिछोरा, मलकाछ टिपारो, कतरा चन्द्रका, चमकके । चरण चौकीको वस्त्र हरयो । सामग्री सीराकी शयन समय पटापें । पत्ताकी साँझी माण्डके आवे । गेंद २ और छडी २ फूलकी नित्य आवे सांझी मण्डे तबताई । और एक नग प्रसादी साँझीकूँ भोग आवे, नित्य सों साँझी माण्डवेवारकूँ मिले ॥ __ आश्विन वदि २ वस्त्र लहरियाके, पाग छज्जेदार, पिछोडा कतरा॥ आश्विन वदि ३ वस्त्र कसूंमल, पिछोड़ा, पाग, गोल, चन्द्रका, चमकनी, ठाडे वस्त्र हरे ॥ आश्विन वदि ४ दोहेरो मलकाच्छ टिपारो । नीचेको पीरो, कमरको पटुका, तोरा लाल ऊपरको हरयो। ठाडे वस्त्र सुपेद॥ __ आश्विन वदि ५ वस्त्र चूनरीके, पीताम्बर चूनरीको, मुकुट काछनी, ठाडे वस्त्र श्वेत । आभरण हीराके । सामग्री उपरेंटाकी, मैदा घी बूरो बराबर ॥ __आश्विन वदि ६ वस्त्र केशरी, शृङ्गार वामनजीके उत्सवको धोती, उपरना, कुल्हे, जोड़ चन्द्रका ५ को। चरणचौकी वस्त्र सुपेद डोरियाको, आभरण हीराके ॥ सामग्री। मोहन थार । बेसन सेर १ घी सेर १ खाण्ड सेर ३ केसर मासा ३ दानको दही सामग्री नित्य आवे॥ __ आश्विन वदि ७ वस्त्र हरे पिछोड़ा, पाग गोल, कतरा, ठाडे वस्त्र लाल ।। 3 - - - ne - - DELICIOmeramanand - - s ame Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - catiMORMSAKARMA - i mmun o आश्विन वदि ८ बडे गोपीनाथजीके लालजी श्रीपुरुषोत्तमजीको उत्सव। वस्त्र हरे लाल लहरियाके । शृङ्गार मुकुट काच्छनीको। आभरण पन्नाके । सामग्री दहीको सेवके लडुवा । विनको मैदा सेर 5= दही बँध्यो सेरऽ= घृत सेर 5॥ खाण्ड सेर 5॥ __ आश्विनवदि ९ वस्त्र चूनडीके, पिछोडा, पाग, गोल, चन्द्रका सादा । आभरण पन्नाके, ठाडे वस्त्र हरे॥ __ आश्विन वदि १० वस्त्र श्याम, पिछोडा, फेंटा कतरा, चन्द्रका । ठाडे वस्त्र पीरे । कुण्डल ॥ आश्विन वदि ११ वस्त्र श्याम, शृङ्गार मुकुट काच्छनीको। आभरण हीराके । सामग्री चन्द्रकलाकी। दानको दही धरनो ॥ आश्विन वदि १२ श्रीमहाप्रभुजीके बड़े पुत्र श्रीगोपीनाथजीको उत्सव ।। सो तादिन वस्त्र कसूमल धोती, उपरना, कुल्हे । जोड चमकनो । ठाडे वस्त्र पीरे । आभरण पिरोजाके । सामग्री खरमण्डाकी मैदा सेर ॥ घी सेरऽ॥ बूरो सेर 5१ तामें लौंग पिसी पैसा १ भर ॥ आश्विन वदि १३श्रीगुसाईजीके तृतीय पुत्र श्रीबालकृष्णजीको उत्सव । वस्त्र अमरसी, पिछोडा कुल्हे, जोड चमकनो । ठाडे वस्त्र | हरे । आभरण हीराके । सामग्री मूंगकी बूंदीके लडुवा, मूंगकी छडीदारको चून सेर ॥ घी सेर ॥ खाण्ड सेर 59॥ इलायची मासा १॥ - - C Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - RRORE आश्विन वदि १४ वस्त्र लहरियाके । पिछोडा, पाग गोल, चन्द्रका सादा, आभरण मूंगाको ॥ ____आश्विन वदि ३० वस्त्र श्याम लहरियाके पिछोडा, पाग गोल, चमककी मोरशिखा, ठाडे वस्त्र सुपेद । आभरण हीराके। सामग्री पूवाकी । चून, घी, गुड बराबर । चिरोंजी 5- घी। कटोरीकोऽ-बूरोऽ= अब कोटकी आरती शयनमें होय।। साँझीके पटापे पत्रीकी द्वारिका मांडनी ॥ आश्विन सुदित नवविलासअभ्यंग होय।. पलङ्गपोस । वस्त्र लाल सुनहरी छापाके, सूथन, बागा खुले बन्ध । कुल्हे, कम्मल, सुनहरी, सुपेत, चित्रकी। जोड़ चन्द्रका ५ को। आभरण हीराके । चोटी पहेरे । मूथन तथा लहँगा, चोली हरे छापाकी । पिछवाई लाल छापाकी । सामग्री गिजड़ीको मनोहरकी, गिजड़ीको दूध सेरऽ२ मैदा चोरीठा सेर ॥ घी सेर ऽ॥ खाण्ड सेर ऽ२ सखडीमें खण्डराको बेसन सेर 5॥ घी सेरऽ। मीठी कढ़ीको बूरा सेर ॥ तामें खण्डरा पधरावने । रायता खण्डराको । छाछिबड़ा । मीठो शाक, खण्डराको सब सखडीमें करनों ॥ आश्विन सुदि २ दूसरो विलास । वत्र पीरे छापाके। दुमालो, कसूमल वागो खुलेबन्ध। धोती, कसूमल, ठाड़े वस्त्र हरे। कतराको चन्द्रका चमकनो। आभरण पन्नाके । सामग्री दहीबराको मैदा सेर ॥ दही सेरऽ॥ घी सेर ॥ बूरो सेर ॥ इलायची मासा ॥ डेरवडीको प्रकार सखड़ीमें। ताकी उड़दकी पिट्टी सेरऽ घी सेरऽ छाछकी हाँडीमें रायता, | कढी,तीन कूड़ामें सबनमें खण्डरा पधरावने । दारि तुअरकी॥ । Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ aamana आश्विन सुदि ३ तीसरो विलास । वस्त्र हरेछापाके, मलकाच्छ, टिपारो ठाड़ वस्त्र लाल, आभरण मानिकके । कतरा चन्द्रका, चमकनों । सामग्री पपचीकी । ताको चोरीठा, घी, खाण्ड बराबर, पकोडीको | बेसन सेर ॥ घी सेर ऽ॥ सब प्रकार याहीको करनों ॥ आश्विन सुदि४ चौथो विलास । टिकेत श्रीदाऊजी महाराजको जन्मोत्सव । वस्त्र अमरसी छापाके, पाग गोल, कलंगी लूमकी, ठाड़े वस्त्र सोसनी, आभरण पिरोजाके ! सामग्री बूंदीके लडुवाको बेसन, वी, बराबर, खाँड़ तिगुनी, इलायची मासा ४ और प्रकार सब बूंदीको करनों । बेसन सेर ३१ वी सेर 590 आश्विन सुदि ५ पाँचमो विलास । वस्त्र श्याम छापाके ! धोती, पाग, केशरी । ठाड़े वस्त्र लाल । | आभरन मूङ्गाके । चन्द्रका चमकनी। सामग्री दूध पूवाकी। | मैदा सेर ॥ दूध सेर 52॥ घी सेर ॥ बूरा सेर ॥ और प्रकार सब अठकूड़ाको बेसन सेर ॥ घी सेर 5 तेल सेर 5॥ आश्विन सुदि ६ छठो विलास। वस्त्र गुलाबी छापाके, झूटको दुमालो, सेहेरो, ठाड़े वस्त्र || श्याम, आभरण नवरत्नके, अन्तरवास कराँभी, सामग्री मैदाको || मोहनथार, मैदा सेर ॥ पी सेर ॥ बूरो सेर 52॥ और प्रकार बेसनके झीने झझराकी सेवको । बेसन सेर ॥ घी सेर 5= दार तुअरकी । अथ सेहरो धरायवेकी श्रुतिः । हरिः ॐ शुभकेसिर आरोहसोंभयंतिमुखमममुखः । हिममसोभयभूपाः ॥ सञ्चभगंकुरुयामाहरजमदग्निश्रद्धायैकामायान्वहसत्वामपिनह्यहंभगेन सह वर्चसा ॥१॥ imanianR Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ReemaDPRONERemarwar e e m awwwsereyanaemone । PRIOR । १ %3 आश्विन सुदि ७ सातमो विलास। वस्त्र सोसनीछापाके । फेंटा, कतरा, चन्द्रका, चमकनी ठाड़े वस्त्र, कसूमल, आभरण मोतीके। सामग्री सिखोरी ताको-मैदा सेर ॥ घी सेर ॥ खाण्ड सेर ७॥ इलायची मासा ३ और सब प्रकार पकोरीको, ताको बेसन सेर ॥ घी सेर 5=॥ आश्विन सुदि८आठमो विलास। वस्त्र पिरोजी छापाके । शृङ्गार मुकुट काछनीको मुकुट सोनेको । सामग्री घेवरकी और सब प्रकार मङ्गोरीको, मूङ्गकी। दार सेर 5१ तेल सेर ॥॥ आश्विन सुदि९नौमो विलास। वस्त्र सुपेद छापाके, पाग गोल, चन्द्रका चमकनी, ठाड़े वस्त्र कम्मल, आभरण श्याम । सामग्री इमरतीकी-दार उड़दकी सेर ॥ घी सेर ॥ खाण्ड सेर 5१ इलायची मासा २,बड़े झझराकी सेवको बेसन सेर ॥ घी सेर ॥ ॥ __ आश्विन सुदि१०दशहराको उत्सव । · पिछवाई सुपेत जरीकी सिंहासन काचको । सुजनी सरोंकी पलङ्गपोस । अभ्यङ्ग होय । वस्त्र श्वेत जरीके । बागो घेरदार, चीरा छज्जेदार, ठाड़े वस्त्र हरी दरियाईके । चन्द्रका उत्सवकी सादा। आभरण मानिकके । कर्णफूल ४ श्रृंगार भारी । सामग्री। कूरकी गुझियाको चून सेर ॥ पी सेर ॥ मैदा सेर ॥ मिला-1॥ यवेकी खाण्ड सेर ॥ खोपराके टूकऽ-कारी मिरच ऽ०॥ आधी छटाँक । और सब प्रकार उत्सवको करनों । अन्नकूटकी बधाई मङ्गलासों बैठे। भोगके समय जवारा धरावने। जवाराकी कलंगी - । mianRaiptimdance - Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MORARIATION aaunmuseus । % 3Dome ladieteran mamm पहले बाँध राखनी । चौकमें दशहरा माण्डनो । ताके ऊपर वस्त्र केशरी उढायबेकों राखनों । भोग घरबेकों एक मठडी धरनी। अब भोगके दर्शन खोलिक थोरीसी बिरियां रहिके सब साज उठावनों । खण्डको साज सब रहिवेदेनो । पाछे झारी भरि पधरायकें। पाछे जबाराके ऊपर शंखोदक करनों । चूनकी आरती जोडके राखनी । तिलकको कंकू अक्षत एक तबकडीमें तैयार करके राखनों । अब झालर, घंटा, शंखनाद करायकें तिलक दोय बेर करनो, अक्षत दोय बेर लगावनें । पाछे चन्द्रका उठावनी । ता ठिकाने जवाराकी कलंगी धरावनी। श्रीस्वामिनीजीकू नहीं धरावनी और सब स्वरूपन याही प्रमाण तिलक अक्षत लगायके जवाराकी कलंगी धरावनी। फिर चूनकी आरती करनी। पाछे टेरा करनो घंटा, झालर शंख बन्द राखनो। पाछे तुलसी चरणारविन्दमें समर्पनी। पाछे उत्सव भोग तथा सन्ध्याभोग भेलो धरनो। सामग्री । माट १० बडे तथा १० माट छोटे ताको मैदा सेरऽ२॥ तथा सेरऽ१॥ कुल मैदासेरऽ४ दोनॉनको। घी सेरऽ४ खाण्ड सेरऽ६ तिल सेरऽ। गुलाबजल । फडफड़िया । चनाकी दार ! उत्सवके सघाँनाके बटेरा धरके तुलसी, शंखोदक, धूप, दीप करिके पाछे दशहराके ऊपर कुमकुम अक्षत, छिड़कने। ऊपर जवाराडारने । एक मठडी भोग धरनी। समय भये श्रीठाकुरजीकों भोग सरावनो। पाछे सन्ध्या आरती करनी । और गर्मी न होय तो पंखा पीठकके तथा सिंहासनके सब उठाय लेने । गरमी होय तो दिवारी तांई रहे आजसू शयनमें बागा रहे । और जवाराकी कलंगी शयनमें दूसरी धरावनी । आभरन श्रीकण्ठमें राखनें। बाजू, पोहोंची १ आगे चित्रमें देखो। - मामाकालानमक - - , - - - । - HERE Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ D - रहे। लूम तुर्रा शयन समय नित्य धरावने । आजसों भीतर पोहोढे । और आकाशी दीवा आजते कार्तिक सुदि १५ ताई नित्य जोड़नो । चीरा रात्रिको मंगलाताई रहे । दशहराके दिनको राखनो। - आश्विन सुदि ११ वस्त्र सुनहरी जरीके । शृंगार मुकुट काछनीको पीताम्बर लाल दरियाईको । ठाढे वस्त्र सुपेद । आभरण पन्नाके । सामग्री दहीके सेवके लडुवा ताको मैदा, घी, बराबर । खाण्ड दूनी । सुगन्धी इलायची पधरावनी। आश्विन सुदि १२ वस्त्र श्याम जरीके । चीरा, छज्जेदार, चन्द्रका चमकनी । ठाड़े वस्त्र पीरे कतरा। आश्विन सुदि १३ वस्त्र पीरी जरीके । शृंगार मुकुट काछनीको । मुकुट डाँकको । पीताम्बर दरियाईको । आभरण पिरोजाके । सामग्री कपूरनाडीकी मैदा सेरऽ। घी सेर । मिश्री सेर ॥ लौंग छटाँक 5 आश्विन सुदि १४ आभरण मूंगाके। आश्विन सुदि १५ सरद पून्योको उत्सव । पिछवाई रासके चित्रकी । अभ्यंग होय । शृंगार मुकुटको । मुकुट हीराको । बागा सुपेद जरीको। पीताम्बर लाल दरियाईको। ठाडे वस्त्र सुपेद । आभरण हीराके । श्रृंगार सब सुपेद करनो । पलंगपोस, सुजनी सुपेद कमलकी । राजभोगमें सामग्री सकरपारा पाटियाकी सखडीमें साँझकू श्रृंगार बड़ो नहीं करनो। कमल पत्र करनों । अब सरदमें पधरायबेको प्रकार लिखे हैं । जा ठिकाने चाँदनीमें पधारे ता ठिकाने सुपेदी करावनी । तहां चन्दोआ पिछवाई सुपेद बाँधनी। नीचे बिछायत सुपेद करनी । तापर सिंहासन बिछावनों। सब साज राजभोग आरतीके समय मण्डे - Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ vasanasoNTAREKARENDRRIDHANANEnca a m तैसे सब साज माण्डनों। सब खिलौंना माण्डने। झारीके झोला सब सुपेत । माला चमेलीकी सुपेत शृंगारसुद्धा शयनभोग धरनों । समय भये पूर्वोत्तरीतिसों भोग सराय, बीड़ी अरोगाय नित्यकी रीतिसों। पाछे सब स्वरूपनकों चाँदनीमें पधरावने । माला धरावनी । पाछे सब सामग्रीमें एक एक नग थालमें साजके भोग धरनो।धूप, दीप, तुलसी, शंखोदक सब करनो। समय भये आचमन मुखवस्त्र कराय बीड़ा धरके भोग सरावनों। पाछे दर्शन खोलने बीड़ी अरोगावनी । मुख चाँदनी आवे ता पीछे शयन आरती थारीकी करनी । राई, लोन नोछावर करि टेरा खेचिके सब शृंगार बड़ो करनो । पिछोरा, शिरपेच धरावनो।श्रीस्वामिनीजीकों सुपेत किनारीकी सुपेत साड़ी, चोली, लहँगा, पहरायके पोढ़ावने। शय्याके पास नित्यको साज धरनों। बीडा दो तबकड़ीमें धरके साजने। दोऊ आडी नीचे गादी धरनी । झारीतबकड़ीमें धरनी। दोय झारी पाटके दोय कोनापें शय्याके पास धरनी । गुलाबदानी गुलाबजलसों भरिके धरनी। तेजानाकी कटोरी धरनी। आरसी धरनी । वस्त्र, आभरणकी छाव साजके शय्याके पास नीचे धरनी । अतरकी शीशी, अरगजाकी बटी तबकड़ीमें धरनी। तष्टी धरनी । तष्टीके पास । चौकीमें बंटा धरनों। और शय्याके पास यह सब साज धरनो। चारि दिशामें चारि गादी तकिया बिछावने। बीचमें चौपड़ बिछावनी। और अनोसरको भोग सब चौकी ऊपर साजके धरनो। अथ सामग्री। घेबरको-मैदा सेरऽ१ घी सेरऽ१॥ खाण्ड सेरऽ४ बरास रत्ती २। चोरीठाको भगद, ताको चोरीठा सेरऽ१ घी सेरऽ१ बूरा सेर 51 इलायची मासा ॥ और कचौरी, गुझिया, a DIETAR IABLEM Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A RREARREmer nsar A प्रकार साजकनी में भोग परमया के पास चौका बनिआवे सोग का mwwma a चौलाकी करनी । मैदाकी पूडी।छाछबडा, चणा, फडफडिया, भुजेना २ लपेटमां मूंगकी छौंकी दार । थपडी। शाक अरवीको, खीर । बासोंदी, दूध, बूरा, लूण, मिरचकी कटोरी उत्सवके सघाने । मेवा सूको तथा गीलो जो बनिआवे सो। यह सब भोग अनोसरमें शय्याके पास चौकीके ऊपर धरनो थाहीमें चाँदनीमें भोग धरनो। बीडा ८ बीड़ी अधिक या प्रकार साजके पाछे अनोसर करनो॥ __ कार्तिक वदि १ शृंगार पहले दिनको करनो॥ कार्तिक वदि २ वस्त्र लाल जरीके, दुमालो, बीचको पीरो। ठाड़े वस्त्र हरे सरस लीलाको आरम्भ होय ॥ कार्तिक बदि ३ वस्त्र हरी जरीके, चीरा, बागो चाकदार, सादा चन्द्रका, कतरा, ठाड़े वस्त्र लाल ॥ कार्तिक वदि ४ वस्त्र लाल जरीके सेहराको शृंगार ठाड़े वस्त्र हरे॥ __कार्तिक बदि वस्त्र पीरी जरीके । सुकुटको शृंगार ठाड़े वस्त्र सुपेत॥ | कार्तिक बदिवस्त्रहरी जरीके,चीरा,कलंगी,ठाड़े वस्त्र लाल॥ · कार्तिक वदि ७ दीवारीको शृंगार । वागो सुपेत जरीको। कुल्हे सुपेत । सूथन पटका लाल ठाड़े वस्त्र अमरसी। सामग्री कूरकी गुझियाको मैदा सेरऽ। चून सेरऽ॥ घी सेरऽ। गुडसेरऽ॥ पूषाको चून सेर ॥ पी सेर 5॥ गुड सेर ॥ चिरोंजी पैसा पैसा भर । सुहारी दोय तरहकी-सुपेत, पीरीको। मैदा सेरऽ॥ घीs। कार्तिक वदि ८ वस्त्र पीरी जरीके । शृंगार टिपारेको होय, ठाड़े वस्त्र लाल॥ | कार्तिक वदि ९ शृंगार आछो लगे सो करलो॥ naamansamansamanarassmeenakamananesamanaBabKAHASHA SEEEEEEEEEEEEEERIES H ITE Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - कार्तिक वदि १० श्रृंगार उत्सवको । वस्त्र सुपेद जरीके चीरा छज्जेदार, लूम, कलङ्गी वागो घेरदार । ठाड़े वस्त्र हरे। आभरण पिरोजाके । कर्णफूल ४ हलको श्रृंगार । उत्सवकी आजसों सुपेदी उतरे। आजसों नित्य हटरीमें बिराजे ॥ ___ कार्तिक वदि ११ वस्त्र श्याम जरीके । बागो चाकदार। चीरा छज्जेदार । सामग्री दहीके मनोहरके लडुवा । ठाड़े वस्त्र पीरे । कलङ्गी लूमकी, आभरण हीराके, कर्णफूल ४ सामग्री सेवके लड्डुवा । वस्त्र जैसी पिछवाई ॥ कार्तिक वदि १२ वस्त्र पीरी जरीके । बागो घेरदार । चीरा छज्जेदार । ठाड़े वस्त्र हरे। चन्द्रका चमकनी। आभरण पन्नाके। कर्णफूल ४ शृंगार चरणसँ ऊँचो करनों। चन्देवा, टेरा, बन्दनवार सब साज उत्सवक बाँधने । सामग्री मेवाटीकी। दार त तुअरकी। __ कार्तिक वदि१३धनतेरसको उत्सव । वस्त्रहरी जरीको,बागो चाकदार । चीरा छज्जेदार । चन्द्रका सादा । ठाड़े वस्त्र लाल । आभरण माणकके। श्रृंगार चरणारविन्दताई।साज सब उत्सवक सामग्री चन्द्रकलाकी । मैदा सेर ॥ घी सेरऽ॥ खाण्ड सेरऽ१॥ इलायची मासा ३ राजभोगमें छाछबड़ा। हटरीम बिराजे । कार्तिकवदि १४ रूप चऊदशिको उत्सव । अब प्रथम मंगला आरती पीछे शृंगारचौकी ऊपर पधराय रातको शृंगार बड़ो करि परातमें पीढा धरके ताके ऊपर पधरायके तिलक, अक्षत, दोयदोय बेर करनें । श्रीस्वामिनीजीकों टीकी करनी। बीड़ा ४ धरने । पाछे दीवला ८ चूनके जोड़के थारीमें धरने, खेतकी माटीकी डेली ७ सात ओङ्गाकी दातून सात ७ एक हरयो तूंबा थारीमें धरनों । ता पाछे दीवाकी थारी - sam - g - Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - --- - - सात बेर उतारनी। पाछे पास धरनी पाछे अक्षत बड़े करि अभ्यंग करावनो। पाछे स्नान कराय श्रृंगार भारी करनों। स्नान ताराकी छाँ करावनो। वस्त्र लाल जरीके, बागो घेरदार, चीरा छज्जेदार, चन्द्रका सादा, आभरण हीराके, कर्णफूल ४ पाछे राजभोगमें सामग्री। पूवाको चून, घी, गुड, बराबर। तामें चिरोंजी, मिरच कारी आखी, खोपराकी चटक टूक पधरावने । और शाक, भुजेना, छाछिबडा, उत्सवको सब राजभोगमें धरनो। साँझको हटरीमें बिराजे । सन्ध्या आरतीमें बेत्र ठाड़ो करनो। शयन आरती ताई श्रृंगार रहे ता पाछे शृंगार | बडो करि पोढ़ावने ॥ कार्तिक वदि ३० दिवारीको उत्सव । ___ता दिन अभ्यंग होय । शृंगार । वस्त्र श्वेत जरीके । बागो घेरदार, कुल्हे, सुपेद पटुका, मूंथन लाल जोड, चन्द्रकाको सादा, लहेंगा, चोली, ठाडे वस्त्र अमरसी। सब दिनको नेग दहीके मनोहरको । दही बन्ध्यो सेर 53॥ मैदा चौरीठा सेरऽ१॥ घी सेर 5॥ खाँड सेर 5८ इलायची मासा ६आरती सब समय थारीकी । आभरण उत्सवके । गोपीवल्लभमें सेवको थार. आवे। ग्वाल नहीं होय । डबरा धरनों और राजभोगमें सामग्री दीवलाकी। ताको मैदा सेरऽ१ घी सेर ३१ तिल 5- बूरो सेरऽ२ और सब राजभोगमें छाछिबडा विलसारु, फडफाडिया चनाके। दार चनाकी तली । भुजेना ४ शाक४ सधाने उत्सवके ।२ खीर, | दही और जोउत्सवमें आवे सो सब धरनों । राजभोगमें आरती थारीकी करनी। पाछे उत्थापन भोग संध्या भोग भेलो आवे । और निज मन्दिरमें पोदायवेकी तैयारी करनी। दिवालगिरि चारयों आडी बाँधनी । बिछायत नीचे बिछावनी । शय्याके PREM 3 Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mannA CReactauntemandarmatmdRRIER nama पास गादी बिछावनी । बीचमें पटा बिछावनों। ताके ऊपर छोटा काचको बंगला धरनो। दोनों आड़ी दोय चौकी धरनी । ताके ऊपर हटड़ीको भाग अनसखड़ी । दूध घर । फलफलारी। दोनों आड़ी साजनो। बीड़ा, तेजाना, सुपारिके टूक, अतर, अरगजाकी बंटी, फुलेलकी शीशी, झारी, तष्टी, सब खिलोना, आरसी। ये सब धरनो। चौपड़ बिछावनी। चारयों आड़ी चार गादी तकिया धरनो । सब साज सम्भार सिद्ध करके धरनों पाछे शयनभोग शृंगारसुद्धा आवे । समय भये भोग पूर्वोक्त रीतिसों सरायके पीताम्बर उढावनो। छेड़ा वाम ओर राखनो। | एक छेड़ा नीचे राखनो । दर्शन खोलने गायन] चौकमें बुलावनी ।श्रीठाकुरजीकूँ हाँडीअधोटा दूधकी, खुरमा आडो करिके अपने हाथमें राखिके अरोगावनी । पाछे गायकी पूजा करनी। कुम्कुम् अक्षत छिडकने । दाणो खवायवेकूँ धरनो। एक लड्डुवा खवावनो । एक लडुवा ग्वालको देनों । गुड़ सेरऽ। दरिया सेरऽ।की थूली करायके गायकूँ खवावनी। और गायके कान में ऐसे कहेनोकि सबेरेंगोवईन पूजाके सजय खोलिवेकों बेगि पधारियो । फिरि गाय खिलावनी । पाछे गाय पधारे। पाछे आरती थारीकी करनी । पाछे गादी सुद्धा श्रीठाकुरजी शय्यापै पधारें। तहाँ आरती थारीकी चौपड़की करनी। राई, नोन, नोंछावर करनी । पाछे हाथ खासा करके भेट करनी। ता पाछे थोड़ोसो शृंडार बड़ो करनो । सो कहेहें। पटुका, शिरपेच, बाजू, पोहोंची, जोड़, चोटी ये सब बड़े करने ।श्रीकण्ठमें दोय चार माला रहेवेदेनी और श्रीस्वामीनीजीको ऊपरको श्रृंगार बडो करनो। और सब रहिवेदेनो। पाछे पोढावनें। | दीवा १ घीको शय्यामन्दिरमें सब राति रहयो आवे भूलचूक ammemorammarAmA - Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामन्याला DAREESARITS MAHARMERDRIMAKELARASTRAIGAIKAHANIRMANKIRTANGMAINAROORKERDAtaurantnamGENRI B ENE astaramamunatomusamasuaaweTamuKARINEENarayanamunamaAHARASure RARAMETR a na देखिकें अनोसर करनों । पाछे सखड़ी चढावनी । और भोगके ठिकाने कोरी हलदीको अष्टदल कमलको चौक करनो। ताके ऊपर घासको बीड़ा धनरो। तामें पातर बिछाय तापर एक चादर बिछावनी। एक वटेरा सेव तथा वीको ताके बीच में पधरावनों ताके ऊपर जो भात होय सो ता ठोरपे पधरावत जानो। ___ अब सामान सामग्रीको प्रमाण एक अन्दाजसों लिख्यो है परन्तु जहाँ जितनो नेग होय ता प्रमाण करनो । यहाँ लिखे प्रमाणके ऊपर न रहनों। ___ अब प्रथम कार्तिक वदि ४ वा ५ मीको आछो बार देखिकें भट्ठीको पूजन करनोंताकी विधिबालभोगमें भट्ठी पुतवावनी। पाछे कोरी हलदीको चौक चारों तरफ माण्डनों । कुम्कुम्सों भट्ठीके पास भीत श्री तथा साथिया तथा श्रीप्रभूको नाम माण्डनों। कढ़ाई भट्टी धरावनी । पाछे कुम्कुम् अक्षत छिडकना पाछे तिलक करनों नेगको श्रीफल १ तथा गुड सेरऽ।तथा गेहूं सेर । सुपारी ७ हुलदीकी गांठ ७ तथा २०११) रोक यह सब एक फ़ूड़ामें धरके पास धरनों ऐसे कड़ाई पूज वामें पी पधरावनों । चून गूझाके कूरको पधरावनों । हलावनो हलायके गुड़की डेली घीमें डुबोयके भट्ठीमें पधरावनी पाछे बालभोगियासे आदि लेके तिलक सबनकों करनो, पाछे दण्डवत करनी । इति भट्ठीपूजा॥ सामग्री अनसखड़ीकी। - गूझा छोटेको मैदा सेर- १० चक्रगूझाको मैदा सेर ऽ३ घी। सेर 5१५ चून सेर ३१३ खाण्ड सेर 5१३ कारी मिरच आखी सेर ॥ सेवके लडुवाको मदा सेर 5१० घी सेरऽ१० खाँड सेर २० ॥ MARRERastiaHURSHIDum DHADIONREImucceELSumEMAIEEETAARENERNEYMOONIRAILEODPRERALoccmarataaramarARI MAHARomaamar m HAPGDARDEE Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ORBA mmmmmmmmmmms arearmananews MAHAREPAR सकरपाराको मैदा सेर 5१० घी सेर 5१० खाण्ड सेरऽ१० छूटी बूँदीको बेसन मण ॥ धीम० ॥ खांड ॥5 बराबर सुपेद तथा केशरीको मैदा सेर ऽ४ घी सेर 5४ खाँड बूरो सेर ७४ केशर मासा ३॥ फेनी न होय तो चन्द्रकला करनी केशरी पागनी तथा सुपेद भुरकावनी वो उपरेटा होय । ताको मैदा सेर ऽ२ घी सेर ऽ२ खाँड सेर ऽ४ केशर मासा ३। जलेबीको मैदा सेर ३३ घी सेरऽ३ खाँड सेर ऽ९॥ मनोहरको दही बध्यो सेर 5॥ चोरीठा सेर 5१ घी सरऽ२ खाँड सेर ऽ४ इलायची तोला २ दरदरी॥ खरमण्डाको मैदा सेर 5१ घी सेर ॥ बूरो सेर ७४ लौंग पिसी तोला ४॥ - कपूर नाडीको मैदा सेर 5१ घी सेर ३१ मिश्री पिसी सेर 5२ बरास रत्ती ४॥ ___ मेवाटीको मैदा सेर ऽ१ घी सेर 5१ मेवा सेर ॥ मिश्रीकी कनी सेर ७॥ झीनी इलायची मासा ८ खाँड सेर 5१ पागवेकी। इन्द्रसाको चोरीठा सेर 5 बूरो सेर ७१ घी सेर 5१ खसखसके दाना सेर 5= - मगद मूंगको, बेसनको, मैदाको, चोरीठाको, तामें घी, बूरो बराबरको सेरसेरको ॥ ___ मोहनथारको बेसन सेर ७१ घी सेर 5१ बूरो सेर ३३ केशर मासा ३ इलायची मासा ३ मेवा = कन्द 5= || बूंदीके लडुवाको बेसन सेर 5१ घी सेरऽ१ खाँड सेर ३३ केशर मासा ३ इलायची मासा ३ कन्द सेर । मेवा सेर 5% किसमिस सेर ॥ - Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खाजाको-मैदा सेर 5१ घी सेर 5१ खाण्ड सेर 5१॥ मालपूआको-चून सेर 5२ गुड सेर ७२ घी सेर ऽ२॥ सीराको-चून सेर 5१ घी सेर 5१ गुड़ सेर 5१॥ सीराको-चून सेर ७२ घी सेर ऽ२ बूरो सेर ऽ२ ॥ पूवाको-चून सेर ७२ घी सेर ऽ२ गुड़ सेर ३२॥ थूलीको-रखा सेरऽ४ घी सेर ऽ३ गुड़ सेर ऽ४ ॥ खीर चार तरहकी। चोखाकी । सञ्जावकी। सेवकी । मनकाकी । तामें दूध सेर एकमें चोखा सेरऽ- छटाँकभरके हिसाबसें और बूरो पाव पाव सेरके हिसाबसें । इलायची मासा ३ या प्रमाणसों चारयों खीरमें पधरावने ॥ सिखरन बड़ीको उड़दकी दारकी पिट्ठी सेर । शिखरन सेर 5१ बूरों सेरऽ४ इलायची मासा ३ बरास रत्ती ३॥ मैदाकीपूड़ी। चूनकी पूड़ी। फड़फड़िया चनाके। यह सब प्रकार महाभोगसों दूनों। फीको-ताको बेसन सेर 5४ घी सेर 5१ तामें हींग तथा कारी मिरच दरदरी । तामेंथपड़ी चार तरहकी। सकरपारा झीने तथा जाडे । झझराकी सेव तथा रोचक सब तरहके । राईता ८ तरहके । केला, कोला, किमिम, ककड़ी, बथुआ, घीयाको बूंदी, खण्डराको सखड़ीमें होय । यह सबको दही सेरऽ८॥ काँजीके बड़ाकी दार उड़दकी सेरऽ१ घी सेरऽ पिसीराई सेर ऽ। सोंफ 5= धनियाँ सेर 5= सुंठ 5= जीरा ऽ= पीपर 5हीङ्गऽ- यह काँजीको मसालो। लूण सेर ॥ हलदी सेर चुगलीकी पिट्ठी सेर 5॥ ताको चोरीठा सेर तिल सेर ऽ= भुजेना १६ शाक १६॥ M ata - Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MA AnslaManavarsaid mommmmm - - - - Samsaramarcanesamanarisimuan अब हटडीको प्रकार ताकी सामग्री। बीड़ी ४ और इन सब सामग्रीनमेंसों चौबीस चौबीस नग करने । और छोटी सामग्रीमेंसों बारे बारे नग करने । तासों छोटी सामग्रीमेंसों छः छः नग करने । और काँजीको तोला १ छाछि बड़ाकी पिट्ठी सेर 53 चनाकी दार, फड़फड़ीया वगेरे जितनी तरह के होयसकें तितने तरहके करने॥ सघाने ८ तरहके भण्डारके थोरोथाडो हटड़ीमें साजनें। दूधघरको प्रमाण जन्मामीसों दूनो करनों। लामेंसों चौथाई हटड़ा में साजनो। और सब अन्नकूटमें साजनों। नींबू आदा पाचरी धरनी॥ दूधघरको प्रमाण । बरफी सादा तथा केशरी खोवा बूरा बराबर केसर सुगंधी इलायची, पेड़ा, मेवाटी केशरी, अधोटा खोवाकी गोली । खोवाकी गुझिया, खोवा सेरऽ तामें भरखेको पिस्ता, मिश्री 5= ओलाकी खाँड 5! इलायची मासाकपूर नाडी, खरमण्डा, मठडी, सकरपारा, सब खोवाके मलाईके बटेरा २ दूध पूडी तापे भुरकायवेको मिश्री, केसर दोनोलकी माशा ३ और गुलाबजल जामें चईये तामें पधरावनो। और जो कछु दूध घरमें बनिआवे सो करनी । अनसखडीमें सामग्री होय ता प्रमाण खोवाकी जो बने सो॥ खाण्डगरको प्रमाण । खिलोना सेरऽ१ के गजक रेवडी, पतासा, गिदोडा, दमीदा, गुलाबकतली, इलायचीदाणे, तिनगिनी, पगे पिस्ता, पगी खसखस, तिल, चिरोंजी, पगे यह सब सेरऽ२ दोयके करने। पिस्ताकी तथा खोपराकी तथा बदामकी केसरिया कतली करनी तामें बरोबरकी खाँड़ । सुगंधी मासा ३ नेजाकी पेंठाकी कतली। Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ M खरबूजाके बीज, चिरोंजीके, खोपराको खुमणके लडवा बाँधने। खाण्ड बराबरकी बरास,इलायची प्रमाणसों पधरावनी। विलसारु मुरब्बा जितने बनिआउ तितने करने । केला, करोंदा, केरी, किसमिस, गुलावके फूलके वगेरे जो बनिआवे सो करने ॥ मेवा मूकेको प्रकार। | मिश्रीकी डेली छोटीछोटी, बदाम, दाख, छुहारे, पिस्ता, खोपराके टूक, कुंकनकेला, खुमानी, भुनका दाख, अञ्जीर सूके, खिजूर यह सब पावपावभर वटेरा साजने । और भुने मेवा तामें पिस्यो सेंधों नोन तथा कारी मिरच पिसी मिलावनी।। बदाम, पिस्ता, चिरोंजी, अखरोट, मखाने, काजू कलिआ, मूङ्गफली, बीज कोलाके, खरबूजाके, पेंठाके यह सब धीमें तलके नोन मिर्च मिलाय वटेरानमें साजने । प्रमाण सेर 5= | आधपाव और तर मेवा गीले मेवा जितनी तरहके मिलें तितनी || तरहके सिद्ध करके बटेरानमें साजनी ॥ सखड़ीको प्रकार। सखडीको जहां जितनो नेग होय ता प्रमाण करनो । यहां तो एक अन्दाजसों लिख्यो है । चोखा मन २ऽमूंग सेरऽ२० चना सेर ऽ५ चोरा सेरऽ२ मटर सेर ऽ२ बाल सेरऽ२ मोठ सेरऽ२ उडद सेरऽ२ बालकी दार सेर ७२ मूंगकी छडियल दार सेरऽ३ उड़दकी छड़ियल दार सेर ऽ३ चनाकी दार सेर ३३ तुअरकी दार सेरऽ३ कढीको बेसन सेरऽ२ ताकी चार तरह कड़ी करनी। बूँदीकी, खण्डराकी, बेंगनकी,पकोड़ीकी कढ़ी। तीन कूड़ामें चना तथा बड़ी, पधरावनी। पकोड़ीको बेसन सेरऽ२ शाकमें मिलायवेकी दार चनाकी, मूंगकी, तीन तीन सेर । दरिया सेरऽ१शाकमें मिलायवेकू चोखाकी कनकी सेरऽ१ shasanikaksecondamanaristasveyaurahaomaANSARANASI anRRIEDORANDIRammarAIMEINISAARI माommumar Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - Here READERARASHTRA - । । - मिलायबेकू । बडी उडदकी सेर 5१ बडी मूंगकी सेर १ ताको पतराशाके । और शाक १६ जो मिले सो सब करने। भुजेना १६ करने । कचरिया १६ तरहकी तथा जो मिले सो करनी। सेर सेर भर । एक एक तोला बडीको दोनोनको। मंगोडा, ढोकलाकी पिठीसेरऽमूंगकी दारकी सेरऽ१ चीलाकी पिठी सेर 5१ बडाकी उडदकी दारकी पिठी सेरऽ४ मीठी | कढ़ी बूंदीकी तथा खंडराकी करनी । घी सेर 5२ तेल सेर 5१५ बेसन सेर 5१० बूरा सेर 5६ इलायची मासा ६ वरास रत्ती ३ कटोरीको घी सेर ३३ मिश्री पिसीको वटेरा, नीम्बूको चपन, १ बूराको चपन, १ लूणको वटेरा। पाञ्चों भात । दोय शाक, बडीके पतरे। पापड़ ६४ छोटे पापड़ ६४ मिरच बड़ी लौंग बड़ी, खिलौना रोचक ॥ . पांचों भातको प्रमाण। मेवा भातके चोखा सेर ३१ तामें पिस्ताके टक 5 बदामके टूक ऽ= किस्मिस सेर । चिरोंजी सेर s= बूरासेर ७८ इलायची मासा १० बरास रत्ती ४ केशर तोला १ शिखरनभातके चोखा सेर ३१ शिखरन सेर ऽ५ तामें बूरा सेर 5८ इलायची मासा १० बरास रत्ती ५॥ दहीभातके चोखा सेर ऽ२ दही सेरऽ२ आदाके टूक सेरऽ॥ बडीभातके चोखा सेरऽ१॥ खट्टेभातके चोखा सेर ऽतामें नींबूको रस सेर ॥ तिला. पाटियाकी सेव सेर 5१ बूरा सेरऽ१ इलायची मासा ३ बरास रत्ती १ तिलबड़ी ढेवरी सेर ३१ । रोचक। यह सबको प्रमाण महाभोगसों दूनो॥ . अन्नकूटके दिनको नग। खोवाकी गुझियाको-खोवा सेर 5१ मैदा सेरऽ१घी सेर१॥ । Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - खाँड सेर 50 मिश्री सेर ॥ सुगन्धी मासा ६ राज भोगमें !! अन्नकूटकी सखड़ीमतें । अनसखड़ीमेंतें धरनो । राजभोग गोपीवल्लभ भेलो आवे ॥ कार्तिक सुदि १ गोवर्द्धन पूजाको तथा अनकूटको उत्सव । अब गोबरको श्रीगोवर्द्धनपर्वत करनों । उत्तर दिश मुख करनों । दक्षिण दिश पूँछ राखनी । ताके ऊपर ओङ्गाकी डार, कण्डेरकी डारि रोपनी । पश्चिम आडी श्रीगिरिराजमें एक गवाखा श्रीगिरिराजजी पधरायबेकों करनों । और चारयो । आड़ी ४ दीवा जोड़ने । सब सुपेदी करावनी । तहाँ चन्दोवा पिछवाई टेरा बाँधनों । यह सब तैय्यारी रात्रिकोहीं कर राखनी। अब चारि बजे श्रीठाकुरजी जागें । इतने सब भोग अन्नकूटको सजजाँय । अब मंगलाके दर्शन नहीं खुलें । भीतर आरती होयके सब शृंगार यथास्थित करनों। गोकर्ण धरावने। श्रीहस्त ऊपर पीताम्बर धरावनो । दोनों छेड़ा ऊपर राखने । पाछे गोपीवल्लभ राजभोग भेलो आवे । पाछे समय भये पूर्वोक्त रीतिसों भोग सराय पीताम्बर धरायके राजभोग आरती थारीकी भीतरही करनी । दर्शन नहीं खुलें । पाछे श्रीठाकुरजी. गादीसुधाँ सुखपालमें पधरावनें । पीताम्बर तकियापे राखनों । वेत्र दाहिनी ओर धरनों और पहले श्रीगोवर्द्धन पूजिवे• इतनी तैयारी करलेनी । जलके घड़ा २, दूध सेर ७२, दही सेर ऽ२, हलदी पिसी सेर, । कुम्कुम् सेर 5I, अक्षत पीरे, अरगजाकी कटोरी, बीड़ा ४, माला २, तुलसी, शङ्ख मुखवस्त्र, श्रीयमुनाजलकी झारी, आचमनकी झारी, तष्टी, धूप, दीप, आरती, झालर, घंट, शङ्ख, कुनवाड़ेकी हाँडी २० inclinine Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हलदीसों रङ्गीभई तिनमें दोय दोय सेवके लड्वा दोय दोय मठड़ी धरनी । पाछे हाँड़ी टोकरानमें भरनी ताके ऊपर उपरना ढाँकनों । तथा उपरना अङ्गोछा १६ ताके छेड़ा हलदीसों रङ्गनें। और कण्डेरकी छड़ी चार छै । और रेशमी दरियाईके टोरा दोय दोय सेवकनकू तथा वैष्णवनकू बाँटने । सो माथेपे बांधने । पाछे जहां पधारे पूजनकू तहां ताँई गुलाल, अबीरके चालनीसों चौक पूरनों छत्र, चमर, करत सुखपालमें पधारें। सो तहाँ श्रीगिरिराज पास छोटी साङ्गामाजी ऊपर पधरावनें। तहाँ प्रभुकोंबीड़ी आरोगावनी। पाछे आडो टेरा करिके हाँड़ी अघोटाकी अरोगावनी । पाछे फिर बीड़ी आरोगावनी गाय बुलावनी । पाछे श्रीगोवईनके गवाखामें लाल दरियाईको टूक दुहेरो करके बिछावनो। ताके ऊपर श्रीगिरिराजजीकों पधरावने । दण्डवत करनी। पाछे श्रीगिरिराजजीको तिलक, अक्षत, दोय दोय बेर करनों । पाछे तुलसी समर्पनी । श्रोताचमन प्राणायाम करि संकल्प करनों-“ॐ हरिः ॐ श्रीविष्णुविष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याय श्रीब्रह्मणो द्वितीयप्रहरार्दै श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिग्रथमचरणे बौद्धावतारे जम्बूद्वीपे भू.के भरतखण्डे आर्यावर्त्तान्तर्गते ब्रह्मावर्तकदेशे श्रीअमुकमण्डलेऽमुकक्षेत्रेऽमुकनामसंवत्सरे श्रीसूर्ये दक्षि| णायने शरहतौ मासोत्तममासे कात्तिकमासे शुभे शुक्लपक्षे प्रतिपदि शुभतिथावमुकवासरेऽमुकनक्षत्रेऽमुकयोगेऽमुककरणे एवं गुणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ श्रीभगवतः पुरुषोत्तमस्य श्रीगोवईनल्याभिवृद्धयर्थ श्रीगोवर्द्धनपूजनमहं करिष्ये । जल अक्षत छोड़नो। पाछे प्रथमजलसों न्हवावे । पाछे । Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RMARATHI 2-A shitas दूध शङ्खमें लेके न्हवावे । फिरि दहीसों । फिरि जलसों स्नान करायके पधराइये गिरिराजजीकूँ अङ्गवस्त्र करावनो पाछे नीचे छोटोसो पटा बिछायके ताके ऊपर वस्त्र बिछायके ताके ऊपर पधराइये। पीताम्बर उढ़ाइये । माला धराइये पाछे कुम्कुम्को तिलक करनों कमलपत्र करनों। कुम्कुम् छिड़कनों । एक उपरना गोबरके गोवर्द्धनकों उढ़ावनों । ऊपर कुम्कुम् छिड़कनों । थापा लगावने। कुँनवाड़ो भोग धरनों। तुलसी समर्पनी तुलप्ती शंखोदक, धूप, दीप, करनों । झारी भरके धरनी । टेरा करनों । समय भये भोग सराय । आचमन, मुखवस्त्र, कराय बीड़ा धरने । आरती करनी। पाछे खालकूँ तथा दूधगरिया। तिलक, अक्षत लगायके हरदी और कुम्कुम्के थापा लगावनें। पाछे हाँड़ी उपरना सेवकन. औरन. बाँटने । ता पाछे श्रीगिरिराजको उपरना,माला, बीड़ा, जो महाराज विराजते होय सो पहरे पाछे श्रीगिरिराजजीकू श्रीठाकुरजीके पास पीताम्बर उढ़ायके पधराइये पाछे गइयन] खिलाइये। पाछे श्रीठाकुरजीकू सुखपालमें पधरावनें । फिरि पधारें। कल सवारी आवे। तामें रु. डारनों । ता पाछे सुखपाल तिवारीमें पधरायके चूनकी आरती मुठिया बारिके करनी। पाछे हाथ खासा करिके शीतलभोगमिश्रीको सुखपालमें ही धरनों । पाछे परिक्रमा पाञ्च तथा सात करनी। और अन्नकूटमेंहू शीतल भोग आवे । झारी फिरि भरके धरनी। दोयदोय झारी धरनी । सिंहासन ऊपर पधरावनों। पाछे आचमन मुखवस्त्र करायकें सिंहासन ऊपर अन्नकूट अरोगये। पधरावने दोनों आड़ी जलकी मथनी मझोली छत्रासों टॉकिके वामें कटोरी धरिके पधरावनी ॥ mine a anem a mwrimoniamemagalaNMENTIAnamastram JawaaaaaasRRORESHESeemaanamamiRESee TRACTREATREAKINORMATHIROHIMACRORAT Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ BRURSaamTERIORRENT - NCommmmmssettes - - D अन्नकूटको भोग धरवेको प्रकार । दूध वरकी सामग्री, मेवा मिठाई, सिंहासनके खण्डपे धरनी तरमेवा धरने । ता पाछे यथाक्रम-नींबू, लूण, मिरच, आदा, पाचरी, माखन, मिश्री, सब धरनो। तुलसी, शंखोदक, धूपदीप करनों। साथिआवारो गुना अगाड़ी राखनों । शंखवारो गुना वाम ओर राखनों। चक्रवारोगुना पाछे राखनों। गदावारो गुजा जेमनी ओर राखनो । और बडो चक्र बीच में तामें चित्र प्रभुके सामने राखने । तुलसीकी माला पहरावनी जो केशरि जा घरमें छिड़कत होय सो तहाँ छिड़कनी । या प्रकार सब सिद्ध करके भूलचूक देखिके तुलसी शंखोदक धूप दीप करनो । अरोगवेकी बिनती करनी जो श्रीआचार्यजी महाप्रभु श्रीगुसांईजीकी कानिसों कृपा करिके अरोगोगे पाछे समय घण्टा २ को समय भये आचमन मुखवस्त्र कराय बीड़ा धरके दर्शन खोलने । पाछे आरती चाँदीके दीवलाकी मोतीकी थारीकी करनी, राई नोन नोंछावर करनो। पाछे अनोसर करनो। पाछे उत्थापन, सन्ध्याभोग भेलो आवे । पाछे शृंगार बड़ो करिके शयन भोग आवे । समय भये भोग सराय आरती करनी। पाछे नित्यकी रीतिसों अनोसर करनो । मंगलामें नित्य क्रमसों उठे तैसे उठावने नित्य क्रमसों ॥ अब अन्नकूटके और भाईदूजके बीच में खाली दिन आवे ताको प्रकार । वस्त्र गुलाबी जरीके । वागो चाकदार, चीराछज्जेदार, कलङ्गी जड़ावकी, ठाड़े वस्त्र हरे। आभरण पन्नाके । सामग्री उड़दको माहनथार । ताकी दार सेर ॥ घी सेर ॥ खाँड सेर 5२ Raman Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ EL माना N EWDNES SEARNERRRR इलायची मांसा ३ केशर मासा ३ सखड़ीमें दार तुअरकी। और उत्सवकी सब सामग्री, खिचड़ी अरोगे सो उत्सवके दूसरे दिनही अरोगे नित्य नेगमें भाईदूजको नेम नहीं ॥ कार्तिक मुदि २ भाईदूजको उत्सव । सो तादिन अभ्यङ्ग होय वस्त्र गुलाबी जरीके, बागा घेरदार। चीरा छज्जेदार । चन्द्रका छोटी सादा । ठाड़े वस्त्र सुपेद । आभरण पन्नाके । गोपीवल्लभमें खिचड़ी सेर ७२ घी सेर ऽ। गुड़ सेरऽ। राजभोगमें उत्सवकी सामग्रीकोछबड़ा आवे । काँजीकी हाँड़ी और छाँछ बड़ा आवे । दही भात पाटियाकी सेव भोग धरिके थाल साँनिके धूप दीप करिके घंटा झालर शङ्कनाद होय तिलक करनो । अक्षत लगावने दोय दोय बेर करनो। बीड़ा २ धरने । आरती चूनकी मुठिया बारिके करनी। नोंछावर करनी । तुलशी शंखोदक करनो । पाछे समय भये पूर्वोक्त रीतिसों भोग सरायके आरती करनी। पाछे सब नित्यको क्रम होय॥ कार्तिक सुदि ३ वस्त्र हरी जरीको बागा घेरदार । गोल चीरा । कतरा १ ठाड़े वस्त्र लाल । आभरण मूंगाके ॥ • कार्तिक सुदि ४ बागा चाक दार पीरी जरीको दुमालो। कतरा । चन्द्रका डाँककी। ठाड़े वस्त्र लाल ॥ . __ कार्तिक सुदि ५ वस्त्र झ्याम जरीके बागा चन्द्रका १ ठगड़े वस्त्र पीरे । आभरन हीराके॥ कार्तिक सुदि ६ जो आछो लगे सो शृगार करनों ॥ कार्तिक सुदि ७ लाल जरीको बागा। चाकदार । टिपारेको शृंगार । ठाड़े वस्त्र हरे। सामग्री दही बड़ाकी । दही सेरऽ1%= चोरेठिा मैदा सेरऽ= घी सेरऽ॥ खाण्डसेर 5॥ RRREARNAGARMARKERMER D and - e - - - RECE Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RADUN D E SIREONDEMNANGI - BARABANI कार्तिक सुदि ८ गोपाष्टमीको उत्सव । अन्नकूटकोहू कुण्डवारो करनों । और एक कुण्डवारो याही प्रमाण अन्नकूटसों पहले करनों। अब वस्त्र सुनहरी जरीके । शृंगार मुकुट काछनीको, मुकुट हीराको। पीताम्बर दरियाइको। शृंगार पाछे सिंहासनके पास मन्दिर वस्त्र करिके कोरी हलदीके चौक पूरनो। ता ऊपर कुण्डवारो साजनो।ताको प्रमाण । दहीभातकी हाँडी २ ताके चोखा सेरऽ॥ दही सेर ॥ सीराको खा सेर ॥ घी सेर ॥ बूरा सेर ऽ१॥ चिरोंजी 5-छटाँक । ताकी हाँडी २ पाटियाकी खीरके मलरा २ सञ्जावकी खीरकी हाँडी २ताको दूध सेरऽ५ सेवऽ= दरियाऽ बूरा सेरऽ॥ धीमें भूनके करनी। सेव तथा दरियाः तामें इलायची मासा ३ पधरावनी । मठड़ी तथा सेवके लडुवाको मैदा सेर ७२ घी सेर ऽ२ खाँड़ सेर ३३ इलायची मासा ३ यह सामग्री एक एक मलरा हाँडीमें लडुवा दोय दोय धरने तथा एक एक हाँडीमें मठड़ी दोय दोय धरनी। हाँड़ी १० हलदी। रङ्गनी । अगाड़ी शीरा, खीरकी हाँड़ी साजनी। याके पीछे पकवान धरनों । जेमनी और सखड़ी धरनी और गोपीवल्लभ सङ्ग धरनों । तुलसी, शङ्खोदक करि धूप, दीप करनों। समय भये भोग सराय दर्शन खुलें. आरती चूनकी करनी । राई लोन नोछावर करनी। राज भोग धरनों । समय भये भोग सरायके आरती करनी, अनोसर करनो। पाछे सन्ध्या आरती समय वेत्र सोनेको ठाड़ोकरनों। शयन आरतीभये पाछे क भी गोल पाग । साड़ी कसुंभी धरि पोढ़े। याही प्रकार एक कुण्डवारो अन्नकूटसों पहले करनों ॥ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - । ama MEANP कार्तिक सुदि ९ अक्षयनौमीको उत्सव । __ शृङ्गार अन्नकूटको । वस्त्र श्वेत जरीके । बागो घेरदार कुल्हे, सुपेद, पटुका सुथन लाल, लंहगा, चोली, ठाड़े वस्त्र अमरसी। जोड़ सादा चन्द्रकाको । सब शृंगार अन्नकूटको । शृंगार पाछे सांगामाँचीपें विराजे होंय तैसेही परिक्रमा ३वा ५ करिके गोपीवल्लभभोग धरनों । ता पाछे राजभोग धरनो । तामें सामग्री बूंदीके लडुवाको बेसन सेर ॥ घी सेर ॥ बूरो सेर 59॥ तामें सुगंधी मेवा । विलसारू पेंठाको करनो । तामें सुगंधी मिलावनी तथा शाक पेंठाको करनों । दार तुअरकी। शाक बड़ी मिल्यो॥ कार्तिक सुदि १० वस्त्र पीरी जरीके, वागो घेरदार । चीरा गोल ठाड़े वस्त्र लाल । चन्द्रका सादा । शृंगार हलको करनो॥ कार्तिक सुदि ११ देवप्रबोधनीको उत्सव । ता दिनाअभ्यंग होय । रुईके आत्मसुख, गदल, फरगुल ये सब रुईके नये होंय । वस्त्र सुनहरी जरीके । बागो चाकदार। कुल्हे । जोड, चन्द्रकाको । चरणचौकी वस्त्र मेघश्याम । आभरण हीराके । उत्सवके कमलपत्र करनों ग्वाल नहीं होय । डबरा धरनो । डबरा सरायके । और मण्डपकी तैयारी पहले ही करराखी होय सो मण्डपमें सांगामांची पधरावनें । और जो साँझको मुहूर्त होय तो डबरा सरायके मण्डपमें पधरावने । साठा १६ को मण्डप बाँधनों । मण्डपकी तैयारी लिखे हैं तिवारीके बीचमें खड़ियासों कोड़ी माड़नी तामें रंग भरकें तैयार करनी। आगे चित्र में मण्डी है ता प्रमाण । अब मण्डपके ऊपर साठाको मण्डप बाँधनों। दीवा १ घीको जोड़के धरनों। और दीवा ८ चारयों आड़ी जोड़ने । कोननपें दोय दोय जोड़के धरने । और दीवट दीवा धरने । और छबड़ा ४ s amananews ne meenaani. DER - % 3D Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ramananews तामें साँठाके टूक, बैंगन, सिंघाडे, कचरिया, झड़बेर, चनाकी भाजी धरके चारचों आड़ी धरने। ऐसेही माटीकी दोय अंगीठीमें साँठाके टूक, बेंगन सिङ्घाडे आदि धरके छबड़ा ढाकिके दोऊ आड़ी अँगीठी धरनी और अंगीठी कोलानकी तैय्यार करके धरनी । और पञ्चामृतकी तैयारी सब करके एक पटा धरनी। पीताम्बर गदल सब तैयारी कर राखनी । संकल्पकी लोटी १ जलको लोटा समोयके चन्दनकी कटोरी, दूध, दही, घृत, बूरो, मधु, रोरी, कुम्कुम्, अक्षतकी तबकड़ीमें तुलसीदल, अंगवस्त्र, शीतलजलको लोटा, बीड़ा २ और शंख १ पड़घीपें धरनो।या प्रकार तैयारी करके पाछे श्रीठाकुरजीकूँ मण्डपमें साङ्गामाँचीपे दक्षिण मुख पधरावने । दर्शन खोलने । पाछे तीन बिरियां जगावने सो ता समय यह श्लोक पढनो-“उत्तिष्टोत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते ॥ त्वय्युत्थिते जगन्नाथ झुत्थितं भुवनत्रयम् ॥ १॥ त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्सुप्तं भवेदिदम् ॥ उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्टोत्तिष्ट माधव"॥२॥ ऐसे तीन बेर जगायके पाछे पञ्चामृतस्नान सालगरामजीकों करावनों। श्रौताचमन प्राणायाम करि संकल्प करनों-"ॐहरिः ॐ श्रीविष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयाहरार्दै श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे बौद्धावतारे जम्बूद्वीपे भू.के भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मावर्त्तकदेशेऽमुकमण्डलेऽमुकक्षेत्रेऽमुकनामसंवत्सरे श्रीसूर्ये दक्षिणायने शरहतौ कार्तिकमासे शुक्लपक्षेऽद्य हरिप्रबोधन्येकादश्यां शुभवारे शुभनक्षत्रे शुभयोगे शुभकरणे एवंगुणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ श्रीभगवतः पुरुषो REPORTERED meroen . Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्तमस्य देवोत्थपनांगभूतपञ्चामृतनानमहं करिष्ये । ऐसे जल अक्षत छोडनों । पाछे तिलक, अक्षत, दोय दोय बेर लगावने । बीड़ा धरिये तुलसी समर्पिये पाछे पञ्चामृतके कटोरानमें महामन्त्रसों तुलसी डारिये । शंखमें तुलसी महान्त्रसों डारिये पाछेसों स्नान कराइये । प्रथम दूध, दही, घृत, बूरो, सहत, पाछे दूधसों पाछे शीतल जलसों फेरि चन्दनसों जलसों कराय पाछे अंगवस्त्र करिये पाछे श्रीठाकुरजीके पास पधरावने । पाछे प्रभुको दोऊ स्वरूपनको तिलक अक्षत दोय दोय बेर करके बीड़ा धरने । पाछे फरगुल, गदल कछु सेकके धरावने । उढ़ावने । पीताम्बर उदावनोता पाछे टेरा करके उत्सव भोग धरनों। बूंदी,सकरपारा, अघोटा,जीराको दही,मीठो दही, लूण,मिरचकी कटोरी फलाहारको जो होय सो फल फूल सब वामनजीके उत्सवप्रमाणे । फकत दही भात नहीं, साँठाको रस । गण्डेरी । बेर । सिंघाड़े धरने । तुलसी, शंखोदक, धूप, दीप करनो। पाछे समय भये उत्सव भोग सरावने । आचमन मुखवस्त्र कराय बीड़ा २ धरने। आरती थारीकी करनी। राई, लोन, नोंछावर कार पाछे परिक्रमा ३ करि पाछे राजभोग धरनों। तामें बूंदी, शकरपारा, शाक, भुजेना, छाछिबड़ा, बेङ्गनको शाक धरनों । बेङ्गनको शाक, शयन भोगमेंहूँ धरनों । और सिंहासनपे काचको बङ्गला, साज सब जरीको रहे। पाछे तुलसीको पूजन करनों। ताकी बिगत-तुलसीको साठा ४ वा ८ को मण्डप बाँधनो। पीके दीवा ४ वा ८ चारों कोनेपे धरने । अङ्गीठी, छबड़ा सब धरने । श्रोताचमनादि संकल्प करनो-"ॐहरिः ॐश्रीविष्णुविष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयप्रहरार्दै श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वत D भE - Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ amonocom मन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे तस्य प्रथमचरणे बौद्धावतारे जम्बूद्वीपे भूलोंके भरतखण्डे आर्यावर्त्तान्तर्गते ब्रह्मावर्तेकदेशे अमुकमण्डलेऽमुकक्षेत्रेऽमुकनामसंवत्सरे श्रीसूर्ये दक्षिणायने शरहतौ शुभे कार्तिकमासे शुक्लपक्षेऽद्य हरिप्रबोधन्येकादश्यां शुभवारे शुभनक्षत्रे शुभयोगे शुभकरणे एवं गुणविशेषणविशिष्टायां शुभतिथौ श्रीभगवतः पुरुषोत्तमस्य तुलस्या सह विवाह कर्तुं तदङ्गत्वेन तुलसीपूजनमहं कारष्ये । जल अक्षत छोड़के रोरी अक्षत छिड़कने । और एक लोटी जल क्यारीमें पधरावनो, वस्त्र केशरी उढावनों । कुम्कुम् अक्षत छिड़कनें । मेवा भोग धरनों। धूप दीप करनों । पाछे आरती दोय बातीकी करनी। पाछे परिक्रमा ३ करिनी। भेट करनी ॥ अथ साँजको प्रकार लिखेहें। उत्थापन पहिले तिवारीमें केला ४ की कुञ्ज बाँधनी। हजाराक झाड़ लगावने । हाँड़ी काचकी तैयार करावनी । सब दीपमालिका चौकमें मुड़ेलीपे दीवा चारयों आड़ी जुड़वायके धरनें । अथवा जो साँझको देव उठे तो सब तैयारी शयन भोग आये करनी । अब दोय घड़ी दिन रहे ता समय उत्थापन होय सन्ध्याभोग होयके । पाछे शयनभोग शृंगारशुद्धां आवे । शयन भोग सरे पाछे । जैसे राजभोगमें खण्डपाट चौकी सब साज मण्डे ता प्रमाण माण्डनों । पाछे आरती पीछे वेणु, वेत्र तकियासों लगायकें ठाड़े करने । शय्याको साज सब माण्डनों चोरसा उतारके माण्डनो । पेंडो बिछायके चमर करनो। फिरि दोय घड़ी रहिके भोग धरनों ॥ सामग्री पहले भोगकी। माखन बड़ाको मैदा सेर ॥ घी सेर 5॥ माखन सेर । भर - - Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - । - % 333 d ताकी पकोरीको मैदा सेर ॥ झीने झझराकी सेवको बेसन | सेर ॥ घी सेर ॥ सधानेकी कटोरी, लोन, मिरच, बूराकी कटोरी धरनी । फल फूल धरनों। तुलसी, शङ्खोदक, धूप, दीप || करनो, झारी भरके धरनी । समय घड़ी १ को करनो । आच मन मुखवस्त्र कराय बीडा २ धरि माला धरायके दर्शनके , किवाड़ खोलने । याही प्रकार तीनों भोगमें करनों॥ दूसरे भोगकी सामग्री। अद्भुतविलासकी मैदा सेर ॥ बूरा सेर 5१ घी सेर 5१ || भरिवेको खोवा सेर ॥ केशर मासा २ इलायची मासा २ बरास रत्ती २ कस्तूरी रत्ती २ कचौरीको मैदा सेर 5॥ दार उड़दकी सेर 5१ चकता बेंगनके । शाक छोले बेंगनको। मोणकी पूड़ीको चून सेरऽ१ सेव मोटे झझराकी। इन सब|नको घी सेर ऽ२ और सब प्रकार पहले भोग प्रमाण ॥ तीसरे भोगकी सामग्री। पिसी बँदीकीताको बेसन सेरा घी सेरऽ| खाण्ड सेरऽ१॥ जायफल मासा २ इलायची मासा ३ फीके खाजाकी मैदा सेर ॥ घी सेर 5॥ सोंठ पैसा २ भर पूड़ी साटाकीको मैदा चून सेर 5१ भुजेना आखे, चोफाड़ा बेंगनके लपेटमों । शाक नरम बेंगनको । और सब प्रकार पहले भोगप्रमाण । धूप, दीप, तुलसी, शङ्खोदक तीनों भोगमें करनों। आरती थारीकी तीनों भोगमें करनी॥ कार्तिक सुदि १२ श्रीगुसांईजीके प्रथम पुत्र श्रीगिरधरजी और गुसांईजीके पञ्चम पुत्र श्रीरघुनाथजीको उत्सव । डेढ़ बजे मंगलभोग धरनों । मंगला आरती करिके नवी | sarmammomema - awanROLAPUR me d e HOROUNDEDImanaras - - a - amaHERE DEM - . - COMEDNo MARRED Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RE SENIORTAN न - - माला पहरायके आरसी दिखावनी । ता पाछे गोपीवल्लभभोगमें सेवको थार आवे । पाछे डबरा आवे, ग्वाल नहीं होय ।ता पाछे राजभोग धरनों॥ राजभोगकी सामग्री। जलेबीको मैदा सेर ७२ घी सेर ऽ२ खाण्ड सेर ३६ छूटी बूंदीको बेसन सेर ३३ घी सेर ३३ खाण्ड सेर ऽ३ यामें आखे दिनको नेग अरोगे । गिदड़ीके मनोहरको मैदा चौरीठा सेरऽ। गिदड़ी सेर 5१ वी सेर 5 खाण्ड सेर ऽ२। इलायची मासा ६ सामग्री सब या प्रमाण होय । और शिखरन बड़ीसों लेके अनसखड़ी तथा सखड़ी दूधगर तथा खाण्डगर, मेवा तर मेवा, सब राधाअष्टमी प्रमाणे । ताको प्रमाण-अनसखड़ीको सकर पाराको मैदा सेर 5१ घी सेरऽ१ खाण्ड सेरऽ१ फेनी केशरी सो न बने तो चन्द्रकला करनी, ताको मैदा सेर 5१ घी सेर ७१ खाण्ड सेर ३१ और सीरा। सिखरन बड़ी। मैदाकी पूड़ी। झीने झझराकी सेव, चनाके तथा दारके फड़फड़िया, बड़ाकी छाछ । यह सब जन्माष्टमीसों आधे । खीर सेवकी तथा सञ्जाबकी। रायताबूंदी तथा केलाके। शाक ८भुजेना ८सधाँना ८छुआरा पीपर वगेरेके । सखड़ीमें पाटीआकी सेव । दार छड़िअल । चोखा, मूङ्ग, तीनकूड़ा, बड़ीके शाक दोय पतले । पाँचो भात, पापड़, तिलवड़ी, ढेवरी, मिरचबड़ी भुजेना ८ कचरिया ८॥ दूधगरको प्रकार। बरफी केशरी, पेड़ा सुपेद, मेवाटी केशरी, अधोटा खोवाकी | गोली, छूटो खोवा, मलाई दूध पूड़ी, दही खट्टो मीठो, बँध्यो। शिखरन । सब तरहकी मिठाई, सावोनी, गजक, तिनगुनी, Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - गुलाबकतली, पतासे, चिरोंजी, पिस्ता, खोपरा, पेंठाके बीज, कोलाके बीज, खरबूजाके बीज वगेरे । बिलसारु, पेंठाको केरीको मुरब्बा वगेरे तथा फलफलौरी गीलो मेवा सब तरहके। तथाभण्डारके मेवा सब तरहके नारंगीको पणा। शीतल भोग ओलाको । तुलसी, शंखोदक, धूप, दीप कार देहरी माण्डनी । थापा रोरीके वन्दनवार बाँधनी । समय भये पूर्ववत् आचमन मुखवस्त्र करायबीड़ाधरिके आरसी दिखायके तिलक करनो। आरती चूनकी, शंखनाद घण्टा, झालर, झांझ, पखा वज बाजत कीर्तन होत, तिलक, अक्षत दोय दोय बर करनो। भेट श्रीफल २ रुपैया २ करनी।मुठियाबारिके आरती चूनकी करनी । राई, लोन, नोंछावर करनी । जन्मपत्र बचे ता. रोरी अक्षत छिड़कनो पाछे लेनों । रु०॥ तथा बीड़ा १ मिश्रजीको देनो। पाछे सबनळू तिलक करनो तथा देनो पाछे अनोसर करनो आरसी दिखायके मालाबड़ी नहीं करनी साँझकों उत्थापनसमय बडी करके पाछे उत्थापनके दर्शन खोलने । और प्रबोधनीते शयनके दर्शन नहीं खुलें भीतर शयन आरती होय । सो वसन्तपञ्चमीते खुलें यह रीत श्रीनवनीतप्रियजीके घरकी है। पाछे नित्यक्रमके अनुसारहो। | कार्तिक सुदि १३ शृंगार पहले दिनकोबागा घेरदार । चीरा छज्जेदार । सेहरो धरे । अतरवास । दार छड़ियल । कढ़ी डुबकीकी। सामग्री सेवके लडुवाको मेदा सेर ॥ घी सेर ॥|| खाण्ड सेर 5१ सुपेदी तेरस वा चौदशते चढ़ावनी॥ कार्तिक सुदि १४ पीरी जरीको बागा घेरदार । चीरा।। कतरा । ठाढ़े वस्त्र लाल ॥ कार्तिक सुदि १५ वस्त्र रुपहरी जरीके बागो चाकदार । । MOHN NA -H-3-4SC - - Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HISHIPPERS -- HERRISHNAAMRITASATRAMERALDNETRI - -- % es - - womamimmore - । मुकुट हीराको विना पंखाको आमरण हीराके । ठाड़े वस्त्र श्याम । सामग्री दहिथराकी । मैदा सेर• ॥धी सेरऽ॥ दही सेरऽ२ बूरा सेरऽ॥ इलायची मासा १॥ मार्गशिर पदि १ वस्त्र लाल साटनके । बागो घेरदार। पाग गोल केशंभी। आजसों धनुर्मासकी सामग्री अरोगे। आजकी सामग्री । दहीको मनोहर । आजसों नित्य सेरऽ। की सामग्री अरोगे॥ मार्गशिर वदि २ वस्त्र श्याम साटनके । बागो घेरदार । पाग गोल । ठाड़े वस्त्र सुपेद । सामग्री बेसनको मगदकी सामग्रीमें बेसन सेर घी बूरा बरोबर ॥ मार्गशिरवदि ३ वस्त्र हरी साटनके, बागो चाकदर, गोटीको पाग, ठाडे वस्त्र पीरे । सामग्री-चोरीठाको मोहनथार चोरीठा सेरऽ। घृत सेरऽ। बूरो सेर ॥॥ मार्गशिर वदि ४ वस्त्र लाल साटनके दुमालो, कतरा, चन्द्रिका चमकनी। ठाड़े वस्त्र हरे । सामग्री-मैदाको माद मैदाकी बराबर घी खाण्ड बराबर ॥ मार्गशिर वदि ५ वस्त्र गुलाबी, साटनके, बागो घेरदार, पाग गोल । ठाड़े वस्त्र हरे। सामग्री-मूङ्गको मगद । तीनों चीज बरोबर। मार्गशिर वदि ६ वस्त्र गुलाबी, साटनके बागो चाकदार । टिपारो धरे । ठाड़े वस्त्र हरे । सामग्रीछुटी बूँदीकी-बेसन, घृत, खाण्ड बराबर। मार्गशिर वदि ७ वस्त्र पिरोजी साटनके । बागो घरदार पाग गोल । सामग्री-जालीको मोहन थार ॥ (मेसूबपाक) बेसन सेर 5१ खाँड सेरऽ१॥ घृत सेरऽ२ की, ठाड़े वस्त्र लाल ॥ - - - - Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - mam मार्गशिर वदि ८ श्रीगुसांईजीके दूसर पुत्र श्रीगोविंदरायजीको उत्सव । ता दिन वन लाल कीनखापके । बागो चाकदार । कुल्ह ।। जोड़ चमकको । ठाड़े वस्त्र पीरे । आभरण हीराके । सामग्री आदाको मनोहरको चौरीठा मैदा सेरऽ॥ आदाको रस सेरऽ। घी सेर ॥ खाण्ड सेरऽ२ केसर मासा २ इलायची मासा ३ राजभोगमें शाक २ भुजेना २ बूंदीकी छाछ ॥ ___ मार्गशिर वदि ९ वस्त्र लाल साटनके । बागो घेरदार । पाग गोल । ठाड़े वस्त्र हरे । सामग्री बेसनको मगद । ___ मार्गशिर पदि १० वस्त्र पीरी साटनके बागो चाकदार ।। श्याम दुमालो । ठाड़े वस्त्र लाल । सामग्री डहर बड़ीकी। ___मार्गशिर वदि ११ वस्त्र कीनखापके । बागो चाकदार । टिपारो धरे । ठाडे वस्त्र लाल । सामग्री सूरनको मगदकी॥ __मार्गशिर वदि १२ वस्त्र सोसनी । बागो घेरदार । चीरापे कलङ्गी घरे । फतुवी लाल जरीकी । ठाड़े वस्त्र सुपेद । द्वादशीकी सामग्री तवापूरीकी मैदा सेर 5२ चनाकी दार सेर ७२ दूध सेर 5१० घी सेरऽ२ खाण्ड सेरऽ८ इलायची तो० १॥ सब दिनको नेग याही ते ॥ मार्गशिर वदि १३ श्रीगुसांईजीके सप्तमपुत्र ... श्रीघनश्यामजीको उत्सव । वस्त्र लाल साटनके । बागो चाकदार । कुल्हे रे । आभरण पन्नाके । जोड़ चमकको । सामग्री उड़दकी, उड़दको चून सेरऽ॥ दूध सेरऽ२ घी सेरऽ॥ खाण्ड सेरऽ२ इलायची मासा. २॥ imarANAPANministenewali - SHARMA Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ARDINNERY TEMPERIMENTS - -- मार्गशिर वदि १४ वस्त्र पीरी साटनके । बागो घेरदार । पाग गोल । कतरा । ठाड़े वस्त्र हरे॥ __ मार्गशिर वदि ३० वस्त्र श्याम, साटनके । साज श्याम साटनके, बागो घेरदार । पाग गोल । ठाड़े वस्त्र सुपेद । कलङ्गी लूमकी। मंगल भोग रोटीको चून सेरऽ२ खीरको दूध सेर ३२ सुगन्ध पधरावनी। बैंगन, भातके चोखा सेरऽ१॥ बैंगन सेरऽ। कढ़ी मिरचकी । बड़ीको शाक । और शाक ३ भरताकी पकौरी। भुजेना ४ लपेटमां कचरीया चार तरहकी। तिलबड़ी। ढेबरी । लूग, मिरच । आदा नींबू । गुड़। माखन । राजभोगमें पूवाकी सामग्री॥ __ मार्गशिर सुदि १ वस्त्र गुलाबी साटनके । बागो घेरदार । पाग गोल । कतरा, ठाड़े वस्त्र हरे । सामग्री ऊकरकीको मोहन थार। मूंगकी दारा घी सेरऽ।-बूरो सेरऽ॥ सुगन्धी मासा २ ___ मार्गशिर सुदि २ वस्त्र गुलेनार । साटनके बागो चाकदार । चन्द्रका चमककी । ठाड़े वस्त्र पीरे । सामग्री मैदाकी बूंदीके लडुवाकी ॥ __ मार्गशिर सुदि ३ वस्त्र हरी साटनके । बागो चाकदार। पाग गोल । चन्द्रका, ठाड़े वस्त्र लाल, सामग्री कपूरनाड़ीकी। सखड़ीमें सूरज रोटीको चून सेर ॥ घी सेरऽ। गुड़ सेरऽ। भरके सेकनी॥ ... मार्गशिर सुदि ४ वस्त्र पीरी साटनके । फेंटा । ठाड़े वस्त्र | हरे । सामग्री बूरा भुरकी॥ _मार्गशिर सुदि ५ वस्त्र गुलेनार साटनके । बागो चाकदार । सेहरो धरे । ठाड़े वस्त्र लाल । दुमालो खूटका । आभरन mmmmm Page #141 --------------------------------------------------------------------------  Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AWAR - । । - दूध 5१० घी सेर ७२ बूरा सेर ऽ२ इलायची मासा ६ संग बूराकी कटोरी आवे॥ __ मार्गशिर सुदि १३ वस्त्र लाल साटनके । बागो चाकदार । पाग छज्जेदार। चन्द्रका चमककी।ठाड़े वस्त्र हरे।सामग्री-मगद, मैदा, बेसन, मूंगको । घी बूरो बराबर । इलायची मासा ३ सखडीमें बड़ा ताकी दार सेर 5१ आदाके टूक ऽ= तेल सरऽ। | मार्गशिर सुदि १४ वस्त्र लाल साटनके । बागो चाकदार । | पाग छज्जेदार । चन्द्रका चमककी। ठाड़े वस्त्र सुपेद । सामग्री मुठियाको चूरमाको चून सेर ॥ घी सेर ऽ॥ बूरा सेर ॥ तिल सेर = सखड़ीमें मूंगके चूनके चीला करने ॥ मार्गशिर सुदि १५ श्रीबलदेवजीको पाटोत्सव। वस्त्र लाल जरीके । बागो चाकदार । टिपारो जड़ावको । ठाढे वस्त्र मेघश्याम । गोकर्ण धरे। जोड़ चमकको । सामग्री चन्द्रकलाकी मैदा सेर १ घी सेर ७१ खाँड सेर ऽ३ खीर अधकीमें होय । इलायची मासा १२ आजते श्रीगुसांईजीके उत्सवकी बधाई बैठे॥ पौष वदि १ वस्त्र लाल साटनके । पाग छज्जेदार । सेहरो | सोनेको । आभरण सोनेके । ठाढे वस्त्र हरे। लूम तुर्रा सुनहरी सामग्री मोहन थार । मैदा बेसन मूंगको घी बरावर । खाण्ड तिगुनी । केशर मासा ३ मेवा सुगंधी कन्द पधरावने । और आजते गोली १ नित्य सुहाग सोंठिकी मंगलामें अरोगे सो पौष वदि ३० ताँई अरोगे सो और बदामको सीरा आजते पौष । सुदि १५ ताँई अरोगे सो दोनोनको प्रमाण नीचे लिखो है ॥ .. सुहागसोंठिको प्रमाण-मूंठ = मावाको दूध सेर 5२॥ जावन्त्री तोला १ अम्बर मासा ३ लौंग तोला ॥ बदाम 5= Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SHRADDROE one । man - पिस्ता - चिरौंजी 5= जायफल तोला १ इलायची तोला १ केशरि मासा६कस्तूरी मासा १ बरास तोलावरख सोनेके १५ रूपेके ३० खाण्ड सेर ऽ२॥ सो ताकी गोली नित्य एक पौष वदि १ ते मङ्गलामें भोग धरनी सो पौष वदि ३० ताँई धरनी। अब बदामके सीराको प्रमाण लिखे हैं-बदाम सेर । खाँड सेर 5= केशरि मासा २ इलायची मासा ३ या प्रकार नित्य ताजा करके धरनो। पौष वदि १ तें पौष सुदि १५ ताई अरोगावनो। फिर जब ताई बने तब ताँई॥ पौष वदि २ वस्त्र गुलाबी साटनके । बागो घेरदार । पाग गोल । ठाड़े वस्त्र लाल । आभरण श्याम । सामग्री नारङ्गीके || माड़ाको मैदा सेरऽ॥बूरो सेरऽ॥धी सेरऽ। सखड़ीमें चीला मटरके। | पौष वदि ३ वस्त्र लाल साटनके । बागो चाकदार । पाग । छज्जेदार । ठाड़े वस्त्र लाल। पटुका लाल । चन्द्रका चमककी। सामग्री तीन धारीको मोहनथार ॥ पौष वदि ४ वस्त्र पीरी साटनके । बागो चाकदार पाग, | पटका लाल । ठाड़े वस्त्र लाल । कतरा चन्द्रका चमककी। सखड़ीमें और मांथूली सेर ॥ घी सेर ॥ बूरो सेरऽ१ बदाम खंड = इलायची मासा ॥ वेडइको चून सेर ७॥ उड़दकी पिट्ठी सेर । | पौष वदि ५ वस्त्र श्याम साटनके । वागो घेरदार । गोटीको | पाग । ठाड़े वस्त्र पारे । चन्द्रका सादा । सामग्री मगदकी बेसन,! मैदा, मूंग, चोरीठा उड़दको॥ पौष वदि ६ वस्त्र पीरी साटनके । बागो चाकदार । फेंटा, चन्द्रका, कतरा, ठाड़े वस्त्र लाल । सामग्री मुखविलासकी। उत्सवके धोल गीत बैलें। MAR - enewsm --- - - - - - - -- - - Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । - पौष वदि ७ वस्त्र बेलदार साटनके । बागो घेरदार । पाग गोल । ठाड़े वस्त्र लाल । सामग्री मदनमोदक मैदा सेर १ दहीमें बाँधके सेव छांटिके पीसे फेर चौगुनी खांड़की चासनीमें लड्डुवा बांधे सुगंध मिलावें । सामग्री सखड़ीमें तुअरकी दारके चीला चून सेर ॥॥ पौष वदि ८ वस्त्र लाल साटनके । पाग छज्जेदार । बागो चाकदार । आभरण पन्नाके । चन्द्रका सादा, नगाड़ा बैठे। सामग्री मूंगकी ॥ पौष बदि ९ श्रीगुसांईजीको उत्सव ! साज सब जन्माष्टमीवत् । पहले दिन पलटनों। वस्त्र पीरी साटनके नये । आत्मसुख सब नये । अभ्यंग उबटना सुद्धांको। और सब शृंगार जन्माष्टमीवत् । अलकावली, नूपुर, क्षुद्रघण्टिका ये सब मानिकके । कुण्डल, हार, त्रिबली, पान, शीशफूल, चरणफूल, हस्तफूल, यह सब हीराके, और बाजू, पोहोंची तीन तीन धरावने । हीरा, मानिकके, हीराके, पन्नाके हार । माला, पदक हमेल, दोयकलीको हार । चन्द्रहार, कस्तूरीकी माला, दोउ आड़ी कलंगी, शृंगार सब भारी, तीन जोडीको करनो । कुल्हे जोड़ चन्द्रका ९ को याही प्रकार स्वामिनीजीको शृंगार जन्माष्टमीवत् करनो । सामग्री चन्द्रकलाको मैदा सेर ७१ वी सेर ऽ१ खाण्ड सेर ७४ केशरि मासा ३ बरास रत्ती २ मनोहरको मैदा चोरीठा सेर ॥ खोवा सेर ॥ घी सेर 51 खाण्ड सेर ३४ इलायची मासा ६ ये दोय सामग्री तो अधिकी करनी। और सब दिनको नेग बूंदी जलेबीको गिरधरजीके उत्सववत् । जरेबीको मैदा सेर ७२ घी सेर ऽ२ खाण्ड सेर ऽ६ बूंदीछूटीको बेसन सेर ३३धी बूरो बरोबर । गिदड़ीको । - - -- Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - - - AAKANAMAHAN --- s मनोहरकी मैदा चोरीठा सेर 5॥ गिदड़ी सेर १ घी सेर ७१ खाण्डसेर ऽ३ इलायची मासा ६ अनसखड़ीको प्रमाण । सकरपाराको मैदा सेर.ऽ१ घी बूरो, बराबर । सीरा । सिखरन बड़ी। मैदाकी पूड़ी। झीने झझराकी सेव । चनाके तथा दारके फड़फड़िया। बड़ाकी छाछ बड़ा। ये सब जन्माष्टमीसों आधे । खीर सेवकी तथा सञ्जावकी रायता केला तथा बूंदी । शाक८ भुजेना ८ सघाँना ८ छुवारा पीपर वगेरे । सखड़ीमें पाटीआकी सेव । दार छड़ियल, चोखा, मूग, तीन कूड़ा। बड़ीके शाक पतले २ पाञ्चोंभात । पापड़, तिलबड़ी, ढेबरी, मिरच बड़ी। भुजेना ८ कचरीआ ८॥ - दूधघरको प्रकार। बरफी केशरीपेड़ा । मेवाटी, केशरी । अघोटा, खोवाकी गोली, छूटो खोवा, मलाई,दूध,पूड़ी, दही, खट्टो, मीठो बँध्यो। सिखरन । सब तरहकी मिठाई । सावोनी । गजक, तिनगनी, गुलाबकतली, पतासे, चिरोंजी, पिस्ता, खोपरा, पेठाके बीज, कोलाके बीज, खरबूजाके बीज वगैरेके पगेमा तथा कतली जमावनी तथा लडुवा, बिलसारू पेठा, केरीके मुरब्बा वगेरे । तथा फल फलोरी, गीलो मेवा सब तरहको। भण्डारके मेवा सब तरहके । नारङ्गीको पणा । या प्रकार सब करनो। बन्धनवार बाँधनी। राजभोग समय भये पूर्वोक्त रीतिसों सराय पाछे तिलक, भेट नोंछावर राई, नोंन करनो। पीताम्बर उठावनो। आरती चूनकी करनी। और जो श्रीमहाप्रभुजीकी तथा गुसांईजीकी पादुकाजी बिराजित होंय तो ताको प्रकार । प्रथम श्रीठाकुरजीपू गोपीवल्लभभोग धरिके श्रीमहाप्रभुजी। तिवारीमें स्नान करावनो । सूकी हलदीको अष्टदल कमल w manane PORARMIR ASHTRA emummore - SHARAHARA । Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करनो।तापर परात धरनी । तामें पटा धरनो । तामें अष्टदल कमल कुमकुम्को करनो। तापर पधरावने । दर्शनके किवाड़ खोलनो । झालर, घण्टा, शङ्ख, झांझ पखावज, बाजत बधाई तथा धोल गावे । तिलक करिके अक्षत लगावनो तुलसी नहीं । श्रोताचमन कार प्राणायाम करि सङ्कल्प करनो-“ॐ अस्य श्रीमद्भगवतः पुरुषोत्तमस्य श्रीवल्लभाचार्यावतारप्रादुर्भावोत्सवं कर्तुं तदङ्गत्वेन दुग्धस्नानमहं करिष्ये "। जल अक्षत छोडनो। एक लोटी दूधसों स्नान करावनों । दूध सेरऽ२ तामें बूरा सेरऽ। फिर जलसों स्नान करायके अङ्गवस्त्र करावनो । पाछे टेरा करिके अभ्यङ्ग करावनों । पाछे कुल्हे जोड़ घरावनों। राजभोग जुदो धरनों । सखड़ी अनसखड़ी सब धरनों । समय भये भोग सरायके । चौपड़ बिछावनी झारी भरनी चूनकी आरती जोड़के घंटा झालर, शंख, पखावज, झांझ बजत,धोल गीत कीर्तन गावत बधाई गावत तिलक प्रथम श्रीठाकुरजीकूँ करनों। पाछे श्रीमहाप्रभुजीकों करनो। भेट श्रीफल २ रु० २) करिके मुठिया बारिके आरती करनी। राई नोन नोंछावर करके श्रीगुसांईजीको जन्मपत्र बँचे तिल गुड़ दूध मिलायके एक कटोरी में धरनो। श्रीठाकुरजीके सिंहासनके ऊपर ताको यह श्लोक पढनो-“ सतिलं गुडसम्मिश्रमअल्यदै शृतम्पयः । मार्कण्डेयादरं लब्ध्वा पिबाम्यायुःसमृद्धये" ॥१॥ पाछे आरसी दिखाय पूर्वोक्त रीतिसों अनोसर करने, मालाबड़ी नहीं करनी। उत्थापन समय बड़ी करके खोलनो ॥ __पौषवदि १० सब शृङ्गार पहले दिनको करनों । सामग्री पिसी बूँदीको लड्डुवाके बेसन सेर ॥ और घी सेर s॥ वूरो सेर ऽ१॥ सुगन्धी केशर ॥ MHATTARAIMERamewonmmmAINImmmm MAORAKARMERENCE OP - Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पौष वदी ११ वस्त्र लाल कीनखापके । बागो चाकदार । कुल्हे ऊपर विना पंखाको मुकुट । ठाड़े वस्त्र हरे। सामग्री अरवीको मगद । घी खाँड़ बराबर ॥ पौष वदि १२ मंगलभोग । तामें खरमण्डाको मैदा । सेर ऽ२ घी सेर 5 बूरा सेर ऽ४ लौंग पिसी पैसा भरि । मङ्ग लामें सब दिनको नेग । याके संग मुंगोड़ाकी छाछि सधानाकी कटोरी । सखड़ीमें, खीखरी तेलकी । तामें अजमायनपड़े। सखड़ीमें बड़ीभातके चोखा सेरऽ१॥ बड़ी सेर ॥ घी सेर ॥ और सब प्रकार पहले मंगलभोग प्रमाणे । वस्त्रहरे कीनखापके। टिपारो धारण करावे । ठाड़े वस्त्र लाल । कतरा, चन्द्रका, चमकनी। आभरण हीराके । मंगलभोगको प्रमाण । खीर सेर ३२ दूध सुगंध पधरावनी । कढ़ी, मिरचकी बड़ीको शाक और शाक ३ भुजेना ४ कचरिया ४ तिलवड़ी, ढेबरी, लूण, मिरच, आदा, नींबू, गुड़, माखन इत्यादि। | पौष वदि १३ वस्त्र श्याम । बागो घेरदार । पाग गोल, | चन्द्रका सादा । ठाड़े वस्त्र पारे । सामग्री ऊकरके लडुवा । और आदाकी गुझिया।ताको मैदा सेर ॥ आदा सेरऽ। घी सेरऽ॥ - पौष वदि १४ दोहरा बागा । पाग गोल । ठाड़े वस्त्र पीरे। | सामग्री उड़दको मोहनथार ॥ - पौष वदि ३० वस्त्र श्याम साटनके । बागो घेरदार । पाग गोल। ठाड़े वस्त्र लाल, आभरण मोतीके। सामग्री मालपूवाकी ॥ पौष सुदि १ बागो पीरी साटनको। चाकदार फेंटा पटुका लाल। गड़े वस्त्र गुलाबी । सामग्री चोरीठाके बूंदीक लडुवा । चोरीठा घी बराबर, खाँड़ तिगुनी ॥ पौष मुदि २ वस्त्र गुलाबी साटनके। बागो घेरदार । पाग गोल। TRAPARIYARTHemamaltimsooriandinamaintainmenistumanimtianssanetaudarahineralancememousnKSAGaractationtenanatimetownserenmamaicatinica ROHIMIRAINMamtrucramme mmmmssen - A PATIMESDMRIME H LatestreamIONERNMENORRHEUMActreyeRWE ORE PRIORNRE - - VIRREGURBARAHINEHRECORDISHESENTINEHRESTERESIDHARELI E WS Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठाड़े वस्त्र लाल । आभरण श्याम । सामग्रीभुरकी लुचईकी॥ पौष सुदि ३ वस्त्र लाल साटनके । बागो घेरदार । पाग छज्जेदार, ठाड़े वस्त्र हरे। सामग्री पपचीकी ॥ पौष सुदि ४ वस्त्र सुपेद जरीके । बागो चाकदार । चीरा सुपेद । कर्णफूल ४ चमकनें । ठाड़े वस्त्र श्याम । सामग्री सखडीमें थपेलीको चून सेर ॥ तिल 5- गुड़की लीटीको चून सेर ॥ गुड़ सेर ॥ घी सेर ।। पौष सुदि ५ वस्त्र पीरी साटनके । बागो चाकदार फेंटा, कतरा चमकनो । ठाड़े वस्त्र लाल । सामग्री इमरतीकी ॥ ___ पौष सुदि ६ लाल जरीको बागो । चाकदार । कुल्हे लाल। जोड़ चमकनो । ठाड़े वस्त्र हरे । गोकर्णधरे । आभरण हीराके। ___ पौष सुदि ७ वस्त्र सुआपंखी साटनके । बागो घेरदार । पाग गोल । ठाड़े वस्त्र गुलाबी, कतरा, १ सामग्री अमृतरसावली। बासोंदीको दूध सेर ३३ बरास रत्ती २ बूरो सेर ऽ४ उरदकी IMIT दाल धोवाकी पीठी सेर ॥ घी ॥ बूरा सेर १ | पौष सुदि ८ वस्त्र लाल साटन भाँतिके । बागो चाकदार, | पाग छज्जेदार । ठाड़े वस्त्र सुपेद, लूमकी कलङ्गी । सामग्री पगी पूरी। फेनी रोटीको चूना सेर ॥ घी सेर । | पौष सुदि ९ वस्त्र पीरी साटनके । बागो घेरदार । पाग हरी गोल । ठाड़े वस्त्र सुपेद, लूमकी कलङ्गी । सामग्री मोहनथार मैदा बेसनको॥ पौष सुदि१० वस्त्र अमरसी साटनके।बागो चाकदार गोटीको पाग । चन्द्रका जड़ावकी । ठाड़े वस्त्र हरे। सामग्री बुड़कलको मोहनथारके मावाकों पूडीमें लपेटके तलनो अथवा चणाकी - mamalaninehen Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - mamtaste attenda n दार दूधमें वाफके पीसके घृतमें भूनके चासनीमें मोहनथार प्रमाण करके पूड़ीमें भरनो सखड़ीमें दार मटरकी। पौष सुदि ११ वस्त्र लाल कीनखापके । टिपारो धरे सामग्री अरवीकी जलेबी॥ अथ संक्रान्तिको प्रकार लिखे हैं। | पहले दिन भोगी ता दिना अभ्यंग होय वस्त्र नये लाल छीटके । बागो घेरदार । पाग गोल चूनरीकी। चन्द्रका सादा ठाड़े वस्त्र सुपेद। कर्णफूल ४ राजभोगमें सामग्री झझराकी सेवके लड्डुवाको बेसन सेर ॥ वी सेर ॥ खाण्ड सेर 5१॥ सखड़ीमें चीला उड़दकी दारकी पीठी सेर 5१ ताके संग माखनकी कटोरी। घीकी बूराकी गुड़की लूणकी यह सबकी कटोरी धरनी । चीला गोपीवल्लभमें धरने। राजभोगमें शाक २भुजेना २ बूंदीकी छाछ, यह पहले दिन भोगीको प्रकार । अब संक्रा न्तिको तिलवा समर्पिवेको प्रकार । संक्रान्ति साँझकी बैठी होय तो मंगलामें तिलवा अरोगे खिचड़ी राजभोगमें अरोगे । और अबेरी बैठे तो गोपीवल्लभमें तिलवा अरोगे । याहूते अवेरी बैठे तो तिलवा उत्थापनमें अरोगे । खिचड़ी दूसरे दिन अरोगे । याहूते अबेरी बैठे तो शयनमें तिलवा अरोगे । औरहू अबेरी बैठे तो शयन अबेरी करनी । तुलसी, शङ्खोदक, धूप, दीप करने । वस्त्र नये छीटके । पिछवाई छीटकी । सब श्रृंगार पहले दिनको । सामग्री पूवाकी । दार तुअरकी, कढ़ी पकोड़ीकी । तिल सेर ३३ बूरो सेर ३६ बरास रत्ती ४ तिल सेर ७३ गुड़ सेर 5२ जायफल तोला ॥ भर, भुजे मेवा, बीज खरबूजाके तथा कोलाके, मखाना, चिरोंजी यह तलेंमा। अघोटा दूध तामें बरास मिलावनी । गुड़को खीचड़ा । गेहूँ. खाँड़के फटकके DISNERRHEASEBER SHRESEAR - - Homema namaAMERemes Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ intamania सेर ॥ तामें बूरो सेर ऽ१ सुगन्धमासा प्रमाण यह एक दिन । अरोगावनो, संक्रान्तिके दिनको मीठे खिचड़ाको नेम नहीं॥ | पौष सुदि १२ वस्त्र छीटके।बागो चाकदार। चन्द्रका सादा, ठाड़े वस्त्र हरे । सामग्री माडाको मैदा सेर ७२ घी सेर ऽ२ वूरा सेर 5४ दूध सेरऽ३ बरास रत्ती ४ कान्तिवड़ाकी पिट्टी सेरऽ।। घी सेर ॥ पाकवेकी खांड सेरऽ रसकी खांड सेर ऽ२ चुकलीकी पिट्टी, चोरीठा, तिल सेरऽ। घी सेर 5॥ सखड़ामें लौंगभात आदि सब पहले मंगल भोगप्रमाण । खीर सेर ७२ दूध सुगन्धी मिलावनी। कढ़ी मिरचकी, बड़ीको शाक आरै शाक३ भुजेना ४ कचरिया ४ तिलवड़ी, ढेबरी, लूण, मिरच, आदा, नींबू, गुड़, माखन इत्यादि ॥ पौष सुदि १३ वस्त्र पीरी जरीके । बागो चाकदार । दूमालो। ऊपर सेहरों। ठाड़े वस्त्र हरे । सामग्री मोहनथारकी। बेसन, घी, बूरा, सुगन्धी, केशर, कन्द, मेवा सब प्रमाणसों पधरावने । सखड़ीमें भरेमा पूड़ीको मैदा सेर ॥ तेल सेरऽ। यामें भरिवेको मैदा बेसन सेर 5 नींबू के रस में बेसन बाँधनों। वेसवार सब मिलावनों हींग इत्यादि फेर भरनो ॥ ___पौष सुदि १४ वस्त्र हरी साटनके । पगा, कतरा, चन्द्रका चमककी । ठाड़े वस्त्र लाल, सामग्री उपरेटाकी ॥ पौष सुदि १९ वस्त्र छीटके । टिपारो धरे, ठाड़े वस्त्र हरे । सामग्री इन्द्रसाकी । चोरीठा सेर 5॥ घी सेर ॥ खांड़ सेर ऽ! खसखस 5= ॥ _माघ वदि १ वस्त्रछीटके । सामग्री बूँदीको मोहनथार। सखडीमें बाजराकी रोटी आवे । धी सेर 5= गुड़ऽ= ॥ Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Panemamaee - - म m menter माघ वदि २ वस्त्र गुलाबी । बागो चाकदार । पाग गोल। | ठाड़े वस्त्र हरे । कतरा १ सखडीमें थूली सेर ७॥ घी सेर ॥ गुड़ सेर 5॥ बूरा सेर ऽ। दाख सेर = माघ बदि ३ वस्त्र छीटके । सामग्री गुड़के Dझा ॥ माघ वदि ४ वस्त्र पीरे । सामग्री गुड़को चूरमांको चून सेरऽ॥॥ घी सेर ॥ गुड़ सेर । माघ वदि ५ वस्त्र हरे । सामग्री बूरा भुरकी ॥ माघ वदि ६ वस्त्र छीटके, टोपा घरे, सामग्री बेसनके सेवके ।। लड्डुवा गुड़के । सखड़ीमें सूरण भरिके गुँझाकी मैदा सेर ॥ घी सेर ॥॥ माच वदि ७ वस्त्र छीटके। सामग्री बुड़कल ॥ माघ वदि ८ वस्त्र लाल कीनखापके । कुल्हे जड़ावकी।। जोड़ चमकनो। ठाड़े वस्त्र मेघश्याम, सामग्री मनोहर बेसनको माघ बदि ९ वस्त्र छीटके । सामग्री गुड़की लापसी ॥ ___माधवदि १० वस्त्र लाल साटनके । चीला बेसन खाँण्डक सखड़ीमें॥ ___ माघ वदि ११ वस्त्र श्याम साटनके । विना पङ्खाको मुकुट, वा टिपारो पीरो धरे । सामग्री तिलको मोहनथार । तिल सेर ॥ खाण्ड 5॥ माघ वदि १२ को मङ्गलभोगमें सामग्रा सिखरन बुड़कलको मैदा सेरऽ॥ दार चनाकी सेर 5 भिजोयके दूध सेरऽ५ में बाफिक पीसनी भूनके घीमें फिर बूरो सेर ४ की चासनीमें सब मिलाय बरास रत्ती २ घी सेर 51 इलायचा मासा ८ केसर मासा ४ मिलाय तवापूरी जैसी करि गोली बाँधि मैदा OPRIANRAMUHIRANORAMASOMETHARASMISNORAIDANATLATEDMERIONERSIPARISESOURTHORIBALUKSHIMSAROKAMANEERIATERBEIRTANE NGT RDIR neraDONERIORamdNENTREERI - - PARTS - Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AUKRITINA U RRCIALNISE ANDIDANImanaHARELIMSmnesampurna mmmmmmmmmmmmmmm सेर 5॥ को गोरराबड़ा जैसो करि वामें पूरणकी गोली लपोटके | लाल धीमें उतारनों और बुड़कल मैदाकी पूड़ीमें भरिके भी उतारनो सखड़ीमें हरे चनाके छोला भात । हरे न मिलें तो भिजोवने । चोखा सेर ऽ२ चना सेर ७१ घी सेरऽ। और प्रकार सब पहले मंगलभोग प्रमाण । कढ़ी मिरचकी बड़ीको शाक और शाक ३ भुजेना ४ चकरिया ४ तिलबड़ी ढेबरी । लूण, | मिरच, आदा नींबू । गुड़, माखन ॥ ___ माघ वदि १३ वस्त्र लाल कीनखापर्क । कुल्हे जड़ावकी, गोकर्ण जरीके, जोड़ चमकनों । ठाढे वस्त्र हरे । आभरण हीराके । सामग्री सखड़ीमें गुड़की लापसी । मूंगके ढोकलाकी पिट्ठी सेर । पी। माघ वदि १४ वस्त्र लाल साटनके । बागो चाकदार । पाग छज्जेदार । चन्द्रका सादा, ठाड़े वस्त्र हरे । कतरा ४ शृङ्गार मध्यको । सामग्री गुड़को मोहनथार। माघ वदि ३० वस्त्र श्याम जरीके । टिपारो, चन्द्रका३ चमकनी। आभरण हीराके । सामग्री शिखोरी गुड़की । सखड़ाम मोमनके टिकरा तथा उड़दकी दार । चून सेरऽ॥ घी सेरऽ॥ माघ सुदि १ वस्त्र हरी जरीके । बागो घेरदार । पाग गोल। चन्द्रका चमकनी । आभरण माणकके । ठाड़े वस्त्र लाल सामग्री सीरा गुड़को ॥ माघ सुदि २ वस्त्र पीरीजरीके बागो घेरदार । गोल चीरा, ठाड़े वस्त्र लाल, मोर शिखा आभरण पिरोजाके । सखड़ीमें मूङ्गकी पीठीके पनोलाकी पिठी सेरऽ॥ पान ४० तामें पानके बीचमें पिट्टीभरना और सामग्री जो रहिगई होय सो करनी॥ s PUR । meanA - Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माघ सुदि ३ वस्त्र लाल जरीके । दुमालो सेहरो जड़ावको। ठाड़े वस्त्र मेघश्याम । आभरण पन्नाके । सामग्री गुड़को खीचडाके गुड़ सेर ॥ बूरा सेर १ घी सेर । दार तुअरकी॥ __ माघ सुदि ४ वस्त्र सुपेद जरीके । बागो चाकदार। मुकुटकी टोपी ऊपर जोड़ चमकनो । ठाड़े वस्त्र मेघश्याम । अथवा क्रीट घरे तामें जोड़ धरि पान धरे । सामग्री पञ्चधारीकी ताको मैदा सेर ॥ खोवा सेर 5१ घी सेर ॥ खाण्ड सेर 5२ बदाम पिस्ताके टूक सेर । मिश्रीको रखा सेर । इलायची मासा ३ सखड़ीमें खिचडी ताके चोखा सेर ७१ मूंगकी दार सेर १ घी सेर ॥ आदाके टूक सेर । माघ सुदि ५ वसन्तपञ्चमीको उत्सव । सब साज पहले दिन सुपेद बाँधि राखनों । अभ्यंग होय। वस्त्र जगन्नाथीके सुपेद । बागो घेरदार । पाग वारकी खिरकीकी । तनिआ श्वेतमलमलको । ठाड़े वस्त्र लाल । फरगुल छीटको । कतरा ४ चन्द्रका सादा । राजभोगमें उत्सवकी चारों सामग्रीमेंसू दोय दोय नग धरने । कढ़ीके पलटे तीन कूड़ा पकोड़ीको शाक २भुजेना २ छाछि बड़ा । पाटियाकी उत्सवको सधानो। या प्रकार राजभोग धरिके वसन्तकी तैयारी करनी। वसन्तके कलस नीचे कोरी हलदीको अष्टदल कमल करि सूथिआ ऊपर कलश धरनो मीठो जल भरनो। तामें खजूरकी डारि धरनी । तामें बेर फूल टाकने । वसन्तके कलस ऊपर सुपेद वस्त्र ढाँकनो। कहूँ पीरो वस्त्रहू लपेटे हैं। खेलको साज सब एक थालमें साजनो, वह थाल एक चौकीके ऊपर वसन्तके आगे धरनो तामें गुलाल, अबीर, चोवा, चन्दन सब साज खिलायवेको खेलको तथा भोगको थार पड़धी वाम ओर Animatemen R ECORRNEDAR ease TREESHMIRIDHAAREENEDISTRISH IVBAONIJANAMANARSINHAma Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PARDENDS TomamalineRenaumatatemesentainmeonentinkamnaabmmaamirainsa arDeummaNGanese धरनो । तामें बदाम, मिश्री, दाख, छुहारे खोपरा, मुंजे मखाने, चिरोंजी, भुने बीज कोलाके तथा खरबूजाके, मिठाई, पेडा, बरफी, तर मेवा, रतालू, सकरकन्दी, होला, मिरच, लूण, बूराकी कटोरी वगेरे धरिके उपरना दॉकिके धरनो। पाछे भोग सरायके सब ठिकानें उपरना ढाँकिके माला पहिरायके वसन्तको अधिवासन करनो । श्रोताचमन प्राणायाम करि सङ्कल्प करनो-“ॐ हरिः ॐ श्रीविष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीय प्रहराई श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे तस्य प्रथमचरणे बौद्धावतारे जम्बूद्वीपे भूलॊके भरतखण्डे श्रीआर्यावर्तान्तर्गते ब्रह्मावत्तकदेशे अमुकमण्डलेऽमुकक्षेत्रेऽमुकनामसंवत्सरे सूर्य उत्तरायणे माघमासे शुक्लपक्षेऽद्य पञ्चम्यां शुभवारे शुभनक्षत्रे शुभयोगे शुभकरणे एवं गुणविशेषणविशिष्टायां शुभतिथौ भगवतःश्रीपुरुषोत्तमस्य वृन्दावने वसन्तक्रीडाथै वसन्ताधिवासनमहं करिष्ये"। जल अक्षत छोड़नो । यह सङ्कल्प पढ़ि कुम्कुम्सों कलशके ऊपर छिड़कनो अक्षत डारने । ता पाछे घटीकी कटोरी वसन्तको भोग धरनो। तुलसी शंखोदक, धूप, दीप करनो, ता पाछे भोग कराय चारि बातीकी आरती करनी । अकेलो घंटा बजावनो । दंडवत करनी। पाछे फरगुल झारी सुपेत ऊपरनाँ ढाँकने । और केसर अङ्गीठी राखिये सोहातीसों खेलाइये । दर्शन खोलिये । दंडवत करिये । खेलाइये प्रथम, केशरि, गुलाल, अबीर चोवासों खेलावनो । ताको क्रम प्रथम पाग, बागा, सूथन । पाछे साड़ीके, उपर केशर छिड़किये । तापीछे गुलाल, अबीर, छिड़किये, ता पीछे चोवाकी टीकी दीजिये। weauchawaoner Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - SAKALAYamg -- Sahitheart - SHRADDREATRE ता पीछे माला, छड़ी, गेंद, खिलावनो, ता पीछे गादीकू याहीरीतसों खेलावनो, तापीछे सिंहासन के वस्त्र छिड़किये, ता पीछे पिछवाई छिड़किये केशरतों, पाछे मुलालसों छिड़किये, पिछवाई सिंहासन वस्त्र. चोपा, अबीर नहीं छिड़कनो। चन्दुवाको अकेली केशरसों छिड़किये, पाछे गुलाल, अबीर उड़ाइये। ता पाछे टेरा करके धूप, दीप करि सिंहासनके आगे मन्दिर वस्त्र करि चौकीपे भोग धरिये । तुलसी शङ्खोदक करिये । उत्सवभोगकी सामग्री । गुना करके को चून सेर 5१॥ गुड़ सेरऽ। खोपराके टूक 5= मिरच आधे पैसा भरि । मैदा सेर ॥धी सेर 5॥ मठडीको मैदा सेर 5१॥ घी सेर 59॥ बूरा सेर 5॥ सेवके, लडुवाको मैदा सेर 5१ ची सेर 53 बूरो । सेर ७२ बूंदीको बेसन सेरऽ२ वी खाँड बराबर, शिखरन बड़ी। बड़ाकी छाछि । बड़ाकी पिट्ठी सेर 5१ फड़फड़ीया चनाके दारके । उत्सवक सधाने । पेड़ा, बरफी, अधोंटा, बासोंदी, खाटो दही, मीठो दही, लूण, मिरच, बूराकी कटोरी । तर मेवा सब भोग धरिके तुलसी शंखोदक धूप, दीप करि समय भये भोग सरावनो। बीड़ा ४ धरि दर्शन खोलिके आरती थारीकी करिये। पाछे अनोसरमें सब खेलको साज धरि अनोसर करनो।। ता पाछे साँझको सन्ध्या आरती पाछे वसन्तको निकासिये खेलके साजमें गुलाल अबीर केशर खेलावनी, नित्य नई | साजनी। शृंगार बड़ो करनो, आभरणमें कण्ठी, कड़ा, नूपुर रहे ! ता पाछे नित्यक्रम । और वसन्तराँ शयनके दर्शन नित्य खुलें। और राजभोग सरे पाछे नित्य खेलें । ता पीछे आरती a n naam RREREDEOICERMALAIMER anamamunananADANVASHINENERMIREGASARAMATARRIERROREI0RRHETHERDSTIONSOREAMITINCTAHINDRAMANNECamewMUNNAORNIDASAMIDNICONSHISHASHTAMINAININEMAKHERARTHANI - नार Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ e Hereumauniaare FRIEmom । होय। और पिछवाई सिंहासन, खण्डको तो नित्य गुलाल अकेलेलूँ खेलावनो॥ | माघ सुदि ६ बागो सुपेद चाकदार, कुल्हे सुपेद, कुल्हे ऊपर शृंगार कछु नहीं करनो, ठाड़े वस्त्र नित्य लाल सूतरु ॥ । माघ सुदि ७ बागो घेरदार, लाल मगजीको । पाग लाल खिड़कीकी । सामग्री गुलगुला ॥ ___ माघ सुदि ८ वस्त्र सुपेद टिपारो, सामग्री उड़दकी दार और | मकाकी रोटी गुड़को सीरा, घी सेरऽ॥॥ - माघ सुदि ९ बागो घेरदार । पाग गोल । सामग्री गुलपापड़ी। चून सेर ७१ घी सेर ॥ गुड़ सेर ३१ ॥ ___ माघ सुदि १० वस्त्र केशरी। पाग छज्जेदार । सेहरो घरे, ठाड़े वस्त्र लाल । सामग्री मोहनथारकी बेसन मैदा मूंग उड़दको चून सेर ॥ घी सेर ॥ खांड सेरऽ२ इलायची मासा ३ और जो फागुनमें जन्म दिवस उत्सव होय तो बीड़ा आरोगत समय | एक बधाई होय । और सब समय वसन्त होय ॥ | माघ सुदि ११ वस्त्र श्वेत छीटाके । श्रृंगार मुकुट काछ.नीको । अथवा जब कोई दिन भनोरथ होय तब सामग्री २ करनी और कचौरी, बड़ा छाछिके । फीके गुझिया, मैदाकी पूडी, फड़फड़िया चनाकी दारके । चनाके झझराकी सेव, लपेटमा भुजेना,सादा भुजेना,चना छौके अधोटा दूध, विलसारु फलफलोरी, पेड़ा, बरफी, खट्टो मीठो दही, उत्सवके सधाने, लोन, मिरच, बूरोकी कटोरी, धूप, दीप, तुलसी, शंखोदक करनो। इतनी सामग्री करनी । यासों अधिकी होय सो आछो परन्तु मनोरथमें घटावनो नहीं। आरती थारीकी करनी । राई नोन नोछावर करनी॥ - Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - mom __माघ सुदि १२ वस्त्र श्वेत, बागो घेरदार, पाग गुलाबी खिड़कीकी ॥ माघ सुदि १३ वस्त्र श्वेत, बागो चाकदार, फेंटा श्वेत, चन्द्रका, कतरा ॥ माष सुदि १४ वस्त्र श्वेत, बागो घेरदार, पाग छीटकी गोल। श्रीस्वामिनीजीकूँ छीटकी साड़ी, चोली, लहँगा ॥ __ माघ सुदि १५ होरी डाँडाको उत्सव । ताके पहले दिन सब साज बदल राखनो। पाछे अभ्यङ्ग होय । वस्त्र श्वेत, बागो घेरदार। पाग वारकी खिड़कीकी । चोली चोवाकी । आभरण नित्य सुवर्ण के धरावने । कर्णफूल २ श्रृंगार हलको करनो। कतरा सादा, कलङ्गी सोनेकी । सामग्री मीठी कचोरीको मैदा सेरऽ॥ मूंगकीदार सेरऽ=धीऽ। खांड़ सेरऽ२ इलायची मासा २ राजभोगमें शाक २ भुजेना २ छाछिबड़ा पाटियाकी। आजसों नित्य फेंट गुलालकी शृङ्गारमें भरनी। पिचकारी भरनी । सो आरती पीछे बड़ी करनी । खेल भारी करनो । लोटा १ रङ्गको उड़ावनो खेल भारी करनो । कपोलनपें गुलाल लगावनों। पिच|कारी रङ्गकी उड़ावनी। गुलाल, अबीर उड़े। और होरी डाँडालूँ अनोसरमें शय्याके पास थारीमें फूल माला, केशर, गुलाल, अबीर, उड़ायबेको एक तबकड़ीमें सब साजके डोल ताई नित्य रहे । पिचकारी नित्य शय्याके पास खेलकी तबकड़ीमें धरनी। और रात्रिको भद्रारहित होरी डाँडो रोपिये ॥ __फाल्गुन वदि १ वस्त्र सुपेद, बागो घेरदार । पाग पीरी वसन्ती गोल, तैसोई श्रीस्वामिनीजीकों फागुनियाँ, चन्द्रका सादा ॥ | फाल्गुन वदि २ वस्त्र श्वेत, वागो चाकदार । पाग पतङ्गी | खिड़कीकी, चन्द्रका सादा ॥ - । PESABRDARIKSHARABIRADESH Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Oreonew RAM - - - - - फाल्गुन वदि ३ वस्त्र पीरे वसन्ती। शृङ्गार मुकुट काछनीको॥ फाल्गुन वदि ४ वस्त्र श्वेत, बागो चाकदार, शृंगार फेंटाको॥ फाल्गुन वदि ९ वस्त्र श्वेत, वागो चाकदार, पाग गुलाबी खिड़कीकी वसन्ती । तैसेई श्रीस्वामिनीजीके वस्त्र॥ फाल्गुन वदि ६ वस्त्र श्वेत, बागो घेरदार । पाग छज्जदार, चन्द्रका सादा ॥ फाल्गुन वदि ७ श्रीनाथजीको पाटउत्सव । ता दिन वस्त्र केशरी । बागो घेरदार, पाग गोल, चन्द्रका सादा। चोवाकी चोली । कर्णफूल २ ठाढे वस्त्र श्वेत । शृंगार हलको अभ्यंग होय । सामग्री सब दिनको नेग बुड़कलको मैदा सेर 51 चनाकी दार सेर ऽ२ दूध सेरऽ १० खाण्ड सेरऽ८ इलायची तोला १ घी सेर 5२ राजभोग आयेमें श्रीनाथजीको चित्र अथवा मोजाजीको भोग जुदो आवे । ताकी सामग्रीखरमण्डाको मैदा सेर 53॥ घी सेर ऽ॥ बूरा सेर ३३ लौङ्गकी बुकनी मासा ६, मनोहरको मैदा, चोरीठा सेर 5॥ खोवा सेर 5॥ खाण्ड सेर ऽ४ इलायची मासा ३ बरास रत्ती ४ और सखड़ी, अनसखड़ी आदि श्रीगिरधरजीके उत्सव प्रमाण करनो। ताकी विगत-अनसखड़ीमें सकरपाराको मैदा सेरऽ१ घी खाण्ड बराबर । चन्द्रकला सेरऽ१ को घीऽ१ खाण्डऽ३ केशर मासा ३ सीरा, शिखरन बड़ी, मैदाकी पूड़ी, झीने झझराकी सेव, चनाकी दारके फड़फड़िया, बड़ाकी छाँछ, खीर, सेव तथा सञ्जावकी रायता २ शाक ८ भुजेना ८ सँधान ८ छुआरा, पीपर वगेरेके । सखड़ीमें पाटियाकी सेव, पाञ्चों भात, दार छड़िअल, चोखा मूङ्ग तीनकूड़ा, बड़ीके शाक २पतले, पापड़, तिलबड़ी, | ढेबरी, मिरच बडी, भुजेना कचरिया ८॥ -- - - - - - mamanisatisammanias - EMEDDREDEEmaatemenessm o mcomaasenasRSONASHISAR Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । witamineration - दूधघरमें । बरफी केशरी पेडा, मेवाटी, गुझिया, खोवाकी गोली, अधोटा छूटो खोवा, मलाई, दूध, पूडी, दही खट्टो, । मीठो, शिखरन, सब तरह की मिठाई, साबोनी, गजक तिन-|| गनी, गुलाव कतली, मेवा-पगेमा, पिस्ता, चिरोंजी, बदाम, खोपरा, पेठाके बीज, कोलाके बीज, खरबूजाके बीज वगेरे । विलसारु, पेठाको केरीको मुरब्बा वगेरे तथा फल फलोरी, गीलो मेवा, तर मेवा सब तरहके नारंगीको पणा वगेरे आवे । पाछे श्रीनाथजी। खेलावने तिलक करि बीड़ा २ पास धरने । श्रीफल २ रुपैया २) भेट धरने । आरती चूनकी करनी, राई, लोन, न्योछावर करनी । ये सब एक ही स्वरूपको करनों। औरकूँ नहीं होय । पाछे हाथ खासा करके थार साँजनो। भोग धरनो। समय भये भोग सरावनो। बीडा२बीडी धरनी। पाछे नित्यक्रम खेल करनो। रंग उडावनोनित्यक्रम आरती करनी।। __फाल्गुन वदि ८ वस्त्र श्वेत हरीमगजीके । पाग हरी खिड़कीकी । दार छड़ियल, कढ़ी डुबकीकी। हरे चनाकी दार पिसीको मोहनथार सेर 5॥ को घी सेर ॥ बूरा सेर ॥ इलायची मासा ४॥ फाल्गुन बदि ९ वस्त्र सुपेद, पाग छज्जेदार । बागो चाकदार छापाके ॥ ___ फाल्गुन वदि १० वस्त्र लाल मगजीके । बागो वेरदार । पाग गुलाबी खिड़कीकी। चोली गुलालकी शृङ्गारहोतमें धरावनी । कर्णफूल २ चन्द्रका सादा छोटी। खिलावत समय चोली नहीं खिलावनी॥ _फाल्गुन वदि ११ वस्त्र पतङ्गी । शृङ्गार सुकुट काछनीको। मुकुट सोनेको । सामग्री तथा एकादशीको फराहार ॥ PISORINESTE Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समयमा फाल्गुन वदि १२ वस्त्र श्याम मगजीके । बागो चाकदार। पाग श्याम खिड़कीकी॥ फाल्गुन वदि१३वस्त्र श्वेत, बागो घेरदार । पाग पतङ्गी गोल॥ फाल्गुन वदि १४ वस्त्र पीरे वसन्ती, बागो चाकदार। मस्तकपर दुमालो॥ . __ फाल्गुन वदि ३० वस्त्र चोवाके । पाग चोवाकी रुपेरी खिड़कीकी । बागो घेरदार ॥ ___फाल्गुन सुदि १ वस्त्र श्वेत, केशरी कोरको । चोली केशरी। पाग श्वेत केशरी खिड़कीकी । बागो चाकदार ॥ ___ फाल्गुन सुदि २ को गुप्त उत्सवको मनोरथ करे । ताको प्रकार-वस्त्र पतंगी। बागो चाकदार । संध्या आरती पीछे शृंगार | बड़ो करि दोऊ स्वरूपनकूँ श्वेत फागुनिया सुनेरी किनारीके । | लेंगा चोली केशरीछापाके किनारीदार,आभरण हीराके,नीचेकी झाबीश्रीठाकुरजीको सूथनकी श्रीस्वामिनीजी। धरावनी। दूसरो बागो चाकदार। सेहेरो, दुमालो चूड़ा, तिमनियां कण्ठी २ नथ ढेड़ी। बाजू पोहोंची । कटिपेच हरन्तफूल। कलङ्गी दोऊ स्वरूपनः धरावनी । श्रीस्वामिनीजीकूँ माला ४ धरावनी । बेनी दोऊ स्वरूपनः धरावनी । आरसी दिखावनी । वेणू दोऊन। धरावनी । आरसी दिखाय शृंगार जब करनी पड़े तब येही आभरण याही प्रमाणे धरावने । श्रीठाकुरजीतूं माला ५ धरावनी। शयनमें नारंगी भात करनों। चोखा सेरऽ॥ बूरो सेर ऽ२ कस्तूरी | रत्ती २ केसर मासे ३ नारंगीको रस सेर 5१ चोखा सेर 5॥ दार छड़ियल सेर ३१ शाक पतरो हरे चनाको करनो। पापड़ ६ शयन भोग धरिके तिवारीमें सब तैयारी करनी। कुञ्जकेला ८की बाँधनी पहले फुलेल लगावनो। पटापे बिछाय शय्यापे पधरावनो। -- - - -----....., . ............ Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ meanRIAPAN - D - भोग साजनो । सामग्री बुड़कलकी मैदा सेर ऽ२ चनाकी दार सेरऽ२ दूध सेर 5१० घी सेरऽ२। खाण्ड सेर 5८ इलायची तोला । हरे चनाकी कचौरीको मैदा सेर ऽ॥ चणा सेर 52॥ घी सेर 50 फीकी मीठी सामग्री तो या लिखे प्रमाण करनी। चारि गादी। चौपड़ नहीं । दोऊ शय्यानके बीच में सुपेद बिछायत करनी। पिछवाई खेलकी बाँधनी । शयन भोग सरावनो । पाछे पाटपे पधराय बीड़ी अरोगावनी । नित्यकी माला धराय खिलावने । शलाकासों चन्दनके टपका लगावने । चोवाके टपका लगावने । गुलाल अबीरसों थोरो थोरो खेलावनो। आभरनपे सर्वथा न पड़े दोनों स्वरूपनकूँ खिलावनो। सबकूँ | नहीं खिलावने । फिरि आरसी दिखावनी । आरती करनी। राई लोन नोछावर करनो । पाछे शृंगार सुद्धा पोदावनो। खेलको साज सब उत्सव प्रमाणे धरनो। अरगजाकी कटोरी नित्यक्रमसे सब सम्भारि अनोसर करनो॥ फाल्गुन सुदि ३ सबेरे मंगलामें घुपि ओटिके विराजे । तासों श्रृंगार करिबेको काम नहीं । पाछे श्रृंगार वस्त्र श्वेत, बागो चाकदार । कुल्हे पगा तामें गोटी क भी किनारी सुनेरीकी | करनी । वस्त्रकों किनारी नहीं करनी ॥ फाल्गुन सुदि ४ वस्त्र गुलाबी । शृंगार मुकुट काछनीको । ठाड़े वस्त्र सुपेद । सामग्री खोवाकी गुझियाको मैदा सेर ॥ घी सेर ॥ खोवाको दूध सेर ऽ३। बूरा सेर ॥ इलायची मासा ३ खाँड़ सेर ॥ पागवेकी ॥ फाल्गुन सुदि ५ वस्त्र श्वेत, बागो चाकदार । पाग पतंगी केसरी खिड़कीकी । लहँगा, चोली, फेंट केशरी ॥ BARARIAGHETANDOCUMERICASSNESCODANARTMENARIROINSITERamSTREENAKARMATIMESSA C HAR semen mmmmmuseme BARDLEASEERRERARADARASTOMERRIENOINDIRETRam - mmmm nt o - Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फाल्गुन सुदि६ता दिन अभ्यंग । वस्त्र केशरी, बागो चाकदार कुल्हे केशरी । गोकर्ण पतंगी। राजभोगमें बूंदीके लडुवाको बेसन सेर ॥ पी ॥ खांड़ सेर 5॥ सुगन्द मासा ॥ और अनोसरको भोग। चन्द्रकला केशरी, ताको मैदा सेर १ घी सेर 5१ खाँड़ सेर ऽ४ केसर मासा ४ बरास रत्ती २ इलायची मासा ४ पनोंलाके पान ५० मूंगकी पिट्टी सेर 59 की एक पान बीचमें एक पान ऊपर बीचमें पिट्ठी वेसवार मिलायके धरनी। याको घी सेर ॥॥ ___ फाल्गुन सुदि ७ वस्त्र श्वेत सुनहरी किनारीके बागो चाकदार । सुनेहरीके खिड़कीकी पाग कतरा ॥ __फाल्गुन सुदि ८ वस्त्र गुलाबी वसन्ती । बागा चाकदार। टिपारो। डोलकी सामग्रीकी भट्ठीपूजा करनी॥ फाल्गुन सुदि ९ वस्त्र श्वेत । पाग पीरी वसन्ती । पाग छज्जेदार । बागो चाकदा॥ फाल्गुन सुदि १० वस्त्र श्वेत, पाग गुलाबी वसन्ती घेरदार॥ ___ फाल्गुन सुदि ११ कुंज एकादशीको उत्सव । वस्त्र केशरी। मुकुट मीनाको । राजभोगमें सामग्री-सूरनको मोहनथार। सूरन सेर ॥ घी सेर ॥ खाण्ड सेर 5१॥ इलायची मासा १ भुजेना २ शाक २ बूंदीकी । छाछ पाटियाकी राजभोगमें धरिके कुंज बाँधनी। केला, माधुरी लता लगाइये । आँबाके पत्ता, फूल लगाय कुंज बाँधिये । पाछे समय भये भोग सरायके कुंजमें पधराइये । कुंजमें खेलत समय कछु दूधघरकी सामग्री भोग धरे। फिर प्रभुकों खेलाइये । खेल भारी करनो फिर कुंजको खेलाइये। केशर, गुलाल, अबीर, चोवासों छिड़किये और ठाडो स्वरूप होय तो वेत्र श्रीहस्तमें धरिये । वेणु कटिमें CommenUMIONLINEELEASELECRETIMADNEPAGER । - Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मा -- ARRIER M - RMIRETREree । . mmsNRNER % धरिये । कुंजसों खिलावत डोल गाइये। अनोसरमें शय्याके पास एक थारमें फूलमाला,गुलाल, अबीर, केशर, चोवा सब साजके धरनो । आरती थारीकी करनी । राई, लोन, नोछावर करनो। अनोसरकी सामग्री २ करनी। घेवरको मैदा सेर ॥ पी सेर ॥ खाँड़ सेर ३२ बरफी सेर 5॥ इलायची मासा ३ बरास रत्ती १ पकोड़ी उड़दकी पिट्टी सेरऽ। घी सेरऽ॥ छोक्यो । दही सेर ऽ। लूण, मिरचकी, कटोरी।बूराकी कटोरी । सन्ध्या आरती पाछे कुन खुले । साँझा पाग गोल केशरी । मुकुट फूलको धरावनो॥ फाल्गुन सुदि १२ वस्त्र श्वेत मगजी। बागो घेरदार । चोली || गुलाबी । लाल गोटीकी पाग छज्जेदार ॥ __फाल्गुन सुदि १३ वस्त्र श्वेत । वागो चाकदार । फेंटा चोवाके सुनहरी किनारीको । सामग्री मनोहर ॥ - फाल्गुन सुदि १४ वस्त्र श्वेत । बागो चाकदार । पाग पतङ्गी सुनहरी खिड़कीकी । फेंटा, चोली, लहेङ्गा । अथ डोल होरीके बीचमें खाली दिन होय ताको शृङ्गार । शृङ्गार वरस दिनमें लिखेहैं तिनमें जो रह्यो होय सो करनो।और जो दिन बराबरके भये होंय तो लिखेहैं सो करनो । वस्त्र चोवाके बागो घेरदार । पाग गोल। पटुका, लहेंगा, चोली केसरी। सामग्री राजभोगमें । ऊकरकी मूंगकी दार सेर ॥ घी सेर ॥ बूरा सेर 5॥ शृंगार | लिखेहैं । तिनमें कोई दिन बड़े तब शृंगार येही करनो। चोवाके वस्त्र पहरे होंय सो धरावने । चन्दनके छीटा लगे होंय सो पोंछि डारने । वाके ऊपर चोवाको हाथ फिरावनो।तीसरे वर्ष नये बनें। फाल्गुन सुदि १५ होरीको उत्सव । सो ता दिन सब दिनको नेग दहीकी सेवके लड्डुवाको, मैदा HIMIRMIREASURNAMROPERTRENIECTARIATICARRHdcowomainleoamdishairavaansooranfus Hamar a thitualcomenessmamernme REASO - - - - v Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेर ऽ२ घी सेर ऽ२ बूरो सेर ऽ६ दही सेर ऽ४ इलायची मासा६ अभ्यंग होय । वस्त्र श्वेत । बागो घेरदार । पाग वारकी खिड़कीकी । ठाडे वस्त्र लाल । चन्द्रका सादा । आभरन वसन्ती। कर्णफूल ४ शृंगार मध्यको, गोपीवल्लभमें नित्यकी सखड़ीके पलटे सेवको थार आवे सेव सेर ऽ॥ खाण्ड सेरऽ१॥ इलायची मासा 5॥ राजभोगमें पूवाकी सामग्रीको चून सेर ७१ घी सेर 59 गुड़ सेर ३१ चिरोंजी । कारी मिरच पैसा ४ भरि । छाछिबडा, शाक ४ भुजेना २ खीर सञ्जावकी, चोखाकी करनी साज सब पलटनो । खेल भारी करनो । सखडीमें मेवा भात पाटीयाकी, तीनकूड़ा, छड़ियलदार । साज अनोसरमें सब रहे खेलको शय्याके पास अतरकी शीशा रहे। वाही दिना फेंटमें गुलाल, अबीर होय । और नित्य तो गुलाल ही फेंटमें होय । और . धूरेड़ी जुदी होय तो अबीर फेंटमें भरनो। और नित्य फूलकी। दोछड़ी धरनी २ साँझको शृंगार बडो होय । हमेल सोनेकीही पहरें । शयनमें वेत्र सोनेको ठाड़ो करनो । राल सेरऽ१ उडे । | तामें अबीर सेरऽ१ मिलायके उड़े। गुलाल सेरऽ१ उड़ावनो। |ता पाछे आरती करनी । अनोसरमें थार १ भोग धरनो। ताको प्रमाण । बरफी सेरऽ। बदाम 5= पिस्ता ऽ= मिश्रीऽ दाखऽ= छुहारे 5= खोपरा 5- बीज कोलाके 5 खरबूजाके 5= बीड़ा ४ यह थालमें साजके शय्याके पास ढांकिके धरनो।जो होरीको डोलको उत्सव भेलो होय तो अभ्यंग पहले ही दिन करावनो। और शृंगार पहले दिन होरीको लिख्यो है ता प्रमाण करनो। और गोपीवल्लभमें सेव तथा राजभोगमें पूवातो होरी होय ताही || दिन अरोगे । और सखड़ी अनसखड़ीको प्रकार पहले दिन । अरोगे । सामग्री-ऊकरकी मूंगकी दार सेर ॥वी सेर ॥ बूरो। manita । । Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । SUNAININDya - । |सेर ७१ और वेत्र पहले दिन नहीं धरे । रार गुलाल पहले दिन | नहीं उड़ावनी। होरी होय तादिन उड़ावनी । निज मन्दिर डोलके पहले दिन धोवनो। सब साज बाँधिके तैयार राखनो । जरीको साज बाँधनो। सब ठिकाने गुलाल पहले दिन काढनो ॥ चैत्र वदि १ डोलको उत्सव । जादिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र होय ता दिना डोलको उत्सव माननो। पूनमको होय तो पूनमको करनो। दूजको होय तो दूजको करनो। बड़ो बालभोग खाजाको सो एक ओर पगे ताको मैदा सेरऽ२ ची सेरऽ२ खाण्ड सेरऽ२ वस्त्र श्वेत भाँतदार अस्तर मलमलको, पाग छजेदार, ठगड़े वस्त्र लाल, चन्द्रका सादा, आभरण वसन्तके, कर्णफूल ४ शृंगार चरणारविन्दताई हमेल ताईतकी । राजभोग सामग्री घाँसके लडुवाकी ताको उड़दको चून से 5 घी सेर 5१ खाँड़ सेर 5४ इलायची मासा ४ और सब प्रकार सखडीमें छाछिबड़ा, तीनकुड़ा, छड़ियलदार और सब सखड़ीमें पहले प्रमाण । अनसखड़ी पहेले दिन होरीके प्रमाण । पहले दिन डोल रात्रिकों बाँधि राखनो। खम्भ श्वेत वस्त्र तथा डाँडी लपेटिये। खम्भानसों केला बाँधिये । माधुरीकी लता बाँधिये, डांडीकूँ तो आँबफे मौर बाँधिये । डोलको नई झालर बाँधिये डोलके भीतर श्वेत वस्त्र बिछाइये । या प्रकार डोलकों साजनो। अब डोलकी सामग्री लिखेहें। गूंझा, मठडी, सकरपारा, सेवके लडुवा, छूटी बूंदी || बाबर, केशरी तथा सुपेद, चन्द्रकला केशरी, वा फेनी केसरी, इन्द्रप्ता, काँजी, चकली, फड़फड़ीया, दाल चणाकी ए सब DIRENEMIERE NEPAL . - - RANDU HE RERARINAMEANI Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - । अन्नकूटसों आधे सेवको बेसन सेरऽ१ छाछके बड़ाकी दार सेर 59 मैदाकी पूड़ीको मैदा सेर 5१ भुजे मेवा राधाष्टमी प्रमाण । भंडारके मेवा छेलेभोगमें दूध, बासोंदी, बरफी, पेडा, दही मीठो जीराको, शिखरनबड़ी, बिलसारू, सधाना, दाख मिरचके सब तरहके सधाना, शाक ८ भुजेना लपेटमा २ सादा २, फलफूल, चनाके होरा, तीनो भोगमें अवश्य धरने । शंखोदक भये पाछे होरा धरने । और दूधघरकी सामग्री। पेड़ा बरफी केशरी, मेवाटी गुझिया, खोवाकी गोली, कपूरनाड़ी, खरमंडा, वगेरे बासोंदी, अधोटावगेरे जो बनि आवे सो । पगेमा मेवाकी कतली लडुवा पगेमा वगेरे। खांडघरमें जो बनिआवे सो॥ अब पहले भोगमें बड़ी सामग्रीमेंसों दोय दोय नग साजने। पतरी सामग्रीमेंसों बटेरा साजने । दूधघरकी सामग्रीमेंसों दोय दोय नग साजने । काँजी तथा छाछिके कुलड़ा साजने फड़पड़ीया सबनके बटेरा साजने । सब तरहके सधानेके बटेरा। एक एक बटेरी,लोन, मिरचकी साजनी बूराको बटेरा साजनो। फल फलोरीके छोटे छोटे दोना साजने पहलेते दूनों दूसरे भोगमें साजनो। और सब रहे सो तीसरे (छेले) भोगमें साजकें धरनो। शाक, भुजेना, मैदाकी पूड़ी, भुजे मेवा और भोगमें नहीं आवे, छेले भोगमें धरने । और अब काँजीके मसालेको प्रमाण उडदकी दार सेर ऽ२ तामें सूंठ सेर ऽ। राई पिसी सेर । सौंप सेर = पीपर 5- हींग ऽ-लूण सेर ॥ हलदी सेरऽ। जीरा = धनियाँ सेर 5=1 ___ अथ डोलमें श्रीठाकुरजी पधरायबेको प्रकार । राजभोग आरती भीतर करके डोलको अधिवासन करनो। चार खेलके साज न्यारे न्यारे करके चौकीके ऊपरधरने ता पाछे अधिवासन - Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करनो श्रौताचमन प्राणायाम करि संकल्प करनो। ॐ हरि ॐ श्रीविष्णुर्विष्णुः श्रीभगवतः पुरुषोत्तमस्य श्रीवृन्दावने दोलाधिरोहणं कर्तुं तदंगत्वेन दोलाधिवासनमहं करिष्ये । सङ्कल्प कार ता पछि । कुम्कुम्, अक्षत, डोलके ऊपर तथा सब वस्तुनके ऊपर छिड़किये । एक कटोरी गट्टीकी डोलको भोग धरिये । एक कटोरामें तुलसी मेलके ता पीछे डोलकूँ धूप, दीप करनो । पाछे तुलसी शङ्खोदक करनो। ता पीछे एकेलो घण्टा बजायके डोलकी आरती करनी। याही प्रकार अधिवासन करनो । ता पीछे घण्टा, झालर, शंख बाजत श्री प्रभूनको दंडवत करि गादी सुद्धा डोलमें पधरावने । झारी भरनी । डोल झुलावनो। थोड़ो सो खिलावनो। केशर, गुलाल, अबीर, चोवासों खिलाय पाछे धूप, दीप करि चौकी भोग धरनों साजराख्यो है सो तुलसी शंखोदक करनो। पाछे आध घड़ीको समय होय तब भोग सरावनो । आचमन मुखवस्त्र कराय बीड़ा २ धरनें । दर्शन खुलाय बीड़ी अरोगावनी । पाछे डोल झुलावनो। खिलावनो । प्रथम स्वरूप खिलावनो। पाछे गादिकूँ, पाछे झालरकूँ, पाछे डोलकूँ, पाछे पिछवाईकू सो प्रथम चन्दन, गुलाल, अबीर, चोवासों खिलावनों पाछे डोल झुलावनो।ता पाछे गुलाल, अबीर उड़ावनो। ता पाछे आरती करनी । पाछे टेरा करिके धूप, दीप करनों झारी भरनी। उपरना खेलत समय ढांकने खेल चुके तब उठायलेने । पाछे चौकी माण्डके दूसरो भोग धरनो। धूप, दीप, तुलसी, शंखोदक करनो समय बड़ी १ को करनो। समय भये भोग सरायके आचमन मुखवस्त्र करि बीड़ा ४ धरने । बीड़ी १ पाछे झुलावने । और पहिले लिखे हुए प्रमाण खेलावने । झुलावने। A MMANMOHINITIHAR MOREADINHALAR पODUCmunna Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MONISTRATHIMIT %3 | अबीर, गुलाल उड़ावने । आरती थारीकी करनी फिर टेरा देके धूप, दीप करिके झारी भरनी । जलकी हाँड़ी १ धरनी । तामें कटोरी तेरावनी। पाछे छेले भोगमें सामग्री सब धरनी । तुलसी शंखोदक करनो। घड़ी २ को समय करनो। पाछे आचमन सुखवस्त्र करि बीड़ा १६ धरने बीड़ी २ मेंस माला धरायके एक बीड़ी अरोगावनी। दूसरी बीड़ी रङ्ग उड़ायके अरोगावनी पाछे पहलेही प्रमाण खेलाइये । झुलावनो । रंग उड़ावनो। दूसरी बीड़ी अरोगायके फिर खेलावनो । गुलाल, अबीर उड़ावनो । पाछे आरती करनी, नोछावर करनी । पाछे राई, नोंन करि दूर जायके अग्निमें डारे । पाछे दण्डवत करि डोलकी परिक्रमा ३ वा ५ करनी। पाछे यथाक्रमसों सबनकों उपरना ओढ़ावने । प्रथम मुखियाजीको दूसरो मुखिया ओढ़ावे । पाछे मुखियाजी सबनको उदावे फिरि डोल झुलायके टेरा करिये। ता पाछे श्रीठाकुरजीकूँ तिवारीमें पधरायके शृङ्गार बड़ो। करिये । गुलाल आछि तरहसों पोछनों । फिरि तनीया, कुल्हें, साड़ी कVवी रंगकी धरावनी । घुघी जरीकी उढ़ाय आभरन हीराके अनोसरमें रहें सो धरावने । और अनोसर करनो। अथ साँझको प्रकार ॥ उत्थापन भोग सन्ध्या भोग भेलो धरनों। शीतल भोग उत्थापनमें धरनो । जो होरीडोल भेलो होय तो आभरन वस्त्र पहले लिखे हैं तो प्रमाण धरावने । सोनेको वेत्र श्रीहस्तमें ठाड़े धरावनों। अबीर मिलायके रार उड़ावनी । गुलाल तिवारीमें उड़ावनो। झाँझि पखावज बाजत धमार होय। पाछे आरती करनी। चैत्र वदि २ द्वितीया पाटको उत्सव । सो सूर्यउदय होते श्रीठाकुरजी जागें। मङ्गलामें दुलाई ओढ़े। जब ताई ठण्ड । RADIPI animal - mone Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ REE होय तबताई। पाछे उपरना ओढ़े । अभ्यंग होय । वस्त्र लाल जरीके । कुल्हे लाल जरीके । जोड़ चमकनों । ठाड़े वस्त्र मेघश्याम । पलङ्गपोष सुजनी बड़े कमलनकी आभरण हीराके । सामग्री पहले दिनके डोलकीमेंसे सबमेंसे राखी होय सो सब आवे। काँजी आवे । शाकभुजेना२छाछिबड़ा ।भौर आजसों मण्डली जब ताँई बने तब ताँई नित्य करनी सिंहासनके शय्याके पंखा धरने । सो धनतेरसके दिनताँई धरने । सन्ध्या उत्थापन भेलो धरनों । शृङ्गार बड़ो होय बागो शयनताँई रहे । कुल्हे कसूंभी। और आठ दिनताई जरीके वस्त्र धरे । फिरि सुनेरी, रूपेरी छापाके वस्त्र नये सम्वत्सरताँई धरे। रूपेको कुना अक्षय तृतीयाताई धरनो॥ चैत्र वदि ३ वस्त्र सुपेद जरीके । शृंगार मुकुट काछनीको। और गरमी होय तो शयनमें उपरना ओढ़े । नहीं तो बागा रहे ॥ - चैत्र वदि ४ वस्त्र लाल जरीके । दुमालो झूटको सेहरोधरे। ठाड़े वस्त्र श्याम॥ चैत्र वदि ५ वस्त्र पीरी जरीके । शृङ्गारमुकुटको, गरमी होय |तो शयनमें उपरना धरावनो॥ चैत्र वदि ६ वस्त्र सुपेद जरीके । शृंगार मुकुट काछनीको।। आभरन माणिकके ॥ चैत्र वदि ७ वस्त्र गुलाबी जरीके । बागो चाकदार । पाग छज्जेदार । चन्द्रका चमकनी । ठाड़े वस्त्र हरे॥ चैत्र वदि ८ वस्त्र श्याम जरीके । बागो घेरदार । पाग गोल कतरा धरे। ठाड़े वस्त्र पीरे ॥ चैत्र वदि ९ वस्त्र लाल छापाके बीचको दुमालो । ठाड़े वस्त्र श्याम॥ Remenuencetammanmamunana anRIDHARMIRMIRENINNERSONAIRE Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AMERREDIC MAHARANA MARIYA - चैत्र वदि १० वस्त्र हरे छापाके । बामो चाकदार । पाग छज्जेदार । ठाड़े वस्त्र लाल । कलगी लूमकी ॥ चैत्र वदि ११ वस्त्र हब्बासी छापाके । शृंगार मुकुट काछनीको । सामग्री बरफीकी॥ - चैत्र वदि १२ वस्त्र पीरे छापाके । फेंटा, ठाड़े वस्त्र श्याम । चन्द्रका कतरा चमकनो। सामग्री माखन बड़ाकी । मैदा सेर ॥ पी सेर ॥ बूरा ॥ माखन ॥ - चैत्र वदि १३ वस्त्र गुलाबी छापाके टिपारो धरे । आभरण पन्नाके । सामग्री दहीकी सेवके लडुवा । मैदा सेर 5॥ दही सेर 5॥ घी सेर ॥ खाँड़ सेर 5१ ॥ . चैत्र वदि १४ वस्त्र श्याम छापाके । बागो खुले वन्दको। पाग गोल । ठाड़े वस्त्र पीरे ॥ ___ चैत्र वदि ३० वस्त्र सोसनी छापाके । बागो चाकदार । पाग छज्जेदार । चन्द्रका चमकनी । ठाड़े वस्त्र हरे । सामग्री दहीकी बँदीके लडवा। बेसन सेर ॥ दही सेर ७२ घी सेर 5१ खाण्ड सेर ७३ इलायची मासा ३॥ - अथ मेषसंक्रान्तिकी विधि। जा दिन मेषसंक्रान्ति होय ता दिन वस्त्र गुलाबी और बागाधरत होय तो चाकदार धरने । जोबागा नहीं धरत होय तो पिछोरा धरावनो पाग छज्जेदार। चन्द्रका सादा, आभरण हीराके । कर्णफूल २ श्रृंगार हलको करनो । राजभोगमें सामग्री ॥ __ सकरपाराको मैदा सेर ऽ॥ घी खाण्ड बराबर । दार तुअरकी। सतुआ भोग धरबेको प्रकार लिखेहैं ता प्रमाण करनो। सतुआ सेर 5३॥ तामें दोय पाँतीके चना, एक पाँतीके गेहूँ Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - | wasendinsilamus Harami जब धरनो तब याही प्रकार करके धरनो। घी सेर ७४ बूरो। सेर ३७ अधोटा दूध सेर ३१ मखाना 5- चिरोंजी 5% खरबूजाके बीज 5= कोलाके बीज 5= सब भुजे तुलसी सूकी। करके समर्पनी । शंखोदक नहीं करनो। धूप, दीप करनो । जो संक्रान्ति श्रीमहाप्रभुाजीके उत्सवके दिन होय तो सतुआ उत्स के दिन धरनो । और संक्रान्तिको भोग मङ्गलामें अथवा गोपीवल्लभमें आयो होय तो राजभोगमें घोरयो सतुआ धरनो। और जो राजभोगमें सतुआ भोग धरयो होय तो दूसरे दिन घोरयो सतुआ राजभोगमें धरनो । और जो संक्रान्ति उत्सवके दिन बैठी होय तो घोरयो सतुआ उत्सवके दिन राजभोगमें आवे। और सतुआके सात डबरा । तामें घी, बूरो तथा दोय दोय पैसा रोकड़ी धरने । श्रठिाकुरजांक संकल्प करनो॥ चैत्र सुदि १ सम्वत्सरको उत्सव । तादिन अभ्यङ्ग होय । सुजनी नील कमलकी पलङ्गपोस। मङ्गलामें उपरना ओढ़े । वस्त्र लाल छापाके । वागा खुले बन्ध । कुल्हे लाल । जोड़ सादा। ठाड़े वस्त्र मेघश्याम । आभरन हीराके। शृंगार भारी करनो। पिछवाई लाल छापाकी। मिश्रीकी डेली । नीमकी कोंपल गोपीवल्लभमें धरनी । राजभोगमें सामग्री मनोहरको चोरीठा मैदा सेर 5॥= गिजड़ी सेर ॥ घी सेर ऽ१ खाँड सेर ऽ४ इलायची मासा ४ और प्रकार सब डोलके राजभोगमें हैता प्रमाण । सखड़ीमें सेव तीनकूड़ा, छड़ीअलदार। राजभोगमें मंडली अवश्य बाँधनी। आरती पीछे नयो पञ्चांग बँचवावनो । नोंछावर करनी और गरमी होय तो भोगके ठिकानेके पंखा चडावने । जो गरमी होय तोबाहिर HerCHARDEMONS DOWERemem ommam manoramanuary Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ना DEMA - पौढ़े नहीं तो रामनौमीते बाहिर तिवारीमें पौढ़ें। और मंगला, गोपीवल्लभ शयन, तिवारीमें होय राजभोगके दर्शन निज || मन्दिरमें होंय । जब बाहिर पोढ़े तबसे शयनमें वागो नहीं रहे । आड़बन्ध धरावनो । दुपहरेके अनोसरमें । शय्याकी चादर चुनिके पंगायत धरनी॥ | चैत्र सुदि २ पहली गणगौरि, ता दिन वस्त्र लहरियाके | बागो चाकदार । पाग छज्जेदार । सामग्री खोवाकी गुझिया ॥ चैत्र सुदि ३ दूसरी गणगौरि, ता दिन वस्त्र गुलाबी। शृंगार || मुकुट काछनीको। आभरन हीराक तथा माणकके मिलायके धरावने । सामग्री खोवाकी मेवाटी ॥ चैत्र सुदि ४ तीसरीगणगौरि,ता दिन वस्त्र एक धारी चूनड़ीके टिपारो धरे । आभरण हीराके । बासोंदीकी सामग्री ॥ . चैत्र सुदि ५ वस्त्र चौफूली चूनरीके । बागो चाकदार। | टिपारो श्याम धरे । ठाड़े वस्त्र सुपेद ॥ चैत्र सुदि ६ गुसाईजीके छठे पुत्र श्रीयदुनाथजीको उत्सव । वस्त्र अमरसी बागो चाकदार श्रीमस्तक कुल्हे जोड़ चमकनो आभरण पन्नाके । ठाड़े वस्त्र लाल। सामग्री मूंगकी बून्दीके लडुवाको, मूङ्गको चून सेर ऽ॥ घी सेर ऽ॥ खाँड सेर 5१॥ इलायची मासा २ राजभोगमें शाक दोय भुजेना २ बूंदीकी छाछिकी हांड़ी॥ चैत्र सुदि ७ ता दिना धोती, पाग केशरी। बागो खुले बन्धको श्याम । ठाड़े वस्त्र लाल ॥ चैत्र सुदि ८ वस्त्र कसूमल, बागो चाकदार , पाग छज्जेदार आभरण हीराक । चन्द्रका सादा ठाड़े वस्त्र पीरे। सामग्री मोहन - Pea Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - am - - - - थारको बेसन सर ७॥ यामें मिलायबेको खोवासेर 5॥ घी सेर । 5१ खाण्ड सेर ऽ३॥ इलायची मासा ४ केशर मासा ३॥॥ चैत्र सुदि ९ रामनवमीको उत्सव । ता दिन अभ्यङ्ग होय । वस्त्र केशरी । बागो चाकदार । सूथन लाल अतलसको। पटुका केशरी, कुल्हे केशरी, जाड़ सादा चन्द्रका ९ को ठाड़े वस्त्र सुपेद । आभरण हीराके पलंगपोस । राजभोगमें खोवाकी गुझिया। ताको मैदा सेर ॥ घी सेर ॥ पाकवेकी खाँड़ सेर ॥ भरिवेको खोवा सेर = बूरा सेर ॥ इलायची मासा १॥ फूलमण्डलीअवश्य करनी । पञ्चामृत तथा उत्सवभोगको प्रकार वामनजी प्रमाण । राजभोग सरे पाछे पञ्चामृतकी तैयारी करनी । दूध ॥ दही । पीs- बूरो ॥ मधु सेरऽ= पट्टा केलाको पत्ता पिछावनों । ताके ऊपर सब साज धरनो । जलको लोटा १ यमुनाजलकी लोटी १ तथा सङ्कल्पकी लोटी १ और एक तबकड़ीमें कुम्कुम्, अक्षत और अरगजाकी कटोरी । और एक पड़पीपें पञ्चामृत करायवेको शंख धरनों । एक लोटा तातो जलको सुहातेको समोयके। एसे सब तैयारी करके सिंहासनके आगे मन्दिर वस्त्र करि कोरी हलदीको अष्टदल कमल करि ताके ऊपर परात माड़िये। तामें पीढ़ा बिछाय तापें रोरीको अष्टदल कमल करि तापें पीरो || दरियाईको पीताम्बर दुहेरो बिछावे और पंचामृतको साज सब पास धरिये दर्शनको टेरा खोलनो। पाछे घण्टा, झालर, शंख, बाजत झांझ, पखावज बजे कीर्तन होय । पाछे प्रभुसों आज्ञा || मांगके छोटे बालकृष्णजीकूँ अथवा सालगरामजीकू अथवा । श्रीगिरिराजजी. पीढ़ा ऊपर पधरावने । ता पीछे चरणार|विन्दमें महामन्त्रसों तुलसी समर्पिके पाछे श्रोताचमन प्राणायाम | - - - Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NARENDRIYASEENA M ARNES m o malliamsomeom करि हाथमें जल अक्षत लेके संकल्प करनों। “ॐ हरिः ॐ श्रीविष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयप्रहरार्दै श्रीश्वेतवाराहकल्पे | वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे तस्य प्रथमचरणे बौद्धावतारे जम्बूद्वीपे भूलॊके भरतखण्डे आर्यावर्त्तान्तर्गते ब्रह्मावर्तेकदेशेऽमुकदेशेऽमुकमण्डले मुकक्षेत्रेऽमुकनामसंवत्सरे सूर्य उत्तरायणे वसन्तौ मासोत्तमे मासे श्रीचैत्रमासे शुभे शुक्लपक्षे नवम्याममुकवासरेऽमुकनक्षत्रेऽमुकयोगेऽसुककरणे एवं. गुण विशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौश्रीभगवतः पुरुषोत्तमस्य श्रीरामावतारप्रादुर्भावोत्सवं कर्तु तदंगत्वेन पञ्चामृतस्नानमहं करिष्ये" यह पढ़के जल अक्षत छोड़नो ता पीछे तिलक कीजे, अक्षत लगाइये दोय दोय बेर । बीड़ा २ धरिये और पञ्चामृतक कटोरानमें तुलसीदल महामन्त्रनसों पधरावने । पाछे शङ्खमें तुलसी पञ्चाक्षरमन्त्रसों पधरावनी । पाछे पञ्चामृतस्नान कराइये । पहले दूध, पाछे दही, घृत, बूरो, सहत पाछे एक शङ्ख दूधसों स्नान करायके प्रभुके ऊपर फेरिलेनो। पाछे शीत जलसों पाछे चन्दन लगायके फिर सुहाते जलसों कराय अङ्गवस्त्र करावनो। पाछे विन] श्रीठाकुरजीके पास गादीपे दक्षिण आडाक कोनेपे पधरायके पीतांबर उढ़ाइये उनको फूलमाला धराइये । विनकू तथा श्रीठाकुरजीको तिलक अक्षत दोय दोय बेर लगाइये बीडा २ धरने । घण्टा झालर शङ्ख बन्द राखने । टेरा करनो धूप दपि करनों चरणारविन्दमें तुलसी समर्पनी। शीतल भोग मिश्रीके पणाको धरनो । पाछे उत्सव भोग धरनो। सामग्री बूंदी, शकरपारा, अधोटा दूधघरकी सामग्री धरनी। | जीराको दही, मीठो दही, लण मिरचकी कटोरी, फलाहारको - Page #175 --------------------------------------------------------------------------  Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INTERPRONSTONE सामग्री इमरतीकी । दार सेरऽ। घी सेर । खाँड सेर। इलायची मासा ॥ दार तुअरकी॥ वैशाख वदि २ वस्त्र गुलाबी, पिछोड़ा, पाग छज्जेदार । ठाड़े वस्त्र हरे। चन्द्रका चमकनी॥ वैशाख वदि ३ पञ्चरङ्गी लहरियाको । पिछोड़ा। दुमाला। खूटको । सेहरो धरे । ठाड़े वस्त्र पीरे ॥ - वैशाख वदि ४ दुहेरो मल्लकाछ टिपारो । तोरामल्लकाछ ऊपरको पटुका लाल । नीचेको मल्लकाछ पटुका पेहेच हरयो । ठाड़े वस्त्र सुपेत ॥ वैशाख वदि ५ एक धारी चूदरीके शृंगार मुकुट काछनी । वैशाख वदि ६ वस्त्र गुलेनार । धोती उपरना। पगा शयन मंगला पर्यन्त रहे । ठाड़े वस्त्र हरे । चन्द्रका सादा । ढेड़ी बन्दी धरे॥ वैशाख वदि धोल गीत बैठे । वस्त्र चूंदरीके । शृंगार मुकुट काछनीको । आभरण पन्नाके । सामग्री पपचीको, मैदा चोरीठा सेर ऽ। घी सेर । खाँड़ सेर । वैशाख वदि ८ तथा ९ को श्रृंगार जो आछो लगे सो करनो। वैशाख वदि १० वस्त्र कराँभी पिछोड़ा पाग छज्जेदार । शृंगार मध्यको । कतरा ४ चन्द्रका सादा ॥ वै० वदि ११ श्रीआचार्यजी महाप्रभुजीको उत्सव । पिछवाई तथा साज सब केशरी । अभ्यंग होय । पलंगपोस सब साज उत्सवको वस्त्र केशरी कुल्हे सूथन पटुका, बागो चाकदार । ठाड़े वस्त्र सुपेद श्रृंगार सामग्री सब गुसांईजीके उत्सव प्रमाण । खरबूजाको पणा। शीतल भोग ओलाको । संक्रान्ति होय तो घोरयो सतुआ धरनों। और आजके दिनसों - SA D .. - -. -. - - - Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - NERITamamurrammar - शय्याकी साँकल नित्य अनोसरमें चढ़ावनी पंगायतमें चादर चुनके धरनी । सो जन्माष्टमीके पहले दिन ताई। और जो श्रीपादुकाजी विराजते होय तो गोपीवल्लभ भोग आये पादुकाजीकूँ स्नान करावनो। प्रथम सूकी हलदीको अष्टदल करके ऊपर परात धरके तामें पटा धरनो । तामें अष्टदल कमल कुम्कुम्को करके पधरावने दर्शन खोलनो। झालर घण्टा बाजत शंख बाजत झाँझ पखावज बाजत बधाई गावे तिल अक्षत संकल्प करके दूधसों स्नान करावनो पाछे अभ्यंग होय । चादर केशरी। कुल्हे धरावनों । राजभोगमें सेव छाछि बड़ा, धोआदार । तीनकूड़ा। श्रीगुसांईजीके उत्सव प्रमाण और सामग्री पाँचों भात । चोखा, मूंग, बड़ीके शाक पत्तल २ पापड़, तिलबड़ी, ढेंबरी, मिरच बड़ी, भुजेना ८ कचरिया ८ अनसखड़ामें चन्द्रकला सेर 5१ मनोहर सेर ॥ और सब दिनको नेग बूंदी जलेबीको । जलेबीको मैदा सेर ७२ घी सेर २ खाँड़ सेर 5६ बूंदी सेरऽ३ की घी खाँड बराबरको। शकरपारा सेर 51 के । सीरा । शिरखन बड़ी। मैदा पूड़ी। सेव बेसनकी झीने झझराकी । चना तथा दारके फड़फड़िया छाछिबड़ा खीर दो तरहकी। सेव तथा संजाबकी। रायतो २ शाक ८ भुजेना ८ सँधाना ८ दूधघरको प्रकार बरफी केशरी। पेड़ा, मेवाटी, केशरी, अधोटा, खोवाकी गोली, मलाई दूध | पूड़ी, दही खट्टो मीठो, शिखरन, सब तरहकी मिठाई, साबोनी गजक गुलाबकतली वगेरे । मेवा भण्डारके बदाम, पिस्ता वगेरे । खरबूजाके बीज वगेरे पगेमा कतली अथवा लडुवा वगेरे । विलसारु पेठा, केरीके मुरब्बा वगेरे। फलफलोरी। नीलो मेवा वगेरे सब तरहके । नारंगीको पणा वगेरे । और Hanumma rammaNIRAHASAImmunications C MAHaasartegamBAIRAN aandNEIND ११. Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PERHITRATEGRESEASEEMENTREPRESENTERESED T AMARHATION Preurosure meanmmmemommumournimmmssanmantarwasnase विगतवार सब श्रीगुसांईजीके उत्सवप्रमाण देखलेनो, पाछे | बन्धनवार बाँधनी । राजभोगको समय भये पाछे पूर्वोक्त रीतिसों सरायके तिलक भेट, नोछावर राई नोन करनों । प्रथम गुड़, तिल दूध एक कटोरीमें धरनों । श्लोक पढके पाछे राजभोग सरे पीछे आरती चूनकी करनी, घण्टा झालर शंख बाजत बधाई गावत शंख बाजत होय ! जन्मपत्र बचे जो पादुकाजी न विराजत होय तो बी तिलक भेट चूनकी आरती करनी । राई नोन नोछावर करनी पाछे नित्यक्रमकी रीति ॥ वैशाख वदि १२ शृंगार सब पहले दिनको । गरमी बोहोत होय तो पिछोड़ा धरावनो । सामग्री बूंदीके लडुवाको-बेसन सेरऽ। की दार छड़ियल कढ़ी डुवकाकी॥ वैशाख वदि १३वस्त्र कसूभी । पिछोड़ा पाग गोला शृंगार हलको। दार तुअरकी॥ वैशाख वदि१४पीरी धोती उपरना पाग गोल ठाड़े वस्त्र हरे॥ वैशाख वदि ३० वस्त्र गुलेनार। शृंगार मुकुट काछनीकी। सामग्री पूवाको-चून सेर 5 गुड़ घी बराबर चिरोंजीऽ-॥ वैशाख सुदि ३ वस्त्र गुलेनार । पिछोड़ा, पाग ॥ वैशाख सुदि २ क मल पिछोड़ा,पाग गोल चन्दका सादा, ठगड़े वस्त्र हरे॥ वैशाख सुदि ३ अक्षय तृतीयाको उत्सव । साज सब सुपेत बाँधनो । चन्दुआ पिछवाई सब सुपेत । बाँधनो। सब ठिकाने सुपेती चढ़ावनी । मङ्गलामें आइबँध धरे।। सगरे दिनको नेग सतुआको । ताको सतुआ सेरऽ२ घी सरेऽ२ ! बूरा सेर 5४, अभ्यंग होय । वस्त्र श्वेत । केशरी काँगरावारी ।। कोरके पिछोड़ा। कुल्हे श्वेत, तामें श्वेत रूपेरा चित्रके । ठाड़े - - -- peaseanterpro - -- - -- Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RRIERSITIESHDREAM BानाSHARENESS N ews Homsilbaniantissimmiss bloons: MADAalhamedaments - - वस्त्र केशरी आभरण मोतीके जोड़ चन्द्रका ३ को। राजभोग समय सामग्री-पकोडीकी कढ़ी, झंझराकी सेवको मैदा सेरऽ। घी सेर ॥ बूरा सेर 53॥ के लडुवा। इलायची मासा ३ | भुजेना २ शाक २ बूंदी तथा बूंदीकी छाछ राजभोगमें धरिके चन्दनमें सुगन्धी मिलावनी।चन्दन बाँधिक पानी निकासडारने । तामें केशरी, कस्तूरी, बरास, चोवा, अतर, गुलाबको, मोतिआको, केवराको और गुलाब जल ये सब मिलाय तबकड़ीमें गोला करि छत्रासों ढाँकिके पाट धरनो । कुना २ माटीके छोटे बड़े जोय जल भरिके पटोपें ढाकिके धरने । गुलाबदानी गुलाबजलसों भरिके सुपेद चोली उढ़ायके पाटपर धरने । और पंखा छोटे बड़े पंखी नवी झालरदार। पाछे राजभोग सरायके माला धरायके अधिवासन करनो। श्रोताचमन प्राणायाम || करिके संकल्प करनो-ॐ" हरिः ॐश्रीविष्णुर्विष्णुः इत्यादि श्रीमद्भगवतः पुरुषोत्तमस्य चन्दनोत्सवं कर्तुं चन्दनलेपनार्थ व्यजनकरणार्थ चन्दनव्यजनयोरधिवासनमहं करिष्ये” पढ़के कुमकुम् अक्षत छिड़कनो। गट्टीकी कटोरी भोग धरि तुलसी शंखोदक धूप, दीप करि चारि बातीकी आरती करिके साज सब ठिकाने धरिये । गट्टीप्रसादीमें धरे । दर्शन खुलाय कीर्तन होय । झालर, घण्टा, शंख नाद होय । चन्दन धरावने । श्रीमहाप्रभुजीको स्मरण करि दंडवत करिये । प्रथम छोटे कुआ | कुंजारीके आगे तबकड़ीमें पधरावने और गुलाबदानी दोऊ ओर तबकड़ीमें धरनी । पाछे बड़े कुना शय्याके पास तबकड़ीमें धरने । पहले चन्दनकी गोली एक जेमने श्रीहस्तमें धरावनी। फिरि वाम श्रीहस्तमें धरावनी । फिरि जेमने चरणारविन्द घरावनी । फिरि वाम चरणारविन्दपें धरावनी । पाछे हृदयमें । - - Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धरायके पाछे पंखा नयेमेंसों छोटे दोय हाथमें लेके दोनों हाथनप्तों करके गादीके पीछले तकिया खोंसके धराइये और सब || पंखा दोय हाथनमें लेलेके करे , सो सब पंखा दोनों आड़ी पड़पापें धरे तथा शय्याके पास पड़घापें धरे । सो पंखा दशहरा ताँई रहे फिर बड़े होय जायँ ऐसे सब स्वरूपन। चन्दन धराविनो। पाछे दंडवत करि टेरा करनो । चरणारविन्दमें तुलसी समर्पनी। पाछे सखड़ीके पड़पा दोय माड़ने तिनमें एक दही भात राधाष्टमीप्रमाणे । यामें सधानों नित्यकी कटोरी धरनो। और दूसरे पड़घा घोरयो सतुआ सेर s॥ बूरो सेर 5॥ घी सेर 5= और अनसखड़ी चोकीपें धरनी। ताकी विगत-बीजके लडुवाके, बीज सेर ॥ बूरो सेर 5१ पेड़ा सेर ७॥ वासोंदी सेर 5१ पणाके ओला सेर । खाँड सेरऽ॥ पणाकी दार दोय तरहकी भीजी आध आधसेर, बदाम, पिस्ता, चिरोंजी, मखाना ये चारयों भुंजे कोलाके बीज आध छटाँक फल फूल, केरीको मुरब्बा, मीठो दही सेर ॥ जीराको दही सेर 5॥ लूण, मिरच, बूराकी कटोरी ये सब भोग धरनो धूप दीप तुलसी शंखोदक करनो। पाछे सात डबुआ जलके भरके धरने । सात डबरा सतुआके तामें टका ७ बूरो, छटांक २ घृत, काकड़ी ७, पंखा ७ इन सबको संकल्प करनो। पाछे सेवक ब्राह्मणको देनो। पाछे समय भये भोग सराय बीड़ा २ धरने।बीड़ा १ अधिकी धरनी। साज सब माण्डके जलकी परात छोटी चौकी धरनी । तामें नाव तथा खिलोना फूल तेरावने । आरती थारीकी करनी पाछे नित्यक्रमसों अनोसर करनो॥ उत्थापनमें चन्दनकी गोली सूकी होय तो गुलाब जलसों भिजोवनी । उत्थापनभोगमें पणा नित्य आवे। ताको ओला' maaaaaaaaa ESHIREEEE R - Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - ATIONAL www भिजी दार आवे सेरऽ। तामें एक दिन चनाकी तामें अजमाइन मिलावनी। दूसरे दिन सेर मूङ्गकी, तामें कछु नहीं मिला| वनो तीसरे दिन मूंगकी अंकूरी सेरऽा तामें खोपराकी चटक पैसा १॥ भर या प्रमाणे रथयात्राताई नित्य आवै ता पाछे छुकी दार आवे सो जन्माष्टमी ताई। पणो आजसों जन्माष्टमी ताई नित्य आवे । उत्थापन भोग सरे ता पाछे छोटो कुना नित्य धरनो। शृंगार बड़ो होय ता समय चन्दन बड़ो होय । और श्रीठाकुरजीके चरणारविन्दको चन्दन पौढ़ावत समय बड़ो करनो। और अरगजाकी वरनी शयनमें सुपेत आवे तामें कपूरकी सुगन्ध मिलावनी । सो रथयात्राताई आवे । सो अनोसरमें रहे। और राजभोग समय केशरी चन्दनकी बरनी आवे । सो जन्माष्टमीके पहले दिन ताँई आवे । छिड़काव दोनों बिरियां नित्य होय । टेरा खसके दोनों बिरियां नित्य छिड़कने । सो रथयात्रा ताँई और अक्षयतृतीयासों रंगीन वस्त्र नहीं घरे। और श्वेत, अरगजी, गुलाबी,चन्दनी, चम्पई ये स्नानयात्रा ताँई धरे। और केशरी छापाकी कुल्हे,टिपारो,दुमालो, फेंटा वारको,पाग गोल, पगा वारकी खिड़कीकी । अरगजी खिड़कीकी,गुलाबी खिड़कीकी, पाग वारकी फेंटा, आइबन्ध पड़दनीके शृंगारमें धरे । तब दोय कर्णफूल धरावने । चन्द्रका नहीं । अकेलो जेमनो कतराही धरावनो । और अक्षयतृतीयातूं जा उत्सव में छड़ियलदार लिखी होय तामें धोवा दार करनी, कुआ आठमें दिन पलटने। सो आषाढ़ी पून्यो ताई । फूहारा रथयात्रा ताई छूटे। रथयात्रा ताँई चौकमें विराजे । नित्य शयन आरती चौकमें होय और आषाढ़ीपुन्योताई शय्याजी ऊघाड़ी रहें ॥ .. वैशाख सुदि ४ केशरी कोरके धोती उपरना । और सब पेहले दिनको शृंगार ॥ - A D ge Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MARATHI राषIHANIMOREAMPIARRHEI pana was वैशाख सुदि ५ वस्त्र फूल गुलाबी सूथन, पटुका पाग गोल ठाड़े वस्त्र श्याम ॥ वैशाख सुदि ६ वस्त्र अरगजी, टिपारो, आजते ठाड़े वस्त्र नहीं धरे । चन्द्रका ३ ॥ वैशाख सुदि ७ पिछोड़ा सुपेद । फेंटा, कतरा २ ॥ वैशाख सुदि ८ अरगजी सूथन, पटुका पाग गोल ॥ वैशाख सुदि ९ पिछोड़ा सुपेद, पाग छज्जेदार ॥ वैशाख सुदि १० अरगजी मल्लकाच्छ टिपारो॥ वैशाख सुदि ११ वस्त्र गुलाबी, रुपेरी किनारीके । पिछोड़ा, कुल्हे, पिछवाई केसरी॥ वैशाख सुदि १२ गुलाबी धोती उपरना। पाग छज्जेदार ऊपर सेहेरो धरावनो॥ वैशाख सुदि १३ पिछोड़ा केसरी कोरको । पाग गोल ।। वैशाख सुदि १४ नृसिंह चतुर्दशीको उत्सव । सो तादिन सुपेदी रहे । अभ्यंग होय । वस्त्र केशरी । पिछोड़ो कुल्हे । जोड़ चन्द्रका सादा । आभरण मोतीके हीराकें बघनखा धरे । सामग्री-सतुआ सेरऽ॥ पी सेर 5॥ बूरो सेरऽ१॥ राजभोगमें भुजेना २ शाक २ सेव झरझराकी । बूंदीकी छाछि । छूटी बूंदी, साँझकूँ सन्ध्याआरती पीछे ग्वाल अरोगायके शृंगार सुद्धा पञ्चामृतकी तैयारी करनी। दूधऽ॥ दहीऽ। घृत 5= बूरो ॥ सहत ॥ पटा केलाको पत्ता बिछायके ताके ऊपर सब साज धरनो।जलको लोटा १ यमुनाजलकी लोटी १ तथा सङ्कल्पकी लोटी १ एक तबकडीमें कुमकुम् अक्षत पीरे और अरगजाकी कटोरी और एक पड़घी पञ्चामृत करायवेको शंख धरनो। यह सब तैयारी करनो सिंहासनके आगे मन्दिर || - - i nelione Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A NIMALMANKAR वस्त्र करिके कोरी हलदीको अष्टदल कमल करि तापे परात घरके तामें चकला बिछायके तापे कुम्कुम्को अष्टदल करि तापे दुहेरो दरियाईको पीताम्बर बिछायके श्रीप्रभुजीको माला धराय पाछे श्रीगोवर्द्धनशिला अथवा शालगरामजीको पधरावने । पाछे दर्शनको टेरा खोलनो। घण्टा, झालर, शङ्ख, झांझ, पखावज बजे । कीर्तन होत चरणारविन्दमें तुलसी महामन्त्रसों समर्पण कीजिये । पाछे श्रौताचमन प्राणायाम करिके सङ्कल्प करनो-“ॐ हरिः ॐ श्रीविष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयप्रहरार्दै श्रीश्वेतवाराहकल्पे ववस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे तस्य प्रथमचरणे बौद्धावतारे जम्बूद्वीपे भूल्लौंके भरत खण्डे, आर्यावर्तान्तर्गते ब्रह्मावत्तैकदेशेऽमुकदेशेऽमुकमण्डले ऽमुकक्षेत्रेऽमुकनामसम्वत्सरे सूर्य उत्तरायणे वसंततौ वैशाखमासे शुभे शुक्लपक्षे चतुर्दश्याममुकवासरेऽमुकनक्षत्रेऽमुकयोगेऽमुककरणे एवंगुणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ श्रीभगवतः पुरुषोत्तमस्य नृसिंहावतारप्रादुर्भावोत्सवं कर्तुं तदंगत्वेन पञ्चामृतस्नानमहं करिष्ये'। यह संकल्प पढ़के जल अक्षत छोडनो। पाछे तिलक अक्षत दोय दोय बेर लगावनो । पाछे तुलसीदल महामन्त्रसों पञ्चामृतके कटोरानमें पधरावने । पाछे पञ्चामृत करावनों । प्रथम दूध, दही, घृत, बूरा, सहत, पाछे दूधसों। पाछे जलसों पाछे चन्दनसों करायके जलसों कराय अंगवस्त्र करायके श्रीठाकुरजीके पास गादीपे दक्षिण कोने पधरावने । पाछे पीताम्बर उढ़ायके फूलमाला धरावनी । स्नानभये स्वरूपको तिलक अक्षत दोय दोय बेर करने पाछे आरती थारीकी करनी।शीतल भोग धरनो। पाछे झारी भरके धरनी। शीतल - %3 Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ amaste Raonosaune SahaESTIONARRIORMERAMANA भोग सरावनों । पाछे श्रृंगार बड़ो करनो। शयन भोग सरे पाछे फूलनको जोड़ धरावनो । पाछे उत्सवभोग, शयनभोग भेलो घरनों । तुलसी, शंखोदक, धूप, दीप करनों । सामग्री चोखा सेरऽ२ दार सेर 5॥ अड़बंगा केरीको सेव सबको बेसन । भुजेना २ लपेटमां पापड़ ६ कचरिया२तिलबड़ी, ढेबरी, शिखरन भात राधाष्टमी प्रमाणे, दही भात, घोरयो सतुआ, अक्षय तृतीया प्रमाणे । मठाकी हाँड़ी, मैदाकी पूड़ी, सेवकी खीर, खरखरी, पूरी, लीटी भुजी यह सब वामनजी प्रमाणे । बूंदी, शकरपारा, अघोटा जीराको दही, मीठो दही, लूण मिरचकी कटोरी फलाहारको जो होय सो धरनों । यह सब घर तुलसी शंखोदक धूप दीप करनों। पाछे समय भये भोग सराय | आरती करनी । शयनमें बधनखा रहे सो पोढ़त समय बड़ो करनों । और नृसिंहजीसों आठमें दिन अभ्यंग होय । ता दिन गोपीवल्लभमें दारभात नहीं आवे । सिखरन भातको डबरा आवे ऐसेही घोरयो सतुआ राधाष्टमी प्रमाणे । दार धोवा कढ़ीके पलटे अड़बंगा आवे और जलकी परात भरके राजभोगके दर्शनमें नित्य धरनी। सो रथयात्राके पहले दिन ताई और नित्य फूआरा तथा छिड़काव होय सो रथयात्रा ताँई। और राजभोगमें नित्य दही भात धरनो। और अनोसरमें पणाको कूलड़ा मोदो बाँधिके धरनो सो रथयात्रा ताई ॥ वैशाख सुदि १५ शृङ्गार सब पहले दिनको होय । सामग्री दहिथराको मैदा सेरऽ॥॥ . -- ज्येष्ठ वदि. १ वस्त्र श्वेत मलमलके । सादा शृङ्गार तनिआको। फेंटा वारको। आभरण मोतीके । कर्णफूल २ कतरा जेमनो। शृंगार निपट हलको । दर्शन खुले तब आड़बन्ध धरावनो। Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भोग आवे तब बडो करनो । और कढ़ी के ठिकाने छाछि खण्डराकी । और प्रकार नवरात्रमें खण्डरा लिख्यो है ता प्रमाण करनो और परातमें जल भरनो । और तिवारीमें चौकमें पत्थरके कटेराको हौद बाँधके तामें श्रीयमुनाजीके भावसों जल भरनो । तामें सब तरहके खिलौना, नाव, कमलके पत्ता तेरावनो । दुपहरके अनोसर में सामग्री- मगदको, बेसन सेर59 ॥ घी सेर 59 ll बूरो सेर 59 || फड़फड़ियाकी दार सेर 51 दूध सेर 59 दार चणाकी भीजी सेर | शीतल भोग आवे । मेवाकी खीचड़ी सेरs= या प्रमाणे शय्या के पास भोग धरनो । सांझको शयनमें जलमें विराजें ॥ ज्येष्ठ वदि २ शृंगार परदनीको । पाग गोल, कतरा ॥ ज्येष्ठ वदि३ गुलाबी सूथन, पटुका, पाग गोल, चन्द्रका सादा ॥ ज्येष्ठ वदि ४ चन्दनी पिछोड़ा, टिपारो, कतरा, चन्द्रका सादा || ज्येष्ठ वदि ५ मंगल भोगमें सिखरन, रोटीको दही सेर ८३ बूरा सेर 59|| तामें गुलाब जल इलायची मासा ४, बरास रत्ती ३ रोटीको चून महीन सेर 59॥ घी सेर | i ज्येष्ठ वदि ६ विना किनारीको पिछोड़ा, वारको फेंटा ॥ ज्येष्ठ वदि ७ केशरी कोरको पिछोड़ा, पाग छज्जेदार || ज्येष्ठ वदि ८ ता दिन जल भरनो । चन्दन पहरे । वस्त्र अरगजी सादा । पाग गोल | पिछोरा आभरण मोतीके । कर्णफूल २ शृङ्गार हलको । चन्द्रिका छोटी, दार धोवा, घोरचो सतुवा | अक्षय तृतीया प्रमाणे । ता पाछे राजभोग सरायके aish अरोगा के शृङ्गार चौकी पर पधरावने झारी पास धरनी । शृङ्गार भोग धरनो । आभरण सब बड़े करने । श्रीहस्त पें Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । । चरण गोली चन्दनकी धरावनी । आभरण फूलनके धरावने । श्रीअङ्गमें चन्दनकी खोर धरावनी । श्रीस्वामिनीजीकी चोलीके ऊपर चन्दनकी खोली धरावनी। और सब स्वरूपनः धरायकें माला पहिराय नित्यवत् अनोसर करनो॥ अनोसरके भोगको प्रकार । खरखूजाको पणा । बूरा सेर 5१ लुचईको मैदा सेरऽ१ घी सेरऽ। बूरो सेर 5॥ इलायची मासा १॥ और प्रकार पहले भोगमें लिख्यो है ताप्रमाण। मगदको बेसन सेरऽ॥ घीसेर 53॥ बूरो सेर 5॥ सुगन्ध । फड़फड़ियाकी दार सेरऽ। दूध सेर 5१ दार चणाकी भीजी सेरऽ। शीतल भोग आवे । मेवाकी खीचड़ी सेर = या प्रकार शय्याके पास भोग धरनो। और साँझकों भोगके दर्शन समय जलमें विराजें । केला ४ की कुञ्ज बाँधनी फुआरा छुटे । सन्ध्या आरती पाछे शृङ्गार चन्दन बड़ो कार स्नान कराय, रात्री में आभरण रहे सो आभरण धराय शयन भोग धरनो । ताको प्रमाण । रोटीको चून सेर 50 वी सेर ॥ चोखा सेर 53॥ तुअरकी दार सेंर १ कढ़ी पापड़, बिलसारु, केरीके टूक सेर ॥ खाण्ड सेर 5॥ इलायची भासा ॥ केशर मासा ॥ बरास रत्ती 1 गुलाबजल भोगधार, समय भये भोगसरायके नित्यकी रीति प्रमाण आरती करनी और अनोसरको भोग अनोसरमें रहे ॥ ज्येष्ठ वदि ९ सुपेत पड़दनी, पाग गोल, चन्द्रका सादा ॥ ज्येष्ठ वदि १० वस्त्र फूल गुलाबी, सूथन, पटुका, फेंटा॥ ज्येष्ठ वदि ११ वस्त्र अरगजी, पिछोड़ा, पाग गोल, खरबूजा २५ बूरो सेर १० खरबूजा उत्सवकू श्याम स्वरूपको। Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ STARRERem.. - sonelineKHANNEL चन्दन धरावनी । विना केसरीकी सुपेद चोली धरावनी। तामें केशरीके टपका करने ॥ ज्येष्ठ वदि १२ वस्त्र चम्पई । धोती उपरना, दुमालो, सेहरा । सामग्री उपरेटाकी मैदा सेर ॥ घी खाण्ड बराबर ॥ ज्येष्ठ वदि १३ चन्दनी आड़बन्ध, वारको फेंटा, कतरा, चन्द्रका सादा ॥ ज्येष्ठ वदि १४ सुपेद पिछोड़ा, पाग गोल, कतरा ॥ ज्येष्ठ वदि ३० वस्त्र फूल गुलाबी, मूथन पटुका, पाग दार धोवा उड़दकी सतुआ सेर ७१ घी सेर 5॥ बूरो सेर ३२ और नित्य खरबूजा ५ भोग धरने । खरबूजाको पणा राजभोगमें नित्य आवे । और आँब चले तबसों ऑबको रस नित्य राजभोगमें चालू राखनों । तब खरबूजाको पणा बन्द करनों। शयनमें बिलसारु रोटी। खरबूजाको बिलसारु करनो छड़ीयल दार 5 और सब येहै भोग प्रमाण करनो। कढ़ी पापड़ केरीके ट्रक सेर ॥ खाँड सेर 5॥ चोखा सेर 5॥ भोग घरायके समय भये भोग सराय नित्य क्रमसे आरती करनी॥ __ ज्येष्ठ सुदि १ अरगजी, पड़दनी, फेंटा, जल भरावनों। आभरण मोतीके, मोरशिखा, दार धोवा, कढ़ीके बदले छाछि बूंदीकी । और नवरात्रमें जो बूंदीको प्रकार लिख्यो है ता प्रमाण करनो । रायता बूंदीको, मीठो शाक, बूंदीको सब प्रकार बूंदीको करनो । अनोसरमें मगदु, तीगडाको । खरबूजाके पलटे आँब धरने । और एक दिन आँब सब दिन धरने । शयनमें मंडली दूसरे तीसरे दिन करनी। फुहारे छूटें, श्वेतचंदनकी खोरी धरावनी। पौढ़त समय अङ्गवस्त्र करनो । कछु लग्यो रहे नहीं ॥ ज्येष्ठ सुदि २ वस्त्र चम्पई। पिछोड़ा, पागवारकी खिड़कीकी॥ HamaraGHATANHAIR - wand - ॥ - Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - women ज्येष्ठ सुदि ३ केसरी पिछोड़ा, कुल्हे, सामग्री घेवरकी ॥॥ ज्येष्ठ सुदि ४ सुपेद वस्त्र, पाग, पिछोड़ा ॥ ज्येष्ठ सुदि ५ वस्त्र चम्पई धोती, उपरना, पाग वारकी । ज्येष्ठ सुदि ६ वस्त्र सुपेद, सूथन पटुका, पाग गोल ॥ ज्येष्ठ सुदि ७ वस्त्र सुपेद, किनारीके, मल्लकाछ, टिपारो॥ ज्येष्ठ सुदि ८ गुलाबी पिछोड़ा, सेहेरो॥ ज्येष्ठ सुदि ९ चम्पई आड़बन्ध, फेंटा, कतरा ॥ ज्येष्ठ सुदि १० दशहरा । सो ता दिन श्रीयमुनाजीको उत्सव । तथा श्रीगङ्गाजीको उत्सव । जलभरयो जाय । वस्त्र अरगनी । सादा पिछोड़ा। पाग वारकी खिड़कीकी । आभरण हीराके । कर्णफूल २ शृंगार गोटूनताँई । श्रीठाकुरजीको पलनांमें पधरायके पाछे साङ्गामांचीपे श्रीयमुनाजीके भावह् शृंगार करनो । साड़ी अरगजी । चोली गुलकेसरी सादा । श्रीयमुनाजीको पाठ करत जानो। बड़ेनकों स्मरण करि दंडवत करि शृंगार करनो । बाहिर अष्टपदी गाइये । चूड़ी, तिमनियां, नथ, ॥ और आभरण धरावने । गुना धरावनी । माँगमें सिन्दूर भरनों। टीकी लगाय, माला धराय, आरसी दिखाय । भोग सखडी अनसखड़ीको जुदो धरनो। ताकी सामग्री-मठड़ी, पगे खाजाको मैदा सेर ऽ१॥ खाँड़ दोनोंनकी बराबर। घी सेर 50 सीराको चून सेर ॥ घी बूरा बराबर । सुहारीको मैदा सेर ऽ॥ दोय | तरहकी करनी घी सेर ॥ सिखरन भात, दही भात राधा-|| अष्टमी प्रमाण । घोरयो सतुआ अक्षय तृतीया प्रमाण। चोखा सेर ।। अधकी दार सेर ऽ= मूंगकी धोवा । मूङ्गसेर 5= कढ़ी पकोरीकी । शाक बड़ीको। दूसरो १ भुजेनार लपेटमां ।चकरिया २ पापड़ ६अघोटा दूध सेर 5१ पेड़ा सेर 5॥ खट्टो मीठो Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ adioaugaiminational -- दही सेर 5१ ऐसे भोग धरि, वामओर एक चौकी अरगजाकी । बरनी, गुलाबदानी, काजरकी बंटी, पङ्खा सब धरिके भोग धरि तुलसी, शङ्खोदक, धूप, दीप करनो । समय भये भोग सराय बीड़ा ४ धरने । बीड़ी जुदी अरोगावनी। पीछे मन्दिरमें पधरावने । सानकी चौकी पास धरनी। झारी फिरि भरनी। एक थारीमें पाञ्चों मेवा होरीके अनोसरमें लिखे हैं ता प्रमाण धरने । बीज दोयतरहके शीतल भोग, सुपारीके टूक, इलायची धरनी। हौदमें जल भरनो । खिलोना तैरावने। आरती थारीकी करनी। पाछे अनोसर करनो। उत्थापन समय श्रीयमुनाजीकूँ भोगके समय बाहिर तिबारीमें पधरावने । पाछे श्रृंगार बड़ो करि सब ठिकाने धरे । शयनमें काचकी साङ्गामाचीपे पधरावनों। शयनभोग पहले भोग प्रमाण । दार धोवा । भरताके बेङ्गन सेर ३३ के बिलसारु रोटी खरबूजाको पणा छड़ियल दार । कढ़ी पापड़ । केरीके टूक सेर ॥ बूरो सेर 5॥ चोखा सेर 5॥ पहले शयनभोग प्रमाण घरावनो । पाछे समय भये भोग सराय नित्यक्रमसों आरती करनी॥ - ज्येष्ठ सुदि ११ वस्त्र फूल गुलाबी। पिछोड़ा टिपारो ॥ _ ज्येष्ठ सुदि १२ वस्त्र केसरी, पिछोड़ा, कुल्हे । आभरण हीराके । जोड़ सादा । सामग्री घेवर केसरी । ताको मैदा सेरऽ। घी सेरऽ१ खाँड़ सेरऽ४ केसरमासारे बरास रत्ती २ उत्थापनमें आँब२४ वा२६ आँब नित्य अरोगे। शयनमें अमरस रोटी केसर || मासा २ कस्तूरी रत्ती२ कलीकी मण्डली सब दर खुले राखने। ज्येष्ठ सुदि १३ श्रीगिरधारीजी महाराज टीकेतको जन्मदिवस । वस्त्र केशरी, धोती, उपरना, पाग गोल । सेहरो । आभरण || - - Chriskies - - sim - SARAN RAMA Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | मोतीके । दहीकी सेवके लडुवाको मैदा सेर ॥ घी सेर || दही सेर 5 खांड़ सेर 5॥ सुगन्ध । ज्येष्ठ सुदि १४ चम्पई परदनी, फेंटा । कतरा १॥ ज्येष्ठ सुदि १५ स्नानयात्राको उत्सव । ज्येष्ठा नक्षत्र होय ता दिना नानयात्राको उत्सव करनो। पहले दिन शयन भोग धरिके जल भरि लावनों। जाठिकानेसों हमेस आवतो होय ता ठिकानेसों भरि लावनो । पाछे निज तिवारीमें जेमने कोनेमें खासाकरि कोरीहलदीको चौक पूरिये। सुंथिआ ऊपर हाँड़ा धरि तामें सब जल करिये। श्रीयमुनाष्टकको पाठ करत जल भरखे जानो । और हाँड़ामें जल करे ता विरियां श्रीयमुनाष्टकको पाठ करत जानों। तामें गुलाबजल पधरावनो । केशरि, अरगजा हाँडामें पधरावनी । तुलसी तथा रायबेलकी कली, गुलाबकी पांखड़ी डारिये॥पाछे श्रोताचमन प्राणायाम करि संकल्प करनो ॥ “ॐ हरिः श्रीविष्णुर्विष्णुः श्रीभगवतः पुरुषोत्तमस्य प्रातज्येष्ठाभिषेकार्थ जलाधिवासनमहं करिष्ये" ॥ऐसे पढ़िके जल छोड़नो पाछे हाँडाकू कुम्कुम्सों रङ्गनो । साथिआ करने । और चमचासों जल हलावनो। पाछे कुम्कुम् अक्षतसों पूजन करनो अक्षत हाँड़ामें न पड़ें। पाछे कटोरी १ घटीकी भोग धरिये धूप दीप करिये । पाछे जलमें तुलसीदल बोहोत समर्पिये । और भोगमें तुलसीदल मेलिये पाछे शंखोदक करिये । पाछे नेक ठहरके आरती करिये पाछे हाँडाको मोड़ो बाँधिये ॥ आषाढ वदि १ कू तीन बजे ता समय श्रीठाकुरजी जागें। सब.साज कसीदाको बाँधनो । वस्त्र छापाके केशरी कोरके ।। momenimammine Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A NSI NSTHAN lalesmanadecorammarACAREERA - - मङ्गलामें आड़बन्ध । मंगला आरती पीछे। टेरा धरिके केशरी कोरके सुपेत धोती उपरना। आभरणमें नूपुर, अलंकार कड़ा, कटिपच इतनो राखनो । परातके नीचे कोरी हरदीको अष्टदल कमलको चौक माँड़नो तापे परात धरनी। पाछे परातमें कुम्कुम्को अष्टदल कमल करनो। ताके ऊपर पीढ़ा बिछावनों। ताके ऊपर सुपेत वस्त्र केसरी कोर करिके बिछावनो। परातके पास हाँड़ा धरनो। हाँडामेंते एक डबरामें जल भरनो । श्रीठाकुरजीकू पीढ़ापे पधरावने । ता समय शंखनाद, घंटा, झालर बाजें।मृदंग तम्बूरा बनें। कीर्तन होय । श्रोताचमन प्राणायाम करि सङ्कल्प करनो-"हरिः ॐश्रीविष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्त्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयप्रहराई श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे तस्य प्रथमचरणे बौद्धावतारे जम्बूद्वीपे भू.के भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गते ब्रह्मावर्तेकदेशेऽमुकदेशेऽमुकमण्डलेऽमुकनक्षत्रेऽमुकसम्वत्सरे सूर्य उत्तरायणे ग्रीष्मतौँ शुभे मासे शुभपक्षे शुभतिथौ शुभे ज्येष्ठानक्षत्रेऽमुकयोगे अमुककरणे एवंगुणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ श्रीभगवतः। पुरुषोत्तमस्यार्थे ज्येष्ठाभिषेकमहं करिष्ये” ॥ यह पढ़के जल छोड़नो। पाछे प्रथम तिलक करि, अक्षत लगाय दोय दोय बेर।। महामन्त्रसों पाछे तुलसी चरणारविन्दमें समर्पनी तुलसीदल शंखमें डारिये। पाछे झालर घंटा सब बन्द राखने । पाछे शंखसों प्रभूनको स्नान करावनों।ज्येष्ठाभिषेक उपनिषदको पाठ करनो। पाठ होय तबताँई स्नान करावनो। और अभिषेकको जल शेष रहे सो जलकी परातमें पधराइये । पाछे भीड़ सरकाय टेरा खेंचनो। पाछे धोती, उपरना, आभरण बड़े करिके अंगवस्त्र - - l amailotaNDainmentar amiend a mmsentenfoma maintamansamm AMARHI Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ramana करावनो। शृंगार भोग, झारी, बीड़ा धरिये। वस्त्र सुपेत, केसरी, छापाको पिछोड़ा, कुल्हे सुपेत अक्षयतृतीयाकी जोड़ चन्द्रका ३को। आभरण मोतीको ॥ । गोपीवल्लभमें उत्सव भोगकी सामग्री। सतुआके लडुआ, बीजके चिरोंजीके लडुवा । धोई दार, अंकूरी, आँवा, पणो दोऊओर तर मेवा परि धूप, दीप, तुलसी-| शंखोदक करनो। और उत्सवभोग गोपीवल्लभभोग भेलो आवे।। और वाकी सामग्री राजभोगमें आवे। और सतुआ पोरयो अक्षय तृतीया प्रमाणे । दहीभात, शिखरनभात, राधाष्टमी प्रमाण । भुजेना २ शाक २ बूंदीछूटी । छाछि बूंदीकी, बीजके लडुवाके बीज सेर १ चिरोंजी सेरऽ१ दोऊनकी खाँड़ सेर २ इलायची मासा २ बरास रत्ती पणो दोय तरहके। अक्षयतृतीयाते दूने। अंकूरीकी मूंग सेर 5१० खोपरा 5= बरफी सेर 55 बासोंदी सेर ३१ खट्टो मीठो दही । आँब ३०० फल फूल भुजे मेवा, अक्षयतृतीयाप्रमाणे भंडार के सबतरहके । बड़ाकी छाछि। ताकी पीठी सेर ॥ पी सेरऽ। उत्सबके सघाने ये सब राजभोगमें आवें । बीड़ा ४ अधकीमें आवे । साँझको छोंकी अंकूरी अरोगे। और नित्यकी रीतसे दार कच्ची नित्य आवे सो रथयात्राताई और रथयात्रा ते जन्माष्टमीताई छुकी आवे ॥ आषाढ वदि २ वस्त्र सुपेद श्याम छापाके बड़ो पिछोड़ा। पाग गोल॥ आषाढ वदि ३ लाल टपकीको सुपेत पिछोड़ा पाग छज्जेदार॥ आषाढ यदि ४ श्याम टिबकीको श्वेत पिछोड़ा। मंगल भोगमें सिखरन । फेनारोटी शिखरनको दही सेर ऽ३ बूरो सेर । १॥ गुलाबजल इलायची मासा ४ बरास रत्ती ३ रोटीको चून mms Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - सARR IERAPHUERICANDIBASEDRISEIRTHPLA Homemummemewana D HARNEWARITERS n s ARPAN महीन सेर 5॥ घी सेर ॥ कढ़ी मिरचकी शाक २ बड़ीके । | भुजेना ४ कचरिया ४ तिलबड़ी ढेबरी । लूण, मिरच, बूराकी कटोरी सँधाना। माखनमिश्रीकी कटोरी वगेरे पहले मंगल भोगमें देखनो । ता प्रमाण ॥ ___ आषाढ वदि ५ सादा आइबन्ध । फेटा बारको, कतरा, चन्द्रका सादा ॥ ___ आषाढ वदि ६ वस्त्र अरगनी । मूथन फेंटा । साँझको फूलनको शृङ्गार । मल्लकाच्छ टिपारोको करिये । दर्शनके किमाड़ खोलिये। आरसी दिखावनी । शयनभोग धरनो। तामें अमरस रोटी। पहले भोग प्रमाणे । केसर मासा २ कस्तूरी रत्ती २ दार धोवा, बिलसारु, खरबूजाको पणा, कढ़ी, पापड़, चोखा सेर 5१॥ केरीके टूक सेर ॥ के ॥ आषाढ वदि ७ चन्दनी पिछोड़ा। पाग गोल ॥ आषाढ वदि ८ वस्त्र सुपेत लाल बूटीके । पिछोड़ा पाग छजे दार । चन्द्रका सादा॥ आषाढ वदि.९ डोरियाके वस्त्र । मल्लकाछ टिपारो॥ आषाढ वदि १० वस्त्र फूल गुलाबी, सादामूथन पटुका पगो। आषाढ वदि ११ सुपेद पिछोड़ा, टिपारो, फलाहार ॥ आषाढ वदि १२ वस्त्र, काँटा सरियाके फूलके रङ्गको | पिछोड़ा। पाग गोल । मंगलामें अमरस रोटी शयन भोगमें लिखी है ता प्रमाण । बेंगनकी गुझिया, ताको मैदा सेर ७१ घी सेर 5॥ बेंगन सेर ७४ कोरो भरता भी धरनो। केसर मासा ३ कस्तूरी रत्ती २ बिलसारु । खरबूजाको पणा । चोखा सेरऽ१॥ दार धोवा । कढ़ी। पापड़ । केरीके टूक सेरऽ। बूरो सेरऽ१॥ आषाढ वदि १३ सुपेत आइबन्ध। कुल्हे। जोड़ चन्द्रका ३को । manomime INDIAN ema mameenawumanomeraniram - manRARDINUTRAINIPRERARMANENT । Tamasomar REE'SSENIMASIENTREARRORame Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आषाढ वदि १४ छापाकी कोरको धोती, उपरना, पाग गोल चन्द्रका ॥ आषाढ वद ३० गुलाबी पिछोड़ा, पाग छज्जेदार, कतरा ॥ रथयात्रा । आषाढ सुदि १ जा दिन पुष्य नक्षत्र होय ता दिन रथयात्राको उत्सव करनों । दूजकूँ पुष्य नक्षत्र होय तो दूजकूँ अथवा तीजकूँ होय तो तीजकूँ करनों । रथ पहले दिन साजि राखनों रथमें घोड़ा नहीं। और ठिकाने घोड़ा होय है । रथमें झालर | रेशमी रंगीन बाँधनी । पिछवाई रंगीन लाल । चन्दोवा रंगीन और चन्दोआ पिछवाई सब बदले सुपेत भाँतदार । तीन बजे ता समय श्रीठाकुरजी जागें । पलङ्गपोस सुपेद बड़ो बालभोग सेवके लडुवाको । मैदा सेर ४२ घी सेर ४२ खाण्ड दूनी । ता दिन अभ्यंग होय । वस्त्र सुपेद डोरिया के । सुनेरी किनारीके | बागो चाकदार | कुल्हे सुनेरी चित्रकी सुपेत । आभ रण उत्सवके जोड़ चन्द्रका ५ को शृंगार भारी करनों । कमलपत्र करनों । ठाड़े वस्त्र केसरी । सामग्री उपरेटाको मैदा सेर |5|| घी सेर ॥ बूरो सेर | शिखरन भात दही भात राधाष्टमी प्रमाणे । कढ़ी पलटे तीनकूड़ा पकोरीको । राजभोग में शाक२ भुजेना २ सेव पाटियाकी, बड़ाकी छाछि । राजभोग धरिके रथकूँ साजनो। उत्तरमुख तिवारी पधरावनो । गादी, तकिया, पेड़ेकी सुपेदी नित्यकी उतारनी । राजभोग आरती भीतर करिके पाछे रथको अधिवासन करनो। श्रौताचमन प्राणायाम करि संकल्प करनो- “ ॐ हरिः ॐ श्रीविष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो | महापुरुषस्य श्रीविष्णोराज्ञया अस्य श्रीभगवतः पुरुषोत्तमस्य रथाधिरोहणं कर्त्तुं तदङ्गत्वेन रथाधिवासनमहं करिष्ये" । Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - MAHRAMANG करनो भोग दूसरो भोगाइ दर्शन करना जल अक्षत छोड़नो । पाछे स्थको चन्दन अक्षत छिड़कनों धूप दीप करिये । ता पाछे कटोरी १ पट्टीका भोग धरिये ता पाछे शंखनाद, घण्टा झालर, पखावज बाजत बड़ेनकी स्मरण करि दंडवत करि श्रीप्रभुकों गादी सुद्धां रथमें पधरावने । झारी भरके दर्शन खोलने । रथको थोरोसो चलावनो । एक कीर्तन होय । फिरि रथके अगाड़ी मन्दिर वस्त्र कराय चौकी माड़िये। | भोग धरनो। तुलसी शंखोदक, धूप, दीप करनो, पहले भोगको समय आध घड़ीको करनो । पाछे आचमन, मुखवस्त्र कराय बीड़ा२ धरि, दर्शनके किवाड़ खोलने । पाछे रथकू चलावनों। दोय बेर एक कीर्तन होय तहांताई दर्शन करावने । झारी भरनी । ता पाछे दूसरो भोग धरनो । घड़ी १ को समय करनो । भोग सराय बीड़ा ४ धरनें । माला धराय दर्शनके किमाड़ खोलने । थोड़ोसों रथकू चलावनो। पंखा मोरछल चमर सब करने । अब दूसरे कीर्तनको आरम्भ होय तब रथकू डोल तिवारीमें दक्षिण मुख पधरावनो । टेरा करनो। झारी भरनी । जलकी हाँड़ी १ धरनी तामें कटोरी तेरावनी सो छन्नासों ढाकके धरनी । ता पाछे छेलो भोग धरनो । तुलसी, शंखोदक, धूप, दीप करनो । समय पड़ी २ को करनो। पाछे भोग सरायके बीड़ा १० धरने । पाछे दर्शनके किवाड़ खोलने। बीड़ी १ अरोगावनी । रथकू चलावनो । चौथे कीर्तनको आरम्भ होय तब आरती थारीकी करनी । और धूप, दीप, तुलसी शंखोदक तो तीनो भोगमें होय और आरती तो एक पाछे भोगमें होय । अब आरती करिके न्योछावर राइ नोन करनी । पाछे परिक्रमा ३ करनी। पाछे दण्डवत करि हाथ | खासा करिके रथकू चलावनो। निज मन्दिरकी तिवारीके द्वारपे TRANSTH o ne । Saaman mama Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - tadamom tan ARRI ERSONALITIRECE राखनो । पाछे टेरा करनो। शृंगार बागा बडो करनो। कुल्हेको शृंगार सब रहिवेदेनो । जोड़ चन्द्रका ३ को धरावनो। पिछोड़ा धरावनो । बाजू पोहोंची धराय । श्रीकण्ठको शृंगार बोटुनताँई करनो । कुण्डल धरायके पाछे प्रभूको ठिकाने पधरावने । झारी भरनी । सब साज नित्यवत् माडि अनोसर करनो। रथकू तिवारीमें राखनो । साँझकों सन्ध्या आरती पाछे श्रृंगार बड़ो करनो । श्रीहस्तमें पहुँची राखनी । शयन समय चौक रथ विना छत्रिकेमें विराजे । रथको चलावनो। आरती करि नित्यकी रीति अब सामग्री लिखे हैं मठड़ी, शकरपारा, सेवके लडुवा, गुना, बूंदी छूटी काँनी मैदाकी पूड़ी ये सब डोलसू, आधो बड़ाकी छाछि, फड़फड़िया चना शाक, भुजेना सँधाना, पेड़ा बरफी, दूध वासोंदि, खट्टो मीठो दही, विलसारु, सिखरन बड़ी, भुजे मेवा, सब डोल प्रमाणे । बीज चिरोंजीके लडुवा अंकूरी दोय तरहको पणा । ये स्नानयात्रा दूनो। आम ६०० डोलमें तीन भोग साजने । ताही प्रमाण तीनों भोग साजने । शयनमें प्रथम रथ थोरोसो चलावनो । ता पाछे आरती करने । दूसरे दिन राजभोगके लिये चारयों सामग्रीनमेंते दोय दोय नग राखनो । काँजी राखनो। अब रथयात्रा शयनमें चौकमें नहीं विराजें । साँझकूँ अंकूरी छुकी धरनी। पाछे दूसरे दिनहूँ नित्य दार छुकी धरनी सो जन्माष्टमीताई ॥ ___ आषाढ सुदि २ दूसरे दिन वस्त्र येही धरावने । श्रीमस्तक कुल्हे आभरण हीराके । आड़बन्ध धरावनो । चन्द्रका १ धरावनी कुल्हेके ऊपर। श्रृंगार गोटुनताई करनों। दार छडियल। कढ़ी डुबकीकी । सामग्री राखी होय सो धरनी । अब रथयावाटू फूआरा, छिड़काव, खसके टेरा, सुपेद चन्दन, राज - Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । - - - भोगको दही भात अनोसरको पणा, जलकी परात बन्द होय । और जो गरमी होय तो आषाढ़ी पून्योताँई राखनो । फकत परातजलकी नहीं धरनी । कुनाहू आषाढ़ी पून्यो ताँई गरमीहोय तो राखने । नहीं तो रथयात्राताई राखने ॥ आषाढ सुदि ३ पिछोड़ा, भात दार । वस्त्र किनारीके ॥ आषाढ सुदि ४ वस्त्र चम्पई । सूथन, पटका, फेंटा ॥. आषाढ सुदि ५ डोरियाको सुपेद पिछोड़ा। लाल गोटिको | सुपेद पगा॥ आषाढ सुदि ६ कसूबां छठको उत्सव । साज कम्मल । आजसो रङ्गीन वस्त्र लाल । कसूमल बिना | किनारीके । पिछोड़ा, पाग छज्जेदार। चन्द्रका सादा। आभरण मोतीके । कर्णफूल ४ शृंगार मध्यको । सामग्री-मनोहरको मैदा चोरीठा सेर 5॥ गिजड़ीको दूध सेर ऽ२॥ घी सेर ॥ खाँड़ सेर ऽ२ सुगन्ध । और शाक । भुजेना । बूंदीकी छाछि सब धरनों । साँझकों उत्थापन भोग अरोगिके लालतूलके बंगलामें बिराजे । केला ४ की कुञ्ज करनी। भोगके दर्शन भये पाछे सन्ध्याभोग धरिवेकी सामग्री-माखनबड़ाको मैदा सेर ॥ माखन सेर । घी सेर ॥ इलायची मासा १ भरताकी गुझिया । मैदाकी पूड़ी, बेंगनके भुजेना । भरता। आमको बिलसारु । लुचई पूड़ी। यह भोग आवे । और नित्यवत् ॥ आषाढ सुदि ७ वस्त्र डोरियाके किनारीवारे । धोती, उपरना। दुमालो बीचको॥ , आषाढ सुदि ८ वस्त्र गुलाबी । सूथन पटुका पाग गोल। साँझको फूलको श्रृंगार भोगमें करनों । काछनी पीताम्बर। काछनी गुलाबी। मुकुट आभरण सब फूलके शृंगार भोग। तथा ENE R AMINETREE ARSHISHIRST A NDAR Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - m a darasinasaniamamunawallandlotic शृंगार करिबेकी विधि पहले लिखी है ता प्रमाण करनों। शृंगार करिके टेरा खोलि आरसी दिखावनी । शयन भोग धरनों। तामें अमरस रोटी पहले भोग प्रमाण । केशर मासा ३ कस्तूरी | रत्ती २ दार धोवा ऽ१ चोखा सेरऽ१॥ खरबूजाको पणा । बिलसारुकी केरीके टूक सेर ॥ खाँड सेर 5१ बड़ीको शाक। आषाढ सुदि ९ फूल गुलाबी पिछोड़ा । पाग सादा चंद्रका॥ आषाढ सुदि १० श्रीदाऊजीको जन्मदिवस।। वस्त्र केशरी । कुल्हे पिछोड़ा। ठगड़े वस्त्र श्वेत । जोड़ सादा आभरण । उत्सवके राजभोगमें जलेबीको मैदा सेर 5 घी सेर 5। खाँड़ सेर ऽ३॥। बेंगन दशमी । साँझ सबेरे सब बेंगनको। प्रकार करनो॥ आषाढ सुदि ११ टिपारो धरे, वस्त्र पहले दिनके ॥ आषाढ सुदि १२ गुलाबी पड़दनी, पाग गोल ॥ आषाढ सुदि १३ धोती उपरना चम्पई। पाग गोल ॥ आषाढ सुदि १४ सुफेद आडबन्ध । वारको फेंटा ॥ आषाढ सुदि १५ वस्त्र इकधारी चूनड़ीके शृंगार मुकुट काछनीको । आभरण मोतीनके । ठाड़े वस्त्र सुपेद । सामग्री लाटाकी । ताकी चिरोंजी सेरऽ॥ बूरा सेर 5१ कचोरीको मैदा सेरऽ॥ पिट्ठी सेरऽ॥ घी सेरऽ॥ दार तुअरकी । छोक्यो दही सेरऽ॥ पाग गोल चून्दरीकी॥ श्रावण वदि हिंडोलाकी विधि अरु ताको उत्सव। हिंडोलामें विराजें और मुहूर्त देखनो पड़वाकू विराजे । और श्रीठाकुरजीकी वृषराशिकू आछो चन्द्रमा देखनों । और चौघड़िया आछो देखनो। और भद्रा सबेरे होय तो सांझकू । Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RECE ORDER | और सांझकू भद्रा होय तो सबेरे हिंडोरामें पधरावने । जो सबेरे चौघड़िया आछो होय तो शृङ्गार पाछे गोपीवल्लभ ग्वाल भेलो कार हिंडोलाको अधिवासन करनो । ता पीछे श्रीठाकुर जीकू पधरावनो। घंटा, झालर, शङ्ख, पखावज बाजत । और उत्सवभोग हिंडोरे झुलिचुकें तब अरोगे । पाछे पलना नित्य क्रम । फिरि साँझकों नित्य क्रमसों झूले । ता प्रमाणे झूलावने । सो सांझकों आछो होय तो साँझकों हिंडोरामें पधरावने । अब सब प्रकार लिखे हैं । ता प्रमाण करनो अभ्यङ्ग होय। किनारीको पिछोड़ा, लाल क मल, ठाड़े वस्त्र हरे । पाग खिड़कीकी, चन्द्रका सादा । आभरण हीराके । शृंगार भारी करनो । कर्ण फूल ४ कलंगी ३ झोरा २ बंटा डोरियाको । पलंग पोस सुजनी हरे पतऊआकी। सामग्री बूंदीके लडुवाकी । ताको बेसन सेर ॥ घी खाण्ड प्रमाण । और प्रमाणसाज नित्य बदलनो। रंगीन तरहतरहके उत्थापन भोग सन्ध्या भोग भेलोई धरनो। हिंडोरा झूले तबताई भोग तथा सन्ध्याभोग भेलो आवे । हिंडोरामें सुपेती नहीं राखनी । सन्ध्या आरती पीछे ग्वाल धरिके हिंडोराको अधिवासन करनो। श्रौताचमन प्राणायाम करि सङ्कल्प करनों ॥ “ॐ हरिः ॐ श्रीविष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतः पुरुषोत्तमस्य हिंडोलाधिरोहणं का तदङ्गत्वेन हिंडोलाधिवासनमहं करिष्ये" यह सङ्कल्प पढ़िके हाथमेंसे जल अक्षत छोड़नो। पाछे हिंडोलाको चन्दन लगाइये । कुम्कुम् अक्षत छिड़किये ता पीछे धूप, दीप करि पाछे घट्टीकी कटोरी भोगधारये। पाछे तुलसी समर्पिये शङ्खोदक करि तापाछे एकलो घंटा बजाय आरती दोय बातीकी करिये ता पाछे घंटा, झालर, शङ्ख नाद, पखावज बाजत श्रीठाकुरजीको हिंडोलामें पधरावनो। - - Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ H ARIYAms. ETAARAVलाना पाछे नित्य पधारतीबिरियां घंटा, झालर, शङ्ख नहीं बजे । पाछे माला धरावनी । झारी बंटा हिंडोरामें धरनों । पाछे भोग धरनो । सो भोगकी सामग्री-सकरपाराको, मैदा सेरऽ॥ घी खाँड बराबर । फीके खाजाको मैदा सेर ॥ घी सेर ॥ तूंठ, लूण, मिरच, सँधानाकी कटोरी । तुलसी शंखोदक करि धूप दीप करनो । समय आध घड़ीको करनो। पाछे आचमन मुखवस्त्र कराय बीड़ा २ धरने ता पाछे दर्शनके किंवाड़ खोलने । हिंडोरा झुलावने । पहले चार झोटा सामनेसों देने। फिरि जेमनी ओरकी डाँडी पकड़के झुलावने फिरि दूसरे कीर्तनको प्रारम्भ होय तब फिरि सामनसे झुलावने। चारयों कीर्तन होयचुके तब श्रृंगार बड़ो करिके शयनभोग धरने । हिंडोरा झूले तबताँई भोगके दर्शन तथा सन्ध्याआरतीके दर्शन नहीं खुलें भीतरही होय ॥ श्रावण वदि २ वस्त्र पीरे। पिछोड़ा सोसनी। पाग खिड़कीकी पीरी। चन्द्रका बड़ी सादा। आभरण मानकके । कर्णफूल ४ शृंगार भारी करनो। सामग्री सेवके लडुवाकी ताकी मैदा सेर ॥धी सेर ऽ॥ खाँड़ सेर 5१. श्रावण वदि ३ वस्त्र सोसनी। पिछोरा । कुल्हे ऊपर शृङ्गार ! करनो। सो हीराजसी दिखाय ॥ - श्रावण वदि ४ वस्त्र अमरसी । शृंगार मुकुट काछनी । ठाड़े वस्त्र सुपेत । आभरन पन्नाके ॥ - श्रावण वदि ५ वस्त्र कसूंमल दुहेरो मल्लकाछको शृंगार उपरको मल्लकाछ लाल । नीचेको छोड़ सादा । कटिको फेटा लाल । तुर्रा पीरो कतरा दोहेरो चन्द्रका चमकनी । आभरन पिरोजाके । ठाड़े वत्र सुपेत ॥ SRAELORAMMARRIEDu man - । S Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RAND U CAMEEDROO BERSATSABRIEND - श्रावण वदि६वस्त्र हरेपिछोड़ा, पाग, कसूंबी खिड़कीकी। ठाड़े वस्त्र पीरे । आभरण हीराके। कर्णफूल ४ चन्द्रका चमकनी । लूम तुर्रा सुनहरी ॥ श्रावण वदि ७ वस्त्र लाल पीरे लहरियाके । सूथन फेंटा, चन्द्रका चमकनी । ठाड़े वस्त्र श्वेत । आभरण पन्नाके । कुण्डल धरे । शृंगार मध्यका॥ श्रावण वदि ८ वस्त्र केशरी पिछोड़ा, टिपारो । चन्द्रका ३ सादा। ठाड़े वस्त्र हरे। आभरण मानकके। सामग्री शकरपारा । ताको मैदा सेर ऽ॥ दार तुअरकी॥ श्रावण वदि ९ वस्त्र हवासी । पिछोड़ा पाग गोल । आभरण सोनेके । मोरशिखा । ठाड़े वस्त्र सुपेद । कर्णफूल ४ शृङ्गार चरणारविन्दताई ॥ श्रावण वदि १० वस्त्र गुलाबी । धोती, उपरना, दुमालो। आभरणश्याम। कतरावामको। चन्द्रका चमक, ठाड़े वस्त्र पीरे॥ __ श्रावण वदि ११ मनोरथ पञ्चरङ्गीलहरियाको। शृंगार मुकुट काछनीको । हिंडोरा जा और झुलायवेकूँ पधारे तहाँ हिंडोरा फूल कदम्बके केला जाको करनो होय ताको करनो। प्रथम नित्य झूलते होय सो झुलावने । पाछे पधरावने । वो मनोरथके हिंडोराको अधिवासन करनो जैसे प्रथम अधिवासन लिख्योहै ता प्रमाण करनो, पाछे हिंडोरामें पधरायके भोग धरनो । तुलसी, शङ्खोदक, धूप, दीप करनो। सामग्री खिखेहैं। पयोज मण्डाको मैदा सेर 51॥ खोवा सेर ऽ२॥ बूरा सेर ३२ इलायची मासा ४ केसर मासा ३ बरास रत्ती २ घी सेरऽ२ खाँड़ सेर 5१ पागवेकी एक ओर पागनो । दूध सेरऽ सेवके लडुवाको मैदा सेर ऽ२ची सेरऽ२ बूरोसेरऽ४ इलायची मासा ४ गुझिया मृङकी दारकी। Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मा Reematoc omnaDSAMANDAR m । । कचौड़ीकी दार सेर 5१ छांछ बड़ाकी दार सेर ७१ फड़फड़ियाके चना सेर । चनाकी दार सेर । मैदा सेर ७१ पूड़ीको। बिलसारु, शिखरन बड़ीकी हाँड़ी १ भुजेना २ झझराकी सेवको बेसन सेर ॥ बासोंदी केसरी सेर ऽ॥ बरफी, पेड़ा आध २ सेर फलफलोरी । शाक ४ या प्रकार सामग्री करनी। दूसरे मनोरथमें सामग्री दूसरी तरहकी करनी। ऐसे जितने मनोरथ होंय तामें फिर फिरती सामग्री करनी। ऐसे भोग धरि तुलसी शंखोदक, धूप, दीप करिके समय घड़ी २ को करनों । पाछे भोग सराय आचमन मुखवस्त्र कराय बीड़ा ८ धरने । अधकीकी बीड़ी १ दर्शन खुले ता समय अरोगावनी । पाछे झुलायबेके कीर्तन ५ होंय तामें पाञ्चमें कीर्तनको प्रारम्भ होय तब आरती थारीकी करनी। पाछे नोछावर राई नोन करनों । और जो हिंडोलाके बाँधनेमें ढील हो अथवा और कोई बातकी ढील होय तो शृंगार शुद्धां शयन भोग धरि शयन आरती पीछे पधरावने, तामें चिन्ता नहीं॥ श्रावण वदि १२ वस्त्र सोसनी, काछनी गोल, टिपारो।। आभरण मोतीके । शृंगार गोटुन ताँई । ठाड़े वस्त्र लाल । कलँगी २ जमावकी । चन्द्रका चमकनी। सामग्री सेवके लडुवाको मैदा सेर ॥ वी सेर ॥ बूरो सेर 5॥ __ श्रावण वदि १३ वस्त्र गुलेनार, पिछोड़ा दुमालो, खूटको सेहेरो आभरण हीराके । ठाढ़े वस्त्र हरे । सामग्री जलेबीकी । लडुवाकी मैदा सेर ॥ घी सेर ॥ बूरो सेर 5२॥ सुगंधी मासे २॥ श्रावण वदि १४ वस्त्र सुआपंखी । पिछोड़ा, फेंटा, कतरा वाम ओरको । चन्द्रका चमकनी। आभरण माणकके ॥ • श्रावण वदि ३० को मनोरथ होय । सो पहले लिखे प्रमाण reliadonnaidismital । Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | पत्तीको हरयो हिंडोरा बांधनो । पत्तीको न होय काचको करनों । वस्त्र हरे रुपेरी किनारीके | शृंगार मुकुट काछनीको करनो, आभरण हीराके धरावने । पूवाको चून सेर 5 ॥ घी गुड़ बराबर, साँझको हाँड़ी बाँधनी । रोशनी करनी । पोढ़त समय श्याम गोल पाग || श्रावण सुदि १ वस्त्र लहरिया | मलकाछ टिपारो । ठाड़े वस्त्र हरे । आभरण हीराके, कतरा चन्द्रका चमकनों ॥ श्रावण सुदि २ वस्त्र अमरसी । पिछोड़ा । पाग खिड़कीकी रुपेरी जरीके | ठाड़े वस्त्र सोसनी । आभरण पिरोजाके । चन्द्रका धरावनी | श्रावण सुदि ३ ठकुरानी तीजको उत्सव | ता दिन साज सब चन्दरीको । दिवालगिरी तिवारीमें बाँधनी । ता दिन अभ्यङ्ग होय । सुजनी हरे पतुआकी । कमलकी पलङ्गपोस, वस्त्र चौफूली चन्दरीके | पिछोड़ा पाग छज्जेदार | आभरण हीराके| चन्द्रका सादा ॥ सामग्री - चिरोंजीके लडुवाकी चिरोंजी सेरs ll खाँड़ सेर ८१ इलायची मासा २ और प्रकार aria दिन प्रमाणे । और साँझको नित्यके काचके हिंडोरामें झूले । झूलिचुके तब शृंगार बड़ो करिये । पागपे, शिरपेच, कलङ्गी, झोरा लरघरावनी । बाजू बड़े करने। पोहोंची राखनी । दोय तीन माला, त्रिवली, श्रीकण्ठ में राखनी । कर्णफूल, हस्तफूल राखने । शयन में हिंडोरा में झुलावने । पोढ़त समय छोटो शिरपेच धरावनो । अनोसरको भोग शरद प्रमाणे धरनो । सब चौपड़ साज सब माँड़नो । दूधघरकी सामग्री सब, सब तरहके मेवा, तेजाना, भुजे मेवा, राधाष्टमी प्रमाणे । पेठाके बीजके लडुवा, बीज सेर SI खाँड़ सेर | केसरि मासा २, पिस्ता के Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ pass दूकके लडुवा, पिस्ता सेर । खाँड़ सेर ॥ केसर मासा २ फलफूल रु०।) को बीड़ा ८ अनोसरमें सब धरने । शीतल भोगके ओला सेर 5= और सब नित्यक्रम ॥ श्रावण सुदि ४ वस्त्र पीरी चून्दरीके । पिछोरा दुमालो खूटको। चन्द्रका चमकनी। ठाड़े वस्त्र लाल । आभरण || नीलमणीके ॥ श्रावण मुदि ५ नागपंचमीको उत्सव। सो ता दिन वस्त्र गुलेनार। कुल्हे पिछोड़ा। आभरण हीराके। जोड़ चमकनो। ठाड़े वस्त्र कोयली । सामग्री दहीके सेवके लडुवाको, मैदा सेर ३१ घी सेर 51 दही सेर 5१ खांड़सेर ७३ इलायची मासा ३ फराको चोरीठा सेर 51 चुपड़वेको पीs= याके संग घी बूरेकी कटोरी धरनी । वी5= बूरो ऽ= || सखड़ीमें धरनो। और जन्माष्टमीकी बधाई बैठे ॥ श्रावण सुदि ६ वस्त्र कोयली, पिछोड़ा, पाग कसूमल खिड़कीकी, आभरण सोनेके, कर्णफूल ४ चन्द्रका चमकनी, ठाड़े वस्त्र कसूमल । शृंगार चरणारविन्दताई ॥ श्रावण सुदि ७ सो ता दिन वस्त्र केशरी धोती, उपरना । पाग गोल । आभरण पन्नाके । कर्णफूल ४ शृंगार मध्यको, ठाड़े वस्त्र हरे । कलंगी जमावकी ॥ श्रावण सुदि ८ धनक लहरियाके । शृंगार मुकुट काछ|नीको । ठाड़े वस्त्र सुपेद । आभरण हीराके ॥ . श्रावण सुदि ९ वस्त्र हब्बासी रंगके सूथन पटुका कमलको। श्रीमस्तकपे फेंटा, कतरा जेमनो। चन्द्रका चमकनी । ठाड़े वस्त्र पारे । आभरण मोतीके । शृंगार गोटूनतांई करनो ॥ S ENDHEER PRE BIRHIRAINRITERSTANE Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MBER Pme SitammarAmAR - श्रावण सुदि १० वस्त्र चून्दरीके श्रृंगार मल्लकाछ टिपारो। कतरा चन्द्रका जमावकी । ठाड़े वस्त्र हरे। आभरण हीराके। श्रृंगार कटिताई ॥ श्रावण सुदि ११ पवित्रा एकादशीको उत्सव । तादिन साज सब कसीदाको । सुपेदी सब उतारनी। सबेरे भद्रा होय तो साँझको ग्वाल अरोगायके पवित्रा धरावने । फिर उत्सव भोग धरनो । भोग सरायके हिंडोरामें पधरावने । और जो सबेरेके समय आछो होय तो श्रृंगारके दर्शनमें पवित्रा धरावने । अभ्यंग करावनो । वस्त्र श्वेत केसरी कोरके कंगुरावारे । कुल्हे श्वेत रथयात्राकी । वस्त्रमें छूटी केसरी। चरणचौकी वस्त्र लाल । जोड़ चन्द्रका सादा । आभरण मानिकके। शृंगार चरणारविन्दताँई, शृंगार होयचुके तब गादीपे पधराय । माला | पहरायके राखी पवित्राको सङ अधिवासन करनो । राखी सब तरहकी। पवित्रा तीनसो साठ तारके सब धरने पाछे अधिवासन करनो। श्रोताचमन-प्राणायाम करि सङ्कल्प करनो“ॐअस्य श्रीभगवतः पुरुषोत्तमस्य पवित्राधारणार्थ रक्षाबन्धनार्थं च पवित्रारक्षयोरधिवासनमहं करिष्ये' । पाछे कुम्कुम् अक्षत छिड़किये । घट्टीकी कटोरी भोग धरिये । तुलसी शंखोदक धूप दीप करि पाछे पवित्राकी आरती करिये । पाछे दर्शन खुलाय घंटा, झालर, शंख, झाँझ, पखावज बाजतकीर्तन होत, वेणू धराय, आरसी दिखाय, दंडवत करि श्रीठा । कुरजी। पवित्रा धरावने । पहले सुन्हेरी, रूपेरी, पवित्रा धरावनो फिरि फूलमाला २ धरावनी । ता पाछे कलावत्तूके पवित्रा धरावने । ता पाछे सूतके पवित्रा तीन सौ साठ तारके धरावने । ता पाछे रेशमी पवित्रा धरावने । ता पाछे फिरि दूसरे स्वरू - - - । PANDHARPORNER - - - Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RANASANA simins ।पन। धरावने । और अधकीके चरणारविन्दमें समर्पने तुलसी चरणारविन्दमें समर्पनी । पाछे सिंहासनके आगे रु ० २) तथा श्रीफल २ भेंट करनो। टेरा लगायके फिरि गोपीवल्लभभोगके संग उत्सवको भोग धरनो। मिश्री सेर 5॥ सकरपाराको मैदा सेर 5१ घी खांड बराबर । याते राजभोगमेंहूँ धरनो । बरफी । सेर ॥ भुजे मेवा, फलफलोरी सब तरहके मेवा तर मेवा, सूके मेवा, बूराकी कटोरी, लूण मिरचकी कटोरी । उत्सवके सँधानेकी कटोरी धरनी। पाछे तुलसी शंखोदक, धूप दीप करनो समय भये भोग सराय बीड़ा २ धरने । राजभोगमें शाक ४ भुजेना ४ रायता १ खीर २ बिलसारु २ छाछिबड़ाकी हाँड़ी अघोटा दूध सेर 5॥ मैदाकी पूड़ी सेरऽ॥ की। और नित्यक्रम | आरती थारीकी करनी । साँझको हिंडोराकी पिछवाई सुपेद । झालर सुपेद । तामें पवित्राको शृंगार करनो। और श्रीठाकुरजीको शृंगारमें राखी ताई नित्य पवित्रा धरावने । और मिश्री सेर । नित्य भोग धरनी । और श्रृंगार बड़ो होय तब पवित्रा बड़े हो सो पुन्योताई धरावने राखीके संग साँझकों पवित्रा बड़े होयें । फिरि दूसरे दिन बैठककू गुरुनको वैष्णव धरावे । | और पवित्राते जन्माष्टमीकी बधाई गवाइये ॥ श्रावण सुदि १२ पवित्रा द्वादशी।सो ता दिना वस्त्र गुलाबी || ॥ श्रृंगार मुकुट काछनीको । आभरण पन्नाके । ठाड़े वस्त्र सुपेद । शृंगार होय चुके तब पवित्रा पहिरावने । सो सन्ध्या आरती || पाछे बड़े करने । मिश्री सेर । भोगधरे । राजभोगमें सेवके। लडुवाको मैदा सेर ॥ वी सेरऽ॥ बूरो सेरऽ दार तुअरकी।। आज हिंडोराकी झालर सुपेत ताके ऊपर पवित्रा तथा हिंडोराके % 3D Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - 1 ऊपर पवित्रा लपेटने। फिर तेरसकू नहीं लपेटने । तेरसकू झालर रंगीन बाँधनी ॥ श्रावण सुदि १३ चतुरा नागाको मनोरथ । ता दिन वस्त्र - चौफूली चून्दरीके। पिछोड़ा पागछज्जेदार। आभरण पिरोजाके। | सेहेरो दोऊ आड़ी कतरा । कलंगी, लूमकी झोरा धरावनो। -ठाड़े वस्त्र श्याम । राजभोगमें सीरा । सीराको चून सेर ॥ बी | सेर ॥ बूरो सेर 59। मेवाऽ= ककोड़ाको शाक अवश्य होय ॥ - श्रावण सुदि १४ वस्त्र पीरे । दोहेरो मल्लकाच्छ ऊपरको मल्लकाछ लाल। नीचेको पीरो। छोड़ हरयो। कटिसू फेंटा। कन्धेको फेंटा लाल । ठाड़े वस्त्र लाल । टिपारो पीरो । तुर्रा पेच लाल । आभरण पन्नाके । चन्द्रका तीन सादा । सामग्री-दहीको मनोहरको मैदा ॥ दही सेरऽ। खाँड़ सेरऽ४ इलायची मासा ६। श्रावण सुदि १५ राखीको उत्सव । पंलगपोष बिछै अभ्यंग होय । वस्त्र गुलेनार। पिछोड़ा पागछज्जेदार । ठाड़े वस्त्र हरे। आभरण हीराके । शृंगार पहले हिंडोरा प्रमाणे । चन्द्रका सादा । जो राखीको मुहूर्त सवारे होय तो श्रृंगारमें आरसी दिखाय वेणु वेत्र बड़े करि राखी धरावनी। पाछे आरती थारीकी करनी । ताकी विगत-भद्रारहितमें राखी धरावनी। तबकड़ीमें कुम्कुम् अक्षत राखने और थारी में कुम्कुम्को अष्टदल करिके चूनकी आरती करके जोड़के धरनी। पाछे बेणु बड़ो करि पाछे दण्डवत करि शंखनाद, घण्टा, झालर, बाजत, पखावज झाँझ बाजत कीर्तन होत राखी बाँधनी। प्रथम तिलक, अक्षत दोय दोय बेर करि पाछे जेमनी बाजूकी ओर धरावनी । फिर पोहोंचीको ठिकाने धरावनी। ऐसेही वाम श्रीहस्तमें धरावनी । याही प्रकार श्रीवामिनीजीकूँ धरावनी तथा और स्वरूपन] धरावनी । एक - - areliabipasabanaalkanामनासयाकालय -- - - %3 Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । एक राखी भेट धरनी । थारीकी चूनकी आरती करनी । पाछे उत्सव भोग गोपीवल्लभ भोग भेलो धरनो । सामग्री मोहनथार गुल पापड़ी। ताको चून सेर 5॥ घी सेर s॥ खाँड़ सेर ऽ२ उत्सवके सँधानाकी कटोरी धरि तुलसी, शंखोदक, धूप, दीप | करनों। और राखी बाँधत समय गुलाब कतलीछन्नासों ढाँकिके भोग धरनों । अथवा जो साँझको राखी धरे तो भोगमें राखी धरावनी । और उत्सव भोग सन्ध्याभोग भेलो धरनो शृंगार बड़ो करती समय शयनमें लिख्यो है ता प्रमाणे करनों पोहोंचीके ठिकाने राखी बन्धी रेनदेनी । दूसरी बड़ी करनी। हिंडोला काचको शयनमें झूले । राजभोगमें जलेबीको, मैदा सेरऽ१ वी सेर 5१ खाँड़ सेर ३३ और प्रकार पवित्रा एकादशी प्रमाणे जन्माष्टमीके गीत बैठे। भट्टीको पूजन करे । गेहूँ सेर 50 गुड़ 5-छट्ठी माण्डवेको आरम्भ करे॥ _ भादों वदि १ वस्त्र केशरी । कुल्हे पिछोड़ा। श्रीगोवर्द्धनलालजीको जन्मदिवस । टिकेत श्रीगिरधारीजी महाराजके लालजी। शृंगार मुकुट काछनीको । आभरण हीराके । ठाड़े वस्त्र सुपेद । सामग्री गुझाँ खोबाके । मैदा सेर ॥ खोवा सेर ७१ बूरा सेर 5१ घी सेर ॥ पागवेकी खाँड़ सेर ॥॥ .. भादों वदि २ वस्त्र श्याम । कुल्हे पगा। पिछोड़ा ठाड़े वस्त्र लाल । आभरण मोतीके । चन्द्रका चमकनी ॥ __भादों वदि ३ हिंडोरा विजय होय । वस्त्र कसूमल । रुपेरी किनारीके पिछोड़ा, पाग, सोसनी खिड़कीकी, ठाड़े वस्त्र पीरे। चन्द्रका सादा, आभरण हीराके । कर्णफूल ४ राजभोगमें शंकर पारा । ताको मैदा सेरऽ॥ घी खांड बराबर। शृंगार गोटुन ताई। साँझकूँ हिंडोरामें चौथो कीर्तन होयचुके तब थारी में कुमकुमको । HTRADIO Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ adosmetimesentertainmemamacroSERIES masomai m More अष्टदल कार आरती चूनकी मुठिया बारिके करनी । न्योछावर राई, नोन करनो। दण्डवत करि परिक्रमा ३ वा ५ करनी। पाछे हिंडोरामेंदू पधरावने ता पाछे सब नित्यक्रम कनरो॥ भादों वदि ४ वस्त्र सूवापसी। पिछोड़ा, पाग गोल । ठाड़े वस्त्र हरे। आभरण मूगाके॥ भादों वदि ५ वस्त्र इकधारी चून्दरीके लाल। पिछोड़ा। पाग छज्जेदार । ठाड़े वस्त्र हरे।आभरण पन्नाके । शृंगार हलको। कर्णफूल २ कलंगी लूमकी। राजभोगमें सेवके लडुवाको मैदा सेर ॥ घी सेर ॥ बूरा सेर 5१ और मादल बाजे ॥ ___ भादों वदि ६ वस्त्र लहरियाके। पाग छजेदार । पिछोड़ा। ठाड़े वस्त्र लाल । आभरण माणकके । कलंगी जमावकी। कर्णफूल ४ शृंगार मध्यको । सामग्री बूंदीके लडुवाको, बेसन सेर ॥ घी बूरो प्रमाण सुगन्धी । नगाड़ा बजे॥ __ भादों वदि ७ छठीको उत्सव । वस्त्र कसूमल, पिछोड़ा, पाग छज्जेदार । ठाड़े वस्त्र पारे । चन्द्रका सादा। आभरण हीराके । कर्णफूल ४ शृंगार चरणारबिन्द ताई । सामग्री घेवरकी । मैदा सेर ऽ। घी सेर । खाँड़ सेर ॥ केसर मासा १ दार उड़दकी । शयन भोगमें छठीको भोग आवे। फिर प्रसादी, छठीकू धरनो। पूड़ी सीरा फेनीको मैदा सेर ॥ खाँड़ सेर ॥ सीराको चून सेर ॥धी सेर 5॥ बूरो सेर 51 फीके खाजाको मैदा सेर ॥ घी सेर ॥ बूरो सेर 5॥ एक बगल पगे । सुंठ पिसी भुजेना एक लपेटमा एक सादा शाक १ उत्सवके सँधानाकी कटोरी। लोन, मिरचकी कटोरी, बराकी कटोरी, मुरब्बा - Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ans ४ तरहको। दूध अघोटा, हिंडोराकी शय्या उतरे । अरगजाकी । कटोरी। छोंकीदार । पणो। ये सब बन्द होय ॥ इति श्रीनवनीतप्रियाजीके घरकी नित्यकी तथा उत्सवकी सेवा विधी वस्त्र शृङ्गार तथा सामग्रीकी विधि विस्तार पूर्वक और सातों घरकी सेवाविधि संक्षेपसों लिखी है ॥ श्रीकृष्णाय नमः ॥ अथ ग्रहणविधिः।। ग्रहणके पहले दिन कोरी सुपेदी चढ़ावनी । रसोई बालभोगकी, अपरस सब निकासनी छाती ताई पुतवावनी। माटीके वासन रसोईके बालभोगके सब निकासने । और सँधाना घरमें, | पापड़में, बड़ी, पाटियाकी सेवमें, दूधघरमें, गुलाबजलमें फूलघरमें, शाकघरमें, भण्डारमें, शय्यामन्दिरमें निज मन्दिरमें| सब ठिकाने कुश धरने । दूधघरके वासन भंडारके चूनके वासन नये नहीं छुवे । बन्धेबन्धाये बीड़ा पान घरमें रहे। मन्दिरमें नहीं रहे। दूधघरमें सिद्धकार सामग्री नहीं रहे। और ग्रहणकी तैयारी होय तब कोठीको जल निकासनो। बासन सब ऑधे करके धरने । मन्दिरमें धुवे वस्त्र होंय घरी करे । भये घरेहोय सो नहीं छुवे । वामें कुश धरनो । जल पानकी चपटिया तथा प्रसादी चपटिया निकासनी । दीवी, आरती, घण्टा, झालर, धूप, दीप ये सब मँझवावने । जल तवाई सब ठिकानेकी निकासनी। चूनेकी जगेमें जल तवाई होय तहाँ चूनेसों पुतवावनी । एकबेर पुते मँजे पाछे दीवा जरे सो नहीं छूवे । ग्रहणसमयमें उनकू छूवनो नहीं । और सरकायवेको उठायवेको काम पड़े तो पतुवासों करनो । मुखिया तथा भीतरि-। यानकू कोरे धोती उपरना देने । अब मंगलामें शृङ्गार ऋतु अनुसार रहेतो होय सो राखनो । ग्रहण समे झारी पास नहीं apanesammarmas Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ iomerememorrowimwethiwninaammoonmobiindiHowntowwwseemanitiewtoneRomamiane रहे झारीके झोला उतारके औंधी करनी । ग्रहण समें शय्या उठायके ठाड़ी करनी। करवामें जल राखनो हाथ खासाकरवः लोटीमें जल राखनो सङ्कल्पके लिये पीरे अक्षत राखने ग्रहण समें प्रभूनसों कछु दान करावनो। ताको प्रमाण-जब चन्द्रग्रहण होय तो एक टोकरामें चोखा सेर ३५ वी सेर 591 | खाँड सेर 5। श्वेत वस्त्रको ट्रक सवा गजको दक्षिणाको रु०॥ गोदानको रु०१) ग्रहणको मध्यकाल होय ता समय दान कर|| वेको सङ्कल्प कानो-"ॐ हरिः ॐ श्रीविष्णुर्विष्णुः श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य श्रीविष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्याद्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयमहराः श्रीश्वेतवाराहकल्पे वैवस्वतमन्वन्तरेऽष्टाविंशतितमे कलियुगे तस्य प्रथमचरणे बौद्धावतारे जम्बूद्वीपे भूल्ौके भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गते ब्रह्मावतैकदेशेऽमुकदेशेऽमुकमण्डलेऽमुकक्षेत्रेऽमुकसम्वत्सरे यथा सूर्ये यथाऽयनेऽमुकर्तावमुकमासेऽमुकपक्षेऽमुकतिथावमुकवासरेऽमुकनक्षत्रेऽ मुकयोगे ऽमुककरणेऽमुकराशिस्थिते सूयेऽमुकराशिस्थिते चन्द्रे एवंगुणविशेषणविशिष्टायां शुभपुण्यतिथौ श्रीमन्नन्दराजकुमारस्य राहुग्रस्ते निशाकरे ( सूर्यग्रहण होय तो दिवाकरे कहनो) महापर्वपुण्यकाले सर्वारिष्टनिवृत्त्यर्थ शुभस्थानस्थितिफलप्राप्त्यर्थ इमानि गोधूमानि (सूर्य होय तो ) तंडलघृतशर्करादि वस्त्रदक्षिणां गोनिष्क्रयीभूतदक्षिणां यथानामगोत्राय ब्राह्मणाय दातुमहमुत्सृजे तेन पुण्येन श्रीगोपीजनवल्लभः प्रायताम्"। और तो सब लिख्यो है ता प्रमाण दान करनों । और चोखाके ठिकाने गेहूँ सेरऽ १०वी सेरऽ२॥ गुड़ सेरऽ२॥ खारुवाको टूक गज । । दक्षिणाकोरु०॥गोदानको रु० १७ ग्रहणके उग्रहमें घड़ी दोय । घटती हॉय सो तब जल घड़ामें लकरिया बराय देनी । उग्रह । होय तब न्हाय पहली गागर आवे तामेंसों स्नानको जल तातो। ampionenewaitnerawinter mememe ms- mmuTMERDIATRAINRukuwaamameeMINETIMAHANTER - o e ON R C Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .MORADAMENovemUNon e - धरनो। सब बासन नये जलसों खासा करने । रसोई बाल भोगमें जल छिड़कनो । सामग्री बेगि करनी । स्नान करायके झारी तथा दूधघरकी सामग्री भोग धरनी। छन्नासों ढाकिके पास राखनी । और सब स्वरूपनकू स्नान करावनों । जो ग्रस्तोदय होय और बेगि होय तो उत्थापन भोग तथा सन्ध्या भोग भेलो करनों। और अबेर होय तो सन्ध्या भोग जुदो धरनों । सन्ध्या आरती करके श्रृंगार बड़ो करनों ग्वालको डबरा धरनों। स्पर्श होय तो झारी उठाय दर्शन खुलावने । उग्रहभये पाछे शयन भोग आवे । दार छड़ियल, शाक बड़ीको । चोखा सेर 5 दार सेर ॥ ढील न होय सो करनो । जो रसोईकी ढील होय तो स्नान भये पाछे पेड़ा भोग धरि टेरा खेंचनो । पाछे शयनभोग धरनो। नित्य नेममें मगद वारा प्रमाणे आवे । जो ग्रहण पहिली रात्रीमें घड़ी २ रात्र गये होय तो शयनभोग पहले धरनो और उग्रह भये पाछे स्नान करायके पोढ़वेको शृंगार करि पेड़ा भोग धरिये । भुजे बीजकोलाके बीज तथा खरबूजाके बीज, मखाना, चिरोंजी, मगदके लडुवा सब भोग धरि पाछे अनोसरकी तैयारी करिके भोग सरायके पोदावने । और जो थोड़ी रात्रि रहे उग्रह होय तो स्नान कराय मंगलाके श्रृंगार करिके मंगलाभोग धरनो। और जो घड़ी चार रात्रि गये ग्रहण होय तो शयन आरती करिके दोय घड़ी दिनसों पोढ़ावने । और जब ग्रहणको स्पर्श होयवेको समय होय तब घंटानाद करिके जगावने । और उग्रह भयेपै स्नान कराय लिखे प्रमाण भोग धरके पोदावने अनोसर करनो और जो ग्रस्तास्त होय और जो घड़ी दोय दिन चढ़ेते उग्रह होय तब मंगला भोग पीछे धरनो और जो तीन चार घड़ी दिन चढ़े उग्रह होय तो मंगलाभोग पहले धरनो । सो मंगलाआरती भये पाछे mneinessessmeanine ts n Comme a - Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्रहणके दर्शन खोलने । स्पर्श होय तब झारी उठावनी । शास्त्ररीतिसों उग्रह होय तब स्नान शृंगार गोपीवल्लभमें अनसखड़ी धरनी । नित्य नेममें मगद आठ नग राजभोगमें धरने । और राजभोगमेंहूँ अनसखड़ी धरनी । भातके ठिकाने सीराको थार आवे ताको चून सेरऽ१ घी सेर 5 बूरो सेर ७२ चिरोंजी सेर । पूड़ी सेर ऽ४ की झाक १ अरवीको छाछि डारिके पतरो करनो तीन शाक और करने । भुजेना १ लपेटमा, एक सादा, रतालूकी पकोरी । लोन सँधानो । निंबू, मिरच, आदा पाचरीके दिन होंय तो धरनी। शीतकाल होय तो गुड़, दही, शिखरन, रायता, माखन, बूराकी कटोरी सब नित्य प्रमाण धरनी । शीराके थारमें दारके ठिकाने बूराकी कटोरी धरनी बूरासों थार साननो और अनोसर नित्यवत् । साँझको दोय बड़ी दिन रहे तब न्हाय सब सिद्धकरे। नये जलसों सब सामग्री चढ़े। सखड़ीसें दार भात, मूंग, और सब अनसखडीमें करनों । सूर्यग्रहणमें अस्त होय तो याही प्रमाणे उग्रह भये पाछे शयन भोग अनसखड़ी धरनो । सबेरे सूर्य उदय होय तब अपरसमें न्हानो। सूर्य ग्रहण ग्रस्तोदय होय तब मंगलाभोग पाछे जो चार घड़ी तीन घड़ी दिन चढ़े होय तो मंगलाभोग पीछे धरनो। जो सूर्य ग्रहणको स्पर्श प्रहर दिन चढ़े भीतर पेहेले होय तो गोपीवल्लभमें अनसखड़ी धरनी । ग्वालको डबरा धरनो । पलना झुलावनो । दोय घड़ी दिन चढ़े स्पर्श होय तो मङ्गलाभोग ही धरनो। और सब पाछे होय जो अनोसर जितनो समय न होय तो उत्थापन भोग धरनो। और जो उत्थापनके समयः ढील होय तो पेड़ा, भुने बीज भोग धरिके अनोसरकी सब तैयारी करिके भोग सरायके आचमन सुखवस्त्र कराय बीड़ा धराय अनोसर करनो । शीतकाल होय तो और जो दोय घड़ी दिन चढ़े ग्रहण लगत होय NEATMER BERISES Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PERSO - - तो अन्धेरेमेही राजभोग आरती करनी। फिर शृंगार बड़ो करि मङ्गलामें रहे इतनोही राखनों । ग्रहणकी ढील होय तो पेड़ो बिछाय टेरा खेंच लेनो । पाछे जब स्पर्श होय तब पेड़ो उठाय शय्या ठाड़ी करि दर्शन खोलने । नित्यके मङ्गलभोगके समेहूँ घड़ी दोय घड़ी ग्रहण अबेरो होय तो मङ्गलभोग पहले धरनो और जो नित्यके मङ्गलभोगके समेंसूं कछुक सूर्य ग्रहण पहले होय तो मंगलभोग पीछे धरनो। उष्णकालमें सूर्य ग्रहण दुपहरेके समय होय तो स्पर्श स्नान श्रीठाकुरजीकू करावनो केशरीकोरके धोती उपरना धरावने । श्रीमस्तकपे तिलक अलकावली ।लर दोहेरा करिके कण्ठमें धरावनी । श्रीमस्तक खुलो रहे। आभरण मंगलाप्रमाणे धरावने । श्रीकण्ठमें एक छोटी माला । मोतीकी एक कण्ठी धराय दर्शन खुलावने।और आश्विनकी जो पुन्योको ग्रहण होय तो शरदको उत्सव पहले दिन करना । और पुन्यो जो घटी होय अरु चौदशको ग्रहण होय तो तेरसकू शरदको उत्सव करनो । और जो दिवारीकू ग्रहण होय तो रूपचौदशकू दिवारीको उत्सव भेलो करनो । और अन्नकूट अक्षयनौमीकूँ करनो। और गोपाष्टमी। संध्या आरती पीछे शृङ्गार बड़ोकरिके वस्त्र दिवारीके धरावने शयन भोग सरे तब कान जगावने हुट में विराजे । दीपमालिकाके दीवा सब जुड़ें। शृङ्गार सुद्धा पोढ़ा वने । मङ्गलनी होरीके दिन होरीको लिख्यो है। ताप्रमाणे थार अनोसरमें आवे । मिठाई सेर 5१ सब तहरकी आवे और जो फाल्गुनी पुन्योको ग्रहण होय तो डोल ग्रहण के दिन करनो। उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रकी बाट न देखनी । ऐसेही स्नानयात्राकू करनो। आषाढ़ी अमावास्याकू जो ग्रहण होय तो और दूसरे दिन परिवाकू पुष्य नक्षत्र होय तो रथयात्रा दूजकू करनी। और | जो तीजकू पुष्य नक्षत्र होय तो तीजकूकरनीचन्द्रग्रहणके तीन Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहर आगले छोड़ने । जो याहीते चार प्रहर दिन उपवास प्रस्तास्तसों रात्रीके दूसरे दिन शुद्ध सूर्य दर्शन पाछे नवीन जलसों स्नान करे । सूर्यग्रहण ग्रस्तोदय होय तब पहले दिन रात्रीको महाप्रसाद नहीं लेनो और कछु नहीं ॥ इति श्रीसातों घरकी उत्सव प्रणालिका तथा ग्रहणकी विवि सम्पूर्ण ॥ अथ कत्थाकी गोली करिवेकी विधि। कत्था सेर ॥ दिन ३१ जलमें भिजोवनो नित्य नितरतो जल बदलनो । फिरि बड़ी तोड़ि सुकावनी पीछे पीसके कपड़छान करे पाछे कस्तूरी मासा ६ खैरसार मासा ६ अम्बर तोला १ अतर गुलाबको मासा ३ अतर मोतियाको मासा ३ अतर केवड़ाको मासा ३ फुलेल मासा ६इन सबनको पुट लगावनो कत्था सेर ऽ॥ ताको आधोरहे। गुलाबजल में सांनके गोली बाँधनी। इति कत्थाकी विधि सम्पूर्ण ॥ सामग्रीको प्रमाण तथा विधि। ... १ केशरी घेवर, २ केशरी चन्द्रकला, ३ आदाको मनोहर, ४ मोहनथार घाँसको, ए चार सामग्रीकी खांड पचगुणी वी दुगुनो तथा ड्योड़ो क्रमते॥ चौगुनी खाण्डकी सामग्री । पिसी बूँदीको मोहनथार बेसनको, २ मनोहर गीदड़ीको, ३ मनोहर दुहीको, ४ मनोहर खोवाको, ९ मनोहर बेसनको, ६ मनोहर मैदाको, ७ मनोहर चोरीठाको, ८घेवर, ९चन्द्रकला, १०धांसकेलडुवा, ११मूङ्गकी बूंदीके लडुवा, १२ मीठी कचोड़ी, १३तवापूड़ी, १४ वुड़कल, | १५ शिखरणबुड़कल, १६ मोहनथार मूङ्गके ॥. १ श्रीमदनमोदककी विधि-मैदा सेरऽ१ दहीमें बांधनो सेव छांटके पीसनी चौगुनी चासनीमें डारके सुगन्ध मिलायके लडुवा बांधने ॥ - Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ REATR EATNERS Ramanamm u - .. २ मदनदीपक-बेसन सेर 5१ दूध सेर ऽ४ में राव करके औटायके जमावनो पाछे कतली करनी पाछे घृतमें तलनी पाछे चासनीमें पागनी, चासनी जलेबीकीसीमें॥ ३दीपकमनोहर-मैदा सेर 5१ चोरीठा सेर 51 बदामको मावो कच्चो तीनोंकूँ मिलायके मनोहरकी सेव छांटनी पाछे चासनीमें मिलायके सुगन्ध मिलायके लडुवा बाँधने ॥ . ४चिरोंजीकी गुझिया-चिरोंजी सेर 5 पीसके बूरो सेरऽ१ मिलायके लडुवा बांधके मैदाकी पूड़ीमें भरके गूथने, तलने ॥ ५ ऐसेई पिस्ताकी गुझिया होय है ॥ ६ गुलगुलाकी विधि-गुलाबके फूलकी पखड़ी खमीरकरि राखिये घीमें भुंजिये फूल परिपक्क होंय तब जलेबीकीसी चासनीमें पागिये ॥ ___७सूरनके लड्डुवा-सूरनके टूक दूधमें बाफि जीणाकरि घीमें भूजि खांड तिगुनी चासनीकरि सुगन्ध डारि लाडू बाँधिये ॥ ___८ गेहूँको चून सेर ऽ॥ बेसन सेर ॥ वीमें भुंजिये परिपक्क होय तब दूध सेरऽ। डारि फिर भूजिये पाछे खांड़ सेरऽ॥ बरास | इलायची डारि लाडू बांधिये ॥ ९ हुलासके लडुवा, दूध सेर ७१ डारि औटावे गाड़ो होय तब खांड़ सेर ३१ घी सेर 51 डारि परिपक्व होय तब मेवा बरास इलायची डारि लाडू बाँधिये ॥ ___ नोट-यह संक्षेप प्रकारसे सामग्री लिखी गई है विस्तार पूर्वक सखड़ी अनप्तखड़ी दूधघर और खांडघरकी सामग्री क्रिया समेत जल घी इत्यादिके प्रमाण तथा तौलसहित व्यञ्जनपाकप्रदीप' नामक ग्रन्थमें छपी है जिनको देखनाहो उस पुस्तकमें देखलेना। इति श्रीमथुरा सरस्वती भण्डार मुखिया रघुनाथजी शिवजी लिखित वल्लभपुष्टिप्रकाश प्रथम भाग सम्पूर्ण । - HA - Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीहरिः । श्रीवल्लभपुष्टिप्रकाश। दूसरा भाग। - श्रीकृष्णाय नमः ॥ श्रीगोपीजनवल्लभाय नमः ॥ अथोत्सव निर्णय । श्रीबालकृष्णपत्कंजं मानसस्थं सुखप्रदम् । प्रणम्य तत्प्रेरणया ग्रन्थोऽयं क्रियते मया ॥ दोहा-वल्लभनन्दन पदयुगल, वंदनकरि सुखदान । निज मारग निर्णय निरखि, लिखिहूँ ताहि प्रमान ॥ अथ प्रथम श्रीमहाप्रभूनने श्रीभागवततत्त्वदीपनिबंधके | विषं “ एकादश्युपवासादि कर्तव्यं वेधवर्जितम् । ” या कारिकाविषे एकादशी निर्णयको क्रम लिख्यो है । तेसें अबहूँ एकादशी आरम्भ करिके निर्णय लिखतहूँ ॥ अथ एकादशी निर्णय। दशमी जो पचपन ५५ घड़ी होय तो वा एकादशीको त्याग करनो। और पलमात्रहू जो पचपन घड़ीमें ओछी होय तो वह एकादशी न छोड़नी । ऐसें श्रीकल्यानरायजीने हूँ आपने एकादशीको निर्णय कियो है तामें लिख्यो है । और जो ज्योतिषी पास न होय और वेधको सन्देह मनमें रहतो होय तो शुद्ध द्वादशीके दिन व्रत करनों ऐसो वाक्य है । और दोय एकादशी होय तो दूसरी एकादशीके दिन व्रत करनों। और जो दोय द्वादशी होय तो शुद्ध एकादशी होय तो हूँ पेहेली द्वादशीके दिनहीं व्रत करनो ॥१॥ Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाम - - - - जन्माष्टमी निर्णय । भाद्रपद वदि अष्टमी जन्माष्टमी । सो वह अष्टमी सप्तमीविद्धा न लेनी सप्तमीको वेध सूर्योदयसँ लेनों । एकादशीकी नाई पचपन ५५ घड़ीको वेध न लेनो। और अष्टमी जो सप्तमीविद्धा होय तो औयिक अष्टमीके दिन उत्सव माननों। और अष्टमीको क्षय होय तोहू शुद्ध नवमीके दिन उत्सव माननो। और दोय अष्टमी होय तो पहली अष्टमीके दिन उत्सव माननो॥२॥ अथ राधाष्टमी निर्णय । भाद्रपद सुदि अष्टमी राधाअष्टमी, सो उदयात् लेनी । और दोय अष्टमी होंय तो पहली अष्टमीके दिन उत्सव माननो और अष्टमीको क्षय होय तो विद्धा अष्टमीके दिन उत्सव माननो॥३॥ अथ दान एकादशीको निर्णय। भाद्रपद सुदि एकादशी दान एकादशी ताको निर्णय । सो जा दिन व्रत करनो तादिन दानको उत्सव माननो। व्रतको प्रकार तो प्रथम एकादशीनिर्णयमें लिख्यो है और यह उत्सव कितनेक औदयिकी एकादशीके दिन करत हैं और एकादशीको क्षय होय तो विद्धा एकादशीके दिनही करत हैं परन्तु मुख्य पक्ष व्रतके दिन उत्सव करनों यहही है ॥४॥ अथ वामनद्वादशी निर्णय। भाद्रपद सुदि द्वादशी वामनद्वादशी, सो द्वादशी मध्याह्न व्यापिनी लेनी । मध्याह्नको लक्षण-जितनी दिनमानकी घड़ी होंय तिनको बराबर मध्यभागसों मध्याह्न होय है। यह मुख्य - samme Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - wwwwwwwsindranama mins पक्ष है। और जितनी दिनमानकी घटी होय तिनके पाञ्च भाग करने । तिनमें तीसरो भाग मध्याह्नको जितनी घड़ीको आवे ताकालको नाम मध्याह्न काल । यह दूसरो पक्ष है । और एका|दशीके दिन विष्णुशृंखल योग होय तो एकादशीके दिन उत्सव माननो । विष्णुशृंखल योगको प्रकार-एकादशीमें श्रवण नक्षत्र बैठे और द्वादशी श्रवण नक्षत्रहीमें उपरान्त आवे ता योगको नाम विष्णुशृंखल योग है । यह योग एकादशीके दिन सूर्योदय लेके सूर्यास्तसुं पहलोंचाय तब आक्त होय तो एकादशीके दिन उत्सव माननों । और रात्रिमें ए योग आवतो होय तो सो उपयोगी नहीं। और एकादशीके दिन विष्णुशृंखल योग न होय, केवल श्रवण नक्षत्र होय और द्वादशीके दिन श्रवण नक्षत्र न होय तोहू एकादशीके दिन उत्सव माननों। और विद्धा एकादशीके दिन श्रवण नक्षत्र होय तो वा दिन । उत्सव नहीं माननों द्वादशीके दिन माननों। और दोई दिन | श्रवण नक्षत्र होय और द्वादशी मध्याह्न समयके विषे दोई दिन आवती होय तो एकादशीके दिन उत्सव माननों। और मध्याह्न समय दोई दिन द्वादशी न आवती होय तोहू एकादशीके दिन उत्सव माननों । और एकादशी तथा द्वादशी दोई दिन श्रवण नक्षत्र आवतो होय तो द्वादशीके दिन उत्सव माननों और दोय द्वादशी होय तो पहेली द्वादशीके दिन श्रवण नक्षत्र होय तो पहेली द्वादशीके दिन उत्सव माननों । और दूसरी दादशीके दिन श्रवण नक्षत्र होय तो दूसरी द्वादशीके दिन उत्सव माननों । और दोय दोय द्वादशीनमें श्रवण नक्षत्र होय तो जा दिन मध्याह्न समय श्रवण नक्षत्रकी व्याप्ति होय ता दिन उत्सव माननों। और दोई दिन श्रवण नक्षत्र होय परन्तु मध्याह्न व्याप्ति - m alinindianmomsonseminine Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दोई दिन नहीं होय तो जा दिन उदयात् श्रवण नक्षत्र होय ता दिन उत्सव माननों ॥५॥ अथ नवरात्रप्रारम्भ निर्णय। *आश्विन सुदि प्रतिपदा नवरात्रको प्रारम्भ होय । सो प्रतिपदा उदयात् लेनी । और दोय प्रतिपदा हाय तो पहली प्रतिपदा लेनी । और प्रतिपदाको क्षय होय तो विद्धा प्रतिपदा लेनी ॥६॥ __ अथ विजयादशमी निर्णय । आश्विन शुद्ध दशमी विजयादशमी, सो दशमी सन्ध्याकालव्यापिनी लेनी । सो (दशमी) दोय प्रकारकी, श्रवण युक्त और श्रवण रहित । तामें श्रवण रहित दशमी चार प्रकारकी होय है-पहले दिन सन्ध्याकालव्यापिनी दूसरे दिन सन्ध्याकालव्यापिनी, दोई दिन सन्ध्याकाल व्यापिनी और दोई दिन सन्ध्याकालमें न होय; ऐसी तामें पहले दिन सन्ध्याकालव्यापिनी होय तो पहले दिन माननी और दूसरे दिन सन्ध्याकालव्यापिनी होय तो दूसरे दिन माननी और दोई दिन सन्ध्याकालव्यापिनी न होय तो दूसरी दशमीके दिन माननी । अब श्रवण नक्षत्र सहित विजयादशमीको प्रकार पहेले दिन दशमी श्रवण नक्षत्रयुक्त सन्ध्याकालव्यापिनी होय तो पहले दिन माननी। और दूसरे दिन सन्ध्यासमय श्रवणनक्षत्रयुक्त होय तो दूसरे दिन माननी । और दशमीके दिन श्रवणनक्षत्र उदयात् होय और सन्ध्याकालविषे श्रवणनक्षत्रकी व्याप्ति आवती न होय तोहू वा दिन माननी। और पहले दिन सन्ध्याकालव्यापिनी दशमी न होय और दूसरे दिन सन्ध्याकालमूं पहले दशमी और श्रवणनक्षत्र होय और समाप्त होते होय तो दूसरे दिन माननी - Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - Ganesamalinsan और सूर्योदयसमय थोड़ी दशमी होय और श्रवणनक्षत्रकी || व्याप्ति होय सन्ध्यासमय होय तोहू वा दिन माननी ॥७॥ अथ शरत्पूर्णिमा निर्णय । आश्विन सुदि पुन्यो शरद पुन्यो, सो चन्द्रोदयव्यापिनी लेनी और दोई दिन पुन्यो चन्द्रोदयव्यापिनी होय तो पहली लेनी। और दोई दिन चन्द्रोदयव्यापिनी न होय तोहू | पहली लेनी ॥ ८॥ अथ धनत्रयोदशी निर्णय । ___ कार्तिकवदि त्रयोदशी धनत्रयोदशी, सो त्रयोदशी उदयात् लेनी। दो त्रयोदशी होंय तो पहली लेनी और त्रयोदशीको क्षय होय तो विद्धा लेनी॥९॥ .. अथ रूपचतुर्दशी निर्णय । । कार्तिक वदि चतुर्दशी रूपचतुर्दशी । यह चतुर्दशी चन्द्रो-। दयव्यापिनी लेनी और दोई दिना चन्द्रोदव्यापिनी होय तो पूर्व लेनी । और दोई दिना चन्द्रोदय समय अथवा अरुणोदय समय । चतुर्दशी क्षयवश न आवती होय तो विद्धा लेनी । यद्यपि निर्भयरामभट्टने यह चतुर्दशी सूर्योदयव्यापिनी लिखी है। तथापि संवत्सरोत्सवकल्पलता, उत्सवमालिका प्रभृति प्राचीन ग्रन्थनको तो पहिले लिख्यो सोही सम्मत है ॥ १० ॥ अथ दीपोत्सव निर्णय। कार्तिक वदि अमावस दीवारी, सो अमावस प्रदोषव्यापिनी लेनी । प्रदोषको लक्षण-तो सूर्यास्त होयवलगे तबसू छः घड़ी रात्रि जाय ता कालको नाम प्रदोष काल । पहेले दिन प्रदोषव्यापिनी होय तो पहले दिन माननी। और दूसरे दिन प्रदोष __ n - - NEPerreatmense - - N SARAN - me Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AgricianaanemasPaaODCHARANANDNESS manmam | व्यापिनी होय तो दूसरे दिन माननी । और दोई दित प्रदोषव्यापिनी होय तो पहले दिन माननी । और दोऊ दिन प्रदोष व्यापिनी न होय तोहू पहले दिन माननी ॥ १३ ॥ अथ अन्नकूटोत्सव निर्णय । अन्नकूटको उत्सव दिवारीके दूसरे दिन माननो । और वादिन कछु अड़बड़ाट अन्नकूट न बनिसके तो कार्तिक सुदि पूर्णिमा ताई जब बने तब करना ॥ १२॥ . अथ भ्रातृद्वितीया निर्णय । कार्तिक सुदि दूज-भाई दूज,सो दूज मध्याह्नव्यापिनी लेनी। मध्याह्नको लक्षण पहले वामनद्वादशीके निर्णयमें लिख्यो है और मध्याह्नव्यापिनीन होय तो उदयात् होय ता दिन माननी॥१३॥ अथ गोपाष्टमी निर्णय। . कार्तिक सुदि अष्टमी गोपाष्टमी, सो उदयात् लेनी । दो अष्टमी होय तो पहली लेनी और क्षय होय तो विद्धा लेनी १४ अथ प्रबोधनी निर्णय। कार्तिक सुदि एकादशी प्रबोधनी सो जादिन व्रत करनो ता दिन भद्रारहित समयमें देवोत्थापन करनो । व्रतको प्रकार प्रथम एकादशीके निर्णयमें लिख्योहै ॥ भद्रा सो विष्टि सो पञ्चांगमें स्फुट लिखी है। और दशमीकी समाप्तिसूं लेके द्वादशीके आरम्भताई एकादशी जितनी बड़ी सिद्ध होय तिनमें दो विभाग करिके दूसरो विभाग भद्रा जाननो । जैसे अट्ठावन वड़ी एकादशी होय तो पहली गुनतीस घड़ी आछी । और दूसरी गुनतीस घड़ी भद्रा जाननी ॥ १५॥ I NHERampaingaavtaRORSHIONamsin e ranmastaraman Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Donta श्रीगिरिधरजीको जन्मोत्सव निर्णय । कार्तिक सुदि द्वादशीके दिन श्रीगिरधरजीको जन्मोत्सव । सो द्वादशी उदयात् लेनी। और दोय द्वादशी होय तो पहली द्वादशीके दिन उत्सव माननो। और द्वादशीको क्षय होय तो विद्धा द्वादशीके दिन उत्सव माननो॥१६॥ अथ श्रीविठ्ठलनाथजन्मोत्सव निर्णय। पौष कृष्ण नवमी श्रीगुसांईजीको जन्मोत्सव । सो नवमी उदयात् लेनी । और दोय नवमी होय तो पहली नवमीके दिन उत्सव माननो। और नवमीको क्षय होय तो विद्धा नवमीके दिन उत्सव माननो ॥ १७॥ अथ मकरसंक्रान्ति निर्णय । मकरसंक्रान्तिको पुण्य संक्रान्ति बैठे पीछे बीस घड़ीताई जाननो । सो सूर्यास्तसूं पहले जो संक्रान्ति बैठे तो वा दिन पुण्यकाल जा समय आवतो होय ता समय तिलवा भोग धरनो। दानादिक करनो और सूर्यास्तसूं पीछे संक्रान्ति बैठे तो दूसरे दिन प्रातः कालके विषे तिलवा भोग धरने। दानादिक करना। और संक्रान्तिके पहले दिन उत्सव माननों ॥१८॥ अथ वसन्तपञ्चमी निर्णय । माघसुदि पञ्चमी वसन्तपञ्चमी । सो पञ्चमी उदयात् लेनी। और दोय पञ्चमी होंय तो पहली पञ्चमीके दिन उत्सव माननो। क्षय होय तो विद्धा पञ्चमीके दिन उत्सव माननो ॥१९॥ अथ होलिकादंडारोपण निर्णय । ___ माघी पुन्योको होरी दंडारोपण पर्वात्मक उत्सव । सो होरी | दंडारोपण भद्रारहित कालमें करनों। सन्ध्याकालविषे अथवा RanaSOAMANDED m aamanarassmateme IPERMINOIDANA - Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PRE SCER-CE - - - प्रातः कालविषे साँझको भद्रारहित पूर्णिमा न होय तो आवती पिछली रातर्फे प्रतिपदामें दंडारापण करनो। और वा दिन ग्रहण होय और ग्रस्तोदय होय तो ग्रहण छूटे पीछे दंडारोपण करनो। और ग्रस्तोदय न होय तो ग्रहणलगे पहले दंडारोपण करनो॥२० अथ श्रीमगोवर्द्धनधरागमनोत्सव निर्णय । फाल्गुनकृष्ण सप्तमी श्रीनाथजीको पाटोत्सव । सो सप्तमी उदयात् लेनी । और दोय सप्तमी होंय तो पहिली सप्तमीके दिन उत्सव माननो। और सप्तमीको क्षय होय तो विद्धा सप्तमीके दिन उत्सव माननो ॥२१॥ अथ होलिकादीपन निर्णय। फाल्गुन सुदि पुन्यो होलिकोत्सव । सो पुन्यो प्रदोषव्यापिनी लेनी। भद्रा सो विष्टिको स्वरूप राखीपुन्योंके निर्णयमें लिख्योहै । सन्ध्याकालके विषे सूर्यास्तसूं पीछे अथवा प्रातः कालके विषे सूर्योदयमूं पहले । और पहिले दिन सगरी रात भद्रा होय और दूसरे दिन सायङ्कालतूं पहिले पुन्यो समाप्त होतीहोय तो दूसरे दिन सूर्यास्तपीछे प्रतिपदामें ही होरी प्रगटनी । अथवा भद्रा बैठे पीछे पांच घड़ी ताँई भद्राको मुख, ताको त्याग करिके बाँकी भद्रामें ही प्रगटनी । अथवा भद्राकी तीन घड़ी छलीसों भद्राको पुच्छ, तामें होरी प्रगटे तोहू चिन्ता नहीं। और वादिन ग्रहण होय और ग्रस्तोदय होय तो ग्रहण छूटे पीछे होरी प्रगटनी। और ग्रस्तोदय न होय तो ग्रहण लगे | पहले होरी प्रगटनी । परन्तु कबहू होरी दिनमें प्रगटनी नहीं | रात्रीमेंही प्रगटनी । और जा रात्री में होरी प्रगटीजाय तामूं पहिले |दिनमें होरीको उत्सव माननों ॥२२॥ - Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RANDIDRESSED MANOMINDIMARIES अथ दोलोत्सव निर्णय। फाल्गुन शुद्ध पौर्णिमाके दिन अथवा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र जा दिन होय ता दिना दोलोत्सव माननो । सो उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र पिछली पहर रात्री लेके सूर्योदय होय तहाँ ताई चाहे तब आयो चहिये । केवल उदयात् नक्षत्रको आग्रह नहीं। और पौर्णिमा पहली उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र आवतो होय तो शुद्ध पौर्णिमाके दिन दोलोत्सव माननो।और दोय पून्यों होंय तो पहली पून्योंके दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र होय तो वा दिन दोलोत्सव करनों । और दूसरी पौर्णिमाके दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र होय तो ता दिन दोलोत्सव करनों। और दोई पूर्णिमाके दिन उदयात् नक्षत्र होय तो पहले दिन दोलोत्सव माननो। और पूर्णिमाको क्षय होय और वा दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र होय तो वा दिन दोलोत्सव करनो। और पूर्णिमा पीछे प्रतिपदा प्रभृतिम उत्तराफाल्गुनी आवे तो ता दिन दोलोत्सव माननो । और सो नक्षत्र दो दिन उदयात् होय तो पहले दिन उत्सव माननो। और उत्तराफाल्गुनी नक्षत्रको क्षय होय तोक्षयकेही दिन दोलोत्सव करनों। और पौर्णिमाके दिन ग्रहण होय और उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र दूसरे दिन होय तो पूर्णिमाके दिन दोलोत्सव करनों । ग्रहण होय तब नक्षत्रको आग्रह नहीं ॥ २३ ॥ अथ संवत्सरारम्भ निर्णय।। - चैत्र शुद्ध प्रतिपदा सम्वत्सरोत्सव । सो प्रतिपदा उदयात् | लेनी । और दोय प्रतिपदा होंय तो पहली प्रतिपदाके दिन उत्सव | माननों। और प्रतिपदाको क्षय होय तो विद्धाप्रतिपदाके दिन उत्सव माननों। और दो चैत्र होंय तो पहले चैत्रकी शुक्ल प्रतिपदाके दिन उत्सव माननो । ऐसो निर्णयसिन्ध्वादिग्रन्थनको Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राखEOSHRESTHANI E Rai STUREROINTAINortamamusemense - - - E HORNBROHRAICHIN - emeanoHINooseme | आशय है और दूसरे चैत्रकी शुद्ध प्रतिपदामें उत्सव माननों । ऐसो समयमयूख प्रभृतिनको अभिप्रायहै तासू जा देशमें जैसो शिष्टाचार होय तहाँ तैसो माननो । या बाबत स्वमार्गीय ग्रन्थनमें कछू विशेष लेख नहीं है ॥२४॥ अथ रामनवमी निर्णय। चैत्र शुद्ध नवमी रामनवमी, सो उदयात् लेनी । और दोय | नवमी होंय तो पहले नवमी के दिन उत्सव माननो । और नव|मीको क्षय होय तो विद्धा नवमीके दिन उत्सव माननो । और दशमीको क्षय होयकें व्रतके दूसरे दिन पारणाके लिये दशमी न रहती होय तोहू विद्धा नवमीके दिन उत्सव माननो ॥२५॥ अथ मेषसंक्रांति निर्णय। मेषसंक्रातिको पुण्यकाल । संक्रांति जा बिरियां बैठे ताटू दश घड़ी पहले और दश घड़ी बैठे पीछे जाननो । तामेहूँ जो जो घड़ी संक्रांतिके पासकी होय सो सो अधिकीअधिकी पुण्य काल जाननों । और सूर्यास्त भये पाछे संक्रान्ति अर्द्धरात्रि पहले बैठती होय तो वा दिना मध्याह्न पीछे पुण्यकाल जाननो। और अर्द्धरात्रिसूं पीछे बैठती होय तो दूसरे मध्याह्न पहिले दोय प्रहर पुण्यकाल जाननों । और बरोबर मध्य रात्रिके समय संक्रान्ति बैठती होय तो पहिले दिना मध्याह्नसू पीछे पुण्यकाल और दूसरे दिन मध्याह्न पहिले दोय प्रहर पुण्यकाल । ऐसे दोऊ दिना पुण्यकाल बरोबर जा दिना सौकर्य होय ता दिना माननों ॥२६॥ अथ श्रीमदाचार्योंका प्रादुर्भावोत्सव निर्णय । वैशाख कृष्णा एकादशी श्रीमहाप्रभूनको जन्मोत्सव । सो t । whatiiHPiI - Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकादशी उदयात् लेनी । और दोई एकादशी होंय तो पहली एकादशीके दिन उत्सव माननो । एकादशीको क्षय होय तो विद्धा एकादशीके दिन उत्सव माननो। जा दिन व्रत करनों ता दिन उत्सव माननो। ऐसो आग्रह नहीं, याही प्रमाणे सातों बालकनके तथा सब गोस्वामि बालकनके जन्मादिक उत्सवनकी सब तिथी लेनी ॥२७॥ ___ अब वैष्णवनकों जानिबेके लिये सातों बालकनके उत्सव लिखतहूँ-श्रीगिरधरजीको उत्सव-कार्तिक सुदि द्वादशी। श्रीगोविन्दरायजीको उत्सव-मार्गशिर वदि अष्टमी । श्रीबालकृष्णजीको उत्सव-आश्विन वदि त्रयोदशी । श्रीगोकुलनाथजीको उत्सव-मार्गशिर सुदि सप्तमी। श्रीरघुनाथजीको उत्सव-कार्तिक सुदि द्वादशी । श्रीयदुनाथजीको उत्सवचैत्र सुदि षष्ठी । श्रीघनश्यामजीको उत्सव-मार्गशिर वदि त्रयोदशी । श्रीमहाप्रभूनके ज्येष्ठ पुत्र श्रीगोपीनाथजीको उत्सव आश्विन वदि द्वादशी ॥ इन सब जन्मोत्सवनमें तिथी उदयात् लेनी । और जो वह तिथी दो दिना सूर्योदय समय होय तो | पहले दिन उत्सव माननो और वा तिथीका क्षय होय तोक्षयके | दिन ही उत्सव माननों। यह निर्णय तो मूलग्रन्थनमें दिखायोही है। और इन सब उत्सवनमें कछु विशेष निर्णय नहीं है। तातूं ये उत्सव संस्कृत निर्णय ग्रन्थनमेंहूँ जुदे लिखे नहीं है। और मूलपुरुषादिकनमें प्रसिद्धहू है ॥२८॥ अथ अक्षयतृतीया निर्णय। । वैशाख सुदि तृतीया । सो तीज उदयात् लेनी । और दोय तीज होय तो पहली तीज माननी और तीजको क्षय होय तो विद्धा तीजके दिन उत्सव माननो ॥२९॥ Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GENE ima अथ नृसिंहचतुर्दशी निर्णय। वैशाख शुद्ध चतुर्दशी नृसिंह चतुर्दशी । सो उदयात् लेनी। और दोय चतुर्दशी होय तो पहली चतुर्दशीके दिन उत्सव माननो। और चतुर्दशीको क्षय होय तो विद्धा चतुर्दशीके दिन उत्सव माननो ॥३०॥ अथ गङ्गादशहरा निर्णय। ज्येष्ठ शुद्ध दशमी श्रीगङ्गाजीको दशहरा, सो दशमी उदयात् लेनी और दोय दशमी होंय तो पहली दशमीके दिन उत्सव माननो और दशमीको क्षय होय तो विद्धा दशमीके दिन उत्सव माननो ॥३१॥ अथ ज्येष्ठाभिषेकोत्सव निर्णय । ज्येष्ठ सुदि पौर्णमासीके दिन अथवा जा दिन सूर्योदयमूं पहले पिछली रातर्फे स्नानसमें ज्येष्ठा नक्षत्र होय ता दिन स्नान यात्राको उत्सव माननों । सो पून्यो उदयात् लेनी। और ज्येष्टानक्षत्र पिछली पहर रात्रिसूं लेके सूर्योदय होय ताँहाँ ताँई चाहे तब आयो चइये । और दोय पून्योहोंय तो पहली पून्योके दिन स्नान समय पिछली रात• ज्येष्ठा नक्षत्र आवतो होय तो वा दिन उत्सव माननो। और दूसरी पून्योके दिन स्नान समय पिछली रात्रिर्फे ज्येष्ठा नक्षत्र आवतो होय तो तादिन उत्सव माननो । और दोई दिन पिछली रात्रिकूँ स्नान समें ज्येष्ठा नक्षत्र आवतो होय तो पहले दिन उत्सव माननो । और पून्योको क्षय होय और वा दिन आवती पिछली रातर्फे स्नान समें ज्येष्ठानक्षत्र आवे तो वा दिन उत्सव माननो। और पून्योके दिन ज्येष्ठा Cont- me । Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । नक्षत्र न होय तो जादिना सूर्योदयसूं पहले स्नानसमें ज्येष्ठा नक्षत्र आवेवादिन उत्सव माननो यामें पूर्णिमाको आग्रह नहीं। और ज्येष्ठा नक्षत्रकों क्षय होय तोह दूसरे दिन स्नानसमें ज्येष्ठा नक्षत्र आवतो होय तो ता दिन उत्सव माननो। और स्नानसमयसैं पहिलेही ज्येष्ठा नक्षत्र समाप्त होय तो केवल पूर्णिमाके दिन उत्सव माननो । और पून्योकी आवती पिछली रातको ज्येष्ठानक्षत्र होय और ग्रहण होय तो पहली पिछली रातर्फे नक्षत्र विनाहू केवल पूर्णिमामें स्नान करावनो ॥ ३२॥ अथ रथोत्सव निर्णय। आषाढ सुदि प्रतिपदातूं लेके जा दिन पुष्य नक्षत्र होय ता दिन रथयात्राको उत्सव माननो । सो पुष्य नक्षत्र सूर्योदय व्यापी लेनो। और दोई दिना पुष्य नक्षत्र सूर्योदयव्यापी होय तो पहले दिन रथयात्राको उत्सव माननो। और नक्षत्रको क्षय होय तो क्षयके दिनही पुष्प नक्षत्रमें उत्सव माननो । अथवा केवल द्वितीयाके दिन उत्सव माननो ॥३३॥ अथ षष्ठी षड़गु निर्णय । आषाढशद्ध षष्ठी कमँबा छठ सों छठ उदयात लेनी । और दोय छठ होय तो पहली छठ लेनी। और छटको क्षय होय तो बिद्धा छठ लेनी ॥ ३४॥ ___ अथाषाढशुद्धपौर्णिमा निर्णय । आषाढ़ सुदि पून्यो पर्वात्मक उत्सव, सो पून्यो उदयात् लेनी। और दोई पून्यो होय तो पहली पून्यो लेनी और पून्योको क्षय होय तो विद्धा पून्यो लेनी ॥३५॥ Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DISEANIHIRAINERS E - - A REESAIRATRITIATR - OM. - । अथ हिंडोलादोलनारम्भ निर्णय । श्रावण कृष्णप्रतिपदासू लेके जा दिन दिनशुद्ध होय श्रीठाकुरजीकी वृषराशी। अनुकूल चन्द्रमा होय ता दिनमूं भद्रारहित समयमें श्रीठाकुरजी हिंडोरामें विराजें फिर श्रीठाकुरजीकू हिंडोरा झुलावने ॥ ३६॥ अथ श्रावणशुक्लतृतीया निर्णय । श्रावण सुदि तीज ठकुरानी तीज, सो उदयात् लेनी। और दोय तीज होंय तो पहली तीज लेनी और तीजको क्षय होय तो विद्धा माननी ॥ ३७॥ अथ नागपञ्चमी निर्णय।। श्रावण शुद्ध पञ्चमी नागपञ्चमी । सो उदयात् लेनी । दोय पंचमी होय तो पहली पंचमी लेनी। और क्षय होय तो विद्धा लेनी ॥ ३८॥ अथ पवित्रैकादशी निर्णय । श्रावण शुद्ध एकादशी पवित्रा एकादशी । सो जा दिन व्रत करनों ता दिन भद्रारहित समयमें श्रीठाकुरजीकू पवित्रा धरावने । व्रतको प्रकार प्रथम एकादशी निर्णयमें लिख्यो है॥३९॥ और भद्राको स्वरूप प्रबोधनीके निर्णयमें लिख्योहै । विशेष रक्षानिर्णयमें लिखूगो॥४०॥ अथ रक्षाबन्धन निर्णय । श्रावण सुदि पून्यो राखीपून्यो, सो पून्योमें राखी धरै तासमें भद्रा नहीं चाहिये । और सबेरे तथा साँझकू भद्रारहित पूर्णिमा मिले तो साँझकू रक्षा धरावनी। भद्राको स्वरूप ज्योति शास्त्रमें 3 नाम .... 3 ................... - - - - Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कह्योहै- 'शुक्के पूर्वाऽष्टमी पञ्चदश्योर्भद्रकादश्यां चतुथ्यौं परार्दै । कृष्णेऽन्त्याः स्यात्तृतीयादशम्योः पूर्वे भागे सप्तमीशम्भुतिथ्योः ॥” शुक्लपक्षमें अष्टमी और पूर्णमासीके पूर्वाईमें एकादशी और चतुर्थीके उत्तरार्द्धमें भद्रा होयहै । कृष्णपक्षमें तृतीया और दशमीके उत्तरार्द्धमें सप्तमी और चतुर्दशीके पहले भागमें होय है । जैसे चतुर्दशीकी समाप्ति भयेसूं लेके प्रतिपदाके आरम्भताँई छप्पनघड़ी पून्यो होय तो पहेली अट्टाईस घड़ी भद्रा जाननो। ये भद्रा पञ्चाङ्गमेंहूं स्फुट लिख्यो होय है । और होरीके निर्णयमेंहूं याही प्रमाणे भद्रा जाननो ॥४१॥ अथ हिंडोलादोलनविजय निर्णय । श्रावण सुदि पून्योलूं लेके तीज ताई जा दिना दिन शुद्ध होय श्रीठाकुरजीकी वृष राशिकू अनुकूल चन्द्र होय शनैश्चर वार बुधवार न होय ता दिन हिंडोराविजय करनो। और कछू अड़बड़ाट होय तो जन्माष्टमी ताँईहूं हिंडोरा झूलें । और पवित्राहू तहाँताई धरे, ऐसे सदाचार है ॥ ४२॥ इति श्रीवल्लभाचार्यपादाम्बुजषडांघ्रिणा। जीवनेन कृतः सम्यनिर्णयो व्रजभाषया ॥१॥ इति श्रीमथुरा सरस्वती भण्डार मुखियार रघुनाथजी शिवजी लिखित वल्लभपुष्टिप्रकाशमें उत्सवनिर्णय दूसराभाग समाप्त । - -- HARMearconommanmaNmeme - - - - - १ जन्माष्टमी ताई पवित्रा धरिसके ऐसो सदाचार है । और कछू बड़े अड़बड़ाटसू जन्माष्टमी ताईहूँ न बनिसके तो प्रबोधिना तॉई हूँ पवित्रा धरायवेको काल ग्रन्थमें लिख्यो है। परन्तु वैष्णवनकों सर्वथा पवित्रा धरा विना रहेनो नहीं क्यों जो पवित्रा धराये विना आखे वर्षकी सेवा निष्कल हाते है । इति निर्णय । Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीहरिः । -- श्रीवल्लभपुष्टिप्रकाश। तीसरा भाग। name commonomerememom - -- - श्रीकृष्णाय नमः ॥ श्रीगोपीजनवल्लभाय नमः ॥ अथ भाव भावना, सेव्यस्वरूपनिर्णय । अब वैष्णवनके ठाकुरस्वरूप विराजित होंय तो यह भाव राखै जाके घरके जे सेवक तिनके मुख्य सेव्यस्वरूप तिनको आविर्भाव स्वरूप मुख्य ८ और समान, “षोडशगोपिकानां मध्ये अष्ट कृष्णा भवन्ति” इति वाक्यात् श्रीजी तथा सातों स्वरूप तहां इतनो भेद वृन्दावनस्थितिलीला केवल पुष्टिश्रीजीके यहां नंदालयस्थितिलीला बाहिर मर्यादा वृत्त अन्तःपुष्टि सातों स्वरूपनके यहां स्मरणीय श्रीजी और सेवनीय सातों स्वरूप"सदा सर्वात्मना सेव्योभगवान गोकुलेश्वरः । स्मर्त्तव्यो गोपिकाबृन्दैः क्रीडन् वृंदावने स्थितः॥ ” इति वाक्यात् यातें वैष्णवके घरमें जे स्वरूप विराजतहैं ते तिनके घरके सेवक हैं तिनके सेव्यस्वरूपको आविर्भाव तातें सेवा करे सो अपने घरकी रीतकी करनी जा घरकी जैसी रीत तैसी रीतकी करनी तहां वैष्णवको यई विचारनो जो शृङ्गार तथा सकल सामग्री अंगीकार करेंगे वहां स्वमार्गीय विधिपूर्वक ह्यां यत् किंचित् में समाप्तिहूँ सो अंगीकार करोगे यह भावमें जो समर्पिये सो अंगी| कार होत है । तब सकल सामग्री अंगीकार होतहै तातें जावैष्ण - Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ R ADIOSee वसों व्यवहार होय सो प्रसाद लेवेकों बुलावै तहां जाय सो प्रसाद परोसे सोलेय आप यथाशक्ति भोग धरयो है परंतु जहां के भावते विराजतहैं तहां सकल सामग्री अरोगे यातें समाज राखवे कोई अवश्य जाय प्रसादले यामें बाधक नाही समाज रहे तो उत्सवकीर्तनि चलें तब गुरुसेवा तथा भगवत्सेवा सिद्ध होय “यस्य देवे परा भक्तिर्यथा देवे तथा गुरौ ॥” इति वाक्यात् सेव्यस्वरूपकों वर्ष एकमें तीन बेर भेट करै। ताको प्रकार-प्रथम पवित्राके दिन प्रभुको पवित्रा पहिराय दूसरो पवित्रा गुरूके भावसों पहिराय भेट करिये घरमें जे होय ते यथाशक्ति भेट घरे इनहूंको सेवा सिद्ध होय, तातें द्वितीय जन्माष्टमीके दिन तिलकके समय तो श्रीफल मात्र भेट धरिये । मुख्य भेट प्रभु पालने पधारें तब हाथको कपड़ा रेशमी प्रभुके पालने में माड़िके उठाइये । पीछे आप तथा घरके जे होंय ते भेट धरें। पालनेके आगे खिलोनाकी तबकड़ीमें बंटी होय तामें धरिये । भाव यह राखिये जो श्रीनंदरायजीके सगे झगा टोपी चूड़ाको लावै । या समेसों अधिकार महाप्रभूनकी कृपातें अपनकोहूँ सिद्ध भयो यह भाग्य, तृतीय तो दिवारीके दिन रात्रिको हटड़ीमें जब प्रभु पधारें तब भेट करें। वह सब भेट बांटिके चोपड़के च्यारों खाली खण्डनमें धरें। जो बचे सो बीचके खाली खण्डमें धरै । भाव यह राखै जो जुवा लगाय खेलत हैं न धरिये तो प्रभु जुवा न खेलें तो आपनको इतनी सेवा सिद्ध न होय तातें अवश्य बांटिके च्यारों ओर धरिये। बट्टै सो मध्य धरिये ये तीनों भेट गुरूके यहां अवश्य पहुँचावनी। पवित्रा भेट गुरुको होय और दोय भेट गुरूके सेव्यस्वरूपकी होंय हैं ताते जहां और उत्सवकी भेट रहे तहां येहू भेट तीनूं सुधि करिके दीजिये तब स्वांगसेवा सिद्ध होय ॥ Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ meeneumona Mamampmmmmmmms - passanamalentinemandemastipatiendmunite - - - अथ वैष्णवको जपको प्रकार । वैष्णवको चार प्रकारकी माला जपनी-तुलसी माला १, वर्णमाला२, करमाला ३,शुद्धकाष्ठकी माला ४।मणिका१०८सुमेरु जदो ताको आशय"शतायुर्वै पुरुषः" या श्रुतिमें शत आयको एक एक मृत्यु लेजाय अत्राव वै मृत्युर्जायते आयुर्हरति वै पुंसां इति च, कृते लक्षं तु वर्षाणि त्रेतायामयुतं तथा । द्वापरेषु सहस्राणि कलौ वर्षशतं स्मृतम्॥"या वाक्यमें सत्य युगमें लक्षवर्षकी आयुष्य कही तब एक आयुष्य सहस्र वर्ष भोगवे, त्रेतामें दश सहस्रकी आयुष्य कही तब शतवर्ष भोगवे,द्वापरमें सहस्र वर्षकी आयुष्य कही तब दश वर्ष भोगवे, कलिमें शत वर्षकी आयुष्य कही तब एक वर्षकी आयुष्य भोगवे । कलिमें सौको नियम नहीं तब पंचास होय तो छः महीना भोगवे पंचीस होय तो तीन महींना भोगवे । सूक्ष्म काल होय तो सौ पल करि भोगवे । अति सूक्ष्म काल होय तो सौ क्षण करि भोगवे । तातें सिद्धान्त यह जो आयु भोगवे विना प्राणोद्गमन होय याते आयुको कालके मुखमें ग्रास होत है ताके दोष निवारणको शत मणिका करिके शत भगवन्नाम लेय तो कालके ग्रासके दोष निवृत्ति होय भगवन्नाम करिके हरण भयो । या भांति आयुष्यको भगवन्नाम करिके हरण भयो । ताको भगवत्स्वरूप संयोग वियोग भेद करिके धर्माविविधिनः, धर्म भगवानको६। एश्वर्य,वीर्य २, यश ३, श्री ४, ज्ञान ५, वैराग्य६, ऐसे अष्टविध भगवत्स्वरूप हृदयारूढ़ होंय और सुमेरुवत्स्वरूप हृदयारूढ़ होय और सुमेरुसों मालाको सूत्र बँध्यो है तैसे भगवचरणारविन्दको मनको सूत्र बँध्यो है तो अधः पात न होय ऊर्द्धगति होय "पतंत्यधोनादृतयुष्मदंघ्रयः” इति वाक्यात् तुलप्तीकी माला mamminen Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुख्य यातें दिव्य गंध है। देव भोग्य है। “पत्रं पुष्पं फलंतोयम्" इत्यत्र पत्रं तुलस्यादि । अथ च भक्तिरूपा गोविन्दचरणप्रिये" इतिवाक्यात् । याते तुलसीकी माला मुख्य १, करमाला अनामिकाके मध्यसे प्रारंभ तर्जनीके अन्त पर्यन्त दश होंय । तर्जनीके अन्तते प्रारंभ अनामिकाके मध्यसे समाप्ति या भांति गिने मध्यमाके मध्यमको । अन्तके दोऊ पर्व सुमेरु “पुष्टिं कायेन निश्चयः ” या वाक्यते पुष्टिसृष्टिको प्रागट्य श्रीअंगते हैं या सृष्टिको सेवाको अधिकार है सेवा तो करसों है । साक्षाद्विनियोग करकोही है ताते करमाला मुख्य २, वर्णमाला कखगघङ चछजझन टठडढण तथदधन पफबभम स्पाक्षर, अन्तस्थाक्षर यरलव, ऊष्माक्षर शषसह, संयोगीअक्षर ज्ञ, स्वराक्षर १६ अआ इई उऊ ऋऋ लल एऐओऔअंः सब मिलि ५० भये व्युत्-।। कमसू गिनिये तो ९० होय मिले १०० भये कचटतपय शअ ये आठ और मिलें १०८ की माला भई लक्षः ये दोऊ अक्षर सुमेरु "स्पर्शस्तस्याभवजीवः स्वरो देह उदाहृतः। ऊष्माणमिन्द्रियाण्याहुरंतस्था बलमात्मनः॥" या वाक्यतें स्पर्शा क्षर २५ शब्दब्रह्मको जीव, स्वराक्षर १६ शब्दब्रह्मकी देह, ऊष्माक्षर ४ शब्द ब्रह्मकी इंद्रिय, अंतस्थाक्षर ४ शब्दब्रह्मको बल, संयोगी अक्षर ज्ञः सो तो 'जभोः 'ये दोहू स्पर्शाक्षरही हैं। या प्रकार ब्रह्मको संबंधहै तातें वर्णमाला मुख्य है ३, शुद्ध काष्ठकी माला यातें प्रशस्त है जो जामें काहू देवताको भाग नहीं तामें सर्वेश्वर श्रीकृष्णचन्द्र हैं तिनको भाग जैसे काहूकी सत्ता नहीं तहाँ राजाकी सत्ता तैसे, अथ च वैष्णवावै वनस्पतयः” इति श्रुतेः काष्ट वैष्णव हैं । तातें यहू माला प्रशस्तहै । यातें शरणमंत्र निवेदनमंत्रके उपदेशके पीछे काष्टकी माला देतहैं वैष्णवत्वात् । भगवदीयको संग दिये जप करवेके % bememastarawaimadamitiltimatmidNCHARGURator - भाग जैसे - इति श्रुतेः कापसत्ता तैसे, अ स्तहै। - % 3D Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FREYPURecाटा मा - Basawal 3 मंत्र २-शरणमंत्र १ निवेदनमंत्र १, तहाँ शरणमंत्रको आवांतर फल सो यह हृदयकी शुद्धि तथा आसुरभावकी निवृत्ति | " तस्मात्सर्वात्मना नित्यं श्रीकृष्णः शरणं मम । वदद्भिवं सततं स्थेयमित्येव मे मतिः। एवं वदद्भिरिति च” "श्रीविष्णोनाम्नि मंत्रेऽखिलकलुषहरे शब्दसामान्यबुद्धिः” इति वाक्यात् । और मुख्य फल तो श्रवण १ कीर्तन २ स्मरण ३ चरणसेवन ४ अर्चन ५ वंदन ६ दास्य ७ ये प्रकारकी सात भक्ति सिद्धभई और निवेदनमंत्रकी योग्यता होय शरणमंत्रमें श्रीपद है सो भक्तनकों बहिर्दर्शनार्थ जो आविर्भूत तिनको स्मरण हैं “कदाचित्परमसौंदर्य स्वगतं करिष्यामीति साकारं प्रादुर्भूतं सत् श्रीकृष्ण-"इति निबंधे तथाभगवत्स्वरूपविर्षे आर्ती होय स्मृतिमात्रार्तिनाशनः' इति वाक्यात् । शरणमंत्रके दोय फल मंत्रमें श्रीपद है ताके आशय दोय जाननें और निवेदनमंत्र बीज है। या मंत्रको आवांतर फल सख्य तथा आत्मनिवेदन भक्ति दोऊ सिद्ध 'भगवानेव शरणं' यह हरत्याख्य कोमल बीजभाव तथा सावरण सेवा साधनरूपा प्रेमासक्तिपर्यंत और मुख्य फल तो व्यसन सर्वात्मभावपर्यंत फलरूपा मानसी भक्ति द्रुमसिद्धसेवा निरावृत्ति सिद्धतवजमूर्तिबुद्धिनिवृत्ति होय शृंगार कल्पद्रुमम्" इति वाक्यात् " सर्वात्मभावको स्वरूप सर्वेद्रिय संबंधी आत्मा जो अंतःकरण ताको भगवानविर्षे भाव सो भावसाधनरूप आधुनिक भक्तनविर्षे " हरिमूर्तिः सदा ध्येया” इत्यादि निरोधलक्षणविषे निरूपणकिये फल रूप भाव तो लीलास्थभक्तनविर्षे भगवता सह संलापाः' इत्यादि कारिकानविर्षे "अक्षण्वतां फलमिदं " या श्लोकमें निरूपण किये हैं। अब फलरूपा मान|| सके मध्य फल ३ हे 'अलौकिकं सामर्थ्य' सो “सर्वा भोग्या सुधा BE aminicanadarsanambuaatasammar w Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ :"" धर्मिरूप आनन्दः सायुज्यं भगवद्भोग्या सुधा धर्मिभूत आनन्दः प्रभु अप्रधानीभूय भक्तपरवशतें सेवोपयोगिदेहो वा वैकुण्ठादिषु देवभोग्या सुधा धर्मभूत आनन्दः प्रभु अप्रधानीभूय स्ववश हैं ३ ये तीन फल | जैसों स्वर्ग फल ता मध्य अमृतपानादि तद्वत् मानसी फलरूपा ता मध्य ये तीन ३ फल होंय । यह पूर्वपक्ष जो अन्तर्यामीरूप करके तो भगवान् सबके हृदय में हैं । उपदेश लेवेके आशय कहाँ ? तहाँ कहते हैं- " बहिश्चेत्प्रकटः स्वात्मा वह्निवत्प्रविशेद्यदि । तदैव सकलो बंधो नाशमेति न चान्यथा ॥ " स्वात्मा बहिश्चेत्प्रकटः " वह्निवत् यदि प्रविशेत् तदैव सकलो बंधो नाशमेति अन्यथा न " । जैसे अरणी कष्ट अनि है पर दाहक सामर्थ्य नहीं जब मथन करिकें वा अग्रिको स्पर्श अरणीकों करिये तब काष्ठांश निवृत्तकार जैसा अग्रिको स्वरूप है तैसो करै ऐसेही अन्तर्यामी रूप करिके यद्यपि अन्तःकरणमें हैं तोऊ बंधनिवर्त्तक सामर्थ्य नहीं तो भक्ति देके भगवत्प्राप्ति कैसें होय यातें गुरूपदेश मुख्य है। गुरू तो या प्रकारको शिष्यके हृदयमें स्थापन करतहें 66 अंतः प्रविष्टो भगवान् मृदुद्धृत्य च कर्णयोः । पुनर्निविशते सम्यक् तदा भवति सुस्थिरः ॥ " ताते गुरूपदेश आवश्यक है " विना श्रीवैष्णवीं दीक्षां प्रसादं सद्गुरोर्विना । विना श्रीवैष्णवं धर्म कथं भागवतो भवेत् ॥ " उपदेश न लेइ तो बाधक है । " अदीक्षितस्य वामोरु कृतं सर्वं निरर्थकम् । पशुयोनिमवाप्नोति दीक्षाहीनो मृतो नरः ॥ " गुरुहू वैष्णव होय ॥ महाकुलप्रसूतोऽपि सर्वयज्ञेषु दीक्षितः । सहस्रशाखाध्यायी च न गुरुः स्यादवैष्णवः ॥ दीक्षा लेवेमें कालादिकहू बाधक नाहीं । " न तिथिर्न च नक्षत्रं न मासादिविचारणा । 77 (6 Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INDORE ORTOR TRADE - - दीक्षायाः कारणं तत्र स्वेच्छा प्राप्ते च सद्गुरौ ॥” सगरु चाहिये "कृष्णसेवापरं वीक्ष्य दंभादिरहितं नरम् । श्रीभागवततत्त्वज्ञं भजेजिज्ञासुरादरात् ॥” इतने लक्षण होय तो हू निष्कलंक श्रीआचार्यजीको कुलहै तातें यह पुष्टिमार्गके उपदेष्टा गुरु आपही हैं और दूसरे गुरुसों पुरुषोत्तमकी प्राप्ति नहीं। “ नमः पितृपदांभोजरेणुभ्यो यनिवेदनात् । अस्मत्कुलं निष्कलङ्क श्रीकृष्णेनात्मसात्कृतम् ॥ ” मंत्रोपदेशहू लीजिये सो शरणमंत्र पीछे निवेदनमंत्र, नवधा भक्ति ये दोऊ मन्त्रनकरिकें होते हैं नवधा भक्ति बिना प्रेमलक्षणा भक्ति न होंय, प्रेमलक्षणा |विना पुरुषोत्तमकी प्राप्ति नहीं "विशिष्टरूपवेदार्थफलं प्रेम च साधनम् । तत्साधनं च नवधा भक्तिस्तत्प्रतिपादिका ॥" मन्त्रोपदेश पीछे भजनहू कारये सो श्रीकृष्णचन्द्रको ही करिये। सारस्वतकल्पमें प्रागट्यहै तिनको पूरण वेई हैं-"कल्पं सारस्वतं प्राप्य बजे गोप्यो भविष्यथ" और कल्पमें श्रीकृष्णावतार पूर्ण नहीं। “हरेरंशाविहागतौ । सितकृष्णकेशौ ” इति च । और श्वेतवाराहकल्पमें अर्जुनकों गीताको उपदेश कियेवा समें संकर्षणव्यूहमें पूर्ण पुरुषोत्तमको आविर्भाव हो “कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धो लोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः ” ॥ इति वाक्यात् गीता सर्वदा तो मोक्षके लिये हैं भक्तिके लिये नहीं "कल्पेऽस्मिन्सर्वमुत्त्यर्थमवतीर्णस्तु सर्वशः” इति वाक्यात् । तातें निष्कर्ष यह जो सेवनीय कथनीय भजनीय श्रीकृष्णचन्द्रही हैं। जे सारस्वतकल्पमें पूर्णको प्राकट्य है तेही श्रीभागवतमें लीला पूर्ण किये हैं और गीताउपदेशमेंहू ५७४ वाक्य कहे हैं सोऊ पूरणके आवेशसों कहे हैं ताते भक्तिशास्त्र सो गीता श्रीभागवत हैं। श्रीकृष्णफल रूपके वाक्यतें गीता फलरूप और - । - Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - गीताको विस्तार श्रीभागवत सोऊ फलरूप है “ गायत्री बीज वेदो वृक्षः श्रीभागवतं फलम् इति वाक्यात् । श्रीगीता श्रीभागवततें प्रगटभयो ऐसो जो पुष्टिमार्ग सोहू फलरूप है पुष्टिकों आविर्भाव श्रीअंगते है “पुष्टिं कायेन निश्चयः” इति वाक्यात् । पुष्टिहू फलरूप है ताते फलप्रकरणमें “षोड़श गोपिकानां मध्ये अष्ट कृष्णा भवन्ति” यातें अष्टस्वरूपको ध्यान | आवश्यक है स्वरूपभावनातें फलप्रकरणमें प्रमाण प्रमेय साधन फल ये च्यारों प्रकरणकी लीला फलप्रकरणमें हैं। "कस्याश्चित् पूतनायन्त्याः " इत्यादि । तहां यह पूर्वपक्ष होय जो भक्तकृत लीला है भगवत्कृत नहीं, ताको समाधान यह जो कृति भक्तनकी हैं सो सब भगवत्कृतही हैं । "तन्मनस्कास्तलापास्तद्विचेष्टास्तदात्मिकाः । तद्गुणानेव गायन्त्यो नात्मागाराणि सस्मरुः॥” इत्यादि । तच्छन्दकरिके भगवल्लीला जानिये, तहाँ प्रथम स्वरूपभावना, पछि लीलाभावना, पीछे भावभावना करिये । “ स्वरूपभावना लीलाभावना भावभावनाच ” इति वाक्यात् प्रथम स्वरूपभावनाको अर्थ स्वरूपस्थितिभावना | तहाँ श्रीजीस्वरूपात्मक श्रीभागवतपुस्तकनाम लीलात्मक, श्रीभागवत प्रथमस्कंध द्वितीयस्कंध दोऊ चरणारविन्द हैं, तृतीयस्कंध चतुर्थस्कंध दोऊ ऊरू, पञ्चमस्कंध षष्ठस्कंध दोऊ जङ्घा, सप्तमस्कंध दक्षिण श्रीहस्त, अष्टमस्कंध नवमस्कंध दोऊ स्तन, दशमस्कंध हृदय, एकादशस्कंध श्रीमस्तक, द्वादशस्कंध वामश्रीहस्त, तहां दक्षिण श्रीहस्तकी मूंठी बांधि अंगुष्ठको प्रदर्शन करावत हैं यातें भक्तनके मनको आकर्षण कारके वामहस्त उन्नत करिकें भक्तनको आकर्षण करत हैं “ उत्क्षितहस्तः पुरुषो भक्तमाकारयेत्पुनः।। Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - दक्षिणेन करेणासौ मुष्टीकृत्य मनांसि नः॥ वामं करं समुद्धत्य निहते पश्य चातुरीम् ॥” इतिच । और करणार्थ ही निकुंजमंदिरके द्वार ठाड़े हैं उभय विभावके आच्छादनार्थ ओढ़नी ओढ़े हैं। याहीतें पीठक चौखुटी हैं। पंचदृष्टिमें सम्मुख दृष्टि हैं। अब श्रीनवनीतप्रियजीको स्वरूप ह्यां बालभाव मुख्य हैं । तातें प्रमाण प्रकरणकी लीला प्रगट हैं । और प्रकरणकी लीला गुप्त हैं। अतएव गुप्तसरसको प्रकार बालभाव विषे हैं । निरावृत्तिस्वरूप रसाध्याय कहैं । याहीतें तनीया धोती सूथन काछनी पहिरें। "जानीत परमं तत्त्वं यशोदोत्सङ्गलालितम् ॥ तदन्यदिति ये प्राहुरासुरांस्तानहो बुधाः॥"श्रीहस्तविषे नवनीत हैं सोई गायनविषं सुधाका जो दान हैं सो सारभूत नवनीत हैं । श्रीहस्तमें राखवेको तात्पर्य यह है जो सुधासंबंध विना भगवद्भोगयोग्य नहीं। “योङ्गनादर्शनीयकुमारलीला" इत्यत्र अंगं नयतीत्यंगना" भक्त सेवानुकूल हैं। प्रभु कुमार हैं कुत्सितो मारो यस्मात् अतएव मदनगोपाल नाम याईते हैं । अथ श्रीमथुरानाथजीको स्वरूप प्रमेयप्रकरण प्रथमाध्यायकी लीला प्रगट और प्रकरणकी लीला गुप्तहैं। अतएव ब्रजमें चतुर्भुज स्वरूप कौन प्रकार नंदकुमार तो द्विभुज हैं परंतु पुष्टिस्वरूपमेंहूं चतुर्भुज हैं । ताको आशय पुष्टिकार्यरूप क्रियाचतुष्टय हैं स्वानंददान १ स्वानंददानविषे जो प्रतिबंध ताको निवारण २ स्वसेवा ३ आधिदैविक भावको परंपराउद्बोधन ४, तहां स्वानंददान तो ब्रजमेंही पधारत हैं तब श्रीमुखामृत लावण्यको पान करावत हैं प्रतिबन्धको निवारणसों विरहजन्य जो न्याय ताको शमन २ स्वसेवा सन्ध्या भोगादिक को स्वीकार आधिदैविक भावको परम्परा उद्बोधक सो वनमें चतुर्दश रसकी लीला किये - - - Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सो स्थानवरसके स्थापुरुषार्थक इतिया सो स्थायीभाव प्रत्येक रसनके प्रगटकरिव्रजीयनविर्षे उद्बोधक करनों नवरसके स्थायीभाव तो नव होंय भक्तिरसको स्थायीभाव रति हैं चतुर्विध पुरुषार्थके स्थायीभाव अलक हैं च्यारों अलकमें हैं तं गोरजश्छुरितकुन्तलं" इति।या प्रकार १४ चौदह रसके स्थायीभाव जानिये और आयुध धारणको आशय-शङ्ख चक्र गदा पद्म या क्रमसों धरें सो मधुसूदन स्वरूप कहावें । तत्र कहे हैं पुष्टिमें तो-" मधुसूदनरूपत्वं गजराजविहारिणः” इति वाक्यात् गजवत् विहारलीला है निचले दक्षिण श्रीहस्तमें शंख है ताको अवांतर भाव आसुरगर्वनिवृत्तिः “ विष्णोर्मुखोत्थानिलपूरितस्य यस्य ध्वनिर्दानवदर्पहन्ता” इति । शंख अंबुफल कहे हैं तातें आयुध मुख्य भाव तो ग्रीवाकी आकृति ऊपर दक्षिण श्रीहस्तमें पद्म है ताके अवांतर भाव तो जापर धरेंतापर चौदह भुवनको भार परयो तब दबि जायभुवनात्मकं कमल-'इति वाक्यात् जैसे काहूपर एक भीति परे सो दुबिजाय ताकी कौन व्यथा तैसे चौदह भुवन पड़ें तो कहा कहवेमें आवै तातें पद्म आयुध हैं। मुख्य भाव तो श्रीमुखकी आकृति ऊपर वाम श्रीहस्तमें गदा है ताको अवांतर भाव तो अस्त्रको तेज निवारण करत हैं अस्त्रतेजः स्वगदया” इति । मुख्य भाव तोभुजाश्लेष हैं अवष्टंभ हैं निचले वाम श्रीहस्तमें चक्र है ताको अवांतर भाव तो जाकों मुक्ति देनी होय ताकों चक्रसों मारें "ये ये हताश्चक्रधरेण राजन्” इति । और मुख्य भाव तो कङ्कणाकृति है। “प्रियाभुजाश्लिष्टभुजः कंकणाकृतिचक्रकः । कम्बुकण्ठो धृत भुजो लीलाकमलवेत्रधृक् ॥” मुख्य भावके आशयको प्रमाण लिखे हैं दिवसमें वन गमन तब होत है जब ये पदार्थ भाव सूचक हैं । याहीतें आयुधके स्वरूप मूर्त्तिवन्त भगवद्भावाविष्ट madamasonsuman Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ am S - पुरुष रूप च्यार हैं और मर्यादा पुष्टि भेद करिकें ऐश्वर्यादिकके स्वरूप मिलि ६ हैं । याही पीठक मोल हैं । मुकुटपर ओढ़नी हैं । अथ श्रीविठ्ठलेश रायजीको स्वरूप फलप्रकरणके द्वितीयाध्यायकी लीला प्रगट हैं और प्रकरणकी लीला गुप्त हैं। "पुनः पुलिनमागत्य कालिंद्याः कृष्णभावनाः” इति वाक्यात् कालिंदीस्वस्वरूपको दर्शन कराये तब भक्तनकों भावस्फूर्ति भई "भगवान् विरहं दत्त्वा भाववृद्धिं करोति हि । तथैव यमुनास्वामिस्मरणात् स्वीयदर्शनात् ॥” इति च । प्रथम मुख्य स्वामिनीविर्षे आसक्ति भरिकरिकें तद्रूप करिके गौर तो इतेही फिरि श्रीयमुनाजीको भगवद्भावाविष्ट स्वरूप देखिकें मोहितभये तदनन्तर सात्त्विक भावाविष्ट कमल सदृश जे नेत्र तिनके कटाक्ष करिके श्यामताहू स्वरूपवित्रं प्रदर्शित होत हैं तातें गौर श्याम हैं " स्वामिनीगौरभावस्य स्वस्वरूपं प्रपश्यतः। कटाक्षैविट्ठलेशस्य श्यामताचित्रितं वपुः॥” इति शृङ्गार रसात्मक भगवत्स्वरूप संयोग वियोग भेद करिके उभयात्मक विरुद्ध धर्माश्रय ब्रह्मतें स्वरूपविर्षे उभय भावकी स्थिति हैं तेहू गौरश्याम हैं ।“ रसस्य द्विविधस्यापि स्वरूपे बोधयन् स्थितिम् । ऐक्यं विरुद्धधर्मत्वागौरश्यामः कृपानिधिः ॥” रसपरवशतेही कटि भाग पद दोऊ श्रीहस्त हैं । “समपादाम्बुजं सूक्ष्म कटिलग्नभुजद्वयम् । किरीटिनं लसद्वकं विट्ठलेशमहं भजे ॥” अतएव वाम श्रीहस्तमें सच्छिद्र शङ्ख हैं। ध्वनिते विरुद्ध धर्माश्रय भगवत्स्वरूप हैं । यह द्योतित करत हैं । भक्तवृन्द जो निजांगीकृत हैं तिनके उभय भाव करि गौर श्याम हैं । यह योतित करत हैं। अतएव एक चरणारविन्दमें आभरण हैं एक नहीं। | अथ श्रीद्वारकानाथजीको स्वरूप प्रमेयप्रकरणकी सप्त - - INDE Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राज माध्यायकी लीला प्रगट है और प्रकरणकी लीला गुप्त है। अतएव चतुर्भुज ब्रजमें प्रमेय बल कार हैं रहस्यलीलाविषे सखीवृन्दमें मुख्य स्वामिनी विराजत हैं। तहां भगवत्संबंधी सखी सम्मुख बैठी हैं। इतने प्रभु पधारे । तब स्वकीय सखीको समस्यासों बरजी। पीछेतें परि दोऊ श्रीहस्तसों नेत्र मीच दूसरे दोय श्रीहस्तसो वेणुकूजनकार भाषणकिये जो कौन हैं । यों जताये जो वेणु कूजनते प्रेमोत्पत्ति है। " चुकुञ्ज वेणुम्" इति वाक्यात् । “ भूवल्लीसंज्ञयादौ सहचरिनिकरे वर्जयित्वा स्वकीयां पश्चादागत्य तूष्णीमथ नयनयुगं स्वप्रियाया निमील्य । कोस्मीत्येतद्वचनमसकृदेणुना भाषमाणः पातु क्रीड़ारसपरिचयस्त्वां चतुर्बाहुरुचैः ॥ ” याहीतें आयुध धारणकोहू प्रकार ह्यां या भांति निचले दक्षिण-श्रीहस्तमें पद्मसों प्रिया पाणि है नेत्रनिमीलन छुड़ावत हैं ऊपर दक्षिण श्रीहस्तमें गदा है सो प्रिया अद्भुतलीला देखि आश्लेष करत है। ऊपर वाम श्रीहस्तमें चक्र है सो प्रियाके कंकणादिकके स्पर्शते क्षतसूचित होत हैं । निचले वाम श्रीहस्तमें शङ्ख है सो प्रियाके सम्मुखतें ग्रीवाके स्पर्श होत हैं। याहीतें ह्यां आयुधके स्वरूप मूर्तिवंत चार ४ हैं प्रियाके आविर्भावविशिष्ट स्त्रीरूप हैं । अतएव पीठक चौखूटी है । प्रियाविशिष्ट है ॥ - अथ श्रीगोवर्द्धनधरको स्वरूप साधनप्रकरणकी लीला प्रगट हैं और प्रकरणकी लीला गुप्त हैं। श्रीगोवर्द्धनजीके उद्धरणको स्वरूप आपु तो हरिदासवर्य हैं । जब प्रभु पधारें तब आपतें ठाढ़े होयरहैं । तो दास्यधर्मत्वात् और डांडी चाहिये सो कबहु प्रभु वाम श्रीहस्तमें ऊंचोकरें जब प्रभु वेणु नाद करे तब आलंबन सो आश्लेष है तब इनके श्रीहस्तमें शङ्ख हैं सो - MAHILAO NE ARTISHISEARRINEEROmsmHMISTANECHATTERIARRIALCD REIMES Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मा अच्छिद्र है ताको आशय जो शंख हैं सो जलको तात्त्विक रूप हैं "अपां तत्त्वं दरवरम्” इति वाक्यात् । जितनी वृष्टि भई सो ता जलको आधिदैविक यह शंख हैं तामें सब वृष्टिके जलको आकर्षण करें जलको आधिदैविक संबन्ध भयो तब भोगयोग्य भयो तातें याको पान किये अतएव वाम श्रीहस्तमें हैं झारी बांई ओरही हैं। याहीतें इंद्रको अपराध क्षमाकर प्रसन्न भये । नंदादिप्रभृति भोगसामग्री समर्प इंद्र जलकी सेवा किये और परिकर सब एकत्र किये, न तु ब्रह्मा । जैसे प्रक्षिताध्यायमें वत्ताहरण लीलाविषे परिकर भगवानते जुदो किये। तातें अप्रसन्न भये। और इंद्र परिकर इकठोरो किये। तथा जलकी सेवा किये। ताते प्रकार ये कमलपर ठाड़े हैं। ताको आशय जलको अनुभव कारके कमलके बाहर आये तब विकाश जो आमोद लक्ष्मीनिवास ये तीन गुणको आरंभ भयो तैसे ब्रह्मानंदको अनुभव कारकें बाहिर जब आये तब भजनानंदको अनुभव भयो तहां इनके अवयवको विकाश और वाको रूप जो पुष्प तिनमें अर्थ सो आमोद तब प्रभु उत्तरीय पर विराजे यह लक्ष्मीनिवास । ' अथ श्रीगोकुलचंद्रमाजीको स्वरूप फलप्रकरणके चतुर्थाध्यायकी लीला प्रगट और प्रकरणकी लीला गुप्त हैं। “साक्षान्मन्मथमन्मथः ” इति वाक्यात् । अपनें स्वरूपमात्र करिके कंदर्प जो कामदेव हैं ताकों जीते “सालिकुलं कमलकुलं जितं निजाकारमात्रतो जगति । प्रकटातिगूढरसभरजितोऽभवत्कुसुमशर कोटिः॥” इति त्रिभङ्गललितग्रंथ हैं। सो इनहीं स्वरूपको वर्णन है तहां त्रिभंग सो तीन अंग वक्र हैं। पद, कटि, ग्रीवा; ये तीन अंग तहां पद तो वाम चरणको स्थापन सो पुष्टिको स्थापन है। दक्षिण उन्नत है सो मर्यादाको उल्लंघन हैं। यत्किंचित् । - Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TARANRAINRHARI - - अंगुलीनकी स्थिति हैं ताको आशय जो मर्यादाकी स्थिति हैं। सो पुष्टिको आश्रय करत हैं। “पुष्टिभक्तिस्थितिं कृत्वा मर्यादां च तदाश्रिता” इति वाक्यात् । कटि तथा श्रीवानमिति यातें जो और पात्रमें रसस्थापन न होय तब और पात्रमें न आवे तब भरित पात्रनमें रस आ3 "रसभरितं पात्रं नामितमन्यत्र तं रसं कर्तुम्” वेणुके रंध्र ७ सातको स्वरूप धर्म ६ विशिष्टधर्मी १ दक्षिण श्रीहस्त अभय करत हैं भजन विर्षे ३ प्रश्नको उत्तरदेय भक्तनके भजनकी स्तुति किये ऐसो भजन किये जो बहुत काल पर्यंत भजन तुम्हारो करिये तोहू पार न आवे । “न पारयेहं निरवद्य-” तर्जनीको अंगुष्टको स्पर्श है मध्यमा अनामिका कनिष्टा ये अर्द्ध हैं। ये नृत्यको भाव हैं। “ यतो हस्तस्ततो दृष्टियतो दृष्टिस्ततो मनः । यतो मनस्ततो भावो यतो भावस्ततो रसः ॥” यह नित्य सामयिक नृत्य समयको स्वरूप हैं, याते रातोत्सवको प्रकार ह्यांई जानिये वेणुस्थिति दोऊ श्रीहस्तके अवयवमध्यमें होय दृष्टि दक्षिणपरावृत्त होय भूमि पर कृपा अवलोकन हैं, वेणुनाद ५ प्रकारको हैं तामें यहां दक्षिण हैं स्त्रीपुरुष सबनकों भावोदोधक हैं। "देवांगना उच्चैरधस्तिरश्चां वामपरावृत्तदेवस्त्रीणाम् । स्त्रीणां पुरुषाणां च दक्षिणः समतया सर्वेषामचेतना " या भांति ३तिनको स्वरूप कहा । ताको अभिप्राय-रूप,रस, गंध,स्पर्श, शब्द, तेज, जल, पृथ्वी, वायु, आकाश, पञ्चदृष्टि संयुक्त हैं जैसेंही वेणुनाद पंचदृष्टिसंयुक्त हैं तैसे पृथिव्यादिककी तन्मात्र पांच प्रकारको वेणुनादहू प्रिय हैं ताको स्वरूप रूप नील प्रिय हैं शृङ्गाररूपत्वात् रसोनवनीतस्य सुधासंबंधत्वात् गंधस्तुलस्या दिव्यगंधत्वात् स्पर्शःस्त्रीणां सुधाधारत्वात् शब्द वेणुको प्रथमसुधाधारत्वात् ५ मल्लकाछको momen - - Mo - ndalshanthematguesti o www Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mam mNTRE manarmananda स्वीकार है सो गायनको आह्वान सुधादानार्थ है “वमिणस्तबकधातुपलाशैवद्धमल्लपरिवर्हि विडंबः । कहिचित् सबल आलि सगोपैः समाह्वयति यत्र मुकुंदः ।। ” यह अलौलिक वेष देखकें नदीनकोंहू स्पृहा भई “तर्हि भग्नगतयः सरितौवैः' इति वेणुनाद वामाश्रित होय तो करतहैं ताहि दक्षिण श्रीबाहुमें बाजूबंद नहीं सिंहासनपर ठाढ़े हैं दिशिखि तकिया हैं सो कटिताईको स्पर्श कियो है सो तकिया नहीं किंतु आलंबन उद्दीपन दोऊ विभाव हैं। किंच ललित त्रिभंग ग्रंथके मंगलाचरणमें आत्मनिवेदन कह्यो है ताको आशय जो श्रीमदाचार्यजीकों श्रीगोकुलमें ब्रह्मसंबंधकी आज्ञा भई है सो याही स्वरूप करिके हैं "नमः पितृपदांभोजरेणुभ्यो यन्निवेदनात् । अस्मत्कुलं निष्कलंक श्रीकृष्णनात्मसात्कृतम्॥” और श्रीमधुराष्टककोहूं प्रागटय याही समयके स्वरूपको हैं पधारतही ब्रह्मसंबं की आज्ञा किये सो श्रीमुखको दर्शन पहलेही भयो याते "अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरम् । हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपतेरखिलं मधुरम् ॥” ताते मधुराधिपह यही स्वरूप जनिये ॥ ____अथ श्रीमदनमोहनजीको स्वरूप फलप्रकरणकी प्रथमाध्यायकी लीला प्रगट और प्रकरणकी लीला गुप्त हैं वेणुनादकारीके भक्तनको आकर्षणकिये तब भक्तनप्रति जो कहें “स्वागतं वो महाभागाः प्रियं किं करवाणि वः । ब्रजस्यानामयं कच्चिद्व्तागमनकारणम् ॥रजन्येषा घोररूपा घोरसत्त्वनिषेविता। प्रतियात ब्रजं नेह स्थेयं स्त्रीभिः सुमध्यमाः॥” ये गमनवाक्य हैं सो याही स्वरूपकरिके हैं दक्षिण श्रीहस्तकी अंगुरी मध्यमा तथा अनामिका इन दोऊनसों करतलको स्पर्श है। तातें गमनभय करत wanload %3 Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दान PRECEDEO - होय तो करतलको स्पर्श न होय तब आगम सूचित होय || ये वाक्य श्रवण करि भक्तनकों एक बेर तो महाचिन्ता भई प्रभु कहा त्याग किये फिरि वाक्य विचारे तब सुमध्यमा यह पद हैं। ता करिके भक्तनको भाव देखि मोहित भये । यह जानके तब श्रीमुख देखत ही संपूर्ण श्रीअङ्ग गौर देखें तब तन्मयता निश्चय भई ता पीछे चरणारविन्दमें पादुकाको प्रदर्शन भयो ये अंतराय है भूमिको स्पर्श नहीं जो अन्तराय होय ताको स्पर्श समान है जैसे मोजा अंगराग लगायें होंय चरणारविन्दकों तब जो स्पर्श करिये तो स्पर्शतो चन्दनको भयो ये अन्तराल हैं भूमिको स्पर्श नहीं है । जो अन्तराय होय ताको स्पर्श समान हैं। जैसे मोजा अंगराग लगाये होंय तो चरणारबिन्दको तब जो स्पर्श करिये तो चन्दनको भयो पर वह अङ्गराग चरणारविन्दही है यह अन्तराय मात्रहीं हैं पर अंतराल नहीं। काहेत?मध्य अवकाश नहीं । तातें पादुका अन्तराल हैं तातें ये वाक्य व्यंग हैं वाक्य पर्यवसायी मत होय यह निष्कर्ष वाक्यमर्यादा हैं चरणारविन्द साधन भक्तिरूप हैं। ताते मर्यादा जो हैं सो भक्तिसंवलित होय तोभक्त स्वीकार करें हैं और भक्तसंवलित मर्यादा न होय तब स्वीकार नहीं तातें वाक्य जब श्रीअङ्गको सुखद होय तब स्वीकार करिये। अतएव दक्षिण चरणारविन्दकी अंगुरीको स्पर्शमात्र पादुकाको है ऐसे चरणारविन्दके दर्शनतें । दास्यकी स्फूर्ति भई । तब फलरूप जो भक्ति श्रीमुख ताको दर्शन भयो।तब दास्य रूपजोधर्म ताके आगे चतुर्विध जो मुक्ति सो तुच्छ है अलकावृत श्रीमुख देखिकें सारूप्य मुक्तिको प्राप्ति जो अलक सो भक्तिको आश्रय करतहैं । तब सारूप्यमुक्ति करिके कहा कुंडल योग सांख्यरूप होय सामीप्यमुक्तिके. Mistane - R OMANTRA समHIN D EEPRADESH Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Ra mnmommamRam - । प्राप्तहैं । यद्यपि अत्यंत नैकल्य हैं भक्तिको आश्रित हैं। तब सामीप्यमुक्तितें कहा सालोक्यमुक्तिमें अक्षरानंदानुभव हैं सो गंडस्थलयुक्त जो अधर ता रसके आगे अन्यरस तुच्छ हैं । तब सालोक्यमुक्तिकरिके कहा । सायुज्यमुक्तिमें ब्रह्मानंदानुभव है। सो हास्यपूर्वक जो अवलोकन तामें भक्तिरस है। याके आगे ब्रह्मानंद तुच्छ है । “जले निमग्नस्य जलपानवत् ” तब सायुज्यमुक्तिसों कहा “वीक्ष्यालकावृतमुखं तव कुंडलथि गंडस्थलाधरसुधं हसितावलोकम् ॥” इति वाक्यात् । जब ऐसो भक्तनको भाव देखेंहैं, हैं आत्माराम; तोहू रमणकिये । “आत्मारामोप्यरीरमत्” इति । ये अष्टस्वरूपको निर्णयकिये हैं । ये आठों स्वरूप धर्मी धर्मी जानिये । और गोदके ६ छः स्वरूप हैं। तहाँ दशमके सप्तमाध्यायमें “यच्छृण्वतोपैत्यरतिवितृष्णासत्त्वं च शुद्धयत्यचिरेण पुंसः । भक्तौ हरे तत्पुरुषे च सख्यं तदेव हारं वद मन्यसे यदि ॥" ह्यां ये राजाके पांच प्रश्न हैं । तहाँ शुकदेवजी कहें इन लीलाके श्रवण पहिले श्रीमातृचरणको निरोध किये हैं। सो लीला कहत हैं। सो शकटभंजनलीला हैं। तीन महीनाके भये तब औत्थानिक लीला हैं यह लीला श्रीदारकानाथजीके पासके ठाकुरजी श्रीबालकृष्णजी हैं तहाँ यह लीला प्रगटहैं और लीला गुप्तहैं । और श्रीमथुरानाथजीके पासके श्रीनटवरजी हैं तहाँ तृणावर्त्तके प्रसंगकी लीला प्रगटहैं। वर्ष एकके भये हैं या लीलाके श्रवणतें आतिकी निवृत्ति होय और श्रीनवनीतप्रियजीके पास श्रीबालकृष्णजी तथ श्रीमदनमोहनजी हैं। तहाँ जंभालीला तथा सत्त्वशुद्ध यह लीला प्रगट हें। या लीलाके श्रवणतें भक्ति होय। वितृष्णा निवृत्त होय सत्त्व जो अन्तःकरण ताकी शुद्धि होय । और श्रीगोकुल - Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ IL - - - indian चन्द्रमाजीके पास श्रीबालकृष्णजी तथा श्रीमदनमोहनजी हैं। तहां उलूखल बन्धन तथा नलकूबर मणिग्रीवको उद्धार किये यह लीला प्रगट हैं। या लीलाके श्रवणतें भक्ति होय तथा भगवदीयनको सङ्ग होय । या प्रकार ६ स्वरूप गोदके हैं । तिनके स्वरूपको निरूपण किये भगवल्लीला नित्य हैं । स्वरूपात्मक हैं। तातें ये ६ लीलाके ६ स्वरूप कहै । ये लीलाप्रमाण प्रकरणके अन्तर्भूत हैं । तातें ये ६ स्वरूप गोदके कहवाये । तातें ये ६ स्वरूप लीलाकों विशद करिके-" यच्छृण्वतोपैत्यरतिवितृष्णा" या श्लोककी सुबोधिनीमें कहे हैं। ह्यां विस्तारके लिये नहीं लिखे हैं। तातें ये अष्ट स्वरूप तथा गोदके छः स्वरूप दृष्टिदेके भावना करिये। यहां स्वरूप भावना कहैं जैसी स्वरूपकी स्थिति हैं ता प्रकार कहे । अब लीला भावना लिखत हैं-लीला भावना जोलीलास्थके जे भक्त तिनकी भावना तहां प्रथम वामभागस्थ श्रीस्वामिनीजी विराजत हैं तिनको स्वरूप शृङ्गार रस भगवत्स्वरूपको आलम्बन विभाव गौर स्वरूप है । सो शृङ्गार रसको उद्घोषक है।शृङ्गार श्याम है गौर उद्घोषक हैं" श्यामं हिरण्यपारी " या श्लोककी सुबोधिनीमें शृङ्गार श्याम हैं। गौर उरोधक हैं यह कह्यो है। अवतार लीला विषे श्रीवृषभानुजा हैं सो मुख्य सुधाकार हैं भगवत्प्रादुर्भावके दोय वर्ष पहिले प्रागया हैं। प्रादुर्भावानन्तर जब दूसरो उत्सव आयो तब सुधाको आविर्भाव भयो । तातें कहें जो सुख नन्दभवनमें उमग्यो तातें दूनो होयरी और पांच वरसके श्याम मनोहर सात वरसकी बाला इन दोऊ कीर्तनकी या भांति एक वाक्यता हैं। प्रागट्य दोय वर्ष पहिले हैं। भगवत्प्रादुर्भावानंतर सुधाविर्भाव है सो शृङ्गार रसात्मक जो भगवत्स्वरूप तिनकी Madam AppenemunicuremamaMENDERememm Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ son - womenemy - - -- - - - सारभूत सुधा है। और शृङ्गार श्याम हैं तातें नीलांबर प्रिय हैं। दक्षिणभागस्थ श्रीस्वामिनीजी विराजत हैं। तिनको स्वरूप शृंगाररसरूप जो भगवत्स्वरूप है तिनको उद्दीपन विभाव है।। आरक्त स्वरूप हैं सो रसको उद्बोधक हैं। गौर स्वरूप शृंगारको उद्बोधक हैं। आरक्त स्वरूप हैं सोशृंगारमें जो रस हैं ताको उद्बोधक हैं । अतएव दांतके खिलोना वाम भाग रहें लाल खिलोना दक्षिण भाग रहें श्याम हैं सो गौरकी जो उभयत्र प्रीति हैं सो मूर्तिवंत ये स्वरूप हैं। कीर्तनमेंहूँ कहे हैं । तट तरंगिनी निकट तरणिक तट मृदुल चंपकवर्णी दक्षिण प्रीति वामभाग जोरी कर्वरी प्रीतिको कथन शब्दात्मक है। शब्दको मूल तो। वेद, वेदको मूल गायत्री सो गायत्रीरूप ब्रह्म आपही होतभये। " श्रीकृष्णः स्वात्मना सर्वमुत्पाद्य विविधं जगत् । तदासक्तावबोधाय शब्दब्रह्माभवत्स्वयम् ॥ तत्र सर्गादिभिः क्रीडन् नित्यानंदरसात्मकः। निजभावप्रकाशाय गायत्रीरूप उद्धभौ ॥ " इति वाक्यात्। तातें गायत्रीरूपहू येही हैं। अतएव नाम श्रीचन्द्रावलीजी चन्द्रमें नियत श्याम कला हैं गौरकला हैं दोऊके उद्बोधक हैं यातें नाम यह हैं और अपर श्रीस्वामिनीजी हैं सखी नहीं तातें दक्षिण भागमें सदाही विराजे । पोढ़ेऊँ ऐसे शृंगारहू दोऊभागको एक भांतिको होय । अब श्रीयमुनाजीको स्वरूप कहत हैं-तुर्य प्रिया सोचतुर्थप्रिया सोया प्रकार कितनेक भक्तनको ब्रजलीलामें अंगीकार हैं । जैसें नन्दादिक प्रभृतिनको कितनेक भक्तनकों राजलीलामें अंगीकार हैं जैसें वसुदेव प्रभृतिनको, कितनेक भक्तनकों उभय लीलामें अंगीकार है । जैसे कुमारिकानकों उत्तरार्धमें “बलभद्रप्रियः कृष्णः" या अध्यायकी सुबोधनीमें कुमारिकानको पुराणांतर संमति देयके द्वारकानयन Reme Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ neltodiactamindanimative - - aneumoniakamamlesiastissamesessmamich - | लिखेंहें याहीते वहां गोपीचन्दन तो तब भयो जब कुमारिकानको नयन हैं जैसे कालिंदी चतुर्थप्रिया हैं और ब्रजलीलामें श्रीयमुनाजी हैं या प्रकार उभय लीलाविशिष्ट हैं याते तुर्यप्रिया हैं। कदाचित् या प्रकार कहिये जो नित्यसिद्धाको एक यूथ १ श्रुतिरूपाको एक यूथ १ कुमारिकाको एक यूथ १ श्रीयमुनाजीको एक यूथ १ या प्रकार तुर्यप्रिया जो कहिये तो श्रीयमुनाजीको अंगीकार श्रीयमुनाजीके श्रृंगार पहिले " श्रुतिरूपा कुमारिका” को नहीं श्रीयमुनाजी व्यापिवैकुंठमें हैं इनकी रेणुकाकी प्रतिनिधि कात्यायनी किये तब कुमारिकानको साधन सिद्ध भयो और श्रुतिनकोंहू दर्शनभयो हैं। तहां कहतहैं- “यत्र निर्मलपानीया कालिंदी सरितां वरा” ताते प्रथम प्रकार सोई तुर्याप्रियाते सिद्ध होत हैं और अष्टसिद्धि हैं सो प्रभु श्रीयमुनाजीको दिये हैं साक्षात्सेवोपयोगिदेहाप्ति १ तल्लीलाऽवलोकन २ तद्रसानुभव ३ सर्वात्मभाव ४ भगवदशीकरणत्व ५ भगवत्प्रियत्व भगवत्तात्पर्यज्ञत्व ६ भक्तिदातृत्व ७ भगवद्रसपोपकत्व ८ ये अष्ट सिद्धि श्रीयमुनाष्टकके प्रत्येक आठों श्लोककरि निरूपित हैं षड्गुणविशिष्ट धर्मी ये सप्त विधत्वह हैं 'अनंतगुणभूषिते' यामें कहे हैं। जलते यमयातनानिवृत्तिः रेणुते । तनुनवत्व, जलरेणु अधिक फलसंपादकहैं ॥ "स्मरश्रमजलाणुभिः " यह जलरेणुहूते अधिकी" जलादपि रजः पुण्यं रजसोपि जलं वरम् । यत्र वृन्दावनं तत्र नातास्नातकथा कुतः ॥" ये अष्टसिद्धि श्रीयमुनाजीकों दान किये हैं। इतनोही नहीं किंतु ये अष्टसिद्धिके दाताहू आप हैं पहिले श्रीगंगाजीमें दर्शनमात्रते ब्रह्महत्यादिक पातक निवृत्तिको सामर्थ्य हतो चरणस्पर्शतें अब इनके संगते “मुररिपोः प्रियंभावुका” भई तथा सकलसिद्धि Raman GANDMARSHAN - - une S am Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ tomomupe B ARSena Asmamme - - दाता भई याहीतें अलौकिक आभरण कहै “तरंगभुजकंकणप्रकटमुक्तिकावालुकानितम्बतटसुन्दरी नमत कृष्णतुर्यप्रियाम्" येहू स्वामिनीजी हैं सखी श्यामरूप हैं। शृङ्गाररूप हैं इनको हू यूथ प्रथम कहैं।श्रीगङ्गाजीके दर्शनते "ब्रह्महत्यापहारिणी" इति। और श्रीयमुनाजीके स्मरणमात्रतें पातकमात्रकी निवृत्ति होय " दूरस्थोपि स पापेभ्यो महद्योपि विमुच्यते " इति । जैसे श्रीवासुदेवके मूलभूत श्रीकृष्णचन्द्र तैसें कालिन्दीके मूलभूत श्रीयमुनाजी। अथ श्रीमदाचार्यजीको स्वरूप श्रीकृष्णचन्द्रके आस्य हैं प्रभु विचारे जो स्वीय निज माहात्म्य हैं सो भूमिविर्षे दैवीप्रति तुम्हारे प्राकट्य विनु प्रगट न होइ ताते तीन प्रकारसों प्रगट होउ यह आज्ञा भई प्रथम तो सन्मनुष्याकृति ऐसो स्वरूप देखिके प्रेमपूर्वक दैवी जीव शरण आवेंगे और दूसरी आज्ञा अति करुणावंत होउँ तब देवीजीवनसू निकट आयोजाय तब उपदेश लेई और तीसरी आज्ञा हुताश होय जे शरण आवें उपदेश लेत हैं तब उनके पाप निकसिके गुरुके सम्मुख आवत हैं जो गुरु तेजस्वी होय तो दाह करे तातें हुताश जो अग्नि तद्रूप होय जनके पाप दाहकरो या प्रकार देवी में जे पुष्टि सृष्टि हैं तिनको आसुरभाव भयो है सृष्टि प्रक्रियाके प्रारम्भही देवी जीवते आसुरी जीव जब जुद भये तैसे इंद्रियह देवी तथा आसुरी भई । तब आसुर जीव हतो सो दैवी जीव पास आयके कह्यो जो मेरोऊ गान करो तब दैवी जीव कह्यो 'यो यदंशः स तं भजेत्"मैं भवदंशहूँ भगवद्वान करूंगो। तब दैवी जीवकों पाप वेध न भयो । तब आसुरी जीव दैवी इन्द्रिय पास गयो उनको भयत्रस्त करिके को जो मेरो गान करो। तब देह तो दैवी जीवकी नहीं जो इन्द्रिय प्रविष्ट होयजाय । तब इंद्रिय Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सभय होय आसुर जीवकी गुणगान कीनी तब दैवी इंद्रियनका पाप वेध भयो । यातें दैवी जीव शुद्ध तथा देह शुद्ध इंद्रियमें दैविध्य आप दैवी आसुरतें गानतें असुरभावसहित यह मूल| दोष हैं। यह निरूपण"द्वयाह प्राजापत्याः" या श्रुतिमें कह्यो है। "द्वेधाह्यर्थभेदात् ” या सूत्रमें व्यासजी निरूपण कियेहैं । ऐसें मूलमें दोषग्रस्तहैं । यह दोष निवारण तब होय जब तुम्हारो प्राकट्य होय और उद्धारकहू वेई जिनके अलौकिक आभरण होय । सो अलौकिक आभरण तीन ठौर हैं। श्रीकृष्णचन्द्रविर्षे हैं “ उदामकांच्यंगदकंकणादिभिः ” उद्दाम जो डोरा तद्रहित । कांची रहें क्यों जो यातें लौकिक सूत्रभाव कहें श्रीयमुनाजी । विषे कहें "तरंगभुजकंकणप्रकटमुक्तिकावालुकानितंबतटसुंदरी नमत कृष्णतुर्यप्रियाम्" ये दोऊसिद्धसाधन जे लीलास्थ भक्त हैं तिनके उद्धार श्रीमदाचार्यजीविषे हैं। “अप्राकृताखिलाकल्पभूषितः” श्रीभागवते 'प्रतिपदमणिवरभावांशुभूषिता मूर्तिः' साधनरहित जे दैवी जीव आधुनिक तिनके उद्धारक हैं। "भगवान् विरहं दत्वा भाववृद्धिं करोति वै । तथैव यामुनस्वामिस्मरणात् स्वीयदर्शनात्। अस्मदाचार्यव-स्तु ब्रह्मसंबंधकारणात तापक्केशप्रयत्नेन निजानां भाववर्द्धकाः ॥ त्रयाणां सजातीयत्वं सिद्धम् । आधुनिक भक्तनको उद्धारतब ही होय जब श्रीमदाचायजीको दृढ़ आश्रय होय श्रीमदाचार्यजी भूलोकमें प्रगट होय भगवत्आज्ञातें जो दैवीजीवनको उद्धार करें नवधा भक्ति विना प्रेमलक्षणा भक्ति नहीं होय । प्रेमलक्षणा भक्ति विना पुरुषो-1 त्तिमकी प्राप्ति नहीं होय । नवधा तो एक एक कठिन हैं । राजा। परीक्षित सारिखें होंय तब मर्यादामार्गीय श्रवण भक्ति होय | पुष्टिमार्गीय श्रवणभक्ति तो याहूतें आगे है। तहां श्रवणादि सात जातकशप्रयत्नेन भक्तनको जामदाचार्यजी नवधा भात पुरुषो Darpitionspiracur - Romaar Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - - -- | भक्ति तो भक्तनिष्ठ हैं। दोय भक्ति भगवनिष्ठ हैं सात भक्ति तो शरण मन्त्र सिद्ध हैं । “ सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं ब्रज । तस्मात्सर्वात्मना नित्यं” इति वाक्यात् । दोय भक्तिकी चिन्ता भई । तब श्रावण शुक्लपक्षकी ११ एकादशीको अर्द्ध|| रात्रिकों श्रीगोकुलमें आज्ञा भई "ब्रह्मसम्बन्धकरणात्सर्वेषां देह जीवयोः। सर्वदोषनिवृत्तिर्हि दोषाः पञ्चविधाः स्मृताः॥” या करिकें दोय भक्ति सिद्ध भई । भगवद्वाक्यमें तीन चरण हैं सो त्रिपदा गायत्री तातें गायत्रीको दृष्टान्त दिये । ' यथा द्विजस्य वैदिककर्मणि गायत्र्युपदेशजसंस्कारवत्' या दृष्टान्तते यह अर्थ सिद्ध भयो गायत्रीमन्त्र वैदिक कर्म है। याहीसों पहिले दिन उपवास नहीं तो निवेदन मन्त्र तो भक्ति बीज है याको उपवास है कहाँ । या पोंण श्लोकमेंतें निवेदन मन्त्रको आविर्भाव है। देहपदको विवरण है। 'दारागारपुत्राप्तिवित्तेहापराणि' इत्यादि देहपद हैं सो सभा समर्पणार्थ श्रवणके देवता विष्णु हैं । तातें | महीना वैष्णव कहैं शुक्लपक्ष छोड़ अमल. पक्ष कहै सो भगव-| सम्बन्ध जीवनकों भयो ते मलरहित भये नाम निर्दोष भये। एकादशी कहें सो एकादशेन्द्रिय शोधक हैं । जाते देहेंद्रिय नौ वादिन आज्ञा भई याहीते शुद्धि भई । अब याको मन्त्रोपदेश पहिले उपवास करिके मन्त्र लेनों यह विधि नहीं, किन्तु "एक शास्त्रं देवकीपुत्रगीतमेको देवो देवकीपुत्र एव । मन्त्रोप्येकस्तस्य नामानि यानि कर्माप्येकं तस्य देवस्य सेवा ॥" याके व्याख्यानमें लिख्यो है “तस्य देवस्य सेवा” इतनेमें पूर्वपरामर्शहो तो देवपद क्यों कहे ? ताको आशय “न मनुष्यत्वेन ज्ञातव्यमिति देवमिति ' जैसे मनुष्यके छुवेमें सेवा न करिये ऐसे देवकी सेवा न करिये । अपरस होय तो करिये । याको moom Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jaanwer amituddnani यह निष्कर्ष समर्पण मन्त्र तो बाल्यतें लेई “ अज्ञानादथ वा ज्ञानात्"या वाक्यतें परन्तु अपने गुरु न पधारे होंय तो एकांश समर्पण तो होय चुक्यो है। दारागारपुत्राप्ति हैं तातें एकांश संबंधसों भयो । ताते स्वरूप जब पधारें तबही शरणमंत्र तथा निवेदनमंत्र लेई, न पधारें तहांताई न लेई तो दीक्षारहितको दोष नहीं एकांशसंबंधतो हैं अपने गुरू छोड़ि और बालक पास उपदेश लेई तो अपने घरमें जे प्रभु विराजत होंय तोसों तो जहांको उपदेश हैं तिनके मुख्यसेव्य सातों स्वरूपनमें हैं, लड़काप्रभृतिकों और ठौर उपदेश लिवावें तब मंदिरमें कौनसें स्वरूपकी सेवा तथा भावना करे यह अपराध पड़े और गुरू न पधारें तो सेवोपयोगी कुटुंबको उपदेश लिया तो और बालक पास लिवावें । तब वाकें ह्यां प्रभु इन गुरुनके मुख्य सेव्य स्वरूप तिनके भावसों विराजें। तब वाहीप्रकारकी सेवाकी रीति सेवाकरें मुख्य तो जब गुरू पधारें तब ज्ञानभये पीछे लेई समर्पणलिये पीछे ज्ञातमें भोजन कियो हैं ताके लिये उपवास । करिके सेवामें जाय जब मर्यादा पाले तब उपवास करे जैसे ब्राह्मण स्नानतें शुद्ध तैसे उपवासते इंद्रिय शुद्ध समर्पण पालवेको अंग उपवास करिके निवेदन मंत्र लेइ तो एकादशीके। दिन जो आज्ञा भई एकादशेंद्रियसे अधिक यह विश्वास छूटिजाय । किंच ब्रह्मसंबंधमें तुलसी हाथमें देतहें ताको आशय याते जो अन्य संबंध न होय किंतु भगवत्संबंध ही होय फेर वाके पासतें मांगलेतहैं साक्षात्स्वरूप विराजतहोंय तो चरणारविंदपर धरें जो परोक्ष होंय तो भावनासों धरिये “ नान्यसमक्षमंजः” इति वाच्यात् " श्रीमत्पदाम्बुजरजश्चकमे तुलस्या लब्ध्वापि वक्षस्थलं किल भृत्यजुष्टं"भोगमेंहूं याहीत्ते धरिये । o ino - - - mindianculus muaamanand Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ un - - अन्यहष्टि संबंध न होय यातें नवधा भक्ति साधनरूप तो दोऊ मंत्रनतें सिद्धभई । परंतु फलरूपतो न भई । तातें "श्रवणादशनायानान्मयि भावानुकीर्तनात् " श्रवण, दर्शन, ध्यान, मयि भाव मद्विषयक जो भाव “रतिवादिविषया भाव इत्यभिधीयते " भाव सो रति, रति सो प्रेम तामें ध्यान जो है सो तो दर्शनके और प्रेमके मध्य आयो तातें फल मध्यपाती भयो रहे तीन श्रवण १ दर्शन २ प्रेम ३ ऐसे नवधामें जानिये कीर्तन १ दर्शन २ प्रेम ३ स्मरण ४ दर्शन प्रेम ऐसे मध्यकी भक्ति में ऐसे आत्मनिवेदन आत्मनिवेदनसम्बन्धी दर्शन आत्मनिवेदनसम्बन्धी प्रेम, स्वस्मिन् ज्ञानी प्रपश्यति ' यह आत्मनिवेदन सम्बन्धी दर्शन और “कृष्णमेव विचिन्तयेत् ? यह विचिन्तन रूप आत्मनिवेदन सम्बन्धी प्रेम कहे,यातेंजारी श्रवणादि नवमें दर्शनांत भयो तहां ताई तो मर्यादा प्रेमान्त भयो तब पुष्टितातें दोय मन्त्रकरि साधनरूप नवधा भई। अब जो श्रवणादिक करने सो प्रेमान्त होय तो शुद्धि पुष्टि होय न करे तो मिश्रभाव रहै। मर्यादापुष्टि १,तथा प्रवाहपुष्टि २,तथा पुष्टिपुष्टिश्ये तीन मिश्रभाव “पुष्टया विमिश्राः सर्वज्ञाः प्रवाहे सक्रियारताः॥ मर्यादाया गुणज्ञास्ते शुद्धाः प्रेम्णातिदुर्लभाः ॥” जे पुष्टि पुष्ट है तो क्रियारत हैं सर्वज्ञ हैं सब जानत हैं सब कहा सेवा कथा स्मरण ये तीनों आशय सहित जाने प्रवाह पुष्टि हैं ते क्रियारत हैं क्रिया सो सेवा यह मार्ग गीतसों करिजाने पर आशय न जाने मर्यादा पुष्ट हैं ते गुणज्ञ हैं गुण सो कथा तामें रुचि सेवामें नहीं ये तीन मिश्र भाव । इनते भिन्न सो शुद्ध पुष्टि सो दुर्लभ है शुद्ध पुष्टि भई । तब निरावरण सेवा होय । अंशावतारके भजनमें सबको अधिकार और पूर्ण पुरुषोत्तमके भजनमें समर्पण %3 Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - मन्त्र लिये पीछे अधिकार जैसे ब्राह्मणको गायत्री मन्त्र पीछे। वैदिक कर्ममें अधिकार या भांति दोय मन्त्र देकें दैवी जीवको अंगीकार किये, तब भगवन्माहात्म्यकी स्फूर्ति भई । एक तो श्रीमदाचार्यजीको भूलोकमें प्रागट्य ताको यह आशय । अब दूसरो आशय फलप्रकरणमें भगवान् कहें-" न पारयेहं निरवद्यसंयुजां स्वसाधु कृत्यं विबुधायुषापि च ।” देवताकी आयुष्य लेके तुम्हारो भजन कीजिये तोहू पार न आवे, श्रीमुखतें आज्ञा किये पर कृतिमें न आयो श्रीमुखतें कहे हैं। तातें श्रीमुखावतार होय तबही वचन प्रतिपालन होय । यातें या अवतारमें सेवा किये सेवाके अधिकारी तो जनरत्ना इनके भावको अनुरसण करें या प्रकार दास्यभाव किये । याहीतें कहैं-" इति श्रीकृष्णदासस्य वल्लभस्य हितं वचः॥” सेवा कृष्णदासकी "कृष्णसेवा सदा कार्या” इति वाक्यात् । पर ब्रजभक्तनके भावपूर्वक करनी तातें श्रीकृष्णदासस्य श्रीयुत जे कृष्ण तिनके दास जो लीलानकी भावना करें तब प्रभुहू लीलानुकूल वपु धरिवेई भक्तिसहित प्रादुर्भूत होंय। यद्यद्रिया त उरुगाय विभावयति तत्तद्वपुःप्रणयसे सदनुग्रहाय।” इति वाक्यात् । या प्रकार सेवा तथा भावना करतहैं तातें श्रीकृष्णके दास और आस्यरूप हैं। तातें वैश्वानर अग्नि उभयरूप है पुराण पुरुषोत्तमको यही लक्षण विरुद्धधर्माश्रय होय ईश होय सो दास क्यों दास होय सो ईश क्यों,यथा-"अपाणिपादो जवनो ग्रहीता" तद्वत् । याहीतें श्रीआचार्यनको श्रीअंग नित्य भौतिक नहीं यातें दोय आज्ञा न मानें “ देहदेशपरित्यागः" देह नित्य देश ब्रज दोऊनको कैसें परित्याग होय ? यातें तीसरी आज्ञा किये तामें पहली दोऊ आज्ञा सिद्ध भई । “ तृतीयो लोकगोचरः " -- - - Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प OPMERessed M amta । | सो संन्यास किये तातें देहपरित्याग भयो । आसुरव्यामोहलीलासमें दशाश्वमेधके घाटमें कटिभागपर्यंत जलमें ठाढ़े रहें तब सवको ये दृष्टि आयो । जो जहाँताई ऊँची दृष्टि जाय तहाँ तेजको स्तंभ दीस्यो । जैसे प्रभावलीलाविर्षे । तातें यह अंग नित्यहें, भौतिक नहीं । या प्रकार श्रीमदाचार्यजीको भूलोकमें प्रागव्य किये । दोय आशय । ताको स्वरूप एक तो शेषभाव एक अशेषभाव । शेषभाव तो “ नमामि हृदये शेषे” यामें दास्यभावको अनुभव करत हैं न पारयेहं या श्लोकको फलितार्थ सो शेषभाव और अशेषभाव तो जनको उद्धरणरूप सो सब बालकत्वावच्छिन्नविषे स्थापन किये। भूमि विषे भक्त जो भगवन्माहात्म्य ताके प्रचारार्थ अब अशेष म्हात्म्य तो बालकनमें स्थापन कियेई हैं। और शेष माहात्म्य जो है ताको सम्बन्ध जे होय सोभाग्य । याते शेष माहात्म्यकी कृपाकरें ऐसो उपाय करिये। ऐसो श्रीमदाचार्यजीको स्वरूप है मुख्य सुधा पुरुषाकार "बापीडं नटवरवपुः ' या श्लोकप्रतिपादित यह स्वरूप है यहां देहभाव नहीं रसरूप हैं । जैसे देहमें वीर्य मुख्य तैसे भगवत्स्वरूपमें सुधा देहमें वीर्य सार मस्तकमें रहै। यहां सुधा स्वरूपमें सार है आनन्दसारभूतसों अधरमें स्थित है लोभात्मक अधर है यथायोग्य दान करै या प्रकार भावना करनी॥अथ श्रीगोसाँईजीको स्वरूप। जीवय मृतमिव दास' यह वाक्य भगवान् कहें पर कृतिमें न आयो जैसे श्रीमदाचार्यजी अग्निरूप होय वाक्पति है तथा 'न पारयेहं' या श्लोकके अनुभावार्थ दास्य करत हैं तैसे ये अग्नि कुमार हैं इनहू विषे दोय धर्म हैं। वाक्पति हैं ताते दैवीको उद्धार करत हैं। यातेंभगवत्त्व हैं जीवय मृतमिव दासम्' या रसके अनुभावार्थ वाक्य सत्यके लिये स्वामिनी दासत्व हैं M Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ “यावन्ति पदपद्मानि" इति वाक्यात् । जैसे न पारयेहंयाके अनु| भावार्थ श्रीमदाचार्यजी आज्ञा किये "गोपिकानां तु यदुःखंतदुःखं | स्यान्मम क्वचित् " आप परत्व कहें तैसे श्रीगुसांईजी आज्ञा किये।" विठ्ठलपदाभिधेये मय्येव प्रतिफलतु सर्वत्र सततम् ।” । मय्येव यामें एवकार कहें सो आप परत्व कहें । तातें मुख्य स्वामिनीका दास्यरस ताको अनुभव श्रीगुसांईजी करत हैं। || याहीतें अष्टक तथा स्तोत्र प्रगट किये। निष्कर्ष यह हैं जो सुधा| पुरुषाकाररूप श्रीआचार्यजी और सुधाकी स्थिति वेणुमें है,वेणु कैसो है ? वश्चंद्रययौ तौअणू यस्मात् ' ऐसो वेणु वा मोक्षानन्द कामानन्द ये दोऊ जानै अणु हैं सो तुच्छे हैं। काहेते? "सवयसस्तदुपधार्य सुरेशाः शक्रशर्वपरमेष्टिपुरोगाः। कवय आनतकन्धरचित्ताः कश्मलं ययुरनिश्चिततत्त्वाः॥" शक्र इंद्र शर्व महादेव,परमेष्ठि ब्रह्माये वेणुनाद श्रवणको आये हैं। पर “अनिश्चिततत्त्वाः कश्मलं ययुः" तत्त्वको निश्चय न भयो मोहकों प्राप्तभये रागको ज्ञानको ज्ञान न होयगो सो तो कवि आपही हैं चित्त दे सुनें न होंयगे सो तोआनतकंधर चित्त हैं तो आये काहे महादेव तथा ब्रह्माकों मोक्षानन्दको अनुभव है और इन्द्रको कामानन्दको अनुभवहै यह वेणु है याके आगे जैसो मोक्षानन्द ऐसो कामानन्द सोऊ तुच्छ है । सो देखिवेको आये हैं। जाके आगे दोऊ आनन्द तुच्छ भये । सो पदार्थ कैसो है ? तथापि ज्ञानहू भयो तत्त्वज्ञानके विना समुझे सो मोह भयो। सुधा ऐसी वेणुमें स्थापित है तैसें श्रीगुसांईजीकू श्रीमदाचार्यजीते उपदेश है तातें सुधास्थानापन्न वेणुस्थानापन्न श्रीगुसाँईजी भये । तातें ह्या वेणुवत् मोक्षानन्द कामानन्द तुच्छ ऐसी देहको स्वीकार तातें यहाँ इतनो देहभाव है। परन्तु वेणुमें शेष Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाग्यको ही दान अरु ये अमिकुमार हैं। ताते सब सुधाको दान याते भगवत्त्व है । अरु मन्त्रोपदेशकर्ता है यह तो भक्त| कार्यार्थ आविर्भूत और स्वकार्यार्थ तो दास्यरसानुभव करत है। सो यहाँ शेषभाव यह है स्वामिनीदासत्व यातें अशेष माहात्म्य जो जनको उद्धरण रूप सो तो सब बालकत्वावच्छिन्न स्थापन किये, परि शेष माहात्म्य जो मुख्य स्वामिनी दासत्व यह तो आप विषे है। “ मय्येव प्रतिफलतु” ताते ऐसो उपाय करिये जो या शेष माहात्म्यकी कृपा करें। श्रीमदाचार्यजी पुष्टिमार्गको प्राकट्य करि स्थापन किये और श्रीगुसाँईजी मार्गको विस्तार किये जैसे महाप्रभूनके आधे शृंगार दोय हते मुकुट तथा पाग तैसें श्रीगुसांईजी मुकुटहीमेंते सब श्रृंगार प्रगट किये । कुलही बांधिक तीन वा पांच चन्द्रका धरे तब मुकुटही है बर्हिनृत्यानुकरण ऐसो मुकुटहू हैतथा कुलहीहू हैं प्रभुके केश बड़े हैं सो मध्यके केशकी शिखा बांधि आसपासके केशकी मेड़ करिये । तब गोटीपर भांतिभांतिके फूल धरि वस्त्र मिही ऋतु प्रमाण लपेटे और आसपासके केशके में हैं सोहू वापर फूल धरि वस्त्र लपेटे। दोय छेड़ाको वटुका लेइ बाँई ओरतें तुर्राके ठिकाणे तुर्रा सवारि पीछेकी ओर दोय पेच देय दाहिनी ओर तुर्रा राखेसे तब कुलही भई । गोटीलांबी करदेइ तो टिपारो होय आगे पेच आवे गोटी रहें तो गोटीको दुमालो होय गोटी न राखिये तो दुमालो गोटीविनाको होय | एक तुर्रा राखिये तो फेंटा होय गोटी तथा एक तुर्रा राखिये तो | गोटीको फेंटा होय गोटी न राखिये बीचमें तुर्रा राखिये तो पगा होय तुर्रा न राखिये गोल तथा मेंड राखिये तो तुरी विनाकी कुलही होय । इत्यादि भेद सब कुलहीमें कहें 2 - Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कुलही मुकुटको परम प्रिय हैं। याते श्रीमदाचार्यजी संक्षेप सब प्रगट किये। श्रीगुसांईजी वाही संक्षेपको विस्तार या प्रकार किये जैसे प्रभु गीताको वार्त्ता संक्षेपते हैं विस्तार श्रीभागवत हैं श्रीमदाचार्यजी सुधारूप हैं वेणुमें आनंद सारभूत सुधाको स्थापन सुधात्रयाधारत्वेन वेणुभावापन्न श्रीगुसांईजी हैं । तातें वेणुहू पुष्टिमार्गीय षडुणैश्वर्यसंपन्न हैं धन्यास्तीति श्लोक याते बालकनमें गुणको प्रागट्य किये श्रीविट्ठल या नामतेहू षड्गुणको प्रागट्य है । " सर्वेषामितरसाधनासाध्य भगवत्प्राप्तिसंपादनमें ऐश्वर्यम् 9, कर्मज्ञानोपासनादिजनितदेहादिक्केशाभावसंपादनं वीर्यम् २, पूर्वोक्तं सर्वमनेनैव नाम्ना सर्वत्र प्रसिद्धमिति यशोनिरूपितम् ३, श्रीस्तु वर्त्तत एव ४, वित्तं ज्ञानं ५, ठं शून्यं वैराग्यं तानि लाति आदत्ते स्वीकरोतीत्यर्थः । इदं मर्यादामार्गीमयैश्वर्यादिकम् ' " || सो नाम रत्नाख्यकी टीकामें निरूपण किये हैं । तातें भूमिविषे भक्ति भगवन्माहात्म्य ताके प्रचारार्थ वंश प्रगट किये। अथ श्रीगिरधरजीको स्वरूप १ प्रथम ऐश्वर्यगुणको प्रागट्य अतएव श्रीनवनीतप्रियजी श्रीमथुरेशजी दोऊ स्वरूप विराजत हैं । अथ श्रीगोविंदरायजीको स्वरूप २ वीर्यगुणको प्रागट्य अतएव विद्वन्मंडन के प्रागट्यविषे श्रीगिरधरजी विज्ञप्तिकिये। यह शब्द व्याकरणसिद्ध जान नहीं पड़त तब श्रीगुसांईजी श्रीगोविंदरायजीकों बुलायके कहें, यह शब्द कैसें होय ? तब व्याकरणमें सिद्ध हतो सो प्रयोग साधे यातें आठों व्याकरण आवतहते "" इन्द्रश्चन्द्रः काशकृष्णापिशली शाकटायनः । पाणिन्यमरजैनेन्द्रा इत्यष्टौ शाब्दिकाः स्मृताः ॥ " श्रीबालकृष्णजीको स्वरूप ३ यशगुणको प्रागट्य ऐसो भक्तिमार्गको आग्रह जो विवाहादिकविषं कुलदेव्यादिको पूजन करनों ता ठिकाने Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीभागवतकी पुस्तकको स्थापन किये । अथ श्रीगोकुलनाथजीको स्वरूप ४ श्रीगुण प्रागट्य जब जुदे भये तब जन्माष्टमी आई । स्वसेव्य श्रीगोवर्धनधरजीको पालने बैठाये । श्रीगुसाँईजीको हाई जानें श्रीनवनीतप्रियजी पालने बैठे गेलगेलाऊ बैठे बाललीला पालनों प्रौढलीला डोल जैसे बालस्वरूप बैठें तैसे प्रौढस्वरूप पालनें बैठे, यह श्रीगुसांईजीको हाई न होय तो बालस्वरूपकों पालनें बैठाये होंते । प्रौढस्वरूपकों डोल बैठाये होते एक ही स्वरूप सब लीलाविशिष्ट हैं। अथ श्रीरघुनाथजीको स्वरूप ५ धर्मीको प्रागटय जैसें दशमस्कंधमें तामस प्रागट्य जैसें दशमस्कंधमें तामस प्रकरणके फलप्रकरणमें श्रीपीछे दशमाध्याय पीछे वैराग्य पीछे ज्ञान तैसे पांचयें बालक हैं सो धर्मी और क्रमप्राप्त जो ज्ञानगुणको प्रागटय ज्ञानस्वभाव परावर्तन करे याको प्रमाण यह जो इनके प्रभु जो श्रीगोकुलचंद्रमाजी सो श्रीगुसांईजी मध्य पधराये । आगे श्रीनवनीतप्रियाजी १ वामभाग श्रीमथुरेशजी २ तिनके आगे श्रीविठ्ठलेशरायजी ३ इनकी बराबर श्रीमदनमोहनजी ४ दक्षिणभाग श्रीद्वारकानाथजी ५ आगे श्रीगोवर्द्धनधरजी ६ इनकी बराबर श्रीबालकृष्णजी और ग्वालके समें श्रीगुसांईजीकी आज्ञातें श्रीरघुनाथजी पधारे। तब श्रीआचार्यजीको साक्षात् दर्शन भयो। अब श्रीयदुनाथजीको स्वरूप ६ वैराग्यगुणको प्रागट्य फलप्रकरणकी रीति वैद्यविद्या स्वीकार कर जगत्को उपकार किये। देह नीरोग होय तो वैष्णवसों सेवा होय और जो कोऊ सत्कर्म हैं तामें निवेश होय "हरेश्चरणयोः प्रीतिर्वैराग्यं"। श्रीवनश्यामजीको स्वरूप ७ ज्ञानगुणको प्रागट्य फल प्रकरणकी रीति श्रीगुसांईजी मधुराष्टककी टीका प्रगट करि श्रीगिरिधरजीकों - - - - - - Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HERRAGe te श्रीजी साथ मानतो सराईदा । निरुपा जो विद्वन्मा श्रीजी सोंपे जो श्रीघनश्यामजी अबही छोटे हैं बड़े होंय तब दीजिये। जिनके लिये टीकाको प्रागट्य भयो सो स्वभाव परावर्तन किये न किये होंय तो विरहानुभवही होंय संयोगानुभव न होय । यातें पहिले संयोगानुभवके लिये टीका प्रगट किये। श्रीगुसाईजीविषे वेणुस्थापित ऐश्वर्यादिकनको प्रागट्यहै तथा श्रीविठ्ठल या नामकी निरुक्तिमें तेहू षडणऐश्वर्यादिकको प्रागट्य है यातें एक प्रकार तो सातों बालकनमें निरूपण किये। श्रीगिरिधरजीविषे छहों गुणको प्रागट्य । प्रथम ऐश्वर्य तो सातों स्वरूप श्रीजी साथ अन्नकूट आरोगे यह विज्ञप्ति श्रीगुसईजीसूं किये। पाछे पधराये सज्ञानतो सराहेंई पर मूढ़हू पूजन लगे “ईश्वरः पूज्यते लोके मूरैरपि यदा तदा । निरुपाधिकमैश्वर्यं वर्णयन्ति मनीषिणः ॥” इति वाक्यात् । वर्यि तो यह जो विद्वन्मण्डनके प्रागट्यमें प्रतिद्वन्द्वी होय पूर्वपक्ष किये, यश तो यह जो श्रीजी अपने श्रीहस्तसें हाथ पकड़े श्रीतो यह जो सब उत्सवनको | शृंगारादिक येई करें, ज्ञान तो यह जो गोपालमन्त्रको स्वीकार किये, वैराग्य यह जो नव लक्ष रुपैया लाड़वाई धारवाई लाई पर आप त्यागकिये, छहों गुण श्रीगिरधरजीविषे प्रगट कहें तब एक गुण छहो बालकनमें प्रगट और पांच गुप्त श्रीगोविन्दरायजीविषे ऐश्वर्य उत्थापनकी सेवा नित्य आपु करते जब स्वपुत्रको विवाह आयो तब इततो व्याहिवेको चलिवेको समय ता समें नेत्र भरिआये । तब श्रीगुसांईजी पूछे ऐसे क्यों ? तब कहे उत्थानको समय है तब आपु आज्ञादिये सेवा करो वा समें भक्तिकी ऐसी उद्वेगदशा देखिके आपु प्रसन्न भये श्रीबालकृष्णजीविषं वीर्य जब श्रीगुसांईजीके पितृव्यचरण श्रीगोकुलमें आयके कहैं श्रीबालकृष्णजीको देउ तो मैं दक्षिणा AISE - Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लेजाऊं मेरी वृत्ति है सो लेहि मोकूँ तो संन्यास है नहीं कहोगे तो ऋण होयगो ऋणको स्वीकार कियेपर चरणारविन्द नछोड़े तब श्रीगुसांईजीहू प्रसन्नभये याते ऋण होयगो तो विदेश जायके जीवनको उद्धार करेंगे भूमिमें भक्तिप्रचारके लियेही पिता पुत्र या प्रकारको वंश प्रगट किये । श्रीगोकुलनाथजीविषे यश है चिद्रूप मालाको प्रतिद्वन्द्वी भयो तब माला स्थापनकिये यह यश प्रसिद्धही है श्रीरघुनाथजीविषे श्रीहैं। तुलसीदास श्री गोकुलमें आये तब श्रीगुसांईजीसों कहे सीताजी सहित श्रीरामचंद्रजीको दर्शन होय यह कृपा करो। तबहीरघुनाथजीको व्याह भयोहतो सो श्रीजानकी बहूजी पास ठाड़ेहते तब श्री आपु आज्ञा दिये जो तुलसीदासको दर्शन देउ तब श्री रघुनाथजी जानकी बहूजी वैसोंही दर्शन दिये । तब तुलसीदासजी कीर्तन कहे “ वरनो अवध गोकुल गाम, उहां सरजू इहां श्रीयमुना एकही लख ठाम ॥" ऐसो श्रीगुसांईजीकी आज्ञाको विश्वास । " श्रियो हि परमा काष्ठा सेवकास्तादृशा यदि" तब आपु प्रसन्न होयकें श्रीजीके यहांकी गदरजीकी सेवा दिये दिवारीके दिन श्रीजीके ह्यां शयन आरती भये पीछे॥६॥आती होय यथाक्रम सातों स्वरूपकी औरकी तब श्रीरघुनाथजीको बारा आर्तीको आवे तब पहले गदर उठायें रहे पीठकके ऊपर आगेते थोड़ो दीसे पीछे आर्ती करें यह रीति श्रीयदुनाथजीविषेज्ञान हैं मंदिरमें जाय मंदिर वस्त्रदेत यह भांति मन्त्रको फल आपुश्री गुसांईजी श्रीबालकृष्णजी पधरावत हते सो न लीये यातें जो श्रीबालकृष्णजी गोदके ठाकुर हते सात स्वरूपमें नहीं मुख्य स्वरूप आठही हैं। “षोडश गोपिकानांमध्ये अष्ट कृष्णा भवन्ति हि ।" यह ज्ञानहें जैसे नदीनमें ज्ञान हैं।" भग्नगतयः सरितो वै” तैसे Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - इनकोहू ज्ञान ऐसों स्वरूपको बोध होय गयो । श्रीगुसांईजीहू सात स्वरूपमें न पधराये । यातें ये जो ज्ञानरूप हैं । ज्ञानमें भक्ति कहां यह ज्ञानको फल । श्रीघनश्यामजीविषे वैराग्य जबते श्रीमदनमोहनजी अन्तर्हित भये तबतें विरहानुभवही | किये श्री अंगके प्रति चिह्न लिखें ऐसी तन्मयता श्रीमदाचार्य| जीकी बहूजी श्रीमहालक्ष्मी बहूजी, श्रीगुसांईजीकी बहूजी श्री| रुक्मिणी बहूजी-श्रीपद्मावती बहूजी, श्रीगिरधरजीकी बहूजी श्रीभामिनी बहूजी,श्रीगोविन्दजीकी बहूजी श्रीराणी बहूजी,श्री| बालकृष्णजीकी बहूजी श्रीकमला बहूजी, श्रीगोकुलनाथजीकी |बहूजी श्रीपार्वती बहूजी, श्रीरघुनाथजीकी बहूजी श्रीजानकी बहूजी, श्रीयदुनाथजीकी बहूजी श्रीराणी बहूजी,श्रीघनश्यामजीकी बहूजी कृष्णवती बहूजी। ये जिन जिनके अर्दोग हैं तिन तिनके तदात्मक स्वरूप जानिये ।ये दश स्वरूप बहूजीनकेहूं | अलौकिक जानिये । अथ श्रीगोवर्द्धन पर्वतको स्वरूप, इनकों दास्यभक्ति सिद्धसाधनरूप । दास्य श्रीगोवर्द्धनको याते हरिदासवर्य श्रेष्ठ हैं हनुमानको देह दास्योपयोगी । और श्रीगोवईनको देह । तातें देहसम्बन्धी पदार्थ सब भगवदुपयोगी हैं। कन्दरामें छहों ऋतु सानुकूल हैं। जा ऋतुमें जैसो निजमन्दिर वा शय्यामन्दिर चाहिये तैसोंही होय । झिरनाहैं सो जलपानके योग्य, तृणहैं सो आस्तरणार्थ, फल हैं सो पुलिन्दीद्वारा उत्थापन भोगकी सामग्री सिद्ध होत हैं। इनके सङ्गते पुलिन्दीहू भगवदीय भई । “पूर्णाः पुलिन्द्यः ” इति ऐसें भगवदीय हैं। | भक्तकोलक्षण यह हैं-"आर्द्रीकरणत्वं वैष्णवत्वम्" जैसे भीजे कपड़ाकों सूको कपड़ा लगे तो सूकोहू भीजो होय। पुलिन्दी भीलनकी स्त्री येहू भगवदीय भई । भगवत्स्पर्शकरि पुलकित - Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । होय । यह दूसरो लक्षण भगवदीयको अतएव श्रीगोवर्द्धनमें श्रीचरणारविन्द तथा मुकुट तथा श्रीहस्तकी अंगुरीनकोऊ प्रतिफलन होत हैं। सो सात्विकाविर्भावको लक्षण श्रीगोवर्द्धनकी स्थिति सिंघाकृति हैं । याहीतें दण्डोती शिलासों चरण स्थान | शिलासों श्रीमुख श्रीगोवर्द्धन भगवद्रूप हैं । " शैलोस्मीति ब्रुवन्" इति वाक्यात् । श्रीगोवर्द्धन शिलाकोहू सेवन आवश्यक है । जब श्रीगोवर्द्धन शिला पधरावे तब श्रीगुसांईजीके बालकके श्रीहस्तसों पधरावें । शिलाकी जो निष्कर्ष भेट जो भेट होय सो श्रीजीकों भेट करे। श्रीगोवर्द्धनके नाम येही है। श्रीगोवर्द्धनमें धरें नहीं । भेटको प्रमाण नहीं । जो बनि आवे सो धरे जेंसें श्रीयमुनाजीकी सेवाको मनोर्थ होय तो घाटके ऊपर वस्त्र बिछाय भावनासों पधराय साड़ी चोली आभरण पहिराय माला समर्पि भोग धरिये । भोग सराय प्रसाद आपु लीजिये । औरकों बांटिये साड़ी चोली आभरण होंय सो जहां मनोर्थ होय तहां श्रीगुसांईजीके घर भेट करिये । या प्रसादके अधिकारी वेई हैं। प्रवाहमें बोड़िये नहीं । शृङ्गार चलतमें न होय बैठें जब होय । जहां शालग्राम होंय तहां उत्सवके जन्मके समें शालग्राम स्नान करे श्रीगोवर्द्धन पूजाके समे श्रीगोवर्द्धन शिला स्नान करें और जहाँ शालग्राम नहीं तहाँ जन्मके समय तथा श्रीगोवर्धन पूजाके समय सब बेर श्रीगोवर्धन शिलाही स्नान करे । व्यापि वैकुण्ठमें श्रीगोवर्धन रत्नधातुमय हैं। सारस्वत कल्पीय पूर्ण प्रागट्य समय जिनको नंदालयको दर्शन मणिमय स्तंभादिकको होय तिनको श्रीगोवर्धनहूको ऐसो दर्शन होय । श्रीयमुनाजीकीहू सीढी रत्नबद्धोभयतटी ऐंसो दर्शन होय । और बेर सदा भौतिक दर्शन होंय । भौतिकमें आध्यात्मिक भाव करे तो आधिदैवि-- Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - ARJATANJALIGARRAC. STREATERROR am Raas -TRICIANS कको आविर्भाव होय । श्रीगोवर्द्धन ऐसे भगवदीय है। भगवत्सेवा करिके प्रभुनके साथ जे गाय गोपी तिनहूको संमान करत हैं। “पानीयसुवस” इति । अथ व्रजको स्वरूप । वाराह पुराणमें पृथ्वी वाराहजीसों पूछी । सर्वत्र भूमि है तामें आपकों प्रिय भूमि कौनसी ? तब भी वराहजी प्रयाग प्रसंग कहैं । वैकुण्ठनाथ प्रयागकों जब तीर्थराज किये तब तीर्थ सब प्रयाग पास आये । तीर्थनको देखि प्रयाग कहे-तुम यहाँ रहो मैं प्रभुनपास होय आऊं । तब वैकुण्ठमें जाय द्वारपालनसों कहे, मैं आयो हूँ यह प्रभुनसों विज्ञप्ति करो । इतनेमें प्रभु आपुहीते पधारे तब दर्शन भयो । श्रीमुखते आज्ञा भई । आवो तीर्थराज ! तब प्रयाग विज्ञप्ति किये । यही पूछिबेको आयो हूँ, जो तीर्थराज किये, परन्तु सर्व तीर्थ आये, ब्रज नहीं आयो। तब श्रीमुखते आज्ञा किये जोहम तुमकों तीर्थनके राजा किये हैं, हमारे घरको राजा नहीं किये । व्रजतो हमारो घरहैं। यावजके वृक्षवृक्षप्रति वेणुधारी हूँ पत्र पत्रविषे चतुर्भुजहूं-“वृक्षे | वृक्षे वेणुधारी पत्रे पत्रे चतुर्भुजः। यत्र वृन्दावनं तत्र लक्ष्यालक्ष्यकथा कुतः ॥” इति वाक्यात् । जा जजमें भगवज्जन्म भयो ता करिकें ब्रजदेश शोभायमान भयो लक्ष्मीसेवाके लिये निरंतर वन देशको आश्रय करत हैं। "जयति तेऽधिकं जन्मना ब्रजः श्रयत इंदिरा शश्वदत्र हि " इति । पृथ्वी तो गोरूप हैं जैसें गायके रोम रोम पवित्र हैं पर दूध चाहिये तब स्तनको आश्रय करत हैं तब मिलें तैसे पृथ्वीमें जितने तीरथ हैं तिनते पापक्षय होय परंतु भगवत्प्राप्तिकी जब अपेक्षा होय तब ब्रजको आश्रय करे तबही भगवत्प्राप्ति होय । श्रुतिनकों जब दर्शन भयो तब येही वर दियो “कल्पं सारस्वतं प्राप्य बजे गोप्यो भविष्यथ॥" ब्रज - । amon BHARTIMERRITEREOF ANDROID Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । %AD .. कमलाकार, यातें प्रभु जास्थलकी लीला कारवेके इच्छा किये तब वह पखुरी संकुचित होय आगे आय गई तब तात्कालिक पधारे तहाँ चतुर्विध पुरुषार्थ दशरथ लीलाकार धेनुकासुरको प्रसंग सब करि पीछे ब्रजको पधारे “ कृष्णः कमल पत्राक्षः पुण्यश्रवणकीर्तनः । स्तूयमानोऽनुगोपैः साग्रजो ब्रजमावजत् ॥” प्रभु सर्वकरन समर्थहें भक्तकी भावनामें आवें ऐसी लीला करतहैं जैसें वृष्ठिसमें श्रीगोवर्द्धन पास पधारे तब प्रभु कहा उठावें श्रीगोवर्द्धन आपुहीतें उठे दासको धर्म येही हैं जो स्वामी पधारे तब उठे ये अंतरंग भक्तहैं जैसी प्रभुकी इच्छाहै सो जानतहै जा प्रकारकी स्थितिकी इच्छाहै तहाँ तैसीही होय। अब या प्रकारकी इच्छाहै छत्रक होय गये छत्रकों डांडी चाहिये तातें श्रीहस्त ऊँचो करतहैं तातें व्रजहू लीलोपयोगी कमलाकार है पूर्णविकसित होय अर्थ विकसित होय संकुचित होय एक पांखड़ीही खुले दोइ खुलें जब जैसी प्रभुनकी इच्छा तैसें होय । व्रजमें वृक्षादिकहू ऐसे हैं जो ऋतु नहीं और भगवदिच्छाहै तो पुष्पित फलित होंय और ऋतुहै भगवदिच्छा हैं नहीं तो पुष्पित फलित न होय । जैसें चमेलीकी ऋतु वसंत, शरदमें कैसें होय ? " शरदोत्फुल्लमल्लिकाः" और ब्रजमें व्यापीवैकुंठको आविर्भाव है तातें सब भ्रमितें व्रजभूमि श्रेष्ठ हैं याप्रकार लीला भावनाको प्रकार विचारिये ॥ अथ भावभावना। | ब्रजभक्तनको भावसो सेवा ताकी भावना पहिले मंदिरको स्वरूप वेदमें ताको गोलोक धाम कहे “ यत्र गावो भूरिशृंगा अयासः" इति श्रुतेः। पुराणमें व्यापि वैकुंठ कहैं गोलोक धामको। "ब्रह्मानंदमयो लोको व्यापिवैकुंठसंज्ञकः" इति वाक्यात्। Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । - सो दोऊ एक ओर वेदमें जाको व्यापिवैकुंठ कहैं, पुराणमें गोलोक धाम कहैं सो रमावैकुंठ व्यापिवैकुंठ नाही ब्रह्मवैवर्तमें गोलोक धामको वर्णन भयो विरजा नदी कही हैं यह रमावैकुंठ कावेरीमें जल है सो विरजाको है "कावेरी विरजातोयं वैकुंठं रंगमंदिरम् । स वासुदेवो रंगेशःप्रत्यक्षं परमं पदम्॥"इति यातें वेदमें जो गोलोकधाम हैं सो पुराणमें व्यापिवैकुंठ तातें मंदिर सो व्यापिवैकुंठ यह भौतिक अक्षर और सिंहासन यह आध्यात्मिक अक्षर गादी वा चरणचौकी ये आधिदैविक अक्षर यातें मंदिरको ऐसे स्वरूप जान पहिलें दंडोतकार | पीछे भीतरि जाय “ नमो नमस्तेस्त्वृषभाय सात्त्वतां विदूर काष्ठाय मुहुः कुयोगिनाम् । निरस्तसाम्यातिशयेन राधसा स्वधामनि ब्रह्माणि रंस्यते नमः॥” जैसे मंदिरविषे ताप, रज जल इन तीनकी निवृत्ति होत हैं तब बुहारीसे मंदिर मार्जन करतहैं। तब यह भाव राखें प्रभु क्रीड़ा भक्तनसहित किये हैं उन चरणारविंदकी रजको स्पर्श हैं सोय रज उड़िके या देहको लागतहैं तब तमोगुणकी निवृत्ति भई। जब मंदिर धोइये तब जल जो सत्त्व तातें रजोगुणकी निवृत्ति भई फेर मंदिर वस्त्रसों पोछिये तब वस्त्र स्वच्छभयो सो स्वच्छसो निर्गुणता, करिके सत्त्वकी निवृत्ति भई ऐसी निर्गुण बुद्धि भई तब सेवाकी योग्यता भई हैं ऐसी निगुणबुद्धिपूर्वक व्रज भक्त भगवन्मंदिरमें पधारतहैं ऐंसो मंदिरको भाव राखे और ब्रजभक्तनको भाव पूर्ण पुरुषोत्तम विषेही हैं । सारस्वत कल्पमें श्रीनंदरायजीके यां जिनको प्राकट्य हैं तिनमेंई औरमें नहीं “जानीत परमं तत्त्वं यशोदोत्संगलालितम् । तदन्यदिति ये प्राहुरासुरांस्तानहो बुधाः" इति वाक्यात् । अथ प्राकटयको विचार-प्रथम श्रीवसु - Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ INEERamanuama n a देवजीके ह्या प्रगटे सो व्यूहत्रयविशिष्ट पुरुषोत्तम व्यूह बाहिर पुरुषोत्तम भीतर दृष्टांतमें पुरुषोत्तम प्राकट्य हैं “प्राच्या दिशीन्दुरिव पुष्कलः ” इति । “जायमाने जने तस्मिन्नेदुटुंदु भयो दिवि" यह अनिरुद्धको प्राकट्य, अनिरुद्ध धर्मस्वरूप हैं धर्म सो दुन्दुभीप्रभृति सो बाजने लगी और “निशीथे तम उद्भूते जायमाने जनाईने ।" यह संकर्षणको प्राकट्य, तमकी निवृत्ति संकर्षण करिकें हैं तातें द्वादशाध्यायमें कहैं हैं " तमोपहत्यै तरुजन्म यत्कृतम् । देवक्यां विष्णुः प्रादुरासीत् " यह प्रद्युम्न प्राकट्य भाद्र कृष्ण ८ बुधे अर्धरात्र जा समय राहुको चन्द्रसंबंध ता समें वसुदेवजीके ह्यांप्राकट्य फेर वसुदेवजी तथा देवकीजी स्तुति किये भगवान् सांत्वन किये जो तुम मेरे लिये देवतानके बारह हजार वरषपर्यंत अत्युग्र तपस्या किये तब मैं प्रगट होय वर दियो । मनुष्यको वर एक जन्म फलित होय, देवता वर देइ सो दोय जन्म फलित होय, भगवदर तीन जन्म ताँई फलित होय; तातें तीन जन्मही प्रगट भयो । प्रथम जन्म सुतपा पृश्नि तब पृश्निगर्भ भये । दूसरे जन्ममें कश्यप अदिती तब वामनजन्म भये और या जन्ममें वसुदेव देवकी, तब यह प्राकट्य भयो यो कहिके वर दिये या प्रकार तुम दोऊ पुत्रभाव करिकें तथा ब्रह्मभाव करिकें चिन्तन करोगे तो साक्षात् अनुभव करायकें व्यापिवैकुण्ठकी प्राप्ति करूँगो यातें जब श्रीदेवकीजी पुत्रभावना करत हैं तब स्तन्यकी उद्वेग दशा होत हैं तब प्रभु पान करत हैं सो इनकों अनुभव होत हैं याहीते उत्तरार्द्धमें जब देवकीजीके पुत्र ६ ल्याये तहां कहें श्रीशुकदेवजी “पीतशेष गदाभृतः” या प्रकारसों पीतशेष हैं पीछे वसुदेव देवकीजीके देखतही प्राकृत बालक होत भये । यह स्वरूप Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ahment - कोनसों ? ताको विचार लिखत हैं-यह प्रागट्य श्रीनन्दराय के । ह्या प्रादुर्भूत भये तिनके जानिये । आपु तो श्रीयशोदाजकि हृदयमें विराजत हैं वासुदेव तथा मायाको श्रीनन्दरायजीके रेतःसम्बन्ध तथा श्रीयशोदाजीके गर्भसम्बन्ध हैं पुरुषोत्तमको रेतःसम्बन्ध नहीं, गर्भसम्बन्धहू नहीं । जा समय आप प्रगट भये सोवासुदेवको ग्रहण करिकेही प्रगटे, माया दूसरे क्षणमें भई भगवत्प्रादुर्भावकों दूसरो क्षण सो मायाको जन्मनक्षत्र ता समय श्रीयशोदाजीको इतनों ज्ञान भयो जो कछू भयो पर निश्चय न भयो पुत्र वा पुत्री सामान्यज्ञान भयो सो कहैं “ यशोदा नन्दपत्नी च जातं परमबुध्यत । न तल्लिङ्गं परिश्रांता निद्रयापगतस्मृतिः॥” इति । भगवत्प्रादुर्भावके तीसरे क्षणमें विशेष ज्ञान हो सो तो मायाको दूसरे क्षण भयो तातें सामान्य ज्ञान भयो तीसरे क्षणमें विशेष ज्ञान भयो यह शास्त्रकी रीति पहले क्षणमें उत्पत्ति दूसरे में सामान्य ज्ञान तीसरे क्षणमें विशेषज्ञान तैसें मायाके पहले क्षणमें उत्पत्ति दूसरे क्षणमें सामान्यज्ञान तीसरे क्षणमें विशेषज्ञान यातें या प्रकार भयो श्री वसुदेवजीको तो दोय घड़ी चतुर्भुज स्वरूपको दर्शन भयो तिनको अनुभवकरि जासमें श्रीनन्दरायजीके ह्यांप्रागव्य ताही क्षणविषेश्रीवसुदेवजीको दर्शन दिये "बभूव प्राकृतः शिशुः"तब पधरायवेकी इच्छा ता समें श्रीयशोदाजीके माया भई मथुराते श्रीवसुदेवजी उत्तम पात्रमें वस्त्र बिछाय लेचले पीछे श्रीयशोदाजीके पास पधराये । स्वरूप इहाँ प्रगट भयो तैसे दर्शन मथुरामें उनहीको पधराय लाये वस्तुतः एकही हैं व्यापकतें मथुरामें दर्शन दिये ते मथुरामें दर्शन देवेको प्रयोजन यह चतुर्भुज स्वरूपको आप विषे अन्तर्भाव करनो हैं व्यूहको कार्य पड़ें तब M - - Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । प्रगट करें व्युहत्रयविशिष्टको प्राकट्य मथुरामें वासुदेवविशिष्टको प्रागल्य ब्रजमें यशोदाजीको स्तन्य भयो सो मायाकृत तथा वासुदेवकृत हैं। प्रभु स्तनपान करत हैं सो पूतनाद्वारा सोरह हजार बालक अपने उदरमें आकर्षण किये हैं उनको नित्य मायाजनित स्तन्यको पान करें हैं । तो बालक यह यौगिक अर्थ है सो 'आत्मनः सकाशाज्जातः' मुग्ध होय । तब लीलारसकी प्राप्ति न होय तातें वासुदेव मोह होन न दिये। | यातें केवल पद धरे “केवलमायाजन्यं स्तन्यं भगवान् पिबेत्" और जो वासुदेवजन्यस्तन्य ही हों तो बालकनकों मोक्ष होय सो मायाप्रतिबन्ध कीनी । यातें मोहहू न भयो और मोक्षहू न भयो । ऐसे भये तब लीलारसकी प्राप्ति भई और पूर्णब्रह्मको रेतःसम्बन्ध नहीं तब “नन्दस्त्वात्मज उत्पन्नो" योंक्यों कहें ? ताको निर्णय वासुदेवपरत्व श्रीनन्दरायजीकी बुद्धि है रेतःसम्बन्धत्वात् । ताते नन्दबुद्धिको भ्रांतत्व नहीं सत्यही है । आत्मज शब्दको यौगिक वासुदेव विषे यह प्रकार जाननो । याते ब्रजभक्तनको भाव तो पुरुषोत्तमविषे ही है फलरूप"आत्मानंभूषयांचक्रुः" आत्माकोभूषणकरें जैसे आत्मा निर्विकारहै व्यापक है तैसें इनकी देहहू निर्विकार व्यापक है। देह नित्य न होय तो जा देहसो ब्रह्मानन्दानुभव ता देहसों भजनानन्दानुयोजने” इति । अनित्य देह होय तो ब्रह्मानन्दमें लय होय जाय जैसें इनको देह निर्विकार है और नित्य है तैसे इनके भावको भावहू निर्विकार है और नित्य है नन्दालयमें प्रातःभगवदर्शनार्थ पधारत हैं तब मातृचरण प्रभुकों जगावत हैं। जो यहां प्रभु जगाये नहीं जागत सब व्रजभक्त अपने अपने गृह आय भावपूर्वक प्रबोध पढ़िकें जगावत हैं याते श्रीगुसांईजीके बालकतें अतिरिक्त औरकों - - Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ A NDROIDARBHAmedia - - प्रबोधको अधिकार नहीं । मन्दिरमेंहू न पढ़ें जैसे ग्रन्थपाठ करतहैं तैसें प्रबोध पाठ न करें। गोपीवल्लभ तथा सन्ध्याभोग ये दोऊ इनकी ओरके भोग हैं तैसे येऊ भोग दोऊ श्रीगुसांईजीके घरमें हैं। और वैष्णवके यहां नहीं गोपीवल्लभके ठिकाने श्रृंगार भोग आयें तथा सन्ध्याभोगके ठिकाणे उत्थापन भये और उत्थापनभोग आवें सामग्री कदाचित् धरे ऊपर ताहूसों शृङ्गार | भोग तथा उत्थापन कहें कृति नन्दालयको करना। "सदा सवात्मना सेव्यो भगवान् गोकुलेश्वरः।" इति । ताते कृति नन्दालयकी करे भावना ब्रजभक्तनकी करै । इनकी कृति न करै "स्मर्तव्यो गोपिकावृन्दे क्रीडन्वृन्दावने स्थितः इति वाक्यात् । जितनी कृतिको अधिकार कृपा करिकें दिये हैं तितनी करे। यथा डोल प्रभृति स्मरणहूको जितनों अधिकार कृपाकरिके दिये हैं इतनो स्मरणहू करे विशेष भावना तो श्रीमदाचार्यजी स्वपरत्वही आज्ञा किये । “गोपिकानां तु यहुःखं तदुःखं स्यान्मम कचित् । गोकुले गोपिकानां च सर्वेषां ब्रजवासिनाम् ॥ यत्सुखं समभूत्तन्मे भगवान् कि विधास्यति । उद्धवागमने जात उत्सवः सुमहान् यथा ॥ वृन्दावने गोकुले वा तथा मे मनसि कचित् ॥” इति । यातें निष्कर्ष यह जो भक्तिमार्गकी मर्यादा तो यह है जो कृति तथा भावना नन्दालयकी करें। “यच्च दुःखं यशोदाया नन्दादीनां च गोकुले" यच्च दुःखं यशोदायाः-नन्दः आदिर्नन्दपदेन उपनन्दादयः। चकारेण अंतरंगगोपाः एतेषां यदुःखं चकारात्सुखमपि निरोधकार्यम् । यह भावना करै और गोपिकानां तु या शब्द करिके पूर्वको व्यावर्तन किये । तातें यशोदा प्रभृतिनकी भावना करे। गोपिकादिकनकी न करे और "उद्धवागमने जात उत्सवः सुम - - - ma Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - % 3Dur - हान्यथा" यह तो विप्रयोगकी है सो तो यशोदाप्रभृतिकीहु नकरे। तो गोपिकादिकनकी कहां यातें आपपरत्व दुर्लभत्वेन कहें। तथा मे मनसि क्वचित् इति । यातें निष्कर्ष यह जो जितनी सेवाको अधिकार कृपाकरिकें दिये हैं तितनी सेवा आशयपूर्वक करे सेवक सम्पत्ति विना तथा विदेश विषं जाय तब तो सेवा न होय आवे तो सेवाकी भावना आशयपूर्वक करनी । गायकों सुधासम्बन्ध है तातें प्रभुकों गायवेको समें जानि घण्टा जो कण्ठमें स्थापित हैं ताकीध्वनि करतहैं। गाय विविध हैं सत्त्व रज तम भेद करिके यातें तीन बेर घण्टा बजावत हैं । प्रभुके जागे पहली फिर गोपमन्त्ररूप है इनहूकों यथाधिकार सुधासम्बन्ध हैं ये शंखनाद करत हैं गोप त्रिविध हैं तातें येहू तीन बेर शंखध्वनि करत हैं व्रजभक्त तो पहिलेही सर्वाभरण भूषित होय गृहमण्डनादिक करि उच्च स्वरसों गान करत दधि मन्थान कार नवनीतादिक सिद्ध करि प्रभुके जागवेकी प्रतीक्षा करत हैं। इतनेमें शंखनाद सुनिकें नन्दालय पधारत हैं यहां श्रीमातृचरण जगावत हैं निर्भरनिद्रा देखि फिरि घर आवत हैं तब ब्रजभक्त प्रबोध पढ़ि जगावत हैं । सूर्योदय समय निद्रा निषिद्ध जानि श्रीमातृचरणहू जगावत हैं तब प्रभु जागि मातृचरणकी गोदमें बैठत हैं। तहां ऋषिरूपा प्रभृति बालभोग धरत हैं तब श्रुतिरूपा प्रभृति दर्शन करि अपने घर आय भावना पूर्वक मङ्गल भोग धरत हैं पीछे मङ्गला आर्तीके दर्शनकों पधारत हैं। ह्यां मङ्गला आर्ती पीछे नित्य तो तप्तोदकसों स्नान और अभ्यङ्गके दिन फुलेल उबटना लगायकें फेर केशर लगाय तप्तोदकसों स्नान हाथों सुहातो उष्णजल राखियें कहा ओछी है जे हैं जाति इत्यादिक कीर्तनकी भावना बालक हैं उठ न भाजे ताते कछू - Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ L e staemarantinenewsmaa waimactareESAREER - | भोग पास राखत हैं शृङ्गार भये पीछे गोपीवल्लभोग वनरत्नाको मनोरथ है पीछे ग्वालमें तबकडी है सो भावात्मक हैं पीछे डवराको भोग जो शृंगार भोग आवे तो भावना पृथक् | पालने में बैठे तो एक प्रकार यह है गोपालवल्लभ प्रभुकी ओरको राजभोगके चार भेद हैं-१ घरको जेवत नंद कान्ह इकठोरे, २ वनको छकहारीरी चार पांचक आवति मध्य ब्रजलालकी, ३ न्योतेके बृहद्भोगको प्रकार ५६।४ निकुंजको जेवें नंदमहल गिरधारी ये चार भेद हैं बीड़ी आरसी आर्ती अनो| सर उत्थापनभोग श्रीगोवर्द्धन हरिदासवर्यकों प्रेषित पुलिन्दीयें फलफूलादिक लाय अन्तरंग भक्तनकों देत हैं वे समय प्रतीक्षा करि जगाय भोग अंगीकार करावत हैं गोपमंडलकों पधारत हैं तब पुलिंदीनकों अलौकिक दर्शन अनुभव भयो श्रीगोवर्द्धन हरिदासवर्य भगवदीय श्रेष्ठके संगतें फिरि गोपमंडलमें पधारि श्रीबलदेवजी तथा बड़े गोप गायनके आगे मध्यगाय पीछे प्रभु अत्यंतरंग गोपमार्गमें संध्याभोग स्वीकार करि तहां हांकि हटक इत्यादिक कीर्तनको भाव काहूसों हाँ करी काहूसों ना करी या उक्तिमें दक्षिणनायकत्वमें न्यूनता आवे, ताते ह्यां भक्त द्विविध हैं-दर्शनाभिलाषी हैं तथा खंडिताद्योतक हैं। तहां दर्शनाभिलाषीकों तो हां करी और खंडिताद्योतक हैं वे कहैं कल्हकीरीति ता प्रति ना करी यह हां करी सिंहद्वार पधारे तब सन्ध्या आर्ती श्रीमातृचरण करत हैं मंदिरमें पधारि श्रृंगार बड़ो करि रात्रिको शृंगार स्वीकारकरि यह सेवा अधिकारी जेहैं तिन “कृत-गमनाश्चाध्वनः श्रमैः तत्र मज्जनोन्मदनादिभिः। नीवी वसित्वा रुचिरां दिव्यस्रग्गन्धर्मडितैः ॥” इति । फिरि ग्वाल स्वीकार करि तहां “निरखि - t aindistanditatienthondian - m ammeenasmotmritanica - da - mar Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RLDRENDINUEार प्राSEASEASSE - - - - a mewMEANNIESONSEENERan - मुख बाढिये जुहसें ” इत्यादि भाव फेरि शयनभोग मध्य दूसरो भोग यह सेवा श्रीरोहिणीजीकृत श्रीमातृचरण अरोगावत हैं।। आचमन मुखवस्त्र पीछे श्रीनंदरायजीको चर्वित तांबूल लेत हैं जैसे मंत्ररूप गोप तिनकी छाक समें जूठन बाधक नहीं तैसे विशुद्ध सत्त्वकरि पदार्थ सिद्ध होय तो प्रभु अंगीकार करें । तैसें श्रीनंदरायजीविषं जानिये शयनआर्ती पीछे तहां झारी २ वटा शय्या भोगके बीड़ा पुष्पमाला पास रहें और दुपहरकी माला पास ले हाथमें लेइ आंखिनसों लगाय तब ज्ञानेंद्रियके स्पर्श यशको ज्ञान होय, यशके ज्ञानहीतें छूटि भगवदासक्ति होय।। "यशो यदि विमूढानां प्रत्यक्षाशक्तवारणात् ” इति। याप्रकार प्रत्यहकों यत्किंचित् भाव लिखें। अथ जन्माष्टमीको भाव-पंचा-1 मृतस्नान पीछे अभ्यंगस्नान शृंगारमें केशरी वस्त्र लाल जड़ावके आभरण सुधाको आविर्भाव भयो है वर्ण गौर है सो शृंगारको उद्बोधक है ताते केशरी वस्त्र उभयप्रीतिकोहू आविर्भाव वाही दिन ताते लाल आभरण हैं लाल वर्णहैं सोशृंगारमें जो रस ताको उद्बोध हैं "श्यामं हिरण्यं परिधिम् ।" याकी सुबोधिनीमें निरूपित हैं शृंगारभये पीछे तिलक भेट आर्ती हैं सो मार्कण्डेयपूजावत् हैं। याही शृंगारोत्तर भोगमें औट्यो मीठो दूध वामें गुड़को टूक डारनों तथा श्वेत तिल डारने वामें कटोरी वा चमचासों दूध धरनो। भोगकी ऐसी रीत हैं-“सतिलं गुडसंमिश्रमंजल्यर्धमितं पयः ॥ मार्कडेयादरं लब्ध्वा पिबाम्यायुःसमृद्धये ॥" यह नंदालयको भाव । यह लीला तहाई जन्मदिनकी लीला कहैं। फेरि 'नित्यविधिः' अर्धरात्रितें जन्मलीला महाभोग आये पीछे छठी पुजे सो छठे दिन शुद्ध मुहूर्त आछो न होय तो जन्मदिनके। दिन पूजें तातें पूजत हैं पालने बैठावने तथा कापड़ा आवें - pm Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SERRORRIVARADARoman line सो उदावने भेट आवे सो खिलोनाकी तबकड़ीमें वंटीमें धरनी यातें नन्दरायजीके सम्बन्धी पालने बैठें ता समय ले आयें झगा टोपीके वस्त्र तथा हाथ पाँवके चूड़ाको रोक यह सौभाग्यको प्रभु हमकों अधिकार दिये। यह भाग्य या प्रकार मानि सेवा करे भगवत्प्रादुर्भावके साथही सुधाविर्भाव है तातें नौमीके दिन पहले दिनको शृङ्गार रहें और नन्दालयमें प्रागट्य नवमीमें है तब तो नवमी जन्मदिन भयो इतने स्वरसतें दशमीके दिन यही शृङ्गार होय आभरणको नियम और जन्माष्टमीके दिन उत्थापन भयें भोग धरि शय्याके वस्त्र घड़ी करि धरने शय्या और गैर धरनी रात्रिकों शय्या न रहें फेरि नौमीके दिन दुपहरकों बिछे यातें जो अहीरनके यह रीति। दोय रात्रि जागें जन्मदिनकों तथा देवकाजकों यह रीति जन्म दिनके रात्रि जगेमें जाको जन्मदिन ताकों जगावनों देवकाजके रात्रिजगेमें घरमें जो बड़ो होय सो जागे जातें यह जन्म दिनको रतिजगो हैं ताते शय्या न रहै प्रबोधनीके दिन तुलसीके व्याहको रतिजगो है सो देवकाज है तातेवा दिन श्रीनन्दरायजी मुख्य जागे प्रभु जागहू पौदहू यातें शय्या रात्रिकों बिछाई रहे तथा शय्या भोग प्रभृतिहू रहे और जन्माष्टमीकों शय्या भोग तथा रात्रिके बीड़ा सिंहासन पास रहें। दूसरो उत्साह भगवत्प्रादुर्भावते दोय वर्ष पहले आविर्भाव जब जन्माष्टमी भई पीछे उत्सव आयो तब श्रीवृषभानजी नन्द रायजीको निमन्त्रण करि बुलाये । तब सब आये तहां प्रभु तो उत्सवकोही बागा पहिरे जन्माष्टमीको सुधाविर्भाव भयो है ह्याँ सुधारसको आविर्भाव भयो हैं तातें ह्याँ केशरी वस्त्र नये हैं| प्रभुको कुलही मात्रही नई इहाँ केशरी नये हैं आछोतुर्रा वेई हैं। mes MissionNamo - - Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - m eocom - so - - - otomers SEN % | गोटी तथा धारीको वस्त्र नयो होय और जन्माष्टमीको श्वेत कुलही होय तहाँ तो दूसरे उत्सवको केशरी होय जहाँ शृङ्गारोत्तर तिलक होय तहाँ जन्म दिनको भाव जहाँ राजभोग आयबेके समें तिलक होय तहाँ सुधास्थापनको प्रादुर्भाव आधाराधेय एक भये जहाँ राजभोग आर्ती पीछे तिलक तहाँ जन्म| समेंको भाव प्रहरदिन चढ़े प्रागट्य हैं। ताते पञ्जीरी तथा दहीभात तथा खाटो भात तो होय आठ मासाको भोजन महाभोगवत् यह राजभोग समें भोग आ॥ __ भाद्र सुदि ११ दानलीला, मुकुट काछनीको शृंगार मुकुट उद्बोधक हैं काछनीमें घेर है । सो सबनको एकत्र करत है। श्रीहस्तमें वेत्र है सो यष्टिका है यष्टिका ब्रह्मा है।" यष्टिका कमलासनः" इति । ब्रह्माते उत्पत्ति है तैसे वेत्र तो दानके लेवेके अनेक प्रकारके जे तरंग तिनकी उत्पत्ति करत हैं । प्रभु सुधासम्बन्ध विना अंगीकार न करे ताते गौओंमें जो सुधाको स्थापन ताको दान मांगनो सो भक्तनके अवयव द्वारा अनुभा वार्थ दानलीला है ॥ ___ अथ वामन द्वादशी। कटिमेखला जो क्षुद्र घण्टिका ताको अवतार । भूरूप कटि हैताको आभरण सो कर्मरूप है। कर्मको अधिकार भूमिपरही है। क्रियाशक्तिको आविर्भाव है याहीतें क्रियाशक्ति जो चरण ताको विस्तार किये हैं । भक्तिमार्गमें यह उत्सव मानत हैं ताको आशय वैष्णवको विष्णुपञ्चक व्रत करने पामोत्तरखण्डे द्वारकामाहात्म्यसमाप्तौ-" गोविन्दं परमानन्दं माधवं मधुसूदनम् । त्यक्त्वा नैव विजानाति पातिव्रतवृतः शुचिः॥ कृष्णजन्माष्टमीरामनवम्येकादशीव्रतम् । वामनद्वादशी तद्वन्नृहरेस्तु चतुर्दशी ॥ विष्णुपंचकमित्येवं व्रतं सर्वाधनाश - - Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ POTTATRENT नम् । नित्यं नैमित्तिकं काम्यं विष्णुपञ्चकमेव हि ॥ न त्याज्यं सर्वथा प्राज्ञैरनित्यं सर्वथा वपुः ॥” इति । एकादशी २४ मिलि १ जन्माष्टमी १ रामनवमी १ नृसिंहचतुर्दशी १ वामनद्वादशी ये विष्णुपंचक व्रत करनें। किंच पुष्टिमार्गमें भक्तदुःखनिवारणार्थ जो आविर्भाव सो मान्यो चाहिये । तहाँ मत्स्यावतार वेदके उद्धारार्थ प्रगट, कूर्मावतार चतुर्दशरत्नार्थ प्रगट,वाराहावतार ब्रह्मा सृष्टि काहेपर करें तातें भूमिके उद्धारार्थ प्रगट, भूमि भक्त हैं तातें उद्धार यह कारण नहीं किन्तु ब्रह्मा सृष्टि काहेपर करें भूमि भक्त हैं तातें उद्धार तो पूर्णावतारविषं। नृसिंहावतार जो प्रह्लाद सों भक्त तिनको क्लेश सह्यो न गयो तातें प्रगट, यह उत्सव मान्यो चाहिये । यह प्राकट्य भक्तोद्धारार्थ है । वामनावतार यद्यपि इंद्रकी स्थिरताको बलिकों छलिवेकों पधारे परन्तु राजा बलिकों आत्मनिवेदन भक्ति भई तातें यह हू भक्तार्थ प्राकट्य, ये उत्सव मान्यो चाहिये । परशुरामावतार व्यूहसहित प्रगट व्यूहांतर्गत प्राकट्य तातें मर्यादापुरुषोत्तम पुरुषोत्तम वामनावतार यह उत्सव मान्यो चाहिये । श्रीकृष्णचंद्र प्राकटयमें व्यूह जुदे प्रगट बुद्धावतारमें कलिकालानुरूपते पाषंडके वक्ता। कल्क्यवतारमें तोदुष्ट म्लेच्छ विनाशार्थ प्रगट यातें यह निष्कर्ष श्रीराम तो मर्यादापुरुषोत्तम हैं तातें उत्सव मान्यो चाहिये और नृसिंह वामन ये दोऊ अवतार तो भक्तकार्यार्थ प्रगट तातें उत्सव मान्यो चाहिये । श्रीकृष्णावतार तो मुख्य हैई यह उत्सव तो सबको मूल है यह उत्सव अवश्य माननोही जे सारस्वतकल्पमें प्रगटभये तिनकों ऐसे तो प्रति कलियुग कृष्णावतारसे सो पूर्ण नहीं इनको उत्सव माननों प्रसंगतें इनके व्रतको निर्णय लिखियत हैं। निबंधांतर्गत - Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Mus । - मरा D सर्व निर्णय अत्र वैष्णवमार्गे-वेदमार्गविरोधो यत्र तत्र कर्त्तव्यः | यद्ययं नित्यो धर्मों भवेत् । नित्येऽपि वेदविरोधः सोढव्य इत्याहशङ्खचक्रादिकमिति सार्द्धश्लोकद्वयमिति शेषः। निर्गुणभक्ति युक्ति जो पुष्टि भक्तिमार्ग ता विषे वेदविरोध न करिये वेदविरोध सो वेदमें नहीं कहें सो न करनो जो अनित्य धर्म होय तो अनित्य धर्म दोय नक्षत्रके योग करके जयंति १ तथा सकाम १ ये दोऊ अनित्य धर्म वेदमें नहीं कहैं ते न करने और नित्य धर्म है सो करनो नित्य धर्म २ उत्सव १ तथा निष्काम ये करनो अढ़ाई श्लोक ताँईको निर्णय “शङ्खचक्राादिकं धार्य मृदा पूजाङ्गमेव तत् । तुलसीकाष्ठजा माला तिलकं लिङ्ग-मेव तत्॥ एकादश्युपवासादि कर्त्तव्यं वेधवर्जितम् । अन्यान्यपि तथा कुर्यादुत्सवो यत्र वै हरेः ॥ ब्राह्मेणैव तु संयुक्तं चक्रमादाय वैष्णवः। धारयेत्सर्ववर्णानां हरिसालोक्यकाम्यया ॥ तप्तमुद्राधारणं काम्यं । काम्य धारण करिये ते अनित्य धर्मको स्वीकार होय तो वेदविरोध बाधक होय यातें मृदा मुद्राधारण करिये " शंखचक्रादिकं धार्य मृदा पूजाङ्गमेव तत्” इति वाक्यात् । मृदा धारण न कारये तो बाधक हैं "शंखादिचिह्नरहितः पूजां यस्तु समाचरेत् । निष्फलं पूजनं तस्य हरिश्चापि न तुष्यति ॥” शंखादि चिह्नधारण विना पूजामें जाय तो पूजनहू निष्फल होय तथा हरिहू प्रसन्न न होय यातें पूजाको अङ्ग जानि अवश्य धारण कर्तव्य हैं। अब कहत हैं पूजाको अङ्ग हैं सेवाको तो अंग नहीं पुष्टिमार्गीयको तो सेवा अवश्य हैं तहां कहत हैं “सेवा मुख्या न तु पूजा मन्त्रमात्रपूजापरो न भवेत् । "सर्वपरिचर्या सेवा वस्त्र धोवे तहां ताई सेवा अति बहिरंगता हि सेवा तामें जा सेवाको कालको अनुरोधहै सो || - - ROOMIDNINonSI । Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ %3D पूजा यह पुष्टिमार्गमें सेवा तथा पूजाको भेद कालको रोध जा सेवाको सो पूजा जैसें मंगलभोग मंगला आरती यह प्रातही होय । शयनभोग शयन आरती यह सांझही होय याते प्रधानहों भोग ताकी आवृत्ति होय तो अंग कौन हैं । आचमन मुखवस्त्र वीटिका ताहूकी आवृत्ति होय जों भोग नहीं तो आचमन मुखवस्त्र काहेंको? "प्रधानावृत्तावंगान्यावर्त्तते" इति । प्रधानही अंग हैं। मृदा पूजांगमेव इति वृत्तौ हेतुमाह-“एककालं द्विकालं वा त्रिकालं वापि पूजयेत्।"तैसे शंखचक्रादिधारण पूजाकोही अंगहैं मृदा पूजांगमेव च इति एवकार कहें। जब मन्दिरमें जाय तब षट् मुद्रा धारण करे जो सहज न्हानो हो वा विदेशादिमें तब मुद्राधारण सर्वथा न करे । परंतु यों कह्यो हैं-"ऊर्द्धपुंडू त्रिपुंडूं वा मध्ये शून्यं न कारयेत् ।” ताते ऊर्द्धपुंड्र शून्य न राखनो संप्रदाय मुद्रा धारण करे "संप्रदायप्रयुक्ता च मुद्रा शिष्टानुसारतः । यथारुच्यथवा धार्या न तत्र नियमो यतः॥” संप्रदायश्रीगोपीजनवल्लभाय । यह अवश्य धारण करनी या उत्तमांगमें धारण करे ये शिष्टानुसार हैं हृदयपर्यंत उत्तमांगचक्रवत् मध्यमांगमें नहीं उच्चैश्चत्वारि चक्राणि इति च । ५ मुद्राको पूजामें धारण हैं सो संप्रदाय मुद्राको नेम नहीं उत्तमांगमें यथारुचि धारण करे ' यथारुच्यथवा धार्या' । यामें अथवापद हैं सो पक्षांतर हैं तातें या मुद्राको नियम नहीं जो पूजाकेई अंगमें धारण करे जब स्नान करे तब धारण करे तिलकशून्य न राखनों तातें टीकी देनी याको वचन नहीं और संप्रदाय मुद्राको तो अथवा पद करिके धारण हैं याते संप्रदाय मुद्रा तो सदा धारण करे और षट् मुद्रा तो सेवामें जाय तब धारण करें याते सकामते तप्तमुद्राको त्याग निष्कामते गोपी चन्दन करिके धारण करे Aswamme - REERIHARAT nommomHONEERE Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ CREDIOHIND Satienctimanamadiseaseemsain - - - किंच और माला वामेहू तुलसीकी माला धारण करे भगवान्को प्रिय हैं वा शुद्धकाष्ठकी माला धारण करें जामें काहू देवताको भाग नहीं सो शुद्धकाष्ठ वैष्णव हैं “वैष्णवा वै वनस्पतयः " इति श्रुतेः। याते ये दोऊ माला निष्काम हैं तातें धारण करें। तथा जपहू करें और माला रुद्राक्षप्रभृति सकाम हैं ताते स्वीकार नहीं, वेदविरोध बाधक होय और तुलसीकी तथा शुद्ध काष्ठकी माला धारण न करें तो बाधक होय "धारयति न ये मालां हैतुकाः पापबुद्धयः । नरकान निवत्तेते दग्धाः कोपानिना. हरेः॥” याहीते आज्ञा किये ." तुलसीकाष्ठजा माला धार्या | यज्ञोपवीतवत्" मालापि धार्या यज्ञोपवीतमालामें यह भेद यज्ञोपवीत टूटि जाय तब और ही पहिरे और माला टूटि जाय तो मणिका काढि गांठि बाँधि लेई वही माला काम आवे किंच तिलक उद्धपुंड्र करे । भगवच्चरणारविंदकी आकृति करे यह निष्काम तिलक और तिलक सकाम यातें अनित्य धर्म सो देवविरोध यातें निष्काम सो हरिमंदिरं " ललाटे तिलकं यस्य हरिमंदिरसंज्ञकम् । स वल्लभो हरेरेव नीचो वाप्युत्तमोपिवा ॥" इति । इतने तिलक भगवच्चरणतें च्युत भये तातें सो तिलक धारण न करिये । वर्तुलं तिर्यगच्छिद्रं हवं दीर्घतरं तनु । वक्र विरूपं बद्धायं भिन्नमूलं पदच्युतम् ॥” वर्तुलं गोल १ तिर्यक त्रिपुंड्र २ अच्छिद्रं ऊईपुंड्र चीरे विना ३ ह्रस्वं छोटा ४ दीर्घतरं नासिकांतम् ५ तनु अतिपतरो मीह ६ वक्र वांको ७ विरूपं एक लकीर मोटी एक पतरी ८ बद्धान ऊपरते बध्यो ९ भिन्न मूल नीचेंतें मध्य दोऊ लकीर जुदी १० इतनें तिलक भगवचरणारविंदतें छूटे ते तिलक सकामते न करने ऊईपुंडू निष्काम यही तिलक करनो। किंच एकादशीमें दशमीको a listudiomadupoCont - । - । - Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - वेध न आवे ऐसी करनी। तहाँ वेध चार प्रकारको-४५ को एक,५०को एक,५५को एक।५६को एक । प्रथम स्पर्श वेध, द्वितीय सङ्गवेध २, तृतीय शल्य वेध ३, चतुर्थ वेधवेध ४ "पंचचत्वारिंशता स्पर्शः सङ्गः पंचाशता मतः। पंचपंचाशता शल्यः वेधः षट्पञ्चाशता मतः ॥ स्पादिचतुरो वेधान् वर्जये द्वैष्णवो नरः॥” यातें४३ घटी ५९पल तांई वेध नहीं। ४४ पूर्ण भई और या ऊपर जितने पल ४५ के हैं यह स्पर्शवेध १, ऐसे ४८ घटी ५९ पलताई वेध नहीं। जब ४९ पूर्णभई और या ऊपर जितने पल सो ५० के हैं ये संगवेध २, ऐसे ५३ घड़ी ५९ पल तांई वेध नहीं, जब ५४पूर्ण भई और या ऊपर जितने । पल सों ५५ के हैं यह शल्य वेध ३, ऐसे ५४ घटी ५९ पलताई वेध नहीं । जब ५५पूर्णभई तापर जितने पल सो ५६के हैं। यह वेधवेध ४ा या प्रकार चार वेध युगभेद व्यवस्थासों मानिये । "स्पादिचतुरो वेधाः सुप्रसिद्धाः कृते हि वै । सङ्गादयस्तु त्रेतायां शल्यादौ द्वापरे कलौ॥” स्पर्शवेध सत्ययुगमें १, सङ्गवेध त्रेतामें २, शल्यवेध द्वापरमें ३, वेधवेध कलियुगमें ४ यही निष्कर्ष लिखे । " षट्रपंचाशच्चेद्वेधरहितं कर्त्तव्यं पूर्वमन्यथा। करणपि भगवन्मार्ग प्रवेशानन्तरं पंचाशद्वटिका दशमी चेत्तदा एकादशी त्याज्या" यातें कलियुगमें ५६का वेध मानिये । जब ही ५५ दशमी भई तब वह एकादशी न करें। याहीतें दशमी विद्धा एकादशी सकामतें न करिये । वेध विरोध बाधक होय तातें वेध ५६ को, वेध न आवे सो निष्काम एकादशी २४ करिये। किंच जन्माष्टमी ७ सप्तमीको वेध न आवे ऐसी करे याकों अरुणोदय वेध नहीं किंतु सूर्योदय वेध है "उदया। दुदया प्रोक्ता हरिवासरवर्जिता" इति वाक्यात् । याते अष्टमी LAMESNSig Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ im - amananew m सहित नौमी ९ जन्मतिथि है मायाको जन्म नवमीमें कह्यो है | "नवम्यां योगनिद्राया जन्माष्टम्यां हरेरतः। नवमीसहितोपोष्या रोहिणी बुधसंयुता ॥” इति । यह निष्कर्ष सूर्योदयमें ७ मी एक पलहु होय तो न करिये बाधकहै “ पलवेधेपि विप्रेन्द्र सप्तम्या अष्टमी तु या। सुराया बिंदुना स्पृष्टं गंगांभ-कलशं यथा॥” इति । सूर्योदयसमें सप्तमी होय पीछे अष्टमी भई और दूसरे दिन कछू अष्टमी होय यह विद्धाधिका कहिये ऐसी होय तब दूसरे दिनकी उदयात् अष्टमी करें और अष्टमीको साठ्या भयो तब होऊ दिन अष्टमी उदयात् हैं यह शुद्धाधिका कहिये ऐसी होय तब पहले दिन करिये । पहली उदयात् न करे तो ३२ अपराधमें निवेश होय । अविद्ध भगवद्रतत्याग वेधरहित भगवगतको त्याग न करिये और दूसरी उदयात् अष्टमीको व्रत करै तो वह तिथि मिलावत है। सूर्य ६०घटीको भोग किये ता पीछे घटी रहैं सो मल है यह घटी एकट्टी होय तब तीसरे वर्ष मलमास आवत है । तातें वा महीनामें उत्सव न करनो तैप्से ये शेष घड़ी रहीं तिनमें उत्सव करे तो मल होय एकादशी तो मलमें करें बाधक नहीं और मलमें न करें “षष्टिदंडात्मिकायास्तु तिथेनिष्क्रमणं परे । अकर्मण्यं तिथिमलं विद्यादेकादशीदिने॥” इति ज्योतिर्निबंधवाक्ये । ऐसे अष्टमीको क्षय भयो तहाँ उदयकाल तो सप्तमीमें है अष्टमी वाही दिन है दूसरे दिन तो शुद्ध नवमी है। यह विद्धान्यून कहिये तातें सप्तमीसंयुक्त जो जन्मतिथि है नहीं वामें तो उत्सव होय नहीं जैसे गंगाजलको घट भरयो है और वामें मदिराकी छींट पड़े तो सब घट अपवित्र होय तैसें सप्तमीकों पलहूको स्पर्श अष्टमीकों होय तो मदिराबिंदुस्पर्शवत् यह निष्कर्ष जो अष्टमी मुख्य है । - - donNDIMEDIAS - - - Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ R - o manimation नवमी अंग है मुख्य तिथि अष्टमी वाको लाभ जो न होय तो नवमी अंग है वाहीमें व्रत उत्सव करें परंतु अजन्मतिथि सप्तमीसंयुक्तमें सर्वथा न करें, करें तो सकामतें वेधविरोध बाधक होय तथा रोहिणीको जो मुख्य मानकर व्रत तो करे तो जयंती होय तोहू वेधविरोध बाधक होय यातें शुद्ध करनी। किंव रामनवमीको संपूर्ण व्रत करे राम नवमीप्रभृतिब्रतानि भगवन्मार्गे कर्तव्यानि' जब नवमीविद्धा अधिका होय तब दूसरी करे,शुद्धाधिका होय तब पहली करे विद्धान्यूना होय तब अष्टमीविद्धा करे या व्रतको दूसरे दिन पारणा आवश्यक है और भांति करे तो सकाम बाधक होय तब वेदविरोध बाधक होय किंच नृसिंहजयंती तथा वामनजयंती ये दोऊ जयन्ती व्रत तो रामनवमी प्रभृति व्रतानि या प्रभृति कहेतें समाप्त भये परंतु इन दोऊनकों व्रत संपूर्ण नहीं यातें भिन्न हैं नृसिंहजयंतीव्रतमुत्सवश्चेत् कर्त्तव्यं वामनजयंती उत्सव करने ताने उत्सव पर्यन्त व्रत करने जन्म ताई उत्सव फिर तो नित्यकी रीति जो काहूको शयनआर्ती पीछे नृसिंहजीको वेष बनवाइये तथा राजभोगआर्ती पीछे वामनजीको वेष बनाय दर्शन करे तो होय अथवा द्वितीयस्कंधोक्त भावना करनी होय ये अवतार मेखलाप्रभृतिक है तातें उत्सव पूर्ण नहीं भयो। नृसिंहजीको वेषभावना करनी होय तो रात्रिको पारणा न करे तैसे वामनजीको वेष भावना करनी होय तो पहिले एकादशीके दिन फलाहार करें, द्वादशीको उपवास करें 'एकादश्यामुपोषणमकृत्वा द्वादश्यामुपोषणं कर्त्तव्यं' निष्कर्ष यहें ह्यां उत्सव मुख्य है व्रत तो मुख्य है नहीं । भोजन कीये पीछे उत्सव करनों निषिद्ध है। भगवदावेश न आवे 'किं बहुना उत्सवः प्रधानभूतःभुक्त्वा चोत्सवो निषिद्धः, भगवदावेशामा - -- -- - - ---- Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ OISSEURE MERO ENSEMENTARRAPHERE | वात् । ' यावत्पर्यन्त उत्सव तहांताई व्रत करे । उत्सव होय चुक्यो और व्रत करे तो अनित्य जो जयन्तीव्रत ताकी आपत्ति करिके वेधविरोध बाधक होय । यातें ह्यां तांई आग्रह राखिये जो देह नीकी न होय तोहू उत्सव होय चुक्यो होय तब कछू खाइये । आग्रह न राखिये तो वेधविरोध बाधक हो। ‘सम्पूर्णोपवासे तु अनित्य जयंतीव्रतत्वापत्या वेधविरोधो बाधको भवति।' इन दोऊ जयन्तीनको सम्पूर्ण उपवास तो गोपालमन्त्रको अङ्ग हैं । जो गोपालमन्त्र न लीये होय और सम्पूर्ण व्रत करे तो वेधविरोध बाधक होय । यातें शंखचक्रादिकं धार्य ' याके अभावमें कहैं । अत्र वैष्णवमार्गे वेदमार्गविरोधो यत्र तन्न कर्त्तव्यं यद्यनित्यो धर्मो भवेत् । नित्येपि वेदविरोधः सोढव्य इत्याह साईश्लोकद्धयमिति शेषः।' आश्विन सुदि १ प्रथमपर्व यव बोवनें। दश मृत्पात्रमें जुदे जुदे बोवे,प्रतिदिन नवीन अंकुरित होय तातें नित्य सामग्री नई राजभोगमें समर्पनी । ये सात्त्विकादि नवभेद करि नवमी ताई सगुण भक्तनकों नवांकुरीभाव हैं । आश्विन सुदि १० दशहराको भाव. समुदायको भाव हैं। पर निर्गुणको मुख्य याहीतें श्वेतकुलही श्वेत तासको वागा साड़ी दिवारीतेंहलको तास होय । तास न होय तो श्वेत छापाको । छापा न होय तो श्वेत मलमलको। दशप्रकारको भाव ताते जवारा समर्पिके माठ दश भोग धरे । तैसें दश गोवरके पूवा करि सिंदूरके पांच टिपका तथा मध्य पीरे अक्षत प्रत्येक २ पूवाके ऊपर धरे । प्रभु जवारा घर चुके जब जवारा पुवान पर डारें। जैसें ब्रह्मा पृथ्वीकों थापे तब सृष्टि अंकुरित भई । तब दश प्रत्येक भावकों स्थापन कीये सिंदूर अक्षत करि पूजन किये सो उभय स्वामिनी वर्णविशिष्ट - Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त - अनुरागयुक्त कियें । फेर प्रभुको जवारा समर्पि जवारा इनपर धरे। तब अंकुरित भगवद्विशिष्ट भये। आश्विन सुदि १५ शरदकी अष्ट भगवत्स्वरूप षोड़श भक्त या प्रकारके अनेक मण्डल अलौकिक चन्द्रको लौकिक चन्द्रमें निवेश मध्याऽऽकाशपर्यंत गमन तहां ताई दोय दोय भक्त एक एक भगवत्स्वरूप या प्रकारकी लीला फेरि अर्धरात्रि पीछे लौकिक चन्द्रको प्रकाश तहां जितने भक्त तितने भगवत्स्वरूप यह लीला औरहू प्रकारकी रात्रि अलौकिक हैं जो कुमारिकानकों वस्त्राहरण लीला विषे दिवसमें रात्रि दिखाये सो श्रुतिरूपा साधन सिद्ध हैं इनकी व्यापि वैकुण्ठमें नित्यलीलास्थ भक्तनको दर्शन भयो । तहांवर भयो-"कल्पं सारस्वतं प्राप्य बजे गोप्यो भविष्यथ।” और ब्रह्मा गोपीजनकों स्वरूप कहैं ।। तथा इनकीभक्तिहू कह “न स्त्रियोव्रजसुंदर्यः पुत्र ताः श्रुतयः किल । नाहं शिवश्च शेषश्च श्रीश्च ताभिः समःक्वचित्॥” इति । ये साक्षात् श्रुतिरूपा हैं साधारण स्त्री नहीं इनकी भक्तिसमान और कार्की भक्ति नहीं ब्रह्मा शिव शेष लक्ष्मी ये सबकी भक्तिको स्वरूप ब्रह्म-शिवको गङ्गासेवनद्वारा चरण सेवन भक्ति, शेषको नामद्वारा कीर्तन भक्ति, लक्ष्मीको वनमालाऽर्पण द्वारा अर्चन भक्ति इन सबनको मर्यादा भक्ति और व्रजभक्तनकों फलरूप आत्मनिवेदन भक्ति ताते इनकी भक्ति सबनतें श्रष्ठे हैं। ऋषि रूपा साधन साध्य भक्त यातें व्रतचर्या में दिवसमें अलौकिक रात्रिको दर्शन कराये और श्रुतिरूपानको तो व्यापि वैकुण्ठको दर्शन कराये । तातें और साधन रह्यो नाहीं। ऋषिरूपानकों तो कात्यायनीद्वारा अर्चन भक्ति, श्रुतिरूपानकों -पुष्टिव्यसनरूपा आत्मनिवेदनभक्ति याते कुमारिकानकी भक्तितें ndia i - - LETIRECORana Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NeverASSISTARAMETURE बसायमानमालामाTRALIA Rahale । - श्रुतिरूपानकी भक्ति श्रेष्ठ हैं । कार्तिक वदि १३ धनतेरसकों हरे तासको बागा तथा चीरा हरयो ऐसी साड़ी श्याम | पीत रंगकरिके हरयो होय । श्याम श्रृंगार गौर उद्बोधक गौर | सो पीत जब हरयो भयो तब शृङ्गारोद्बोधक भयो । औरहू तासको बागा होय तो श्यामतास एकादशीके दिन पहिरें। पीत तास द्वादशीके दिन पहिरें। धनतेरसके दिन हरयो तास पहिरें । गोपालवल्लभमें फेनी खीर करे । भावके उद्बोधकको आधिक्य चहिये। जैसे उदयाके पूर्णचन्द्र । कार्तिक वदी १४ रूपचतुर्दशी अभ्यंग फुलेल उबटनों लगाय चुकें तब कुम्कुमको तिलक करि पीरे अक्षत लगाय बीड़ा पास धरि तप्तोदक स्नान कराय फिरि केशर लगाय स्नान कराय अंगवस्त्र करि लाल तासकों बागाप्रभृति श्रृंगार निरावृत्ति श्रीअंगमें फुलेल पर उबटना लगाइये । सो स्नान समेकी आर्तीके समें कहूं श्यामता कहूँ पीतता दर्शन होय । सो पहिले दिन एक होयके अन्यवर्ण होय गयो बागाको सोया समें दोऊवर्ण पृथक दर्शन देत हैं। श्रीअंगमें यह भाव उद्बोधक भयो । ताते आर्ती आवश्यक हैं। लाल तासको बागा सों उद्बोधकको अनुरागयुक्त करें तास है यातें किरण प्रसारित भई। ऐसो दर्शन जिन भाग्यशील भक्तनको भयो तिनकों दिवारीके सभेकी चतु ष्पदिकाके भावको बोध भयो । या बागाको वर्ण अनुरागयुक्त हैं तथा रजोगुणसे स्मरोद्बोधक हैं और दिवारीको वा निर्गुण हैं। तथा आनन्दको धर्म तम श्वेत हैं सो लयात्मक हैं किंच फुलेल स्नेहतें संयोग उभयदलात्मक स्वरूप संपूर्ण शृंगाररूप एककालावच्छेदेन स्नानसमें दर्शन भयो तब तिलक करें सो जयपताका मध्य पीरें अक्षत करि उद्बोधक मीनकेतु भयो: । । | Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -- a बीड़ा दो २ धरें सों दलद्वयको तृतीयपुमर्थको समर्पण मुठिया वारें सों लौकिक चतुर्विध पुरुषार्थको त्याग आर्ती कीये सो चार जोतिकरि चतुर्विध जें भक्त तिनके अवलोकनद्वारा संपूर्ण श्रीअंगानुभव भयो छह बेर वारें सो षड्गुणैश्वर्य लीलासहित जो वेददर्शनार्थ प्रादुरभूत्' तिनको प्रत्यंगानुभव भयो शीघ्र वारें सो निरावृत्तको अवलोकन शीघ्रही हैं और यातें वेगि वेगि वारिये सो बात्सल्यतें शीतको समय है बीड़ाभोग्य हैं सो शृंगारकी चौकीपर धरें तप्तोदकसों स्नानसों तम लयरूप हैं तातें श्रमनिवृत्तिद्वारा लीलांतरकों उदोधक हैं केशर लगायकें स्नान होय सो तो केशर रजतप्त तम जल सत्त्व त्रितय भक्तको उद्बोधक भयो स्वच्छतें निर्गुणकोंहू भयो परि सत्त्व आगे हैं तातें सर्वथा तमकों ही मुख्यता चाहिये । आनन्दको धर्म तपही हैं यातें फेरि अंग वस्त्र करनों सो जल सत्त्व हैं ताको रंचकहू अंश न रहैं यातें अंगवस्त्र ऐसें करिये सुखद् सों प्रत्यवयवमेंतें जलांशकी निवृत्ति होय सूक्ष्म अवयव होय तो अंगवस्त्रकी बाती करि फिरावे फिर श्यामस्वरूप होय तो फुलेल समर्पि अंगवस्त्र करनों सो "स्नेहयुक्तविमलितैः चिकणः” एसो स्वरूप सिद्ध करनो स्निग्धनीरद श्याममेंतें रस मलके और गौरस्वरूप होय तो स्नेह ऊपरही वर्ण श्यामते प्रगट हैं तब काहेंकों स्नान पीछे फुलेल लगावें अंगवस्त्र करे मनकों भाव विदित करिवेकों प्रयोजन नहीं वश्य हैं उहां वर्षा के लिये स्वयंहृत प्रभृतिहू लीलाविशेष हैं और अंतरतो श्याम वा गौर द्विविध स्वरूपको समर्पनोही अधिक सुगंधतें स्नेह व्यसनात्मक हैं लाल तासको बागा नखशिख अनुरागयुक्त करि हीराके आभरण सोशुक्रको रत्न हैं आनन्द सारभूत idas - SAMPIRATION - - - Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MINION L INDRENus पदार्थको स्थापन तेजते उद्बोधक हैं सामग्री मालपुवा यह जुदे बूरा बिना सुस्वाद नहीं तेंसें अधर संबंध होय तबही वकारको आविर्भाव होय " वकारस्य दंतोष्ठम् " वकार अमृतबीज हैं “प्रादुर्भवति वकारस्त्वदधरपीयूषदशनसंयोगात् । "तेनामृतबीजसंयुक्तं प्राणप्रियेति ” इति स्वरूप प्राकट्य हैं तात रूपचतुर्दशी कामस्थिति चौदशको चरणमैं हैं ताते ऐसी भक्तिविना यह पदार्थ तो गुप्त हैं दिवारीरूपही तासको बागा साड़ी कुलही श्वेत सूतरू तुर्रा किनारी लाल सूथन सलाल अतलशकी वा दरियाईकीलालपटुका निर्गुण अनुरागयुक्त दीवड़ा गोपाल॥ वल्लभ शयन आर्ती चोपड़की सिंहासनपर होय । पीछे हटड़ी बैठवेकों पधारे शय्याके आसपास सूको गीलो मेवा तथा मिठाई तथा दीवड़ा सामग्रीमें चोपड़की चोकीके पास विराजवेकी चोकी सिंहासनपर होय पीछे हटड़ी बैठिवेको पधारे शय्याके बीच बीड़ाके थारमें अंगरागकी कटोरी तथा चोवा छोटी कटोरीमें तथा बरास पास फूलकी माला प्रभु धारवेकी चौकीपर बिराजें तब सगरे घरके भेट धरें सो भेट बाँटिके चोपड़के आसपास धरिये आर्ती चोपड़की होय पीछे शृंगार बड़ो इतनों होय हारमाला गुंजा चंद्रिका क्षुद्रघंटिका बाजूबंद चौकी पगिपान और दूसरी ठौरहू बड़े हार तथा क्षुद्रघंटिका पीछे पोढाईये सिंहासन बिछ्यो राखिये शय्याते लेके सिंहासन ताई पेंड़ो बिछाइये पीछे बाहर निकसिये चोपड़को भाव तामें गोटी१६षोडशप्रकारके भक्त हैं सात्त्विकसात्त्विक, सात्त्विकराजस, सात्त्विकतामस, राजसराजस, राजससात्त्विक, राजसतामस,तामसतामस, तामसराजस, तामस सात्त्विक ये नौ भये। सच्चित् आनन्द मिले १२ भये। चतुर्विध भक्त नित्य सिद्धामें चार भेद हैं-वाम भाग १, दक्षिण Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - unnialisanthalactationshimamalnilnacicrowatanarthakamoduRampatnitatiositikacclashatansixiandamadinaissattaamaniamsocitatisanmoomarathimanupamanan भाग १, ललिता प्रभृति १, तुर्य प्रिया १ यह व्यापिवैकुण्ठमें और अवतार लीलाविषे या प्रकार चतुर्विध हैं-नित्य सिद्धा १, श्रीयमुनायूथ १,अन्यपूर्वा, पूर्वा अनन्य१६, सत्त्वके भेदके ३, चित् १, ये ४ लाल रङ्गके वस्त्र पहिरें। तमके भेदके ३ तथा आनंद ये श्वेत वस्त्र पहिरें और चतुर्विध जे भक्त हैं सो भगवद्भावविशिष्ट हैं। विपरीत तब इनमें स्ववर्ण पीत हैं भगवद्वर्ण श्याम हैं श्याम पीत वर्ण दोऊ एकट्टे हैं ये ४ हरे वस्त्र पहिरें। मिले १६ भये। पासा ३ हैं सो तीनों सुधासों क्रीड़ा देवभोग्या १ भगवद्रोग्या२ सर्वाभोग्या ३ पासाप्रति १४ अवयव हैं विद्याहू चौदह हैं १४ विद्यामें निपुणयुक्तता जतावत दान करत हैं ताहीतें सुधा३ विवेकसों दान खण्ड ९६ हैं सो बन्ध ८४ और बन्ध जैसें आधार तैसे शक्तिहू १२ बारह हैं " श्रिया पुष्टया गिरा कीर्त्यांऽकीर्त्या तुष्टयेलयोर्जया। विद्ययाऽविद्यया शक्त्या मायया विनिषेविता॥" येहू शक्ति हैं तातें आधार हैं मिलें ९६ छानवें भये । खेलमें प्रभुके सम्मुख दक्षिण भाग और वामभागके सम्मुख तुर्य प्रिया हैं। लाल रजोगुण युक्ततें प्रभुको यूथ हरयो उभय प्रीतियुक्त हैं तातें दक्षिण भागका यूथ श्याम वर्ण प्रिय हैं तातें वामभागको यूथ श्वेतनिर्गुण हैं सो तुर्यप्रियाको यूथ हैं चारको एकत्र यूथ सो यातें “ विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः” विभाव २ आलंबन विभाव १ तथा उद्दीपन विभाव १ तथा अनुभाव १ व्यभिचारीभाव १ तातें चारको यूथ ११ राग कालिङ्गडो-“एक अनूपम अद्भुत नारी नैनबैन चौबीस चौगुने । सोरह चरन वदन हैं चारि चतुराननसों प्रीति तीन पति ताकें इकईस दूने॥३॥ नैन श्याम श्वेत आरक्त हरित R AMA Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ या TRai-indi . Mata n gnedmas -: - । पद चलतवे बोल नहीं बैन ॥२॥राजस सात्विक तामस निर्गुण युग्म दरशनको आवत । मग्न भये सायुज्य मुक्ति फल त्रिविधरूप देखें सचु पावत ॥३॥ इह विधि खेल रच्योवृजमण्डल दीप दिवारी प्रगट दिखाई । तुर्यरूपके यूथ विराजित छबिपर द्वारकेश बलिजाई॥४॥सात्विकादिवत जोरसभेद है सो मेवा मिठाईके रसको आस्वाद अंगराग चोवा बीड़ा कपूर वर्ण श्यामकार चतुर्विध युक्तक्रीड़ा दीबड़ा आकृति श्यामके भेटसों होड़सों सहहोससों क्रीड़ाकी उत्कंठा आर्तीहू चोपड़की होय चोपड़वारेसों रसपरवशत्वसहित मोहित होय भाव वारे अन्नकूट मङ्गला आर्तीको रात्रिके वागाको दर्शन होय तातें ओढ़िके विराजें श्रीमुखहीको दर्शन होय रात्रिकी लीला गोप्य है तातें वागाको आच्छादन आती ताई गोप्य हैं वाही वागापर शृङ्गार होय यह मुख्य पक्ष। और यहू पक्ष हैं जो बागा बड़ो कार स्नानकरें फिर यही बागा पहिरें कुलहीके तुर्रा लाल सूतरू किनारी रुपहरी गोकर्णाकार रात्रिखेलमें लाल गोटी आपुकी हैं ताको भाव | सूचक लाल तुर्रा है तथा श्रीहस्तमें पीताम्बर रहै सोऊ नारंगीरंगकी दरियाईको वा केशरी दरियाईको अन्नकूटके भोगमें अनसखड़ी भोग प्रभुके आगे निपट, आगे माखनमिश्री राखिये सखड़ी भोग अनसखड़ीके परे । प्रौदभावके भक्त अग्रेसर हैं। तातें अनसखड़ी पास है कोमल भावके सजल हैं तातें सखड़ी दूरि हैं संध्याआर्ती पीछे श्रृंगार बड़ो होय तब कुलही रहे तुर्रा बड़ो करिये। भाईदूज अभ्यंग बागा सूथल लाल पाट दरियाई वा अतलशके हरयों चीरा शृंगार भये पीछे भोगमें खिचड़ी घी सधानो दही पापड़ कचिरिया प्रभृति राज भोगमें दही भात अध में कछु अन्नकूटकी सामग्रीमेंतें राखिये सो । B hulaundation - Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ANANDROIN - गोपालवल्लभ राजभोग आयचुके पीछे तिलक आर्ती पीछे थार ॥ सँवारिये अवतारलीलाविर्षे ऋषिरूपानको कोमल भाव व्यापि वैकुंठमें श्रीयमुनाजीसंबंधी भाव जलक्रीड़ातें शीतसंबंधी पाटको बागा तथा उष्णभोग श्रमते शीतल भोग गोपाष्टमी मुकुटकाछनीको श्रृंगार अभ्यंग नहीं यातें जो दानलीलाकी एकादशी तथा रासकी पून्यो तथा गोपाष्टमी ये तीन उत्सव अवतारलीलाके हैं तातें अभ्यंग नहीं तथा नये वस्त्र नहीं वही मुकुट काछनीको शृंगार तथा गोपालवल्लभमें नई सामग्री नहीं ये तीनों लीला व्यापिवैकुंठमें सदा हैं अवतारलीलामें दिनको नियम है तातें वाही दिन होत हैं लीला सदा है वनमें पधारिके लीला किये चतुर्विध पुरुषार्थ तथा दशरथ मिले १४रसकी लीला बनमें किये। वृंदावने श्रीमान् यह धर्म । कचिद्गायति यह अर्थ२ कचिच्च कलहंसानां यह काम ३ मेघगंभीरया वाचा यह मोक्ष ४ येहू च्यार रस हैं । " एकायनोसौ दिफलस्त्रिमूलश्चतूरसः " इति चकोर क्रौंच ह्यांते दशरस । चकोर शृङ्गार १ क्रौंच वीर २ चक्राहकरुण ३ भारद्वाज अद्भुत ४ बर्हि हास्य ९ व्याघ्र सिंह भयानक ६क्कचित् क्रीड़ा बीभत्स ७ नृत्यतें रौद्र ८क्वचित् पल्लव शांत ९ अपरे हतभक्ति १० ये चौदें रसकी लीला वनमें किये इनको स्थायीभावको प्रदर्शन में अन्तरंग भक्तनको जतावत हैं। अलक हैं सो धर्म अर्थ काम मोक्षको स्थायीभाव। । गोरजश्छुरितकुंतल शोभाधायकतें रतिकी उत्पादक यातें शृङ्गारको स्थायीभाव । गोरजव्याहतें जुगुप्सा भई सो बीभत्सको स्थायीभाव । बद्धबह मोरको मुकुट अग्रनिमित्ततें बीररसको स्थायीभाव जो उत्साह सो भयो और मोरके पंखको बाँधिके मुकुट सिद्ध देख आश्चर्यको स्थायीभाव जो विस्मयसो Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । | भयो । वन्यप्रसून वनसंबंधी पुष्प हैं। यातें वनविषे प्रीति है। फिरहू वन पधारें तो यह भय भयो सो भयानकको स्थायीभाव | और प्रसून हैं प्रकृष्टा सूना हैं । तत्काल कुमिलाय ऐसेको धारण कहा । यातें हास्य भयो सो हास्यको स्थायीभाव रुचिरेक्षणम्' ऐसे सुन्दर नेत्रके दर्शन करनको वनमें न गयो जाय तातें भयो सो करुणाको स्थायीभाव । चारु हास देखिकै भयो क्रोध यातें जो हम तप्त रहैं आपु हसत हैं यह रौद्रको स्थायीभाव वेणुकोकणन सुनिके प्रयत्न शैथिल्य भयो सो निर्वेद यह शांतरसको स्थायीभाव। अनुगैरनुगीतकीर्तिः।' अनुचरकरिकें कीर्तिगायवेको अधिकार है । या करिके स्नेह भयो सो भक्ति रसको स्थायीभाव। या भांति.१४ रसकी लीला जो वनमें किये ताके स्थायीभाव विशिष्ट ब्रजसों लीलास्थ भक्तनको दर्शन कराये। प्रबोधनी ११ अभ्यंग पीरे पाटको बागा लाल पाटको बागा केशरी कुलही अथवा श्वेत कुलही साड़ी खुलती प्रभुको रुईको बागा यहां रजाई फर्गुल ओढ़े युग्म भद्रा न होय ता समें देवोत्थापन जो सवारें देवोत्थापन होय तो राजभोगमें फलाहार। सांझकों देवोत्थापन होय तो शयनभोगमें फलाहार आवे । श्वेत खड़ीको चौक सब मंदिरमें पूरिये । निज मंदिरमें तथा शय्यामंदिरमें नहीं। जाठौर देवोत्थापन होय ता ठौर चौकके खंडमें गुलाल भरे औरहू विचित्र करनों होय तो औरहू भांतिके रंग भरिये गंडेरीको मंडप करे १६ को ८ को ४ को जैसो सौकर्य होवे सो करे । बीचमें चौकी धरिये चारों कोन दीवीपर दीवा धरिये । दीवी न होय तो भूमिमें धरिये । सबेरे भद्रा न होय तो शृङ्गार भोग सरे पीछे प्रभुकों मंडपमें पधराइये नहीं तो उत्थापनभोग सरे पीछे पधराइये पीछे देवोत्थापन तीन बेर करिये - - Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ a nd mausiRRENaNesistincominenesaman CanteeDHARMERE और छोटे स्वरूप होय वा शालग्राम वा श्रीगोवर्द्धन शिलाको स्नान पंचामृतसों कराइये पीछे अंगवस्त्र करि शृङ्गार कार पधराइये । धूप दीपकरि छोटी टोकरी आगे धरिये । टोकरीमें बेंगन शकरकंद सिंघाड़ा नये चणाकी भाजी छोटे बेर गंडेरी ये वस्तु कच्चे सवारे विना राखिये जो मुख्य स्वरूप मंडपमें पधारे होय तो रात्रिके चार भोगमें तो एक भोग मंडपमें धरिये तब रात्रिको तीन ३ भोग आवें आर्ती करि सिंहासनपर पधराय राजभोग धरिये और छोटे स्वरूप मंडपमें पधारे होंय तो धूप दीप करि आकरि पधराइये तब रात्रिको चार भोग आयें। यह भाव जो मुख्य ता निर्गुणको हतो यातें सगुण त्रिविध हैं सो जगावत हैं तातें तीन बेर देवोत्थापन गंडेरी रसमय हैं तातें याको मंडप मध्य ग्रंथि हैं सो इनकी खांडित्यरीतिकी वक्रोक्ति षोडश भाव विकार हैं “एकादशामी मनसो हि वृत्तय आकूतयः पंच धियोऽभिमानः। मात्राणि कर्माणि परं च तासां वदंति हैकादश वीरभूमीः ॥” इन्द्रिय ११ तन्मात्रा ५ मिलि १६ हैं तातें १६ गंडेरी । नायकाअष्टविध हैं-"खंडिता विप्रलब्धा वासकसज्जाभिसारिका । कलहांतरिता चैव तथैवोत्कंठिता परा। स्वाधीनभर्तृका चैव तथा प्रोषितभर्तृका । संभोगे विप्रलंभे ता इत्यष्टौ नायिकाः स्मृताः॥” ताते ८ भक्त चतुर्विध हैं ताते चारि मंडपमें दीवा करे सो रस उद्दीपन करे। पंचामृतसों स्नान, सो प्रभूविषे निर्दोषभावकी स्थिति रहे । फलादिक काचे धरने सो वय अपक्क है अंकुरित है तुलसीसों विवाह है ताते तुलसी अन्यसंबंध न होनेदेइ ताते सबको अभीष्ट विवाहके चार भोजन ताते रात्रिको जागरणमें चार भोग अवतारलीला विषे कुमारिकानको पतिभाव है ताते तुलसीके विवाहांतर्गत इनहूको N ESCRIRERHIsain Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ WHERE RSSCREET - विवाह है इनको पतिभाव है ये भक्त उभयलीलाविशिष्ट हैं कितनेक भक्तनको ब्रजलीलामें ही अंगीकार कितनेनको राजलीलामें अंगीकार जैसे नंदादिक प्रभृतिनको, कितने भक्तनको राजलीलामेंही अंगीकार बजलीलामें नहीं जैसे वसुदेवादि प्रभृतिनको, कितनेक भक्तनकोबजलीला तथा राजलीलामें दोऊनमें अंगीकार जैसे श्रीयमुनाजी उभयलीलाविशिष्ट जतायवेके लिये तुर्यप्रिया यह नाम है कालिंदी चतुर्थ हैं याते तैसे कुमारिकाहू उभयलीलाविशिष्ट हैं । उत्तरार्धकी सोलहमें अध्यायकी सुबोधनीमें लिखे हैं " नन्दगोपकुमारिका भगवता द्वारकायां नीता एव। द्वारकामाहात्म्ये त्रयोदशाध्याये-अनुयाता भगवता ततस्ता गोपकन्यकाः । नमस्कृत्य च गोविन्दं ययुः सर्वा यथागतम् ॥” इति वाक्यात् । याहीतें गोपीचन्दन द्वारकामें हैं। __ श्रीगुसांईजीको उत्सव पौषवदि ९ श्रीपादुकाजीको अभ्यङ्ग राजभोग सङ्ग जुदो भोग आवे, प्रभुको आर्ती करे श्रीपादुकाजीकों तिलक आर्ती यह प्राकट्य स्वार्थ परमार्थ हैं। स्वार्थ तो सुधाको अनुभव वेणुहूकों है वेणु अनुभव आपु करि औरकों दें। यहां और सो दैवी तिनको उपदेशद्वारा सुधास्थापन यह परार्थ और परमार्थ तो ‘जीवयमृतमिव दासम्' यह भगवद्वाक्य है । वाक्य बन्ध है । ताते वाक्पति सुतको आविर्भाव होय । तो वाक्पूर्ण बन्ध होय तब सुधारसको आविर्भाव करि मुख्य स्वामिनी दासत्वकी प्रार्थना किये । स्तोत्र अष्टक प्रगट किये । अतएव श्रुतिप्रतिपाद्य सो ब्रह्म यह श्रीआचार्यजीको स्वरूप सुधारूपत्वतें जो श्रीकृष्णचंद्र साक्षात् वेदके वाक्यात् त्यों ह्या साक्षात् सुधाके दाता 'अदेयदानदक्षश्च ' इति । और श्रीगुसांईजी विषे वेणु भावतें देहभाव विशिष्ट जो गीताके - - Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । वक्ता त्यों ह्यां मदार्चाया प्रकटित पुष्टिमार्गके प्रकाश कर्ता ते पुरुषोत्तम यातें गुर्जर भाषामें कहैं । पूर्ण ब्रह्म श्रीलक्ष्मणसुत पुरुषोत्तम श्रीविठ्ठलनाथजी इति श्वेतवाराह कल्पीय श्रीकृष्णावत्तार गीताके वक्ता हैं इनमें गीताके वक्ता जा समें है ता समेंई पुरुषोत्तमाविर्भाव हैं और बेर तो मोक्षके दाता हैं सो वासुदेव कार्य “कल्पेस्मिन्सर्वमुक्त्यर्थमवतीर्णस्तु सर्वतः।” इति । और ह्यां तो सदा श्रीकृष्णाविर्भाव हैं तातें उपदेष्टा पुष्टि मार्गके सदा हैं गीतावक्ताको सर्वदा आविर्भाव नहीं। अत एव निबन्धे-“सर्व तत्त्वं सर्वगूढू प्रसंगादाह पाण्डवे ।” सबकों तत्त्व और गूढ़ है सो पूर्णके योगते अर्जुनसो कहे 'पाण्डवे अर्जुने प्रसंगात् पूर्णयोगात् आह किंचित् ।' भारतमें युधिष्ठिरको राज्यप्राप्ति पीछे अर्जुन प्रभुसों विज्ञप्ति किये-पूर्वमुपदिष्टं ज्ञानं मम विस्मृतं तद्वद तदा भगवानाह तत्तु योगयुक्तेन मयोपक्रम्याधुना प्रकारांतरेण कथयिष्यते इति । निबन्धे जैसे श्रीगुसांईजी विषेहू ये दोऊ भाव पूर्ण हैं भाव किंच नौमी दिन प्राकट्य हैं। ताहूतें दोऊ भाव पूर्णकोउ द्योतक नवमी हैं नौमीको अङ्क पूर्ण हैं अंक नौई हैं। आगें तो फेर पहलेई अंक हैं। और नौ बढ़े तोहू नौही रहैं नौ और नौ १८ होंय एक और आठ नौ फिर अठारह नौ सताईश सो देइ और सात नौ ऐसो ९० ताँई नौई रहे याको आशय यह जो जैसें नौके अंककों ऐसो पक्षपात ९० ताँई बढे तोहू नौ ही रहैं तैसे ह्यांऊ भक्तके उद्धारको पक्षपात सजातीय वा विजातीयको दुःसंग होय तोहू निवेदनांतर त्याग नहीं । श्रीपादुकाजी विषं साधन भक्तिरूप चरणारविन्दको दर्शन करि फलरूप श्रीमुखभक्ति ताहीको भाव विचारनों। ताते भोग धरनों । तथा तिलक करनो और बागा पाग न पहरें। Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MARATHI mppa - - ओढ़नी वा रजाई ओठे सो दरशनमें चरणारविन्दही आवत हैं। __ माघ सुदी वसन्त पंचमी-अभ्यङ्ग रुईके बागा ऊपर श्वेत पाटको बागा श्वेत कुलही सिंहासन वस्त्र पिछवाई चन्दोवा सब श्वेत साज राजभोग सरे पीछे झारी १ जलभर लालवस्त्र सूतरू लपेट झारीमें खजूरकी डारमें बेर खोंसें तथा सरसोंके फूल ऐसो वसन्त सिद्धकर सिंहासन आगे धरि वसन्त खेलें । पीछे भोग तो पहले दिनही आवे और डोल तांई नित्य वसन्त खेलें तामें झारीको वसन्त पहले पञ्चमीके दिन वसन्त पञ्चमीकों कामको जन्म हैं वसन्त ऋतुहै सो कामको पूजन करतु हैं भौतिक काम लौकिक विषे रहैं, आध्यात्मिक कामकों रुद्र दाह किये, आधिदैविक काम भगवान आए हैं। “ साक्षान्मन्मथमन्मथः ” इति । आधिदैविक कामको आधिदैविक वसन्त ऋतु पूजन करत हैं, केशर चोवा अबीर गुलाल इतने कर पूजन तहां केशर वामभाग वर्णसाम्य चोवा भगवदरण श्याम अबीर श्वेततें हास्यप्रसन्नता गुलालते अनुराग दुपहरकों शय्यापास केशर अबीर गुलाल इतनों रहे चोवा नहीं, ह्यां ताँई क्रीड़ा भक्ताधीन हती शय्यापास क्रीड़ा भगवदधीन हैं तातें चोवा नहीं, सब श्वेत साज यातें जो मुख्य निर्गुणकी कृत हैं फेर रङ्गीन पाटके बागा १४ चौदश ताँइ पहरें। झारीमें वसन्त धरनो सो पुष्पफल युक्त हैं प्रबोधनीको अंकुरित हैं। वसन्त पञ्चमीको पुष्पित भयो दिन १० मी ताँई उद्दीपन क्रीड़ा हैं, दश भक्तजनके भावकरि तातें वसन्त गावत हैं, होरी डांडो अभ्यङ्ग बागा सूतरू श्वेतपाग श्वेत अबतें होरी ताँई पाटके बागा नहीं २ रङ्गीन सूतरू बागा होंय सो छठतांई पहरें होरी डांडो रोप्यो सो कन्दर्पको आरोपण किये फाल्गुन - Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पक्षकी ६ ते उतरण्ठ ६ कक्ष ११४ चरण १५ पदा कृष्णपक्षकी ६ तें उतरे ३० ताई । १ मस्तक २ नेत्र ३ अधर ४ कपोल ५ कण्ठ ६ कक्ष ७ युग्म ८ उरू ९ नाभि १० कटि ११ गुह्य १२ जंघा १३ घोंटु १४ चरण १५ पदांगुष्ठ याही प्रमाण १ तें पंद्रह हैं १९ ताँई चढ़े।शुक्ल १ पदांगुष्ट २ चरण ३ घोंटु ४ जंघा५ गुह्य ६ कटि७ नाभि ८ ऊरू ९ युग्म १० कक्ष ११ कंठ १२ कपोल १३ अधर १४ नेत्र १५ मस्तक यह प्रकार अलौकिक भावात्मक हैं। लौकिकबुद्धि सर्वथा न राखनी आलंबन क्रीडा हैं महीनापर्यंत तातें धमार गावत हैं। श्रीजीको उत्सव बड़ो अभ्यंग बागा केशरी चीरा हरयो युग्माविर्भावतें बागा केशरी हरयो चीरा उत्सव दोय मुख्य श्रीजीको १ तथा श्रीगोकुलचन्द्रमाजीको२ दोय उत्सव गुप्तस्थान भेद तथा आधारभेद मिलि ४ चार उत्सव श्रीगोकुलचन्द्रमाजीके इहाँ४उत्सव और ६ मंदिरमें २उत्सव हैं। फाल्गुन शुक्ल ११ तें खेल बड़ो शयनआर्ती समें गुलाल उड़े होरी ताई ॥ होरी । अभ्यंग बागा श्वेत पाग श्वेत रात्रिकों होरी मंगली सो आरोपण तेजोमय है यह द्योतन किये । डोल अभ्यंग बागा श्वेत पाटको कुलही श्वेत वसंत पंचमीको शृंगार और डोलको शृंगार एक, श्रृंगारभोग सरे पीछे डोल बैठे सो सूर्योदय पहिले डोल बैठे तो आछो । डोल उत्सव "उत्तरानक्षत्रे अरुणोदयसमये कार्यः" इति प्र. लिखितत्वात् । याहीतेंडोलतें उतरे पीछे राजभोग आवें। यह निकुंज क्रीड़ा हैं तातें निजमंदिरमें डोलन झूलें अत एव डोलतें उतरि बागा ऊपरको गुलाल सब पोंछि श्रीमुख पोंछे आभरण पोंछिकें पहरावनें पीछे राजभोग आरोगावेको निज मंदिरमें पधारें। भोग तीन हैं सो वामभाग दक्षिणभाग ललिताप्रभृति समस्तकों तातें तीसरो भोग । tainmen t Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SAHIBHEETA HEARD R TRONINHERISTIANE ASTypng - amictimaamideathemamanimomsomainmen D n बड़ो खेल च्यार हैं सो ३ खेल तो इनके चतुर्थ खेलतें प्रभुको यह लीला अधिकार विना विशेषभावनीय नहीं ॥ चैत्रसुदी ९ रामनौमी श्रीराम हास्यावतार हैं। अभ्यंग केशरी बागा कुलही साड़ी या उत्सवकों संपूर्ण व्रत हैं “रामनवमी प्रभृति व्रतानि भगवन्मार्गे कर्त्तव्यानि” इति वाक्यात् । याते श्रीनंदरायजी या उत्सवकों जन्मांतर फलाहार करत हैं तातें राजभोग सरे पीछे जन्म होय उत्सवके भोग संग फलाहार भोग आवे । वसंत ऋतु पुष्पित होय पूजतहैं तातें डोल पीछे जब फूल आवें, तबतें फूल मंडली होय। सिंहासनकी मंडली अक्षय तृतीयाके पहले दिन ताँई होय और शय्यामंडली तथा सांगामांचीकी मंडली फूल होंय तो वैशाखसुदि १३ ताँई होय ॥ वैशाख कृष्ण एकादशी ११ श्रीआचार्यजीको उत्सवअभ्यंग केशरी कुलही बागा छूटे बंदको वापिछोड़ा केशरी साड़ी श्रीपादुकाजी विराजत होंय तो अभ्यंग राजभोग संग जुदो भोग आवें प्रभुकों । आर्ती कार श्रीपादुकाजीकों तिलक कार अक्षत लगाय बीड़ा धरि मुठियां ४ चूनकी वारि आर्ती करिये । यह प्राकट्य परार्थ तथा परमार्थ हैं परार्थ तो दैवी जीवनके उद्धारार्थ हैं " दैवी सृष्टियर्था च भूयानिजफल रहिता देव वैश्वानरैषा” इति । परमार्थ तो भगवदर्थ "न पारयेहं निरवद्यसंयुजाम्” इति । अत एव दोऊ भाव मुख्य भगवद्भाव तथा दास्यभाव । तहाँ भगवद्भाव तो “अर्थ तस्य विवेचितुं न हि विभुर्वैश्वानराद्वाक्पतेरन्यस्तत्र विधाय मानुषत, मां व्यासवच्छ्रीपतेः। दत्त्वाज्ञां च कृपावलोकनपटुः।" यह अशेषमाहात्म्य और दास्यभाव तो “इति श्रीकृष्णदासस्य वल्लभस्य हितं वचः" यह अशेषमाहात्म्य दैवीके उद्धारार्थ प्राकट्य याते SOName B mmerciarieskin u a inmename oudake M Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । ARisticurna D PORNFatterBARA श्रीआचार्यजीनको प्राकट्य 'चिदानंदसद्रूपः' सत् पुष्टिमार्गमें तत्त्व २८ लौकिक निरूपण किये तैसें अलौकिकतत्त्व ५ निरू-॥ पण किये श्रीजी तथा सातों स्वरूप यह तत्त्व १ श्रीवल्लभकुल २ श्रीगोवर्द्धन पर्वत तथा अपने मार्गके ग्रंथ यह तत्त्व ३ श्रीयमुनाजी यह तत्त्व ४ ब्रजभूमि ५, यह पांच तत्त्व । इनको आशय प्रथम तत्त्व श्रीजी तथा सातों स्वरूप यातें जो श्रीआचार्यजीको नामरासलीलैकतात्पर्य रासलीलामें लिखें 'षोड़श गोपिकानां मध्ये अष्ट कृष्णा भवंति' तहां श्रीवृंदावन स्थिति लीला श्रीजी श्रीगोकुलस्थित सातों स्वरूप स्मरण श्रीजीको करनों तथा भावनाहू करनी “ सदा सर्वात्मना सेव्यो भगवान गोकुलेश्वरः । स्मर्त्तव्यो गोपिकावृन्दे क्रीडन् वृन्दावने स्थितः॥” इति । श्रीजीको कह्यो हैं कीर्तिसेवाकी अपने प्रभुके मंदिरमें न करनी सेवा सातों स्वरूपके जो जा घरके मंदिरकी रीति सेवाकरे व्यापि वैकुंठके पदार्थकी प्राप्ति तो सेवा करिके याको निष्कर्ष सेवा करत हैं सो भौतिकपदार्थ सो या। सेवाकों आध्यात्मिक करें तो आधिदैविकको आविर्भाव होय। यातें सिद्धान्तमुक्तावली ग्रंथ प्रगटकिये। गंगादृष्टांतसो निर्णय“यथा जलं तथा सर्व यथा शक्त्या तथा बृहत् । यथा देवी तथा कृष्णस्तत्राप्येतदिहोच्यते ॥” गङ्गादशमी जैसे गंगा भौतिकी जलरूपा तैसे प्रपंच भौतिक, जैसें शक्त्या तीर्थरूपा आध्यात्मिक बृहत् सो अक्षर जैसे गंगादेवीरूपा आधिदेवकी मूर्तिवंत तसे आधिदैविक कृष्ण । तहां जो जाको आध्यात्मिक ताहीके आधिदैविकको आविर्भाव होय । आध्यात्मिक गंगामें आधिदैविक सरस्वतीको आविर्भाव न होय तैसे सेवामें जा सामग्रीको जो आध्यात्मिक ताहीके आधिदैविकको अविर्भाव होय । तहां। loanmatest R OMAL Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ | यह विवेक श्रीजी सातों स्वरूपके ह्यां श्रीआचार्यजी श्रीगुसाईजी आपु सेवा करें । ऐसो व्यापिवैकुंठीय पदार्थके आविर्भाव सहित किये। याते होतो आधिदैविकके आविर्भावसहित सेवा है आधुनिक बालकसेवाकरे सो आधिदैविक करवेकी श्रीजी सातों स्वरूपके ह्यां अपेक्षा नहीं ह्यांतो बालक आधिदैविक आविभर्भावसहित सेवा करें तो इन प्रति आधिदैविकको आविर्भाव होय वहां तो स्वतः सिद्ध होय । झारी व्यापि वैकुंठीय झारीको आविर्भाव होय जलमें जलको सिंहासनमें सिंहासनको ऐसे सब वस्तुमें जो जाको आध्यात्मिकताके आधिदैविकको आविर्भाव होय तातें श्रीजी सातों स्वरूपके ह्यांतों व्यापिवैकुंठीय पदार्थके प्राकट्यपूर्वक सेवा करें। और श्रीगुसाईजीके बालक सबनके घर तथा वैष्णवके घर तो सातों मन्दिरमें जो जा घरके बालक तथा वैष्णव जो जा घरके सेवक सो अपने अपने मंदिरकी रीतिसों सेवा करें। सामग्रीमें तो झारीमें झारीको आविर्भाव जलमें जलको या प्रकार सामग्रीमें करें स्वरूप में स्वरूपको और अपने हृदयमेंहू स्वरूपको आविर्भाव करें, तहां भगवदाकृतिमें सम्पूर्ण स्वरूपमें आविर्भाव “ आकृतिसाम्यादाकृतेः, परं यत्र हस्तस्तत्र हस्तः मदवयवेषु तत्तदवयवाः" हस्तमें हस्त या प्रकार प्रत्येक अवयवमें जानिये और भक्तके तो आत्माविषे ही भगवदाविर्भाव हैं स्वात्मनि तं प्रकर्षण पश्यतीत्यर्थः । ह्यां मूलमें ज्ञानी पद हैं सो शुष्क ज्ञानी नहीं किन्तु चतुष्टयज्ञानवान ज्ञानी अहंता निवृत्ति १ ममतानिवृत्ति २ स्वात्मनि । "अक्षरत्वेन ब्रह्मात्मकत्वेन ज्ञान ३ प्रपंचे अक्षर ब्रह्मात्मकत्वेन ज्ञान ४ ये चतुष्टयविशिष्ट सो ज्ञानी ये चारोंकी प्राप्ति दूसरे जन्ममें सिद्ध होय और भौतिक समये अक्षर भावना किये विना %3 - - DDHA Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तब लौकिक भोग होय तो सेवा फलोक्त तीन बाधकमेंको एक बाधक होय या जन्ममें तो प्रपञ्च जो सेवोपयोगी पदार्थ ता विषे अक्षर ब्रह्मात्मकत्वेन ज्ञान करे तो अलौकिक भोग होय तब याके नियामक पुरुषोत्तम होय और उद्वेग १ प्रतिबन्ध २ लौकिक भोग ३ | मनकी अन्य परता होय तब उद्वेग होय, तनकी अन्य परता होय तब प्रतिबन्ध होय, इंद्रियकी अन्यपरता होय तब लौकिक भोग ॥ १ ॥ मनकी अन्यपरता होय यातें सेवोपयोगी पदार्थ में सर्वथा अक्षरभावना करिये। तब अलौकिक भोग होय ||२|| "अलौकिक भोगस्तु फलानां मध्ये प्रथमे प्रविशति " फल || ३ || मध्य प्रथम फल “ सेवोपयोगी देहो वा वैकुण्ठा दिषु" यह देवभोग्या याको अनुभव होय । यद्यपि प्रथम फल तो अलौकिक सामर्थ्य सो तो सर्वाभोग्या सुधा याको दान तो दोय फलके पीछे होय । ताते प्रथम प्रविशति यामें प्रथम पद हैं सो सेवोपयोगी है मूलमें या फलकों नाम अधिकार हैं अधिकार होय तो अगले फल होंय यातें स्मरण श्रीजीकों करनों । "निवेदनं तु स्मर्त्तव्यं सर्वथा तादृशैर्जनैः । स्मर्त्तव्यो गोपिकावृन्दे क्रीडन् वृन्दावने स्थितः ॥” इति च । सेवा सात मन्दिरकी haar करनी सेवाही सेवकधर्म है "कृष्णसेवा सदा कार्या मानसी सा परा मता" इति । जो श्रीजी तथा सातों स्वरूपको प्राकट्य महाप्रभु न करें तो स्मरण कौनको करें तथा सेवा कौनकी रीतिकी करें तातें प्रथम तत्त्व श्रीजी तथा सातों स्वरूप १ | अब दूसरो तत्त्व श्रीवल्लभकुल उपदेश विना सेवाको अधिकार नहीं उपदेश तो स्वकुल करिकें "अस्मत्कुलं निष्कलङ्कं श्रीकृष्णेनात्मसात्कृतम् ॥” इति । गुरुके लक्षण कहें हैं- "कृष्णेसवापरं वीक्ष्य | दंभादिरहितं नरम् | श्रीभागवततत्त्वज्ञं भजेज्जिज्ञासुरादरात् ॥” Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Deumo ur D - कृष्णसेवापरायण होय दंभादिरहित होय श्रीभागवतको आदरपूर्वक भजन करे तत्त्व जानिवेके लिये। अब कहतहैं ह्याँ नरपद हैं सो जीववाचक हैं वा देह वाचक हैं तहाँ श्रीआचार्यजीको नाम | "स्ववंशे स्थापिताशेषस्वमाहात्म्यं स्मयापहम्"। अशेष माहा त्म्य सो जनोद्धरणरूप माहात्म्य सो अपने वंशविषे स्थापित पद हैं इहाँ वंश हैं और 'दंभादिरहितं नरं' यामें नरपद कहें यह नरपद जीवगत पुंस्त्व कहिये तो स्त्री तथा पुत्री कोऊ व पुरुष है उनहूको उपदेशाधिकार तातें तीन विशेषण कहैं कृष्णसेवापरं १ दंभादि रहितं २ श्रीभागवतत्त्वज्ञ ३ये तीन धर्म स्त्री तथा पुत्री में नहीं कदाचित् ये तीन धर्म पुत्रनविर्षे ऊन होय तो उपदेशाधिकार कैसे होय ? ह्यां यह समाधान जो | "आधुनिकानामुपदेष्टुणामपि स्नेहाभावेपि तन्मूलभूतानां प्राचामाचार्याणां तद्धर्मत्वेन भगवदनुगृहीतत्वेन सर्वोपपत्तेः ” इति भक्तिहंसे । आधुनिक बालकनविर्षे तादृश स्नेह नहीं तोहू प्राचीन आचार्यनको स्नेह हैं सो भगवान् करि अनुगृहीत हैं अंगीकृत हैं ताते बालकद्वारा उपदेश भयो भगवान अंगीकार किये, यह विवेक भगवदयिक घरमें आसुर जीव पुण्यते दैवी देह पायो तब नामापेदेशमात्र होय परंतु निवेदनमंत्र तो देवीकोंही उपदेश होय । अब जैसे “ कृष्णसेवापरं दंभादिरहितं श्रीभागवततत्त्वज्ञम्' य तीन धर्म होय तो प्राचीन अर्चाके हृदस्नेहते अंगीकार है तैसे ये ३ धर्म न होय तोहू पूर्वस्नेह दाढयते अगंकार तो नरत्व न होय तब स्नेहते अंगीकार न होय तो स्त्री पुत्रीनको उपदेशाधिकार सिद्ध भयो तहाँ यह समा धान । मुख्यगुरू तो श्रीआचार्यजी महाप्रभू नरस्वरूपसो उपदेश दान करत हैं याते नरत्व हैं सोस्वरूपांतर्गत हैं याते नरत्व ह । HERam a na % Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । - - अपेक्षत हैं। भक्तिहंसमें प्राचीन आचार्यनको स्नेह दृढ कहैं ताते स्नेह तो पुत्र तथा स्त्री पुत्री सब वंश प्रति हैं और उपदेश देनों सो नरस्वरूपते हैं ताते नरत्य आवश्यक हैं, स्नेह सो भक्ति, भाक्त तो प्रेमपूर्वक सेवा । भज धातुको अर्थ सेवा, क्तिन् प्रत्ययको अर्थ भाव । “ भावे क्तिन्” सो भाव-"रतिर्देवादिविषया भाव इत्यभिधीयते ।"भाव रति सो रतिस्नेहमें प्रीतिये एकके नाम हैं सो प्रेमपूर्वक सेवा करनो तोबजरत्नाके भाव सो हैं सो तो सब वंशपरत्व हैं। सेवा पुत्र स्त्री पुत्री सब करे, मुख्यपक्ष तो यह तहां यह प्रकार गादी नहीं बैठाये तहां तांई सृष्टि राखी चाहिये न राखिये तो सेवा कैसे सिद्ध होंय । जैसें वंशपद हैं तो सब परत्व हैं इन नरपदको देहगतपुंस्त्वको व्याख्यान किये तैसे जीवगत पुंस्त्व नरत्व हैं तब स्त्री तथा पुत्रिकोऊं अधिकार भयो वंशके उपक्रमको प्रयोजन भक्तिविस्तारार्थ तहां महाप्रभुके तीन नाम “भुवि भक्तिप्रचारैककृते स्वान्वयकृत्पिता। स्ववंशेस्थापिताशेषस्वमाहात्म्यः"३शभुवि विषेभक्ति, भक्ति सो सेवा ताके प्रचारार्थ अन्वय जो वंश ताकी कृति सो कृति त्रित्वप्रकारक पिता पुत्र या प्रकारकी न सुविद्याकृत वंश वंशीयनमें तादृश जनोद्धरणरूप सामर्थ्य न होय तब कैसे उपदेश देंइ सेवा दान करें तातें जनोद्धरणरूप अशेष माहात्म्यको स्थापन किये बालकत्वावच्छिन्न सबनमें स्थापन किये तहां स्त्री मुख्य हैं। वे गादीपर मुख्य रहैं तासों बैठे तब पतिको आविर्भाव इन विर्षे भयो तब उपदेश देइ बीड़ा अरोगे परंतु इतनो भेद जो स्त्रीको अौंग संबंध हैं, ताते अोपदेश भयो फेरि कोई गादी बालक बैठें तब फेरिके वह उनपास उपदेश लेय तो बाधक नहीं तैसे पुत्रीहू मुख्य है तब इनहूमें आविर्भाव है परन्तु इनकों एकदेश - - - SANDED Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 27ATNhavNER: संबंध है इनको उपदेश ले इतनोई संबंधी होय संपूर्ण संबंध तो बालक करिके ताते स्त्री तथा पुत्री पास उपदेशदेई, सृष्टि राखिबेकों तो बाधक नहीं, जब बालक न होय तब स्त्रीकों अधिकार, जब स्त्री न होय तब पुत्रीको उपदेशाधिकार, यह विवेक जानिये। याते श्रीवल्लभ श्रीकुलकोई उपदेश लेवे। औरहू विस्तार बोहोत है ग्रन्थको विस्तार बोहोत बड़ा होय जाय, तारूं कहां तांई लिखिये ॥ ___ अथ वैशाखशुक्ल ३ अक्षयतृतीया-ताको भाव यह जो तीनो यूथके साथ श्रीठाकुरजी अक्षयलीलासक्तहैं । अंखड लीला व्यतिरिक्त और कछू जानतहू नाही और चंदन पहिरिबेको अभिप्राय यह जो ग्रीष्म ऋतुमें अधिक ताप जो श्रीस्वामिनीजीके संयोग भीतर क्षण एक विरह विभ्रमको ताके निवृत्यर्थ उनको भावरूप तथा श्रीस्वामिनीजीके कुच कुंकुमाघरूप जो चंदन ताको सागलेपन करि तापकी निवृत्ति करत हैं। तहां चन्दनके कटोरामें पांच वस्तु आवत हैं। चन्दन, केशरि, कस्तूरी, कर्पूर, चोवा । ताको भाव यह जो चन्दन है सोश्रीचंद्रावलीजीके स्वरूपको वर्ण है । अरु केशरि मुख्य श्रीस्वामिनीजीके स्वरूपको वर्ण है । और कर्पूरसो अन्य पूर्वानके यूथाधिपतिको वर्ण है। अरु कस्तूरी सो आप श्रीजीके स्वरूपको वर्ण है । और चोवा सो समस्त भक्तनकों श्रीठाकुरजी विषे स्निग्ध सचिक्कण भाव ताकों आप अङ्गीकार करत । श्वेत वस्त्र सो तो अत्यंत शीतल सो ग्रीष्मऋतुमें सुखकारी है। ताको अंगीकार किये ॥ __ अथ जेष्ठशुक्ल १५ स्नानयात्रा-ताको अभिप्राय यह है सो सब ब्रजभक्तनके यूथमें कोई ज्येष्ठभक्त है । तिनकों श्रीठाकुर Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ a mmelammemommamimes । mentamans emorre जीके संग जलक्रीड़ाकों मनोरथ बहुत भयो । तिनके चित्तको आशय जानि उन आदि सब भक्तनके संग श्रीयमुनाजीविर्षे जलकीड़ा तथा नाव खेलन लीला किये। यमुना नावको 'गोपी पारावारकृतोद्यमः ' इति वचनात् । तहां जेष्टानक्षत्रको अभिप्राय यह, जो श्रीकृष्णचन्द्र नक्षत्ररूपी जो सब ब्रजभक्त तिनमें जेष्ट भक्त तिनके मनोरथतें जलक्रीड़ा किये । यह जनाइवेके लिए ज्येष्ठानक्षत्र ज्येष्ठमासको अंगीकार किए । अब महाप्रभु श्रीआचार्यजीकी आज्ञातें पहिले दिवस जलकों लाय अधिवासन करत हैं।ताको अभिप्राय यह,जो श्रीठाकुरजीकी रसात्मक जलक्रीड़ा सो तो श्रीयमुनाजी विना और कहूँ सम्भवे नहीं । तातें पहिले दिवस जल लाय पूर्वोक्त विधिसे अधिवासन करत हैं तब श्रीयमुनाजी आधिदैविक स्वरूपतें पधारत हैं। ता जलसों दूसरे दिन जलक्रीड़ा करत हैं। तहाँ शंखसों स्नान करिबेको अभिप्राय यह, जो भगवदायुधमें शंख है सो पंच महाभूतमें जलको आधिदैविक स्वरूप है । तातें शंखसों स्नान होतहैं। चन्दन गोटी पाग पिछोरा धरत हैं सो मुख्यभक्तनके श्री अंगको वर्ण है ताको अंगीकार करि ताप निवृत्त करत हैं। तथा भक्त सब श्रीठाकुरजीकों अधरामृतरूप जो शीतल सामग्री सो अरोगाय अपनों ताप निवारण करत हैं। यह भाव विचारनो । ___ अथ आषाढ़ शुक्ल २ रथयात्रा-सो लोक प्रसिद्ध तो ऐसे हैं जो श्रीजगन्नाथरायजीकें यहाँ अति उत्कर्षसों यह उत्सवकी रीति होत है । सो वहांकी रीति आपु श्री महाप्रभुजी अंगीकार किये हैं परन्तु पुष्टिमार्गके भावको विचार ऐसे हैं जो ब्रजपति पुष्टि पुरुषोत्तम ब्रजसम्बन्धी लीलाव्यतिरिक्त और कछू जानत नहीं तो मर्यादामार्गीय लीला यहाँ कैसे सम्भवे ? तातें यहाँ a bemam and Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - विचारनो जो श्रीठाकुरजी ब्रज भक्तनके घर पधारिवेकी अति | आतुरतासों लीला गोपनार्थ सहजहीमें बालक मुग्धभावसों मातृचरणसों कहतहैं। सो या पदके अर्थानुसार विचारनो। राग बिलावल-"मैया रथ चढ़िहो डोलोंगो । वरघरतें सब संग खेलनको गोपसखनिको बोलोंगो ॥ १ ॥ मोहि गढ़ाइदै अति सुंदर रथ सिगरे साज बनाइ । करि श्रृंगार ताऊपर मोको राधा संग बैठाइ ॥२॥ घर घर प्रति हों जैहों खेलन संग लैहों व्रजबाल ॥ मेवा बहुत मँगाइ मोहि दै फल अति बड़े रसाल ॥३॥ सुतके वचन सुनत नंदरानी फूली अंगनमाइ ॥ सब विधि सजि हरि रथ बैठाए देखि रसिक बलि जाइ ॥४॥" या पदके भावकरि श्रीठाकुरजी रथ पर बैठि भक्तनके घरघर पांव धारि उनके सकल मनोरथ पूर्ण करत हैं। ता समें ब्रजरत्ना अत्यंत प्रीतसों अति सुस्वादु कर्कटीबीज ताके मोदक जो अज्ञातयौवना मुग्धा भक्तनके अंकुरितबीज रसरूप इत्यादि सामग्री अनेक प्रकारकी अरोगावत हैं तहां चारि भोग चारि आर्तीको प्रमाण । सों तो चतुर्विध भक्त तीन प्रकारके त्रिगुणा और एक निर्गुणाकी ओरतें जाननो। ____ अथ श्रावणवदिमें आछो मुहूर्त देखि हिडाला रोपनो। ताको अभिप्राय यह, जो 'झूलत दोऊ कुंज कुटीर ' इत्यादि | पदके अनुसार अभिप्राय करि श्रीठाकुरजी सब व्रज भक्तनके | संग कुंजद्वारमें अत्यंत हास्य विनोद रस निमग्नता सों हिंडोरा झूलत हैं। तहां यह आशंका उत्पन्न होइ, जो कीर्तनके बीच ऐसेहू कयो है जो 'सुरंग हिंडोरनाहो रोप्यो नंद अवास॥' या| पदके भावकारि श्रीनंदरायजी तथा सब वृद्धनके सान्निध्य श्रीठाकुरजी झूलत होहिंगे तब भक्तन विषं निमगलीला कैसें रहत - - HERDERABAR PADMACH AR Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - - होंहिगे । तहां यह भाव विचारनो-'कहि कृष्णदास विलास निशदिन नंद भवन हिंडोरना ॥' या वाक्यके अनुसारतें नंदालयमेंहू नित्य लीला करिब्रज भक्त निमनही हैं। - अथ श्रावण शुक्ल ११ पवित्राको उत्सव-ता दिन अर्द्धरात्रके समय श्रीठाकुरजी श्रीआचार्यजी महाप्रभुजीसों आज्ञा दीनी | जो जीवनको ब्रह्म संबंध कराओ, तब आप विनतीकरे जो जीव तो दोष भरे हैं। उनको संबंध साक्षात् चरणकमलते कैसे होइंगो ? तब आज्ञा भई जो निवेदन मंत्रही सब दोष निवृत्त होइगे । सुखेन ब्रह्मसंबंध कराओ। तब श्रीआचार्यजी महाप्रभुने | सब जीवनकी ओरतें वाही समें पवित्रारूपी वनमाला पहिराइ समुदाइसों सब अंगीकृत जीवनको संबंध भगवदंगीकृत सिद्ध होत है और एकसौ आठ गांठमणिकाकी मालातें जैसें भगवजन सिद्धहोत हैं तैसेंही एकसो आठ गांठतें भगवत्संबंधकी गाँठि दृढ़ बांधि जात हैं। यह भाव विचारनो । व्रज भक्त श्रीठाकुरजीकों पतित्वभावसों पवित्रारूपी माला गरेमें आरोपत है। श्रावण शुक्ला १५ रक्षा बन्धन-लोकप्रसिद्ध तो ऐसे है जो भेहेन भैयाको राखी बाँधे है और सुभद्राजीने श्रीठाकुरजीको राखी बाँधी है । सो उत्सव मान्योजाय है । परन्तु भाव यह जो व्रजभक्त श्रीठाकुरजीको कुशल हृदयाभ्यन्तर विचारि एकान्तमें अनेक भावसों या पदके अनुसार रक्षा बाँधे हैं । सो पद लिखे हैं-राग सारंग ॥ रक्षा बाँधत लाल विहारी ॥ अति सुरंग विचित्र नानारंग ललना सुहथ सँवारी ॥१॥ जैसी प्रेम प्रवाह विहारिन ललिता लै सनगारी ॥ कुन्दन सहित जराई जगमग बाँधत प्रीतम प्यारी ॥२॥ अति अनुराग परस्पर दोऊ रहत निहारि निहारि निहारी ॥ कृष्णदास दम्पति छबि निरखत । - - Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपनो तन मन वारी ॥३॥" व्रज भक्त सब या भाँतिसों राखी बाँधत हैं। लोकप्रसिद्ध जो गुलपापड़ी, तथा और सामग्री भोग धरें हैं। अथ और विचार, मकर संक्रांति तथा युगादि तथा षष्ट षड़गु तथा आषाढ़ी पूरनमासी इत्यादि जो पर्व उत्सव विधिमें लिखे हैं तिन सबनको ब्रजभक्त भगवत्सेवाके उत्साहसों और मिषान्तरसों मिलन सिद्ध होत है ताते लौकिक पर्वको अलौकिकमें मानि जो जो क्रिया लोक प्रसिद्ध हैं विनको भगवत्स्वरूपके संबन्धसों करत हैं। और ता दिन जो २ सामग्री लोक प्रसिद्ध ताकों आछी भाँति भावसों सिद्ध करि भगवद्विनियोग कार, अपनो जन्म सफल करि मानत हैं यह भाव विचारनो, तातें श्रीआचार्यजी महाप्रभुको प्रगटित जो मार्गसो सो केवल भावात्मक है और भाव विना क्रिया करिये सो वृथा श्रम जाननो। यह मार्ग और मार्गकी क्रिया सब फल रूपी हैं। परन्तु जब श्रीमहाप्रभु तथा श्रीमत्प्रभुको शरण सम्बन्ध दृढ़ राखिके ब्रजभक्तनके भावसों सेवा करें तब फल| रूप होय और अलौकिक लीला अनुभव वेगिही प्रभु दान करें। यामें संदेह नहीं ॥ नानाजनिप्रसृतकर्मगुणप्रबद्धजीवोपकारनिरताशिखिनः प्रणम्य । श्रीवल्लभांस्तदनुशिष्टमतानुसारिपूजोत्सवादिविषयः समुपाणि सूक्ष्मः ॥ ३ ॥ श्रीगोकुलेशभक्तेन शिवजीतनयेन वै । रघुनाथाभिधेनायं गोकुलेशः प्रसीदतु ॥ २ ॥ M ARA - १-अग्निकुमारान् । - - Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गौरीतिथौ सुदि सुमाधवमासि वह्निषण्नन्दचन्द्रमितवत्सर आप पूर्तिम् । आचार्य्यं पादतदुपास्यसुरप्रसादात् सोऽयं क्षितावनुगृहं लभतां प्रसारम् ॥ ३ ॥ दोहा - संवत गुण र ग्रह शशी, मनहर माधवमास । तिथी अक्षय्य तृतीयावली, शुभ गुरुवार उजास ॥ १ ॥ ते दिवसे पूरण क, वल्लभपुष्टि प्रकाश । वैष्णव जानने वांचिने, थशे निशंक उल्हास ॥ २ ॥ भाव भावना आरती, उत्सव निर्णयसार । विधिवत सेवा दाखवी, यथाबुद्धि अनुसार ॥ ३ ॥ वांचकवृंद क्षमाकरी, मुज भाषाना दोष । सुज्ञ सुधारी वांचशो, घरी न मनमा रोष ॥ ४ ॥ गुणग्राहक गुणने गृहे, दुर्जन खोड़ेखोड़ । जे जननी जेवी मती, करशे तेवो तोड़ || ५ | घरघर सेवा शामनी, विधिवत थाय निर्तत | इच्छा एज रघुनाथनी, पुर्ण करो भगवंत ॥ ६ ॥ इति श्रीहरिरायजी कृत भावभावना उत्सवभावना, सेवासाहित्यभावना आदिमथुरा सरस्वती भण्डार मुखिया रघुनाथजी शिवजी संग्रहीत वल्लभपुष्टिप्रकाश तृतीय भाग समाप्त ॥ Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीगोकुलनाथजीको वचनामृत । __(मुहूर्तदेखवेको) श्रीगोकुलनाथजीके वचनामृत व्रजके मासयूँ देखनो, तीज, तेरस एक जाननो, पून्यो, पञ्चमी एक जाननी, चौदशि, अमावास्या वर्जनी । प्रभुके या वचनामृत विश्वास राखनों । भद्रा, भरणी, योगिनी और दोष कछु नहिं गिननो। पाया माघ वैशाख ज्येष्ठ आषाठ श्रावण भाद्रपद आसोज कार्तिक मार्गशीर्ष - १२ बहोत सुख होय, क्लेश न होय, अर्थ पूर्ण होय । ____ 9 | १२/२ महाभारत होय, अशुभ, जीवनाश होय । | .. | c | 0 | 0 | 0 | पौष | | | M r १२ १ २ अर्थ पूर्ण होय, मनोरथ सिद्ध होय, कामना पूर्ण होय क्लेश होय, जीवनाश होय, कुशलतूं घर नहिं आवे। वस्तुलाभ होय, मित्र मिले, व्याधि मिटे, लाभ होय महाचिंता होय, वियोग होय, कदाचित् घर आवे । | | or | | | | G | | om | | | | | ... | | | m | २ | ६ सौभाग्य पावे, रत्नसहित भलीभांतिसूं घर आवे । मिलवो न होय, बहोत बुरो होय, जीव नाश होय दुःख पावे। ७/८ आशा पूर्ण होय, सौभाग्य पावे, कामना सिद्ध होय । ८/९/सौभाग्य पावे, दिन बहोत लगे, कुशलसों घर वे। ९ १०क्लेश होय, जीवनाश नहीं, सौभाग्य पावे नहीं । |मार्गमें सिद्धि होय, मित्रमिले, विन्न मिटे, धनको शीघ्र लाभ होय। | १ | | Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रीकृष्णायनमः । श्रीगोपीजनवल्लभाय नमः॥ श्रीवल्लभपुष्टिप्रकाश। चौथा भाग। ATE AR - यह श्रीवल्लभपुष्टिप्रकाशके चार भाग। यामें यह चौथो भाग, तामें यह आरतीको पुस्तक श्रीमहाप्रभूजीके श्रीगुसांईजी जिनके सातों लालजीकी बहुजी तथा श्रीबेटीजिनके भी हस्तकी सेवा प्रेमसों कीनी है, सो यह सेवा अपने हाथसों करके विनियोग प्रभुनको सेवामें करेगो वा देखेगो, और पढ़े । गोसाई देवीजीव जाननो, केसेके बोहोत वर्ष गुप्तवस्तु हती सो मैं वैष्णव आपको दासानुदास मुखिआ रघुनाथजी शिवजी जानी गिरनारा ब्राह्मणने अपने हाथसों लिखकर वैष्णवनके उपकारार्थ संग्रह करी. जो कोई वैष्णव वांचेगो वा देखेगो वांको हमारे भगवतस्मरण. प्रथम मंदिरको चित्र (पेज नं २९९) सों लेक, अंतताई १६७ आरतीके चित्र हैं तामें उत्सवनके नाम लिखे हैं, और जाके उपर नाम नहीं है वो आरती अधकीमें है सो जाके घरमें उत्सव मान्यो जाय तामें सों लेनी और चातुर्मासमें अथवा नवविलासके लिये अधकीमें लिखी है यथारुचि लेनी , Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ MUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUUN Se SOROROKA EURO S BS UDSOOCOON DOOR COORT NOOOOO00 ocUONANA ONG CO Coori JOOGIA SE KAMERALARINDUQDMADA DUIVUMAMOMMMMMMMMMMMMMMMMMAT 385 .. Sesonus Preses. SSSSSSSGRESUESEus perenngesotsaesseren NA tesis SSESSES l Za 103 US es ZAAL Nam . .. .. . . 1 :hte la lleblaseelle .. . S V Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - श्रीभगवत् मंदिर अक्षरब्रह्मधामल५.। निजमंदिररमणस्थलादि वंदावन। attamatka अभयदान | ध्वजा पुष्टिमार्ग .... शय्यामाद मागमदारपशा दाजाका शाकघर निकुजः mer t in फूलघर १२वन सात्विक राजस गहनाघरा ||पानघरा बरसाना रावल तामस भक्त - mmmmon यजुर्वेदश्रुतिरूपाऋग्वेदश्रु-स्यामवेदन जगमोहन नंदालयः इद्दारीत ) १ IL जमुनातट गिरिराज डोलतिवारी a 5 चौक ब्रजको ऑगन श्रीगोकुल. | गायनकी खिरकी हार वैकुण्ठ विष्णुनारायणकास्थान. T 2 सतर ndan बारपालपहरुबासि nirituita सिंहपौर HIT दज्ञान| गिरिराजकीतरहड़ी - सिढीनवधाभक्ति गोवर्धनचौक % 3 Dआकाशनगारखांना गंधर्षकिन्नरमादिः in marathi दुदुनीयादि - Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डवरा जीकीटोपी. पादुका कटोरा पोरवाल चंदनकीकेसरी कटोरा फुज्जा मथानीकीघरोची तोरन. JAN घण यार > फुलेलकीकेखो | रा. कपुरदानी श्रृंगार माथी परात चमर अंतर के सेवा साहित्य वस्तु | टकोरा हाय गादीकी पटरी: युगरी फुलपंगेर सिजा गी दर्पन उलापदान. आचमनकातष्टी पानकोटा आरती चौकी पंची गडवा परषा Sanze जीपाई परची तस्टीझारीकी / कटोरा प्याली माली ਸਫਲ कलस Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ H "-- AMROERes - - . hen MAHILA घूनघून्नाप्रापरला अतरोदाजंगीया पोछोरा TI वेनी - - IXXI. सनरेज का सेवा साहित्य वस्तु । 7000/ गेंदचौगान घेरदारवागा करायदार MEREDEEBARE चाकदार 122 MEEp वडापागा अलक चोपड खड़ाचोबगला ७ meanindmen time - - %3 anemas Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - A Hoteliame पनवर ___ -- ...30-00- ESS A - - ne -8. - - --a MOU assi . ..00 Aliaceaily AS २ ragha d kRELEPHATOPATI - - ARTIME "कलन LLTD GGEEI कर . . . क chen. ---... saxc 17 शृंगारके आभूषण। parano r mhelps परवलासठ, T बेदी YASRIRas L- 13 -- ARTHAMEERS . - mainamainanciae - nimamma and aaaine-Data r AmATIODERNVanited cces Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - MORE - मस्तकके शृंगारको साज। मुकुट किरीटमुकुटः मुकुटपीटीपी-पारा | MA 1 63 कुलहजडाऊ ॐ कुनाकीटोपी टोपी टोपी- रोपा. " टोपीः ococcal H mmameeDowLAMMARNEssue NAAVA ne नाना टोपी कुलहसाटी टीपाराजडाऊ गरेकीटोप ग्यालरोपी SURY i TOS C “वॉक कतरा तुर्रा आदिकके कारः मुकुटका AMAV चारकानकोटो m ain Aruna loanmanna (गोकरण PAK SNIN. melanga E indianmidaina चटिका विनाछागाकार RHI - - - - - PRODE Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मोरशिवा परवा छोगा. ग्वालपणा. डोककी चंद्रिका पागादिकको आकार । दुमाला: रारी मोजा 'चौरयुटीपाग। चमर एकछागाकु 'त्रिकोनीपाग चन्द्रीका जोड़की चंद्रिका देश खसकाचवर ऐटवाटा उच्छा पाग 18+ कारचीपी चंद्रिका मोज़ा मोराशे । खा चल Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - mov - श्रीगुसाईंजीके छटे लालजी श्रीयदुनाथजीको उत्सव. चैत्र सुदी ६. Namme - - m o चैत्रसुदी १ संवत्सरको ensuran - m Jan-D PUCH AAMADARomantimoniamom RACerasacanacaramBDDREATINCTIONPROGNORIDERNOREDARDINARRIOS FMHIMH Amateumma श्रीमहाप्र. मंगला वैता. वदी ११. . Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - महा. सींध्या. वै. व. ११ - -dindia eeramme - N Aamaare महा. सेन. ramm-des I nterimiti RAJAmeaninahemamanimoona - - m - - - - - - - Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ roomm Am ents m mmmmms - वैशाख वद्य ११ महाप्रभुजीको उत्सव तिलककी श्री राणी बहुजीके श्री हस्तकी. । - - - - - - Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3 크다. 그나마 Lil 1. 1 . 미 그리 . S TAT ᅬ 매 니미 의 거 매 IH 그 Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वैशाख शु० १४ नृसिंह चतुर्दशी । Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ज्येष्ठ शु० १० गंगादशमी । Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Damanan ilime d marne meraman - - - memu m -- --- ज्येष्ठ शु. १५ मानयात्रा Liv HEL Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 432 आषाढ शु. २ WLF L. тами. Кожожколежечкал Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ REERPRETARIA - - - - - aamananews estimonoundnutOR R m IDUNIA - - आषाढ शु.रस्थयात्रा श्रीनवनीतप्रियजीधरको विनाघोडाकारथः JANIK dichinabi - स AN L - eyACHA STAMMG 0x7 I0 AV HAVA DrousincEDDARSHEELamaru M AIRamanap - - - - - - 1 Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ C आषाढ शु० ६ करूँचाछठ. Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ immi - - आवाट शु०१५ शयन आज दिनसें चतुर्मासकेनेमकी आरती । Rammanasoninepan aamkeasanuamanenev.inamam n imumdandhesitarHReemaDelidada HER E HINDuitant u rN Pand - - nudetamaskarnaadesiaxscamdauityaMMANIdunim DomeAda rd - . - LISDAdminis - - - % - Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । श्रावण वद्य १ वा २ बुधबामुरूसो प्रथम आरंभ हिंडोला. %3 ठ ००० - masters mohan - - - PanaSolapasuomainama A RA Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www wwwwwww G PRESENT EN Somefront ILKI - XY DOLORE Labik Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रावण शु०५ नागपंचमी Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PraRIENT A wesarawesternmeteramodinandaneKIMARROREmedeomumtamnnabisabilioniamwithomamibiaomimes meanindows -remememenewanadiatimminenewmame- ne w -- - on भावण शु०१७ श्रीविठ्ठलराजीको उत्सव श्रीनवनी • प्रियाजीके घरमें गाने हैं: श्रावण शु.११ पवित्रा एकादशी, . BRE Samanarasiasmine A - - KICHANDIGARitenant samstery Jangaste Nod 4 ति माना EVE me TTI e samawesomwares in namastepmomwwwmummonwesemamaruwaonl manandHeapmapan Ra measo Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ crammad - - Commun श्रावण शुरु१५ राखी पुन्यो. - - it पत - - mmucuminAR MA manumanALAMVARANAS Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ marawwaminine mamm - e -en Romaasumaan मानहा श्रावण शु०१५ श्रीगिरधरजीके पुत्र श्रीदामोदरनीलोउत्सव श्रीनवनीतामियाजीकपरभ । भाद्रपद 4. सप्तमीके दिन उतरेहै. -A A الرمس نت CHAUTIFALHHA THEDARIUSA Now % - - - - Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपरके:-जन्माष्टमीके दिन राजभोग. । जन्माष्ठमीकै दिनसेनमे. Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ܗܤܗܗܗܗܣܤܣܡ 1 ܕܐ 49 ܕܙ ܬܕܬ ܘܥ ܗܬܚܗܗ ܬ ܐܐܐܝܝ ܝܐܐ ܠܐܢܳ ܕܐܝܙܟ 2-ܐܪܝ܆ Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . memendouna - - बदामजनकी ST omma IIMULEmonaANDEY N RNIMitrasala m - a nima - - Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ m weensecondonentinutenteresensonanomethememooooo o tronomannamsammentune n too - DT AT Fad TIP quot Worth . REE PASSIS acces RIP PIEEE Tma4hOF ATTT CT - atts the sudoctaskasalmatoreamnami mok montatemartment, tutes tmasus ca Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Air youture ++ Prement constaurated 一口口口口口到 治口号召回 一日三日二日已上立 ruJGDbu GG rada Lib口口口 口口口口口口口口口 12&PASPAS 是我的主, 主人看到有人在一生。 a.17 HEARNE Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - जिन्यानाकदिनमहानोगकाआरती बाजामनीबहूजाकलीहालकाला e-lamar-aupammaratiennertaerweathymL Aud दतचाप - - - - - Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नादो सुदिपुत्री चन्द्राय जीको उत्सव. द्वितिय स्वरू पका श्री माहाराणी श्री के बाहर की. Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Janearance जादी नदि राधामीकदिन तिलक की श्री काजी बहुजीकेबी हस्त की। aapatranamasomemaraman - % sename . RANPape AVAN marewawenama AmraemlammanaparmawrPopree Damauwaon peRaauxinni HTML CoरामदORDadam No Lingan ndia JaBarahminapalelembare-n Lond foodae HINDupayguddaya । - - Mani maastara p raNMKAR m etuRASMI Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ R - भादो सुदी ८ श्रीरुक्मीणी बहु राधाष्टमीफेदीन जीके श्रीहस्तकी || तिलका ASHThe E samana an NCERTROLTIPMuscussier-IAENAR mased AL म NE Award Hal d E - HOHORE Lampanel d H d ram pranagar ML ० -familyी ० o C । AAmiament - - SARKAameramanya Ramturernes FDIMANDAREntz -imarineKIMercoasaramaworatlamaaMMINImuvomwwwamre meenakamannaindag-tagratappuMagarmARALAAJAANANJAATMANFER SATTA Emairat -AT-Enawarwmar w are FAKEDOCTODDEHAutoTOIN.TARimi ttaintPANDHARMAOIANRAGanwaaniumi ILLA - - INA AnAre Hal KFD bod . ema new Sapn Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SamPUNISHIKESTMAH JFhree over साSEरकममा पावसा धीश्रा MORA नDEOATE ramarapurnal .IN M ORIGINASEEMALENDMRO SONG ART ANXXHDan बाद भादोन दि११ आसोजमा MAN kehistkurun manditeshya - - - - Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - N Kati - RY - JAM FYSALI Too श्रीकमजी बहूजाक-श्रीहन नाही तर श्रीरामनवादशीक्षिका LAD T Py h araa JJL TehLA uniahimamalantinagahitmanimate-- ALJ STIMAmaesiOAANORATIOESSAIRATRAILakshmi - -...arunam- A -yurenamen damamimmo RAKAARArwearinaamremAAAAAwakarenam en t a somASIKRARAMBRahsaMRRIORaok Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रसीद श्री हरिरायजी का उत्सव श्रीनाथजी के घर मा दिवारी के राजभोग बीजी रोज की सामी पदन बौबी की सांभी. ਤਨ ਈ ਦੀ भाड साथी लकी वेल्स Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपमा धूल में ९ि९ "DA Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपरकी:- आशोवदि १३ श्रीगुसांईजी के तिसरे ला लजी श्री बालरुष्णजीका उत्सव. Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AR B S EERDEIGARPETH EROD E OSROOMISHOROSTSIDEcoom w ordancernmenawunwaiksASER MANDARIHANI.MOBIDEARNarasomepresents memes EVIDEO O Aad INR Y ५ PARDA me /11 futnimEORAN RAIL frNER दडम: SECE - M -- SE ALIFE नददि३० --- - - - New --- - aadebretobjecillordNDSCIEn ":" swancidissosor anipamaannutrenamesunaLalaucom Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -- - KA 6 . विजयादशनीकी आरती तथा खडीको दशहरा लिरवेहें तामे दस गोबरको ठेपली दसकोठामें धरेहें और जवाराआदिसो पूजन होहें आसुसुदि १० सुलतानपाटकी आरती meena - Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ FALAR 7 AW: en VAN 5 Humor OR # Wrox WAS W RU) WEMBALI 14 MENU FORST Vakror ELVE R Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ n OTISTERINETRANSPENSIVITAFTarattrearroraemaramanarasititio 144 -- - T 03 A Bremiece PRAEDIASAGESIR E CTUDRAGICAL Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कारती दि LIZ C= Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - ow n el | कारतीक वदि१४ रूपचौदश लंगला-4 MeanIA - m म : an R ece - - -Ve LA ENA Immcineeसाला Hal VkalsessmINI PINI RSS - - wo u ndaan - momentatumeromanasi-mandirl Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1. try- HTML5实, - -- Alumn","TITLE Ant 区区一区 区区区 staggie =' HTT . 山 口 - Lo A ills 口口口口口3 11。 1y1 上一百一十 。 己” 」 कतिकददि१४ रुपचाददार 55年至一 4. 不是,是。 。。 。- 中山二三 EAFTERNAMELANEEDITH AND MEETV Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 cup - - - ---- = = arranma r ই করুন কিা অনস্বীকাওসাকা ই য়মৰrcuri===াকশন - -অত কল - - = বিনোদন ম ততততততসমতামত == = == BA - অ ফ - Mar - - a-under - - ২ - -- R @ 8 ) = নদuvetwerkantukder rিAs ট দল এপসএকক কক Fa৯ ২াঠ - -- -- -- - - - - - ==== - = - - ===-- - - === - - -- --- - - - - - - - --- ------ --- --- ----- ------ - - - র - এক - * Lal - = =--= = - --- ---- - . - E s -Nus srat Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - कारतरूदिदिबारीक तलाGLO दिनार Vadhim काबंदिशदिवारीराजभोगकी भाहाररायजीका उत्सव आशा विदिएकीमेसंध्याआरती. Gपरका % E HINDI SO HOMASTERSNE Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ tamancTHKARNATURATIOMARRINTERESwa ganaMESHIKAR o orthemamareismutankRAmrawasanawwwdapmomment, mes man N araemonsomwarenewalim SHATAMIERE LA4 atarianaras moms onumental m - PoineK - NARMADARoHSONICSMSHOCIAnanRCANEEDS Rammar आरती DIRECOLOUDDINATEmasnemusaragyear d - -Amma nimummistanAmAWAmuseu sa DirrP मा दावनमारती आश्विन वदि ३० दिवारीकी Sammelan - --andnouncement - LASS orma moma Hom AB and - memom A ASANNAR - Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ i s murder inn৮ এজেপি-অন - - চালি দুলা, -- - - - - - - --- র ১ | Ads li । f//i... NAMA MAMMA I]স১১. viN ) n o r - - - - --- An - - - - - - - -- a nnannoun- -- - uration -- : LIM --- - - - - - Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपरकी:- कारतक सुदि २ भाई दूज तिलक की. श्रीणावती बहूजी के श्रीहस्तकी. MDERN S Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपरकी: - कारतक सुदि १ भाईदूज राजभोगका. Page #365 --------------------------------------------------------------------------  Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ , Bদওবং3ংশগ্ৰসা. কংকাল মৃৎঅধমনরা |ণ ই E am rid সন 1 = == LEdit == - - - - - --- Est: এ এn == এ মস , T ]। ] EJ P a শতকে Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रबोधनीकी राजभोग आरती. Adaaliaments - And ANA -- TITIVE pening 1 D Zम Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मंडपमे चोकी. 'कारतीक सुदि११ संध्या श्रीमहाराणी बहूजी के श्रीहस्तकी Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - मदपमेन्दोकी उपरकी:-क मडपमेचोकी T VLA II Mal प Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का सु. ११देव प्रबोधनी मंडपमें कोंडी इनके चार को आयुध श्रीबेनीजी श्री की सेवा हे. नेमे चार Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपरकी:- कारनक सुदि १२ श्रीगुसांइजीके "प्रथम पुत्र श्रीगिरधरजीको उत्सव.. - - - । - LS ( A T -Samdiwal - rmin neK - -- - - h. ETTE IPL JL . पुत्र श्रीरघुनाथजीको उत्सब... माजोनलाबाओ के श्री सकी त Pr imandir -- - m aa Ramayawansarmm r Intensivanmamyhear masasanasiMJALArAHANIVareAa mmmna - duin anta - n ime.aa Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ma ARPAN C omment चम-normwar endepend - - - -- - - - - -- - - and Amlamidamermanrimarried meani neaning - - Poe जीको उत्सव. पौषदिर श्रीगुसांइजीके दुसरे लालजी श्रीगोविंदजीराया LUTILIPUR - - - Twe e nawar - - - पोपदि९ श्रीगुसाइजीको उत्सवमंगलाआरती.. - - KKK - - - Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपरकी:-मागसरवादि ससम लालजी श्रीघनश्यामजीकोउत्सव श्री कृष्णावती बहूजीके हस्तकी. । IA प्रयोधनीकेपास मंडपमे चोकी. - maravanese Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपरशी :-लत्तानकी आरती मागसर सुदि ७श्री। गुमलाईमाश लालजी श्रीगोकुलनाथजी श्रीपारवती बहूजीके श्रीहस्तकी. - -- A ma - - Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - - - - मागसर सुदि १५ श्रीबलदेवजीका पाटोत्सव - BUILU - - IRLIT ed - CHANr - - Lam ILU L - HTTER ma जन्मअष्टमीके दिनसंगलामे. -14 Frer JMER Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ e lon [ रुकमिणी पहजीके श्रीहस्तकी. . ॥ ARRUA LIL 18 . U Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - || गुस्साईजीके उत्सव शयन आरती पौषवदी९ SAAS ... DDA MO । गुसाइजीके उत्सव संध्या आरती पोपवदि ९ - ग - gee di stance Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माहा सुदि १५. हारी डाँडा, माहादि६ श्रादिक्षतजीको उत्सव. , mamAJun RA JanuarCK Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ mi EnPa mom AN . कुंझएकादशी . ....... Palle lepote Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उपरका श्रीनाथजीको पाउत्सवकालनवाद हस्तकी. आरनी. TH सक TV IRT न S । । / A -- touarad कप -- Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रामथुरेशजीको पाटोत्सव । फाल्गुन सुदि ७ मी श्रीभामना बहुजीके श्रीहस्तकी। News Ju J SKA T फाल्गुन सुदि १५ होरीकी आरती । Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Tota ARTHAN - - A सुरवपाल KHAN DesimuLUUDIEOSETTE IMATKAR Aryan LEONITE XMEEN PRIMARY HTRA AALIA K Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ i malsLIAmasmaamaravinawinadewarbendramania sun mmmmmmmat-- ८ - । । - IDNAP MA - चैत्र वदि । डोलकी रचना. SEE - - - - - IT - - - - --- morewr i TAMA Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । - - - - - - - पाट क्षेत्रवदि२ द्वितीया निसान -A -aherwiGEL ZALLENGEasar a matecr-UMANNEL Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जलमडली फूलमंडली Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www .com JES KLE UL 2 Hling ka cry TLAH NA tereve RECEV Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ++ 이 Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * *SU P WISSENY STAGE DAVON SLAVIATION ERLA WA? . c ZO . SA V RE - KESAN SEU RUG MISA O AY bad LNE 10 16 RO rch CUNG U gal NA STRACH - - A Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Taipei,市 n ? ret P DF LAG,事”。 。 管理費,”” ,” ,即每年上學。 生了二二= fin ,”。上看,ATE + T-1 16, hers":32: Taipus Ep4, u-hua ...... | Les 有的是在一起H “三看看 TELL A 17:54: 14[ TE , L9 人 : : : : L= ”” - - "s”, May to a see下了 。” :::::::: E -gle Tes ”, pa s s="TAFE i sm :hi, 11*** - *-9 -22 有了 。 ”中国。 化学品事,学的是Tea 。 ”里一三二一人 ,其中一个, - - - - - 上 。 ” 坐了上可看到山里,一種“ “ 产品中心,在194 | Pipt:甲方: - -.. - Oric reposter LIVE-MA: 我是 . .", Airities " h "- -- ---- 一 - - -- -- S am at - 天」 e e nicontermint es. Pre g 12 年,HTL Hommeresses.insternatsolatformanmaki. . PF Lian.ly-strical Pa uhrm以下,APP中是一个Lincree a lain as: Har Fire all -- a, : m 近代,正式 主要是 ELE.JPEDEntr...-_-二河上的“ 出民法大 Fire au是性别 ANELunlinessionsum - - Rese 的。 12.im尼甲”。。。。。” Super Lunanth門" 用两年时间。。。 19 ,1.4 FLAT 要 HII":51.A. 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Ant poteca on lo o sa pulit l liment dels MOR 11 nun bobom A 231 www.RO PEARE S Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उष्थाकालमें कुलमंडलो और कुआरा Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SEO XX1 ** NUN MUSS S -- - 0411 - 46 LAALARUTO HI SHAA 111 Ibu- MAGMAANAA H -403 X<< O nce Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ P -mon EAKHAmanawwanimunaam y mmeerapur- newwwmartronwanaTreneamasan arapramanwrongVARIANImaneemuRIEscomarwADHunwarpeamsutallanumanAHUL .NENTansa फूल मंडली. ternamaARTISARMONERaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaaanemperaprades - H r Aurance .....anakimeKaura LAMSALASSSS SESEASEJI 00840000००००० "७०७७GG x VAY E ... HIM D ॐ BHITS LATALA LI - माय नाराष्ट्र cal Rame Hended Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ... जलविहारमें, फुलमंडली. - e हरररररठDSSSSSS लहररररररररररररररररक का % 3DHerime mammerc - - AR - RELAKARELALEGALLA DOC TOSS SS समानामा Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ arrah - சகாயக்கடை ச - ச ra' - கா -- -- - - பாதம் -- காகா - சோ.நா - நகர ஆ - - - * 1. காபபாடடககபபடகக பபடடய சே காக ரம் pril SANTH வயகனவோரதுவோபக்க்ேகாயாகம் பயப்படா கர்பமாகன் -கட்டியக்காயர் Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ weeRamayaneparameter emamar - - - TAIN % - - sessmens-numanian vanा इति चौथा भाग। समाप्तोऽयं ग्रन्थः॥ 2 ) . S B 3ADKira CERMY -08 - - - R Momeme Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "लक्ष्मीवेंकटश्वर" स्टीम्-यन्त्रालयकी परमोप योगी स्वच्छ शुद्ध और सस्ती पुस्तकें । यह विषय आज ४० ।५० वर्षसे अधिक हुआ भारतवर्ष में प्रसिद्ध है कि, इस यन्त्रालयकी छपीहुई पुस्तकें सर्वोत्तम और सुन्दर प्रतीत तथा प्रमाणित हुई हैं सो इस यन्त्रालयमें प्रत्येक विषयकी पुस्तकें जैसे-वैदिक, वेदान्त, पुराण, धर्मशास्त्र, न्याय, मीमांसा, छन्द, ज्योतिष, काव्य, अलंकार, चम्पू, नाटक, कोष, वैद्यक, साम्प्रदायिक तथा स्तोत्रादि संस्कृत और हिन्दी भाषाके प्रत्येक अवसरपर विक्रीके अर्थ तैयार रहते हैं। शुद्धता स्वच्छता तथा कागजकी उत्तमता और जिल्दकी बधाई देशभरमें विख्यात है। इतनी उत्तमता होनेपरभी दाम बहुतही सस्ते रक्खे गये हैं और कमीशनभी पृथक् काट दिया जाता है। ऐसी सरलता पाठकोंको मिलना असंभव है। संस्कृत तथा हिन्दीके रसिकोंको अवश्य अपनी २ आवश्यकतानुसार पुस्तकोंके मंगानेमें त्रुटि न करना चाहिये. ऐसा उत्तम और सस्ता शुद्ध माल दूसरी जगह मिलना असम्भव है. 'सूचीपत्र' मंगा देखो। पुस्तक मिलनेका ठिकानागंगाविष्णु श्रीकृष्णदास, | खेमराज श्रीकृष्णदास, "लक्ष्मीवेंकटेश्वर" स्टीम् प्रेस, " श्रीवेङ्कटेश्वर" स्टीम् प्रेस, कल्याण-बंबई. खेतवाडी-बंबई. GANESHere - - - - - - Page #399 -------------------------------------------------------------------------- _